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भारत-विश्व

देश देशांतर : अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर

  • 27 Nov 2018
  • 21 min read

संदर्भ


रेल, सड़क और समुद्री परिवहन वाले 7200 किलोमीटर लंबे अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर पर भारत, रूस और ईरान ने साल 2000 में सहमति जताई थी। यह कॉरिडोर हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के ज़रिये कैस्पियन सागर से जोड़ेगा और फिर रूस से होते हुए उत्तरी यूरोप तक पहुँच बनाएगा। इसके तहत ईरान, अज़रबैजान और रूस के रेल मार्ग भी जुड़ जाएंगे। इस कॉरिडोर के शुरू होने से रूस, ईरान, मध्य एशिया, भारत और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और वस्तुओं की आवाज़ाही में समय और लागत की बचत होगी। ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी की इस साल फरवरी में भारत यात्रा के दौरान इस कॉरिडोर पर चर्चा भी हुई थी और रूस भी इस कॉरिडोर को विकसित करने में गहरी रुचि दिखा रहा है।

पृष्ठभूमि

  • रूस, ईरान और भारत ने 16 मई, 2002 को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा परियोजना के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये। रूस, भारत और ईरान परियोजना के संस्थापक सदस्य देश हैं लेकिन 2002 में समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद इसकी प्रगति धीमी रही।
  • 18 जनवरी, 2012 को नई दिल्ली में हुई एक बैठक में परियोजना को आगे बढ़ाने के लिये विभिन्न तरीकों पर चर्चा की गई।
  • अनुवर्ती रूप में अन्य मध्य एशियाई देशों से समर्थन मांगा गया था और अब इसका विस्तार किया गया है।
  • वर्तमान सदस्य भारत, ईरान, रूस, अज़रबैजान, कज़ाखस्तान, आर्मेनिया, बेलारूस, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, सीरिया, तुर्की, यूक्रेन और बुल्गारिया (पर्यवेक्षक) हैं।
  • इस कॉरिडोर की अनुमानित क्षमता हर साल 20 से 30 मिलियन टन माल की आवाजाही है।

INSTC का उद्देश्य

  • इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (International North-South Transport Corridor-INSTC), सदस्य राज्यों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ईरान, रूस और भारत द्वारा सितंबर 2000 में सेंट पीटर्सबर्ग में स्थापित एक मल्टी मोडल परिवहन है।
  • INSTC 7,200 किमी. लंबा ज़मीनी और सामुद्रिक रास्ता है। इसमें परिवहन के रेल, सड़क और समुद्री मार्ग शामिल हैं।
  • INSTC केंद्रीय एशियाई देशों के लिये बंद कर दी गई भूमि तक उनकी पहुँच बढ़ाएगा।
  • इसके जरिये समय और लागत में कटौती कर रूस, ईरान, मध्य एशिया, भारत और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा दिये जाने का लक्ष्य है।
  • इस नेटवर्क से यूरोप और दक्षिण एशिया के बीच व्यापारिक गठजोड़ में तेज़ी एवं ज्यादा कुशलता की उम्मीद की जा रही है।
  • फेडरेशन ऑफ फ्रेट फॉरवार्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सर्वे में बताया गया है कि मौजूदा मार्ग के मुकाबले INSTC 30 प्रतिशत सस्ता और 40 प्रतिशत छोटा मार्ग होगा।

INSTC में अब तक हुई प्रगति तथा फोकस पॉइंट क्या है?

