मुख्य परीक्षा
सतत् विकास लक्ष्यों पर भारत की तीसरी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) द्वारा आयोजित उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच (HLPF) में सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) पर अपनी तीसरी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- भारत ने SDG पर पहली स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा वर्ष 2017 में और दूसरी वर्ष 2020 में प्रस्तुत की थी।
नोट: VNR एक देश-प्रधान, स्वैच्छिक प्रक्रिया है, जो सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के वर्ष 2030 एजेंडा के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के लिये अनुभवों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करती है।
- VNR भारत के SDG प्राप्त करने के लिये ‘समग्र सरकार’ और ‘समग्र समाज’ दृष्टिकोण को उजागर करती है।
- भारत में SDG के कार्यान्वयन और VNR की तैयारी के लिये नीति आयोग नोडल प्राधिकरण है।
भारत की तीसरी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- कार्यान्वयन रणनीति: भारत प्रगति की निगरानी, पिछड़े क्षेत्रों की पहचान और नीतियों के निर्माण के लिये SDG इंडिया इंडेक्स, पूर्वोत्तर क्षेत्र ज़िला SDG इंडेक्स तथा बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) जैसे डेटा उपकरणों का उपयोग करता है।
- इसमें उप-राष्ट्रीय और ज़िला स्तर की कार्रवाइयों के माध्यम से SDG का स्थानीयकरण करने पर ज़ोर दिया गया है।
- प्रमुख प्रगति:
- SDG 1 (शून्य गरीबी): अनुमानतः 248 मिलियन लोग वर्ष 2013-14 और वर्ष 2022-23 के बीच बहुआयामी निर्धनता से बाहर आए हैं, जो गरीबी उन्मूलन की प्रभावी रणनीतियों को दर्शाता है।
- SDG 2 (शून्य भुखमरी): प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ने लाखों लोगों को महत्त्वपूर्ण पोषण सहायता प्रदान की है, जिसका लक्ष्य लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों की सहायता करना है। वर्ष 2024 से शुरू होकर, यह योजना अगले पाँच वर्षों तक जारी रहेगी।
- SDG 3 (उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली): पोषण अभियान और आयुष्मान भारत ने गुणवत्तापूर्ण पोषण तथा स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच का विस्तार किया है।
- कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रतिशत के रूप में आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य व्यय वर्ष 2014-15 में 62.6% से घटकर वर्ष 2020-21 में 39.4% हो गई।
- SDG 7 (सस्ती और प्रदूषण मुक्त): राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, PM-कुसुम और PM सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जैसी पहलों ने भारत में स्थायी ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की प्रक्रिया को तेज़ किया है।
- डिजिटल वित्तीय समावेशन के माध्यम से SDG की प्रगति: भारत की जन- धन-आधार-मोबाइल (JAM) आधारित डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) समावेशी, पारदर्शी सेवाओं को बढ़ावा देती है।
- वैश्विक रियल-टाइम भुगतान मात्रा में भारत का योगदान 48.5% रहा, जो UPI लेन-देन मात्रा में 41.7% की वृद्धि के कारण संभव हुआ।
संयुक्त राष्ट्र उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच (HLPF)
- विषय: HLPF सतत् विकास से संबंधित संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख मंच है और इसकी औपचारिक स्थापना जुलाई, 2013 में हुई थी।
- यह आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के तत्त्वाधान में प्रत्येक वर्ष और महासभा के तत्त्वाधान में प्रत्येक चार वर्ष में एक बार मिलता है।
- कार्य: यह बातचीत के माध्यम से तैयार घोषणाओं को अपनाता है और सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा और उसके 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SGD) की अनुवर्ती कार्रवाई और समीक्षा के लिये एक केंद्रीय मंच के रूप में कार्य करता है।
- यह सतत् विकास पर संपूर्ण संयुक्त राष्ट्र नीति ढाँचे का मार्गदर्शन करने के लिये उत्तरदायी है।
- रिपोर्टिंग तंत्र: सदस्य देशों को स्वेच्छा से अपनी प्रगति वीएनआर (VNR) रिपोर्टों के माध्यम से प्रस्तुत करनी होती है।
- VNR सदस्य देशों को एक स्वैच्छिक, पारदर्शी और जवाबदेह प्रक्रिया के माध्यम से समय-समय पर SDG प्रगति की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाता है, जिससे ज्ञान साझा करने एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के क्रियान्वयन में किस प्रकार योगदान देती है? पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देने में इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) में 24 सदस्य देश शामिल हैं।
- यह 3 वर्ष की अवधि के लिये महासभा के दो-तिहाई बहुमत द्वारा चुनी जाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (b)
प्रश्न. सतत् विकास को ऐसे विकास के रूप में वर्णित किया जाता है जो भविष्य की पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की ज़रूरतों को पूरा करता है। इस परिप्रेक्ष्य में, स्वाभाविक रूप से सतत् विकास की अवधारणा निम्नलिखित में से किस अवधारणा के साथ संबंधित हुई है? (2010)
(a) सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण
(b) समावेशी विकास
(c) वैश्वीकरण
(d) वहन क्षमता
उत्तर: (d)
मेन्स
प्रश्न. वहनीय, विश्वसनीय, सतत् और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।” भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


जैव विविधता और पर्यावरण
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में आपदा प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करना
प्रिलिम्स के लिये: आकस्मिक बाढ़, भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR), भूस्खलन, हिमस्खलन, हिमनद झील विस्फोट से बाढ़, पर्वतीय उत्थान
मेन्स के लिये: हिमालयी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन (ग्लेशियरों पर प्रभाव, चरम घटनाएँ, अनुकूलन)
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धराली गाँव में आई आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड), भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में चरम मौसम घटनाओं के कारण होने वाली आपदाओं के बढ़ते खतरे की चेतावनी है।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में लगातार आने वाली आपदाओं के पीछे कौन-से कारक हैं?
