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डेली न्यूज़

  • 21 Mar, 2023
  • 39 min read
आंतरिक सुरक्षा

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2023

प्रिलिम्स के लिये:

इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (CCIT)।

मेन्स के लिये:

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (GTI), विश्व स्तर पर आतंकवाद से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (Global Terrorism Index- GTI) में भारत 13वें स्थान पर है। रिपोर्ट से पता चलता है कि हमलों और मौतों में कमी के बावजूद अफगानिस्तान लगातार चौथे वर्ष भी आतंकवाद से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।

 प्रमुख बिंदु  

  • GTI रिपोर्ट को टेररिज़्म ट्रैकर और अन्य स्रोतों के डेटा का उपयोग करके थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (IEP) द्वारा तैयार किया गया है।
    • टेररिज़्म ट्रैकर 1 जनवरी, 2007 से आतंकवादी हमलों की घटनाओं का रिकॉर्ड प्रदान कर रहा है।
    • डेटासेट में वर्ष 2007 से 2022 की अवधि की लगभग 66,000 आतंकवादी घटनाएँ शामिल हैं। 
  • वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से होने वाली मौतों में 9% की कमी आई, यह संख्या घटकर 6,701 मौतों पर पहुँच गई है, जो वर्ष 2015 में अपने चरम से 38% कम है।
  • पाकिस्तान वर्ष 2022 में दुनिया भर में आतंकवाद से संबंधित मौतों के संदर्भ में दूसरे स्थान पर रहा, जहाँ 643 मौतें आतंकवाद के कारण हुईं।
  • दक्षिण एशिया सबसे खराब औसत GTI स्कोर वाला क्षेत्र बना हुआ है।
    • दक्षिण एशिया में वर्ष 2022 में आतंकवाद से 1,354 मौतें दर्ज की गईं। 
  • इस्लामिक स्टेट (IS) और उसके सहयोगी लगातार आठवें वर्ष विश्व स्तर पर सबसे घातक आतंकवादी समूह हैं, वर्ष 2022 में किसी भी समूह की तुलना में सबसे अधिक हमले और मौतें दर्ज की गईं।

विश्व स्तर पर आतंकवाद से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:  

  • आतंकवाद का वित्तपोषण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) और विश्व बैंक के अनुसार, अपराधियों द्वारा एक वर्ष में चार ट्रिलियन डॉलर तक का धनशोधन करने का अनुमान है। दान और वैकल्पिक प्रेषण विधियों के माध्यम से आतंकवादियों द्वारा धन के प्रेषण को भी गोपनीय रखा गया है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को कलंकित करता है और प्रणाली की अखंडता को लेकर जनता के विश्वास को समाप्त करता है।
  • आतंकवाद विरोधी उपायों का राजनीतिकरण: आतंकवादियों की पहचान करने के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (P5) के सदस्य देश अलग-अलग स्तरों पर वीटो शक्ति का प्रयोग करते हैं।
    • आतंकवाद को परिभाषित करने के लिये कोई सर्वसम्मत मानदंड नहीं होने से आतंकवाद को भी फायदा होता है क्योंकि इससे कुछ राष्ट्रों को ऐसे मामले में चुप रहने और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई पर अपने वीटो का उपयोग करने की अनुमति प्राप्त होती है।
  • आतंकवादियों द्वारा उभरती प्रौद्योगिकी का उपयोग: कंप्यूटिंग और दूरसंचार में व्यापक इंटरनेट तक पहुँच, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन एवं वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क जैसे नवाचारों ने विश्व भर में अधिक संख्या में कट्टरपंथियों के लिये नए प्रकार के संचालन को संभव बना दिया है तथा यह एक उभरता हुआ खतरा है।