  • वर्ष 2000 में हुए समझौते के समय इसमें शामिल देशों की संख्या तीन थी, जबकि वर्तमान में इसमें करीब 11 देश शामिल हैं जो कि अपनी अलग-अलग भूमिका निभा रहे हैं।
  • सेंट्रल एशिया की अधिकतर जनसंख्या इससे जुड़ गई है। प्रगति के लिहाज़ से देखा जाए तो पिछले कुछ सालों में इसकी प्रगति धीमी रही है लेकिन अब इस परियोजना में गतिशीलता आ रही है।
  • पिछले 2-3 सालों में इसमें काफी प्रगति हुई है। इसके प्रमुख दो कारण हैं-
  1. वर्ष 2002 के बाद ईरान के ऊपर प्रतिबंध (sanction) थे जिसके कारण इसमें अधिक प्रगति नहीं हो पाई और अब जब 2015 में प्रतिबंध हटे तो इस पर तेज़ी से काम होना शुरू हुआ है।
  2. मध्य एशिया के देशों कज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान के साथ भारत के काफी अधिक सामरिक हित जुड़े हैं क्योंकि हमारा उनके साथ कोई लैंड-बॉर्डर नहीं है। भारत के लिहाज़ से वहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराना बहुत महत्त्वपूर्ण है। यही वज़ह है की भारत इसमें तेज़ी दिखा रहा है।
  • इसमें प्रगति होना स्वाभाविक भी है क्योंकि जिस तेज़ी से चीन अपनी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के माध्यम से दुनिया का नक्शा बदलता जा रहा है उसे देखते हुए इन देशों के पास कोई विकल्प नहीं बचता है।
  • चीन ने जिस तरह अपनी महत्त्वाकांक्षी बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) द्वारा दुनिया के विभिन्न प्रदेशों को जोड़ने की कोशिश की है उसमें कहीं-न-कहीं अन्य देश पिछड़ते जा रहे हैं और इसीलिये INSTC परियोजना को भारत, रूस और ईरान तीनों ने गति देने की कोशिश की है।
  • इन तीनों देशों का प्रयास यह है कि एक ऐसा कॉरिडोर बने जिससे भारत के नज़रिये से सेंट्रल एशिया के साथ व्यापार बढ़ाया जा सके जो कि मौजूदा समय में बहुत कम है क्योंकि आवागमन की समस्या इसका प्रमुख कारण है।
  • दूसरी तरफ, रूस के साथ भारत के संबंधों में आर्थिक आयाम बहुत कमज़ोर है। हमें परिवहन लागत को कम करना है तथा ट्रेड वॉल्यूम को बढ़ाना है जिसके चलते एक ऐसे कॉरिडोर की आवश्यकता है जिसकी प्रकृति मल्टीमोडेल हो, जिसमें आवागमन कहीं भी हो सके।
  • इस परियोजना में उन क्षेत्रों को भी जोड़ने की कोशिश की जा रही है जहाँ अब तक कोई संपर्क नहीं हो पाया है। यह परियोजना धीरे-धीरे प्रगति कर रही है। उम्मीद की जानी चाहिये कि इसमें और तेज़ी आएगी।

INSTC के महत्त्व को किस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है?

  • इसमें ज़्यादातर देश सदस्य के तौर पर जुड़े हुए हैं। केवल बुल्गारिया ही आब्जर्वर की भूमिका में है।
  • जब यह कॉरिडोर बनकर तैयार होगा तथा काम करना शुरू कर देगा तो यह न सिर्फ यात्रियों बल्कि फ्रेट के आवागमन को भी सुगम बनाएगा जो भारत से लेकर ईरान, ईरान से कैस्पियन सागर (चाहे वह आज़रबैज़ान के माध्यम से जाए) और उसके बाद मास्को सैंटपीटर्सबर्ग तक जाएगा।
  • मुंबई से मास्को या सेंटपीटर्सबर्ग फ्रेट भेजने में 40-45 दिन का समय लगता है। अगर उसे INSTC रूट से भेजते हैं तो यह समय 25 दिन के आसपास आएगा।
  • अगर हम इसमें लगने वाले व्यय को देखें तो उसमें भी 40 प्रतिशत की कमी होगी। अर्थात् हम कम खर्च में जल्दी पहुँच जाएंगे जिससे हमारा व्यापार बढ़ेगा।
  • INSTC न सिर्फ हमारे व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण है बल्कि सेंट्रल एशिया में रणनीतिक हित के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
  • चाबहार को भी विकसित करने में भारत मदद कर रहा है और आगे चलकर चाबहार भी अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर का हिस्सा बन सकता है।
  • चाबहार के रास्ते हम अफगानिस्तान भी पहुँच सकते हैं क्योंकि भारत ने अफगानिस्तान में एक सड़क भी बनाई है जिससे अफगानिस्तान पहुँचना आसान हो जाएगा और वहाँ की स्थिरता और शांति में हम अपना योगदान दे सकते हैं।
  • INSTC तथा चाबहार न सिर्फ व्यापार के नज़रिए से बल्कि सामरिक नज़रिये से भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं।

INSTC का भारत के नज़रिये से आर्थिक और सामरिक महत्त्व क्या है?