- टेक्टोनिक गतिविधियाँ और भूकंप का जोखिम: हिमालय की ऊँचाई में अभी भी लगातार वृद्धि हो रही है, क्योंकि भारतीय प्लेट, यूरेशियन प्लेट से टकरा रही है। यह सतत् टेक्टोनिक गति इस क्षेत्र को विश्व के सबसे अधिक भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक बनाती है।
- भारत के भूकंपीय क्षेत्र IV और V में स्थित धौलागिरि तथा सिंधु-गंगा जैसी प्रमुख भ्रंश रेखाएँ, प्लेटों के टकराव से उत्पन्न दबाव को अवशोषित करती हैं एवं इस दबाव के अचानक उत्पन्न होने से भूकंप आते हैं।
- उच्च भूकंप संभाव्यता अक्सर भूस्खलन, हिमस्खलन और यहाँ तक कि नदियों के अवरोधन से आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) जैसी घटनाओं को भी जन्म देती है।
- उदाहरण: वर्ष 2005 का कश्मीर भूकंप (परिमाण 7.6) से जम्मू-कश्मीर में भारी नुकसान हुआ।
- नाज़ुक भूगर्भीय संरचना: हिमालय भू-गर्भीय दृष्टि से युवा पर्वत हैं, जो अवसादी चट्टानों से बने हैं। इन चट्टानों का क्षरण और अपरदन आसानी से हो जाता है।
- खड़ी ढलानों के कारण गुरुत्वाकर्षण स्वाभाविक रूप से ढीली मिट्टी और चट्टानों को नीचे की ओर खींचता है, जिससे विशेषकर वर्षा या भूकंपीय झटकों के बाद भूस्खलन की घटनाएँ बार-बार होती हैं।
- हिमनद एवं बर्फ-संबंधी खतरे: इस क्षेत्र में हज़ारों हिमनद (Glaciers) और उच्च-ऊँचाई वाले हिमक्षेत्र मौजूद हैं। जलवायु परिवर्तन इनके पिघलने की गति को तेज़ कर रहा है, जिसके कारण हिमालयी हिमनदीय झीलों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है।
- हिंदू कुश हिमालय में, हिमनद अभूतपूर्व दर से पिघल रहे हैं और वर्ष 2100 तक इनका आयतन 75% तक घट सकता है।
- जब ये झीलें विखंडित होती हैं (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs) बनती हैं), तो वे नीचे की ओर अचानक, विनाशकारी बाढ़ का कारण बनती हैं।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में दक्षिण ल्होनक झील से आए एक GLOF ने सिक्किम के चुंगथांग में तीस्ता III बाँध को नष्ट कर दिया था।
- अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ और बादल फटना: भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में अक्सर ओरोग्राफिक लिफ्ट (नमी वाली हवा का पहाड़ों के ऊपर उठना) के कारण तीव्र और अल्पावधि वर्षा होती है।
- बादल फटने की घटना में एक छोटे से क्षेत्र में एक घंटे के भीतर 100 मिमी से अधिक वर्षा हो सकती है, जिससे आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) और भूस्खलन की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
- जुलाई, 2021 में चमोली, उत्तरकाशी व पिथौरागढ़ में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ तथा भूस्खलन ने जन और बुनियादी अवसंरचना को भारी नुकसान पहुँचाया।
- नदी गतिकी और आकस्मिक बाढ़: हिमालयी नदियाँ अपेक्षाकृत नई, तीव्र प्रवाह वाली होती हैं और अपने साथ भारी मात्रा में गाद (तलछट) बहाकर लाती हैं।
- भूस्खलन या हिमनद पिघलने से नदियाँ अस्थायी रूप से अवरुद्ध हो सकती हैं, जिससे प्राकृतिक बाँध बन जाते हैं। इनके टूटने पर आकस्मिक बाढ़ आ जाती है।
- इसके अतिरिक्त, ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन का प्रस्तावित बाँध नदी की गतिकी को बदल सकता है और भारत के लिये संभावित ‘वाटर बम’ का खतरा उत्पन्न कर सकता है।
- निर्वनीकरण और भूमि उपयोग में परिवर्तन: सड़कों, जलविद्युत परियोजनाओं, पर्यटन सुविधाओं और कृषि के लिये वनों की कटाई करने से वृक्षों की जड़ें नष्ट हो जाती हैं, जो स्वाभाविक रूप से ढलानों को स्थिर बनाए रखती हैं। इससे वे कटाव, भूस्खलन और भारी वर्षा के दौरान अत्यधिक जल निकासी के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
- जोशीमठ (2023) में भूमि अवतलन को असुरक्षित पहाड़ी ढलानों पर अनियंत्रित निर्माण और जलविद्युत परियोजनाओं की सुरंग खुदाई से जोड़ा गया।
- चार धाम जैसी परियोजनाओं ने विशेष रूप से भागीरथी इको सेंसिटिव ज़ोन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में निर्वनीकरण तथा मृदा क्षरण को बढ़ाया, जिससे आपदा जोखिम में वृद्धि हुई और हिमनदों को नुकसान पहुँचा।
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: भारतीय हिमालयी क्षेत्र
भारत में आपदा प्रबंधन पर प्रमुख समितियाँ और उनकी सिफारिशें क्या हैं?