आगे की राह 

  • काउंटर टेररिज़्म एजेंडे को फिर से सक्रिय करना: विश्व भर में आतंकवादियों की पहचान करने के मामले में देशों को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है साथ ही P5 देशों की वीटो शक्ति को सीमित करते हुए आतंकवाद के वैश्विक एजेंडे को फिर से सक्रिय करना अति आवश्यक है।
  • आतंकवाद की सार्वभौमिक परिभाषा को अपनाना: आतंकवाद की सार्वभौमिक परिभाषा को अपनाने की भी आवश्यकता है ताकि संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के सभी सदस्य देश इसे अपने स्वयं के आपराधिक कानूनों में शामिल कर सकें, आतंकवादी समूहों पर प्रतिबंध लगा सकें, विशेष कानूनों के तहत आतंकवादियों पर मुकदमा चला सकें और सीमा पार आतंकवाद को विश्व भर में एक प्रत्यर्पणीय अपराध घोषित कर सकें।
    • वर्ष 1986 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) को लेकर एक मसौदा दस्तावेज़ का प्रस्ताव रखा। हालाँकि इसे अभी UNGA द्वारा अपनाया जाना बाकी है।
  • टेरर फंडिंग पर अंकुश लगाना: इस संबंध में ठोस कानूनों की आवश्यकता है, जिसके लिये बैंकों को ग्राहकों पर नज़र रखने और आतंकवाद को रोकने के लिये संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्ट करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'हैंड-इन-हैंड 2007' संयुक्त आतंकवाद विरोधी सैन्य प्रशिक्षण भारतीय सेना के अधिकारियों और निम्नलिखित में से किस देश की सेना के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया था? (2008)

(a) चीन
(b) जापान
(c) रूस
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. आतंकवाद की महाविपत्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती है। इस बढ़ते हुए संकट के नियंत्रण के लिये आप क्या-क्या हल सुझाते हैं? आतंकी निधियन के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

खालिस्तान मुद्दा

प्रिलिम्स के लिये:

आनंदपुर साहिब संकल्प, भारत की स्वतंत्रता, विभाजन, महाराजा रणजीत सिंह का ननकाना साहिब।

मेन्स के लिये:

खालिस्तान मुद्दा

चर्चा में क्यों? 

कुछ महीनों से पंजाब में खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन के विचार का प्रचार कर रहे सिख आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले का अनुयायी अमृतपाल सिंह भागने में सफल रहा।

खालिस्तान आंदोलन:

  • खालिस्तान आंदोलन वर्तमान पंजाब (भारत और पाकिस्तान दोनों) में एक अलग, संप्रभु सिख राज्य के लिये लड़ाई है।
  • ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) और ऑपरेशन ब्लैक थंडर (1986 एवं 1988) के बाद भारत में इस आंदोलन को दबा दिया गया था किंतु यह सिख आबादी विशेष रूप से कनाडा, ब्रिटेन एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सिख प्रवासियों की सहानुभूति और उनका समर्थन प्राप्त करने के लिये सदैव क्रियाशील रहता है। 

खालिस्तान आंदोलन की पृष्ठभूमि:

