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डेली न्यूज़

  • 08 Oct, 2021
  • 41 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपेलेंट टैंक

प्रिलिम्स के लिये:

सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपेलेंट टैंक

मेन्स के लिये:

सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपेलेंट टैंक का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (HAL) ने ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) को अब तक का सबसे भारी ‘सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपेलेंट टैंक’ (SC120-LOX) प्रदान किया है।

  • वर्ष 2020 में, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने इसरो को अब तक का सबसे बड़ा ‘क्रायोजेनिक लिक्विड हाइड्रोजन टैंक’ (C32-LH2) दिया था।

प्रमुख बिंदु 

  • सेमी क्रायो-लिक्विड ऑक्सीजन के विषय में:
    • सेमी क्रायो-लिक्विड ऑक्सीजन (LOX) टैंक- जो कि अब तक का पहला विकासात्मक वेल्डेड हार्डवेयर है- मौजूदा ‘Mk-III’ लॉन्च वाहन में ‘L110’ चरण को बदलकर पेलोड बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गए ‘SC120’ चरण का एक हिस्सा है।
      • GSLV Mk III इसरो द्वारा विकसित तीन चरणों वाला भारी-भरकम प्रक्षेपण यान है। वाहन में दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन, एक कोर लिक्विड बूस्टर और एक क्रायोजेनिक अपर स्टेज है।
  • क्रायोजेनिक इंजन:
    • क्रायोजेनिक इंजन/क्रायोजेनिक चरण अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों का अंतिम चरण है जो क्रायोजेनिक्स का उपयोग करता है।
      • क्रायोजेनिक्स का आशय अंतरिक्ष में भारी वस्तुओं को उठाने और रखने के लिये बेहद कम तापमान (-150 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे) पर सामग्री के व्यवहार का अध्ययन करने से है।
    • एक क्रायोजेनिक इंजन ठोस और तरल प्रणोदक रॉकेट इंजन की तुलना में अधिक बल प्रदान करता है और अधिक कुशल होता है।
    • यह तरल ऑक्सीजन (LOX) और तरल हाइड्रोजन (LH2) को प्रणोदक के रूप में उपयोग करता है, जो क्रमशः -183 डिग्री सेल्सियस और -253 डिग्री सेल्सियस पर द्रवित होता है। 
  • सेमी-क्रायोजेनिक इंजन:
    • क्रायोजेनिक इंजन के विपरीत, एक सेमी-क्रायोजेनिक इंजन तरल हाइड्रोजन के बजाय परिष्कृत केरोसीन का उपयोग करता है।
    • तरल ऑक्सीजन का उपयोग ऑक्सीडाइज़र के रूप में किया जाता है।
      • सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग करने का यह फायदा है कि इसमें परिष्कृत केरोसीन की आवश्यकता होती है जो तरल ईंधन से हल्का होता है और इसे सामान्य तापमान में संग्रहीत किया जा सकता है।
    • तरल ऑक्सीजन के साथ संयुक्त केरोसीन रॉकेट को अधिक ऊर्जा प्रदान करता है।
    • परिष्कृत केरोसीन कम जगह घेरता है, जिससे सेमी-क्रायोजेनिक इंजन ईंधन डिब्बे में अधिक प्रणोदक ले जाना संभव हो जाता है।
    • क्रायोजेनिक इंजन की तुलना में सेमी-क्रायोजेनिक इंजन अधिक शक्तिशाली, पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी होता है।

स्रोत: इकोनॉमिक्स टाइम्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-ताइवान संघर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

चीन एवं ताइवान की भौगौलिक अवस्थिति, ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस, मालाबार अभ्यास

मेन्स के लिये:

चीन-ताइवान संघर्ष और इस संबंध में भारत का दृष्टिकोण

चर्चा में क्यों?

चीन-ताइवान संबंध वर्षों से तनावपूर्ण रहे हैं तथा उनके बीच हालिया संघर्ष तब देखने को मिला जब चीन ने ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की।

  • यद्यपि ताइवान के हवाई क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी मान्यता प्राप्त है, उसका वायु रक्षा क्षेत्र एक स्व-घोषित क्षेत्र है, जिसकी निगरानी देश की सेना करती है।

