शासन व्यवस्था
समावेशी सामाजिक विकास के लिये AI
प्रिलिम्स के लिये: नीति आयोग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), वितरित लेज़र प्रौद्योगिकी, संवर्द्धित वास्तविकता
मेन्स के लिये: समावेशी आर्थिक विकास में AI और अग्रणी प्रौद्योगिकियों की भूमिका, रोज़गार
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग ने "समावेशी सामाजिक विकास के लिये AI" शीर्षक से एक अध्ययन जारी किया है, जो व्यवस्थित रूप से यह पता लगाने का अपनी तरह का पहला प्रयास है कि भारत के अनौपचारिक श्रमिकों के जीवन और आजीविका को बदलने हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) एवं अग्रणी प्रौद्योगिकियों का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है।
- रिपोर्ट में राष्ट्रीय मिशन “डिजिटल श्रमसेतु” का प्रस्ताव किया गया है, जिसकी परिकल्पना अनौपचारिक कार्यबल को औपचारिक बनाने और उसके उत्थान के लिये प्रौद्योगिकी-संचालित सेतु के रूप में की गई है।
मिशन डिजिटल श्रमसेतु क्या है?
- परिचय: मिशन डिजिटल श्रमसेतु नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित एक परिवर्तनकारी पहल है, जिसका उद्देश्य AI, ब्लॉकचेन, रोबोटिक्स और इमर्सिव लर्निंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का लाभ उठाकर भारत के अनौपचारिक कार्यबल को डिजिटल बनाना एवं सशक्त बनाना है।
- उद्देश्य:
- प्रौद्योगिकी के माध्यम से सशक्तीकरण: श्रमिकों के लिये सत्यापन योग्य डिजिटल पहचान बनाने हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग करना, जिससे समय पर भुगतान, कौशल प्रमाणन और सामाजिक सुरक्षा लाभ तक पहुँच संभव हो सके।
- समावेशी कौशलीकरण: श्रमिकों को कौशल प्रदान करने के लिये अनुकूली, बहुभाषी और ऑफलाइन-संगत प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करना।
- संयुक्त प्रामाणीकरण प्रणाली: एक विकेंद्रीकृत ट्रस्ट मॉडल की स्थापना करना, जिससे प्रशिक्षण प्रदाताओं, नियोक्ताओं और सरकारी निकायों को वास्तविक समय में कार्यकर्त्ता प्रमाणीकरण जारी करने तथा सत्यापित करने की अनुमति मिल सके।
- उचित मुआवज़े के लिये स्मार्ट अनुबंध: अनौपचारिक श्रमिकों को पारदर्शी और समय पर भुगतान सुनिश्चित करने, विवादों तथा देरी को कम करने हेतु ब्लॉकचेन-आधारित स्मार्ट अनुबंधों को लागू करना।
- ज़मीनी स्तर पर नवाचार और आउटरीच: डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने तथा प्रौद्योगिकी को अपनाने में सुविधा प्रदान करने के लिये राज्य स्तरीय कार्यक्रमों एवं स्थानीय संस्थाओं के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
- शासन और संरचना:
- सर्वोच्च शासी निकाय: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में नीति और बजट निर्णयों में प्रमुख मंत्रालय शामिल होते हैं।
- क्षेत्रीय कार्य बल: कृषि, स्वास्थ्य सेवा, खुदरा और निर्माण जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, समाधान डिज़ाइन तथा कार्यान्वयन का कार्य सौंपा गया।
- राज्य समन्वय इकाइयाँ: स्थानीय अनुकूलन और प्रभावी ज़मीनी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
- लक्ष्य:
प्रस्तावित मैक्रो मिशन लक्ष्य: 2035 को 2047 के लिये एक रणनीतिक मध्य बिंदु के रूप में
मुख्य संकेतक |
2025 (वर्तमान स्थिति) |
2035 (मध्य-अवधि लक्ष्य) |
2047 (दृष्टि लक्ष्य) |
प्रति व्यक्ति आय |
$1800 |
$5500 |
$14,500 |
महिला श्रम बल भागीदारी |
15% |
25% |
42% |
सामाजिक सुरक्षा कवरेज |
48% |
80% |
100% |
उत्पादकता |
$5/घंटा |
$15/घंटा |
$49/घंटा |
भारत में अनौपचारिक श्रमिकों की वर्तमान स्थिति क्या है?
