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डेली न्यूज़

  • 11 May, 2021
  • 37 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रेट निकोबार द्वीप के लिये नीति आयोग की परियोजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक पर्यावरण मूल्यांकन समिति, जिसने ग्रेट निकोबार द्वीप से संबंधित परियोजना पर चिंता व्यक्त की थी, ने अब पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अध्ययनों के लिये इस परियोजना को 'संदर्भ की शर्तों के अनुदान' हेतु अनुशंसित किया है।

  • अगस्त, 2020 में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को ‘मेरीटाइम एंड स्टार्टअप हब’ के रूप में विकसित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

परियोजना के बारे में:

  • इस प्रस्ताव में एक अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल, एक ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक बिजली संयंत्र और 166 वर्ग किलोमीटर में फैला एक टाउनशिप कॉम्प्लेक्स का निर्माण शामिल है। यह निर्माण मुख्य रूप से प्राचीन तटीय प्रणाली और उष्णकटिबंधीय वनों की भूमि पर किया जाएगा।
  • इस पर होने वाला अनुमानित व्यय 75,000 करोड़ रुपए है।

परियोजना से संबंधित मुद्दे:

  • भूकंपीय और सूनामी खतरों, मीठे पानी की आवश्यकता और विशालकाय लेदरबैक कछुओं पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित विवरण का अभाव।
  • वनोन्मूलन से संबंधित विवरण का अभाव- इस परियोजना में 130 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में लाखों की संख्या में पेड़ों को काटा जा सकता है। इस क्षेत्र में भारत के कुछ बेहतरीन उष्णकटिबंधीय वन मौज़ूद हैं।
  • इसके अतिरिक्त इसमें कई अन्य मुद्दे जैसे गैलाथिया खाड़ी, बंदरगाह निर्माण का स्थान और नीति आयोग के प्रस्ताव के केंद्र बिंदु आदि भी शामिल हैं।
    • गैलाथिया की खाड़ी, दुनिया के सबसे बड़े समुद्री कछुए ‘एंजीमेटिक जिआंट टर्टल’ का ‘नेस्टिंग’ स्थल है, यह दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री कछुआ है जो तीन दशकों में किये गए सर्वेक्षणों के माध्यम से खोजा गया है।
    • पिछले कुछ वर्षों में पारिस्थितिक सर्वेक्षणों ने ऐसी कई नई प्रजातियों की सूचना दी है, जो केवल गैलाथिया क्षेत्र तक सीमित हैं।
    • इनमें गंभीर रूप से लुप्तप्राय निकोबार छछूँदर (Nicobar Shrew), ग्रेट निकोबार क्रेक, निकोबार मेंढक, निकोबार कैट स्नेक (Nicobar Cat Snake), एक नया स्किंक (Lipinia Sp), एक नई छिपकली (Dibamus Sp) और लाइकोडोन एसपी (Lycodon Sp) का एक साँप शामिल है।
  • बंदरगाह हेतु साइट का चयन मुख्य रूप से तकनीकी और वित्तीय मानदंडों के आधार पर किया गया है, इसमें पर्यावरणीय पहलुओं की अनदेखी की गई।

समिति द्वारा सूचीबद्ध एक्शन प्लान:

  • तेल रिसाव सहित ड्रेजिंग, पुनर्ग्रहण और बंदरगाह संचालन के प्रभाव पर अध्ययन के साथ-साथ स्थलीय और समुद्री जैव विविधता के स्वतंत्र मूल्यांकन की आवश्यकता है।
  • पर्यावरण और पारिस्थितिकी प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करने के लिये बंदरगाह हेतु वैकल्पिक साइटों के अध्ययन की आवश्यकता के साथ विशेष रूप से लेदरबैक कछुओं पर आने वाले जोखिम से निपटने की क्षमताओं के विश्लेषण की भी आवश्यकता है।
  • भूवैज्ञानिक अध्ययन और सतही जल पर परियोजना के प्रभाव का आकलन करने के लिये एक भूकंपीय और सूनामी खतरा मानचित्र, एक आपदा प्रबंधन योजना, श्रम का विवरण, श्रम शिविरों और इसके संचयी प्रभाव के आकलन की आवश्यकता है।

