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डेली न्यूज़

मुख्य परीक्षा

वित्तीय बाज़ारों को मज़बूत करने हेतु ऋण सुधार

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्तीय बाज़ारों को मज़बूत करने, कॉर्पोरेट समेकन में बैंकों की भूमिका बढ़ाने और रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को आगे बढ़ाने के लिये ऋण सुधारों की एक शृंखला की घोषणा की है। यह घोषणा अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापार तनाव और अमेरिकी डॉलर के विकल्प पर ब्रिक्स मुद्रा चर्चाओं के नवीकरण के बीच की गई है।

RBI द्वारा घोषित प्रमुख ऋण सुधार क्या हैं?

  • वित्तीय विलय और अधिग्रहण (M&As): पहली बार, भारत में बैंक कॉर्पोरेट अधिग्रहण (पहले गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC) और निजी फंडों का प्रभुत्व था) के लिये सीधे ऋण प्रदान कर सकते हैं, एक ऐसा क्षेत्र जो पहले दुरुपयोग, प्रमोटर जोखिम और ऋण संकेंद्रण की चिंताओं के कारण प्रतिबंधित था।
  • रुपया-आधारित ऋण: भारतीय बैंक अब नेपाल, भूटान और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों को रुपये में ऋण दे सकेंगे।
    • इस कदम का उद्देश्य क्षेत्रीय व्यापार और निपटान में डॉलर पर निर्भरता को कम करना, रुपये में तरलता प्रदान करना तथा भारत के मौद्रिक प्रभाव को मज़बूत करते हुए रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना है।
  • पूंजी बाज़ार ऋण सीमा में वृद्धि: शेयरों के बदले ऋण सीमा 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गई है तथा इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) वित्तपोषण सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दी गई है।
    • इन उपायों का उद्देश्य बाज़ार आधारित वित्तपोषण तक पहुँच में सुधार करना तथा प्राथमिक पूंजी बाज़ारों को सक्रिय करना है।
  • कॉर्पोरेट ऋण में SRVA का उपयोग: स्पेशल रूपी वास्ट्रो अकाउंट्स (SRVA) में जमा धनराशि को अब केवल सरकारी प्रतिभूतियों में ही नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट बॉन्ड और वाणिज्यिक पत्रों में भी निवेश किया जा सकता है। 
    • इससे रुपये की तरलता मज़बूत होगी और भारत का बॉन्ड बाज़ार मज़बूत होगा।
  • विस्तारित मुद्रा बेंचमार्क: फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया लिमिटेड (FBIL) में अमेरिकी डॉलर, यूरो, पाउंड और येन के अलावा और भी साझेदार मुद्राएँ शामिल होंगी। इससे ज़्यादा देशों के साथ सीधे विदेशी मुद्रा उद्धरण संभव होंगे और डॉलर पर निर्भरता कम होगी।
  • संशोधित बेसल III पूंजी मानदंड: अप्रैल 2027 से RBI वाणिज्यिक बैंकों के लिये संशोधित बेसल III पूंजी पर्याप्तता मानदंड लागू करेगा।
    • नए मानकों से कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से एमएसएमई और आवासीय अचल संपत्ति ऋणों के लिये पूंजी आवश्यकताओं में कमी आने की उम्मीद है, क्योंकि इन क्षेत्रों के लिये जोखिम भार कम कर दिया गया है। 
    • इसका उद्देश्य वित्तीय स्थिरता बनाए रखते हुए बैंकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात को बढ़ाना है।