- अनौपचारिक कार्यबल की भागीदारी: लगभग 490 मिलियन व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्र में नियोजित हैं, जो भारत की कुल श्रम बल का लगभग 90% हैं।
- आर्थिक योगदान: भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में अनौपचारिक क्षेत्र का लगभग 45% का योगदान है।
- उत्पादकता स्तर: अनौपचारिक श्रमिकों की औसत उत्पादकता लगभग 5 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा है, जो राष्ट्रीय औसत 11 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा के आधे से भी कम है।
- प्रति व्यक्ति आय: औसत अनौपचारिक श्रमिक प्रतिवर्ष लगभग 1,800 अमेरिकी डॉलर (2025) का अर्जन करता है।
- महिला कार्यबल भागीदारी: अनौपचारिक व्यापार क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 15% (कृषि के अतिरिक्त) के निम्न स्तर पर है, जबकि राष्ट्रीय औसत 37% और वैश्विक औसत 47% है।
- सामाजिक सुरक्षा कवरेज: वर्तमान में केवल 48% अनौपचारिक श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा लाभों की सुविधा प्राप्त है।
अनौपचारिक श्रमिक
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, अनौपचारिक नियोजन से ऐसे रोज़गार से है जो श्रम कानूनों, कराधान या सामाजिक सुरक्षा द्वारा संरक्षित नहीं हैं और जिनमें सवेतन अवकाश या विच्छेद वेतन जैसे लाभ की सुविधा नहीं होती है।
- अनौपचारिक श्रमिकों में स्व-नियोजित, आकस्मिक, अस्थायी या गृहों में नियोजित श्रमिक शामिल हैं जिनके पास औपचारिक अनुबंध या सामाजिक सुरक्षा का आभाव होता है, भले ही वे औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हों।
- भारत के औपचारिकीकरण लक्ष्य: वर्ष 2047 तक, भारत का लक्ष्य वर्तमान में विद्यमान 73.2% अनौपचारिक उद्यमों का औपचारिकीकरण करना और अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी को 40% तक सीमित करना है।
- अनौपचारिक श्रमिकों से संबंधित भारत में योजनाएँ:
अनौपचारिक कार्यबल के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- वित्तीय संवेदनशीलता और अस्थिरता: औपचारिक अनुबंधों और विश्वसनीय पहचानों के अभाव के कारण वेतन अर्जन में विलंब या असंगति की समस्या उत्पन्न होती है, जिससे वित्तीय अस्थिरता बनती है।
- इसके अतिरिक्त, सत्यापन योग्य आय का अभाव और जटिल ऋण प्रक्रियाओं के कारण श्रमिक समय पर वित्तीय सहायता प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं, जबकि उच्च ब्याज दरों वाले शोषणकारी अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भरता उनकी वित्तीय चुनौतियों को और बढ़ा देती है।
- बाज़ार पहुँच और मांग संबंध: अनौपचारिक श्रमिक बाज़ार के मुख्य या औपचारिक भाग में शामिल नहीं हैं, जहाँ मांग में स्थिरता या डिजिटल उपस्थिति नहीं होती, जिसके परिणामस्वरूप आय में अस्थिरता और अल्परोज़गार की स्थिति बनी रहती है।
- प्रवासी श्रमिकों को विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार की तलाश करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके पास पोर्टेबल डिजिटल पहचान या रोज़गार प्राप्त करने में सहायक प्रणाली का अभाव होता है, जिसके कारण मध्यस्थों द्वारा उनका शोषण होता है।
- कौशल विकास और अवसर: कई अनौपचारिक श्रमिक परंपरागत, पुराने तरीकों पर निर्भर हैं और उनके पास औपचारिक प्रशिक्षण अवसर का अभाव होता है, जिससे उनका विकास एवं उत्पादकता सीमित हो जाती है।
- औपचारिक और अनुकूली प्रशिक्षण कार्यक्रम अत्यंत सीमित हैं एवं अल्प डिजिटल साक्षरता तथा अप्राप्य टूल्स श्रमिकों के लिये नई तकनीकों को उपयोग में लाना मुश्किल बनाते हैं, जिससे उनके पेशेवर विकास में और बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
- सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा: जागरूकता की कमी, डिजिटल बाधाओं और गैर-पोर्टेबल रिकॉर्ड के कारण श्रमिकों को सामाजिक योजनाओं के लाभ प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
- उत्पादकता अंतराल: कार्यप्रवाह अनुकूलन और डिजिटल उपकरणों तक पहुँच की कमी के परिणामस्वरूप निष्फल प्रयास, निम्न उत्पादकता तथा प्रत्यक्ष निष्पादन की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव आय क्षमता पर पड़ता है।
AI प्रौद्योगिकी अनौपचारिक आजीविका को कैसे रूपांतरित कर सकती है?
