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डेली न्यूज़

  • 07 Oct, 2021
  • 31 min read
शासन व्यवस्था

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन का प्रस्ताव

प्रिलिम्स के लिये:

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, 42वाँ संशोधन अधिनियम

मेन्स के लिये:

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन की आवश्यकता और संशोधन प्रस्ताव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने भारत में वन शासन में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने हेतु ‘वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980’ में संशोधन का प्रस्ताव रखा है।

प्रमुख बिंदु 

  • परिचय:
    • उद्देश्य:
      • वन क्षेत्रों के बाहर खनन के माध्यम से वन भूमि के नीचे स्थित तेल और प्राकृतिक गैस संसाधनों के अन्वेषण या निष्कर्षण की सुविधा के माध्यम से वन कानूनों को उदार बनाना।
    • वन की परिभाषा:
      • ‘टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ’ वाद (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने वन को उन सभी क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया है, जो किसी भी सरकारी रिकॉर्ड में 'वन' के रूप में दर्ज हैं।
    • संशोधन की आवश्यकता:
      • निजी भूमि पर वन: निजी भूमि पर वनों की पहचान कुछ हद तक व्यक्तिपरक और मनमानी प्रक्रिया पर निर्भर है।
        • इसके परिणामस्वरूप निजी व्यक्तियों और संगठनों की ओर से काफी अधिक आक्रोश या प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
        • निजी क्षेत्र को वन के रूप में मान्यता देने से यह किसी भी गैर-वानिकी गतिविधि के लिये अपनी भूमि का उपयोग करने हेतु व्यक्ति के अधिकारों को सीमित करता है।
        • इसके कारण प्रायः निजी भूमि को वनस्पति से रहित रखने की प्रवृत्ति बढ़ गई है, भले ही उस भूमि पर रोपण गतिविधियों की गुंजाइश हो।
      • पारिस्थितिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं में परिवर्तन: पिछले कुछ वर्षों में देश में पारिस्थितिक, सामाजिक और पर्यावरणीय व्यवस्था में काफी बदलाव आया है।
        • वर्तमान परिस्थितियों, विशेष रूप से संरक्षण और विकास के त्वरित एकीकरण को देखते हुए अधिनियम में संशोधन करना आवश्यक हो गया है।
      • भारत के जलवायु लक्ष्य को प्राप्त करना: राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को प्राप्त करने के लिये सरकारी वनों के बाहर सभी संभव उपलब्ध भूमि में व्यापक वृक्षारोपण आवश्यक था।
  • प्रस्ताव संबंधी मुख्य बिंदु
    • 'वनों' को परिभाषित करना: राज्य सरकारों द्वारा वर्ष 1996 तक सूचीबद्ध ‘डीम्ड वनों’ को वन भूमि माना जाता रहेगा।
      • वर्ष 1980 से पूर्व रेलवे और सड़क मंत्रालयों द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि, जिस पर वन विकसित हो गए हैं, उन्हें अब वन की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाएगा।
    • सामरिक परियोजनाएँ: राष्ट्रीय महत्त्व की रणनीतिक एवं सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं के लिये वन भूमि को केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता से छूट दी जानी चाहिये।
      • ऐसा करने से राज्यों को रणनीतिक एवं सुरक्षा संबंधी ऐसी परियोजनाओं के लिये वन भूमि के उपयोग की अनुमति मिल जाएगी, जिन्हें एक निश्चित समय सीमा में पूरा किया जाना है।
    • तेल और प्राकृतिक गैस निष्कर्षण: वन क्षेत्रों के बाहर खनन के माध्यम से वन भूमि के नीचे पाए जाने वाले तेल और प्राकृतिक गैस के निष्कर्षण हेतु ‘एक्सटेंडेड रीच ड्रिलिंग (ERD) जैसी नई तकनीकों को सुगम बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
      • ऐसी तकनीक का उपयोग पर्यावरण के अनुकूल है और इसलिये इसे अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिये।
    • वनों में निजी भवन: नए प्रस्ताव में उन व्यक्तियों की शिकायतों को भी संबोधित करने का प्रयास किया गया है, जिनकी भूमि राज्य विशिष्ट निजी वन अधिनियम या ‘वन’ की परिभाषा के दायरे में आती है।
      • यह प्रस्ताव उन्हें वन सुरक्षा उपायों और आवासीय इकाइयों सहित 250 वर्ग मीटर के क्षेत्र में संरचनाओं के निर्माण का अधिकार देता है।