भारत में वित्तीय बाज़ार

  • वित्तीय बाज़ार: वित्तीय बाज़ार ऐसे प्लेटफॉर्म होते हैं जहाँ स्टॉक, बॉन्ड और मुद्रा जैसी प्रतिभूतियों का व्यापार होता है।
    • ये बाज़ार, जिनमें विदेशी मुद्रा, बॉन्ड, स्टॉक, मुद्रा और डेरिवेटिव बाज़ार शामिल हैं, किसी देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भारत में वित्तीय बाज़ारों के घटक:
    • मुद्रा बाज़ार: अल्पकालिक वित्तीय साधनों (एक वर्ष से कम) से संबंधित है, जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बीच ऋण लेने और ऋण देने की सुविधा प्रदान करता है।
    • पूंजी बाज़ार: दीर्घकालिक साधन (एक वर्ष से अधिक) शामिल हैं। इसमें प्राथमिक बाज़ार (नई प्रतिभूतियाँ) और द्वितीयक बाज़ार (मौजूदा प्रतिभूतियाँ) शामिल हैं।
    • विदेशी मुद्रा बाज़ार: मुद्रा व्यापार को सुगम बनाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • डेरिवेटिव बाज़ार: इसमें ऑप्शन और फ्यूचर्स जैसे वित्तीय साधन शामिल हैं, जो अपनी कीमत अंतर्निहित परिसंपत्तियों से निर्धारित करते हैं।
  • वित्तीय बाज़ारों का महत्त्व: यह पूंजी जुटाने, जोखिम प्रबंधन में सहायता करता है तथा आर्थिक स्थिरता और विकास में योगदान देता है। ये व्यवसायों, निवेशकों और समग्र आर्थिक विकास के लिये आवश्यक हैं।
  • इन बाज़ारों में विफलता मंदी और बेरोज़गारी का कारण बन सकती है।

RBI द्वारा ऋण सुधारों के क्या निहितार्थ हैं?

  • उन्नत पूंजी तक पहुँच: बैंकों को अधिग्रहण के लिये धन उपलब्ध कराने की अनुमति देने से अब कंपनियों को परिचालन बढ़ाने के लिये कम लागत वाली, संरचित वित्त तक पहुॅंच प्राप्त हो गई है।
    • हालॉंकि, इससे प्रमोटर जोखिम भी बढ़ जाता है और परिसंपत्ति गुणवत्ता में गिरावट को रोकने के लिये उन्नत ऋण मूल्यांकन, निगरानी और शासन सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
  • कॉर्पोरेट क्षेत्र का सशक्तीकरण: संरचित बैंक वित्त तक आसान पहुँच, सुशासित कंपनियों को रणनीतिक विस्तार और क्षेत्रीय समेकन करने में सक्षम बनाती है।
  • इससे बुनियादी ढाँचे, ऊर्जा, लॉजिस्टिक्स और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विकास को गति मिलने की संभावना है, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
  • रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण: पड़ोसियों को रुपये में ऋण देने से भारत एक क्षेत्रीय वित्तीय केंद्र के रूप में स्थापित होता है। ये सुधार वैश्विक मुद्रा समूहों के लिये एक प्रतिसंतुलन का कार्य करते हैं तथा रुपया-आधारित व्यापार और ऋण के माध्यम से एक व्यावहारिक विकल्प प्रदान करते हैं।
    • अधिशेष SRVA शेष राशि को भारतीय कॉर्पोरेट बॉन्डों में निवेश करने से भारतीय बाज़ारों में अंतर्राष्ट्रीय विश्वास बढ़ता है तथा विदेशों में रुपये की तरलता बढ़ती है।

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के वित्तीय बाज़ारों को मज़बूत करने और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. बैंकों को RBI ने कौन-सी नई ऋण देने की स्वतंत्रता प्रदान की है?
अब बैंक विलय और अधिग्रहण (M&As) के लिये वित्तपोषण कर सकते हैं, जो पहले NBFC के अधिकार क्षेत्र में था।

2. पड़ोसी देशों को रुपये में ऋण देने से भारत को किस प्रकार लाभ होता है?
यह रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देता है और क्षेत्रीय व्यापार में डॉलर पर निर्भरता को कम करता है।

3. स्पेशल रूपी वॉस्ट्रो अकाउंट्स (SRVAs) के शेष को अब किस नए उपयोग के लिये अनुमति दी गई है?
SRVA में अधिशेष धन को अब कॉर्पोरेट बॉन्ड और कमर्शियल पेपर में निवेश किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)

