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डेली न्यूज़

  • 12 May, 2021
  • 45 min read
शासन व्यवस्था

कोविड-टीकाकरण से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

प्राथमिकता समूह (45 वर्ष से अधिक) के साथ-साथ 18-45 आयु वर्ग को टीकाकरण की अनुमति दिये जाने के बावजूद 1 मई, 2021 से शुरू होने वाले सप्ताह में वैक्सीन की खुराक की संख्या में कमी आई है और यह बीते आठ सप्ताह में अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है।

  • किसी अन्य बीमारी की तुलना में कोविड-19 टीके का विकास तेज़ी से किया जा रहा है, फिर भी इसकी आपूर्ति में कमी देखने को मिल रही है।

प्रमुख बिंदु:

वैश्विक मुद्दे:

  • विशाल जनसंख्या:
    • दुनिया भर में लगभग सात बिलियन लोगों को टीका लगाया जाना है, जिनमें से अत्यधिक टीके दो खुराकों के माध्यम से दिये जा रहे  हैं, अतः जाहिर है कि मांग बहुत अधिक है।
  • आत्मकेंद्रीकरण की  भावना:
    • उपलब्ध टीकों में से 80% से अधिक को पहले ही खरीदने का ऑर्डर दिया जा चुका है और दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों द्वारा इनका स्टॉक किया गया है, जो कि वैश्विक आबादी के केवल 20% का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
    • यहाँ तक ​​कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के COVAX जैसे प्रयासों से अफ्रीकी आबादी के केवल 1% लोगों को ही अब तक वैक्सीन प्राप्त हुई है।
  • आपातकालीन स्वीकृति में देरी:
    • अमेरिका द्वारा अब तक केवल तीन टीकों-‘फाइज़र’, मॉडर्ना’, और ‘जैनसेन’ को अनुमति दी गई है।
      • सबसे सस्ती एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन अमेरिका में अभी भी अनुमोदन की प्रतीक्षा कर रही है।
    • हाल ही में ब्राज़ील में रूस के स्पुतनिक वी के लिये अनुमोदन को अस्वीकार कर दिया गया था।
    • चीन के सिनोवैक और सिनोफार्म के टीके अभी तक पश्चिमी देशों में स्वीकृत नहीं हैं।

भारत में चुनौतियाँ:

  • सीमित आपूर्तिकर्त्ता:
    • भारत के दो वैक्सीन (COVAXIN & COVISHIELD) निर्माताओं की सीमित क्षमता इस संदर्भ में एक बड़ी चुनौती है और इस पर भी राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों द्वारा लगभग वैक्सीन की आवश्यकताओं संबंधी आदेश दिया जा रहा है, जिन्हें पूरा करने में महीनों लग सकते हैं।
  • आपूर्ति शृंखला में कमी:
    • समग्र वयस्क आबादी का टीकाकरण करने के लिये महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम की आपूर्ति शृंखला में एक बड़ा अंतर देखा गया है।
    • यद्यपि भारत टीकाकरण की संख्या में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है, परंतु भारत की केवल 13% आबादी को ही एक खुराक मिली है और लगभग 2% का पूरी तरह से टीकाकरण किया गया है।
      • कई देशों ने पहले ही अपनी आधी से अधिक वयस्क आबादी का टीकाकरण कर लिया है।

  • असमान खरीद प्रक्रिया:
    • संशोधित वैक्सीन खरीद प्रक्रिया शहरों और कस्बों में छोटे अस्पतालों के लिये चुनौती पैदा करती है, क्योंकि उनके बड़े समकक्ष अस्पताल आसानी से वैक्सीन प्राप्त कर रहे हैं, जबकि उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जो कि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में शहरी-ग्रामीण विभाजन को और अधिक विरूपित करता है।
  • डिजिटल विभाजन:
    • नई विकेंद्रीकृत वितरण रणनीति के हिस्से के रूप में ‘कोविन’ पोर्टल पर डिजिटल पंजीकरण भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, जो संभावित रूप से टीकाकरण प्रक्रिया को कठिन बनाता है। यह अपेक्षाकृत कम शिक्षित लोगों को ‘कोविन’ पोर्टल तक पहुँचने और उसके अंग्रेज़ी इंटरफेस का उपयोग करना चुनौतीपूर्ण बनाता है।
    • यह देखते हुए भी कि भारत की आधी आबादी की ही ब्रॉडबैंड इंटरनेट तक पहुँच है और ग्रामीण टेली-घनत्व 60% से भी कम है, कहा जा सकता है कि अनिवार्य ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया शहरी केंद्रों के पक्ष में झुकी हुई दिखाई देती है।
  • बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश देश के सबसे कम टेली-घनत्व वाले राज्यों में से एक हैं।
    • स्मार्टफोन या कंप्यूटर के साथ-साथ तकनीक तक कम पहुँच इसे और अधिक कठिन बनाती है।

