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अधिकांश बाँस मिशन क्यों है असफल?

  • 07 May 2018
  • 13 min read

संदर्भ
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा बजट 2018 में पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (NMB) के लिये ₹ 1,290 करोड़ आवंटित किये जाने के बाद पूर्वोत्तर में बाँस के किसानों और उद्यमियों को अपेक्षाकृत कम राहत के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि इससे पूर्व गठित विभिन्न निकाय भी अपने उदेश्यों की प्राप्ति में असफल साबित हुए हैं।

क्या है पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (NMB)?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति द्वारा 14वें वित्त आयोग (2018-19 तथा 2019-20) की शेष अवधि के दौरान सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture-NMSA) के अंतर्गत केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय बाँस मिशन (National Bamboo Mission-NBM) को स्वीकृति दी गई है।

मिशन-

  • संपूर्ण मूल्य श्रृंखला बनाकर और उत्पादकों (किसानों) का उद्योग के साथ कारगर संपर्क स्थापित करके बाँस क्षेत्र का संपूर्ण विकास सुनिश्चित करेगा।

व्यय-

  • 14वें वित्त आयोग (2018-19 तथा 2019-20) की शेष अवधि के दौरान मिशन लागू करने के लिये 1290 करोड़ रुपए का (केंद्रीय हिस्से के रूप में 950 करोड़ रुपए के साथ) प्रावधान किया गया है।

लाभार्थी-

  • इस योजना से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसानों, स्थानीय दस्तकारों और बाँस क्षेत्र में काम कर रहे अन्य लोगों को लाभ होगा। पौधरोपण के अंतर्गत लगभग एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र को लाने का प्रस्ताव किया गया है।
  • इसलिये यह आशा की जाती है कि पौधरोपण को लेकर प्रत्यक्ष रूप से लगभग एक लाख किसान लाभान्वित होंगे।
  • कवर किये गए राज्य/ज़िले-
  • मिशन उन सीमित राज्यों में जहाँ बाँस के सामाजिक, वाणिज्यिक और आर्थिक लाभ हैं, वहाँ बाँस के विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा, विशेषकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में और मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, कर्नाटक, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में।
  • आशा है कि यह मिशन 4,000 शोधन/उत्पाद विकास इकाइयाँ स्थापित करेगा और 1,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र को पौधरोपण के अंतर्गत लाएगा।

प्रभाव-

  • बाँस पौधरोपण से कृषि उत्पादकता और आय बढ़ेगी, परिणामस्वरूप भूमिहीनों सहित छोटे और मझौले किसानों एवं महिलाओं की आजीविका के अवसरों में वृद्धि होगी और उद्योग को गुणवत्ता संपन्न सामग्री मिलेगी।
  • इस तरह यह मिशन न केवल किसानों की आय बढ़ाने के लिये संभावित उपाय के रूप में काम करेगा, बल्कि जलवायु को सुदृढ़ बनाने और पर्यावरण संबंधी लाभों में भी योगदान करेगा।
  • मिशन कुशल और अकुशल दोनों क्षेत्र में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार सृजन में सहायक होगा।

विवरण-

  • पुनर्गठित एनबीएम का प्रयास है कृषि आय के पूरक के रूप में गैर-वन सरकारी और निजी भूमि में बाँस पौधरोपण क्षेत्र में वृद्धि करना और जलवायु परिवर्तन की दिशा में मज़बूती से योगदान करना।
  • नवाचारी प्राथमिक प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना करके, शोधन तथा मौसमी पौधे लगाकर, प्राथमिक शोधन करके, संरक्षण प्रौद्योगिकी तथा बाज़ार अवसंरचना स्थापित करके फसल के बाद के प्रबंधन में सुधार करना।
  • सूक्ष्म, लघु और मझौले स्तरों पर उत्पाद के विकास को प्रोत्साहित करना और बड़े उद्योगों की पूर्ति करना।
  • भारत में अविकसित बाँस उद्योग का कायाकल्प करना।
  • कौशल विकास, क्षमता सृजन और बाँस क्षेत्र के विकास के बारे में जागरूकता को प्रोत्साहित करना।

कार्यान्वयन, रणनीति और लक्ष्य-बाँस क्षेत्र के विकास के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जाएंगे:

  • मिशन का फोकस इन राज्यों में बाँस के विकास पर होगा, जहाँ बाँस के सामाजिक, वाणिज्यिक और आर्थिक लाभ हैं।
  • वाणिज्यिक और औद्योगिक मांग की बाँस प्रजातियों की वंशानुगत श्रेष्ठ पौध सामग्री पर फोकस होगा।
  • बाँस क्षेत्र में प्रारंभ से अंत तक संरक्षण की नीति अपनाई जाएगी, यानी बाँस उत्पादकों से लेकर उपभोक्ताओं तक संपूर्ण मूल्य श्रृंखला होगी।
  • निर्धारित क्रियान्वयन दायित्वों के साथ मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों के एकीकरण के लिये एक मंच के रूप में मिशन को विकसित किया गया है।
  • कौशल विकास और प्रशिक्षण के माध्यम से अधिकारियों, फील्ड में काम करने वाले लोगों, उद्यमियों तथा किसानों के क्षमता सृजन पर बल दिया जाएगा।
  • बाँस उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिये अनुसंधान और विकास पर फोकस किया जाएगा।

NMBA क्या है?