(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना

उत्तर: (c)

मेन्स:

प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि स्थिर सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न  मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-कतर व्यापार और आर्थिक सहयोग

प्रिलिम्स के लिये: कतर, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, एलएनजी आपूर्ति समझौता, FDI, ज़ायर-अल-बहर, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, इसरो।

मेन्स के लिये: भारत-कतर रणनीतिक साझेदारी: पश्चिम एशियाई भू-राजनीति में पारस्परिक महत्त्व, आर्थिक तालमेल और भविष्य की दिशा का विश्लेषण।

स्रोत: BS 

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने आर्थिक एवं वाणिज्यिक सहयोग पर भारत-कतर संयुक्त आयोग की सह-अध्यक्षता करने के लिये कतर का दौरा किया, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने और नए आर्थिक अवसरों की खोज पर ध्यान केंद्रित किया गया।

भारत-कतर संयुक्त आयोग की बैठक के मुख्य परिणाम क्या हैं?

  • महत्त्वाकांक्षी व्यापार लक्ष्य: दोनों देशों ने अप्रयुक्त क्षमता को पहचाना और वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने के लक्ष्य पर ज़ोर दिया। वर्तमान व्यापार लगभग 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • डिजिटल एकीकरण: कतर में भारत के एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) का शुभारंभ एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिससे भारतीय प्रवासियों और स्थानीय उपभोक्ताओं के लिये निर्बाध डिजिटल भुगतान की सुविधा उपलब्ध हुई।
  • विकास के लिये चिन्हित क्षेत्र: मंत्रियों ने भारतीय निर्यात और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये निम्नलिखित क्षेत्रों पर प्रकाश डाला:
    • पारंपरिक: फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र, रत्न एवं आभूषण
    • विनिर्माण एवं प्रौद्योगिकी: इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ
    • भविष्य-केंद्रित: आईटी, उभरते उच्च तकनीक उद्योग, सौर ऊर्जा।
  • ऊर्जा सुरक्षा: भारत ने कतर के साथ वर्ष 2028 से सालाना 7.5 मिलियन टन LPG आपूर्ति करने वाले समझौते की सराहना की, जिसे ऊर्जा साझेदारी की नींव माना जा रहा है।

भारत और कतर के बीच साझेदारी विभिन्न क्षेत्रों में किस प्रकार परिलक्षित होती है?

  • व्यापार संबंध: भारत-कतर व्यापावित्त वर्ष 2025 में 14.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें भारत का 10.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा मुख्य रूप से पेट्रोलियम आयात (89%) के कारण हुआ।
    • भारत कतर के शीर्ष तीन निर्यात गंतव्यों और शीर्ष तीन आयात स्रोतों में से एक है।
  • निवेश: कतर में 20,000 से अधिक भारतीय कंपनियाँ (पूर्ण स्वामित्व वाली और संयुक्त उद्यम) कार्यरत हैं, जबकि भारत में कतर का FDI लगभग 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ गया है।
  • ऊर्जा आपूर्ति: कतर, भारत का सबसे बड़ा LNG और LPG आपूर्तिकर्त्ता (भारत के कुल LPG आयात का 26% कतर से आता है) है। वित्त वर्ष 2024–25 में, हाइड्रोकार्बन व्यापार दोनों देशों के कुल द्विपक्षीय व्यापार का 78.7% रहा। इसके साथ ही वर्ष 2028 से शुरू होने वाली 25 वर्षीय LNG आपूर्ति समझौता भी तय हुआ है।
  • रक्षा संबंध: भारत-कतर रक्षा सहयोग समझौता, जिस पर वर्ष 2008 में हस्ताक्षर हुए थे और वर्ष 2018 में इसे बढ़ाया गया, इसमें प्रशिक्षण, नौसैनिक दौरे, DIMDEX भागीदारी और द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास ज़ायर-अल-बहर (समुद्र का गर्जन) शामिल हैं।
  • सांस्कृतिक संबंध: वर्ष 2012 के सांस्कृतिक सहयोग समझौते के तहत नियमित सांस्कृतिक आदान-प्रदान होते हैं। वर्ष 2019 को भारत-कतर संस्कृति वर्ष के रूप में मनाया गया था, भारत कतर-MENASA 2022 का साझेदार भी रहा और वर्ष  2024 में ‘पैसेज टू इंडिया’ (Passage to India) महोत्सव का आयोजन किया गया।
    • कतर में 830,000 से अधिक भारतीय रहते हैं, जो दोनों देशों के बीच मज़बूत पीपल-टू-पीपल संबंधों को दर्शाता है।