आगे की राह:

  • प्रभावी और सुरक्षित टीकों की जल्द-से-जल्द जाँच करने और उन्हें मौज़ूदा पूल में जोड़ने की आवश्यकता है।
  • भारत का कोविड-19 वैक्सीन अभियान एक स्मरणीय मिशन होगा, यह न केवल अपनी आबादी का टीकाकरण करने के मामले में, बल्कि दुनिया के एक बड़े भाग के निर्माता के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह मिशन टीकों के विकास और वितरण से जुड़े मुद्दों को संबोधित करते हुए कम-से-कम समय में सैकड़ों से लाखों लोगों को टीकों को कुशलता से प्राप्त करने के प्रयास में वृद्धि करेगा।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (National Financial Reporting Authority- NFRA) कंपनियों (पब्लिक इंटरेस्ट एंटिटीज़) और ऑडिटरों का एक सत्यापित एवं सटीक डेटाबेस तैयार करने की प्रक्रिया में है जो इसके नियामकीय दायरे में आते हैं।

  • इस संबंध में NFRA भारत में कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs- MCA) के कॉरपोरेट डेटा प्रबंधन (Corporate Data Management- CDM) प्रभाग और तीन मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों के साथ जुड़ा हुआ है।

प्रमुख बिंदु:

  • गठन: भारत सरकार द्वारा NFRA का गठन वर्ष 2018 में कंपनी अधिनियम की धारा 132 के तहत किया गया था। यह एक लेखांकन/ऑडिट नियामक संस्था है।
  • पृष्ठभूमि: पंजाब नेशनल बैंक सहित विभिन्न कॉर्पोरेट घोटालों में लेखाकारों तथा इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की कथित खामियों के जाँच के दायरे में आने के बाद NFRA के गठन का निर्णय लिया गया था।
  • संगठन: इसमें एक अध्यक्ष होता है जो लेखाकर्म, लेखांकन, वित्त अथवा विधि में विशेषज्ञता रखता हो तथा इसकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। ऐसे ही अन्य सदस्य भी शामिल होते हैं जिनकी संख्या 15 से अधिक नहीं होनी चाहिये।
  • प्रकार्य और कर्त्तव्य
    • केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन के लिये लेखाकर्म और लेखापरीक्षा नीतियों तथा कंपनियों द्वारा अपनाए जाने वाले मानकों की अनुशंसा करना;
    • लेखाकर्म मानकों और लेखापरीक्षा मानकों को लागू करना तथा इनके अनुपालन की निगरानी करना;
    • ऐसे मानकों सहित अनुपालन सुनिश्चित करने वाले व्यवसायों की सेवा की गुणवत्ता का पर्यवेक्षण करना;
    • सार्वजनिक हित की रक्षा करना।
  • शक्तियाँ:
    • यह पब्लिक इंटरेस्ट एंटिटीज़ के रूप में नामित कंपनियों और निकायों के निम्नलिखित वर्गों से संबंधित जाँच कर सकता है:
      • ऐसी कंपनियाँ जिनकी प्रतिभूतियाँ भारत में या भारत के बाहर किसी भी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं।
      • ऐसी असूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनियाँ जिनकी प्रदत्त पूंजी 500 करोड़ रुपए से कम न हो अथवा वार्षिक कारोबार 1,000 करोड़ रुपए से कम न हो या तत्काल पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के 31 मार्च तक कुल बकाया ऋण, डिबेंचर और जमाएँ 500 सौ करोड़ रुपए से कम न हो;
      • बीमा कंपनियाँ, बैंकिंग कंपनियाँ, बिजली उत्पादन अथवा आपूर्ति से जुड़ी कंपनियाँ।
    • पेशेवर या अन्य कदाचार सिद्ध होने पर इसे निम्नानुसार ज़ुर्माना लगाने का आदेश देने की शक्ति प्राप्त है-
      • व्यक्तियों के मामले में एक लाख रुपए से कम नहीं, लेकिन यह राशि प्राप्त होने वाली फीस के पाँच गुना तक बढ़ सकती है; तथा
      • फर्मों के मामले में दस लाख रुपए से कम नहीं, लेकिन इस राशि प्राप्त फीस के दस गुना तक वृद्धि की जा सकती है।
  • इसके खाते की निगरानी भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) द्वारा की जाती है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल रूप से समावेशी भारत के लिये नीति आयोग की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग और मास्टरकार्ड ने ‘कनेक्टेड कॉमर्स: क्रिएटिंग ए रोडमैप फॉर ए डिजिटल इन्क्लूसिव भारत’ (Connected Commerce: Creating a Roadmap for a Digitally Inclusive Bharat) शीर्षक नाम से एक रिपोर्ट जारी की।

