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सामाजिक न्याय

भारत और खाद्य असुरक्षा

  • 07 Aug 2021
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 06/08/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित State of Food Insecurity” लेख पर आधारित है। इसमें खाद्य संसाधनों की उपलब्धता में कोई कमी नहीं होने के बावजूद लोगों के लिये खाद्य के अभाव और कोविड-19 के कारण भारत की खाद्य सुरक्षा की स्थिति में और गिरावट जैसे विषयों को संबोधित किया गया है।

संदर्भ

कोविड-19 महामारी के प्रकोप से पूर्व भी भारत में विश्व के कुल कुपोषित लोगों की सर्वाधिक संख्या मौजूद थी। यह परिदृश्य तब है जबकि सरकार के पास गोदामों में 100 मिलियन टन से अधिक खाद्यान्न का भंडार है जो किसी भी अन्य देश के खाद्यान्न भंडार की तुलना में काफी अधिक है।  

संयुक्त राष्ट्र के पाँच संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से जारी ‘विश्व खाद्य सुरक्षा और पोषण स्थिति रिपोर्ट’ (State of Food Security and Nutrition in the World- SOFI) के नवीनतम संस्करण (वर्ष 2021) के मुताबिक, महामारी और इसके प्रभाव को सीमित करने में सरकार की विफलता के कारण देश में भुखमरी और खाद्य असुरक्षा की व्यापकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 

चूँकि भारत विश्व के सबसे बड़े खाद्य भंडार वाला देश (जुलाई, 2021 तक की स्थिति) है, इसलिये सरकार को अतिरिक्त खाद्य भंडार सुनिश्चित करने की नहीं, बल्कि पहले से मौजूद उन नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है जो ज़रूरतमंद लोगों के बीच खाद्य वितरण को सुगम बनाती हैं।

SOFI के अनुसार भारत की खाद्य असुरक्षा

  • SOFI रिपोर्ट 2021: रिपोर्ट में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 से वर्ष 2020 की अवधि के बीच मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा की व्यापकता में लगभग 6.8 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई।    
  • खाद्य असुरक्षा में वृद्धि: समग्र तौर पर कोविड के प्रकोप के बाद से मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले व्यक्तियों की संख्या में लगभग 9.7 करोड़ की वृद्धि हुई है। 
  • आकलन के मानदंड: इस रिपोर्ट में प्रस्तुत खाद्य असुरक्षा संबंधी आकलन खाद्य असुरक्षा के दो विश्व स्तर पर स्वीकृत संकेतकों पर आधारित हैं: 
    • अल्पपोषण की व्यापकता (Prevalence of Undernourishment- PoU)
    • मध्यम और गंभीर खाद्य असुरक्षा की व्यापकता (Prevalence of Moderate and Severe Food Insecurity- PMSFI)
  • भारत और खाद्य असुरक्षा: भारत, जो विश्व में खाद्यान्न के सबसे बड़े भंडार वाला देश है (01 जुलाई 2021 तक 120 मिलियन टन), में विश्व की खाद्य-असुरक्षित आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा मौजूद है।   
    • अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर 237 करोड़ से अधिक लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे और वर्ष 2019 की तुलना में इनकी संख्या में लगभग 32 करोड़ की वृद्धि हुई थी।
    • अकेले दक्षिण एशिया वैश्विक खाद्य असुरक्षा के 36 प्रतिशत का वहन करता है।