भारत-कतर संबंधों का क्या महत्त्व है?

कतर के लिये भारत का महत्त्व 

  • गारंटीकृत ऊर्जा बाज़ार: एक बड़े और विश्वसनीय LNG खरीदार के रूप में भारत, कतर को एक स्थिर राजस्व धारा प्रदान करता है, जो उसकी अर्थव्यवस्था और कतर राष्ट्रीय विज़न 2030 को समर्थन प्रदान करता है।
  • आवश्यक वस्तुओं का स्रोत: भारत कतर को खाद्य, फार्मास्यूटिकल्स और विनिर्मित वस्तुओं की आपूर्ति करता है, जो कतर की आपूर्ति श्रृंखला और खाद्य सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • गैर-ऊर्जा आर्थिक विविधीकरण: भारत कतर को हाइड्रोकार्बन के अलावा फिनटेक, नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में निवेश के अवसर प्रदान करता है, जबकि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (ISRO) और किफायती स्वास्थ्य सेवा सहयोग के नए अवसर प्रदान करते हैं।
  • रसद और परियोजना निष्पादन: भारतीय कंपनियाँ इंजीनियरिंग, खरीद तथा निर्माण (EPC) में अग्रणी हैं, जो फीफा विश्व कप 2022 जैसी बड़ी परियोजनाओं को क्रियान्वित कर रही हैं, जबकि विशाल भारतीय कार्यबल कतर के स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आतिथ्य एवं विमानन क्षेत्रों को सहयोग प्रदान कर रहा है।
  • ज्ञान एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था में साझेदार: भारत की IT और सॉफ्टवेयर विशेषज्ञता कतर के डिजिटल परिवर्तन को आगे बढ़ाती है, जबकि शिक्षा और कौशल विकास कतर की ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था के लिये मॉडल प्रस्तुत करते हैं।

भारत के लिये कतर का महत्त्व 

  • ऊर्जा सुरक्षा और मूल्य स्थिरता: LNG बाज़ार में मूल्य निर्धारक कतर, दीर्घकालिक अनुबंधों की पेशकश करता है जो भारत को मूल्य अस्थिरता से बचाते हैं और इसके रणनीतिक गैस भंडार और स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण का समर्थन करते हैं।
  • धन प्रेषण: 800,000 से अधिक भारतीयों के साथ कतर में एक बड़ा प्रवासी समुदाय रहता है, जो अरबों डॉलर का धन प्रेषण के रूप में प्रदान करता है, जिससे भारत की विदेशी मुद्रा और पारिवारिक आजीविका को सहायता मिलती है।
  • रणनीतिक निवेश स्रोत: कतर निवेश प्राधिकरण (QIA, कतर का संप्रभु धन कोष) ने भारत में बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी और रियल एस्टेट में अरबों का निवेश किया है, जो राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) जैसी परियोजनाओं के लिये प्रमुख पूंजी स्रोत के रूप में कार्य कर रहा है।
  • पश्चिम एशिया में रणनीतिक गहराई: कतर की मध्यस्थ भूमिका (जैसे, अफगानिस्तान में) और अल-उदीद एयर बेस तथा उसके अमेरिकी संबंध भारत को इस क्षेत्र में रणनीतिक कूटनीतिक लाभ प्रदान करते हैं।

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: भारत-कतर द्विपक्षीय संबंधों में चुनौतियाँ