भारत में वन

  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report), 2019 के अनुसार, वन और वृक्ष आवरण देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.56 प्रतिशत है।
    • वनावरण (क्षेत्रवार): मध्य प्रदेश> अरुणाचल प्रदेश> छत्तीसगढ़> ओडिशा> महाराष्ट्र।
    • भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में देश के 33% भौगोलिक क्षेत्र को वन और वृक्ष आच्छादित क्षेत्र के अंतर्गत रखने के लक्ष्य की परिकल्पना की गई है।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से शिक्षा, नापतौल एवं न्याय प्रशासन, वन, वन्यजीवों तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
    • संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) में कहा गया है कि वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
    • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48A के मुताबिक, राज्य पर्यावरण संरक्षण व उसको बढ़ावा देने का काम करेगा और देश भर में जंगलों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा की दिशा में कार्य करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

2021 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट इन इंडिया: यूनेस्को

प्रिलिम्स के लिये:

2021 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट इन इंडिया, यूनेस्को

मेन्स के लिये:

भारत में शिक्षा की चुनौतियाँ और प्रयास 

चर्चा में क्यों?

विश्व शिक्षक दिवस (5 अक्तूबर) के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 2021 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट इन इंडिया : "नो टीचर, नो क्लास" लॉन्च की।  

State-of-the-Education-Report

प्रमुख बिंदु 

  • रिपोर्ट के बारे में:
    • इसके निष्कर्ष बड़े पैमाने पर आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) और शिक्षा के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE) डेटा (2018-19) के विश्लेषण पर आधारित हैं।
    • इसका उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के कार्यान्वयन को बढ़ाने और सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 4 (शिक्षकों पर लक्ष्य 4c) की प्राप्ति के लिये एक संदर्भ के रूप में कार्य करना है।
      • लक्ष्य 4c: वर्ष 2030 तक विकासशील देशों, विशेष रूप से कम विकसित देशों और छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों में शिक्षक प्रशिक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सहित योग्य शिक्षकों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि करना।
  • रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
    • शिक्षकों की कमी :
      • देश में लगभग 1.2 लाख एकल-शिक्षक विद्यालय हैं, जिनमें से 89% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
      • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को शिक्षकों की मौजूदा कमी को पूरा करने के लिये 11.16 लाख अतिरिक्त शिक्षकों की ज़रूरत है।
    • राज्यों का प्रदर्शन (महिला शिक्षक):
      • त्रिपुरा में सबसे कम महिला शिक्षक हैं, इसके बाद असम, झारखंड और राजस्थान का स्थान है।
      • महिला शिक्षा के संदर्भ में क्रमशः गोवा, दिल्ली, केरल और चंडीगढ़ सबसे आगे हैं।
    • निजी क्षेत्र में शिक्षकों की संख्या में वृद्धि:
      • निजी क्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों का अनुपात 2013-14 के 21% से बढ़कर 2018-19 में 35% हो गया।
    • डिजिटल अवसंरचना की कमी:
      • स्कूलों में कंप्यूटिंग डिवाइस (डेस्कटॉप या लैपटॉप) की कुल उपलब्धता शहरी क्षेत्रों में 43% और समग्र भारत के स्तर पर 22% है। शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में कंप्यूटिंग डिवाइस की कुल उपलब्धता मात्र 18% है।
      • पूरे भारत में स्कूलों में इंटरनेट की पहुँच शहरी क्षेत्रों में 42% की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 14% है और समग्र भारत के स्तर पर यह 19% है।
    • सकल नामांकन अनुपात में वृद्धि (GER):
      • प्राथमिक विद्यालयों में GER का स्तर वर्ष 2001 के 81.6 से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 93.03 और 2019-2020 में 102.1 हो गया है।
        • GER शिक्षा के किसी दिये गए स्तर में नामांकित छात्रों की संख्या है जो  विद्यालय-आयु की आबादी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त की जाती है।
      • 2019-20 में प्रारंभिक शिक्षा के लिये कुल प्रतिधारण (Overall Retention) 74.6% और माध्यमिक शिक्षा में 59.6% है।
  • सिफारिशें:
    • पूर्वोत्तर राज्यों, ग्रामीण क्षेत्रों और 'आकांक्षी ज़िलों' में शिक्षकों की संख्या में वृद्धि एवं प्रदर्शन में सुधार।
    • शारीरिक शिक्षा, संगीत, कला, व्यावसायिक शिक्षा, प्रारंभिक बचपन और विशेष शिक्षा शिक्षकों की संख्या में वृद्धि।
    • शिक्षकों की पेशेवर स्वायत्तता को महत्त्व।
    • शिक्षकों का बेहतर कॅरियर।
    • शिक्षकों को सार्थक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • पारस्परिक जवाबदेही के आधार पर परामर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से शिक्षण शासन का विकास करना।
  • प्रारंभ की गई पहलें:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

