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डेली न्यूज़

  • 13 May, 2021
  • 37 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चौथी भारत-स्विस वित्तीय वार्ता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चौथी भारत-स्विस वित्तीय वार्ता का आयोजन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किया गया।

Switzerland

प्रमुख बिंदु:

वार्ता की मुख्य विशेषताएँ:

भारत-स्विट्ज़रलैंड संबंध:

  • राजनैतिक संबंध:
    • वर्ष 1948 में नई दिल्ली में भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति और स्विटजरलैंड की तटस्थता की पारंपरिक नीति ने दोनों देशों के बीच घनिष्ठता को बढ़ावा दिया है।
  • आर्थिक संबंध:
    • भारत-स्विट्जरलैंड द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) पर बातचीत चल रही है।
    • भारत-ईएफटीए व्यापार और आर्थिक भागीदारी समझौते (TEPA) पर भी बातचीत जारी है।
      • यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्ज़रलैंड का अंतर-सरकारी संगठन है।
      • ये देश यूरोपीय संघ (EU) का हिस्सा नहीं हैं, जिसके साथ भारत एक अलग व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है जिसे भारत-यूरोपीय संघ आधारित व्यापार और निवेश समझौता कहा जाता है।
  • अन्य क्षेत्रों में सहयोग:
    • एक ‘इंडो-स्विस ज्वाइंट रिसर्च प्रोग्राम’ (ISJRP) वर्ष 2005 में शुरू किया गया था।
    • कौशल प्रशिक्षण: दोनों देशों के कई संस्थानों ने भारत में कौशल प्रशिक्षण के उच्चतम मानकों को लागू करने के लिये सहयोग किया है। जैसे:
      • भारतीय कौशल विकास परिसर और विश्वविद्यालय, जयपुर।
      • इंडो-स्विस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, पुणे।
      • वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर, आंध्र प्रदेश।
    • निम्न कार्बन और जलवायु अनुकूल शहरों के विकास हेतु क्षमता निर्माण (CapaCITIES):
      • ‘स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन’ (SDC) भारतीय शहरों में CapaCITIES परियोजना के कार्यान्वयन का समर्थन कर रहा है।
      • CapaCITIES परियोजना का उद्देश्य भारतीय शहरों की क्षमताओं को मज़बूत करना, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये उपायों की पहचान करना, योजना बनाना और एकीकृत तरीके से वर्तमान स्थितियों को जलवायु परिवर्तन हेतु अनुकूल बनाना है।

स्रोत-पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

बायोडिग्रेडेबल योगा मैट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम के मछुआरे समुदाय की छह युवा लड़कियों ने एक बायोडिग्रेडेबल और कम्पोस्टेबल योगा मैट (Biodegradable and Compostable Yoga Mat) विकसित किया है जिसे 'मूरहेन योगा मैट' (Moorhen Yoga Mat) कहा जाता है।

प्रमुख बिंदु

बायोडिग्रेडेबल योगा मैट के विषय में:

  • 'मूरहेन योगा मैट' का नाम काम सोराई (Kam Sorai- दीपोर बील वन्यजीव अभयारण्य में पाए जाने वाला पक्षी पर्पल मूरहेन) के नाम पर रखा गया है।
  • यह हाथ से बुनी हुई 100% बायोडिग्रेडेबल (Biodegradable) और जलकुंभी (Water Hyacinth) से विकसित 100% कम्पोस्टेबल (Compostable) मैट है।
  • यह मैट जलकुंभी को हटाकर दलदली भूमि (दीपोर बील) के जलीय इकोसिस्टम में सुधार ला सकती है, सामुदायिक भागीदारी के ज़रिये उपयोगी उत्पादों के उत्पादन में सहायता कर सकती है और स्थानीय समुदायों के लिये आजीविका के अवसर पैदा कर सकती है।

जलकुंभी:

  • जलकुंभी एक प्रकार का तैरता आक्रामक खरपतवार है जो पूरे विश्व के जल निकायों में पाया जाता है।
  • यह जल प्रणालियों में सूर्य की रोशनी और ऑक्सीजन के स्तर को अवरुद्ध करता है, जिसके परिणामस्वरूप जल की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचता है। इस प्रकार जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रहने वाले विभिन्न जीवों का जीवन गंभीर रूप से प्रभावित हो जाता है।
  • इसे बंगाल के आतंक के रूप में भी जाना जाता है, जिसका प्रभाव स्थानीय पारिस्थितिकी और लोगों के जीवन पर पड़ता है।
  • यह सिंचाई, पनबिजली उत्पादन और नेविगेशन पर प्रभाव डालता है।
  • यह मछली उत्पादन, जलीय फसलों के उत्पादन में कमी और मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियों में वृद्धि को बढ़ावा देता है।

दीपोर बील:

  • दीपोर बील (बील का अर्थ है असम में वेटलैंड या बड़ी जलीय निकाय) गुवाहाटी शहर से लगभग 10 किमी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इसे असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में स्थित बड़े और महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमि में से एक माना जाता है।
  • दीपोर बील का गुवाहाटी शहर के लिये प्रमुख जल भंडारण बेसिन होने के अलावा जैविक और पर्यावरणीय महत्त्व भी है।
  • यह भारत में प्रवासी पक्षियों का एक प्रमुख स्थल है, जहाँ सर्दियों के दौरान जलीय पक्षियों की बड़ी संख्या इकठ्ठा होती है।
  •  दीपोर बील को एवियन जीवों की प्रचुरता के कारण बर्डलाइफ इंटरनेशनल (Birdlife International) द्वारा महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (Important Bird Area) साइट्स में से एक के रूप में चुना गया है।
  • दीपोर बील को नवंबर 2002 में रामसर साइट (Ramsar Site) के रूप में भी नामित किया गया है।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

बीमा बांँस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (Tamil Nadu Agricultural University-TNAU) के कोयंबटूर परिसर में बीमा बांँस (Beema Bamboo) से एक  'ऑक्सीजन पार्क' (Oxygen Park) का निर्माण किया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

बीमा बांँस के बारे में:

  • बीमा या भीमा बाँस (Beema or Bheema Bamboo) एक उच्च क्लोन (Superior Clone) है, जिसे बंबूसा बालकोआ (Bambusa Balcooa) जो कि बाँस की एक उच्च  उपज देने वाली प्रजाति है, से प्राप्त किया गया है। बाँस के इस क्लोन को पारंपरिक प्रजनन विधि (Conventional Breeding Method) द्वारा विकसित किया गया है।
  • इस प्रजाति को सर्वाधिक तीव्र गति से विकसित होने वाले पौधों में से एक माना जाता है। यह उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों (Tropical Conditions) में प्रतिदिन डेढ़ फीट बढ़ता है।
  • इसे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (Carbon Dioxide Emissions) को कम करने हेतु सबसे अच्छा ‘कार्बन सिंक’ (Carbon Sink) माना जाता है।

बंबूसा बालकोआ:

  • बंबूसा बालकोआ एक बहुत बड़े तथा मोटे आवरण वाला गुच्छेदार बाँस (Clumping Bamboo) है, जो 25 मीटर की ऊँचाई और 150 मिलीमीटर की मोटाई तक बढ़ता है।
  • बंबूसा बालकोआ की लंबाई और मज़बूती इसे उद्योगों हेतु एक उपयोगी सामग्री बनाती है।
  • यह कम वर्षा में उत्पन्न होने वाली एक सूखा प्रतिरोधी प्रजाति (Drought-Resistant Species) है जो प्रति हेक्टेयर 100 मीट्रिक टन से अधिक पैदावार देती है।

महत्त्व:

  • स्थायी हरित आवरण:
    • बांँस एक स्टराइल पौधा (Sterile plant) है, अर्थात् इससे बीज का उत्पादन नहीं होता है तथा यह कई सौ वर्षों तक जीवित रहता है तथा वृद्धि करता है। नतीजतन, बांँस की यह प्रजाति विशेष रूप से स्थायी हरित आवरण निर्मित करने में सक्षम है।
  • लंबे समय तक पुनः रोपण की आवश्यकता नहीं:
    • चूंँकि बांँस के पौधे को टिशू कल्चर के माध्यम से तैयार किया जाता है  इस कारण इसका कल्म  (बांँस का तना) ठोस हो जाता है जो स्वयं को विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल विकसित करता है। प्रत्येक फसल चक्र के बाद यह फिर से बढ़ता है और दशकों तक इसके पुनः रोपण की आवश्यकता नहीं होती है।
      • विशेष रूप से पुष्प आने के समय घास या अनाज के पौधे का तना/कल्म खोखला होता है।
    • ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक: इसके प्रकंद और जड़ इसे मज़बूती प्रदान करते हैं, इस कारण बांँस का पौधा प्राकृतिक आपदाओं का मज़बूती से सामना करने में सक्षम होता है तथा ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • विविध उपयोग:
    • बांँस का कैलोरी मान कोयले के बराबर होता है। सीमेंट उद्योग में बांँस की प्रजाति का उपयोग बॉयलरों हेतु किया जाता है। कपड़ा उद्योग में कपड़े और वस्त्र बनाने हेतु बांँस के फाइबर का उपयोग किया जाता है।
    • विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Visvesvaraya National Institute of Technology- VNIT) नागपुर के विशेषज्ञ ‘बीमा’ बाँस और कॉयर (नारियल की जटा) से बने क्रैश बैरियर के डिज़ाइन पर काम कर रहे हैं।

बांँस से संबंधित सरकारी पहल:

बाँस क्लस्टर्स:

  • हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री द्वारा 9 राज्यों (मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, नगालैंड, त्रिपुरा, ओडिशा, गुजरात, उत्तराखंड व महाराष्ट्र) के 22 बाँस क्लस्टर्स की शुरुआत की गई।

राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM):

  • बांँस क्षेत्र के संपूर्ण मूल्य शृंखला  के समग्र विकास हेतु वर्ष 2018-19 में पुनर्गठित NBM का शुभारंभ किया गया और इसे हब और स्पोक मॉडल (Spoke Model) में लागू किया जा रहा है।
  • इसका उद्देश्य किसानों को बाज़ारों से जोड़ना है ताकि किसान द्वारा  उगाए जाने वाले बांँस को तैयार बाज़ार मिल सके और घरेलू उद्योग को उचित कच्चे माल की आपूर्ति बढ़ाई जा सके।
  • बांँस को वृक्ष की श्रेणी से हटाना: 
    • वर्ष 2017 में बांँस को वृक्ष की श्रेणी से हटाने हेतु भारतीय वन अधिनियम 1927 में संशोधन किया गया था।
      • परिणामस्वरूप कोई भी बांँस की खेती और व्यवसाय कर सकता है और इसकी कटाई करने तथा उत्पादों को बेचने हेतु  अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है। 

आगे की राह: 

  • पृथ्वी पर लगभग 3 ट्रिलियन पेड़ विद्यमान हैं,  इसके अतिरिक्त 1.2 ट्रिलियन पेड़ लगाने हेतु  ग्रह पर पर्याप्त जगह मौजूद है जो वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में लाभदायक साबित होगी।
  • बीमा बांँस पृथ्वी को हरा-भरा बनाए रखने तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने के संदर्भ में एक श्रेष्ठ विकल्प साबित हो सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


शासन व्यवस्था

एमएलए-एलएडी योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान सरकार ने 18 से 44 वर्ष की आयु के लोगों को कोविड-19 टीकाकरण के लिये संसाधन जुटाने हेतु विधान मंडल के प्रत्येक सदस्य के विधानसभा सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास (Members of Legislative Assembly Local Area Development- MLA-LAD) कोष से 3 करोड़ रुपए लेने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।