  • यह रिपोर्ट भारत में डिजिटल वित्तीय समावेशन (Digital Financial Inclusion) की राह में आने वाली चुनौतियों की पहचान करती है और साथ ही 1.3 अरब नागरिकों तक डिजिटल सेवाओं को सुलभ बनाने के लिये जरूरी सिफारिशें प्रदान करती है।

डिजिटल वित्तीय समावेशन

  • इसे औपचारिक वित्तीय सेवाओं के उपयोग और उन तक डिजिटल पहुँच के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस तरह की सेवाएँ ग्राहकों की आवश्यकताओं के अनुकूल होनी चाहिये और ग्राहकों के लिये सस्ती कीमत पर ज़िम्मेदारी से वितरित की जानी चाहिये।

प्रमुख बिंदु

चुनौतियाँ:

  • मांग पक्ष अंतराल:
    • डिजिटल वित्तीय समावेशन को प्राप्त करने के लिये बहुत प्रयास किये गए हैं, जिससे इसके आपूर्ति पक्ष, जैसे- ई-गवर्नेंस, गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजनाओं आदि में बहुत सफलता मिली है।
    • हालाँकि डिजिटल वित्तीय प्रवाह में ठहराव अंत में आता है, जहाँ ज़्यादातर खाताधारक अपने अंतिम उपयोग के लिये नकदी निकालते हैं।
  • असफल एग्री-टेक:
    • कृषि अपने संबद्ध क्षेत्रों के साथ भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से को आजीविका प्रदान करती है। राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि का योगदान वर्ष 1983-84 के 34% से घटकर वर्ष 2018-19 में केवल 16% रह गया है।
    • अधिकांश कृषि तकनीक किसानों के लिये वित्तीय लेन-देन का डिजिटलीकरण करने या लेन-देन के आँकड़ों का लाभ उठाकर कम ब्याज दर पर औपचारिक ऋण देने में सफल नहीं हुए हैं।
  • एमएसएमई की औपचारिक वित्त तक सीमित पहुँच:
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSME) भारतीय अर्थव्यवस्था के एक प्रमुख अंग रहे हैं। वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में लगभग 110 मिलियन लोग या गैर-कृषि कार्यबल के 40% से अधिक लोग कार्यरत हैं।
    • इन्हें उचित प्रलेखन, बैंक के स्वीकार्य योग्य संपार्श्विक, ऋण इतिहास और गैर-मानक वित्त की कमी अनौपचारिक ऋण का उपयोग करने के लिये मज़बूर करती है।
  • डिजिटल कॉमर्स में विश्वास और सुरक्षा:
    • डिजिटल लेनदेन में वृद्धि से उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों के लिये संभावित सुरक्षा उल्लंघनों का जोखिम बढ़ गया है।  
    • जून 2020 की एक मेडिसी (Medici) रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में लगभग 40,000 हज़ार साइबर हमलों ने बैंकिंग क्षेत्र के आईटी बुनियादी ढाँचे को लक्षित किया।
  • डिजिटल एक्सेसिबल ट्रांज़िट सिस्टम:
    • महामारी की शुरुआत के साथ भारत में संपर्क रहित भुगतान के साथ पारगमन प्रणालियों को और अधिक एकीकृत करने की आवश्यकता है।
    • वैश्विक स्तर पर रुझान ओपन-लूप ट्रांज़िट सिस्टम (Open-Loop Transit System) की ओर है, जो यात्रियों को भुगतान योग्य समाधान के माध्यम से परिवहन के विभिन्न तरीकों को उपयोग करने की अनुमति देता है।

सिफारिशें:

  • बाज़ार से संबंधित लोगों के लिये उपयोगकर्त्ता के अनुकूल डिजिटल उत्पादों और सेवाओं को बनाकर मांग के अंतर को पूरा करना महत्त्वपूर्ण है जो नकदी से डिजिटल तक व्यवहारिक परिवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies) और बैंकों को बढ़ावा देने के लिये भुगतान संबंधित बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
  • एमएसएमई के विकास के अवसरों को बढ़ाने के लिये पंजीकरण और अनुपालन प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करना तथा ऋण स्रोतों में विविधता लाना।
  • ‘फ्रॉड रिपॉज़िटरी’ सहित सूचना साझाकरण प्रणाली का निर्माण और यह सुनिश्चित करना कि ऑनलाइन डिजिटल कॉमर्स प्लेटफॉर्म उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी के जोखिम के प्रति सचेत करने के लिये चेतावनी दे।
  • कृषि एनबीएफसी को कम लागत वाली पूंजी तक पहुँच बनाने के लिये सक्षम करना और बेहतर दीर्घकालिक डिजिटल परिणामों को प्राप्त करने हेतु एक 'फिजिटल' (भौतिक+डिजिटल) मॉडल को विस्तार करना। भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण भी इस क्षेत्र को बढ़ावा देगा।
  • न्यूनतम भीड़-भाड़ के साथ शहरों में ट्रांज़िट को सुलभ बनाने के लिये मौज़ूदा स्मार्टफोन और कॉन्टेक्टलेस कार्ड का लाभ उठाते हुए एक समावेशी, इंटरऑपरेबल और पूरी तरह से खुली प्रणाली बनाने का लक्ष्य होना चाहिये।