प्रौद्योगिकी |
अनुप्रयोग |
AI सुविधाओं वाले किफायती स्मार्टफोन |
अनौपचारिक श्रमिकों को अपनी मूल भाषा में डिजिटल प्लेटफॉर्म और सेवाओं तक पहुँच के लिये बहुविध, बहुभाषी वार्ता (ध्वनि, पाठ, छवि) सक्षम बनाता है। |
वर्ष 2030 तक 740 मिलियन से अधिक भारतीयों को हाई-स्पीड इंटरनेट सुविधा प्रदान करना, जिससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्केलेबल डिजिटल सेवाएँ संभव होंगी। |
|
यह सभी प्लेटफॉर्मों पर सुरक्षित, पारदर्शी लेन-देन और सत्यापित पहचान सुनिश्चित करता है, जिससे अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में विश्वास एवं पारदर्शिता बढ़ती है। |
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कार्य स्वचालन के लिये AI और रोबोटिक्स |
यह दोष का पता लगाने, निरीक्षण और मरम्मत जैसे कार्यों को स्वचालित करता है, जिससे उत्पादकता एवं सुरक्षा बढ़ती है, विशेष रूप से परिसंकटमय कार्य वातावरण में। |
संवर्द्धित वास्तविकता (AR) |
कारीगरों जैसे अनौपचारिक श्रमिकों के लिये गहन, व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करता है, जिससे उन्हें आभासी कार्यशालाओं और वास्तविक समय की प्रतिक्रिया के माध्यम से कौशल सुधारने में मदद मिलती है। |
जनरेटिव AI नॉलेज सिस्टम |
अनौपचारिक श्रमिकों को मांग के अनुसार कार्य-विशिष्ट ज्ञान प्रदान करता है तथा उनकी नौकरी की आवश्यकताओं के अनुरूप वास्तविक समय पर मार्गदर्शन प्रदान करता है (जैसे- करघा ब्लूप्रिंट, रंग बनाने की विधि)। |
भुगतान स्वचालन के लिये स्मार्ट अनुबंध |
स्व-निष्पादित अनुबंधों के माध्यम से माइलस्टोन-बेस्ड पेमेंट को स्वचालित करता है, समय पर और पारदर्शी वेतन संवितरण सुनिश्चित करता है तथा विवादों को कम करता है। |
AI-संचालित पहनने योग्य सुरक्षा गियर |
वास्तविक समय में श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर नज़र रखता है, खतरों का पता लगाता है तथा दुर्घटनाओं को रोकने एवं सुरक्षा मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये अलर्ट प्रदान करता है। |
परिशुद्ध कृषि के लिये IoT और AI |
मृदा, जलवायु और सिंचाई की निगरानी के लिये इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) सेंसर तथा AI प्रणालियों का उपयोग किया जाता है, जिससे अनौपचारिक कृषि श्रमिकों के लिये अधिक कुशल, धारणीय कृषि पद्धतियों को सक्षम बनाया जा सके। |
डिजिटल वॉलेट और सत्यापन योग्य क्रेडेंशियल |
यह अनौपचारिक श्रमिकों को नौकरी और ऋण तक पहुँच के लिये सुरक्षित, बाधा-रहित डिजिटल क्रेडेंशियल्स (जैसे- कार्य इतिहास, कौशल, प्रमाण-पत्र) को संग्रहीत और साझा करने की अनुमति देता है। |
एक्सोस्केलेटन (वियरेबल उपकरण) |
वियरेबल एक्सोस्केलेटन प्रदान करता है जो श्रमिकों की प्राकृतिक गतिविधियों को सहारा देकर उनके शारीरिक तनाव और थकान को कम करता है, जिससे शारीरिक रूप से कठिन नौकरियों में काम के घंटे लंबे और सुरक्षित हो जाते हैं। |
परियोजना / योजना |
संभावित सिफारिशें |
ई-श्रम |
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PM विश्वकर्मा योजना |