  • भारत की स्वतंत्रता एवं विभाजन:
    • इस आंदोलन की उत्पत्ति भारत की स्वतंत्रता और बाद में धार्मिक आधार पर हुए विभाजन के कारण हुई।  
    • भारत और पाकिस्तान के मध्य विभाजित पंजाब प्रांत में सबसे अधिक सांप्रदायिक हिंसा हुई जिसके कारण लाखों लोग शरणार्थी बनने को विवश हुए। 
    • इस विभाजन के कारण महाराजा रणजीत सिंह के महान सिख साम्राज्य का राजधानी क्षेत्र लाहौर पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया, साथ ही सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म स्थान ननकाना साहिब सहित कई पवित्र सिख स्थल भी पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में चले गए।  
  • स्वायत्त पंजाबी सूबे की मांग: 
    • पंजाबी भाषी राज्य के निर्माण और अधिक स्वायत्तता के लिये राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत स्वतंत्रता के समय पंजाबी सूबा आंदोलन के साथ हुई।  
    • वर्षों के विरोध के बाद वर्ष 1966 में  पंजाब को पंजाबी सूबे की मांग को प्रतिबिंबित करने के लिये पुनर्गठित किया गया था।
    • तत्कालीन पंजाब राज्य को हिंदी भाषी, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के हिंदू-बहुल राज्यों तथा पंजाबी-भाषी, सिख-बहुल पंजाब में विभाजित किया गया था।
  • आनंदपुर साहिब प्रस्ताव: 
    • 1973 में नए सिख-बहुल पंजाब के प्रमुख दल- अकाली दल ने मांगों की एक सूची जारी की, जिसमें राजनीतिक मांगों के अतिरिक्त आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में पंजाब से संबंधित चिह्नित क्षेत्रों की पूर्ण स्वायत्तता की भी मांग की गई। इसके अलावा पृथक राज्य और अलग संविधान की मांग भी की गई।
    • जबकि अकालियों ने स्वयं बार-बार यह स्पष्ट किया कि वे भारत से अलग होने की मांग नहीं कर रहे हैं। भारत के लिये आनंदपुर साहिब प्रस्ताव गंभीर चिंता का विषय था। 
  • भिंडरांवाले: 
    • जरनैल सिंह भिंडरावाले, जो एक करिश्माई उपदेशक था, ने जल्द ही अकाली दल के नेतृत्त्व के विपरीत स्वयं को “सिखों की प्रामाणिक आवाज़" के रूप में स्थापित कर लिया।
    • ऐसा माना जाता है कि कॉन्ग्रेस के राजनीतिक लाभ हेतु अकालियों के खिलाफ खड़े होने के लिये भिंडरावाले को संजय गांधी का समर्थन प्राप्त था। हालाँकि 1980 के दशक तक भिंडरांवाले की शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि वह सरकार के लिये मुसीबत बन चुका था।
  • धर्म युद्ध मोर्चा: 
    • वर्ष 1982 में भिंडरावाले ने अकाली दल के नेतृत्त्व के समर्थन से धर्म युद्ध मोर्चा नामक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। उसने पुलिस के साथ प्रदर्शनों और झड़पों का निर्देशन करते हुए स्वर्ण मंदिर परिसर को निवास स्थान बना लिया।
    • यह आंदोलन पहली बार आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में शामिल मांगों की पूर्ति के उद्देश्य से तैयार किया गया था, जिसमें राज्य की ग्रामीण सिख आबादी की चिंताओं को संबोधित किया गया था। हालाँकि बढ़ते धार्मिक ध्रुवीकरण, सांप्रदायिक हिंसा और हिंदुओं के खिलाफ भिंडरावाले की कठोर बयानबाज़ी के कारण इंदिरा गांधी की सरकार ने आंदोलन को अलगाववादी घोषित कर दिया।
  • ऑपरेशन ब्लूस्टार: 
    • ऑपरेशन ब्लू स्टार 1 जून, 1984 को शुरू हुआ लेकिन भिंडरावाले और भारी हथियारों से लैस उसके समर्थकों के उग्र प्रतिरोध के कारण सेना का ऑपरेशन टैंकों एवं हवाई उपयोग के साथ मूल उद्देश्य से अधिक बड़ा एवं हिंसक हो गया।
    • इस ऑपरेशन में भिंडरावाला मारा गया और स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त कर लिया गया, हालाँकि इससे दुनिया भर में सिख समुदाय के लोग भावनात्मक रूप से अत्यधिक आहत हुए।
    • इसने खालिस्तान की मांग को भी तेज़ कर दिया।
  • ऑपरेशन ब्लूस्टार के परिणाम: 
    • अक्तूबर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई, जिसने विभाजन के बाद से सबसे खराब सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया, जहाँ बड़े पैमाने पर सिख विरोधी हिंसा में 8,000 से अधिक सिखों का नरसंहार किया गया था।
    • इस घटना के प्रतिरोध में एक वर्ष बाद कनाडा में स्थित सिख राष्ट्रवादियों ने एयर इंडिया हवाई जहाज़ को विस्फोट से उड़ा दिया जिसमें 329 लोग मारे गए। उन्होंने दावा किया कि हमला "भिंडरावाले की हत्या का बदला लेने के लिये" था।
    • पंजाब ने इस दौरान सबसे खराब हिंसा देखी, जो वर्ष 1995 तक विद्रोह का केंद्र बन गया।
    • बाद में इस आबादी का बड़ा हिस्सा उग्रवादियों के खिलाफ हो गया, साथ ही भारत ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए।