  • इन खर्चों को पूरा करने के लिये प्रत्येक विधायक हेतु निधि 2.25 करोड़ रुपए से बढ़ाकर एक वर्ष में 5 करोड़ रुपए कर दी गई है।

प्रमुख बिंदु

विधानसभा सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना:

  • यह केंद्र सरकार के सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Members of Parliament Local Area Development Scheme- MPLAD) का ही रूपांतरित स्वरूप है।
  • इस योजना का उद्देश्य स्थानीय स्तर पर आवश्यकता आधारित बुनियादी ढाँचा तैयार करना, सार्वज़निक उपयोग की संपत्ति का निर्माण करना और विकास में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना है।
    • यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों के लिये भी है।
  • विधायकों को इस योजना के अंतर्गत कोई पैसा नहीं मिलता है। सरकार इसे सीधे संबंधित स्थानीय अधिकारियों को हस्तांतरित करती है।
    • विधायक केवल दिशा-निर्देशों के आधार पर अपने निर्वाचन क्षेत्रों में इसके अंतर्गत किये जाने वाले कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं।
    • इस योजना के अंतर्गत प्रति विधायक धन का आवंटन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है। इसके अंतर्गत दिल्ली में सबसे अधिक धन का आवंटन होता है; प्रत्येक विधायक प्रति वर्ष 10 करोड़ रुपए तक के कार्यों की सिफारिश कर सकता है।
  • एमएलए-एलएडी फंड के उपयोग के दिशा-निर्देश पूरे राज्यों में भिन्न हैं।
    • दिल्ली के विधायक फॉगिंग मशीनों के संचालन (डेंगू के मच्छरों को रोकने के लिये), सीसीटीवी उपकरणों की स्थापना आदि की सिफारिश कर सकते हैं।
    • विधायक द्वारा विकास कार्यों की सूची देने के बाद ज़िला प्रशासन द्वारा शासन के वित्तीय, तकनीकी एवं प्रशासनिक नियमों के अनुसार उनका निष्पादन किया जाता है।

संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना:

  • यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसकी घोषणा दिसंबर 1993 में की गई थी।
  • प्रारंभ में इसका क्रियान्वयन ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development) के अंतर्गत किया गया जिसे अक्तूबर 1994 में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) को स्थानांतरित कर दिया गया।
  • इस योजना के अंतर्गत संसद सदस्यों (Member of Parliament) को  प्रत्येक वर्ष 2.5 करोड़ रुपए की दो किश्तों में 5 करोड़ रुपए की राशि वितरित की जाती है। यह राशि नॉन-लैप्सेबल (Non-Lapsable) होती है। 
  • उद्देश्य:
    • इस योजना का उद्देश्य सांसदों को विकासात्मक प्रकृति के कार्यों की सिफारिश करने में सक्षम बनाना और उनके निर्वाचन क्षेत्रों में स्थानीय रूप से महसूस की गई ज़रूरतों के आधार पर सामुदायिक संपत्ति के निर्माण पर ज़ोर देना है।
      • इस योजना के अंतर्गत लोकसभा सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्रों के भीतर काम करने की सिफारिश कर सकते हैं और राज्यसभा के चुने हुए सदस्य राज्य के भीतर कहीं भी काम करने की सिफारिश कर सकते हैं।
      • राज्यसभा और लोकसभा के मनोनीत सदस्य देश में कहीं भी कार्य करने की सिफारिश कर सकते हैं।
    • इन परियोजनाओं में पीने के पानी की सुविधा, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य स्वच्छता और सड़कों आदि का निर्माण किया जाना शामिल है।
  • जून 2016 से इस निधि का उपयोग स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan), सुगम्य भारत अभियान (Sugamya Bharat Abhiyan), वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल संरक्षण और सांसद आदर्श ग्राम योजना (Sansad Aadarsh Gram Yojana) आदि के कार्यान्वयन में भी किया जाता है।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में कोविड -19 के प्रकोप के प्रतिकूल प्रभाव के मद्देनज़र वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 के दौरान इस निधि के अस्थायी निलंबन को अपनी मंज़ूरी दे दी है।
  • आलोचना:
    • यह संविधान की भावना के साथ असंगत है क्योंकि यह विधायकों को कार्यपालिका का काम सौंपता है।
    • दूसरी आलोचना कार्यों के आवंटन से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों से है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रमोटरों को ‘पर्सन इन कंट्रोल’ में बदलने का प्रस्ताव: SEBI