Taiwan

प्रमुख बिंदु

  • चीन और ताइवान के बीच संघर्ष (पृष्ठभूमि):
    • वर्ष 1949 में हुए गृहयुद्ध के दौरान चीन और ताइवान अलग हो गए, हालाँकि इसके बावजूद चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और आवश्यकता पड़ने पर किसी भी तरह से उस पर नियंत्रण प्राप्त करने की वकालत करता है।
    • वहीं ताइवान के नेताओं का कहना है कि ताइवान एक संप्रभु राज्य है।
    • दशकों की तनावपूर्ण स्थिति के बाद 1980 के दशक में चीन और ताइवान के बीच संबंधों में सुधार की शुरुआत हुई, चीन ने ‘एक देश, दो प्रणाली’ के रूप में एक सूत्र प्रस्तुत किया, जिसके तहत ताइवान यदि चीन के साथ पुन: एकीकरण स्वीकार करता है, तो उसे स्वायत्तता दी जाएगी।
    • ताइवान ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, हालाँकि ताइवान सरकार ने चीन की यात्रा करने और वहाँ निवेश संबंधी नियमों में ढील दी है।
    • इस दौरान दोनों पक्षों के बीच अनौपचारिक वार्ता का दौर भी शुरू हुआ, हालाँकि चीन का कहना था कि ताइवान की रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट वार्ता को अवैध रूप से रोक रही है।
    • वर्ष 2020 में हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के कार्यान्वयन को कई लोग इस तथ्य के संकेत के रूप में भी देख रहे हैं कि चीन इस क्षेत्र में काफी अधिक मुखर रहा है।
  • चीन की चिंताएँ
    • ‘वन चाइना पाॅलिसी’ के समक्ष चुनौती
      • चीन की ‘वन चाइना पाॅलिसी’ का अर्थ है कि जो देश ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (मेनलैंड चाइना) से कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहते हैं उन्हें ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (ताइवान) के साथ अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त करने होंगे।
      • कुछ देशों के ताइवान के साथ मौजूदा राजनयिक संबंध और विभिन्न अंतर-सरकारी संगठनों में इसकी सदस्यता चीन की नीति को चुनौती देती है:
        • रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान के कुल 15 देशों के साथ राजनयिक संबंध हैं और इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ के देशों, जापान एवं न्यूज़ीलैंड जैसे कई अन्य देशों के साथ भी इसके अनौपचारिक संबंध हैं।
        • इसके अलावा ताइवान के पास 38 अंतर-सरकारी संगठनों और उनके सहायक निकायों की पूर्ण सदस्यता है, जिसमें विश्व व्यापार संगठन (WTO), एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) और एशियाई विकास बैंक (ADB) शामिल हैं।
    • चीन को काउंटर करने वाले समझौते/अभ्यास:
      • हाल ही में अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस (AUKUS) के बीच इंडो-पैसिफिक के लिये एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी की घोषणा की है, जिसे चीन को काउंटर करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।
      • मालाबार अभ्यास (अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया) भी स्थायी इंडो-पैसिफिक गठबंधन बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिससे आर्थिक और सैन्य रूप से शक्तिशाली चीन द्वारा उत्पन्न बड़े पैमाने पर रणनीतिक असंतुलन को दूर किया जा सके।
    • अमेरिका द्वारा ताइवान को सामरिक और रक्षा सहायता:
      • ताइवान ने अमेरिकी हथियारों की खरीद के साथ अपनी सुरक्षा में सुधार करने की मांग की है, जिसमें उन्नत एफ-16 लड़ाकू जेट, सशस्त्र ड्रोन, रॉकेट सिस्टम और हार्पून मिसाइल शामिल हैं।
      • युद्धपोत थियोडोर रूजवेल्ट के नेतृत्व में एक अमेरिकी विमान वाहक समूह ने समुद्र की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने वाली साझेदारी के निर्माण के लिये दक्षिण चीन सागर में प्रवेश किया है।
  • मुद्दे पर भारत का दृष्टिकोण:
    • 1949 से भारत ने "वन चाइना" नीति को स्वीकार किया है जो ताइवान और तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में स्वीकार करती है।
    • हालाँकि भारत को एक कूटनीतिक दृष्टिकोण का उपयोग करना चाहिये अर्थात् यदि भारत "वन चाइना" नीति में विश्वास करता है, तो चीन को "वन इंडिया" नीति में भी विश्वास करना चाहिये।
    • भले ही भारत ने वर्ष 2010 से संयुक्त बयानों और आधिकारिक दस्तावेज़ों में वन चाइना नीति के पालन का उल्लेख करना बंद कर दिया है, लेकिन चीन के साथ संबंधों के कारण ताइवान के साथ उसका जुड़ाव अभी भी प्रतिबंधित है।
      • भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन वर्ष 1995 के बाद से दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालयों को बनाए रखा है जो वास्तविक दूतावासों के रूप में कार्य करते हैं।