खालिस्तान आंदोलन की वर्तमान स्थिति: 

  • पंजाब में हालत लंबे समय से शांतिपूर्ण रहे हैं, किंतु विदेशों में कुछ सिख समुदायों द्वारा किये जा रहे ऐसे आंदोलन देखे जाते रहे हैं।
  • प्रवासियों में मुख्य रूप से ऐसे लोग शामिल हैं जो भारत में नहीं रहना चाहते हैं।
  • वहाँ खालिस्तान के लिये समर्थन अभी भी अधिक मज़बूत है क्योंकि इनमें से बहुत लोग ऐसे हैं जिनके मस्तिष्क में 1980 के दशक की भयानक यादें स्पष्ट रूप से विद्यमान हैं।
  • सिखों की कुछ नई पीढ़ियों में ऑपरेशन ब्लू स्टार और स्वर्ण मंदिर की बेअदबी को लेकर अत्यधिक गुस्सा प्रतिध्वनित होता रहता है। 1980 के दशक को अंधकार का युग माना जाता है और बहुत से लोग भिंडरावाले को शहीद के रूप में देखते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि खालिस्तान आंदोलन के लिये वास्तव में राजनीतिक समर्थन प्राप्त होने लगा है।
  • एक छोटा अल्पसंख्यक समुदाय अतीत की बातों में ही उलझा हुआ है और वह लोकप्रिय समर्थन के कारण प्रभावशाली नहीं बना हुआ है, बल्कि इसलिये कि वह लेफ्ट और राइट के विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ अपने राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजाति की महिलाएँ 'उत्तरजीविता के अधिकार' की हकदार नहीं

प्रिलिम्स के लिये:

अनुसूचित जनजाति, हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005, संविधान का अनुच्छेद 14, हिंदू कानून का मिताक्षरा स्कूल, भारत में विरासत अधिकार।  

मेन्स के लिये:

भारत में महिलाओं से संबंधित मुद्दे।  

चर्चा में क्यों?  

संसद सदस्य ने सरकार से एक अधिसूचना जारी करने का आग्रह किया है जिसमें हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005 के विरासत अधिकार प्रावधानों में अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिलाओं को समावेशित किया जाएगा।

  • अधिनियम की धारा 2(2) अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को इससे बाहर रखती है, जिसके परिणामस्वरूप उनके पिता या हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की पैतृक संपत्तियों को प्राप्त करने के उनके समान अधिकारों की अनदेखी की जाती है।

विरासत अधिकार से संबंधित मुद्दे:  

  • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 को वर्ष 2005 में संशोधित किया गया था ताकि बेटियों को उनके पिता या हिंदू अविभाजित परिवार की संपत्तियों में समान अधिकार दिया जा सके।
  • संसद सदस्य (MoP) ने कहा कि इस अधिनियम में अनुसूचित जनजाति की महिलाओं का बहिष्कार लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है, जो विधि के समक्ष समानता की वकालत करता है।
    • इसके अतिरिक्त MoP का तर्क है कि ऐतिहासिक उत्पीड़न और शिक्षा, रोज़गार एवं संपत्ति तक पहुँच की कमी के कारण अनुसूचित जनजाति की महिलाएँ अधिक वंचित समूह हैं। 
  • संसद सदस्य ने सरकार से एक अधिसूचना जारी करने का आग्रह किया है जिसमें अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के दायरे में शामिल किया जाएगा, उन मामलों को छोड़कर जहाँ किसी विशेष अनुसूचित जनजाति के रीति-रिवाज में महिलाओं को लाभप्रद स्थिति प्राप्त है। 

