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डेली न्यूज़

  • 07 Jul, 2021
  • 79 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

आत्मनिर्भर भारत: अवसर और चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये

आत्मनिर्भर भारत अभियान, मेक इन इंडिया अभियान

मेन्स के लिये

आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रस्तुत अवसर और चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

यूके-इंडिया बिज़नेस काउंसिल (UKIBC) ने 'रोड टू ए यूके-इंडिया फ्री ट्रेड एग्रीमेंट: एन्हांसिंग द पार्टनरशिप एंड अचीविंग सेल्फ-रिलायंस' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

  • भारत में व्यापार करने को लेकर ‘यूके-इंडिया बिज़नेस काउंसिल’ के वार्षिक सर्वेक्षण के मुताबिक ब्रिटेन की 77 प्रतिशत कंपनियों का मानना है कि ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ एक चुनौती के बजाय एक अवसर प्रदान करता है।
  • हालाँकि परिषद ने अपनी रिपोर्ट में ज़ोर देते हुए कहा है कि ‘आत्मनिर्भर अभियान’ के तहत लागू कुछ सुधारों के कारण ब्रिटेन और सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। 

प्रमुख बिंदु

आत्मनिर्भर भारत अभियान द्वारा प्रस्तुत अवसर: 

  • ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ को वर्ष 2014 में शुरू किये गए ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के विस्तार के रूप में देखा जाना चाहिये, क्योंकि ये दोनों ही अभियान घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से विनिर्माण निवेश हासिल करने के उद्देश्य को साझा करते हैं।
  • इस अभियान के हिस्से के रूप में घोषित पैकेज के तहत भारतीय समाज के संवेदनशील और वंचित वर्गों, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs), कृषि क्षेत्र के लिये तथा व्यवसायों हेतु नियमों को आसान बनाने और अर्थव्यवस्था का समर्थन करने हेतु अन्य समाधानों की एक शृंखला हेतु कई वित्तीय सहायता उपायों की पेशकश की गई थी।
  • इस अभियान ने विदेशी निवेशकों के लिये रक्षा, परमाणु ऊर्जा, कृषि, बीमा, स्वास्थ्य सेवा और नागरिक उड्डयन सहित कई क्षेत्रों में निवेश के अवसर प्रदान किये हैं।

बढ़ती चिंता:

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश का कम होना: इस कार्यक्रम के कुछ पहलुओं जैसे- आयात एवं आयात प्रतिस्थापन पर टैरिफ व गैर-टैरिफ प्रतिबंध में वृद्धि आदि में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा निवेश को कम करने की क्षमता है।
    • गैर-टैरिफ बैरियर, जैसे- कोटा (Quota), अधिरोध (Embargo) या सैंक्शन (Sanction) आदि व्यापार अवरोधक हैं, जिनका उपयोग देश अपने राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिये करते हैं।
    • देश मानक टैरिफ बैरियर (जैसे सीमा शुल्क) के स्थान पर गैर-टैरिफ बैरियर का उपयोग कर सकते हैं।
  • DISCOMS द्वारा तदर्थ नीति में परिवर्तन: बिजली वितरण कंपनियाँ (DISCOMS) और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के मामले में बिजली खरीद समझौतों पर दुबारा बातचीत करने के लिये तदर्थ (Ad-Hoc) परिवर्तनों को अपनाती हैं।
  • नीतिगत मुद्दे: भारत की बौद्धिक संपदा प्रवर्तन व्यवस्था में कठिनाइयाँ, फार्मा क्षेत्र के नियमों में अंतराल, दवा मूल्य नियंत्रण और डेटा स्थानीयकरण तथा शासन से संबंधित मानदंड।
    • डेटा स्थानीयकरण (देश की सीमाओं के भीतर डेटा संग्रहीत करना) वैश्विक आपूर्ति शृंखला तक पहुँच सीमित करके स्थानीय कंपनियों की वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता को सीमित कर सकता है।
    • इससे निवेश, पूंजी और ग्राहकों तक पहुँच में कमी हो सकती है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में :  अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी निवेशकों के लिये खोलना एक महत्त्वपूर्ण कदम था, लेकिन इससे जुड़ी प्रक्रियाओं से संबंधित कई पहलुओं के बारे में 'स्पष्टता की कमी' थी।
    • भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र (IN-SPACe) भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने हेतु निजी क्षेत्र की कंपनियों को समान अवसर उपलब्ध कराएगा।
  • रक्षा क्षेत्र में: रक्षा उपकरणों की 101 वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध को 4 वर्ष की अवधि तक  या  वर्ष 2024 तक लागू करने की योजना है। 
    • इसके अतिरिक्त रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 में परिवर्तन के कारण यह संभावना सुनिश्चित की गई है कि इस सूची में कोई भी वस्तु कट-ऑफ तिथि से आगे आयात नहीं की जाती है।
    • इससे भारत में विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है।