पहली मलेरिया वैक्सीन: मॉसक्विरिक्स

प्रिलिम्स के लिये:

मॉसक्विरिक्स

मेन्स के लिये:

मलेरिया से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस उम्मीद में दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन का समर्थन किया है कि यह परजीवी बीमारी के प्रसार को रोकने के प्रयासों को बढ़ावा देगी।

मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो परजीवी के कारण होती है और संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से लोगों में फैलती है। यह रोकथाम और इलाज योग्य है।

प्रमुख बिंदु:

  • वैक्सीन के बारे में:
    • RTS,S/AS01, व्यावसायिक नाम मॉसक्विरिक्स, अफ्रीका में सबसे प्रचलित मलेरिया स्ट्रेन पी. फाल्सीपेरम को लक्षित करने वाली एक वैक्सीन है। यह छोटे बच्चों को आंशिक सुरक्षा प्रदान करने वाला पहला और एकमात्र टीका है।
      • इसे 1987 में ब्रिटिश दवा निर्माता ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन द्वारा विकसित किया गया था।
    • मॉसक्विरिक्स में सक्रिय पदार्थ, प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम परजीवी (PFP) की सतह पर पाए जाने वाले प्रोटीन से बना होता है।
      • RTS,S का उद्देश्य मलेरिया मच्छर के काटने से मानव रक्तप्रवाह में इसके प्रवेश करने और यकृत कोशिकाओं को संक्रमित करने के पहले चरण से ही  बचाव के लिये प्रतिरक्षा प्रणाली तैयार करना है ।
    • यह हेपेटाइटिस B वायरस से लीवर के संक्रमण से बचाने में भी मदद करता है।
  • क्षमता:
    • बच्चों में मलेरिया के गंभीर मामलों को रोकने में टीके की प्रभावशीलता लगभग 30% है, लेकिन यह एकमात्र स्वीकृत टीका है।
      • यूरोपीय संघ के औषधि नियामक ने वर्ष 2015 में यह कहते हुए इसे मंज़ूरी दी थी कि इसके जोखिमों की तुलना में लाभ कहीं अधिक हैं।
    • इसके दुष्प्रभाव दुर्लभ हैं, लेकिन कभी-कभी इसमें बुखार भी शामिल होता है जिसके परिणामस्वरूप अस्थायी आक्षेप (Temporary Convulsions) हो सकता है।
  • चुनौतियाँ:
    • असुविधाजनक: एक बच्चे को 2 साल की उम्र से पहले चार इंजेक्शन लगते हैं जो अधिकांश अन्य बीमारियों के लिये नियमित टीके शेड्यूल से मेल नहीं खाते।
    • आंशिक रूप से प्रभावी: 2009 से 2014 के बीच 10000 से अधिक अफ्रीकी बच्चों में किये गए परीक्षण से पता चला कि चार खुराक लेने के बाद भी यह टीका लगभग 40% ही मलेरिया संक्रमणों को रोक सका।
    • दीर्घकालिक नहीं: यह स्पष्ट नहीं है कि टीका लगने के बाद प्रतिरोध कितने समय तक सक्रिय रहेगा; पिछले परीक्षणों में चार साल तक के बच्चों का टीकाकरण किया गया था। विशेषज्ञों को यह भी चिंता है कि जिन माता-पिता के बच्चों को टीका लगाया गया है, वे मच्छरदानी का उपयोग करने के मामले में कम सतर्क रहेंगे और बुखार की स्थिति में उनके द्वारा बच्चों को चिकित्सा देखभाल प्रदान करने की संभावना कम होती है।