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उद्यम असिस्ट प्लेटफॉर्म |
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स्किल इंडिया डिजिटल हब |
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संदर्भ- संवेदनशील स्मार्ट इंटरफेस और स्थानीय भाषा के AI असिस्टेंट का विकास करना ताकि कम साक्षर श्रमिक स्वतंत्र रूप से पोर्टल/वेबसाइट नेविगेट कर सकें। |
निष्कर्ष
नीति आयोग ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि अनौपचारिक कार्यबल को सशक्त बनाए बिना विकसित भारत 2047 का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। AI को मानव श्रम का स्थान नहीं लेना चाहिये - बल्कि उसे बढ़ाना चाहिये। डिजिटल श्रमसेतु के माध्यम से समयोचित कार्यवाही यह सुनिश्चित कर सकती है कि भारत की विकास गाथा केवल तकनीकी प्रगति तक सीमित न रहे, बल्कि समावेशी समृद्धि की कहानी बने, जहाँ प्रत्येक श्रमिक, चाहे वह संगठित हो या असंगठित, विकास का उत्प्रेरक बने।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. चर्चा कीजिये कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता भारत के अनौपचारिक कार्यबल को कैसे सशक्त बना सकती है। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भारत के अनौपचारिक कार्यबल का आकार क्या है?
लगभग 490 मिलियन लोग, जो भारत की कुल श्रम शक्ति का 90% हिस्सा हैं।
2. डिजिटल श्रमसेतु मिशन का उद्देश्य क्या है?
अनौपचारिक श्रमिकों को डिजिटल रूप से औपचारिक बनाना, सत्यापन योग्य पहचान प्रदान करना, समय पर भुगतान सुनिश्चित करना और सामाजिक सुरक्षा लाभ सक्षम करना।
3. अनौपचारिक श्रमिकों के सामने मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
वित्तीय अस्थिरता, औपचारिक अनुबंधों की कमी, कम उत्पादकता (5 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा), सीमित बाज़ार पहुँच, कमज़ोर सामाजिक सुरक्षा कवरेज (48%) और कम महिला भागीदारी (15%)।
4. प्रौद्योगिकी अनौपचारिक श्रमिकों की आजीविका में किस प्रकार सुधार लाएगी?
AI-सक्षम प्रशिक्षण, उचित मज़दूरी के लिये स्मार्ट अनुबंध, वियरेबल सेफ्टी गियर, परिशुद्ध कृषि और डिजिटल प्रामाणीकरण से आय, सुरक्षा एवं अवसरों तक पहुँच बढ़ेगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स
प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार किस प्रकार कम हुए हैं? क्या बढ़ती हुई अनौपचारिकता देश के विकास के लिये हानिकारक है? (2016)
मुख्य परीक्षा
उभरती युद्ध प्रौद्योगिकियाँ और रक्षा नवाचार में आत्मनिर्भरता
भारत के रक्षा मंत्री ने कहा कि भविष्य के युद्धों का स्वरूप कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), स्वचालित प्रणालियाँ, ड्रोन, क्वांटम कंप्यूटिंग और निर्देशित-ऊर्जा हथियारों द्वारा तय किया जाएगा, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर में देखा गया था। उन्होंने उद्यमियों और स्टार्टअप्स से नए मानक स्थापित करने एवं भारत का पहला रक्षा यूनिकॉर्न बनाने का आह्वान किया।
उभरती प्रौद्योगिकियाँ युद्ध की प्रकृति को किस प्रकार बदल रही हैं?