आगे की राह 

  • भारत और अन्य शक्तियों को ताइवान पर बलपूर्वक कब्ज़ा करने के किसी भी चीनी प्रयास के लिये एक रेडलाइन तैयार करनी चाहिये। आखिरकार ताइवान का मुद्दा एक अधिनायकवादी राज्य द्वारा एक सफल लोकतंत्र को नष्ट करने की अनुमति देने का नैतिक प्रश्न है, यह अंतर्राष्टीय नैतिकता का प्रश्न है जहाँ विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिये।
  • वास्तव में यह रेडलाइन खींचने का कारण ताइवान बिल्कुल नहीं है, बल्कि यह है कि ताइवान पर चीनी आक्रमण के भारत और शेष एशिया पर क्या परिणाम प्रदर्शित होंगे। ताइवान पर चीन के आक्रमण के अगले दिन ही इसके परिणामों की परवाह किये बिना यह अलग एशिया को चिह्नित करेगा।
  • एक रेडलाइन खींचना आसान नहीं है लेकिन भारत और अन्य देशों को कम-से-कम इसके लिये प्रयास करने की आवश्यकता है।
    • इसका एक पहलू ताइवान के साथ भारत के संबंधों में सुधार करना है, भले ही अभी भारत ने उसे  स्वतंत्र देश की मान्यता नहीं दी है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

विद्युत क्षेत्र के लिये साइबर सुरक्षा दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

सीईआरटी-इन 

मेन्स के लिये:

साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने बिजली क्षेत्र के लिये साइबर सुरक्षा दिशा-निर्देश जारी किये।

  • यह पहली बार है कि बिजली क्षेत्र में साइबर सुरक्षा पर व्यापक दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA, विद्युत मंत्रालय) इन साइबर सुरक्षा दिशा-निर्देशों पर काम कर रहा है।

प्रमुख बिंदु 

  • दिशा-निर्देश के बारे में:
    • CEA ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (ग्रिड से कनेक्टिविटी के लिये तकनीकी मानक) (संशोधन) विनियम, 2019 के तहत ये दिशा-निर्देश तैयार किये हैं।
    • यह एक साइबर आश्वासन ढाँचा तैयार करता है, नियामक ढाँचे को मज़बूत करता है, सुरक्षा खतरे की पूर्व चेतावनी, भेद्यता प्रबंधन और सुरक्षा खतरों की प्रतिक्रिया के लिये तंत्र स्थापित करता है तथा दूरस्थ संचालन एवं सेवाओं को सुरक्षित करता है।
    • ये मानदंड सभी ज़िम्मेदार संस्थाओं के साथ-साथ सिस्टम इंटीग्रेटर्स, उपकरण निर्माताओं, आपूर्तिकर्त्ताओं/विक्रेताओं, सेवा प्रदाताओं और भारतीय बिजली आपूर्ति प्रणाली में लगे सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर ओईएम (मूल उपकरण निर्माता) पर लागू होते हैं।
      • ज़िम्मेदार संस्थाओं में बिजली उत्पादन एवं वितरण उपयोगिताओं, पारेषण कंपनियों और अन्य लोगों के बीच लोड प्रेषण केंद्र शामिल हैं।
  • प्रमुख दिशा-निर्देश:
    • विश्वसनीय स्रोत से खरीद:
      • यह पहचान किये गए 'विश्वसनीय स्रोतों' और 'विश्वसनीय उत्पादों' से सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी आधारित खरीद को अनिवार्य करता है या फिर बिजली आपूर्ति प्रणाली नेटवर्क में उपयोग के लिये तैनाती से पहले उत्पाद का मैलवेयर/हार्डवेयर ट्रोजन के लिये परीक्षण किया जाता है।
    • मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारी:
      • प्रत्येक ज़िम्मेदार संस्था में एक मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारी (सीआईएसओ) की नियुक्ति के साथ-साथ सीआईएसओ की अध्यक्षता में एक सूचना सुरक्षा प्रभाग की स्थापना।
    • पहचान और रिपोर्ट करने की प्रक्रिया:
      • संस्थाओं को किसी भी गड़बड़ी की पहचान और रिपोर्ट करने के लिये एक प्रक्रिया को शामिल करने या अव्यवस्था के कारण की पुष्टि करने की आवश्यकता होगी और 24 घंटे के भीतर सेक्टोरल सीईआरटी तथा कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम-इंडिया (सीईआरटी-इन) के पास रिपोर्ट जमा करनी होगी।
  • महत्त्व:
    • यह साइबर सुरक्षा में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देगा तथा देश में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों में साइबर टेस्टिंग अवसंरचना स्थापित करने हेतु अवसर उपलब्ध हो सकेग 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में कोयले की कमी

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में कोयले की कमी, ताप विद्युत संयंत्र

मेन्स के लिये:

कोयले का उपयोग एवं महत्त्व, कोयले की कमी का कारण और निवारण

चर्चा में क्यों?