खाद्य असुरक्षा और संबद्ध समस्याएँ

  • अल्पपोषण की व्यापकता: अल्पपोषण की व्यापकता का आकलन देशों के राष्ट्रीय उपभोग सर्वेक्षणों पर आधारित है जो प्रति व्यक्ति खाद्य आपूर्ति की स्थिति को प्रकट करता है।  
    • चूँकि ये उपभोग सर्वेक्षण प्रत्येक वर्ष उपलब्ध नहीं होते हैं और कुछ वर्षों के अंतराल पर अपडेट किये जाते हैं।
    • इसलिये अल्पपोषण की व्यापकता जैसे संकेतक महामारी के कारण उत्पन्न हुए हाल के व्यवधानों को पर्याप्त रूप से व्यक्त कर सकने में अधिक सक्षम नहीं हैं।
  • नवीनतम उपभोग सर्वेक्षण का अभाव: महामारी के बावजूद समग्र खाद्य आपूर्ति की स्थिति प्रत्यास्थी बनी रही थी और इसलिये अधिकांश देशों द्वारा उपभोग सर्वेक्षण आयोजित नहीं नहीं किये गए।  
    • महामारी के प्रकोप के बाद से भारत सरकार ने देश में खाद्य असुरक्षा का कोई आधिकारिक आकलन नहीं किया है।
    • भूख की व्यापकता का वर्ष 2019 में 14% से बढ़कर वर्ष 2020 में 15.3% हो जाने का अनुमान है, जिसे अल्पपोषण की व्यापकता के आकलन से प्राप्त किया गया है और इस पर पूर्णतः विश्वास नहीं किया जा सकता है।
    • इस स्थिति में, PMFSI का आकलन ही भारत में खाद्य असुरक्षा पर महामारी के प्रभाव पर उपलब्ध राष्ट्रीय स्तर का एकमात्र वैध और विश्वसनीय आकलन है।
  • सरकार द्वारा मौजूदा स्थिति की अस्वीकृति: भारत सरकार ने न केवल उपभोग/खाद्य सुरक्षा सर्वेक्षणों के अपने आकलन से परहेज किया है, बल्कि इसने गैलप वर्ल्ड पोल (Gallup World Poll) के आधार पर प्रकाशित परिणामों को भी स्वीकार नहीं किया है। 
  • सामाजिक-आर्थिक संकट: प्रमुख खाद्य वस्तुओं के उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के बावजूद व्यापक आर्थिक संकट, उच्च बेरोज़गारी दर और असमानता की उच्च स्थिति के कारण भारत में भूख और खाद्य असुरक्षा की गंभीर समस्याएँ विद्यमान हैं।  
    • निर्धनों की एक बड़ी आबादी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर निर्भर है, जहाँ आय अल्प और अनिश्चित होती है। 
      • पिछले कुछ वर्षों में बेरोज़गारी दर भी तेज़ी से बढ़ी है।
    • उच्च और अस्थिर खाद्य मूल्य, घटते सार्वजनिक निवेश और आर्थिक मंदी ने श्रमिक और कृषक वर्गों के संकट को गहरा किया है। 
      • अल्प और अनिश्चित आय के साथ, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर निर्भर परिवारों के पास पर्याप्त और पौष्टिक भोजन तक पहुँच की सुनिश्चितता नहीं है।
  • महामारी का प्रभाव: PMSFI के अनुमानों से पता चलता है कि वर्ष 2019 में भारत में लगभग 43 करोड़ मध्यम से गंभीर खाद्य-असुरक्षित लोग थे, जिनकी संख्या महामारी-संबंधी व्यवधानों के परिणामस्वरूप वर्ष 2020 में बढ़कर 52 करोड़ हो गई है।  
    • इस प्रकार खाद्य असुरक्षा वर्ष 2019 में लगभग 31.6% से बढ़कर वर्ष 2021 में 38.4% तक पहुँच गई है।
    • महामारी से निपटने के लिये तैयारी की कमी के कारण वर्ष 2020 में बेरोज़गारी, मुद्रास्फीति, अनौपचारिक क्षेत्र में रोज़गार और आर्थिक मंदी की दीर्घकालिक समस्याएँ भी और अधिक बढ़ गईं है।
  • PDS के माध्यम से खाद्य का अपर्याप्त वितरण: सब्सिडी पात्र लाभार्थियों का गरीबी रेखा से नीचे (BPL) का दर्जा नहीं होने के आधार पर बहिर्वेशन हुआ है, क्योंकि BPL के रूप में किसी परिवार की पहचान करने के मानदंड अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न हैं। 

आगे की राह

  • खाद्य सुरक्षा की नियमित निगरानी: खाद्य असुरक्षा में तीव्र वृद्धि इस तात्कालिक आवश्यकता की ओर ध्यान दिलाती है कि सरकार को देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति की नियमित निगरानी के लिये एक प्रणाली स्थापित करनी चाहिये। 
  • खाद्य सुरक्षा योजनाओं के दायरे का विस्तार: कम-से-कम महामारी अवधि के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और ’एक राष्ट्र- एक राशन कार्ड’ (ONORC) योजना तक पहुँच को सार्वभौमिक बनाए जाने की आवश्यकता है।   
    • PDS को सुदृढ़ किया जाना चाहिये और बाजरा, दाल और तेल को शामिल करते हुए खाद्य श्रेणी (फ़ूड बास्केट) को विस्तृत किये जाने की आवश्यकता है। 
      • यह निश्चित रूप से प्रच्छन्न भुखमरी (Hidden Hunger) की समस्या को संबोधित करने में मदद कर सकता है।
    • प्रत्येक पात्र व्यक्ति को, उसके पास राशन कार्ड हो या न हो, राशन की दुकानों से रियायती दर पर अनाज लेने की छूट मिलनी चाहिये। 
      • वर्तमान में लगभग 120 मिलियन टन खाद्यान्न भंडार के साथ अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता नहीं है, बल्कि योजनाओं के बेहतर कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
  • विकास और मानवीय नीतियों को सुमेलित करना: आवश्यक विषयों में मानवीय, विकास और शांति-निर्माण नीतियों को एकीकृत किया जाना चाहिये, ताकि संवेदनशील परिवार खाद्यान्न के लिये अपनी संपत्तियों की बिक्री हेतु बाध्य न हों। 
  • पौष्टिक भोजन की लागत को कम करना: आपूर्ति शृंखलाओं में हस्तक्षेप (जैसे बायोफोर्टिफाइड फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करना अथवा फल और सब्जी उत्पादकों के लिये बाज़ार तक पहुँच को आसान बनाना) के माध्यम से पौष्टिक खाद्य पदार्थों की लागत को कम करना भी आवश्यक है।  

निष्कर्ष

  • भोजन का अधिकार (Right to Food) न केवल एक वैधानिक अधिकार है बल्कि एक मानव अधिकार भी है। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) के एक राज्य पक्षकार के रूप में भारत का दायित्व है कि वह अपने सभी नागरिकों के लिये भूख से मुक्ति के अधिकार और पर्याप्त भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करे। 
  • कोविड-19 के कारण उत्पन्न व्यवधान की स्थिति में खाद्य सुरक्षा की एक व्यापक परिभाषा को भी अंगीकार किये जाने आवश्यकता है। 
  • खाद्य असुरक्षा को समाप्त करने या कम-से-कम न्यूनतम कर सकने के संसाधन पहले से ही सरकार के पास मौजूद हैं, आवश्यकता बस यह है कि उनका इष्टतम लाभ के लिये उपयोग किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: "विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और असंख्य संसाधनों की उपलब्धता का कोई महत्त्व नहीं है यदि उनका प्रभावी कार्यान्वयन और उपयुक्त उपयोग नहीं किया जाता है। भारत में खाद्य सुरक्षा के मामले में यह स्थिति पूरी तरह से अनुकूल है।" चर्चा कीजिये। 

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