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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

SCO- क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (RATS)

  • 11 Dec 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना परिषद, शंघाई सहयोग संगठन

मेन्स के लिये:

क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना परिषद, शंघाई सहयोग संगठन,SCO में भारत के लिये महत्त्व एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने एक वर्ष की अवधि (28 अक्तूबर, 2021 से) के लिये शंघाई सहयोग संगठन के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS-SCO) की अध्यक्षता ग्रहण की है।

RATS-SCO

प्रमुख बिंदु:

  •  SCO-क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना
    • SCO-RATS शंघाई सहयोग संगठन का एक स्थायी निकाय है और इसका उद्देश्य आतंकवाद, उग्रवाद एवं अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के बीच समन्वय तथा बातचीत की सुविधा प्रदान करना है।
    • SCO-RATS का मुख्य कार्य समन्वय और सूचना साझा करना है।
    • एक सदस्य के रूप में भारत ने SCO-RATS की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
    • भारत की स्थायी सदस्यता इसे अपने परिप्रेक्ष्य के लिये सदस्यों के बीच अधिक समझ को सक्षम बनाएगी।
  • शंघाई सहयोग संगठन (SCO): 
    • शंघाई सहयोग संगठन (SCO) को विशाल यूरेशियाई क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करने और स्थिरता बनाए रखने के लिये एक बहुपक्षीय संघ के रूप में स्थापित किया गया था।
    • यह उभरती चुनौतियों एवं खतरों का मुकाबला करने और व्यापार बढ़ाने के साथ-साथ सांस्कृतिक तथा मानवीय सहयोग के लिये सेनाओं के शामिल होने की परिकल्पना करता है। इसकी स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई में हुई थी।
    • वर्ष 2001 में SCO की स्थापना से पूर्व कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान ‘शंघाई-5’ नामक संगठन के सदस्य थे
      • वर्ष 1996 में ‘शंघाई-5’ का गठन विसैन्यीकरण वार्ता की शृंखलाओं के माध्यम से हुआ था, चीन के साथ ये वार्ताएँ चार पूर्व सोवियत गणराज्यों द्वारा सीमाओं पर स्थिरता के लिये की गई थीं।
    • वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान के संगठन में प्रवेश के बाद ‘शंघाई-5’ को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) नाम दिया गया।
    • SCO चार्टर पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2003 में लागू हआ।
    • SCO की आधिकारिक भाषाएँ रूसी और चीनी हैं।
    • SCO के दो स्थायी निकाय हैं: 
      • बीजिंग में स्थित SCO सचिवालय,
      • ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) की कार्यकारी समिति।
    • SCO की अध्यक्षता सदस्य देशों द्वारा रोटेशन के आधार पर एक वर्ष के लिये की जाती है।
    • वर्ष 2017 में भारत तथा पाकिस्तान को इसके सदस्य का दर्जा मिला।
    • वर्तमान में इसके सदस्य देशों में कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं।