  • 2002 में INSTC समझौते के बाद यह आगे क्यों नहीं बढ़ पाया इसे समझने के लिये हमें यह देखना होगा कि उस समय सेंट्रल एशिया, रूस तथा खाड़ी देशों के क्या हालात थे।
  • इसे ध्यान में रखते हुए 1990 के दशक के बाद जब रूस का विघटन हुआ तो अन्य देश भी इससे जुड़ गए। उनकी संरचना, घरेलू राजनीति कुछ ऐसी थी कि उन्हें व्यापार तथा द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने की ज़रूरत थी लेकिन किन्हीं कारणों से यह आगे नहीं बढ़ पाया।
  • प्रश्न उठता है कि इतने वर्षों तक भारत सरकार ने इस पर कुछ क्यों नहीं किया। जब से वर्तमान सरकार आई है उसने न सिर्फ सार्क और पड़ोसी देशों के साथ बल्कि एक्सटेंडेड नेबरहुड को भी अपनी परिधि में लाने की मुहिम छेड़ी है।
  • उदहारण के लिये हमारी लुक ईस्ट पालिसी से एक्ट ईस्ट पालिसी अस्तित्व में लाई गई है। इसके अलावा भारत की सेंट्रल एशिया स्ट्रेटेजी में सेंट्रल एशिया के रिसोर्स रिच देशों के साथ व्यापार तथा घनिष्ठ संबंध बनाए रखने की भी रही है।
  • सेंट्रल एशिया के साथ पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश, लैंड लॉक्ड देश हैं। इनमें कोई समुद्री मार्ग नहीं है। इस कॉरिडोर के संचालन से व्यय तथा समय की बचत होगी जिससे भारत को लाभ होगा।
  • सेंट्रल यूरोपियन कन्ट्रीज तथा सेंट्रल एशियन कन्ट्रीज के साथ भारत के व्यापारिक संबंध मज़बूत होंगे क्योंकि यहाँ चीन की OBOR तथा व्यापार को लेकर असंतोष की भावना है।
  • पिछले 2-3 सालों से ऐसा देखने में आ रहा है कि जो भी देश जैसे- श्रीलंका तथा पाकिस्तान चीन की OBOR से संबद्ध हैं वे महसूस कर रहे हैं कि चीन के साथ जो भी व्यापारिक समझौते हुए हैं वह चीन के पक्ष में जा रहा है।
  • ऐसी स्थिति में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था है। भारत एक बहुत बड़ा मार्केट बनकर उभर रहा है। ऐसी स्थिति में रूस, भारत को नज़रअंदाज नहीं कर सकता। अगर वह ऐसा करता है तो यह उसके लिये आत्मघाती होगा।
  • भारत को अपने सामरिक और रणनीतिक हित को ध्यान में रखते हुए INSTC के ज़रिये OBOR को चुनौती देने के लिये तैयार रहना होगा। हमें व्यापारिक संबंध सिर्फ उन्हीं देशों से बढ़ाने की ज़रूरत नहीं है जिनके साथ मिलियन डॉलर के व्यापार होते आ रहे हैं बल्कि हमें उन अर्थव्यवस्थाओं को भी साथ लेना होगा जो हमसे घनिष्ट संबंध रखना चाहते हैं।

OBOR बनाम INSTC को किस रूप में देखा जा सकता है?