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML): AI वास्तविक समय में युद्धक्षेत्र के डेटा का विश्लेषण करता है, जिससे कमांडरों को तेज़ी से रणनीतिक तथा सामरिक निर्णय लेने में मदद मिलती है।
- AI-संचालित एल्गोरिदम वास्तविक समय में साइबर खतरों का पता लगाते हैं, उनका जवाब देते हैं और उनका पूर्वानुमान लगाते हैं, जिससे सैन्य नेटवर्क की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- सूचना प्रौद्योगिकी के साथ संयुक्त रूप से AI/ML का उपयोग सैन्य या राजनीतिक उद्देश्यों, जैसे साइबर हमले, जासूसी और सूचना युद्ध के लिये किया जा सकता है।
- ये तरीके वायरस, सेवा अस्वीकार हमले और फिशिंग जैसी युक्तियों के माध्यम से सरकारी, नागरिक तथा सैन्य प्रणालियों को निशाना बनाते हैं।
- इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण स्टक्सनेट वर्म है, जिसने विशेष रूप से ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया था।
- स्वायत्त हथियार और लोटरिंग म्यूनिशन: इनमें इज़रायल के हारोप (Israel's Harop) और भारत के नागास्त्र-1 जैसे मानव रहित हवाई वाहन (UAV) शामिल हैं, जो मानवीय हस्तक्षेप के बिना लक्ष्यों का निर्णय लेती हैं।
- ये लोटरिंग म्यूनिशन स्वायत्त रूप से लक्ष्यों की खोज करती हैं और उन पर हमला करती हैं तथा कम परिचालन लागत पर सटीक हमले के लिये मिसाइल एवं ड्रोन क्षमताओं का संयोजन करती हैं।
- निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEW), भारत के दिशात्मक रूप से अप्रतिबंधित रे-गन ऐरे (Directionally Unrestricted Ray-Gun Array- DURGA) II जैसे DEW उच्च ऊर्जा वाले लेज़र और माइक्रोवेव हथियार हैं, जो पारंपरिक विस्फोटकों का उपयोग किये बिना मिसाइलों, ड्रोन या वाहनों जैसे लक्ष्यों को निष्क्रिय या नष्ट कर सकते हैं।
- क्वांटम प्रौद्योगिकी: इसमें एन्क्रिप्शन प्रणाली को तोड़ने की क्षमता है, जो युद्ध में सुरक्षित संचार के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करती है।
- इनका उपयोग सैन्य अनुप्रयोगों जैसे कि लॉजिस्टिक्स अनुकूलन और सिमुलेशन मॉडलिंग के लिये भी किया जा सकता है।
- अंतरिक्ष-आधारित युद्ध: अंतरिक्ष के सैन्यीकरण ने उपग्रहों को वैश्विक स्थिति निर्धारण, संचार और वास्तविक समय की खुफिया जानकारी के लिये महत्त्वपूर्ण बना दिया है।
- सैन्य उपग्रह सतह, हवा या समुद्र पर तैनात सेनाओं के लिये नेविगेशन, मौसम संबंधी आँकड़े, निगरानी और संचार प्रदान करते हैं।
- अंतरिक्ष में दुश्मन के उपग्रहों को नष्ट या निष्क्रिय करने की क्षमता एक रणनीतिक प्राथमिकता बन गई है। चीन और भारत जैसे देशों ने उपग्रह-रोधी हथियारों (ASAT) की क्षमताओं (जैसे- भारत का मिशन शक्ति) का परीक्षण किया है।
- इपरसोनिक मिसाइलें: ब्रह्मोस-II जैसी मिसाइलें मैक 5 (ध्वनि की गति से पाँच गुना अधिक) से अधिक गति से यात्रा करती हैं, जिससे वे वर्तमान मिसाइल रक्षा प्रणालियों से बच सकती हैं।
- ये हथियार पारंपरिक या परमाणु हथियार ले जा सकते हैं तथा इनकी गति और गतिशीलता के कारण इन्हें रोकना कठिन है।
- 3D प्रिंटिंग और एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग: यह युद्ध के मैदान पर ही स्पेयर पार्ट्स, हथियारों और यहाँ तक कि ड्रोन के त्वरित प्रोटोटाइप एवं उत्पादन की अनुमति देता है।
- इससे आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता कम हो जाती है और बड़े स्टॉक की आवश्यकता भी कम हो जाती है।
- जैव प्रौद्योगिकी: इसमें सैनिकों की शारीरिक तथा संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ाने की सम्भावना है, जैसे उन्नत कृत्रिम अंगों का निर्माण या सहनशक्ति अथवा थकान के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये आनुवंशिक संशोधन विकसित करना।