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: आगे की राह

निष्कर्ष

भारत-कतर संबंध बहुआयामी हैं, जिनमें व्यापार, ऊर्जा, निवेश, रक्षा और सांस्कृतिक सहयोग शामिल हैं। वर्ष 2030 तक व्यापार को दोगुना करने के साझा दृष्टिकोण, रणनीतिक LNG आपूर्ति समझौतों, UPI के माध्यम से डिजिटल एकीकरण तथा मज़बूत प्रवासी संबंधों के साथ, दोनों देश सतत् आर्थिक विकास एवं क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये पूरक क्षमताओं का लाभ उठा रहे हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. भारत-कतर द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने में डिजिटल एकीकरण, व्यापार विविधीकरण और क्षेत्रीय सहयोग की भूमिका का आकलन करना।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत-कतर द्विपक्षीय व्यापार की स्थिति क्या है?
वित्त वर्ष 2025 में द्विपक्षीय व्यापार 14.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें पेट्रोलियम आयात के कारण भारत को 10.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ा।

2. कतर भारत की ऊर्जा सुरक्षा में किस प्रकार योगदान देता है?
कतर दीर्घकालिक LNG आपूर्ति समझौते (2028 से 7.5 मिलियन टन/वर्ष) प्रदान करता है, जिससे कीमतें स्थिर रहती हैं और भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को समर्थन मिलता है।

3. कतर के साथ भारत के व्यापार घाटे को दूर करने के लिये क्या उपाय किये जा रहे हैं?
प्रमुख उपायों में फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और IT में निर्यात को विविधीकृत करना, बाधाओं को कम करने के लिये CEPA का अनुसरण करना और कतर निवेश प्राधिकरण (QIA) से निवेश को बढ़ावा देना शामिल है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016)

(a) ईरान

(b) ओमान

(c) सऊदी अरब

(d) कुवैत

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)


आपदा प्रबंधन

भारत की आपदा प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करना

प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, आर्द्रभूमि, मौसम, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन

मेन्स के लिये: भारत में आपदा प्रबंधन, भारत के अनुकूल और तैयारी को कमज़ोर करने वाली प्रमुख आपदा चुनौतियाँ।

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

भारत, प्रधानमंत्री के आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर 10-सूत्री एजेंडा (2016) के मार्गदर्शन में, विज्ञान-आधारित, प्रकृति-संचालित और वित्त-संबद्ध रणनीतियों के माध्यम से अपनी आपदा अनुकूल क्षमता को सशक्त बना रहा है।

  • 15वें वित्त आयोग द्वारा वर्ष 2021–26 की अवधि के लिये ₹2.28 लाख करोड़ की राशि आवंटित की गई है, जिससे आपदा प्रबंधन में प्रतिक्रिया-आधारित राहत उपायों से सक्रिय और पूर्वानुमानात्मक शासन की दिशा में यह परिवर्तन और मज़बूत हुआ है।

भारत खतरों को कम करने के लिये आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को किस प्रकार बढ़ा रहा है?