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956:  

  • परिचय: 
    • मिताक्षरा स्कूल हिंदू कानून को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया था, जो उत्तराधिकार और संपत्ति के उत्तराधिकार को नियंत्रित करता था लेकिन कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में केवल पुरुषों को ही मान्यता दी जाती थी। 
  • प्रासंगिकता:  
    • यह मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी को छोड़कर सभी पर लागू होता है।
      • इस कानून के लिये बौद्ध, सिख, जैन और आर्य समाज, ब्रह्म समाज के अनुयायी भी हिंदू के अंतर्गत आते हैं।
    • परंपरागत रूप से संयुक्त हिंदू परिवार में केवल एक सामान्य पूर्वज के पुरुष वंशजों की माताएँ, पत्नियाँ और अविवाहित बेटियाँ होती हैं। कानूनी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से पारिवारिक संपत्ति का स्वामित्त्व रखते हैं।
  • हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005
    • सितंबर 2005 में 1956 के अधिनियम में संशोधन के बाद से वर्ष 2005 से महिलाओं को संपत्ति विभाजन के लिये सह-मालिक/सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई थी।
      • इस अधिनियम की धारा 6 में संशोधन किया गया था ताकि एक सहदायिक की पुत्री को भी जन्म से सहदायिक बनाया जा सके " पुत्र की ही तरह उसके अधिकार में रूप में"।
    • इसने बेटी को "सहभागिता संपत्ति (Coparcenary Property) में" समान अधिकार और देनदारियाँ भी दीं, क्योंकि यदि वह पुत्र होता तो उसे प्राप्त होता।
    • कानून पैतृक संपत्ति पर और व्यक्तिगत संपत्ति में उत्तराधिकार को प्रमाणित करने के लिये लागू होता है, जहाँ उत्तराधिकार कानून के अनुसार होता है, न कि वसीयत के माध्यम से।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

IPCC AR6 सिंथेसिस रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

IPCC, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, GHG, CCH, कुरूपता

मेन्स के लिये:

IPCC AR6 सिंथेसिस रिपोर्ट।

चर्चा में क्यों?

छठी आकलन रिपोर्ट (Sixth Assessment Report- AR6) के तहत जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की चौथी और अंतिम रिपोर्ट के अनुसार, कई क्षेत्रों और स्थानों में पर्यावरण को पर्याप्त रूप से समायोजित करने में विफलता के अधिक प्रमाण मिले हैं।

  • सिंथेसिस रिपोर्ट तीन कार्य समूहों और तीन विशेष रिपोर्टों के योगदान के आधार पर AR6 चक्र के प्रमुख निष्कर्षों का संश्लेषण करती है।

