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डेली न्यूज़

  • 22 Mar, 2023
  • 23 min read
इन्फोग्राफिक्स

संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसियाँ- UNSAs (भाग V - IMF, World Bank तथा UNESCO)


भूगोल

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में अवैध रेत खनन

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैवविविधता क्षेत्र, रामसर स्थल, खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957, सतत् रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश 2016।  

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का महत्त्व, भारत में रेत खनन की स्थिति।  

चर्चा में क्यों?  

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का क्षेत्र अवैध रेत खनन गतिविधियों के कारण खतरे में है जो पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा रहा है तथा इस क्षेत्र की वनस्पतियों और जीवों को खतरे में डाल रहा है।

  • इस समस्या से निपटने के लिये जयपुर में एक उच्च स्तरीय बैठकआयोजित की गई जिसमें संबंधित तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों ने अभयारण्य की रक्षा के लिये समन्वित प्रयासों पर चर्चा की।  

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का महत्त्व:    

  • राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के त्रि-जंक्शन पर स्थित है। 
    • यह एक दुर्बल सरित्जीवी (Lotic) पारिस्थितिकी तंत्र है, जो घड़ियालों- मछली खाने वाले मगरमच्छों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल है। 
  • यह अभयारण्य वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है और इसे 'महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैवविविधता क्षेत्र' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • अभयारण्य एक प्रस्तावित रामसर स्थल भी है जिसमें स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की 320 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

भारत में रेत खनन की स्थिति:

  • परिचय:  
    • खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत रेत को "गौण खनिज" के रूप में वर्गीकृत किया गया है और गौण खनिजों पर प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकारों के पास है। 
      • दियाँ और तटीय क्षेत्र रेत के मुख्य स्रोत हैं तथा देश में निर्माण एवं बुनियादी ढाँचे के विकास में वृद्धि के कारण हाल के वर्षों में इसकी मांग में काफी वृद्धि हुई है। 
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वैज्ञानिक रेत खनन और पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये "सतत् रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश 2016" जारी किया है।
  • भारत में रेत खनन से संबंधित मुद्दे:
    • जल की कमी: रेत खनन से भूजल भंडार में कमी आ सकती है और आसपास के क्षेत्रों में जल की कमी हो सकती है।
      • उदाहरण के लिये हरियाणा के यमुना नगर ज़िले में यमुना नदी में यांत्रिक गतिविधि, अस्थिर पत्थर एवं रेत खनन से गंभीर खतरे का सामना कर रही है।
    • बाढ़: अत्यधिक रेत खनन से नदी के तल उथले हो सकते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है। 
      • उदाहरण के लिये बिहार राज्य में बालू खनन से कोसी नदी में बाढ़ की बारंबारता बढ़ गई है, जिससे फसलों और संपत्ति को नुकसान होता है।  
    • संबद्ध अवैध गतिविधियाँ: अनियंत्रित रेत खनन में अवैध गतिविधियाँ भी शामिल हैं, जैसे कि सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण, भ्रष्टाचार और कर की चोरी।

भारत में खनन क्षेत्र का विधायी ढाँचा:  

  • भारतीय संविधान की सूची-II (राज्य सूची) के क्रम संख्या-23 में प्रावधान है कि राज्य सरकार को अपनी सीमा के अंदर मौजूद खनिजों पर नियंत्रण रखने का अधिकार है।
  • सूची-I (केंद्रीय सूची) के क्रमांक-54 में प्रावधान है कि केंद्र सरकार को भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के भीतर खनिजों पर नियंत्रण रखने का अधिकार है। 
  • इसके अनुसरण में खान और खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम, 1957 बनाया गया था।
  • इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) खनिज अन्वेषण और निष्कर्षण को नियंत्रित करती है। यह संयुक्त राष्ट्र संधि द्वारा निर्देशित है एवं इस संधि का पक्षकार होने के कारण भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन में 75000 वर्ग किमी. से अधिक क्षेत्र में बहुधात्त्विक तत्त्वों का पता लगाने का विशेष अधिकार प्राप्त है।