Andaman-Nicobar-Islands

ग्रेट निकोबार:

  • ग्रेट निकोबार ‘निकोबार द्वीप समूह’ का सबसे दक्षिणी द्वीप है।
  • इसमें 1,03,870 हेक्टेयर के अद्वितीय और संकटग्रस्त उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।
  • यह एक बहुत ही समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें एंजियोस्पर्म, फर्न, जिम्नोस्पर्म, ब्रायोफाइट्स की 650 प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • जीवों के संदर्भ में बात करें तो यहाँ 1800 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जिनमें से कुछ इस क्षेत्र की स्थानिक प्रजातियाँ भी हैं।

पारिस्थितिकी विशेषताएँ:

  • ग्रेट निकोबार बायोस्फीयर रिज़र्व, उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदाबहार वनों, पर्वत शृंखलाओं और समुद्र तल से 642 मीटर (माउंट थ्यूलियर) की ऊँचाई वाले पारिस्थितिक तंत्रों की एक विस्तृत शृंखला है।

जनजाति:

  • मंगोलोइड शोम्पेन जनजाति, जिसमें लगभग 200 सदस्य हैं, विशेष रूप से नदियों और नदी धाराओं के किनारे जैवमंडल रिज़र्व के वनों में पाई जाती है।
    • वे शिकार और भोजन के लिये तथा अपनी जीविका हेतु वन और समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं।
  • एक अन्य मंगोलोइड जनजाति, निकोबारी में लगभग 300 सदस्य थे और ये पश्चिमी तट के किनारे बस्तियों में निवास करती थी।
    • वर्ष 2004 में आई सुनामी, जिसने पश्चिमी तट पर बनी बस्ती को तबाह कर दिया, के बाद उन्हें उत्तरी तट और कैम्पबेल बे में अफरा खाड़ी में स्थानांतरित कर दिया गया।

स्रोत- द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

तीसरी आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय बैठक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने ‘तीसरी आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय’ (ASM) बैठक में भाग लिया और आर्कटिक क्षेत्र में अनुसंधान कार्य और सहयोग के लिये दीर्घकालिक योजनाओं को भी साझा किया है।

  • पहली दो बैठकों- ASM1 और ASM2 का आयोजन क्रमश: वर्ष 2016 (अमेरिका) और वर्ष 2018 (जर्मनी) में किया गया था। 

आर्कटिक क्षेत्र:

  • आर्कटिक क्षेत्र के अंतर्गत आर्कटिक महासागर और कुछ विशिष्ट हिस्से, जैसे- अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, डेनमार्क (ग्रीनलैंड), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को शामिल किया जाता है।
  • ये देश एक साथ मिलकर आर्कटिक काउंसिल नामक एक अंतर-सरकारी फोरम का निर्माण करते हैं।
    • मुख्यालय: नॉर्वे 

Arctic-Regions

प्रमुख बिंदु 

तीसरी आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय बैठक:

  • आयोजक देश : इसका आयोजन आइसलैंड और जापान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
    • यह एशिया (टोक्यो, जापान) में आयोजित की जाने वाली पहली आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय बैठक है ।
  • उद्देश्य:  इस बैठक का आयोजन आर्कटिक क्षेत्र के बारे में सामूहिक समझ को बढ़ाने के साथ-साथ इसकी निरंतर निगरानी पर ज़ोर देते हुए शिक्षाविदों, स्थानीय समुदायों, सरकारों और नीति निर्माताओं सहित विभिन्न हितधारकों को इस दिशा में अवसर प्रदान करने के लिये किया गया है।
  • थीम (Theme): ‘संवहनीय आर्कटिक के लिये जानकारी’ (Knowledge for a Sustainable Arctic) 

भारत का रूख:

  • भारत ने आर्कटिक में, ‘इन-सीटू’ (in-situ) और ‘रिमोट सेंसिंग’, दोनों प्रकार की अवलोकन प्रणालियों में योगदान दिया है।
  • भारत महासागरीय सतही गतिविधियों और समुद्री मौसम संबंधी मापदंडों की दीर्घकालिक निगरानी के लिये आर्कटिक महासागर में स्थित खुले सागर में नौबंध (Mooring) की तैनाती करेगा।
  • भारत द्वारा अमेरिका (USA) के सहयोग से ‘NISAR’ (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) उपग्रह मिशन का शुभारंभ किया जा रहा है। 
  • सतत् आर्कटिक निगरानी नेटवर्क (Sustained Arctic Observational Network– SAON) में भारत का योगदान जारी रहेगा। 

नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR)

  • निसार (NISAR) अपने तीन-वर्षीय मिशन के दौरान प्रत्येक 12 दिनों में पृथ्वी की सतह का चक्कर लगाकर पृथ्वी की सतह, बर्फ की चादर, समुद्री बर्फ के दृश्यों का चित्रण करेगा, ताकि ग्रह का एक अभूतपूर्व दृश्य मिल सके और बेहतर तरीके से समझा जा सके।
  • इसका उद्देश्य उन्नत रडार इमेजिंग की मदद से पृथ्वी की सतह के परिवर्तन के कारणों और परिणामों का वैश्विक मापन करना है। 

सतत् आर्कटिक निगरानी नेटवर्क (SAON) 

    • यह अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक विज्ञान समिति (IASC) और आर्कटिक परिषद की एक संयुक्त गतिविधि है।
      • IASC एक गैर-सरकारी, अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन है।
    • इसका उद्देश्य सतत् और समन्वित संपूर्ण-आर्कटिक अवलोकन और डेटा साझाकरण प्रणालियों के लिये बहुराष्ट्रीय समझौते के विकास हेतु समर्थन को और मज़बूत करना है।

    आर्कटिक में भारत की उपस्थिति :

    • आर्कटिक क्षेत्र में भारत की उपस्थिति वर्ष 1920 में पेरिस की स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर के साथ शुरू हुई थी।
    • भारत ने वर्ष 2008 में आर्कटिक क्षेत्र में एक स्थायी अनुसंधान स्टेशन का निर्माण किया। इसे ‘हिमाद्री’ कहा जाता है। हिमाद्री नॉर्वे के स्वालबार्ड क्षेत्र के न्यालेसुंड में स्थित है।
    • भारत को वर्ष 2013 में आर्कटिक परिषद में ‘पर्यवेक्षक’ देश का दर्जा प्रदान किया गया तथा वर्तमान में चीन सहित विश्व के कुल 13 देशों को ‘पर्यवेक्षक’ का दर्जा प्राप्त है। वर्ष 2018 में भारत के ‘पर्यवेक्षक’ दर्जे का नवीनीकरण किया गया था।
    • भारत द्वारा, जुलाई 2014 से कांग्सजॉर्डन फोर्ड (Kongsfjorden fjord) में इंडआर्क (IndARC) नामक एक बहु-संवेदक यथास्थान वेधशाला (Multi-Sensor Moored Observatory) भी तैनात की गई।
    • आर्कटिक क्षेत्र में भारत के अनुसंधान कार्यों का समन्वयन, संचालन और प्रचार-प्रसार भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत गोवा स्थित ‘राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र’ (NCPOR) द्वारा किया जाता है।
    • हाल ही में भारत ने एक नया आर्कटिक नीति मसौदा भी तैयार किया है, जिसका उद्देश्य आर्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान, स्थायी पर्यटन और खनिज तेल एवं गैस की खोज को बढ़ावा देना है।

    भारत के लिये आर्कटिक अध्ययन का महत्त्व:

    • यद्यपि भारत का कोई भी क्षेत्र सीधे आर्कटिक क्षेत्र में नहीं आता है, किंतु यह एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि आर्कटिक पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के वायुमंडलीय, समुद्र संबंधी और जैव-रासायनिक चक्रों को प्रभावित करता है।
    • आर्कटिक क्षेत्र मे बढ़ती गर्मी और इसकी बर्फ पिघलना वैश्विक चिंता का विषय है, क्योंकि यह जलवायु, समुद्र के स्तर को विनियमित करने और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
    • इसके अलावा, आर्कटिक और हिंद महासागर (जो भारतीय मानसून को नियंत्रित करता है) के बीच करीब संबंध होने के प्रमाण हैं। इसलिये, भौतिक प्रक्रियाओं की समझ में सुधार करना और भारतीय गर्मियों के मानसून पर आर्कटिक बर्फ के पिघलने के प्रभाव को कम करने की दिशा में यह महत्त्वपूर्ण है।

    स्रोत- पी.आई.बी.


    अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    भारत-यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने भारत-यूरोपीय संघ नेताओं की बैठक (India-European Union Leaders’ Meeting) में भाग लिया।

    • इस बैठक का आयोजन सभी 27 यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं के साथ-साथ यूरोपीय परिषद और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष की भागीदारी के साथ किया गया था।
    • यह पहली बार है जब यूरोपीय संघ ने भारत के साथ यूरोपीय संघ+27 प्रारूप में एक बैठक का आयोजन किया है।
      • इस बैठक का आयोजन यूरोपीय संघ परिषद के वर्तमान अध्यक्ष पुर्तगाल के प्रधानमंत्री की पहल पर किया गया।

    European-Union

    प्रमुख बिंदु

    मुक्त व्यापार वार्ता:

    • इस बैठक में द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (Bilateral Trade and Investment Agreement- BTIA) पर निलंबित वार्ता को फिर से शुरू करके मुक्त व्यापार वार्ता को पुनः शुरू करने के लिये सहमति व्यक्त की गई।
    • भारत और यूरोपीय संघ ने व्यापक रूप से मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) पर वार्ता की गई, जिसे आधिकारिक तौर पर वर्ष 2007 में व्यापक BTIA कहा गया था।
      • BTIA ने व्यापार में माल, सेवाओं और निवेश को शामिल करने का प्रस्ताव किया था।
      • हालाँकि वर्ष 2013 में बाज़ार तक पहुँच और पेशेवरों की आवाजाही के अंतर को लेकर वार्ता रुक गई थी।
      • यूरोपीय संघ, भारत का वर्ष 2019-20 में वस्तुओं का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
    • यूरोपीय संघ वर्ष 2019-20 में चीन और अमेरिका की तुलना में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। इस अवधि में दोनों पक्षों के बीच कुल व्यापार 90 बिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब था।

    कनेक्टिविटी भागीदारी:

    • भारत और यूरोपीय संघ ने डिजिटल, ऊर्जा, परिवहन और लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने पर केंद्रित एक महत्त्वाकांक्षी और व्यापक संपर्क साझेदारी का भी शुभारंभ किया।
      • यह साझेदारी सामाजिक, आर्थिक, राजकोषीय, जलवायु और पर्यावरणीय स्थिरता तथा अंतरराष्ट्रीय कानून एवं प्रतिबद्धताओं के सम्मान के साझा सिद्धांतों पर आधारित है।
      • यह साझेदारी संपर्क परियोजनाओं के लिये निजी और सार्वजनिक वित्त पोषण को प्रोत्साहन देगी। यह भारत-प्रशांत सहित अन्य देशों में संपर्क पहल का समर्थन करने हेतु नए संबंधों को बढ़ावा देगी।
    • पुणे मेट्रो रेल परियोजना के लिये यूरोपीय संघ से 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्त अनुबंध पर भी हस्ताक्षर किये गए।

    जलवायु परिवर्तन:

    • भारत और यूरोपीय संघ के नेताओं ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के शमन, अनुकूलन तथा लचीलेपन के संयुक्त प्रयासों को और दृढ़ बनाने के साथ-साथ COP-26 के संदर्भ में वित्तपोषण सहित कार्यान्वयन के साधन प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की।

    प्रौद्योगिकी:

    • भारत और यूरोपीय संघ ने डिजिटल तथा उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे- 5जी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग पर द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिये भी सहमति व्यक्त की, जिसमें एआई एवं डिजिटल निवेश फोरम पर संयुक्त कार्यबल का प्रारंभिक परिचालन शामिल है।