- मिश्रा समिति (1976): यह समिति जोशीमठ के अवतलन की जाँच के लिये गठित की गई थी। इसने सुझाव दिया कि फिसलन-प्रवण क्षेत्रों में नई निर्माण गतिविधियाँ तभी शुरू की जाएँ जब विस्तृत जाँच के बाद स्थल की स्थिरता की पुष्टि हो जाए।
- समिति ने भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण या सड़क मरम्मत के लिये वृक्षों की कटाई या चट्टानों को हटाने के विरुद्ध भी सलाह दी।
- जे.सी. पंत समिति (1999): इसने 31 प्रकार की आपदाओं को पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया: जल एवं जलवायु संबंधी, भूवैज्ञानिक, रासायनिक/औद्योगिक/परमाणु, दुर्घटना संबंधी और जैविक।
- समिति ने सिफारिश की कि आपदा प्रबंधन को संविधान की सातवीं अनुसूची में शामिल किया जाए तथा राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर आपदा संबंधी कानून बनाए जाएँ, साथ ही मौजूदा विनियमों जैसे भवन संहिता और सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाए।
- सुदृढ़ शासन सुनिश्चित करने के लिये, समिति ने आपदा प्रबंधन पर मंत्रिमंडलीय समिति के गठन और प्रधानमंत्री के अधीन एक राष्ट्रीय परिषद की संस्थागत स्थापना का प्रस्ताव रखा।
- इसने विभिन्न विभागों के बीच समन्वय हेतु एक समर्पित आपदा प्रबंधन मंत्रालय के गठन का भी समर्थन किया।
- क्षमता निर्माण के लिये, समिति ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन केंद्र और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की स्थापना की सिफारिश की।
- वित्तपोषण के संदर्भ में, इसने आपदा राहत कोष का पुनर्गठन करने, आपदा प्रतिक्रिया और रोकथाम के लिये दो नए राष्ट्रीय कोष बनाने तथा सभी स्तरों पर योजना कोष का कम- से-कम 10% आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये आरक्षित करने का सुझाव दिया।
- समिति ने तैयारी की संस्कृति को बढ़ावा देने, जोखिम आकलन करने, मानव संसाधन को प्रशिक्षित करने और मानक संचालन प्रक्रियाएँ विकसित करने पर भी ज़ोर दिया।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में आपदा जोखिम को कम करने हेतु कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- व्यापक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास: उच्च-जोखिम वाले हिमनदीय झीलों पर सौर ऊर्जा चालित स्वचालित सेंसर तथा कैमरे स्थापित व संचालित किये जाएँ, ताकि वास्तविक समय में निगरानी हो सके और निचले क्षेत्रों की समुदायों को समय पर चेतावनी दी जा सके।
- इंजीनियरिंग और भू-तकनीकी हस्तक्षेप: ऊँचाई वाले क्षेत्रों की तार्किक चुनौतियों के बावजूद, चेक डैम, स्पिलवे, नियंत्रित जल निकासी चैनल और कैचमेंट डैम जैसी संरचनात्मक व्यवस्थाएँ लागू की जानी चाहिये।
- ये चरम मौसम की घटनाओं के दौरान बाढ़ के पानी की गति और मात्रा को कम करते हैं।
- सतत् पर्यटन प्रबंधन: एक हरित पर्यटन ढाँचे अपनाना जिसमें चरम मौसम में पर्यटकों की संख्या सीमित की जाए, होमस्टे जैसे पर्यावरण-अनुकूल मॉडलों को बढ़ावा देना, अपशिष्ट और जल उपयोग मानदंडों को लागू करना तथा पर्यटन से होने वाली आय को पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली एवं आपदा शमन न्यूनीकरण के लिये निर्देशित करना।
- क्षेत्र-विशिष्ट पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को अपने अद्वितीय भूविज्ञान, जलवायु परिवर्तनशीलता और जल विज्ञान को ध्यान में रखते हुए एक अनुकूलित पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रूपरेखा की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकासात्मक गतिविधियों से आपदा की भेद्यता में वृद्धि न हो।
- पहाड़ी क्षेत्रों के लिये राष्ट्रीय भवन संहिता में संशोधन करके भूकंपरोधी और भूस्खलनरोधी डिज़ाइन को अनिवार्य बनाया जाए।
- विकास में जलवायु और आपदा अनुकूलन को मुख्यधारा में लाना: भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में विकास परियोजनाओं को सेंडाइ फ्रेमवर्क के अनुसार आपदा जोखिम न्यूनीकरण तथा जलवायु अनुकूलन को एकीकृत करना चाहिये, ताकि विशेष रूप से बुनियादी ढाँचे और शहरी नियोजन में जोखिम के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके।