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने प्रमोटरों की अवधारणा को दूर करके इसे ‘पर्सन इन कंट्रोल’ में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया है। 

  • इसने प्रमोटरों हेतु एक सार्वजनिक मुद्दा और ‘इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग’ (IPO) के शेयरधारकों के लिये न्यूनतम लॉक-इन अवधि को कम करने का भी सुझाव दिया है।

सेबी:

  • SEBI, अप्रैल 1992 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड का मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना और प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना और विनियमित करना है।

प्रमुख बिंदु:

प्रमोटर:

  • 'प्रवर्तक' और 'प्रवर्तक समूह' का अर्थ कंपनी अधिनियम, 2013 और SEBI (ICDR) विनियम, 2018 में परिभाषित किया गया है।
  • आमतौर पर एक प्रमोटर किसी स्थान पर एक विशेष व्यवसाय स्थापित करने के एक विचार की कल्पना करता है और कंपनी शुरू करने के लिये आवश्यक विभिन्न औपचारिकताओं को पूरा करता है।
  • प्रमोटर समूह में सम्मिलित हैं-
    • कोई भी कॉरपोरेट निकाय जिसमें व्यक्तियों या कंपनियों का एक समूह या कॉन्सर्ट का संयोजन होता है, जो उस कॉरपोरेट निकाय और इक्विटी शेयर पूंजी का 20% या उससे अधिक हिस्सा रखता है।
    • ऐसे व्यक्तियों या कंपनियों या उनके संयोजनों के समूह के पास जारीकर्त्ता की इक्विटी शेयर पूंजी का 20% या उससे अधिक हिस्सा होता है।
      • जारीकर्ता एक कानूनी इकाई होती है जो अपने संचालन के वित्तपोषण करने के लिये प्रतिभूतियों का विकास, पंजीकरण और बिक्री करती है।

प्रमोटरों को ‘पर्सन इन कंट्रोल’ में बदलने की अवधारणा:

  • आवश्यकता:
    • भारत में बदलते निवेशक परिदृश्य में बदलाव की आवश्यकता है, जहाँ निजी इक्विटी और संस्थागत निवेशकों जैसे नए शेयरधारकों के उद्भव के कारण, प्रमोटरों या प्रमोटर समूह के स्वामित्व और नियंत्रण अधिकार पूरी तरह से निहित नहीं होते हैं।
    • बोर्ड और प्रबंधन की गुणवत्ता पर निवेशकों का ध्यान बढ़ा है, जिससे प्रमोटर संबंधी अवधारणा की प्रासंगिकता कम हो गई है।
    • वर्तमान परिभाषा व्यक्तियों या इनके सामान्य समूह द्वारा ‘होल्डिंग्स’ पर कब्ज़ा करने पर केंद्रित है और प्रायः आम वित्तीय निवेशकों के साथ असंबंधित कंपनियों को कैप्चर करने के परिणाम से संबंधित है।
  • महत्त्व:
    • यह कदम फर्मों हेतु प्रकटीकरण के बोझ को हल्का करेगा।
    • स्वामित्व की प्रकृति में परिवर्तन उन स्थितियों को जन्म दे सकता है, जहाँ नियंत्रित अधिकार और अल्पसंख्यक हिस्सेदारी रखने वाले व्यक्तियों को एक प्रवर्तक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • प्रमोटर कहलाने के कारण ऐसे व्यक्ति अपने आर्थिक हितों के लिये सूचीबद्ध संस्था को अधिक प्रभावित कर सकते हैं, जो सभी हितधारकों के हित में नहीं होता है।