    साझेदारी का सुदृढ़ीकरण:

    • इस बैठक के दौरान लोकतंत्र, मौलिक स्वतंत्रता, कानून के अनुरूप शासन और बहुपक्षवाद के लिये एक साझा प्रतिबद्धता के आधार पर भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत बनाने की इच्छा व्यक्त की गई।
    • भारत ने दूसरी कोविड लहर का मुकाबला करने के लिये यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देशों द्वारा प्रदान की गई त्वरित सहायता की सराहना की।
    • भारत ने विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) में वैक्सीन उत्पादन से संबंधित पेटेंट परट्रेड रिलेटेड आस्पेक्ट्स ऑफ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स’ (Trade Related Aspects of Intellectual Property- TRIPS) में छूट देने के लिये दक्षिण अफ्रीका के साथ अपने संयुक्त प्रस्ताव पर यूरोपीय संघ के समर्थन का भी अनुरोध किया।
      • अमेरिका ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। हालाँकि भारत यूरोपीय नेताओं का समर्थन पाने में विफल रहा।

    आगे की राह

    • भारत-यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक ने सामरिक भागीदारी को एक नई दिशा प्रदान करते हुए जुलाई 2020 में आयोजित 15वें भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन में अपनाए गए महत्त्वाकांक्षी भारत-यूरोपीय संघ प्रारूप वर्ष 2025 को लागू करने हेतु एक नई प्रेरणा के साथ इस मामले में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया है।
    • दोनों पक्षों के बीच एक ऐसे व्यापक व्यापार समझौते की आवश्यकता है जो मज़बूत नियमों को लाता है, वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार तथा निवेश की बाधाओं को दूर करता है। पारस्परिक विश्वास, लोगों के आवागमन और कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाने से आपसी रिश्तों में सुधार हो सकता है तथा नवाचार एवं विकास के अवसर पैदा हो सकते हैं।
    • यूरोपीय संघ और भारत के बीच उन्नत व्यापारिक सहयोग से इनकी रणनीतिक मूल्य शृखलाओं में विविधता आ सकती है और इनकी आर्थिक निर्भरता विशेष रूप से चीन पर कम हो सकती है।

    स्रोत: पी.आई.बी.


    जैव विविधता और पर्यावरण

    काज़ीरंगा एनिमल कॉरिडोर

    चर्चा में क्यों?

    काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिज़र्व के पारिस्थितिक-संवेदनशील क्षेत्र के भीतर कम से कम तीन एनिमल कॉरिडोर पर वन भूमि, खुदाई और निर्माण गतिविधियों की मंज़ूरी से संबंधित मुद्दे सामने आए हैं।

    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2019 के एक आदेश में कहा था कि "नौ संसूचित एनिमल कॉरिडोर के क्षेत्रों में निजी भूमि पर किसी भी नए निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी।"

    प्रमुख बिंदु 

    एनिमल कॉरिडोर के बारे में:

    • वन्यजीव या एनिमल कॉरिडोर का अभिप्राय पशुओं हेतु दो पृथक निवास स्थानों के बीच सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करना
    • वन्य जीवन के संदर्भ में, गलियारे या कॉरिडोर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: कार्यात्मक और संरचनात्मक।
      • कार्यात्मक गलियारे पशुओं के दृष्टिकोण से कार्यक्षमता के संदर्भ में परिभाषित किये जाते हैं (मूल रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ वन्यजीवों की आवाज़ाही दर्ज की गई है)।
      • संरचनात्मक गलियारे, नाच्छादित क्षेत्रों में निर्मित संरेखित पट्टियों को कहते हैं और ये संरचनात्मक परिदृश्य रूप से अन्य खंडित भागों को जोड़ते हैं।
    • जब संरचनात्मक गलियारे मानवजनित गतिविधियों से प्रभावित होते हैं, तो कार्यात्मक गलियारे पशुओं की आवाज़ाही के कारण स्वचालित रूप से विस्तृत हो जाते हैं।

