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भारतीय अर्थव्यवस्था

फार्मास्युटिकल उद्योग के सुदृढ़ीकरण हेतु योजना

  • 14 Mar 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फार्मास्युटिकल उद्योग के सुदृढ़ीकरण हेतु योजना, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री।

मेन्स के लिये:

भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26 की अवधि के लिये 500 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ फार्मास्युटिकल के सुदृढ़ीकरण हेतु योजना के लिये दिशानिर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • योजना के तहत सामान्य सुविधाओं के निर्माण हेतु फार्मा समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
    • SMEs और MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) की उत्पादन सुविधाओं को अपग्रेड करने हेतु ब्याज सबवेंशन या उनके पूंजीगत ऋणों पर पूंजीगत सब्सिडी प्रदान की जाएगी, ताकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नियामक मानकों (विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस’ या अनुसूची एम’) का पालन किया जा सके, जिससे मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता में वृद्धि को और सुगम बनाया जा सकेगा।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस’ गुणवत्ता आश्वासन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो यह सुनिश्चित करता है कि औषधीय उत्पादों का लगातार उत्पादन और नियंत्रण उनके उपयोग हेतु उपयुक्त गुणवत्ता मानकों और उत्पाद विनिर्देश का पालन करे।
      • दवाओं और सौंदर्य प्रसाधन नियमों की अनुसूची ‘एम’ भारत में फार्मास्युटिकल उद्योग के लिये ‘गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस’ संबंधी आवश्यकताओं को परिभाषित करती है।
  • घटक:
    • सामान्य सुविधाओं हेतु फार्मास्युटिकल उद्योग को सहायता (APICF): इसका उद्देश्य सामान्य सुविधाएँ सुनिश्चित कर उनके निरंतर विकास हेतु मौजूदा फार्मास्युटिकल क्लस्टरों की क्षमता को मज़बूत बनाना है।
      • इसके तहत पाँच वर्षों में 178 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ प्राथमिकता के क्रम में अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं, परीक्षण प्रयोगशालाओं, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों, लॉजिस्टिक केंद्रों और प्रशिक्षण केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सामान्य सुविधाओं के निर्माण समूहों हेतु सहायता का प्रस्‍ताव है।
    • राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नियामक मानकों को पूरा करने हेतु प्रमाणित उपलब्धियों वाले सूक्ष्‍म, लघु और मध्‍यम फार्मा उद्यमों (MSMEs) को आगे बढ़ाने के लिये फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन असिस्टेंस स्कीम (PTUAS)।
      • इसके तहत SMEs के लिये प्रतिवर्ष अधिकतम 5 प्रतिशत छूट पर ब्याज़ दर (एससी/एसटी के स्वामित्व और प्रबंधन वाली इकाइयों के मामले में 6 प्रतिशत) या 10 प्रतिशत क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी के माध्यम से सहायता का प्रस्ताव है।
      • पाँच वर्ष की अवधि के लिये उप योजना हेतु 300 करोड़ रुपए का परिव्यय निर्धारित किया गया है।
    • फार्मास्युटिकल और मेडिकल डिवाइसेस प्रमोशन एंड डेवलपमेंट स्कीम (PMPDS): इसे अध्ययन / सर्वेक्षण रिपोर्ट, जागरूकता कार्यक्रम, डेटाबेस बनाने और उद्योग को बढ़ावा देकर फार्मास्युटिकल व मेडिकल डिवाइसेज़ सेक्टर की वृद्धि और विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये शुरू किया गया है।
      • पीएमपीडीएस उप-योजना के तहत फार्मास्युटिकल और मेडटेक उद्योग के बारे में ज्ञान एवं जागरूकता को बढ़ावा दिया जाएगा।

महत्त्व:

  • यह मौजूदा बुनियादी सुविधाओं को मज़बूती प्रदान करने के साथ ही फार्मा क्षेत्र में भारत को विश्व स्तर पर नए अवसर प्रदान करेगा।
  • इससे न केवल गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि क्लस्टरों का सतत् विकास भी सुनिश्चित होगा।
  • यह योजना देश भर में मौज़ूदा फार्मा समूहों और एमएसएमई को उनकी उत्पादकता, गुणवत्ता और स्थायित्व में सुधार के लिये आवश्यक समर्थन के संदर्भ में बढ़ती मांग को संबोधित करेगी।

फार्मा सेक्टर से संबंधित योजनाएँ:

  • बल्क ड्रग पार्क योजना को बढ़ावा देना:
    • सरकार का लक्ष्य देश में थोक दवाओं और उनके निर्माण लागत के लिये अन्य देशों पर निर्भरता को कम करने हेतु राज्यों के साथ साझेदारी में भारत में 3 मेगा बल्क ड्रग पार्क विकसित करना है।
    • यह योजना दवाओं की निरंतर आपूर्ति और नागरिकों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में भी मदद करेगी।
  • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना:
    • पीएलआई योजना का उद्देश्य देश में क्रिटिकल की-स्टार्टिंग मैटेरियल्स (KSMs)/ड्रग इंटरमीडिएट और सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (APIs) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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