प्रमुख बिंदु 

  • अभूतपूर्व ग्लोबल वार्मिंग: 
    • मानव गतिविधियों के कारण ग्लोबल वार्मिंग में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि ने जलवायु परिवर्तन को प्रेरित किया है जो हाल के मानव इतिहास में अभूतपूर्व है।
    • पहले से ही वैश्विक तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ जलवायु प्रणाली में परिवर्तन जो सदियों से सहस्राब्दियों तक अद्वितीय रहे हैं, के कारण अब दुनिया के प्रत्येक क्षेत्र में समुद्र के बढ़ते स्तर से लेकर अधिक चरम मौसम की घटनाओं एवं तेज़ी से समुद्री बर्फ पिघलने की घटनाएँ देखी जा रही हैं।
  • अधिक व्यापक जलवायु प्रभाव:
    • लोगों और पारिस्थितिक तंत्रों पर जलवायु के प्रभाव अनुमानित स्तर से अधिक व्यापक और गंभीर हैं, भविष्य के खतरे वार्मिंग की हर मामूली तीव्रता अथवा स्तर के साथ तेज़ी से बढ़ेंगे।
  • अनुकूलन के उपाय: 
    • अनुकूलन रणनीतियों के माध्यम से सुनम्यता को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है, परंतु इसके लिये अधिक धन की आवश्यकता होती है।
    • कम-से-कम 170 देशों में जलवायु नीतियाँ अब अनुकूलन को प्राथमिक उपाय मानती हैं, लेकिन कई देशों में योजना से लेकर क्रियान्वयन तक इन प्रयासों को किये जाने की आवश्यकता है। सुनम्यता बढ़ाने के अधिकांश उपाय अभी भी छोटे पैमाने के तथा प्रतिक्रियाशील और वृद्धिशील हैं, जो मुख्य रूप से अल्पकालिक प्रभावों अथवा खतरों पर केंद्रित होते हैं।
    • अनुकूलन के लिये वर्तमान वैश्विक धन प्रवाह, विशेष रूप से विकासशील देशों में अनुकूलन समाधानों के कार्यान्वयन के लिये अपर्याप्त हैं।
  • वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस पार कर सकता है: 
    • अध्ययन किये गए परिदृश्यों को देखते हुए इस बात की 50% से अधिक संभावना है कि वर्ष 2021 और 2040 के बीच वैश्विक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाएगी या उससे अधिक भी हो सकती है। वर्तमान उच्च-उत्सर्जन स्तर को देखते हुए यह वर्ष 2037 तक ही इस सीमा तक पहुँच सकती है।
  • दर अनुकूलन: 
    • भारत में दर अनुकूलन के ऐसे कई उदाहरण हैं, जिसके परिणामस्वरूप कमज़ोर समुदाय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अनुकूलन करने में सक्षम होने के बजाय अधिक असहाय हो जाते हैं।
      • दर अनुकूलन को प्राकृतिक या मानव प्रणालियों में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया गया है जो अनजाने में जलवायु उत्तेजनाओं के प्रति भेद्यता को बढ़ाता है।
      • यह एक अनुकूलन उपाय है जो भेद्यता को कम करने में सफल नहीं होता है बल्कि इसके बजाय इसे बढ़ाता है।  
    • ओडिशा देश के सबसे सक्रिय तटों में से एक है, जहाँ समुद्र का जल स्तर देश के बाकी हिस्सों के औसत से अधिक दर से बढ़ रहा है। यह भारत में सबसे अधिक चक्रवात-प्रवण राज्य भी है।

IPCC-report

सिफारिशें:

  • विश्व को जल्द-से-जल्द जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को सीमित करना होगा क्योंकि जीवाश्म ईंधन जलवायु संकट का प्रमुख कारण है।
  • मौजूदा जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढाँचे को समाप्त करने, नई परियोजनाओं को रद्द करने, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) प्रौद्योगिकियों के साथ जीवाश्म ईंधन वाले विद्युत संयंत्रों को पुनः संयोजित करने तथा  सौर एवं पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाने जैसी रणनीतियों का एक संयोजन, कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में मदद कर सकता है।
  • शुद्ध-शून्य, जलवायु-परिवर्तन संबंधी भविष्य को सुरक्षित करने के लिये तत्काल प्रणालीगत परिवर्तनों की आवश्यकता है।
  • जबकि जीवाश्म ईंधन ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत है। जलवायु संकट से निपटने के लिये उत्सर्जन में भारी कटौती आवश्यक है। 

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC): 

  • IPCC जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान के आकलन के लिये संयुक्त राष्ट्र की संस्था है।  
  • यह 1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, इसके प्रभावों एवं भविष्य के जोखिमों तथा अनुकूलन व शमन के विकल्पों के नियमित आकलन हेतु स्थापित किया गया था।

IPCC

स्रोत: डाउन टू अर्थ  


जैव विविधता और पर्यावरण

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, सुंदरबन, प्रमुख और लघु वन उत्पाद।

मेन्स के लिये:

भारत के लिये वनों का महत्त्व, भारत में वनों से संबंधित मुद्दे। 

चर्चा में क्यों?  