    • अविकसित प्रतिरोध: टीके ने गंभीर मलेरिया की घटना को लगभग 30% और गंभीर एनीमिया की घटना को कम कर दिया। यह परजीवी उपभेदों के खिलाफ पर्याप्त रक्षा नहीं प्रदान करता था। परजीवी टीका का प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं, इसलिये टीका को और विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
  • मलेरिया का भार:
    • वैश्विक:
      • वर्ष 2019 में दुनिया भर में मलेरिया के अनुमानित 229 मिलियन मामले थे और उस वर्ष मलेरिया से अनुमानित 4,09,000 मौतें हुई थीं।
        • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे वर्ष 2019 में मलेरिया से प्रभावित सबसे कमज़ोर समूह हैं, दुनिया भर में मलेरिया से होने वाली मौतों में इनका 67 प्रतिशत (2,74,000) हिस्सा है।
    • भारत:
      • WHO के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 के लगभग 20 मिलियन मामलों की तुलना में वर्ष 2020 में मलेरिया के अनुमानित 5.6 मिलियन अधिक मामले थे।
  • मलेरिया उन्मूलन वाले देश:
    • पिछले दो दशकों में WHO के महानिदेशक द्वारा 11 देशों को मलेरिया मुक्त के रूप में प्रमाणित किया गया है: संयुक्त अरब अमीरात (2007), मोरक्को (2010), तुर्कमेनिस्तान (2010), आर्मेनिया (2011), श्रीलंका (2016), किर्गिज़स्तान (2016), पराग्वे (2018), उज़्बेकिस्तान (2018), अल्जीरिया (2019), अर्जेंटीना (2019) और अल सल्वाडोर (2021)
      • उन देशों में जहाँ पिछले तीन साल से मलेरिया के कोई स्थानिक मामले नहीं पाए जाते हैं उन्हें मलेरिया उन्मूलन के WHO प्रमाणीकरण के लिये आवेदन करने का पात्र माना जाता है।

आगे की राह

  • WHO-अनुशंसित मलेरिया वैक्सीन के लिये अगले कदमों में स्थानिक देशों में व्यापक रोलआउट हेतु वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय से वित्तीयन संबंधी और राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण रणनीतियों के हिस्से के रूप में वैक्सीन को अपनाने के बारे में देश का निर्णय शामिल होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

‘स्वास्थ्य के अधिकार’ की मांग

प्रिलिम्स के लिये

मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा

मेन्स के लिये

‘स्वास्थ्य के अधिकार’ की मांग, इसकी आवश्यकता और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान में ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ को लेकर कानून बनाने की मांग फिर से उठी है।

