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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय फार्मा क्षेत्र

  • 11 May 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API)।

मेन्स के लिये:

भारत का फार्मा क्षेत्र - संबंधित चुनौतियाँ और कदम जो इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये उठाए जा सकते हैं, मूल्य की दृष्टि से भारत को विश्व की फार्मेसी बनाना।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने भारतीय फार्मा उद्योग को प्रेरित करने के लिये शैक्षणिक संस्थानों के लिये फार्मास्युटिकल नवाचार और उद्यमिता पर दिशा-निर्देश जारी किये।

  • फार्मास्युटिकल्स विभाग ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने और उच्च-स्तर का अनुसंधान करने के लिये राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों के रूप में राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल शिक्षा और अनुसंधान संस्थान ( NIPERs) की स्थापना की है।
  • यह विभाग जल्द ही 'भारत में फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और विकास व नवाचार को प्रेरित करने की नीति' भी लेकर आ रहा है।

नीति दिशा-निर्देशों का उद्देश्य:

  • इन नीति दिशा-निर्देशों का उद्देश्य अकादमिक अनुसंधान को नवीन और व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करना है।
  • उद्यमशीलता की गतिविधियों के लिये एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर आत्मनिर्भर भारत मिशन में योगदान करना।
  • फैकल्टी और छात्रों को उद्यमिता के लिये प्रोत्साहित करना।
  • संभावित आविष्कारकों और उद्यमियों के लिये प्री-इन्क्यूबेसन और सामान्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिये संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • बजटीय प्रावधान के अंतर्गत इस संस्थान के लिये वार्षिक बजट के निर्धारित प्रतिशत (न्यूनतम 1 प्रतिशत) का आवंटन किया जाना चाहिये, ताकि नवाचार और स्टार्टअप से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देकर इनका समर्थन किया जा सके।
    • प्रदान की गई सेवाओं और सुविधाओं के बदले में एक संस्थान स्टार्टअप/स्पिन-ऑफ कंपनी में इक्विटी का एक निश्चित प्रतिशत (2 - 9.5%) प्राप्त कर सकता है, जो कर्मचारी के योगदान एवं  प्रदान की गई सहायता और संस्थान की बौद्धिक संपदा के उपयोग पर आधारित होता है।
  • उद्यमशीलता की पहल का मूल्यांकन नियमित आधार पर अच्छी तरह से परिभाषित प्रभाव मूल्यांकन मापदंडों जैसे कि बौद्धिक संपदा के रूप में दर्ज करना, विकसित उत्पाद और उनका व्यावसायीकरण एवं उत्पन्न रोज़गारों की संख्या तथा स्टार्टअप का उपयोग करके किया जाएगा।
  • छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिये उपस्थिति में छूट प्रदान कर उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जानी चाहिये, भले ही उनकी उपस्थिति 75% से कम हो, ताकि वे उद्यमशीलता की गतिविधियों को भी समय दे सकें और संस्थानों से जुड़े पीएचडी के छात्रों के लिये भी नियमों में उदारता बरती जानी चाहिये। 

भारतीय फार्मा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:

  • भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है। यह विभिन्न टीकों की वैश्विक मांग का 50%, अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की मांग का 40% और यूके (यूनाइटेड किंगडम) में कुल दवाओं की मांग के 25% की आपूर्ति करता है।
  • भारतीय दवा बाज़ार अनुमानतः 40 अरब अमेरिकी डॉलर का है जबकि दवा कंपनियांँ 20 अरब अमेरिकी डॉलर की दवाओं का निर्यात करती हैं।
    • हालांँकि यह 1.27 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक दवा बाज़ार का एक छोटा सा हिस्सा है।
  • भारत विश्व स्तर पर दवा उत्पादन में मात्रा के हिसाब से तीसरे और मूल्य के हिसाब से 14वें स्थान पर है।
  • भारत की वैश्विक जेनेरिक दवा बाज़ार में हिस्सेदारी 30% से अधिक है लेकिन नई आणविक इकाई (New Molecular Entity- NME) में 1% से कम हिस्सेदारी है।. 
    • नई आणविक इकाई (NME) : एक आदर्श यौगिक जिसे पहले मनुष्यों में उपयोग के लिये अनुमोदित नहीं किया गया हो।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के अनुसार, अगले दशक में घरेलू बाज़ार तीन गुना बढ़ने की उम्मीद है।

भारतीय फार्मा क्षेत्र की चुनौतियाँ:

  • नवाचार के क्षेत्र में क्षमताओं की कमी: भारत जनशक्ति और प्रतिभा में समृद्ध है लेकिन फिर भी नवाचार के बुनियादी ढांँचे में पीछे है। सरकार को नवाचार के विकास के लिये अनुसंधान पहल और प्रतिभा में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • सरकार को कुछ नियामक निर्णय लेने में रोग विषयक परीक्षणों और व्यक्तिपरकता का समर्थन करना चाहिये।
  • बाहरी बाज़ारों का प्रभाव: रिपोर्ट के अनुसार, भारत सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients- API)अन्य देशों पर बहुत अधिक निर्भर है। चीन से 80% API का आयात किया जाता है। 
    • अतः भारत आपूर्ति में व्यवधान और अप्रत्याशित मूल्य उतार-चढ़ाव पर निर्भर है। आपूर्ति को स्थिर करने एवं बुनियादी ढांँचे के कार्यान्वयन के लिये आंतरिक सुविधाओं के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है।
  • गुणवत्ता अनुपालन जाँच: भारत में वर्ष 2009 के बाद से सबसे अधिक खाद्य एवं औषधि प्रशासन (Food And Drug Administration- FDA) निरीक्षण हुए हैं। अतः गुणवत्ता मानकों के उन्नयन हेतु निरंतर निवेश किये जाने से अन्य क्षेत्रों में विकास और वृद्धि हेतु पूंजी का अभाव के चलते विकास प्रभावित होगा।
  • स्थिर मूल्य निर्धारण और नीतिगत वातावरण का अभाव: भारत में अप्रत्याशित और लगातार घरेलू मूल्य निर्धारण नीति में बदलाव के कारण चुनौती उत्पन्न हो रही है। इसने निवेश एवं नवाचारों के लिये एक अस्पष्ट वातावरण की स्थिति उत्पन्न कर दी है।

फार्मा क्षेत्र में नवाचार की आवश्यकता:

  • दृष्टिकोण बदलने के साथ प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना समय की मांग है। यदि भारत वैश्विक फार्मास्युटिकल क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहना चाहता है तो नवाचार को व्यवसाय के मूल में अपनाने की आवश्यकता है।
  • भारत नवाचार के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कार्य कर रहा है, इससे न केवल देश के विकास में मदद मिलेगी बल्कि स्थायी राजस्व का एक स्रोत भी उपलब्ध होगा जो स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों हेतु नए समाधान प्रस्तुत करेगा।
    • इससे भारत में रोग अधिभार में कमी आएगी (तपेदिक और कुष्ठ जैसी भारत-विशिष्ट चिंताओं के लिये दवाओं के विकास पर वैश्विक ध्यान नहीं दिया जाता है), नई उच्च-कुशल नौकरियों का सृजन और संभवतः वर्ष 2030 से लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त निर्यात होगा। .
    • चीन जैसे देश पहले ही जेनेरिक दवा आधारित विकास को छोड़कर आगे बढ़ चुके हैं।

सरकारी पहलें:

  • फार्मास्युटिकल उद्योग के सुदृढ़ीकरण हेतु योजना: 
    • इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26 की अवधि के लिये 500 करोड़  रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय की घोषणा की गई थी।
  •  फार्मास्युटिकल्स क्षेत्र का पहला वैश्विक नवाचार शिखर सम्मेलन: 
    • नवंबर 2021 में भारतीय प्रधानमंत्री ने फार्मास्युटिकल क्षेत्र के पहले ग्लोबल इनोवेशन समिट का उद्घाटन किया, जहाँ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वक्ताओं ने पर्यावरण नियामक, नवाचार के लिये वित्तपोषण, उद्योग-अकादमिक सहयोग तथा नवाचार बुनियादी ढाँचे सहित कई विषयों पर विचार-विमर्श किया।
  • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना: 
    • PLI योजना का उद्देश्य देश में महत्त्वपूर्ण ‘की स्टार्टिंग मैटेरियल्स’ (KSM)/ ड्रग इंटरमीडिएट और सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
  • बल्क ड्रग पार्क योजना को बढ़ावा देना:
    • सरकार का लक्ष्य देश में थोक दवाओं की निर्माण लागत और थोक दवाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भरता को कम करने हेतु राज्यों के साथ साझेदारी में भारत में 3 मेगा बल्क ड्रग पार्क विकसित करना है।

आगे की राह 

  • भारत में दवा खर्च अगले पाँच वर्षों में 9-12 फीसदी बढ़ने का अनुमान है, जिससे भारत दवा खर्च के मामले में शीर्ष 10 देशों में से एक बन जाएगा।
  • आगे बढ़ते हुए घरेलू बिक्री में बेहतर वृद्धि कंपनियों की क्षमता पर भी निर्भर करेगी कि वे अपने उत्पाद पोर्टफोलियो को कार्डियोवैस्कुलर, एंटी-डायबिटीज़, एंटी-डिस्पेंटेंट और कैंसर विरोधी जैसी बीमारियों के लिये पुरानी चिकित्सा हेतु संरेखित करें।
  • भारत सरकार ने लागत में कमी और स्वास्थ्य देखभाल खर्च को कम करने के लिये कई कदम उठाए हैं। जेनेरिक दवाओं को बाज़ार में तेज़ी से पेश करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है तथा इससे भारतीय दवा कंपनियों को लाभ होने की उम्मीद है।
  • इसके अलावा ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रमों, जीवन रक्षक दवाओं और निवारक टीकों पर ज़ोर देना भी दवा कंपनियों के लिये अच्छा संकेत है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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