मानवता और पृथ्वी के अस्तित्त्व हेतु वनों और पेड़ों के महत्त्व के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस मनाया जाता है। इसे विश्व वन दिवस के रूप में भी जाना जाता है। 

  • वर्ष 2023 की थीम 'वन और स्वास्थ्य (Forests and Health)' है।

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस का इतिहास: 

  • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने वर्ष 1971 में विश्व वानिकी दिवस की स्थापना की थी, जब आधिकारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की शुरुआत हुई थी।
  • मनुष्य और पृथ्वी हेतु वनों के महत्त्व के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिये इस दिवस की स्थापना की गई थी।
  • वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2011-2020 को अंतर्राष्ट्रीय वन दशक घोषित किया
  • इसका उद्देश्य सभी प्रकार के वनों के सतत् प्रबंधन, संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना था।
  • अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की स्थापना वर्ष 2012 में की गई थी।

भारत में वनों की स्थिति: 

  • इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट-2021 के अनुसार, वर्ष 2019 के पिछले आकलन के बाद से देश में वन और वृक्षों के आवरण क्षेत्र में 2,261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • भारत का कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र 80.9 मिलियन हेक्टेयर था, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62% था।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का 33% से अधिक क्षेत्र वनों से आच्छादित है।
    • सबसे बड़ा वन आवरण क्षेत्र मध्य प्रदेश में था, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र का स्थान था।
    • अपने कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में शीर्ष पाँच राज्य मिज़ोरम (84.53%), अरुणाचल प्रदेश (79.33%), मेघालय (76%), मणिपुर (74.34%) एवं नगालैंड (73.90%) हैं

भारत के लिये वनों का महत्त्व:

  • पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँ: पृथ्वी पर एक-तिहाई भूमि वनों से आच्छादित है, जो जल विज्ञान चक्र को बनाए रखने, जलवायु को विनियमित करने और जैवविविधता के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • उदाहरण के लिये पश्चिमी घाट के वन दक्षिणी राज्यों के जल चक्र को विनियमित करने और मिट्टी के कटाव से रोकने में मदद करते हैं।
  • जैवविविधता का केंद्र: भारत में पौधों और पशुओं की प्रजातियों की एक विस्तृत विविधता वास करती है, जिनमें से कई केवल देश के वनों में पाए जाते हैं। 
  • गरीबी उन्मूलनः वन गरीबी उन्मूलन के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं। वन 86 मिलियन से अधिक हरित रोज़गार सृजित करते हैं। ग्रह पर हर किसी का वनों से किसी-न-किसी रूप में संपर्क रहा है।
  • जनजातीय समुदाय का आवास: वन आदिवासी समुदाय के आवास भी हैं। वे पारिस्थितिक और आर्थिक रूप से वन पर्यावरण का हिस्सा हैं।
    • उदाहरण के लिये मध्य प्रदेश की गोंड जनजातियाँ।
  • उद्योगों के लिये कच्चा माल: वन कई उद्योगों के लिये कच्चा माल प्रदान करते हैं जैसे- रेशम कीट पालन, खिलौना निर्माण, पत्तियों से प्लेट बनाना, प्लाईवुड, कागज़ और लुगदी आदि।
    • वे दीर्घ एवं लघु वनोत्पाद भी प्रदान करते हैं:
      • दीर्घ उत्पाद जैसे- इमारती लकड़ी, गोल लकड़ी, लुगदी-लकड़ी, लकड़ी का कोयला और जलाऊ लकड़ी
      • लघु उत्पाद जैसे बाँस, मसाले, खाने योग्य फल और सब्जियाँ।