    काज़ीरंगा एनिमल कॉरिडोर :

    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक विशेष समिति ने अपनी रिपोर्ट में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (KNP) में नौ पशु गलियारों के परिसीमन की सिफारिश की थी। नौ संसूचित पशु गलियारे हैं:
      • असम के नागाँव ज़िले में अमगुरी, बागोरी, चिरांग, देवसूर, हरमाती, हाटीडंडी एवं कंचनजुरी तथा गोलाघाट ज़िलों में हल्दीबाड़ी और पनबारी गलियारे स्थित है।
      • पहले से स्थित नौ गलियारे कार्यात्मक गलियारों के रूप में व्यवहार करते हैं, लेकिन नई सिफारिश के अनुसार, अब ये गलियारे आवश्यकता के आधार पर संरचनात्मक और कार्यात्मक दोनों के रूप में कार्य करेंगे।
    • रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि संरचनात्मक गलियारों को वानिकी और वन्यजीव प्रबंधन प्रयासों को छोड़कर सभी मानव-जनित गतिविधियों (गड़बड़ियों) से मुक्त किया जाना चाहिये।
      • दूसरी ओर, कार्यात्मक गलियारे ( जब संरचनात्मक गलियारों में विसंगति उत्पन्न होती है तो वह महत्वपूर्ण हो सकते हैं), भूमि उपयोग में परिवर्तन पर रोक लगाने के साथ-साथ बहु-उपयोग को विनियमित कर सकते हैं।
    • एनिमल कॉरिडोर का महत्त्व:
      • ये गलियारे विभिन्न पशुओं जैसे:-गैंडा, हाथी, बाघ, हिरण और अन्य जानवरों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो मानसून अवधि के दौरान काज़ीरंगा के बाढ़ वाले क्षेत्रों से निकलकर कार्बी आंगलोंग ज़िले की पहाड़ियों के सुरक्षित मार्गो से होते हुए राजमार्ग क्षेत्रों से दूर स्थित टाइगर रिज़र्व की दक्षिणी सीमा क्षेत्रों में निवास करते हैं।
      • मानसून अवधि समाप्त होने के बाद, ये सभी जानवर घास के मैदानों में वापस आ जाते हैं।

    Asom

    काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एवं टाइगर रिज़र्व:

    • यह असम राज्य में स्थित है और 42,996 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है।  
    • यह ब्रह्मपुत्र घाटी के बाढ़ मैदानों में सबसे बड़ा अविभाजित और प्रतिनिधि क्षेत्र है।
    • इस उद्यान को वर्ष 1974 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
    • इसे वर्ष 2007 में बाघ आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया।
    • इसे वर्ष 1985 में यूनेस्को की विश्व धरोहर घोषित किया गया था।
    • इसे बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है।
    • विश्व में सर्वाधिक एक सींग वाले गैंडे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ही पाए जाते हैं ।
      • गैंडो की संख्या में असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के बाद पोबितोरा (Pobitora) वन्यजीव अभयारण्य का दूसरा स्थान है जबकि पोबितोरा अभयारण्य विश्व में गैंडों की उच्चतम जनसंख्या घनत्व वाला अभयारण्य है।
    • इस उद्यान क्षेत्र से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-37 गुजरता है।
    • उद्यान में लगभग 250 से अधिक मौसमी जल निकाय (Water Bodies) हैं, इसके अलावा डिपहोलू नदी (Dipholu River ) इससे होकर गुजरती है।

    असम में स्थित अन्य राष्ट्रीय उद्यान:

    • डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान,
    • मानस राष्ट्रीय उद्यान
    • नामेरी राष्ट्रीय उद्यान
    • राजीव गांधी ओरंग राष्ट्रीय उद्यान

    स्रोत- द हिंदू


    शासन व्यवस्था

    विचलन बाद राजस्व घाटा

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में वित्त मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 के लिये 17 राज्यों को 9,871 करोड़ रुपए के विचलन बाद राजस्व घाटा (Post Devolution Revenue Deficit- PDRD) अनुदान की दूसरी मासिक किस्त जारी की है।