- एकीकृत जलग्रहण क्षेत्र और नदी बेसिन प्रबंधन: वनीकरण, आर्द्रभूमि (वेटलैंड) का पुनरुद्धार और धारा तट स्थिरीकरण के साथ रिज-टू-वैली जलग्रहण क्षेत्र पुनर्स्थापन को अपनाना, पारंपरिक जल प्रणालियों को बहाल करना।
- बाढ़ के मैदानों के निर्माण की सीमाओं को लागू करना तथा अपस्ट्रीम-डाउनस्ट्रीम आपदा लिंक के लिये बेसिन-स्तरीय शासन स्थापित करना।
- सामुदायिक जागरूकता और तैयारी: भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़ और ग्लेशियर पिघलने जैसे संभावित खतरों के बारे में निचले इलाकों की आबादी को शिक्षित करना तथा उन्हें शामिल करना, स्थानीय तैयारियों के लिये पंचायतों को सशक्त बनाना एवं समुदाय के स्वामित्व वाले आश्रयों के साथ सहभागी आपदा मानचित्रण को बढ़ावा देना।
- एकीकृत बहु-एजेंसी समन्वय: जोखिम मूल्यांकन, निगरानी और शमन के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC), केंद्रीय जल आयोग, राज्य सरकारों तथा वैज्ञानिक संस्थानों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
निष्कर्ष
हिमालयी स्थिरता के लिये पारिस्थितिक सुरक्षा उपायों के साथ विकास का संतुलन आवश्यक है। भूमि-उपयोग नियमों, जलवायु-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे और हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन (NMHS) जैसी पहलों द्वारा समर्थित सामुदायिक तैयारियों को मज़बूत करके, आपदा जोखिमों को कम किया जा सकता है तथा साथ ही सुरक्षित एवं स्थायी बस्तियों के लक्ष्यों को भी आगे बढ़ाया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. भारतीय हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं के कारणों पर चर्चा कीजिये तथा इन आपदाओं के प्रभावी प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. जब आप हिमालय की यात्रा करेंगे, तो आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)
- गहरे खड्ड
- U घुमाव वाले नदी मार्ग
- समानांतर पर्वत श्रेणियाँ
- भूस्खलन के लिये उत्तरदायी तीव्र ढाल प्रवणता
उपर्युक्त में से कौन-से हिमालय के तरुण वलित पर्वत (नवीन मोड़दार पर्वत) के साक्ष्य कहे जा सकते हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
मेन्स
प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये। (2013)
प्रश्न. भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021)
प्रश्न. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये उसके खतरे को परिभाषित करने हेतु भेद्यता एक आवश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता को किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिये। (2019)


मुख्य परीक्षा
सतत् विकास के लिये बायोचार-आधारित कार्बन कटौती
चर्चा में क्यों?
भारतीय कार्बन बाज़ार वर्ष 2026 में शुरू होने वाला है, इसलिये बायोचार जैसी CO₂ निष्कासन प्रौद्योगिकियाँ उत्सर्जन को कम करने और सतत् विकास सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये तैयार हैं।
भारत के CO₂ उत्सर्जन से संबंधित प्रमुख आँकड़े क्या हैं?
- कुल उत्सर्जन: भारत का वैश्विक संचयी ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन (1850–2019) में केवल 4% योगदान है और इसकी प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर विश्व औसत का लगभग एक-तिहाई है।
- भारत ने अपनी GDP उत्सर्जन तीव्रता में 36% (2005-2020) की कमी की।
- चीन और अमेरिका के बाद भारत ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है।
- उत्सर्जन हॉटस्पॉट:
- भारत का विद्युत क्षेत्र, जिसमें कोयला आधारित तापीय संयंत्रों का प्रभुत्व है, CO₂ उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है, जो देश के ईंधन-संबंधी उत्सर्जन में लगभग 50% का योगदान देता है।
- परिवहन क्षेत्र, विशेष रूप से सड़क परिवहन, भारत के ऊर्जा-संबंधित CO₂ उत्सर्जन का लगभग 12% हिस्सा है।
- ये क्षेत्रीय रुझान यह दर्शाते हैं कि बड़े पैमाने पर CO₂ निष्कासन मार्गों को तेज़ी से अपनाना अत्यंत आवश्यक है। बायोचार जैसी समाधान विधियाँ उत्सर्जन की भरपाई करने और भारत के निम्न-कार्बन संक्रमण को समर्थन देने की दिशा में महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ प्रदान करती हैं।
बायोचार के संभावित अनुप्रयोग क्या हैं?