भारत में डिजिटल वित्तीय समावेशन हेतु पहलें

जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी:

  • आधार, प्रधानमंत्री जन-धन योजना (Pradhan Mantri Jan-Dhan Yojana) के संयोजन और मोबाइल संचार में वृद्धि ने सरकारी सेवाओं के उपयोग के तरीके को बदल दिया है।
  • एक अनुमान के अनुसार, मार्च 2020 में जन धन योजना के तहत लाभार्थियों की कुल संख्या लगभग 380 मिलियन से अधिक थी।

ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं का विस्तार:

सुरक्षित डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना:

  • नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) को मज़बूत करके पूर्व की तुलना में डिजिटल भुगतान को सुरक्षित बनाया गया है।
  • आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (Aadhar-Enabled Payment System), आधार सक्षम बैंक खाता (Aadhar Enabled Bank Account) को किसी भी स्थान पर और किसी भी समय माइक्रो एटीएम का उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
  • ऑफलाइन लेनदेन-सक्षम करने वाले प्लेटफॉर्म जैसे अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डेटा (Unstructured Supplementary Service Data- USSD) के कारण भुगतान प्रणाली को और अधिक सुलभ बनाया गया है, जिससे सामान्य मोबाइल फोन पर भी इंटरनेट के बिना मोबाइल बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करना संभव हो सके।

वित्तीय साक्षरता बढ़ाना:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने "परियोजना वित्तीय साक्षरता" (Project Financial Literacy) नामक एक परियोजना शुरू की है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य केंद्रीय बैंक और सामान्य बैंकिंग अवधारणाओं के विषय में विभिन्न लक्षित समूहों, जिनमें स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे, महिलाएँ, ग्रामीण और शहरी गरीब, रक्षा कर्मी और वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं, के विषय में जानकारी का प्रसार करना है।
  • पॉकेट मनी (Pocket Money) स्कूली छात्रों के बीच वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के उद्देश्य से भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज मार्केट (National Institute of Securities Market) का एक प्रमुख कार्यक्रम है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

यूरेनियम की अवैध बिक्री

चर्चा में क्यों?

हाल ही में परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (Atomic Energy Act, 1962) के तहत दो लोगों को बिना लाइसेंस के यूरेनियम रखने और इसे अवैध रूप से बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

  • ज़ब्त किये गए यूरेनियम के नमूनों की जांँच, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre- BARC) द्वारा की गई, जिसमें इस बात की पुष्टि हुई कि यह प्राकृतिक यूरेनियम (Natural Uranium) है।

प्रमुख बिंदु: 

 यूरेनियम:

  • यूरेनियम, प्राकृतिक रूप से कम सांद्रता में मिट्टी, चट्टान और जल में पाया जाता है। यह एक कठोर, सघन, लचीली, चांदी के समान सफेद  रेडियोधर्मी धातु (Radioactive Metal) है।
    • यूरेनियम धातु का घनत्व बहुत अधिक होता है। 
  • यदि इसे सूक्ष्म रूप से विभाजित किया जाए तो यह ठंडे जल के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है। वायु में यूरेनियम ऑक्साइड द्वारा लेपित करने पर यह तीव्र गति से धूमिल/दूषित (Tarnishing) होता है।
  • यह कई धातुओं के साथ ठोस विलयन (Solids Solutions) और अंतःधात्विक यौगिकों (Intermetallic Compounds) का निर्माण करने में सक्षम है।

अनुप्रयोग:

  • ऊर्जा उत्पादन: नागरिक या असैन्य क्षेत्र में यूरेनियम का मुख्य उपयोग परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy) उत्पादन हेतु वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में ईंधन के रूप में किया जाता है।
    • इस कार्य हेतु यूरेनियम को यूरेनियम-235 समस्थानिक के साथ  संवर्द्धित किये जाने की आवश्यकता होती है साथ ही इसमें शृंखला अभिक्रिया को भी नियंत्रित किया जाना महत्त्वपूर्ण होता है, जिससे प्रबंधकीय तरीके से ऊर्जा प्राप्त की जा सके।
  • परमाणु बम बनाने में: युद्ध में प्रयुक्त पहला परमाणु बम एक यूरेनियम बम था।
    • इस बम में शृंखला अभिक्रिया को शुरू करने हेतु यूरेनियम-235 समस्थानिक का प्रयोग किया गया था, जिसके कारण कुछ ही समय के भीतर यूरेनियम परमाणुओं का विखंडन हुआ और नतीजतन आग के गोले के रूप ऊर्जा (Fireball Of Energy) मुक्त हुई।
  • विकिरण से सुरक्षा: क्षीण यूरेनियम का उपयोग विकिरण चिकित्सा के समय  चिकित्सा प्रक्रियाओं में विकिरण से सुरक्षा हेतु एक शील्ड के रूप में भी किया जाता है, इसके अलावा रेडियोधर्मी सामग्री के परिवहन के दौरान भी इसका उपयोग किया जाता है।
    • यद्यपि यूरेनियम स्वयं रेडियोधर्मी होता है, किंतु उसका उच्च घनत्व विकिरण को रोकने में काफी कारगर है।
  • काउंटरवेट के रूप में उपयोगी: अपने उच्च घनत्व के कारण यूरेनियम, एयरक्राफ्ट और औद्योगिक मशीनरी के लिये काउंटरवेट के रूप में भी उपयोगी होता है।
  • रेडियोमेट्रिक डेटिंग: यूरेनियम-238 समस्थानिक का उपयोग आग्नेय चट्टानों की आयु का पता लगाने और अन्य प्रकार के रेडियोमेट्रिक डेटिंग (Radiometric Dating) कार्यों में किया जाता है।
  • उर्वरक: आमतौर पर फास्फेट उर्वरकों के निर्माण में प्रयोग की जाने वाली सामग्रियों में यूरेनियम की उच्च मात्रा विद्यमान होती है, जिस कारण फास्फेट उर्वरकों में यूरेनियम की उच्च मात्रा पाई जाती है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव:

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: संभावित रूप से क्षीण यूरेनियम रासायनिक और रेडियोलॉजिकल दोनों ही प्रकार से विषाक्त होता है, जो शरीर के दो महत्त्वपूर्ण अंगों- गुर्दे और फेफड़ों को प्रभावित करता है।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: यूरेनियम संबंधी खनन गतिविधियों से यूरेनियम अपशिष्ट का भी उत्पादन होता है,  जिसका निपटान प्रायः खदान के आसपास ही कर दिया जाता है।
    • यह अपशिष्ट रेडॉन उत्सर्जन, विंड ब्लास्ट डस्ट डिस्पर्स और भारी धातुओं तथा पानी में आर्सेनिक सहित दूषित पदार्थों के निक्षालन (Leaching) के रूप में गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।

भारत में यूरेनियम भंडार: 

  • भारत में यूरेनियम के भंडार धारवाड़ चट्टानों (Dharwar Rocks) में पाए जाते हैं।
  • झारखंड के सिंहभूम कॉपर बेल्ट (Singhbhum Copper Belt) के अलावा राजस्थान के उदयपुर, अलवर और झुंझुनू ज़िले, छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले, महाराष्ट्र के भंडारा ज़िले तथा  हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में भी यूरानियम के भंडार पाए जाते हैं।
  • हाल ही में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के शेषचलम वन (Seshachalam Forest) और श्रीशैलम (आंध्र के दक्षिणी छोर से तेलंगाना के दक्षिणी छोर) के मध्य महत्त्वपूर्ण यूरेनियम भंडार का पता चला है।

भारत में वैधानिक ढाँचा:

  • संसद ने सूची I (संघ सूची) के क्रमांक 54 का अनुसरण  करते हुए,  'खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR Act) पारित किया है।
    • हालांँकि, इस अधिनियम के माध्यम से सूक्ष्म खनिजों (Minor Minerals) के संबंध में, राज्यों को नियम बनाने वाली शक्तियांँ सौंपी गई हैं।
    • चूंँकि यूरेनियम एक प्रमुख खनिज है, इसे केंद्र सरकार द्वारा MMDR अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रबंधित किया जाता है।
  • यद्यपि देश में प्रमुख खनिजों से संबंधित नीति और कानून का प्रबंधन खान मंत्रालय द्वारा किया जाता है, लेकिन यूरेनियम एक परमाणु खनिज है, जिसका प्रबंधन परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy- DAE) द्वारा किया जाता है।
    • परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (Atomic Energy Act, 1962) रेडियोधर्मी पदार्थों और संयंत्रों को नियंत्रित करने, विकिरण से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने हेतु उपाय करने, सार्वजनिक सुरक्षा को बनाए रखने और रेडियोधर्मी कचरे के सतर्क निपटान हेतु मानक निर्धारित करता है।
  • इनमें से कई खनिज भंडार, समृद्ध वन क्षेत्रों में पाए जाते हैं तथा जिनके उत्खनन हेतु  केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मंज़ूरी आवश्यक होती है।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र:

  • डॉ. होमी भाभा द्वारा भारत में परमाणु कार्यक्रम की संकल्पना की गई थी। वर्ष 1945 में डॉ. भाभा ने परमाणु विज्ञान अनुसंधान हेतु टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (Tata Institute of Fundamental Research- TIFR) की स्थापना की।
  •  जनवरी 1954 में राष्ट्र हित को बढ़ावा देने तथा परमाणु ऊर्जा के दोहन के प्रयास को तीव्रता प्रदान करने के उद्देश्य डॉ. भाभा ने भारत के महत्त्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम की आवश्यक को ध्यान में रखते हुए बहु-विषयक अनुसंधान कार्यक्रम हेतु ‘परमाणु ऊर्जा संस्थान ट्रॉम्बे’ (Atomic Energy Establishment, Trombay- AEET) की स्थापना की।
  • वर्ष 1966 में AEET का नाम परिवर्तित कर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Center- BARC) कर दिया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

सुपर साइकिल ऑफ कमोडिटीज़

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई है, जिसे एक नए ‘कमोडिटी सुपर साइकिल’ (Commodity Super Cycle) के रूप में पेश किया जा रहा है।

  • कमोडिटी, वाणिज्य में उपयोग किये जाने वाली एक बुनियादी वस्तु होती है, जो कि उसी प्रकार की अन्य वस्तुओं के साथ विनिमय योग्य होती है। प्रायः अन्य वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन में इसका उपयोग इनपुट के रूप में किया जाता है।

On-The-Rise

प्रमुख बिंदु

सुपर साइकिल ऑफ कमोडिटीज़ के विषय में:

  • ‘कमोडिटी सुपर साइकिल’ का आशय मज़बूत मांग वृद्धि की स्थिर अवधि से है, जो एक वर्ष या कुछ मामलों में एक दशक या उससे भी अधिक हो सकती है।

वर्तमान स्थिति:

  • धातु:
    • इस्पात, जो कि निर्माण क्षेत्र और उद्योगों में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला इनपुट है, की मांग अपने सबसे उच्चतम स्तर पर हैं, क्योंकि पिछले एक वर्ष में अधिकांश धातुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है।
  • कृषि उत्पाद:
    • चीनी, मक्का, कॉफी, सोयाबीन तेल, पाम ऑयल - अमेरिकी कमोडिटी बाज़ार में तेज़ी से बढ़े हैं, जिसका असर घरेलू बाज़ार में भी देखा जा रहा है।
  • कारण: नया ‘कमोडिटी सुपर साइकिल’ निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न हो सकता है:

    • वैश्विक मांग में रिकवरी (चीन और अमेरिका में रिकवरी के कारण)।

    • आपूर्ति पक्ष की कमी।
    • वैश्विक केंद्रीय बैंकों की विस्तारवादी मौद्रिक नीति
    • परिसंपत्ति निर्माण में निवेश: यह उस मुद्रा का भी परिणाम हो सकता है, जिसका उपयोग इस उम्मीद से परिसंपत्तियों में निवेश के लिये किया जाता है कि भविष्य में मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होगी।
      • इस प्रकार यह मांग से प्रेरित नहीं होता, बल्कि मुद्रास्फीति का भय होता है जो कीमतों में बढ़ोतरी को प्रोत्साहन देता है।

चिंताएँ:

  • यह इनपुट लागतों को बढ़ावा देगा जो एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है, क्योंकि इससे न केवल भारत में बुनियादी अवसंरचना के विकास की लागत पर असर पड़ने की उम्मीद है, बल्कि समग्र मुद्रास्फीति, आर्थिक सुधार और नीति निर्माण पर भी प्रभाव पड़ेगा।
  • धातुओं की उच्च कीमतें उच्च थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) मुद्रास्फीति को जन्म देंगी और इसलिये कोर मुद्रास्फीति को कम करना मुश्किल होगा।

विस्तारवादी और तंग मौद्रिक नीतियाँ

  • ऐसी मौद्रिक नीति जो ब्याज़ दरों को कम करती हो और उधार को प्रोत्साहित करती हो, विस्तारवादी मौद्रिक नीति कहलाती है।
  • इसके विपरीत ऐसी मौद्रिक नीति जो ब्याज़ दरों को बढ़ाती है और अर्थव्यवस्था में उधार को कम करती है, तंग मौद्रिक नीति कहलाती है।