    प्रमुख बिंदु

    विचलन बाद राजस्व घाटा:

    • केंद्र सरकार, संविधान के अनुच्छेद-275 के तहत राज्यों को विचलन बाद राजस्व घाटा अनुदान प्रदान करती है।
    • ये अनुदान राज्यों के विचलन के अंतर को पूरा करने के लिये मासिक किस्तों में वित्त आयोग (Finance Commission) की सिफारिशों के अनुसार जारी किये जाते हैं।
    • 15वें वित्त आयोग ने पाँच वर्ष (वित्तीय वर्ष 2026 तक) की अवधि के लिये लगभग 3 ट्रिलियन की राशि के अनुदान की सिफारिश की है।
      • वित्त वर्ष 2022 में राजस्व घाटा अनुदान के लिये अर्हता प्राप्त करने वाले राज्यों की संख्या 17 है, लेकिन वित्त वर्ष 2026 तक इसमें केवल 6 राज्य ही शेष बचेंगे।
      • इस अनुदान को प्राप्त करने की राज्यों की पात्रता और अनुदान की मात्रा का निर्धारण आयोग द्वारा राज्य के राजस्व तथा व्यय के मूल्यांकन के अंतर के आधार पर किया गया था।
    • PDRD अनुदान के लिये अनुशंसित राज्य:
      • पाँच वर्ष की अवधि के लिये आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल को अनुदान दिये जाने इ सिफारिश की गई है, जिसे वित्त मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया है।

    संविधान का अनुच्छेद-275:

    • यह अनुच्छेद संसद को इस बात का अधिकार प्रदान करता है कि वह ऐसे राज्यों को उपयुक्त सहायक अनुदान देने का उपबंध कर सकती है, जिन्हें संसद की दृष्टि में सहायता की आवश्यकता है।
    • इस अनुदान को प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से भुगतान किया जाता है और विभिन्न राज्यों के लिये अलग-अलग रकम तय की जा सकती है।
    • ये अनुदान पूंजी और आवर्ती रकम के रूप में हो सकते हैं।
    • इन अनुदानों का उद्देश्य उस राज्य की विकास संबंधी ऐसी योजनाओं की लागतों को पूरा करना है, जो राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण या अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार की सहायता से लागू हैं।
    • ये अनुदान मुख्य रूप से वित्तीय संसाधनों में अंतर-राज्य की असमानताओं को समाप्त करने और राष्ट्रीय स्तर पर राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं के एक समान रखरखाव तथा विस्तार के समन्वय हेतु दिये जाते हैं।

    राजस्व खाता और पूंजी खाता

    • राजस्व खाते (Revenue Account) में सभी राजस्व प्राप्तियाँ शामिल होती हैं, जिन्हें सरकार की वर्तमान प्राप्तियों के रूप में भी जाना जाता है। इन प्राप्तियों में कर राजस्व और सरकार के अन्य राजस्व शामिल होते हैं।
    • पूंजी खाते (Capital Account) में पूंजीगत प्राप्तियाँ और भुगतान को शामिल किया जाता है। इसमें मूल रूप से संपत्ति के साथ-साथ सरकार की देनदारियाँ भी शामिल होती हैं। पूंजीगत प्राप्तियों में विभिन्न माध्यमों से सरकारों द्वारा लिये गए ऋण या पूंजी शामिल होते हैं।

    केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध

    संवैधानिक प्रावधान:

    • भारतीय संविधान में गैर-कर राजस्व के साथ-साथ करों के वितरण और ऋण लेने की शक्ति से संबंधित विस्तृत प्रावधान किये गए हैं, इसके अलावा संघ द्वारा राज्यों को अनुदान सहायता प्रदान करने से संबंधित पूरक प्रावधान भी किये गए हैं।
    • संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 तक केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों पर चर्चा की गई है।

    कराधान शक्तियाँ: संविधान ने  केंद्र व राज्यों के बीच कराधान शक्तियों का आवंटन निम्न प्रकार से किया है: 