- परिचय: बायोचार एक कार्बन-समृद्ध चारकोल है जो कृषि अवशेषों और कार्बनिक नगरपालिका अपशिष्ट के पायरोलिसिस के माध्यम से उत्पादित किया जाता है।
- भारत प्रतिवर्ष 600 मिलियन टन से अधिक कृषि अवशेष और 60 मिलियन टन नगरपालिका अपशिष्ट उत्पन्न करता है। इनमें से अधिकांश को जला दिया जाता है या फेंक दिया जाता है, जिससे वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है।
- इस अपशिष्ट का 30-50% बायोचार के लिये उपयोग करने से प्रतिवर्ष लगभग 0.1 गीगाटन CO₂-समतुल्य उत्सर्जन कम किया जा सकता है।
- बायोचार के संभावित अनुप्रयोग:
- कार्बन कैप्चर: बायोचार की स्थिर संरचना उसे मिट्टी में 100 से 1,000 वर्षों तक कार्बन को संग्रहीत (सीक्वेस्टर) करने में सक्षम बनाती है, जिससे यह एक प्रभावी दीर्घकालिक कार्बन सिंक बन जाता है। साथ ही यह मिट्टी में जैविक कार्बन को बढ़ाता है और क्षरित मिट्टी की बहाली में भी सहायक होता है।
- संशोधित बायोचार औद्योगिक निकास गैसों से CO₂ को अवशोषित कर सकता है, लेकिन इसकी दक्षता वर्तमान में पारंपरिक कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों से कम है।
- विद्युत उत्पादन: भारत में पायरोलिसिस के माध्यम से बायोचार उत्पादन से लगभग 20-30 मिलियन टन सिंगैस और 24-40 मिलियन टन बायो-ऑयल जैसे मूल्यवान सह-उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं।
- सिंगैस से प्रतिवर्ष 8-13 टेरावाट-घंटा (TWh) विद्युत उत्पन्न की जा सकती है।
- बायो-ऑयल 12-19 मिलियन टन डीज़ल या केरोसीन का स्थान ले सकता है, जिससे कच्चे तेल के आयात में कमी और जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में 2% से अधिक की कटौती संभव है।
- कृषि: बायोचार के प्रयोग से विशेष रूप से अर्द्ध-शुष्क और पोषक तत्त्वों से रहित मृदा में जल धारण क्षमता में सुधार होता है। इससे नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में 30-50% की कमी आती है, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है और CO₂ की तुलना में 273 गुना अधिक तापीय क्षमता रखती है, इसलिये इसके उत्सर्जन में कमी लाना जलवायु कार्रवाई के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- निर्माण क्षेत्र: कंक्रीट में 2-5% बायोचार मिलाने से यांत्रिक मज़बूती बढ़ती है, ताप प्रतिरोध में 20% की वृद्धि होती है और प्रति घन मीटर लगभग 115 किलोग्राम CO₂ को अवशोषित करता है।
- अपशिष्ट जल उपचार: बायोचार प्रदूषित जल को साफ करने का एक किफायती तरीका है। भारत प्रतिदिन 70 बिलियन लीटर से अधिक अपशिष्ट जल उत्पन्न करता है, लेकिन 72% जल अनुपचारित रहता है।
- कार्बन कैप्चर: बायोचार की स्थिर संरचना उसे मिट्टी में 100 से 1,000 वर्षों तक कार्बन को संग्रहीत (सीक्वेस्टर) करने में सक्षम बनाती है, जिससे यह एक प्रभावी दीर्घकालिक कार्बन सिंक बन जाता है। साथ ही यह मिट्टी में जैविक कार्बन को बढ़ाता है और क्षरित मिट्टी की बहाली में भी सहायक होता है।
अन्य प्रमुख CO₂ निष्कर्षण तकनीकें क्या हैं?
- जैव-आधारित उपाय:
- वनरोपण और पुनर्वनीकरण: वायुमंडलीय CO₂ को अवशोषित करने के लिये बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण।
- कृषिवानिकी: कार्बन पृथक्करण और आजीविका लाभ के लिये फसलों/पशुपालन के साथ वृक्षों का समेकन।
- मृदा में कार्बन पृथक्करण: मृदा के जैविक कार्बन को बढ़ाने के लिये संरक्षित जुताई और कवर क्रॉपिंग जैसी प्रथाएँ।
- महासागर आधारित उपाय:
- कृत्रिम उपवाह/अववाह: पोषक तत्त्वों से भरपूर जल को सतह पर लाना या CO₂-युक्त सतही जल को गहराईयों में ले जाना।
- समुद्री शैवाल की कृषि और सिंकिंग: तेज़ी से बढ़ने वाले समुद्री शैवाल की कृषि करना, जिन्हें काटकर या सिंकिंग द्वारा कार्बन भंडारण के लिये उपयोग किया जाता है।
- कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के साथ बायोएनर्जी (BECCS): यह बायोमास ऊर्जा को CO₂ कैप्चर और भूवैज्ञानिक संग्रहण के साथ जोड़ता है, जिससे नकारात्मक शुद्ध उत्सर्जन के साथ नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन संभव होता है।
- डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC): इसमें रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से सीधे वायु से CO₂ को निकाला जाता है, जिसे भूमिगत संग्रहण या उत्पादों के लिये उपयोग किया जाता है।
- उदाहरण: क्लाइमवर्क्स (स्विट्ज़रलैंड), कार्बन इंजीनियरिंग (कनाडा)।
- कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS): CCUS औद्योगिक उत्सर्जन से CO₂ को कैप्चर करता है ताकि इसे पुन: उपयोग (सिंथेटिक ईंधन, निर्माण सामग्री) या भंडारण के लिये लिया जा सके।
मुख्य परीक्षा के लिये की-वर्ड
- हरित भविष्य के लिये काला सोना: कार्बन पृथक्करण और बेहतर मृदा स्वास्थ्य
- प्रकृति में कार्बन भंडार: पर्यावरणीय सह-लाभों के साथ दीर्घकालिक, स्थिर कार्बन भंडारण
- जैव ऊर्जा त्रिगुण: पायरोलिसिस द्वारा उत्पादित बायोचार, सिंथेटिक गैस और बायो-ऑयल
- चक्रीय कार्बन अर्थव्यवस्था: ऊर्जा और सामग्री उपयोग में चक्र को बंद करना
- खेत से ईंधन: स्थानीय ऊर्जा और आजीविका उत्पन्न करने वाली विकेंद्रीकृत ग्रामीण बायोचार इकाइयाँ
निष्कर्ष:
बायोचार और अन्य CO₂ निष्कासन तकनीकों को बढ़ावा देना, जलवायु चुनौती को सतत् विकास के अवसरों में बदल सकता है, जिससे भारत अपने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने और एक निम्न-कार्बन, जलवायु-लचीला समुत्थानशील बनाने में सक्षम होगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. भारत में बायोचार उत्पादन की ओर हाल ही में हो रहे प्रयासों के आलोक में, जलवायु परिवर्तन को कम करने में CO₂ निष्कासन तकनीकों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। इनके बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स:
प्रश्न. खेती में बायोचार का क्या उपयोग है? (2020)
- बायोचार ऊर्ध्वाधर खेती (Vertical Farming) में वृद्धिकर माध्यम के अंश के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
- जब बायोचार वृद्धिकर माध्यम के अंश के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, तो वह नाइट्रोजन-यौगिकीकारी सूक्ष्मजीवाें की वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- जब बायोचार वृद्धिकर माध्यम के अंश के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, तब वह उस वृद्धिकर माध्यम की जलधारण क्षमता को अधिक लंबे समय तक बनाए रखने में सहायक होता है।
उपर्युक्त कथनाें में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर:(d)
प्रश्न. शर्करा उद्योग के उपोत्पाद की उपयोगिता के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2013)
- खोई को, ऊर्जा उत्पादन के लिये जैव मात्रा ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
- शीरे को, कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन के लिये एक भरण-स्टॉक की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है।
- शीरे को, एथनॉल उत्पादन के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)


जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में हाथी संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये: एशियाई हाथी, IUCN रेड लिस्ट, प्रोजेक्ट एलिफेंट, हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (MIKE) कार्यक्रम
मेन्स के लिये: मानव-हाथी संघर्ष: कारण, प्रभाव और शमन रणनीतियाँ, मानव-पशु संघर्ष, मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुद्दे एवं समाधान।
चर्चा में क्यों?