मुद्रास्फीति

  • मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन आदि की कीमतों में वृद्धि से है।
  • मुद्रास्फीति के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य परिवर्तन को मापा जाता है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है। इससे अंततः आर्थिक विकास में मंदी आ सकती है।
  • हालाँकि अर्थव्यवस्था में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये मुद्रास्फीति के संतुलित स्तर की आवश्यकता होती है।
  • भारत में मुद्रास्फीति की गणना दो मूल्य सूचियों के आधार पर की जाती है- थोक मूल्य सूचकांक (WPI) एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)।, जो क्रमशः थोक और खुदरा मूल्य स्तर के परिवर्तनों को मापते हैं।

कोर मुद्रास्फीति

  • इसका आशय वस्तुओं और सेवाओं की लागत में बदलाव से है, लेकिन इसमें खाद्य और ऊर्जा क्षेत्र की वस्तुओं और सेवाओं की लागत को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि इनकी कीमतें अधिक अस्थिर होती हैं।
  • इसका उपयोग उपभोक्ता आय पर बढ़ती कीमतों के प्रभाव को निर्धारित करने के लिये किया जाता है।

आगे की राह

  • निर्णय निर्माताओं को आपूर्ति और मांग में असंतुलन को देखने की ज़रूरत है और उन्हें यह पता लगाना चाहिये कि इस स्थिति से निपटने के लिये स्वयं को तैयार करने हेतु उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-Linked Incentive) योजना के माध्यम से कहाँ निवेश कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय इतिहास

गोपाल कृष्ण गोखले

चर्चा में क्यों?

09 मई, 2021 को देशभर में महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) की 155वीं जयंती मनाई गई।।

  • गोपाल कृष्ण गोखले एक महान समाज सुधारक और शिक्षाविद् थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को अनुकरणीय नेतृत्व प्रदान किया।

प्रमुख बिंदु

जन्म: 9 मई, 1866 को वर्तमान महाराष्ट्र (तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा) के कोटलुक गाँव में।

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विचारधारा:

  • गोखले ने सामाजिक सशक्तीकरण, शिक्षा के विस्तार और तीन दशकों तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में कार्य किया तथा प्रतिक्रियावादी या क्रांतिकारी तरीकों के इस्तेमाल को खारिज किया।

औपनिवेशिक विधानमंडलों में भूमिका:

  • वर्ष 1899 से 1902 के बीच वह बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे और वर्ष 1902 से 1915 तक उन्होंने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काम किया। 
  • इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काम करने के दौरान गोखले ने वर्ष 1909 के मॉर्ले-मिंटो सुधारों को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में भूमिका:

  • वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) के नरम दल से जुड़े थे (वर्ष1889 में शामिल)।  
  • बनारस अधिवेशन 1905 में वह INC के अध्यक्ष बने। 
    • यह वह समय था जब ‘नरम दल’ और लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक तथा अन्य के नेतृत्त्व वाले ‘गरम दल’ के बीच व्यापक मतभेद पैदा हो गए थे। वर्ष 1907 के सूरत अधिवेशन में ये दोनों गुट अलग हो गए।
    • वैचारिक मतभेद के बावजूद वर्ष 1907 में उन्होंने लाला लाजपत राय की रिहाई के लिये अभियान चलाया, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा म्याँमार की मांडले जेल में कैद किया गया था।

संबंधित सोसाइटी तथा अन्य कार्य:

  • भारतीय शिक्षा के विस्तार के लिये वर्ष 1905 में उन्होंने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (Servants of India Society) की स्थापना की।
  • वह महादेव गोविंद रानाडे द्वारा शुरू की गई 'सार्वजनिक सभा पत्रिका' से भी जुड़े थे।
  • वर्ष 1908 में गोखले ने रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स की स्थापना की।
  • उन्होंने अंग्रेज़ी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘द हितवाद’ की शुरुआत की।

गांधी के लिये गुरु के रूप में:

  • एक उदार राष्ट्रवादी के रूप में महात्मा गांधी ने उन्हें राजनीतिक गुरु माना था। 
  • महात्मा गांधी ने गुजराती भाषा में गोपाल कृष्ण गोखले को समर्पित एक पुस्तक 'धर्मात्मा गोखले' लिखी।

मॉर्ले-मिंटो सुधार 1909:

  • इसके द्वारा भारत सचिव की परिषद, वायसराय की कार्यकारी परिषद तथा  बंबई और  मद्रास की कार्यकारी परिषदों में भारतीयों को शामिल गया। विधान परिषदों में मुस्लिमों हेतु अलग निर्वाचक मंडल की बात की गई। 
    • भारतीय राष्ट्रवादियों इन सुधारों को अत्यधिक एहतियाती माना गया तथा मुसलमानों हेतु  प्रथक निर्वाचक मंडल के प्रावधान से हिंदू नाराज़ थे। 
    • केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में वृद्धि की गई।
    • इस अधिनियम ने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी।
  • केंद्र और प्रांतों में विधान परिषदों के सदस्यों की  चार श्रेणियाँ थी जो  इस प्रकार है:
    • पदेन सदस्य: गवर्नर-जनरल और कार्यकारी परिषद के सदस्य।
    • मनोनीत सरकारी सदस्य: सरकारी अधिकारी जिन्हें गवर्नर-जनरल द्वारा नामित किया गया था।
    • मनोनीत गैर-सरकारी सदस्य: ये गवर्नर-जनरल द्वारा नामित थे लेकिन सरकारी अधिकारी नहीं थे।
    • निर्वाचित सदस्य: विभिन्न वर्गों से चुने हुए भारतीय।
      • निर्वाचित सदस्यों को अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाना था।
  • भारतीयों को पहली बार इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल (Imperial Legislative Council) की सदस्यता प्रदान की गई।
  • मुसलमानों हेतु पृथक निर्वाचक मंडल की बात की गई। 
    • कुछ निर्वाचन क्षेत्र मुस्लिमों हेतु निश्चित किये गये जहाँ केवल मुस्लिम समुदाय के लोग  ही अपने प्रतिनिधियों के लिये मतदान कर सकते थे।
  • सत्येंद्र पी. सिन्हा वायसराय की कार्यकारी परिषद में नियुक्त होने वाले पहले भारतीय सदस्य थे।

स्रोत: पी.आई.बी


शासन व्यवस्था

पुडुचेरी के ग्रामीण क्षेत्रों में 100% नल कनेक्शन: JJM

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गोवा, तेलंगाना तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के बाद केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission) के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण घर को नल द्वारा जल आपूर्ति प्रदान करने वाला चौथा राज्य/केंद्रशासित प्रदेश बन गया है।

  • इसके अलावा पंजाब, दादरा और नागर हवेली तथा दमन एवं दीव ने 75% ग्रामीण घरों तक नल द्वारा जल पहुँचाने का कीर्तिमान रचा है।

प्रमुख बिंदु

जल जीवन मिशन :

  • JJM के तहत वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन ( Functional Household Tap Connections- FHTC) के माध्यम से सभी ग्रामीण घरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जलापूर्ति की परिकल्पना की गई है।
  • इसका कार्यान्वयन जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti) के तहत किया जा रहा है। 
  • JJM स्थानीय स्तर पर पानी की एकीकृत मांग और आपूर्ति पक्ष प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • इस मिशन के तहत कृषि में पुन: उपयोग के लिये वर्षा जल संचयन, भू-जल पुनर्भरण और घरेलू अपशिष्ट जल के प्रबंधन हेतु स्थानीय बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर भी ध्यान दिया जाएगा।
  • इसमें शामिल हैं:
    • FHTCs के प्रावधान को गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों, सूखा प्रभावित और रेगिस्तानी क्षेत्रों के गाँवों, तथा सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY) में शामिल गाँवों आदि में प्राथमिकता देना।
    • स्कूलों, आँगनवाड़ी केंद्रों, ग्राम पंचायत भवनों, स्वास्थ्य केंद्रों, कल्याण केंद्रों और सामुदायिक भवनों आदि में नल कनेक्शन प्रदान करना।
    • जहाँ पानी की गुणवत्ता खराब है, वहाँ तकनीकी हस्तक्षेप करना।
  • यह मिशन जल के सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है तथा मिशन के प्रमुख घटक के रूप में व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार शामिल हैं।
  • JJM का प्रयास जल के लिये एक जनांदोलन तैयार करना है, अर्थात् इसके तहत सभी लोगों को प्राथमिकता दी गई है।।
  • केंद्र और राज्यों के बीच वित्त के साझाकरण का पैटर्न हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिये 90:10, अन्य राज्यों के लिये 50:50 और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये 100% है।
  • इस योजना के लिये कुल आवंटन 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। 

जल जीवन मिशन (शहरी):

  • शुरुआत: वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में सतत् विकास लक्ष्य-6 (SDG-6) के अनुसार, सभी शहरों में कार्यात्मक नल के माध्यम से घरों में पानी आपूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज प्रदान कराने हेतु केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत जल जीवन मिशन (शहरी) योजना की घोषणा की गई है।   
  • उद्देश्य:
    • नल और सीवर कनेक्शन तक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • जल निकायों का पुनरुत्थान।
    • चक्रीय जल अर्थव्यवस्था की स्थापना।

स्रोत: पी.आई.बी


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