  • INSTC परियोजना को चीन की वन बेल्ट वन रोड (OBOR) पहल के जवाब के रूप में माना जा रहा है।
  • चीन जहाँ अपनी इस पहल के ज़रिये यूरोप के साथ स्मूथ कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने की कोशिश में है तो वहीं, भारत INSTC के ज़रिये सुदूर मध्य एशिया और यूरेशियाई क्षेत्रों तक अपनी बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने में जुट गया है।
  • OBOR चीन की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है। इसके ज़रिये चीन ने विभिन्न देशों के साथ-साथ दुनिया के ऐसे क्षेत्रों को भी जोड़ने की कोशिश की है जहाँ कनेक्टिविटी की समस्या थी।
  • अगर हम सेंट्रल एशिया और पूर्वी यूरोप की बात करें तो ऐसा माना जाता था कि ये वैश्वीकरण की सीमा से कट गए थे। एक तरफ जहाँ आर्थिक वैश्वीकरण से पूरी दुनिया को फायदा हो रहा था, वहीँ कुछ ऐसे क्षेत्र भी थे जो अलग-थलग पड़ गए थे।
  • चीन ने OBOR के ज़रिये इन सबको जोड़ने की कोशिश की। लेकिन अब इंडो-पेसिफ़िक हो, सेंट्रल एशिया हो या पूर्वी यूरोप चीन के OBOR प्रोजेक्ट को लेकर द्वीपक्षीय समस्याएँ आ रही हैं।
  • ऐसे में एक परियोजना की ज़रूरत थी जो OBOR का विकल्प बन सके। INSTC को इसके विकल्प के रूप में देखा जा सकता है जो अपने आप में बहुत बड़ी परियोजना है जिसे धरातल पर प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने की ज़रूरत है।
  • वे देश जो OBOR से नाखुश हैं या इसको लेकर कुछ समस्या है, वे INSTC कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट से जुड़कर आने वाले दूसरे चरण के वैश्वीकरण से जुड़ सकते हैं।

INSTC, OBOR के विकल्प के रूप में कितना कारगर होगा?

  • INSTC तथा OBOR या BRI (Belt Road Initiative) परस्पर विरोधी या असंगत नहीं हैं।
  • BRI ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर जाता है जबकि INSTC नार्थ साउथ कॉरिडोर जाता है। अतः ये देश इन दोनों का फायदा उठा सकते हैं। भारत OBOR को चुनौती देने के लिये INSTC में नहीं जा रहा है।
  • भारत इसलिये INSTC में रुचि ले रहा है क्योंकि मध्य एशिया के सभी देशों के साथ हमारे सांस्कृतिक, व्यापारिक संबंध तब से रहे हैं जब से सोवियत संघ का विघटन हुआ है परंतु बाद में इन संबंधों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका।
  • भारत सभी देशों को विकल्प दे रहा है। वह उन तक पहुँचने का प्रयास कर रहा है क्योंकि ये सभी देश भारत के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।
  • वहाँ से तेल, गैस तथा यूरेनियम को भारत लाने का कोई रास्ता नहीं है। वहाँ पर बहुत से आतंकवादी गुट सक्रिय हैं, जैसे-इस्लामिक मूवमेंट उज़्बेकिस्तान तथा हिजबुल तहरीर। अब वहाँ पर इस्लामिक स्टेट भी सक्रिय हो रहा है।
  • अफगानिस्तान में तालिबान अधिक हावी हो रहा है। ऐसे में मध्य एशिया में असंतुलन के साथ-साथ संकट की स्थिति उत्पन्न होगी। उन देशों के साथ अच्छे संबंध कायम करना हमारे लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत ने फरवरी में अश्काबाद समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। इसमें ओमान भी शामिल है। ये सभी देश ज़्यादा-से-ज़्यादा विकल्प की तलाश कर रहे हैं तथा उसका इस्तेमाल करना चाहते हैं ताकि विन-विन सिचुएशन हो।

रूस और ईरान कितने महत्त्वपूर्ण हैं?