12 अगस्त, को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने कोयंबटूर में विश्व हाथी दिवस मनाया, जिसमें मानव-हाथी संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया गया।
विश्व हाथी दिवस
- कनाडा की पेट्रीशिया सिम्स और थाईलैंड के एलिफेंट रीइंट्रोडक्शन फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से 12 अगस्त, 2012 को विश्व हाथी दिवस की स्थापना की। तब से पेट्रीशिया सिम्स इस पहल का नेतृत्व कर रही हैं।
- 100 से अधिक संगठनों के साथ साझेदारी में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य हाथियों के संरक्षण के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना है, जिसमें प्रतिवर्ष विश्व हाथी दिवस के माध्यम से लाखों लोग अपना समर्थन देते हैं।
हाथी के बारे में मुख्य तथ्य
- तीन प्रजातियाँ: हाथी की तीन अलग-अलग प्रजातियाँ हैं: अफ्रीकी सवाना हाथी, अफ्रीकी वन हाथी और एशियाई हाथी।
- अफ्रीकी हाथियों के कान बड़े होते हैं और अफ्रीका महाद्वीप की तरह दिखते हैं, जबकि एशियाई हाथियों के कान भारतीय उपमहाद्वीप के आकार से मिलते-जुलते होते हैं। अफ्रीकी हाथियों की सूंड के सिरे पर दो "उँगलियाँ" होती हैं, जबकि एशियाई हाथियों की सूंड पर केवल एक "उँगली" होती है।
- विश्व का सबसे बड़ा स्थलीय जीव: अफ्रीकी सवाना (बुश) हाथी दुनिया का सबसे बड़ा स्थलीय जीव है।
- हाथियों का जीवनकाल और प्रजनन: हाथी लगभग 65 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। मादाएँ लगभग 11 वर्ष की आयु में यौवनावस्था (Puberty) में पहुँच जाती हैं, उनकी गर्भावस्था लगभग 22 महीने की होती है और 40 वर्ष की आयु तक उनकी प्रजनन क्षमता बनी रहती हैं। यदि परिस्थितियाँ अनुकूल हों, तो हाथियों की आबादी प्रतिवर्ष लगभग 7% की दर से बढ़ सकती है।
- सामाजिक संरचना: परिवार का नेतृत्व एक मातृप्रधान (मादा मुखिया) करती है, जो सामान्यतः सबसे वृद्ध और सम्मानित मादा होती है।
- दाँत: ये बढ़े हुए कृंतक दाँत होते हैं जो जीवन भर बढ़ते रहते हैं। इनका उपयोग भोजन प्राप्त करने, खुदाई करने और अपनी रक्षा के लिये किया जाता है। यह कृंतक दाँत हाथीदाँत के रूप में जाने जाते हैं, जिसके कारण हाथी का अवैध रूप से शिकार किया जाता है।
- संचार: हाथी ध्वनि, भाषा, स्पर्श, गंध और हड्डियों के माध्यम से महसूस किये जाने वाले भूकंपीय कंपन का उपयोग करके एक-दूसरे से संवाद करते हैं।
- जनसंख्या में गिरावट: पिछली शताब्दी में 90% अफ्रीकी हाथी विलुप्त हो गए। एशियाई हाथियों की जनसंख्या में कम-से-कम 50% की कमी आई है। आवास के हानि से प्रवास मार्ग बाधित होते हैं और मानव-हाथी संघर्ष बढ़ता है।
भारत हाथियों का संरक्षण किस प्रकार सुनिश्चित कर रहा है?