- स्वार्मिंग प्रौद्योगिकी: इसमें समन्वित पैटर्न में स्वायत्त रूप से संचालित होने वाले विभिन्न छोटे ड्रोन शामिल होते हैं।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संचालित ये सिस्टम रक्षा प्रणालियों को प्रभावित कर सकते हैं, गुप्तचरी को सक्षम कर सकते हैं, संचार बाधित कर सकते हैं और सटीक हमले कर सकते हैं, जिससे वायु तथा नौसैनिक अभियानों में अनुकूल तथा आश्चर्यजनक क्षमताएँ प्राप्त होती हैं।
- संवर्द्धित वास्तविकता (AR) और आभासी वास्तविकता (VR): AR और VR वास्तविक युद्ध की आवश्यकता के बिना सैनिकों के लिये वास्तविक सिमुलेशन प्रदान करके प्रशिक्षण विधियों को बढ़ा रहे हैं।
- ये प्रौद्योगिकियाँ जटिल युद्ध परिदृश्यों में कार्मिकों को प्रशिक्षित करने, निर्णय लेने और सामरिक प्रतिक्रियाओं में सुधार करने में सहायता करती हैं।
- एक्सोस्केलेटन: संचालित एक्सोस्केलेटन मानव शक्ति और सहनशक्ति को बढ़ाने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं, जिससे सैनिकों को अत्यधिक भार उठाने तथा लंबे अभियानों के दौरान थकान को कम करने में मदद मिलती है।
रक्षा नवाचार में आत्मनिर्भरता भारत के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता: स्वदेशी प्रौद्योगिकी विदेशी हथियारों पर निर्भरता को कम करती है, CAATSA (काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट) जैसी चुनौतियों का समाधान करती है तथा रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करती है।
- ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम उपग्रहों (अमेरिका द्वारा नियंत्रित) जैसे विदेशी नियंत्रित बुनियादी ढाँचे की भेद्यता, संघर्ष के दौरान संभावित कमज़ोरी हो सकती है।
- नाविक (भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन), भारत की क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली, विश्वसनीय, स्वतंत्र नेविगेशन क्षमताओं को सुनिश्चित करती है, जो विदेशी उपग्रह प्रणालियों पर निर्भर हुए बिना सैन्य अभियानों और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य वर्ष 2029 तक रक्षा निर्यात में 50,000 करोड़ रुपये हासिल करना है, जिससे प्रमुख रक्षा प्रौद्योगिकियों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
- सामरिक प्रतिरोध: अग्नि-V और ब्रह्मोस जैसी स्वदेशी मिसाइलें भारत को मज़बूत प्रतिरोध क्षमता प्रदान करती हैं, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भारत की रक्षा रणनीति में आत्मनिर्भर मिसाइल प्रणालियों के माध्यम से परमाणु निवारण को मज़बूत करना और विश्वसनीय द्वितीय-आक्रमण क्षमता बनाए रखना शामिल है।
- परिचालन में लचीलापन: निर्भय मिसाइल और धनुष तोपखाना जैसी प्रौद्योगिकियाँ भारत की भौगोलिक एवं रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाई गई हैं, जिससे इष्टतम प्रदर्शन सुनिश्चित होता है।
- स्वदेशी प्रणालियों को वास्तविक समय की प्रतिक्रिया के आधार पर शीघ्रता से संशोधित और एकीकृत किया जा सकता है, जिससे राष्ट्रीय रक्षा तत्परता मज़बूत होगी।
- आर्थिक विकास और उद्योग विकास: मेक इन इंडिया के तहत रक्षा क्षेत्र उच्च तकनीक वाले रोज़गार सृजित करता है और घरेलू विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करता है।
- श्रीलंका और म्याँमार जैसे देशों को आकाश मिसाइल जैसे निर्यात में वृद्धि से आर्थिक विकास एवं भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ावा मिलता है।
- वैश्विक भू-राजनीतिक प्रभाव: बढ़ता रक्षा निर्यात भारत की रणनीतिक साझेदारी में योगदान देता है, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, जिससे भारत एक प्रमुख वैश्विक हथियार आपूर्तिकर्त्ता के रूप में स्थापित हो रहा है।
रक्षा स्टार्टअप से संबंधित भारत की प्रमुख पहलें कौन-सी हैं?
