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दक्षिण एशिया में सहयोग को बढ़ावा

  • 20 Jan 2023
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 18/01/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The illogical rejection of the idea of South Asia” लेख पर आधारित है। इसमें दक्षिण एशिया के विकास में क्षेत्रीय सहयोग से संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

दक्षिण एशिया एशिया महाद्वीप का दक्षिणी क्षेत्र है, जिसे भौगोलिक और जातीय-सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से परिभाषित किया गया है। इस क्षेत्र में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।

  • दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण के प्रति भारत का दृष्टिकोण दक्षिण एशिया में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार, निवेश प्रवाह और क्षेत्रीय परिवहन एवं संचार लिंक को बेहतर बनाने पर आधारित है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और भारत की नेबरहुड फर्स्ट’ नीति इस प्रक्रिया के दो वाहन हैं।
  • इस भू-भाग में सांस्कृतिक रूप से कई समानताएँ मौजूद हैं, लेकिन राजनीतिक एवं आर्थिक अस्थिरता (श्रीलंकाई संकटअफगानिस्तान संकट), उच्च मुद्रास्फीति, घटते विदेशी मुद्रा भंडार (पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 4.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया है जो वर्ष 2014 के बाद से अपने न्यूनतम स्तर पर है) जैसी कई पार-उपक्षेत्रीय चुनौतियाँ और घरेलू अशांति भी मौजूद है जो वैश्विक आबादी के लगभग चौथाई हिस्से का वहन करने वाले इस क्षेत्र को प्रभावित कर रही हैं।

दक्षिण एशिया के लिये क्षेत्रीय सहयोग के क्या लाभ हैं?

  • आर्थिक सहयोग:
    • क्षेत्रीयता की भावना इस भूभाग के देशों के बीच व्यापार एवं निवेश को बढ़ा सकती है, जिससे आर्थिक विकास एवं वृद्धि प्राप्त की जा सकती है।
  • राजनीतिक स्थिरता:
    • इस भू-भाग के देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग संवाद एवं परस्पर समझ को बढ़ावा देकर क्षेत्र में अधिक स्थिरता और सुरक्षा का वातावरण बना सकता है।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान:
    • क्षेत्रीयता दक्षिण एशिया के लोगों के बीच अधिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समझ को बढ़ावा दे सकती , जिससे इस क्षेत्र में अधिक सहिष्णुता एवं सद्भाव की भावना पैदा होगी।
  • आधारभूत संरचना का विकास:
    • क्षेत्रीय सहयोग से परिवहन और ऊर्जा परियोजनाओं जैसी आधारभूत संरचना में निवेश बढ़ सकता है, जिससे कनेक्टिविटी एवं आर्थिक विकास में सुधार आ सकता है।
  • क्षेत्रीय एकीकरण:
    • क्षेत्रीयता इस भूभाग के देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करने और उन्हें वैश्विक बाज़ार में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने में मदद कर सकती है।
  • साझा विज़न:
    • क्षेत्रीयता की भावना दक्षिण एशिया के देशों को भविष्य के लिये एक साझा विज़न विकसित करने और सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मिलकर कार्य करने के लिये प्रेरित करती है।

दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग की चुनौतियाँ

  • अंतर-क्षेत्रीय व्यापार का निम्न स्तर:
    • दक्षिण एशिया का अंतर-क्षेत्रीय व्यापार विश्व स्तर पर सबसे निम्न स्तर पर है, जो इस क्षेत्र के कुल व्यापार का मात्र 5% है। 23 बिलियन डॉलर के वार्षिक अनुमानित अंतराल के साथ मौजूदा आर्थिक एकीकरण इसकी वास्तविक क्षमता का महज एक-तिहाई भाग है।
  • दक्षिण एशिया पर बाह्य प्रभाव:
    • भारत के छोटे पड़ोसी देश बाहरी शक्तियों के साथ घनिष्ठ संबंधों के माध्यम से भारत के प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास करते रहे हैं। अतीत में अमेरिका यह भूमिका निभा रहा था और वर्तमान में चीन यह बाह्य प्रभाव रखता है।
    • दक्षिण एशिया में और आसपास के समुद्री क्षेत्रों में (हिंद महासागर में अवस्थित द्वीप राष्ट्रों सहित) हाल की चीनी कार्रवाइयों और नीतियों ने भारत के लिये अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को अत्यंत गंभीरता से लेना आवश्यक बना दिया है।
  • क्षेत्रीय मुद्दे:
    • दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय विवाद क्षेत्र की शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिये चुनौती बने हुए हैं।
      • इन सभी अंतर्राज्यीय विवादों में से विभिन्न क्षेत्रों पर नियंत्रण से जुड़े विवाद सशस्त्र संघर्ष की ओर ले जाने की अधिक संभावना रखते हैं।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला का अक्षम प्रबंधन:
    • दक्षिण एशिया का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एकीकरण वैश्विक औसत से कम है और यह पूर्वी एशिया की तुलना में वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से बहुत कम एकीकृत है।
      • इस क्षेत्र के कई देशों की निम्न उत्पादकता के कारण इन देशों का निर्यात बहुत कम है।
  • राजनीतिक तनाव:
    • क्षेत्र के विभिन्न देशों के बीच ऐतिहासिक संघर्ष, सीमा विवाद और जारी राजनीतिक तनाव से सहयोग एवं क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना कठिन हो जाता है।
  • आर्थिक विषमताएँ:
    • क्षेत्र के विभिन्न देशों के बीच उल्लेखनीय आर्थिक असमानताएँ व्यापार और निवेश के लिये एक समान अवसर के निर्माण को जटिल बना देती हैं।
  • आर्थिक विकास के भिन्न स्तर:
    • दक्षिण एशिया दुनिया के कुछ सबसे अधिक आर्थिक रूप से उन्नत देशों के साथ-साथ कुछ सबसे कम विकसित देशों का क्षेत्र है। इससे एक साझा आर्थिक एजेंडा स्थापित करना कठिन हो जाता है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • यह क्षेत्र आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलनों जैसी विभिन्न सुरक्षा चिंताओं से ग्रस्त है, जो क्षेत्रीय सहयोग एवं एकीकरण को कठिन बना सकती है।
  • बाज़ारों का छोटा आकार:
    • इस क्षेत्र के अधिकांश देश जनसंख्या, क्षेत्रफल और सकल घरेलू उत्पाद के मामले में छोटे हैं। इससे व्यवसायों को संचालित करना और क्षेत्रीय व्यापार का फलना-फूलना कठिन हो जाता है।
  • भरोसे की कमी:
    • क्षेत्र के विभिन्न देशों के बीच आपसी भरोसे की कमी क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण के लिये एक बड़ी बाधा है।

भारत दक्षिण एशिया के विकास का नेतृत्व कैसे कर सकता है?

  • क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देना: भारत क्षेत्रीय व्यापार, कनेक्टिविटी एवं निवेश का लाभ उठा सकता है और क्षेत्र के लिये दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (South Asian Free Trade Agreement) को एक ‘गेमचेंजर’ के रूप में सुदृढ़ कर सकता है।
    • आर्थिक गतिशीलताओं को प्रेरित करना, जो अंतर-क्षेत्रीय खाद्य व्यापार की बाधाओं को कम करेगी और क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखलाओं को प्रोत्साहित करेगी।
  • पारिस्थितिक ब्लूप्रिंट प्रदान करना: दक्षिण एशियाई देश जैव विविधता के संरक्षण और जलवायु संकट पर कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित कर भारत के ‘इको-ब्लूप्रिंट’ से लाभान्वित हो सकते हैं। प्रभावी शासन और सतत विकास के बीच के संबंध को दक्षिण एशियाई देशों में भी चिह्नित किये जाने की आवश्यकता है।
  • खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करना: क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा एक अन्य क्षेत्र है जिस ओर भविष्य के दृष्टिकोण से भारत एक प्रमुख पहल कर सकता है और खाद्य सुरक्षा के लिये इस आर्थिक ब्लॉक के एक अभिन्न सूत्रधार एवं घटक के रूप में भूमिका निभा सकता है।
    • इसके साथ ही, ‘सार्क फूड बैंक’ की क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिये जो वर्तमान में 500,000 मीट्रिक टन से कम है।
  • उप-क्षेत्रीय पहलों को बढ़ावा देना: भारत ‘बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल’ (BIMSTEC) जैसी उप-क्षेत्रीय पहलों की आयोजन क्षमता को बढ़ा सकता है।
    • सीमावर्ती क्षेत्र सीमा-पार व्यापार, परिवहन और स्वास्थ्य पर खंडवार क्षेत्रीय संवादों को आगे बढ़ाकर भारत की क्षेत्रीय संलग्नता को आकार देने में प्रभावी भागीदार हो सकते हैं।
    • भारत आवश्यक सहायता का विस्तार कर इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है और चीन के परिप्रेक्ष्य में आर्थिक एवं रणनीतिक प्रभाव हासिल कर सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दक्षिण एशिया की आवाज़ को मुखर करना: एक समूह के रूप में दक्षिण एशियाई देशों के हितों को बढ़ावा देने के लिये भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दक्षिण एशिया की आवाज़ बन सकता है। एक सुरक्षित क्षेत्रीय वातावरण भारत को अपने महत्त्वाकांक्षी विकास लक्ष्यों तक पहुँचने में भी मदद करेगा।