भारत के ताप विद्युत संयंत्र (Thermal Power Plant) कोयले की भारी कमी का सामना कर रहे हैं क्योंकि थर्मल स्टेशनों की बढ़ती संख्या के कारण कोयले का स्टॉक औसतन चार दिनों के लिये बचा है।

प्रमुख बिंदु

  • कारण:
    • बिजली की मांग में वृद्धि:
      • आपूर्ति संबंधी मुद्दों के साथ युग्मित कोविड-19 महामारी से उबरने वाली अर्थव्यवस्था ने मौजूदा कोयले की कमी को जन्म दिया है।
      • भारत बिजली की मांग में तेज़ उछाल, घरेलू खदान उत्पादन पर दबाव और समुद्री कोयले की बढ़ती कीमतों के प्रभावों से परेशान है।
    • ताप विद्युत संयंत्रों का बढ़ा हुआ हिस्सा:
      • कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांटों ने भी मांग में वृद्धि के उच्च अनुपात की आपूर्ति की है, जिससे भारत के उर्जा मिश्रण में थर्मल पावर की हिस्सेदारी वर्ष 2019 के 61.9% से बढ़कर 66.4% हो गई है।
    • बाढ़ और वर्षा:
      • अप्रैल-जून की अवधि में ताप विद्युत संयंत्रों द्वारा सामान्य से कम स्टॉक संचयन और अगस्त-सितंबर में कोयला संबंधी क्षेत्रों में लगातार बारिश के कारण उत्पादन कम हुआ जिसकी वजह से कोयला खदानों से कोयले का कम प्रेषण हुआ।
    • आयात कम करना:
      • कोयले की उच्च अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के साथ-साथ आयात कम करने के लिये उठाए गए कदमों के कारण भी संयंत्रों ने आयात में कटौती की है।
  • प्रभाव:
    • यदि उद्योगों को बिजली की कमी का सामना करना पड़ता है, तो इससे भारत के आर्थिक क्षेत्र की बहाली में देरी हो सकती है।
    • कुछ व्यवसाय उत्पादन को कम कर सकते हैं।
    • भारत की आबादी और अविकसित ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के कारण लंबी अवधि तक गंभीर बिजली संकट की स्थिति रह सकती है।
  • उठाए जा सकने वाले कदम:
    • खनन को बढ़ावा देना:
      • सरकार स्टॉक की बारीकी से निगरानी का कार्य कर रही है और राज्य द्वारा संचालित कोल इंडिया एवं NTPC भी आपूर्ति बढ़ाने हेतु खदानों से उत्पादन में वृद्धि के लिये कार्य कर रहे हैं।
    • आपूर्ति नियंत्रण:
      • भारत में घरेलू बिजली आपूर्ति की राशनिंग, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों हेतु सबसे आसान समाधानों में से एक के रूप में उभर सकती है।
      • भारतीय बिजली वितरक आमतौर पर कुछ क्षेत्रों में तब आपूर्ति में कटौती करते हैं जब उत्पादन, मांग से कम होता है और यदि आगे भी यही स्थिति रहती है तो बिजली की कटौती में विस्तार पर विचार किया जाएगा।
    • आयात बढ़ाना:
      • भारत को वित्तीय लागत के बावजूद अपने आयात को बढ़ाना होगा। उदाहरण के लिये इंडोनेशिया से, जहाँ कीमत मार्च के 60 डॉलर प्रति टन से बढ़कर सितंबर में 200 प्रति टन हो गई।
    • जलविद्युत उत्पादन:
      • वहीं मानसून की बारिश से कोयला खदानों में बाढ़ आ गई है, जिससे जलविद्युत उत्पादन (Hydro-Power Generation) को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
      • बाँधों पर बड़ी जलविद्युत परियोजनाएँ कोयले के बाद भारत के प्रमुख बिजली स्रोत हैं और यह क्षेत्र बारिश के मौसम में अपने चरम पर होता है जो आमतौर पर जून से अक्तूबर तक होता है।
    • प्राकृतिक गैस चालित जनरेटर की तरफ रुख:
      • वर्तमान में वैश्विक कीमतों में वृद्धि के बावजूद प्राकृतिक गैस की बड़ी भूमिका हो सकती है।
      • एक निराशाजनक स्थिति में गैस से चलने वाला बेड़ा किसी भी व्यापक बिजली आउटेज को रोकने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिये राज्य द्वारा संचालित जनरेटर NTPC लिमिटेड, जिसे आवश्यकता पड़ने पर लगभग 30 मिनट में चालू किया जा सकता है और यह गैस ग्रिड से जुड़ा होता है।