निष्कर्ष:

तीन राज्यों द्वारा की गई संयुक्त कार्रवाई अभयारण्य की वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण, पर्यावरण की रक्षा एवं आने वाली पीढ़ियों हेतु हमारी प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित खनिजों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. बेंटोनाइट
  2. क्रोमाइट
  3. कायनाइट
  4. सिलिमेनाइट

भारत में उपर्युक्त में से कौन-सा/से आधिकारिक रूप से नामित प्रमुख खनिज है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 4
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. तटीय बालू खनन, चाहे वह वैध हो या अवैध, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर बालू के प्रभाव का विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए विश्लेषण कीजिये। (2019)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक शीर्ष वैश्विक विमानन बाज़ार बनना

प्रिलिम्स के लिये:

CAPA इंडिया एविएशन समिट, राष्ट्रीय नागर विमानन नीति (NCAP) 2016, उड़ान योजना।  

मेन्स के लिये:

भारत के विमानन क्षेत्र की स्थिति, विमानन क्षेत्र से संबंधित हालिया सरकारी पहल।  

चर्चा में क्यों?  

दशक के अंत तक भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व का अग्रणी विमानन बाज़ार बनने की ओर अग्रसर है।

  • भारत में नागरिक उड्डयन सचिव ने CAPA इंडिया एविएशन समिट के दौरान आबादी के लिये  हवाई संपर्क के विस्तार संबंधी देश की योजनाओं की घोषणा की।

भारत के विमानन क्षेत्र की स्थिति:  

  • परिचय:  
    • भारत का नागरिक विमानन क्षेत्र विश्व स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ते विमानन बाज़ारों में से एक है और 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिये एक प्रमुख विकास इंजन साबित होगा।
      • भारत वर्तमान में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक उड्डयन बाज़ार है।
    • विगत 6 वर्षों में भारत का घरेलू यात्री यातायात लगभग 14.5% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से एवं लगभग 6.5% अंतर्राष्ट्रीय यात्री वृद्धि की दर से बढ़ा है।
    • भारत का घरेलू यात्री यातायात वित्त वर्ष 2023-24 में 16 करोड़ और 2029-30 तक 35 करोड़ तक बढ़ने का अनुमान है। 
  • विमानन क्षेत्र से संबंधित सरकार की पहल: 
    • भारत सरकार का लक्ष्य हवाई यात्रा के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों के रूप में 6 प्रमुख महानगरीय शहरों को स्थापित करना है। 
    • राष्ट्रीय नागर विमानन नीति (NCAP) 2016 
    • UDAN योजना 
  • चुनौतियाँ: 
    • उच्च परिचालन लागत: भारतीय विमानन क्षेत्र के लिये प्रमुख चुनौतियों में से एक उच्च परिचालन लागत है। यह कई कारकों के कारण है जैसे कि ईंधन की उच्च कीमतें, हवाई अड्डे के शुल्क एवं कर।
      • जेट ईंधन की कीमतों में वृद्धि एयरलाइनों के लिये एक बड़ी चुनौती है क्योंकि यह लागत आमतौर पर कुल परिचालन लागत का 20% से 25% तक होती है।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी: हवाई अड्डे की सीमित क्षमता, आधुनिक हवाई यातायात नियंत्रण प्रणाली की कमी और अपर्याप्त ग्राउंड हैंडलिंग सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण भारतीय विमानन क्षेत्र को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    • नियामक ढाँचा: यह भारतीय विमानन क्षेत्र के लिये एक अन्य चुनौती है।
      • यह काफी विनियमित क्षेत्र है और एयरलाइनों को विभिन्न प्रकार के नियमों तथा विनियमों का पालन करना पड़ता है, जो जटिल एवं अधिक समय की खपत वाले हो सकते हैं

निष्कर्ष:

विमानन क्षेत्र में विकास के लिये भारत की महत्वाकांक्षी योजनाएँ देश की अर्थव्यवस्था और लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती हैं। हालाँकि कई चुनौतियाँ भी हैं, फिर भी अपने विमानन बुनियादी ढाँचे का विस्तार करने तथा अपनी विनिर्माण क्षमताओं को विकसित करने की भारत की प्रतिबद्धता इस दशक के अंत तक वैश्विक विमानन बाज़ार में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनने के संदर्भ में अच्छी स्थिति में है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के अधीन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से भारत में विमानपत्तनों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में प्राधिकरणों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं? (मुख्य परीक्षा, 2017)

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन नियम सभी देशों को अपने भूभाग के ऊपर के आकाशी क्षेत्र (एयरस्पेस) पर पूर्ण और अनन्य प्रभुता प्रदान करते हैं। आप ‘आकाशी क्षेत्र’ से क्या समझते हैं? इस आकाशी क्षेत्र के ऊपर के आकाश के लिये इन नियमों के क्या निहितार्थ हैं? इससे प्रसूत चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और खतरे को नियंत्रित करने के तरीके सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2014) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

स्वास्थ्य का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

स्वास्थ्य का अधिकार, WHO, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948), संयुक्त राष्ट्र, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत, सर्वोच्च न्यायालय।

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य का अधिकार, चुनौतियाँ एवं आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान सरकार ने स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक पारित किया है, जो राज्य के प्रत्येक निवासी को सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर मुफ्त सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार देता है।  

विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ:

  • सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों तथा चुनिंदा निजी सुविधाओं में नियमों में निर्दिष्ट शर्तों के अधीन परामर्श, दवाएँ, निदान, आपातकालीन परिवहन, प्रक्रिया और आपातकालीन देखभाल सहित मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जाएंगी। 
  • विधेयक में अस्पतालों के लिये यह अनिवार्य किया गया है कि वे आपातकालीन मामलों में मेडिको-लीगल औपचारिकताओं की प्रतीक्षा किये बिना उपचार प्रदान करें और बिना धनराशि लिये दवाएँ और परिवहन सुविधाएँ दें।  
  • इस कानून के कार्यान्वयन से अनावश्यक खर्च को समाप्त करने एवं स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के भीतर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होने की उम्मीद है। 

स्वास्थ्य का अधिकार:

  • परिचय: 
    • स्वास्थ्य का अधिकार स्वास्थ्य के सबसे प्राप्य स्तरों को संदर्भित करता है और इसका तात्पर्य यह है कि हर इंसान इसका हकदार है।
      • स्वास्थ्य के अधिकार की शुरुआत वर्ष 1946 में हुई थी, जब पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अस्तित्त्व में आया था, जिसने स्वास्थ्य शर्तों को मानव अधिकारों के रूप में तैयार किया था।
    • स्वास्थ्य का अधिकार मानव गरिमा का एक अनिवार्य घटक है और यह सुनिश्चित करना सरकारों का उत्तरदायित्त्व है कि सभी व्यक्तियों के सुरक्षित जीवन के लिये यह अधिकार  सभी के लिये सुलभ हो, चाहे उनका लिंग, जाति, जातीयता, धर्म या सामाजिक आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy- DPSP) के तहत संविधान का भाग IV अपने नागरिकों हेतु सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करता है। इसलिये संविधान का भाग IV प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य के संदर्भ में सार्वजनिक नीति से संबंधित है।
  • भारत में संबंधित प्रावधान: 
    • अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय: भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 का हस्ताक्षरकर्त्ता है जो भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य देखभाल के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है। 
    • मूल अधिकार: भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। स्वास्थ्य का अधिकार गरिमायुक्त जीवन के अधिकार में निहित है।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP): अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 ने स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का मार्गदर्शन किया है। 
    • न्यायिक उद्घोषणा: पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्त्तव्य लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना और उन्हें पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है। 
      • परमानंद कटारा बनाम भारत संघ मामले (1989) में अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रत्येक डॉक्टर चाहे वह सरकारी अस्पताल में हो या फिर अन्य कहीं, जीवन की रक्षा के लिये उचित विशेषज्ञता के साथ अपनी सेवाएँ देना उसका पेशेवर दायित्त्व है।
  • महत्त्व: 
    • स्वास्थ्य सेवा आधारित अधिकार: लोग स्वास्थ्य के अधिकार के हकदार हैं और सरकार द्वारा इस दिशा में कदम उठाना उसका उत्तरदायित्त्व है।
    • स्वास्थ्य सेवाओं तक व्यापक पहुँच: यह सभी को सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है और सुनिश्चित करता है कि सेवाओं की गुणवत्ता उन लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये पर्याप्त है।
    • अतरिक्त व्यय को कम करना: यह लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिये भुगतान करने के वित्तीय जोखिमों से बचाता है और लोगों के गरीबी की ओर धकेले जाने के खतरे को कम करता है। 