आगे की राह

  • मौजूदा संगठनों को मज़बूत करना: भू-भाग में ‘सार्क’ जैसे मौजूदा संगठन क्षेत्रीय सहयोग को महत्त्वपूर्ण रूप से आगे नहीं बढ़ा पाए हैं।
    • घरेलू भावनाओं को आर्थिक औचित्य से अलग करना और चिंताओं को संबोधित करने के लिये कूटनीति में संलग्न होना दक्षिण एशियाई देशों के लिये आगे बढ़ने की राह हो सकती है।
  • आत्मनिर्भर दक्षिण एशिया की ओर: दक्षिण एशिया की आत्मनिर्भरता क्षेत्र में मुक्त पारगमन व्यापार के प्रस्तावों से लेकर आपूर्ति एवं रसद शृंखलाओं के विकास, डिजिटल डेटा इंटरचेंज, सिंगल-विंडो एवं डिजिटाइज्ड क्लीयरेंस सिस्टम, जोखिम मूल्यांकन एवं न्यूनीकरण उपाय, ट्रेड क्रेडिट लाइनों (जो अभी अत्यंत कम है) का व्यापक उपयोग, सघन कनेक्टिविटी, सरल सीमा-पार निरीक्षण आदि तक विस्तृत है।
  • लोगों का परस्पर जुड़ाव: निरंतर सौहार्द एवं स्थिरता के लिये लोगों के आपसी संपर्क (People-to-people Connect) और गहरे सांस्कृतिक संबंधों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। इसके अलावा, क्षेत्र के समग्र विकास के लिये बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं को शीघ्रता से पूरा करने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • आतंकवाद से मुकाबला: क्षेत्र के देशों को आतंकवादी नेटवर्क को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित करने और उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिये खुफिया जानकारी साझा करने तथा विधि प्रवर्तन पर सहयोग के स्तर में सुधार लाने की आवश्यकता है।
    • इसके अतिरिक्त, गरीबी एवं असमानता को संबोधित करना और हाशिए पर स्थित समूहों के लिये आर्थिक विकास एवं अवसरों को बढ़ावा देना चरमपंथी विचारधाराओं के प्रति आकर्षण को कम करने में मदद कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग की चुनौतियों की चर्चा करें और सहयोग बढ़ाने के लिये आगे की राह सुझाएँ।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2020)

  1. पिछले एक दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार का मूल्य लगातार बढ़ा है।
  2. "कपड़ा और कपड़े से जुड़े सामान" भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु हैं।
  3. पिछले पाँच वर्षों में नेपाल दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है।

 उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 2
 (C) केवल 3
 (D) 1, 2 और 3

उत्तर: (B)

व्याख्या:

  • वाणिज्य विभाग के आँकड़ों के अनुसार, भारत-श्रीलंका के एक दशक (वर्ष 2007-2016) के लिये द्विपक्षीय व्यापार मूल्य 3.0, 3.4, 2.1, 3.8, 5.2, 4.5, 5.3, 7.0, 6.3, 4.8 (बिलियन अमेरिकी डॉलर में) था। यह व्यापार मूल्य की प्रवृत्ति में निरंतर उतार-चढ़ाव को दर्शाता है। कुल मिलाकर वृद्धि हुई है लेकिन इसे व्यापार मूल्य में लगातार वृद्धि नहीं कहा जा सकता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • निर्यात में 5% से अधिक और आयात में 7% से अधिक की हिस्सेदारी के साथ बांग्लादेश भारत के लिए एक प्रमुख कपड़ा व्यापार भागीदार रहा है। जबकि बांग्लादेश को वार्षिक कपड़ा निर्यात औसतन $2,000 मिलियन है, आयात $400 (वर्ष: 2016-17) के लायक है।
  • निर्यात की प्रमुख वस्तुओं में कपास के रेशे और धागे, मानव निर्मित स्टेपल फाइबर और मानव निर्मित तंतु हैं जबकि प्रमुख आयात वस्तुओं में परिधान और कपड़े, कपड़े और अन्य निर्मित वस्त्र लेख शामिल हैं। अतः कथन 2 सही है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016-17 में बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, इसके बाद नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, भूटान, अफगानिस्तान और मालदीव हैं। भारतीय निर्यात का स्तर भी इसी क्रम का अनुसरण करता है। अतः कथन 3 सही नहीं है। अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।
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