    • संघ सूची में सूचीबद्ध विषयों के बारे में कर निर्धारण का अधिकार संसद के पास है, जबकि राज्य सूची के संदर्भ में कर निर्धारण का विशेष अधिकार राज्य विधानमंडल के पास है।
    • समवर्ती सूची के संदर्भ में कर निर्धारण का अधिकार संसद व राज्य विधानमंडल दोनों के पास है, लेकिन कर निर्धारण की अवशिष्ट शक्ति केवल संसद में निहित है।

    कर राजस्व का वितरण:

    • केंद्र द्वारा उद्वगृहीत और राज्यों द्वारा संगृहीत एवं विनियोजित कर (अनुच्छेद 268): 
      • इसमें विनमय पत्रों, चेकों आदि पर लगने वाला स्टाम्प शुल्क शामिल है।
    • केंद्र द्वारा उद्गृहीत एवं संगृहीत किंतु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर (अनुच्छेद 269)
      • इसमें अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य में वस्तुओं के क्रय-विक्रय से संबंधित कर (समाचार-पत्र को छोड़कर) तथा माल या सामान के अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के पारेषण से संबंधित कर शामिल हैं।
    • अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के पारेषण में माल और सेवाओं पर कर का आरोपण तथा  संग्रहण (अनुच्छेद 269-A): 
      • अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान पूर्ति पर लगने वाला वस्तु एवं सेवा कर (GST) भारत सरकार द्वारा उद्गृहीत एवं संग्रहीत किये जाएंगे।
      • लेकिन केंद्र तथा राज्यों के बीच इस कर का विभाजन GST परिषद की सिफारिशों के आधार पर संसद द्वारा निर्धारित रीति से किया जाएगा।
    • केंद्र द्वारा उद्गृहीत एवं संगृहीत किंतु संघ तथा राज्यों के बीच वितरण वाले कर (अनुच्छेद 270)
      • इस श्रेणी में संघ सूची में उल्लिखित सभी कर और शुल्क आते हैं:
        • संविधान के अनुच्छेद 268, 269 तथा 269-A में उल्लिखित कर।
        • संविधान के अनुच्छेद 271 में उल्लिखित कर पर अधिभार (यह विशेष रूप से केंद्र के पास जाता है)।
        • किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिये लगाया गया कोई उपकर (Cess)।

    सहायतार्थ अनुदान (Grants-in-Aid): केंद्र व राज्यों के बीच करों के साझाकरण के अलावा संविधान में राज्यों को केंद्र से सहायतार्थ अनुदान का भी प्रावधान किया गया है। अनुदान दो प्रकार के होते हैं:

    • विधिक अनुदान (Statutory Grants) (अनुच्छेद 275): संसद द्वारा भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से यह अनुदान उन राज्यों को दिया जाता है, जिन्हें सहायता की आवश्यकता होती है। अलग-अलग राज्यों के लिये सहायता राशि भी भिन्न-भिन्न निर्धारित की जा सकती है। 
      • राज्यों में जनजातियों के उत्थान एवं कल्याण तथा अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासनिक विकास के लिये विशेष अनुदान भी दिये जाते हैं।
    • विवेकाधीन अनुदान (Discretionary Grants) (अनुच्छेद 282): यह संघ एवं राज्य दोनों को इस बात का अधिकार देता है कि वे किसी भी लोक प्रयोजन के लिये अनुदान आवंटित कर सकते हैं भले ही यह उनकी संबंधित विधायी क्षमता तहत न आता हो।
      • इस प्रावधान के तहत केंद्र राज्यों को अनुदान प्रदान करता है। इन अनुदानों को विवेकाधीन अनुदान कहा जाता है, क्योंकि केंद्र राज्यों को इस प्रकार का अनुदान देने के लिये बाध्य नहीं है और यह पूर्णतया उसके स्वविवेक पर निर्भर करता है।
      • इन अनुदानों के दो उद्देश्य होते हैं- योजनागत लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु राज्यों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना तथा राष्ट्रीय योजना के लिये राज्यों को प्रभावित करना। 

    स्रोत: द हिंदू


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