- भारत में हाथी: भारत में विश्व के 60% से ज़्यादा जंगली एशियाई हाथी (एलिफस मैक्सिमस) पाए जाते हैं, खासकर भारतीय हाथी की उप-प्रजाति (एलिफस मैक्सिमस इंडिकस)।
- देश के राष्ट्रीय धरोहर पशु के रूप में, ये हाथी पारिस्थितिकी तंत्र के इंजीनियरों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बीज प्रसार, पोषक चक्रण और जलवायु विनियमन में सहायता करते हैं।
- कीस्टोन (पारिस्थितिकी तंत्र को आकार देने वाले), अम्ब्रेला (सह-अस्तित्व वाली प्रजातियों की रक्षा करने वाले) और फ्लैगशिप प्रजाति (संरक्षण के प्रतीक) के रूप में, हाथी उष्णकटिबंधीय जंगलों तथा बारहमासी नदियों को जीवित रखते हैं।
- भारत में एशियाई हाथियों की स्थिति: एशियाई हाथी, भारत का सबसे बड़ा स्थलीय स्तनपायी, मुख्य रूप से दक्षिण, उत्तर-पूर्व और मध्य क्षेत्रों में पाया जाता है।
- लगभग 28,000-30,000 हाथी चार अलग-अलग क्षेत्रों में रहते हैं, जिससे आवास और गलियारे का संरक्षण महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- एशियाई हाथियों की संरक्षण स्थिति: IUCN की रेड लिस्ट (लुप्तप्राय), वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (अनुसूची I) और वन्य जीव-जंतुओं तथा वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) (परिशिष्ट)।
- प्रोजेक्ट एलीफेंट: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 1992 में MoEFCC के तहत शुरू किया गया था। प्रोजेक्ट एलीफेंट 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को हाथियों, उनके आवासों और प्रवास गलियारों के संरक्षण में सहायता प्रदान करता है।
- यह वित्त पोषण, बुनियादी ढाँचे और अवैध शिकार विरोधी उपायों के माध्यम से संरक्षण, संघर्ष शमन तथा बंदी हाथियों के कल्याण पर केंद्रित है।
- प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट योजना को वित्त वर्ष 2023-24 से विलय कर दिया गया है, जिसे अब इसे प्रोजेक्ट टाइगर और एलीफेंट के नाम से जाना जाता है।
- प्रोजेक्ट री-हैब (मधुमक्खियों का उपयोग करके हाथी-मानव हमलों को कम करना): यह खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा "मधुमक्खी के छत्ते की बाड़" का उपयोग करके मानव-हाथी संघर्ष को कम करने की एक पहल है।
- इसमें हाथियों के रास्तों पर मधुमक्खी के बक्सों को रणनीतिक रूप से रखकर उन्हें मानव बस्तियों में प्रवेश करने से रोका जाता है, जिससे मानव और हाथी दोनों की मृत्यु दर कम होती है।
- हाथी संरक्षण में उपलब्धियाँ: भारत में जंगली हाथियों की आबादी वर्ष 2007 में 27,669-27,719 से बढ़कर 2017 में 29,964 हो गई है, जो संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाती है।.
- भारत ने 14 राज्यों में 33 हाथी अभयारण्यों को नामित किया है, जो हाथियों के लिये महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं।
- ये हाथी अभयारण्य बाघ अभयारण्यों, वन्यजीव अभयारण्यों और आरक्षित वनों के साथ अतिव्याप्त हैं, जो वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972, भारतीय वन अधिनियम, 1927 और अन्य स्थानीय राज्य अधिनियमों के तहत संरक्षित हैं।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और राज्य वन विभागों ने 15 राज्यों में 150 हाथी गलियारों का ज़मीनी स्तर पर सत्यापन किया है, जिससे खंडित आवासों के बीच हाथियों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित होती है।
- प्रोजेक्ट एलीफेंट ने हाथियों के आवासों में बदलावों की निगरानी और संभावित खतरों की पहचान करने के लिये भूमि उपयोग भूमि आवरण (LULC) विश्लेषण और उपग्रह डेटा जैसे भू-स्थानिक उपकरणों का उपयोग भी शुरू कर दिया है।
- निगरानी और भविष्य की दिशाएँ: CITES के नेतृत्व में हाथियों की अवैध हत्या पर निगरानी (MIKE) कार्यक्रम संरक्षण कार्रवाई का मार्गदर्शन करने के लिये अवैध हाथियों की हत्याओं की निगरानी करता है, वहीं, भारतीय वन्यजीव संस्थान का एलीफेंट सेल तकनीकी विशेषज्ञता, क्षमता निर्माण और फ्रंटलाइन स्टाफ के प्रशिक्षण के माध्यम से संरक्षण कार्यों का समर्थन करता है।
हाथी संरक्षण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- हाथी-ट्रेन टक्कर: हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2009 से 2024 के बीच भारत में 186 हाथियों की मृत्यु ट्रेन से टकराने के कारण हुई, जिनमें अधिकांश मामले असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, केरल और उत्तराखंड में दर्ज किये गए।
- इसके कारणों में हाथी गलियारों से होकर गुजरने वाली रेलवे पटरियाँ, कम दृश्यता, तेज़ ट्रेन गति और समय पर चेतावनी का अभाव शामिल हैं। ये क्षेत्र गौर, हिरण और तेंदुए जैसे अन्य वन्यजीवों के लिये भी खतरा उत्पन्न करते हैं।