सुझाव :

  • भविष्य की रणनीति बनाना :
    • एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण जो क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं और स्थान संबंधी निर्णय लेने पर विचार करता है, सफल होने के लिये आवश्यक है।
  • भारत में मुक्त और निष्पक्ष व्यापार हेतु खुलेपन को बढ़ावा देना :
    • भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायों को भारत में निवेश करने और मेक इन इंडिया को एक उपकरण के रूप में टैरिफ का उपयोग करने के बजाय अपनी क्षमता के कारण निवेशकों को आकर्षित करना चाहिये।
  •  नवोन्मेषकों के विकास और समर्थन पर ध्यान देना :
    • STEM, डिजिटल, रचनात्मक और महत्त्वपूर्ण विचार कौशल पर ध्यान केंद्रित करने से यह ऐसे नेतृत्त्वकर्त्ताओं और कार्यकर्ताओं का निर्माण करेगा जो नवाचार कर सकते हैं तथा समस्याओं को हल कर सकते हैं।
    • भारत को एक नवप्रवर्तक-अनुकूल बौद्धिक संपदा नीति और प्रवर्तन व्यवस्था भी विकसित करनी चाहिये।
  •  डिजिटल और डेटा:
    • वैश्विक व्यापार में डिजिटल और डेटा सेवाओं का तीव्रता से बढ़ते महत्त्व के साथ भारत के समक्ष अन्य प्रमुख लोकतांत्रिक बाज़ारों के साथ पूरी तरह से एकीकृत होने का अवसर उपलब्ध है।
    • भारत को अपनी विकास क्षमता को प्राप्त करने हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence), डिजिटल तकनीक (Digital Technology) और डेटा के मौजूद अवसरों का दोहन करने के लिये इन क्षेत्रों में सक्रिय रूप से निवेश करना जारी रखना चाहिये।
  • भारत की  व्यापार और निवेश रणनीति को स्थिरता प्रदान करना :
    • अगर व्यापारिक व्यवस्थाओं को सही ढंग से आकार दिया जाए, तो  ये संस्थाएँ गरीबों का समर्थन करने और पर्यावरण की रक्षा करने में मदद कर सकती हैं।
    • देश और विभिन्न व्यापरिक समूह इस तथ्य से अवगत हैं तथा वे अपने  व्यापार समझौतों और रणनीतियों में स्थिरता और मानवाधिकारों को तेज़ी से एकीकृत कर रहे हैं।

आत्मनिर्भर भारत अभियान:

  • मई 2020 में प्रधानमंत्री द्वारा 20 लाख करोड़ रुपए के इस कार्यक्रम को आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के साथ शुरू किया गया था - जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करना था।
    • वर्ष 2019-20 हेतु घोषित आर्थिक पैकेज भारत के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का 10% था।
    •  20 लाख करोड़ रुपए की धनराशि में RBI के उपायों औ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Yojana) के तहत भुगतान को शामिल करते हुए लॉकडाउन की शुरुआत में पहले से घोषित पैकेज शामिल हैं।
    • उम्मीद है कि इस पैकेज का उपयोग भूमि, श्रम, तरलता और कानूनों पर ध्यान केंद्रित करने हेतु किया जाएगा।

लक्ष्य:

  • इसका उद्देश्य वैश्विक बाज़ार में हिस्सेदारी हासिल करने हेतु सुरक्षा अनुपालन और सामानों की गुणवत्ता में सुधार करते हुए प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित करके आयात निर्भरता को कम करना है।
  • आत्मनिर्भरता न तो किसी बहिष्करण या अलगाववादी रणनीतियों का प्रतीक है बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर एक सहायता के रूप में देखे जाने की ज़रूरत है।
  • मिशन "स्थानीय" उत्पादों को बढ़ावा देने के महत्त्व पर केंद्रित है।

Atmanirbhar-Bharat

स्रोत: द हिंदू


विश्व इतिहास

इटली में भारतीय सैनिक: द्वितीय विश्व युद्ध

प्रिलिम्स के लिये: 

द्वितीय विश्व युद्ध से संबंधित विभिन्न तथ्य

मेन्स के लिये: 

द्वितीय विश्व युद्ध कारण व परिणाम 

चर्चा में क्यों?