  • संस्थागत ढाँचा: गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) बहु-आपदा योजना के माध्यम से राज्यों का मार्गदर्शन करते हैं। इसके तहत भूस्खलन पर राष्ट्रीय दिशा-निर्देश (2023) और शहरी बाढ़ प्रबंधन रूपरेखा (2024) जैसे ढाँचे अपनाए गए हैं, जो तैयारी और प्रतिक्रिया उपायों को मानकीकृत करते हैं।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर 10-सूत्री एजेंडा: प्रधानमंत्री का यह एजेंडा आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को विकास प्रक्रिया में एकीकृत करता है, तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देता है तथा स्थानीय क्षमताओं को मज़बूत करता है। इसमें सामुदायिक तैयारी, तकनीक-आधारित समाधान और वैश्विक सहयोग जैसे तत्त्व शामिल हैं।
  • वित्तीय नवाचार: 15वें वित्त आयोग ने वर्ष 2021–26 के लिये ₹2.28 लाख करोड़ आवंटित किये हैं, जिसमें तैयारी (10%), शमन (20%), प्रतिक्रिया (40%) और पुनर्निर्माण (30%) को शामिल किया गया है। इससे बहुपक्षीय ऋणों पर निर्भरता कम करने में मदद मिली है।
    • उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, सिक्किम और केरल जैसे राज्यों के लिये 5,000 करोड़ रुपये के पुनर्निर्माण पैकेज पहले ही स्वीकृत किये जा चुके हैं।
  • प्रकृति-आधारित समाधान: भारत सतत्, पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित करता है। 
    • इन पहलों में स्थिरीकरण हेतु जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग, बाढ़ नियंत्रण के लिये आर्द्रभूमियों की पुनर्स्थापना, वनाग्नि की रोकथाम के लिये ईंधन-अवरोध (फ्यूल ब्रेक्स) का निर्माण तथा शहरी हरित क्षेत्रों का विस्तार जैसी कार्रवाइयाँ शामिल हैं।
  • तकनीकी उपाय: NDMA जोखिम पूर्वानुमान में सुधार के लिये सुदूर संवेदन, साइट-विशिष्ट स्वचालित मौसम स्टेशनों और हिमनद-झील निगरानी जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करता है।
    • खतरा मानचित्रण और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ संवेदनशील समुदायों को समय पर अलर्ट सुनिश्चित करती हैं।
    • फ्लडवॉच, मौसम, मेघदूत और दामिनी (बिजली के लिये) जैसे मोबाइल एप्लीकेशन नागरिकों और किसानों को वास्तविक समय पर कार्रवाई योग्य अलर्ट प्रदान करते हैं, जिससे सामुदायिक तत्परता बढ़ती है। 
    • राष्ट्रीय चक्रवात शमन कार्यक्रम (2011-22) जैसे कार्यक्रमों ने 8 राज्यों में पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ और 700 चक्रवात आश्रय स्थल बनाए हैं।
    • राष्ट्रीय चक्रवात शमन कार्यक्रम (2011–22) जैसी पहलों के तहत 8 तटीय राज्यों में उन्नत पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित की गई हैं और लगभग 700 चक्रवात आश्रय स्थल निर्मित किये गए हैं, जिससे आपदा के समय त्वरित और सुरक्षित निकासी सुनिश्चित हो सके।
  • क्षमता निर्माण: भू-स्थानिक प्रशिक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की जा रही हैं तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) ने आपदा प्रबंधन की 36 धाराओं को कवर करते हुए पाठ्यक्रमों का विस्तार किया है। 
    • ‘आपदा मित्र’ और ‘युवा आपदा मित्र’ जैसे स्वयंसेवी नेटवर्क लगभग 2.5 लाख नागरिकों को आपदा तैयारी और प्रबंधन का प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर, पंचायतें और स्कूल सक्रिय रूप से स्थानीय आपदा प्रबंधन योजनाएँ बनाते हैं तथा सुरक्षा अभ्यास (ड्रिल्स) आयोजित करते हैं ताकि समुदायों की तात्कालिक प्रतिक्रिया क्षमता को मज़बूत किया जा सके।
    • साथ मिलकर, ये प्रयास व्यावहारिक तत्परता को बढ़ाते हैं और समुदायों को आपात स्थितियों के दौरान प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने के लिये सशक्त बनाते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय समन्वय: भारत आपदा-रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (CDRI) जैसी पहलों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर सक्रिय सहयोग कर रहा है। वह G-20, बिम्सटेक और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे मंचों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) पर चर्चाओं में भाग लेकर विशेषज्ञता साझा करता है तथा बहु-संकट रोधी लचीलेपन के निर्माण हेतु सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं से सीख लेता है।