  • रूस के नज़रिये से देखें तो रूस का यूरेशियन ड्रीम है। रूस अपने को यूरोप से कुछ लिहाज़ से अलग-थलग नहीं देखता है।
  • हालाँकि यूक्रेन को लेकर इनके बीच कुछ मतभेद ज़रूर हैं। EU तथा रूस अलग-अलग रुख अख्तियार करते हैं लेकिन रूस का एक यूरेशियन ड्रीम ज़रूर है जिसको वह आगे करना चाहता है।
  • इसके लिये ताकत के साथ कनेक्टिविटी की आवश्यकता होगी और ईस्ट यूरोपियन देशों का सहयोग भी।
  • शिक्षा, बैंकिंग, इंश्योरेंस, टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटैलिटी तथा मेडिकल ऐसे क्षेत्र हैं जिनके द्वारा भारत इन देशों में अपनी सक्षमता को बढ़ा सकता है।
  • सेंट्रल एशिया में भारत के सांस्कृतिक पहलू इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि किसी ज़माने में भारत के रामायण और महाभारत सीरियल वहाँ के लोग सुरक्षा चक्र को तोड़कर देखा करते थे। वहाँ की जनता के बीच भारतीय संस्कृति की उपस्थिति नज़र आती है लेकिन इसे राजनयिक स्तर पर आगे ले जाकर पीपल-टू-पीपल कांटेक्ट बढ़ाकर भुनाने की ज़रूरत है।INSTC इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • रूस और ईरान में चीन की उपस्थिति भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। रूस के साथ चीन के संबंध घनिष्ट हो गए हैं। अभी इसे रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। ईरान से पश्चिमी देश संबंध तोड़ रहे हैं उस स्थान को चीन कवर करता जा रहा है।
  • ईरान और रूस को इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि चीन उनका एकमात्र रणनीतिक भागीदार न बने और यहाँ पर भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
  • पिछले कुछ वर्षों में रूस ने भारत के साथ रणनीतिक असंतुलन को ठीक करने की कोशिश की है। सोची (Sochi) में अनौपचारिक वार्ता तथा भारत में पुतिन की यात्रा इसके उदाहरण हैं।
  • भारत को न सिर्फ द्वीपक्षीय तौर पर सोचना चाहिये बल्कि यह भी सोचना चाहिये किस तरह इस क्षेत्रीय व्यवस्था में वह अपने को फिट पाता है तथा सेंट्रल एशिया से अन्य देशों को जोड़कर तथा कनेक्टिविटी को सुधार कर उनके साथ व्यापार और सामरिक मुद्दों पर आगे बढ़ सकता है।

बाधाएँ

  • INSTC के पास अभी भी ज़मीन पर परिचालन संबंधी मुद्दों से निपटने के लिये एक मज़बूत संस्थागत तंत्र की कमी है।
  • आवश्यक बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण से संबंधित मुद्दे।
  • सीमा शुल्क प्रक्रिया और दस्तावेज़ीकरण से संबंधित समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं।
  • मार्ग पर मौजूदा कंटेनर का निम्न स्तर।
  • परियोजना में भाग लेने वाले देशों के बीच सीमा पार करने संबंधी नियमों की कमी।
  • बंदर अब्बास से आवागमन के लिये सड़क परिवहन तथा रेल परिवहन पर उच्च टैरिफ।
  • वैगन की कमी तथा पूर्व में इस्लामी विद्रोहियों और मार्ग के पश्चिम में उत्पन्न सुरक्षा संबंधी समस्या।

निष्कर्ष


INSTC भारत को एक बड़े वैश्विक खिलाड़ी के रूप में पेश करने की आदर्श शुरुआत है। इसका भविष्य काफी उज्जवल दिखाई देता है। कुछ ही समय में यहाँ पर वाणिज्यिक आवागमन शुरू हो जाएगा जिससे सभी देशों को न सिर्फ व्यापारिक बल्कि सामरिक नज़रिये से भी लाभ होगा। इसलिये पक्षकारों को सभी संभावनाओं के साथ-साथ INSTC से जुड़े बुनियादी प्रश्नों पर विचार करना चाहिये।

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