  • ध्यातव्य है कि संसद ने भारतीय वन अधिनियम, 1927 में संशोधन करते हुए गैर-वन क्षेत्रों में उगाए जाने वाले बाँस को वृक्ष की परिभाषा के दायरे से बाहर कर दिया है।
  • परिणामस्वरूप गैर-वन क्षेत्रों में बाँस की कटाई और परिवहन के लिये अब किसी भी परमिट की आवश्यकता नहीं होगी।
  • 1,400 करोड़ रुपए की राशि से पूर्व में गठित के NMB की विफलता के बाद ही उत्तर-पूर्व में प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग और पहुँच केंद्र (NECTAR) नामक एक नवीन पहल को अपनाया गया।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने वर्ष 2004 में 200 करोड़ रुपए के व्यय के साथ बाँस आवेदन (NMBA) पर राष्ट्रीय मिशन शुरू किया था।

असफलता के कारण

  • गौरतलब है कि लगभग एक दशक बाद, NMBA ने डेमो बाँस के घरों पर ₹ 100 करोड़ खर्च किया गया, जो भारत के बाँस बेल्ट में जीवन को अपेक्षाकृत कम ही प्रभावित करते हैं।
  • इसके तहत उद्यमियों को आंशिक रूप से मशीनरी और उपकरणों की खरीद के लिये प्रौद्योगिकी विकास सहायता के रूप में, किस्तों में ₹ 40 करोड़ की राशि भी प्रदान की गई थी।
  • हालाँकि, अपने गठन के उद्देश्यों और नाम के विपरीत, NMBA ने न तो किसी भी तकनीक का विकास किया और न ही सहायक इकाइयों के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा ही प्रदान की।
  • केंद्र द्वारा आयातित बाँस उत्पादों पर 30% से 10% तक ड्यूटी के घटा दिये जाने से घरेलू बाँस उत्पाद, जो चीनी और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के सस्ते बाँस उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ रहा। अंततः NMBA बाजार संबंधों को विकसित करने में भी असफल रहा।
  • परिणामतः केंद्र सरकार ने इन परिस्थितियों को देखते हुए वर्ष  2013 में, 2 करोड़ रुपये के निधि के आवंटन के साथ शिलोंग में पंजीकृत मुख्यालय के रूप में स्वायत्त केंद्र के निर्माण को मंजूरी दे दी। 

उत्तर पूर्व प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग और पहुँच केंद्र (NECTAR)

  • यह एक स्वायत्तशासी केंद्र है, जो भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत स्थापित है, इसका मुख्यालय शिलॉन्ग(मेघालय) में है।
  • यह केंद्र, केंद्रीय वैज्ञानिक विभागों और संस्थानों के साथ उपलब्ध विशिष्ट सीमा प्रौद्योगिकियों का उपयोग और लाभ उठाने पर विचार करेगा।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की सहायता के लिये, NECTAR जैव विविधता चिंताओं, वाटरशेड प्रबंधन, टेलीमेडिसिन, बागवानी, आधारभूत संरचना, योजना एवं विकास, योजना और निगरानी, तथा अत्याधुनिक मेसनेट का उपयोग कर टेली-स्कूली शिक्षा के क्षेत्रों में विकास के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोगों को सुनिश्चित करेगा।
  • स्थानीय उत्पादों/संसाधनों और संबंधित कौशल विकास के उपयोग के माध्यम से इस केंद्र से निम्न कार्य अपेक्षित किये गए हैं, जो निम्नलिखित हैं- 
    ♦ समाधान डिजाइनर की भूमिका।
    ♦ साझेदारी संस्थान होने के नाते भूमिका।
    ♦ उत्तर पूर्वी क्षेत्र में राज्य सरकार को तकनीकी सहायता।
    ♦ तकनीकी सहायता निर्णय प्रणाली में राज्य सरकार को सहायता प्रौद्योगिकी तक पहुँच पर ध्यान केंद्रित करना।
    ♦ प्रौद्योगिकी विकास संगठनों से अलग दृष्टिकोण।
  • हालाँकि NECTAR केवल बाँस से ही संबंधित नहीं है बल्कि इसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा क्षेत्रों  के "स्थानीय और प्राकृतिक संसाधन" भी शामिल हैं।
  • NECTAR स्थानीय उत्पादों के बाज़ार में तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करने के अलावा, इस मिशन के तहत महिला सशक्तीकरण और कौशल विकास करना भी शामिल था।

असफलता के कारण
वास्तविक रूप में यह संगठन भी अपने गठन के कुछ वर्षों बाद NECTAR अपने क्षेत्रीय कार्यालय से न संचालित होकर, नई दिल्ली से संचालित होने लगा और इसका क्षेत्रीय कार्यालय मात्र पर्यटन केंद्र बनकर रह गया।

आगे की राह 

  • दुनिया का सबसे बड़ा बाँस क्षेत्र भारत में स्थित है। यह देश की वन भूमि का लगभग 13% क्षेत्र कवर करता है।
  • ध्यातव्य है कि भारत के आठ उत्तर-पूर्वी राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में बाँस का 67% भाग शामिल हैं और वैश्विक बाँस भंडार का 45% हिस्सा है।
  • इस क्षेत्र में बेहतर गुणवत्ता वाले बाँस की लगभग 35 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इस लिहाज़ से देखा जाए तो उत्तर-पूर्वी राज्यों के समग्र विकास में बाँस मिशन की सफलता अहम भूमिका अदा करेगी, क्योंकि बॉस पर न केवल यहाँ निवास करने वाले लोगों की आजीविका निर्भर करती है, बल्कि उनकी खास सांस्कृतिक पहचान भी बनी हुई है।
  • अतः आवश्यकता है कि बॉस आधारित मिशनों का सुचारू रूप से क्रियान्वयन किया जाए।
  • इसके साथ ही बॉस के आर्थिक महत्त्व को ध्यान में रखना चाहिये क्योंकि क्षेत्रीय व्यापार निकायों की माने तो पूर्वोत्तर भारत के लिये बाँस, अनुमानित $ 10 बिलियन बाज़ार क्षमता को टैप करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
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