कोयला

  • यह सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में, लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं।
  • आज हम जिस कोयले का उपयोग कर रहे हैं वह लाखों साल पहले बना था, जब विशाल फर्न और दलदल पृथ्वी की परतों के नीचे दब गए थे। इसलिये कोयले को बरीड सनशाइन (Buried Sunshine) कहा जाता है।
  • दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं।
  • भारत के कोयला उत्पादक क्षेत्रों में झारखंड में रानीगंज, झरिया, धनबाद और बोकारो शामिल हैं।
  • कोयले को भी चार रैंकों में वर्गीकृत किया गया है: एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, सबबिटुमिनस और लिग्नाइट। यह रैंकिंग कोयले में मौजूद कार्बन के प्रकार व मात्रा और कोयले की उष्मा ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की इथेनॉल योजना और खाद्य सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

इथेनॉल, राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018, खाद्य एवं कृषि संगठन, भारतीय खाद्य निगम

मेन्स के लिये: 

इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम और इसका महत्त्व, खाद्य सुरक्षा पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

  • चावल, मक्का और चीनी से प्राप्त इथेनॉल को बढ़ावा देकर जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कटौती करने की भारत की महत्त्वाकांक्षी योजना देश की खाद्य सुरक्षा को कमज़ोर कर सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
  • इथेनॉल: यह एक कृषि आधारित उत्पाद है, जो मुख्य रूप से चीनी उद्योग के उप- उत्पाद- ‘शीरे’ से प्राप्त होता है।
  • यह प्रमुख जैव ईंधन में से एक है, जिसका उत्पादन प्राकृतिक रूप से खमीर द्वारा शर्करा के किण्वन या एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है।
  • इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP): इसका उद्देश्य पेट्रोल के साथ इथेनॉल का सम्मिश्रण करना है,ताकि इसे जैव ईंधन की श्रेणी में लाया जा सके और ईंधन आयात में कटौती तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करके लाखों डॉलर की बचत की जा सके।
  • सम्मिश्रण लक्ष्य: भारत सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) के लक्ष्य को वर्ष 2030 से कम कर वर्ष 2025 तक कर दिया है।
  • वर्तमान में भारत में 8.5% इथेनॉल सम्मिश्रण किया जा रहा है।
  • संबद्ध मुद्दे:
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति: इथेनॉल सम्मिश्रण का नया लक्ष्य मुख्यतः अनाज के अधिशेष और प्रौद्योगिकियों की व्यापक उपलब्धता को देखते हुए खाद्य आधारित फीडस्टॉक्स पर केंद्रित है।
      • यह ब्लूप्रिंट ‘राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018’ का हिस्सा है, जिसमें घास और शैवाल; खेत एवं वानिकी अवशेष जैसी सेल्यूलोसिक सामग्री तथा चावल, गेंहूँ तथा मकई के भूसे आदि को प्राथमिकता दी गई थी।
    • भुखमरी का खतरा: गरीबों के लिये दिया जाने वाला खाद्यान्न कंपनियों को उन कीमतों से भी कम पर बेचा जा रहा है, जो राज्य अपने ‘सार्वजनिक वितरण नेटवर्क’ के लिये भुगतान करते हैं।
      • सब्सिडी वाले खाद्यान्न के लिये कंपनियों और ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ के बीच प्रतिस्पर्द्धा के कारण ग्रामीण गरीबों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और साथ ही देश में भुखमरी की स्थिति भी गंभीर हो सकती है।
      • भारत ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020’ में 107 देशों के साथ 94वें स्थान पर है।
      • खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) का अनुमान है कि वर्ष 2018 से वर्ष 2020 के बीच लगभग 209 मिलियन भारतीय अथवा देश की 15% आबादी कुपोषित थी।
      • इसके अलावा कोविड-19 महामारी ने भी अधिक लोगों को गरीबी में धकेल दिया है।
    • लागत: जैव ईंधन के उत्पादन के लिये भूमि की आवश्यकता होती है, इससे जैव ईंधन की लागत के साथ-साथ खाद्य फसलों की लागत भी प्रभावित होती है।
    • जल उपयोग: जैव ईंधन फसलों की उचित सिंचाई के साथ-साथ ईंधन के निर्माण के लिये भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, जो स्थानीय और क्षेत्रीय जल संसाधनों को प्रभावित कर सकता है।
    • दक्षता: जीवाश्म ईंधन, जैव ईंधन की तुलना में अधिक ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिये 1 गैलन इथेनॉल (जीवाश्म ईंधन) 1 गैलन गैसोलीन (जीवाश्म ईंधन) की तुलना में कम ऊर्जा पैदा करता है।
  • सरकार का तर्क:
    • अनाज का पर्याप्त भंडार: इथेनॉल को बढ़ावा देने हेतु किये जा रहे प्रयास भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये कोई खतरा नहीं हैं, क्योंकि सरकार के पास ‘भारतीय खाद्य निगम’ (FCI) के गोदामों में अनाज का पर्याप्त भंडार मौजूद है।
      • आँकड़ों के मुताबिक, सरकार के भंडार में 21.8 मिलियन टन चावल मौजूद है, जबकि देश में केवल 13.54 मिलियन टन चावल की आवश्यकता है। 
    • क्षमता निर्माण: सरकार की दीर्घकालिक योजना में पर्याप्त क्षमता का निर्माण भी शामिल है, ताकि 20% मिश्रण की आवश्यकता का आधा अनाज मुख्य रूप से मक्का और गन्ना द्वारा पूरा किया जा सके।
    • किसानों को लाभ: अधिशेष के मुद्दे को संबोधित करते हुए सम्मिश्रण योजना से मक्का और चावल किसानों को लाभ होगा।