भारत में वनों से जुड़े मुद्दे:

  • जैवविविधता की हानि: वनों की कटाई और अन्य गतिविधियाँ जो वनों के साथ जैवविविधता को भी नुकसान पहुँचाती हैं, इस कारण पौधे और पशु प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवास में जीवित रहने में असमर्थ होते हैं।
    • यह समग्र रूप से पारिस्थितिकी तंत्र पर और साथ ही इन प्रजातियों पर निर्भर समुदायों की सांस्कृतिक प्रथाओं पर भी प्रघातक्षिप्त प्रभाव डाल सकता है।
  • सिकुड़ता वन आवरण: भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखने के लिये वन के तहत कुल भौगोलिक क्षेत्र का आदर्श प्रतिशत कम-से-कम 33% होना चाहिये। हालाँकि यह वर्तमान में देश की केवल 24.62% भूमि को शामिल करता है जो तेज़ी से सिकुड़ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली वन अशांति, जिसमें कीट प्रकोप, जलवायु के कारण होने वाले प्रवासन, वनाग्नि और तूफान आदि शामिल हैं,जो वन उत्पादकता में कमी एवं प्रजातियों के वितरण में बदलाव करती हैं।
    • 2030 तक भारत में 45-64% वन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के प्रभावों का अनुभव करेंगे। 
  • संसाधन तक पहुँच हेतु संघर्ष: अक्सर स्थानीय समुदायों के हित और व्यावसायिक हितों के बीच संघर्ष होता है, जैसे कि फार्मास्युटिकल उद्योग या लकड़ी उद्योग। 
    • इससे सामाजिक तनाव और यहाँ तक कि हिंसा भी हो सकती है, क्योंकि विभिन्न समूह वन संसाधनों तक पहुँचने और उनका उपयोग करने के लिये संघर्ष करते हैं। 

आगे की राह  

  • व्यापक वन प्रबंधन: वन संरक्षण में वनों की सुरक्षा और स्थायी प्रबंधन के सभी घटक जैसे- वनाग्नि नियंत्रण उपाय, समय पर सर्वेक्षण, आदिवासियों के लिये नीतियाँ, मानव-पशु संघर्ष को कम करना और स्थायी वन्यजीव स्वास्थ्य उपाय शामिल होने चाहिये।
  • समर्पित वन गलियाराः वन्यजीवों के सुरक्षित राज्यान्तरिक और अंतर-प्रादेशिक मार्ग के लिये समर्पित वन गलियारों को बनाए रखा जा सकता है और शांतिपूर्ण-सह-अस्तित्व का संदेश देते हुए किसी भी बाह्य प्रभाव से उनके पर्यावास की रक्षा की जा सकती है।
  • संसाधन मानचित्रण और वन अनुकूलन: गैर-अन्वेषित वन क्षेत्रों में संभावित संसाधन मानचित्रण किया जा सकता है और वन-सघनता एवं वन स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए इसे वैज्ञानिक प्रबंधन तथा स्थायी संसाधन निष्कर्षण के तहत लाया जा सकता है।
  • वन उद्यमियों के रूप में जनजातीय समुदायों का समावेशन: वनों के व्यावसायीकरण की संरचना के लिये वन विकास निगमों (FDCS) को पुनर्जीवित करने और वन-आधारित उत्पादों की खोज, निष्कर्षण तथा वृद्धि में "वन उद्यमियों" के रूप में जनजातीय समुदायों को शामिल करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? (2021)

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012) 

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है।
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र वन आवरणातंर्गत है।
  3. 12% से अधिक वनाच्छादित क्षेत्र इस राज्य के रक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है।

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा ऊपर दी गई सभी विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखंड

उत्तर: (a)


प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।” सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) 

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


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