भारतीय थल सेनाध्यक्ष (COAS) ब्रिटेन और इटली की आधिकारिक यात्रा के दौरान इटली के कैसिनो शहर में एक भारतीय सेना स्मारक का उद्घाटन करेंगे।

  • यह स्मारक 3,100 से अधिक राष्ट्रमंडल सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने हेतु बनाया गया है जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में इटली को आज़ाद कराने के प्रयास में भाग लिया था।
  • इस स्मारक पर 900 भारतीय सैनिकों को भी श्रद्धाजंलि दी गई है।

प्रमुख बिंदु:

इटली में भारतीय सेना:

  • भारतीय सेना के तीन इन्फैन्ट्री डिवीज़नों (चौथे, आठवें और दसवें) ने इतालवी अभियान में भाग लिया था।
    • 8वाँ भारतीय इन्फैंट्री डिवीजन इटली में पहुँचने वाला देश का पहला डिवीज़न था जिसने  वर्ष 1941 में अंग्रेज़ों द्वारा इराक और ईरान में हुए हमलों के समय कार्रवाई की।
    • दूसरा आगमन चौथे भारतीय डिवीज़न का था जो दिसंबर 1943 में उत्तरी अफ्रीका से इटली आया था। वर्ष 1944 में इसे कैसीनो में तैनात किया गया था।
    • तीसरा आगमन 10वें भारतीय डिवीजन का था जिसे वर्ष 1941 में अहमदनगर में गठित किया गया और वर्ष 1944 में यह इटली पहुँचा।
  • पंजाब और भारतीय मैदानी इलाकों के पुरुषों ने इटली की अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना किया। 
    • यहाँ तक कि नेपाल के गोरखाओं ने भी भारी और लगातार वर्षा तथा इटली के पहाड़ों में बर्फीली रातों का सामना किया।
  • सभी तीन डिवीजनों ने इतालवी अभियान में अच्छा प्रदर्शन किया और मित्र देशों तथा एक्सिस/धुरी कमांडरों द्वारा समान रूप से उनका सम्मान किया गया।

द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सैनिक:

  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना सबसे बड़ी स्वयंसेवी शक्ति थी, जिसमें 2.5 मिलियन (20 लाख से अधिक) भारतीयों ने भाग लिया था। 
  • इन सैनिकों ने मित्र राष्ट्रों के हिस्से के रूप में धुरी शक्तियों (जर्मनी, इटली और जापान) से लड़ाई लड़ी। वे विभिन्न स्रोत संगठनों से संबंधित थे, जैसे:
    • भारतीय सेना:
      • 1940 के दशक के पूर्वार्द्ध में भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था और भारतीय सेना ने दोनों विश्व युद्धों में भाग लिया। इसमें भारतीय और यूरोपीय दोनों सैनिक शामिल थे।
    • ईस्ट इंडिया कंपनी सेना और ब्रिटिश सेना:
      • भारतीय सेना के अलावा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी, जिसने भारतीय और यूरोपीय दोनों सैनिकों की भर्ती की तथा ब्रिटिश सेना भी मौजूद थी।

द्वितीय विश्व युद्ध

परिचय:

  • द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था।
  • जर्मनी द्वारा 1 सितंबर, 1939 को पोलैंड पर आक्रमण के दो दिन बाद ब्रिटेन और फ्राँस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। इस घटना ने द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की।
  • यह इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष था जो लगभग छह वर्षों तक चला था।
  • 2 सितंबर, 1945 को जब यह एक अमेरिकी युद्धपोत के डेक पर समाप्त हुआ, तब इसमें लगभग 60-80 मिलियन लोग शामिल हुए थे जो दुनिया की आबादी का लगभग 3% था।
  • मरने वालों में अधिकांश साधारण नागरिक थे, जिनमें 6 मिलियन यहूदी भी शामिल थे, जो युद्ध के दौरान नाजी बंदी शिविरों में मारे गए थे।

प्रतिद्वंद्वी गुट:

  • धुरी शक्तियाँ- जर्मनी, इटली और जापान।
  • मित्र राष्ट्र- फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन।

Axis

युद्ध के कारण:

द्वितीय विश्व युद्ध में इटली

  • बेनिटो मुसोलिनी के नेतृत्त्व में इटली वर्ष 1936 में जर्मन नेशनल सोशलिस्ट (नाज़ी) जर्मनी में शामिल हो गया था और वर्ष 1940 में मित्र राष्ट्रों के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया।
  • वर्ष 1943 में मुसोलिनी को परास्त कर दिया गया और इसके बजाय इटली ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा की।
  • मित्र राष्ट्रों द्वारा इटली पर आक्रमण उसी समय हुआ जब इतलियों के साथ एक युद्धविराम समझौता किया गया था।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दो वर्षों तक इटली युद्ध के सबसे "थकाऊ अभियानों" में से एक बना रहा क्योंकि वे एक कुशल और दृढ़ दुश्मन का सामना कर रहे थे। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

समुद्री प्लास्टिक: समस्या और समाधान

प्रिलिम्स के लिये

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (2016)

मेन्स के लिये

समुद्री प्लास्टिक कचरे की समस्या और इससे निपटने के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को लागू करने से संबंधित केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018-19 में उत्पन्न प्लास्टिक कचरा प्रति वर्ष 3.3 मिलियन टन (लगभग 9,200 टन प्रति दिन) था।

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • प्लास्टिक पेट्रोलियम से बना एक सिंथेटिक कार्बनिक बहुलक है जिसमें पैकेजिंग, भवन एवं निर्माण, घरेलू एवं खेल उपकरण, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि सहित विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों के लिये आदर्श रूप से अनुकूल गुण हैं। प्लास्टिक सस्ता, हल्का, मज़बूत और लचीला है।
  • प्रत्येक वर्ष 300 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है जिसमें से आधे का उपयोग शॉपिंग बैग, कप और स्ट्रॉ जैसी एकल-उपयोग वाली वस्तुओं को डिज़ाइन करने के लिये किया जाता है।
  • केवल 9% प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण किया जाता है। लगभग 12% को जला दिया जाता है जबकि 79% लैंडफिल में जमा हो जाता है।
  • इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कम से कम 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में समा जाता है।

प्लास्टिक कचरे के स्रोत:

  • समुद्री प्लास्टिक के मुख्य भूमि आधारित स्रोत शहरी नालों का बहाव, सीवर ओवरफ्लो, समुद्र तटीय आगंतुक, अपर्याप्त अपशिष्ट निपटान एवं प्रबंधन, औद्योगिक गतिविधियाँ, निर्माण एवं अवैध डंपिंग हैं।
  • महासागर आधारित प्लास्टिक मुख्य रूप से मछली पकड़ने के उद्योग, समुद्री गतिविधियों और जलीय कृषि से उत्पन्न होता है।
  • सौर पराबैंगनी विकिरण, वायु, धाराओं और अन्य प्राकृतिक कारकों के प्रभाव में प्लास्टिक के टुकड़े छोटे कणों जैसे-माइक्रोप्लास्टिक्स (5 मिमी. से छोटे कण) या नैनोप्लास्टिक्स (100 एनएम से छोटे कण) में टूट जाते हैं।
    • इसके अलावा, माइक्रोबीड्स, एक प्रकार का माइक्रोप्लास्टिक है जो पॉलीइथाइलीन प्लास्टिक के बहुत छोटे टुकड़े होते हैं, इन्हें स्वास्थ्य और सौंदर्य उत्पादों जैसे- क्लीन्ज़र और टूथपेस्ट में एक्सफोलिएंट के रूप में शामिल किया जाता है। ये छोटे कण आसानी से जल निस्पंदन तंत्र के माध्यम से गुजरते हैं और समुद्र तथा झीलों में समा जाते हैं।

समुद्री प्लास्टिक कचरे से संबंधित चिंताएँ:

  • प्लास्टिक कचरा सीवरों को अवरुद्ध करता है, समुद्री जीवन को खतरे में डालता है और लैंडफिल या प्राकृतिक वातावरण में निवासियों के लिये स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।
  • समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण की वित्तीय लागत भी काफी महत्त्वपूर्ण है।
    • मार्च 2020 में किये गए पूर्वानुमान के अनुसार, समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ की ‘ब्लू इकॉनोमी’ को प्रत्यक्ष तौर पर प्रतिवर्ष 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होगा।
  • आर्थिक लागत के साथ-साथ समुद्री प्लास्टिक कचरे की सामाजिक लागत भी काफी भारी होती है। तटीय क्षेत्रों के निवासी प्लास्टिक प्रदूषण और ज्वार द्वारा लाए गए कचरे के हानिकारक स्वास्थ्य प्रभावों से सबसे अधिक पीड़ित होते हैं।
  • प्रायः यह देखा जाता है कि नावें मछली पकड़ने के जाल में फँस जाती हैं या उनके इंजन प्लास्टिक के मलबे से ब्लॉक हो जाते हैं।
    • यह नौवहन, मत्स्य पालन, जलीय कृषि और समुद्री पर्यटन जैसे उद्योगों के लिये समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है, जो कि तटीय समुदाय की आजीविका को प्रभावित करते हैं।