भारत और शंघाई सहयोग संगठन 

  • भारत के लिये लाभ:
    • SCO की सदस्यता मिलने के साथ ही अब भारत को एक बड़ा वैश्विक मंच मिल गया है। SCO यूरेशिया का एक ऐसा राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है जिसका केंद्र मध्य एशिया और इसका पड़ोस है। ऐसे में इस संगठन की सदस्यता भारत के लिये विभिन्न प्रकार के अवसर उपलब्ध करवाने वाली सिद्ध हो सकती है।
    • क्षेत्रवाद को अपनाना: सार्क तथा बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल (BBIN) पहल के साथ भागीदारी में कमी को देखते हुए SCO उन कुछ क्षेत्रीय संरचनाओं में से एक है जिनमें भारत भी हिस्सेदारी रखता है।
      • इससे भी महत्त्वपूर्ण है तीन प्रमुख क्षेत्रों- ऊर्जा, व्यापार, परिवहन लिंक के निर्माण में सहयोग करना तथा पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटना।
    • मध्य एशिया से संपर्क: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ भारत को मध्य एशियाई देशों तक अपनी पहुँच बढ़ाने (व्यापार और रणनीतिक संबंधों के मामले में) हेतु एक सुविधाजनक चैनल प्रदान करता है।
      • SCO भारत की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति’ (Connect Central Asia Policy) को आगे बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच का कार्य कर सकता है।
      • गौरतलब है कि मध्य एशिया के साथ आर्थिक संपर्क बढ़ाने की भारतीय नीति की नींव वर्ष 2012 की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी’  (Connect Central Asia Policy) पर आधारित है, जिसमें  4‘C’- वाणिज्य (Commerce), संपर्क (Connectivity), कांसुलर (Consular) और समुदाय (Community) पर ध्यान केंद्रित किया गया है। 
    • ‘SECURE’ (सुरक्षा) के मूलभूत आयाम: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ के रणनीतिक महत्त्व को स्वीकार करते हुए, भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘SECURE’ (सुरक्षा) को यूरेशिया के मूलभूत आयाम के रूप में संदर्भित किया था। ‘SECURE’ शब्द का पूर्ण रूप है:
      • S- नागरिकों की सुरक्षा,
      • E- आर्थिक विकास,
      • C- क्षेत्रीय संपर्क,
      • U- लोगों के बीच एकजुटता,
      • R- संप्रभुता और अखंडता का सम्मान
      • E- पर्यावरण संरक्षण
    • पाकिस्तान और चीन से निपटना: शंघाई सहयोग संगठन भारत को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहाँ वह क्षेत्रीय मुद्दों पर चीन और पाकिस्तान के साथ रचनात्मक चर्चा में शामिल हो सकता है तथा अपने सुरक्षा हितों को उनके समक्ष रख सकता है।
  • भारत के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ
    • प्रत्यक्ष स्थलीय संपर्क की बाधाएँ: पाकिस्तान द्वारा भारत और अफगानिस्तान (तथा इसके आगे भी) के बीच भू-संपर्क की अनुमति न देना, भारत के लिये यूरेशिया के साथ अपने विस्तारित संबंधों को मज़बूत करने में सबसे बड़ी बाधा रहा है।
      • कनेक्टिविटी के अभाव ने हाइड्रोकार्बन समृद्ध- यूरेशिया और भारत के बीच ऊर्जा संबंधों के विकास में भी बाधा डाली है।
    • रूस-चीन संबंधों में सुधार: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ में भारत को शामिल करने के लिये रूस के प्रमुख कारकों में से एक चीन की शक्ति को संतुलित करना था।
    • ‘बेल्ट एंड रोड’ इनिशिएटिव को लेकर मतभेद: जहाँ एक ओर भारत ने ‘बेल्ट एंड रोड’ (BRI) इनिशिएटिव का विरोध किया है, वहीं शंघाई सहयोग संगठन के अन्य सभी सदस्यों ने चीनी परियोजना को स्वीकार कर लिया है।
    • भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ के सदस्यों ने अतीत में चिंता व्यक्त की है कि भारत एवं पाकिस्तान के प्रतिकूल संबंधों का प्रभाव संगठन पर पड़ सकता है और यह आशंका हाल के दिनों में और अधिक बढ़ गई है।

आगे की राह

  • मध्य एशिया के साथ संपर्क में सुधार: इस संदर्भ में यूरेशिया में एक मज़बूत पहुँच स्थापित करने के लिये चाबहार बंदरगाह के खुलने और अश्गाबात समझौते में भारत के शामिल होने का लाभ उठाया जाना चाहिये। 
  • चीन के साथ संबंधों में सुधार: 21वीं सदी की वैश्विक राजनीति में एशियाई नेतृत्व को मज़बूती प्रदान करने के लिये यह बहुत ही आवश्यक है कि भारत और चीन द्वारा आपसी मतभेदों को शांति के साथ दूर करने के लिये एक व्यवस्थित प्रणाली को विकसित किया जाए। 
  • सैन्य सहयोग में वृद्धि: हाल के वषों में क्षेत्र में आतंकवाद संबंधी गतिविधियों में वृद्धि को देखते हुए यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि SCO द्वारा एक ‘सहकारी और टिकाऊ सुरक्षा ढाँचे’ का विकास किया जाए, साथ ही क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना को और अधिक प्रभावी बनाए जाने का भी प्रयास किया जाना चाहिये।  

स्रोत: पी.आई.बी.

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