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भारत की आपदा रोधी क्षमता के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • स्मरणसूत्र: “FRAGILE”
  • F- (Fragile Ecosystems and Cascading Disasters) नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र और व्यापक आपदाएँ: हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्र मिश्रित आपदाओं का सामना करते हैं, जहाँ बादल फटने से भूस्खलन होता है, जिससे अचानक बाढ़ आती है।
    • अनियंत्रित बुनियादी ढाँचा और जलवायु परिवर्तनशीलता जोखिमों को बढ़ा देते हैं, जैसा कि वर्ष 2023 के हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम GLOF की घटनाओं में देखा गया है।
  • R- (Reactive and Relief-Centric Governance) प्रतिक्रियात्मक और राहत-केंद्रित शासन: आपदा नीति अभी भी पूर्व-निवारक शमन के बजाय घटना-पश्चात् राहत पर केंद्रित है।
  • A- (Administrative and Institutional Weaknesses) प्रशासनिक और संस्थागत कमज़ोरियाँ: आपदा प्रबंधन अत्यधिक केंद्रीकृत है, जिससे ज़िले संसाधनों से वंचित और अपर्याप्त रूप से प्रशिक्षित हैं।
    • समन्वय की कमी और धीमी धन प्रवाह स्थानीय स्तर की तैयारी और त्वरित प्रतिक्रिया को कमज़ोर करते हैं।
  • G- (Governance Failures and Urban Mismanagement) शासन विफलताएँ और शहरी कुप्रबंधन: अनियोजित शहरीकरण और कमज़ोर विनियमन ने प्राकृतिक जल निकासी को बाधित किया है, जिससे बार-बार बाढ़ आती है।
    • भूमि-उपयोग प्रवर्तन के खराब होने के कारण अब 80% से अधिक भारतीय उच्च जोखिम वाले ज़िलों में रहते हैं।
  • I- (Inadequate Technology and Early Warning Systems) - अपर्याप्त तकनीक और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: बाढ़-जोखिम वाले केवल 25% ज़िलों में ही कार्यात्मक पूर्वानुमान उपलब्ध हैं, जिससे अंतिम छोर तक पहुँच सीमित हो जाती है।
  • L- (Lax Enforcement of Building Codes)- भवन निर्माण संहिताओं का ढीला-ढाला प्रवर्तन: भारत का 59% हिस्सा भूकंप-प्रवण होने के बावजूद, राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता का अनुपालन अभी भी खराब है।
    • अनौपचारिक निर्माण और असुरक्षित भूमि उपयोग शहरों और कस्बों में संरचनात्मक भेद्यता को बढ़ाते हैं।
  • E- (Expanding Socio-Economic Vulnerability) सामाजिक-आर्थिक भेद्यता का विस्तार: गरीबी और असमानता लोगों को असुरक्षित, सीमांत भूमि पर रहने के लिए मजबूर करती है। अनौपचारिक श्रमिक जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान का सबसे अधिक बोझ उठाते हैं।

भारत की आपदा रोधी क्षमता के लिये आगे की राह क्या होनी चाहिये?