संक्रमणकालीन अवधि:

  • इस अवधारणा में प्रमोटर से ‘पर्सन इन कंट्रोल’ में जाने के लिये तीन वर्ष की संक्रमण अवधि का सुझाव दिया गया है।

IPO की ‘लॉकिंग’ अवधि कम करना:

  • यदि इस मुद्दे के उद्देश्य में परियोजना हेतु पूंजीगत व्यय के अलावा बिक्री या वित्तपोषण संबंधी एक प्रस्ताव शामिल है तो IPO में आवंटन की तारीख से एक वर्ष के लिये न्यूनतम 20% प्रवर्तकों के योगदान को लॉक-इन किया जाना चाहिये।
    • वर्तमान में लॉक-इन अवधि तीन वर्ष है।

इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग:

  • ‘IPO’ प्राथमिक बाज़ार में प्रतिभूतियों की बिक्री हेतु जारी किया जाता है।
    • प्राथमिक बाज़ार पहली बार जारी की जा रही नई प्रतिभूतियों से संबंधित है। इसे ‘न्यू इश्यू मार्किट’ के रूप में भी जाना जाता है।
    • यह द्वितीयक बाज़ार से अलग है, जहाँ मौजूदा प्रतिभूतियों को खरीदा और बेचा जाता है। इसे शेयर बाज़ार या स्टॉक एक्सचेंज के रूप में भी जाना जाता है।
  • जब एक असूचीबद्ध कंपनी या तो प्रतिभूतियों का एक ताज़ा मुद्दा बनाती है या अपनी मौजूदा प्रतिभूतियों की बिक्री के प्रस्ताव को पहली बार जनता के सामने पेश करती है।
    • असूचीबद्ध कंपनियाँ वे हैं जो स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध नहीं हैं।
  • यह आमतौर पर उन नई और मध्यम आकार की फर्मों द्वारा जारी किया जाता है जो अपने व्यवसाय को विकसित करने और विस्तार करने के लिए धन की तलाश में हैं।

IPO लॉकिंग अवधि:

  • किसी कंपनी के सार्वजनिक हो जाने के बाद कुछ समय के लिये यह जारी करना एक चेतावनी है, जब प्रमुख शेयरधारकों को अपने शेयरों को बेचने से प्रतिबंधित किया जाता है।

ऑफर फॉर सेल:

  • इस पद्धति के तहत प्रतिभूतियों को सीधे जनता के लिये जारी नहीं किया जाता है, बल्कि उन्हें बिचौलियों के माध्यम से जारी किया जाता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नासा का ‘ओसीरिस-रेक्स’ अभियान

चर्चा में क्यों

हाल ही में नासा के ‘ओसीरिस-रेक्स’ अंतरिक्ष यान (OSIRIS-REx Spacecraft) ने क्षुद्रग्रह बेन्नू (Asteroid Bennu) से पृथ्वी पर वापसी के लिये अपनी दो वर्षीय लंबी यात्रा शुरू कर दी है।

  •  ‘ओसीरिस-रेक्स’ पृथ्वी के निकट मौजूद क्षुद्रग्रह का दौरा कर उसकी सतह का सर्वेक्षण करने तथा उससे नमूना एकत्र करने हेतु भेजा गया नासा का प्रथम मिशन है।

प्रमुख बिंदु: 

‘ओसीरिस-रेक्स’ मिशन के बारे में: 

  • ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला क्षुद्रग्रह ‘सैंपल रिटर्न मिशन’ (Sample Return Mission) है, जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक अध्ययन के लिये क्षुद्रग्रह से प्राचीन अनछुए नमूनों को इकट्ठा कर उन्हें पृथ्वी पर वापस लाना है।
  • वर्ष 2016 में ओसीरिस-रेक्स (ओरिजिंस, स्पेक्ट्रल इंटरप्रीटेशन, रिसोर्स आईडेंटीफिकेशन, सिक्योरिटी, रेगोलिथ एक्सप्लोरर) अंतरिक्ष यान को बेन्नू क्षुद्रग्रह  की यात्रा हेतु लॉन्च किया गया था।
  • इस मिशन की अवधि कुल सात वर्ष है  और इसका कोई भी अंतिम परिणाम तब सामने आएगा जब यह अंतरिक्ष यान कम-से-कम 60 ग्राम नमूने लेकर पृथ्वी पर वापसी (वर्ष 2023 में) करेगा।
  • नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के मुताबिक यह मिशन, अपोलो मिशन के बाद सबसे बड़ी मात्रा में खगोलीय सामग्री को पृथ्वी पर लाने में सक्षम है।
    • ‘अपोलो’ नासा का एक कार्यक्रम था, जिसके तहत अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों ने कुल 11 अंतरिक्ष उड़ानें भरी थीं और चंद्रमा की सतह पर लैंड किया था।
  • इस अंतरिक्ष यान में ‘बेन्नू’ के अन्वेषण के लिये कुल पाँच उपकरण शामिल हैं, जिसमें कैमरे, एक स्पेक्ट्रोमीटर और एक लेज़र अल्टीमीटर शामिल हैं।
  • बीते दिनों अंतरिक्ष यान के ‘टच-एंड-गो सैंपल एक्विजिशन मैकेनिज़्म’ (TAGSAM) नामक रोबोटिक आर्म ने एक नमूना स्थल से नमूना एकत्र किया था।

महत्त्व

  • वैज्ञानिक क्षुद्रग्रह के नमूनों का उपयोग सौरमंडल के गठन और पृथ्वी जैसे रहने योग्य ग्रहों के अध्ययन के लिये करेंगे।
  • नासा, मिशन के माध्यम से प्राप्त नमूनों के एक विशेष हिस्से को दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में अध्ययन के लिये वितरित करेगी और शेष हिस्सा (75 प्रतिशत) भविष्य की पीढ़ियों के लिये सुरक्षित रखा जाएगा, जिससे भविष्य में और अधिक आधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से इसका अध्ययन किया जा सकेगा।

क्षुद्रग्रह बेन्नू (Bennu):

  • बेन्नू एक प्राचीन क्षुद्रग्रह है, जो कि वर्तमान में पृथ्वी से लगभग 200 मिलियन मील से अधिक दूरी पर मौजूद है।
  • यह अमेरिका की एम्पायर स्टेट बिल्डिंग जितना लंबा है और इसका नाम मिस्र के एक देवता के नाम पर रखा गया है।
  • इस क्षुद्रग्रह की खोज नासा द्वारा वित्तपोषित ‘लिंकन नियर-अर्थ एस्टेरॉयड रिसर्च टीम’ के एक समूह द्वारा वर्ष 1999 में की गई थी।
  • इसे एक ‘बी-टाइप’ क्षुद्रग्रह माना जाता है, जिसका अर्थ है कि इसमें महत्त्वपूर्ण मात्रा में कार्बन और विभिन्न अन्य खनिज शामिल हैं।
    • इसमें उपस्थित कार्बन की उच्च मात्रा के कारण, यह केवल 4% प्रकाश को ही परावर्तित करता है, जो कि शुक्र जैसे ग्रह की तुलना में काफी कम है, जो कि लगभग 65% प्रकाश को परावर्तित करता है। ज्ञात हो कि भारत 30% प्रकाश को परावर्तित करता है।
  • बेन्नू का लगभग 20-40% अंतरिक्ष हिस्सा खाली है और वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि यह सौरमंडल के गठन के प्रारंभिक 10 मिलियन वर्षों में बना था, जिसका अर्थ है कि यह लगभग 4.5 बिलियन साल पुराना है।
  • यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि बेन्नू, जिसे ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट’ (NEO) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, अगली शताब्दी में वर्ष 2175 से वर्ष 2199 के बीच पृथ्वी से टकरा सकता है।
    • ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट’ (NEO) का आशय ऐसे धूमकेतु या क्षुद्र ग्रह से होता है जो पास के ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण द्वारा उनके ऑर्बिट/कक्षा में आ जाते हैं जो उन्हें पृथ्वी के करीब आने की अनुमति देता है।
  • माना जाता है कि बेन्नू की उत्पत्ति मंगल और बृहस्पति के बीच मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट में हुई है तथा अन्य खगोलीय पिंडों के गुरुत्वाकर्षण की वज़ह से यह पृथ्वी के करीब आ रहा है।
  • बेन्नू वैज्ञानिकों को प्रारंभिक सौर प्रणाली के बारे में अधिक जानने का अवसर प्रदान करता है, क्योंकि इसने अरबों वर्ष पूर्व आकार लेना शुरू किया था और उस पर वे सामग्रियाँ मौजूद हो सकती हैं, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये मददगार हैं।
    • गौरतलब है कि अरबों वर्षों पहले इसके निर्माण के बाद से बेन्नू में अधिक महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं आए हैं और इसलिये इसमें ऐसे रसायन तथा चट्टानें शामिल हो सकती हैं, जो सौर मंडल के जन्म के समय से यहाँ मौजूद हैं। साथ ही यह पृथ्वी के अपेक्षाकृत करीब भी है।