आगे की राह

  • अपशिष्ट से इथेनॉल: भारत के पास टिकाऊ जैव ईंधन नीति में वैश्विक नेता बनने का एक वास्तविक अवसर है यदि वह अपशिष्ट से बने इथेनॉल पर फिर से ध्यान केंद्रित करना चाहता है।
    • यह मज़बूत जलवायु और वायु गुणवत्ता दोनों में लाभ प्रदान करेगा क्योंकि वर्तमान में इन अपशिष्ट को अक्सर जलाया जाता है, जो स्मॉग में योगदान देता है।
  • जल संकट: नई इथेनॉल नीति को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि यह किसानों को जल-गहन फसलों की ओर न ले जाए और देश के ऐसे क्षेत्रों में जल संकट पैदा न करे जहाँ इसकी कमी पहले से ही गंभीर है।
    • गेहूँ के साथ चावल और गन्ने में भारत के सिंचाई जल का लगभग 80% का उपयोग होता है।
  • फसल उत्पादन को प्राथमिकता देना: हमारे घटते भूजल संसाधनों, कृषि योग्य भूमि की कमी, अनिश्चित मानसून और जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार में गिरावट के साथ ईंधन के लिये फसलों पर खाद्य उत्पादन को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

खरीद पोर्टलों के एकीकरण के लिये एप्लीकेशन इकोसिस्टम

प्रिलिम्स के लिये:

खरीद पोर्टलों के एकीकरण के लिये एक एप्लीकेशन इकोसिस्टम  

मेन्स के लिये:

खरीद पोर्टलों के एकीकरण के लिये एक एप्लीकेशन इकोसिस्टम की आवश्यकता और चुनैतियाँ   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने सभी राज्य सरकारों के खरीद पोर्टलों के एकीकरण के लिये एक एप्लीकेशन इकोसिस्टम विकसित किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • एप्लीकेशन इकोसिस्टम के बारे में:
    • एप्लीकेशन इकोसिस्टम निगरानी और रणनीतिक निर्णय लेने के लिये न्यूनतम थ्रेसहोल्ड पैरामीटर (MTP) वाले सभी राज्य सरकारों के खरीद पोर्टलों के एकीकरण की अनुमति देगा।
      • खरीद में बिचौलियों से बचने और किसानों के लिये उनकी उपज का सर्वोत्तम मूल्य सुनिश्चित करने हेतु खरीद कार्यों में MTP की शुरुआत किया जाना आवश्यक है।
      • MTP राज्यों के बीच एकरूपता और अंतर-संचालन सुनिश्चित करेगा।
    • MTP के पाँच प्रमुख विवरण हैं जिन्हें राज्यों को अपने खरीद पोर्टलों में दर्ज करना आवश्यक है, जो ऑनलाइन पंजीकरण, किसान डेटा, डिजिटल मंडी और खरीद तथा बिलिंग से संबंधित हैं।
    • केंद्रीय पोर्टल के साथ राज्य पोर्टलों का एकीकरण राज्यों की खरीद के आँकड़ों के मिलान और केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को धन जारी करने में तेज़ी लाने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।
  • आवश्यकता:
    • योजनाओं को लागू करने में चुनौतियाँ: 
      • खरीद प्रणालियों में भिन्नता के कारण केंद्र सरकार की योजनाओं को लागू करने के लिये प्रणालीगत और कार्यान्वयन दोनों चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • फंडिंग में देरी:
      • विभिन्न राज्यों के साथ खरीद कार्यों का समाधान कभी-कभी एक लंबी प्रक्रिया के तहत हो सकता है, जिससे राज्यों को धन जारी करने में देरी होती है।
    • अक्षमताएँ:
      • इसके अलावा गैर-मानक खरीद संचालन जैसी परिहार्य अक्षमताएँ भी होती हैं, जो खरीद कार्यों में बिचौलियों के रूप में प्रकट होती हैं।
    • मानकीकरण:
      • निगरानी और रणनीतिक निर्णय लेने के लिये कोई अखिल भारतीय मानक खरीद इकोसिस्टम नहीं है।
      • संचालन का मानकीकरण देश को खरीद कार्यों में पारदर्शिता और दक्षता के उच्चतम स्तर की प्राप्ति में मदद करने के लिये आवश्यक है, जो अंततः देश के लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • लाभ:
    • किसान: वे अपनी उपज को उचित मूल्य पर बेच सकेंगे और संकटग्रस्त बिक्री से बच सकेंगे।
    • खरीद एजेंसियाँ: खरीद संचालन के बेहतर प्रबंधन के साथ, राज्य एजेंसियाँ ​​और भारतीय खाद्य निगम सीमित संसाधनों के साथ कुशलतापूर्वक खरीद करने में सक्षम होंगे।
    • अन्य हितधारक: खरीद कार्यों का स्वचालन और मानकीकरण खाद्यान्नों की खरीद तथा गोदामों में इसके भंडारण का एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करेगा।

स्रोत:पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेज़ रिपोर्ट- 2021: WMO

प्रिलिम्स के लिये: 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन, जल दिवस, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष’ (यूनिसेफ)

मेन्स के लिये:

जल दुर्लभता से संबंधित चुनौतियाँ और इससे निपटने के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ (WMO) ने ‘स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेज़ रिपोर्ट-2021’ जारी की है। यह स्थलीय जल संग्रहण पर केंद्रित है।

  • इससे पूर्व ‘जल दिवस’ (22 मार्च) के अवसर पर ‘संयुक्त राष्ट्र बाल कोष’ (यूनिसेफ) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि दुनिया भर में पाँच में से एक बच्चा उच्च या अत्यधिक जल भेद्यता वाले क्षेत्रों में रहता है।