  • स्मरणसूत्र: “RESILIENT”
  • R - जोखिम-सूचित योजना (Risk-informed Planning): आपदा जोखिम को बजट में शामिल करना, बाढ़ क्षेत्र (floodplain) में ज़ोनिंग लागू करना तथा उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों में बस्तियों के विकास पर रोक लगाना। वेटलैंड और मैंग्रोव जैसे प्रकृति-आधारित समाधान (Nature-Based Solutions) में निवेश करना।
  • E - पूर्व चेतावनी और तकनीकी उन्नयन (Early Warning & Technology Upgrades): हाइपर-लोकल मल्टी-हैज़र्ड (Multi-Hazard) पूर्व चेतावनी प्रणाली तैनात करना। नदी, ढाल और मिट्टी की निगरानी के लिये IoT माइक्रो-सेंसर का उपयोग करना और जियो-टैग किये गए अलर्ट (CAP) के माध्यम से मोबाइल पर भेजना।
  • S - अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना (Strengthening Infrastructure): आपदा-प्रतिरोधी निर्माण संहिताओं को लागू करना और वर्ष 2005 से पहले के महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे का पुनर्निर्माण करना। बुनियादी ढाँचे की योजना में जलवायु-जोखिम को एकीकृत करना।
  • I - समावेशी सामुदायिक तैयारी (Inclusive Community Preparedness): ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को कानूनी स्वायत्तता और विशेषज्ञ कर्मचारियों से सशक्त बनाना। गाँव/वार्ड स्तर पर प्रथम प्रतिक्रिया के लिये contingency plans अनिवार्य करें।
  • L - स्थानीय क्षमता निर्माण (Local Capacity Building): संसाधनों और निर्णय लेने को विकेंद्रीकृत करें; स्थानीय प्रशिक्षण और तैयारी को सुधारें।
  • I - संस्थागत समन्वय (Institutional Coordination): निजी क्षेत्र की वृद्धि क्षमता को केवल कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) से आगे एकीकृत करना तथा अंतर-एजेंसी अभ्यास आयोजित करना, जैसे समन्वित प्रतिक्रिया।
  • E - आर्थिक तैयारी (Economic Readiness): आपदा न्यूनीकरण को समर्थन देने के लिये आपदा बीमा और समर्पित अनुकूलन निधि का विस्तार करना तथा अनुपालन न करने पर कठोर दंड लगाना।
  • N - प्रकृति-आधारित समाधान (Nature-Based Solutions): मैंग्रोव, आर्द्रभूमि, वनों का पुनरुद्धार; आपदाओं से बचाव के लिए शहरी नियोजन में एकीकरण।
  • T - प्रशिक्षण (Training): 10 लाख महिलाओं को 'आपदा सखी' के रूप में प्रशिक्षित करना और मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने के लिये प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ आघात और गहन देखभाल केंद्र स्थापित करना।

निष्कर्ष:

भारत की आपदा प्रतिरोधक क्षमता अभी भी FRAGILE बनी हुई है, लेकिन भारत एक "RESILIENT" दृष्टिकोण अपनाता है जिसमें योजना, प्रारंभिक चेतावनी, बुनियादी ढाँचा, समुदाय, स्थानीय क्षमताएँ, प्रकृति-आधारित समाधान और प्रशिक्षण जैसे पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए, तो इससे तैयारी को मज़बूती, हानियों में कमी और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को समर्थन मिल सकता है। यह रणनीति भारत को वर्ष 2047 तक एक आपदा-प्रतिरोधक राष्ट्र बनने की दिशा में आगे ले जा सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न.  भारत की आपदा लचीलापन और तैयारी को कमज़ोर करने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. भारत का प्राथमिक आपदा प्रबंधन निकाय कौन-सा है?
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) आपदा पूर्व और आपदा पश्चात् प्रबंधन का समन्वय करता है तथा राज्यों को बहु-आपदा योजना पर मार्गदर्शन देता है।

2. प्रकृति-आधारित आपदा न्यूनीकरण की कुछ पहलें क्या हैं?
आर्द्रभूमि पुनरुद्धार, ढलान जैव-इंजीनियरिंग, ईंधन-विराम और शहरी हरित स्थान।

3. आपदा प्रबंधन में प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे किया जाता है?
रिमोट सेंसिंग, स्वचालित मौसम केंद्र, हिमनद निगरानी और खतरा मानचित्रण जोखिम पूर्वानुमान को बढ़ाते हैं।

4. कौन से मोबाइल ऐप वास्तविक समय पर आपदा अलर्ट प्रदान करते हैं?
बाढ़ की निगरानी, मौसम, मेघदूत, किसान और दामिनी नागरिकों और किसानों को सचेत करते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

मेन्स:

प्रश्न. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020)

प्रश्न. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये उसके खतरे को परिभाषित करने हेतु भेद्यता एक अत्यावश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न.  भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी० आर० आर०) के लिये 'सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-2030)' हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात् किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप 'ह्योगो कार्रवाई प्रारूप, 2005' से किस प्रकार भिन्न है? (2018)


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