- मेक इन इंडिया (रक्षा): रक्षा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2014 में शुरू किया गया। इसका उद्देश्य आयात पर निर्भरता कम करना और स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020: इसमें बाए इंडियन (IDDM) और “बाए ग्लोबल- भारत में विनिर्माण” जैसी श्रेणियाँ शुरू की गईं। अनिवार्य स्वदेशी सामग्री सीमा के साथ घरेलू खरीद को प्राथमिकता दी गई।
- रक्षा पूंजी अधिग्रहण वित्त वर्ष 2021-22 में 74,000 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 1.2 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
- रक्षा खरीद नियमावली (DPM-2025): इसके अंतर्गत 5+5 वर्षों के लिये सुनिश्चित ऑर्डर की सुविधा है, जिससे नवप्रवर्तकों को स्थिरता और पूर्वानुमानशीलता मिलती है।
- रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति (DPEPP) 2020: इसमें निर्यात सहित एक सुदृढ़ रक्षा औद्योगिक इकोसिस्टम विकसित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX): इसमें स्टार्ट-अप और MSME को रक्षा आवश्यकताओं के लिये नवाचार करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। अनुदान और खरीद सहायता प्रदान की जाती है; वर्ष 2025 तक 600 से ज़्यादा स्टार्टअप इसमें शामिल हुए हैं।
- प्रौद्योगिकी विकास कोष (TDF): रक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये MSME और स्टार्टअप्स को सहायता प्रदान करने हेतु DRDO द्वारा संचालित। वित्त वर्ष 2025 में प्रति परियोजना वित्तपोषण सीमा बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये कर दी गई है।
- SRIJAN पोर्टल: यह भारतीय उद्योग द्वारा स्वदेशीकरण हेतु आयातित वस्तुओं को सूचीबद्ध करने वाला ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है। फरवरी 2025 तक 14,000 से अधिक वस्तुओं का स्वदेशीकरण किया गया।
- सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ (PIL): निर्धारित समय-सीमा के बाद 5,500 से अधिक वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाने वाली पाँच सूचियाँ जारी की गईं। केवल घरेलू स्रोतों से ही खरीद सुनिश्चित करने के लिये इसका प्रवर्तन किया गया।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. उभरती प्रौद्योगिकियों और घरेलू नवाचार इकोसिस्टम पर विचार करते हुए भविष्य की युद्ध पद्धति के लिये भारत की तत्परता का आकलन कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. आधुनिक युद्ध पद्धति को आकार देने वाली प्रमुख उभरती प्रौद्योगिकियाँ कौन-सी हैं?
AI, स्वायत्त प्रणालियाँ, ड्रोन, साइबर युद्ध, क्वांटम कंप्यूटिंग, डायरेक्टेड-एनर्जी वेपन, हाइपरसोनिक मिसाइलें, स्वॉर्मिंग ड्रोन, AR/VR, एक्सोस्केलेटन और अंतरिक्ष-आधारित क्षमताएँ।
2. भारत के लिये स्वदेशी रक्षा तकनीक क्यों महत्त्वपूर्ण है?
यह रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करती है, विदेशी निर्भरता कम करती है, परिचालन तत्परता को सुदृढ़ बनाती है, आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है और वैश्विक रक्षा प्रभुत्व को अभिवर्द्धित करती है।
3. iDEX क्या है और रक्षा नवाचार में इसकी भूमिका क्या है?
iDEX स्टार्टअप्स/MSMEs को सशस्त्र बलों से संयोजित करता है, स्वदेशी रक्षा तकनीकों के लिये धन, (प्रापण) खरीद और विस्तार सहायता प्रदान करता है।
4. कौन-सी सरकारी नीतियाँ रक्षा स्टार्टअप्स और MSME के लिये सहायक हैं?
मेक इन इंडिया (रक्षा), रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020, SRIJAN पोर्टल और सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ निधीयन, प्रापण एवं नियामक सहायता प्रदान करती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित "टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD)" क्या है? (2018)
(a) इज़रायल की एक रडार प्रणाली
(b) भारत का घरेलू मिसाइल प्रतिरोधी कार्यक्रम
(c) अमेरिकी मिसाइल प्रतिरोधी प्रणाली
(d) जापान और दक्षिण कोरिया के बीच एक रक्षा सहयोग
उत्तर: (c)
प्रश्न. भारतीय रक्षा के संदर्भ में 'ध्रुव' क्या है? (2008)
(a) विमान ले जाने वाला युद्धपोत
(b) मिसाइल ले जाने वाली पनडुब्बी
(c) उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर
(d) अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न घटक क्या हैं? साइबर सुरक्षा में चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए जाँच करें कि भारत ने व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति को किस हद तक सफलतापूर्वक विकसित किया है। (2022)