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार से जुड़ी चुनौतियाँ: 

  • स्वास्थ्य देखभाल के अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे:  
    • हाल में हुए सुधारों के बावजूद भारत का स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • भारत में प्रति 1,000 लोगों पर बेड की संख्या 1.4 है, 1,445 लोगों पर 1 डॉक्टर है और 1,000 लोगों पर नर्सों की संख्या 1.7 है। 75% से अधिक हेल्थकेयर अवसंरचना मेट्रो शहरों में केंद्रित है, जहाँ कुल आबादी का केवल 27% हिस्सा रहता है, बाकी 73% भारतीय आबादी में बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं का भी अभाव है।
  • रोगों का बढ़ता बोझ:  
    • भारत में तपेदिक, HIV/एड्स, मलेरिया और मधुमेह सहित संचारी एवं गैर-संचारी रोगों की भरमार है।
    • इन रोगों को दूर करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे एवं संसाधनों में और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है।
      • फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल बीमार आबादी में से 33% से अधिक लोग अभी भी संक्रामक रोगों से पीड़ित हैं
      • संक्रामक रोगों पर प्रति व्यक्ति अंतःरोगी और बाह्य रोगी देखभाल में क्षमता से अधिक खर्च क्रमशः 7.28 और 29.38 रुपए है।
  • लैंगिक असमानताएँ:  
    • भारत में महिलाओं को स्वास्थ्य असमानताओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच, मातृ मृत्यु की उच्च दर और लिंग आधारित हिंसा शामिल है।
  • सीमित स्वास्थ्य निधियन:  
    • भारत की स्वास्थ्य निधियन प्रणाली सीमित है, स्वास्थ्य सेवा पर सार्वजनिक खर्च का स्तर कम है। यह स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे और संसाधनों में निवेश करने की सरकार की क्षमता को सीमित करता है तथा व्यक्तियों के लिये अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं का प्रमुख कारण बन सकता है।
    • भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.1% स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया। यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) के सकल घरेलू उत्पाद के औसत स्वास्थ्य व्यय अंश- लगभग 5.2% से बहुत कम है। 

आगे की राह  

  • भारत को चिकित्सा सुविधाओं, उपकरणों और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों सहित स्वास्थ्य देखभाल के महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे एवं संसाधनों में अपने निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है। इस लक्ष्य को स्वास्थ्य सेवा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि और निजी क्षेत्र के निवेश में वृद्धि के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। 
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार के लिये भारत को उन बाधाओं को दूर करने की ज़रूरत है जो व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने से रोकती हैं, जिसमें वित्तीय बाधाएँ, परिवहन और भेदभाव शामिल हैं।
  • यह लक्षित नीतियों और कार्यक्रमों, जैसे- स्वास्थ्य बीमा योजनाओं तथा मोबाइल स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। 
  • बीमारी की निगरानी, प्रमुख गैर-स्वास्थ्य विभागों की नीतियों के स्वास्थ्य प्रभाव पर सूचना एकत्र करने, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आँकड़ों के रखरखाव, सार्वजनिक स्वास्थ्य नियमों को लागू करने और सूचना का प्रसार जैसे कार्यों को करने के लिये एक नामित तथा स्वायत्त एजेंसी बनाने की आवश्यकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. “एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।” विश्लेषण कीजिये। (2021) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


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