छुद्रग्रह

  • ये सूर्य की परिक्रमा करने वाले चट्टानी पिंड हैं जो ग्रहों की तुलना में काफी छोटे होते हैं। इन्हें लघु ग्रह (Minor Planets) भी कहा जाता है।
  • नासा के अनुसार, अब तक ज्ञात छुद्रग्रहों (4.6 बिलियन वर्ष पहले सौरमंडल के निर्माण के दौरान के अवशेष) की संख्या 9,94,383 है।
  • छुद्रग्रहों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
    • पहली श्रेणी में वे छुद्रग्रह आते हैं जो मंगल तथा बृहस्पति के बीच छुद्रग्रह बेल्ट/पट्टी में पाए जाते हैं। अनुमानतः इस बेल्ट में 1.1-1.9 मिलियन छुद्रग्रह मौजूद हैं। 
    • दूसरी श्रेणी के तहत ट्रोजन्स को शामिल किया गया है। ट्रोजन्स ऐसे छुद्रग्रह हैं जो एक बड़े ग्रह के साथ कक्षा (Orbit) साझा करते हैं। 
    • तीसरी श्रेणी पृथ्वी के निकट स्थित छुद्रग्रहों यानी नियर अर्थ एस्टेरोइड्स (NEA) की है जिनकी कक्षा ऐसी होती है जो पृथ्वी के निकट से होकर गुज़रती है। वे छुद्रग्रह जो पृथ्वी की कक्षा को पार कर जाते हैं उन्हें अर्थ क्रॉसर (Earth-crosser) कहा जाता है।
      • इस तरह के 10,000 से अधिक छुद्रग्रह ज्ञात हैं जिनमें से 1, 400 को संभावित खतरनाक छुद्रग्रह (Potentially Hazardous Asteroid- PHA) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
        • PHA ऐसे क्षुद्रग्रह होते हैं जिनके पृथ्वी के करीब से गुज़रने से पृथ्वी पर खतरा उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है। 
        • PHA की श्रेणी में उन क्षुद्रग्रहों को रखा जाता है जिनकी  ‘न्यूनतम कक्षा अंतर दूरी’ (Minimum Orbit Intersection Distance- MOID) 0.05 AU या इससे कम हो। साथ ही ‘निरपेक्ष परिमाण’ (Absolute Magnitude-H) 22.0 या इससे कम हो। 
          • पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को खगोलीय इकाई (Astronomical Unit-AU) से इंगित करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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