प्रमुख बिंदु

  • स्थलीय जल संग्रहण (TWS):
    • ‘स्थलीय जल संग्रहण’ (TWS) का आशय भूमि की सतह और उप-सतह पर मौजूद जल से है, जिसमें सतही जल, मिट्टी की नमी, बर्फ और भूजल शामिल है।
      • जल मानव विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण कारक है लेकिन पृथ्वी पर मौजूद केवल 0.5% जल ही उपयोग योग्य है।
    • दुनिया भर में जल संसाधन मानव और प्राकृतिक रूप से प्रेरित तनावों के कारण अत्यधिक दबाव में हैं।
      • इनमें जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और पीने योग्य जल की घटती उपलब्धता शामिल है।
    • चरम मौसम की घटनाएँ भी संसाधनों पर दबाव हेतु उत्तरदायी हैं।
  • वैश्विक परिदृश्य
    • ‘स्थलीय जल संग्रहण’ में बीते 20 वर्षों (2002-2021) में प्रतिवर्ष 1 सेमी. की दर से गिरावट आ रही है।
    • सबसे अधिक नुकसान अंटार्कटिक और ग्रीनलैंड में हुआ है। लेकिन कई अत्यधिक आबादी वाले देशों में भी ‘स्थलीय जल संग्रहण’ में गिरावट दर्ज की गई है।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • परिचय:
      • भारत में ‘स्थलीय जल संग्रहण’ में प्रतिवर्ष कम-से-कम 3 सेमी. की दर से गिरावट आ रही है। कुछ क्षेत्रों में गिरावट की दर प्रतिवर्ष 4 सेमी. से भी अधिक है।
      • यदि अंटार्कटिक और ग्रीनलैंड में जल भंडारण के नुकसान को छोड़ दिया जाए, तो भारत ने स्थलीय जल भंडारण में सबसे अधिक नुकसान दर्ज किया है।
      • भारत 'स्थलीय जल संग्रहण नुकसान के मामले में सबसे बड़ा हॉटस्पॉट' है। भारत के उत्तरी हिस्से में देश के भीतर सबसे अधिक नुकसान हुआ है।
    • प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता:
      • भारत में जनसंख्या में वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घट रही है।
      • औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता वर्ष 2011 में घटकर 1,545 क्यूबिक मीटर हो गई थी, जो वर्ष 2001 में 1,816 क्यूबिक मीटर थी।
      • केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2031 तक यह घटकर 1,367 क्यूबिक मीटर तक पहुँच जाएगा।
    • नदी घाटियाँ:
      • ‘फाल्कनमार्क वाटर स्ट्रेस इंडिकेटर’ के अनुसार, भारत में 21 नदी घाटियों में से पाँच 'पूर्णतः जल की दुर्लभता' (500 क्यूबिक मीटर से कम प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता) की स्थिति से जूझ रही हैं।
      • पाँच 'जल की दुर्लभता’ (1,000 क्यूबिक मीटर से कम प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता) और तीन 'जल तनाव’ (प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,700 क्यूबिक मीटर से कम) की स्थिति में हैं।
      • 'स्टेट ऑफ इंडियाज़ एन्वायरनमेंट-2020’ रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2050 तक छह नदी घाटियाँ 'पूर्णतः जल की दुर्लभता' की स्थिति में होंगी, वहीं छह में ‘जल की दुर्लभता’ और चार में ‘जल तनाव’ की स्थिति होगी।
        • जल दुर्लभता की स्थित का आकलन करने हेतु ‘फाल्कनमार्क संकेतक’ सबसे व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले संकेतकों में से एक है। यह एक देश में पीने योग्य जल के कुल संसाधनों को कुल आबादी से जोड़ता है और उस दबाव को प्रदर्शित करता है, जिसे जनसंख्या प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की आवश्यकताओं समेत जल संसाधनों पर डालती है।
  • सिफारिशें:
    • निवेश की आवश्यकता:
      • विशेष रूप से छोटे विकासशील द्वीपीय देश (Small Island Developing States-SIDS) और कम विकसित देशों (Least Developed Countries- LDC) में जल क्षेत्र में तनाव को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के समाधान के रूप में एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Resources Water Management- IWRM)।
      • अफ्रीका में सूखा और एशिया में बाढ़ की चेतावनी सहित जोखिम वाले LDC में एंड-टू-एंड सूखा एवं बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली।
    • क्षमता अंतराल को भरना:
      • बुनियादी जलविज्ञान चरों के लिये डेटा एकत्र करने में उस क्षमता अंतराल को भरना जो जलवायु सेवाओं और पूर्व चेतावनी प्रणालियों को रेखांकित करते हैं।
      • जल क्षेत्र में विशेष रूप से SIDS के मामले में यह जलवायु सेवाओं हेतु क्षमता अंतराल को भरने में सहायक होगा।
    • बातचीत में सुधार:
      • जल क्षेत्र में अनुकूलन का बेहतर समर्थन करने के लिये सूचना उपयोगकर्त्ताओं के साथ जलवायु सेवाओं के सह-विकास और संचालन हेतु राष्ट्रीय स्तर के हितधारकों के बीच बातचीत में सुधार करना।
      • सामाजिक-आर्थिक लाभों की बेहतर निगरानी और मूल्यांकन की भी अत्यधिक आवश्यकता है, जो सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रदर्शित करने में मदद करेगा।
    • जल और जलवायु गठबंधन में शामिल:
      • जल और जलवायु गठबंधन अपने सदस्यों के लिये संयुक्त गतिविधियों में भागीदारी करने और डेटा व सूचना पर ध्यान देने के साथ जल एवं जलवायु चुनौतियों के अंतराल को संबोधित करने वाले समाधानों को लागू करने का एक मंच है।

संबंधित सरकारी पहलें:

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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