  • स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं ने स्पष्ट किया है कि यह कानून चिकित्सा सेवाओं को सुव्यवस्थित करेगा और नागरिकों को आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता की गारंटी देगा।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • स्वास्थ्य का अधिकार: अन्य अधिकारों की तरह स्वास्थ्य के अधिकार में भी स्वतंत्रता एवं पात्रता दोनों घटक शामिल हैं:
      • स्वतंत्रता में स्वयं के स्वास्थ्य और शरीर को नियंत्रित करने का अधिकार (उदाहरण के लिये यौन एवं प्रजनन अधिकार) तथा हस्तक्षेप से मुक्ति का अधिकार शामिल है (उदाहरण के लिये यातना एवं गैर-सहमति चिकित्सा उपचार और प्रयोग से मुक्ति)।
      • ‘पात्रता’ के तहत स्वास्थ्य सुरक्षा की एक प्रणाली का अधिकार शामिल है, जो सभी को स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य स्तर का लाभ प्राप्त करने का अवसर देता है।
    • महत्त्व
      • लोग स्वास्थ्य के अधिकार हेतु पात्र हैं और यह सरकार को इस दिशा में कदम उठाने के लिये मज़बूर करता है।
      • यह सभी को सेवाओं तक पहुँच प्राप्त करने में सक्षम बनाता है और यह सुनिश्चित करता है कि उन सेवाओं की गुणवत्ता आम लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करने हेतु पर्याप्त है।
      • यह स्वास्थ्य सेवाओं हेतु लोगों को अपनी जेब से भुगतान करने के वित्तीय परिणामों से बचाता है और लोगों के गरीबी में धकेले जाने के जोखिम को कम करता है।
    • चुनौतियाँ
      • देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल का दायरा काफी सीमित है।
        • ऐसे स्थानों पर जहाँ सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद हैं, वहाँ भी केवल गर्भावस्था देखभाल, सीमित चाइल्डकेयर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएँ ही प्रदान की जाती हैं।
      • भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य वित्तपोषण पर व्यय (जीडीपी का लगभग 1.3%) लगातार कम रहा है।
        • ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (OECD) के मुताबिक, भारत का कुल ‘आउट-ऑफ पॉकेट’ व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.3% है।
        • सरकार वर्ष 2025 तक जीडीपी का 2.5% स्वास्थ्य पर खर्च करने हेतु प्रतिबद्ध है।
      • स्वास्थ्य प्रणाली में त्रुटियों के कारण गैर-संचारी रोगों से निपटना चुनौतीपूर्ण है, जो कि रोकथाम और इनका शीघ्र पता लगाने से संबंधित है।
        • यह कोविड-19 महामारी जैसी नए एवं उभरते खतरों के लिये तैयारियों में कमी और इनके प्रभावी प्रबंधन को कमज़ोर करता है।
  • सरकारी दायित्व
    • संवैधानिक
      • मौलिक अधिकार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। स्वास्थ्य का अधिकार गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार में निहित है।
      • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP): अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्य का दायित्व निर्धारित करते हैं।
    • न्यायिक निर्णय:
      • ‘पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले’ (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्तव्य लोगों के कल्याण को सुरक्षित करना है और इसके अलावा यह भी सरकार का दायित्व है कि वह लोगों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करे।
      • ‘परमानंद कटारा बनाम भारत संघ’ वाद (1989) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि प्रत्येक डॉक्टर चाहे वह सरकारी अस्पताल में हो या निजी अस्पताल में, अपने पेशेवर दायित्वों के तहत जीवन की रक्षा के लिये उत्तरदायी है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ:
    • यह भोजन, कपड़े, आवास और चिकित्सा देखभाल तथा आवश्यक सामाजिक सेवाओं सहित मनुष्यों के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार प्रदान करता है।

आगे की राह

  • स्वास्थ्य को संविधान के तहत सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया जाना चाहिये। वर्तमान में 'स्वास्थ्य' राज्य सूची के अंतर्गत है।
  • स्वास्थ्य देखभाल निवेश हेतु एक समर्पित ‘विकासात्मक वित्त संस्थान’ (DFI) की आवश्यकता है।
  • संसद द्वारा स्वास्थ्य के अधिकार को शामिल करते हुए एक व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून पारित किया जा सकता है।
  • रोग निगरानी, प्रमुख गैर-स्वास्थ्य विभागों की नीतियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव की जानकारी एकत्र करने, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आँकड़ों के रखरखाव, सार्वजनिक स्वास्थ्य नियमों को लागू करने एवं सूचना के प्रसार के लिये एक नामित और स्वायत्त एजेंसी बनाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

‘पीएम मित्र’ पार्क

प्रिलिम्स के लिये:

‘पीएम मित्र’ पार्क, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना, राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन

मेन्स के लिये:

भारतीय वस्त्र उद्योग की मौजूदा स्थिति और इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 4,445 करोड़ रुपए के परिव्यय से सात ‘मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल’ (पीएम मित्र) पार्कों की स्थापना को मंज़ूरी दे दी है।

  • योजना के तहत स्थापित ‘मित्र’ पार्क का उद्देश्य कताई, बुनाई, प्रसंस्करण/रंगाई, छपाई से लेकर परिधान निर्माण तक की संपूर्ण वस्त्र मूल्य शृंखला को एक स्थान पर एकीकृत करना है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘पीएम मित्र’ पार्क
    • ‘पीएम मित्र’ पार्क को सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मोड में एक ‘विशेष प्रयोजन इकाई’ (SPV) द्वारा विकसित किया जाएगा, जिसका स्वामित्व केंद्र और राज्य सरकार के पास होगा।
    • प्रत्येक ‘मित्र’ पार्क में एक इन्क्यूबेशन सेंटर, कॉमन प्रोसेसिंग हाउस और एक कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट तथा अन्य टेक्सटाइल संबंधी सुविधाएँ जैसे- डिज़ाइन सेंटर और टेस्टिंग सेंटर होंगे।
    • यह ‘विशेष प्रयोजन इकाई’ न केवल औद्योगिक पार्क का विकास करेगी, बल्कि रियायत अवधि के दौरान इसका रखरखाव भी करेगी।
  • वित्तपोषण
    • इस योजना के तहत केंद्र सरकार सामान्य बुनियादी अवसंरचना के विकास हेतु प्रत्येक ग्रीनफील्ड ‘मित्र’ पार्क के लिये 500 करोड़ रुपए और प्रत्येक ब्राउनफील्ड पार्क के लिये 200 करोड़ रुपए की विकास पूंजी सहायता प्रदान करेगी।
      • ग्रीनफील्ड का आशय एक पूर्णतः नई परियोजना से है, जिसे शून्य स्तर से शुरू किया जाना है, जबकि ब्राउनफील्ड परियोजना वह है जिस पर काम शुरू किया जा चुका है।
  • प्रोत्साहन के लिये पात्रता:
    • इनमें से प्रत्येक पार्क में वस्त्र निर्माण इकाइयों की शीघ्र स्थापना के लिये प्रतिस्पर्द्धाकता प्रोत्साहन सहायता के रूप में अतिरिक्त 300 करोड़ रुपए प्रदान किये जाएंगे।
    • कम-से-कम 100 लोगों को रोज़गार देने वाले ‘एंकर प्लांट’ स्थापित करने वाले निवेशक तीन वर्ष तक प्रतिवर्ष 10 करोड़ रुपए तक के प्रोत्साहन के पात्र होंगे।
  • महत्त्व
    • रसद लागत में कमी: यह रसद लागत को कम करेगा और कपड़ा क्षेत्र की मूल्य शृंखला को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनने हेतु मज़बूत करेगा।
      • कपड़ा निर्यात को बढ़ावा देने के भारत के लक्ष्य में उच्च रसद लागत को एक प्रमुख बाधा माना जाता है।
      • भारत ने हाल के दिनों में चीन से प्रमुख कच्चे माल की आपूर्ति में व्यवधान का सामना किया है, क्योंकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला महामारी के दौरान प्रभावित हुई थी।
    • रोज़गार सृजन
      • ‘मित्र’ पार्क के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से 1 लाख रोज़गार सृजित होने और परोक्ष रूप से 2 लाख रोज़गार सृजित होने की उम्मीद है।
    • विदेशी निवेश में वृद्धि
      • ये पार्क देश में ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (FDI) आकर्षित करने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।
      • अप्रैल 2000 से सितंबर 2020 तक भारत के कपड़ा क्षेत्र को 20,468.62 करोड़ रुपए का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्राप्त हुआ था, जो इस अवधि के दौरान कुल विदेशी निवेश प्रवाह का मात्र 0.69% है।
  • अन्य संबंधित प्रयास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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