- आवास की हानि और विखंडन: बस्तियों और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के विस्तार से वन सिमटकर छोटे-छोटे खंडों में विभाजित हो जाते हैं।
- भारत में चिह्नित हाथी गलियारे, जो उनके मौसमी आवागमन और आनुवंशिक आदान-प्रदान के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण हैं, गंभीर मानवीय दबाव का सामना कर रहे हैं तथा कुछ क्षेत्रों में इनके पूर्णतः अवरुद्ध होने का खतरा है।
- बढ़ता मानव-हाथी संघर्ष: सिमटते आवास हाथियों को फसलों के खेतों और गाँवों में जाने के लिये मजबूर करते हैं, जिससे आजीविका को गंभीर क्षति पहुँचती है।
- इससे प्रतिवर्ष 400–500 मनुष्यों की और 60 से अधिक हाथियों की मृत्यु होती है, जिनमें से अधिकांश प्रतिशोध के कारण होती हैं।
- जलवायु परिवर्तन, आवास, जल तथा भोजन के स्रोतों को प्रभावित कर हाथियों के जीवन को बाधित करता है, जिससे मानव-हाथी संघर्ष और भी बढ़ जाता है।
- अनावृष्टि और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाएँ हाथियों को मानव आबादी वाले क्षेत्रों में आने के लिये मजबूर करती हैं।
- दाँत और अन्य अंगों के लिये शिकार: हाथी-दाँत के लिये दाँत वाले नर हाथियों का शिकार कई आबादियों में लैंगिक अनुपात को असंतुलित कर चुका है।
- वर्ष 1989 के CITES हाथी-दाँत व्यापार प्रतिबंध के बावजूद, पूर्वोत्तर भारत में मांस, त्वचा और पूँछ के बालों के लिये अवैध शिकार अभी भी प्रचलित है।
- बुनियादी अवसंरचना से जुड़े खतरे: नीचे लटकी बिजली की तारों से करंट लगना और अन्य जानवरों के लिये रखे गए घरेलू बमों से चोट लगना, गंभीर खतरे उत्पन्न करता है।
- दुर्घटनात्मक मृत्यु: मानव-परिवर्तित परिदृश्यों में हाथी प्राय: खुले कुओं, खाइयों और गड्ढों में गिर जाते हैं, जिससे घातक चोटें लगती हैं।
- संरक्षण हेतु सीमित संसाधन: कई हाथी आवास दूर-दराज़ के क्षेत्रों में हैं, जहाँ निगरानी और गश्त के लिये आवश्यक ढाँचा कमज़ोर है।
- उदाहरण के लिये, ओडिशा का सिमलीपाल क्षेत्र सीमित वन कर्मियों और खराब सड़कों की पहुँच के कारण कमज़ोर प्रबंधन, शिकार एवं संघर्ष के अधिक जोखिम का सामना करता है।
हाथी संरक्षण हेतु आवश्यक उपाय क्या हैं?
- हाथी-ट्रेन टक्कर की रोकथाम: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने रोकथाम के उपायों के रूप में रैंप, अंडरपास, ओवरपास का निर्माण तथा घुसपैठ पहचान प्रणाली (Intrusion Detection System – IDS) स्थापित करने का सुझाव दिया है, ताकि हाथियों की गतिविधियों की निगरानी की जा सके तथा ट्रेन चालकों को समय पर चेतावनी दी जा सके।
- मिर्च पाउडर की फेंसिंग और मधुमक्खी के छत्ते: खेतों के चारों ओर मिर्च पाउडर और इंजन तेल के मिश्रण से लेपित फेंसिंग लगाना, फसलों पर हमला करने वाले हाथियों को रोकने का एक प्रभावी तरीका है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष कम होता है।
- खेत की सीमाओं पर मधुमक्खी के छत्ते लगाने से हाथी दूर रहते हैं क्योंकि वे मधुमक्खियों से बचते हैं; साथ ही यह किसानों को शहद से आय भी प्रदान करता है।
- केला ट्रैप फसलें/बनाना ट्रैप क्रॉप: वन की सीमाओं पर केले और नेपियर घास जैसी चारे की फसलें लगाना, ताकि हाथियों को मुख्य फसलों से दूर रखा जा सके।
- आवास संरक्षण को मज़बूत करना: एलिफेंट टास्क फोर्स (2010) की सिफारिश के अनुसार भूमि अधिग्रहण, ग्राम सभा की सहमति और स्वैच्छिक पुनर्वास के माध्यम से खंडित आवासों को पुनः जोड़ना।
- प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप: संघर्ष की रोकथाम के लिये GPS कॉलर ट्रैकिंग का उपयोग करके वास्तविक समय में हाथियों की गतिविधियों की निगरानी करना। हाथियों के प्रवासन मार्ग और मानव-हाथी संघर्ष के हॉटस्पॉट का पूर्वानुमान लगाना।
- क्षमता निर्माण: दूरस्थ क्षेत्रों में वन कर्मियों को बेहतर उपकरण, पशु-चिकित्सा इकाइयाँ और गैर-घातक संघर्ष प्रबंधन प्रशिक्षण उपलब्ध कराकर सशक्त बनाना।
- सामुदायिक भागीदारी और सशक्तीकरण: गज यात्रा कार्यक्रम और गज शिल्पी पहल जैसे अभियानों का विस्तार करना, जिनमें लोगों को हाथी संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिये शामिल किया जाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में एशियाई हाथियों को प्रमुख प्रजाति माना जाता है। उनके संरक्षण में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और उनके दीर्घकालिक अस्तित्व के लिये रणनीतियाँ सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारतीय हाथियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
- हाथियों के समूह का नेतृत्व मादा करती है।
- हाथी की अधिकतम गर्भावधि 22 माह तक हो सकती है।
- सामान्यत: हाथी में 40 वर्ष की आयु तक ही बच्चे पैदा करने की क्षमता होती है।
- भारत के राज्यों में हाथियों की सर्वाधिक संख्या केरल में है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 3 और 4
उत्तर: (a)