इस संबंध में किये गए प्रयास

  • ग्लोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट
    • इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन’ (IMO) और ‘संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) द्वारा लॉन्च किया गया है और इसका प्रारंभिक वित्तपोषण नॉर्वे सरकार द्वारा किया गया है।
    • उद्देश्य: शिपिंग और मत्स्य पालन उद्योग से होने वाले समुद्री प्लास्टिक कचरे को कम करना।
      • साथ ही यह विकासशील देशों को समुद्री परिवहन और मत्स्य पालन क्षेत्रों से प्लास्टिक कचरे को कम करने में भी सहायता करता है।
      • साथ ही यह प्लास्टिक के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के अवसरों की पहचान भी करता है।
    • समुद्री कचरे से निपटने की इस वैश्विक पहल में भारत समेत 30 देश शामिल हैं।
  • विश्व पर्यावरण दिवस, 2018 की मेजबानी भारत द्वारा की गई थी, जिस दौरान वैश्विक नेताओं ने ‘प्लास्टिक प्रदूषण को हराने’ और इसके उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करने का संकल्प लिया था।
  • भारत के लिये विशिष्ट:
    • प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के मुताबिक, प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रहण, प्रसंस्करण और निपटान के लिये बुनियादी ढाँचे की स्थापना हेतु प्रत्येक स्थानीय निकाय को उत्तरदायी होना चाहिये।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 के माध्यम से ‘विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व’ (EPR) की अवधारणा पेश की गई थी।
    • भारत को वर्ष 2022 तक ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक’ से मुक्त करने के लिये देश में ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक’ पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है।

समाधान:

  • उत्पाद डिज़ाइन करना: प्लास्टिक की वस्तुओं की पहचान करना जिन्हें गैर-प्लास्टिक, पुनर्चक्रण योग्य या बायोडिग्रेडेबल सामग्री से बदला जा सकता है, पहला कदम है।
    • देशों को प्लास्टिक मूल्य शृंखला में सतत् आर्थिक प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
  • मूल्य निर्धारण: प्लास्टिक सस्ते होते हैं जो पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक को नियोजित करने के लिये कम आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करते हैं। पर्यावरणीय स्वास्थ्य के साथ मूल्य संरचना को संतुलित करना प्राथमिकता होनी चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: शहरों में प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा को मापने और निगरानी करने में सरकारों की सहायता के लिये उपकरण और प्रौद्योगिकी विकसित करना।
    • भारत को एशिया-प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र का आर्थिक एवं सामाजिक आयोग की 'क्लोज़िंग द लूप' परियोजना जैसी परियोजनाएँ शुरू करनी चाहिये जो समस्या से निपटने हेतु अधिक आविष्कारशील नीति समाधान विकसित करने में शहरों की सहायता करती हैं।
  • प्लास्टिक मुक्त कार्यस्थल को बढ़ावा देना: सभी एकल-उपयोग वाली वस्तुओं को पुनर्चक्रण योग्य वस्तुओं या अधिक सतत् एकल-उपयोग विकल्पों से बदला जा सकता है।
  • निर्माता ज़िम्मेदारी: खुदरा (पैकेजिंग) क्षेत्र में विस्तारित ज़िम्मेदारी लागू की जा सकती है, जहाँ उत्पादक उन उत्पादों को इकट्ठा करने और पुनर्चक्रण के लिये ज़िम्मेदार होते हैं जिन्हें वे बाज़ार में लॉन्च करते हैं।
  • नगरपालिका और सामुदायिक कार्य: समुद्र तट और नदी की सफाई, जन जागरूकता अभियान और डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध और शुल्क।
  • बहु-हितधारक सहयोग: राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर सरकारी मंत्रालयों को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन से संबंधित नीतियों के विकास, कार्यान्वयन और निरीक्षण में सहयोग करना चाहिये।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

  • इसका गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर, 1974 को किया गया।
  • इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
  • यह बोर्ड पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।
    • जल प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन द्वारा राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नालों और कुओं की सफाई को बढ़ावा देना।
    • वायु की गुणवत्ता में सुधार और देश में वायु प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने या कम करने के प्रयास करना।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

नवेगांँव-नागझिरा टाइगर रिज़र्व और ब्लैक पैंथर

प्रिलिम्स के लिये:

IUCN रेड लिस्ट, नवेगांँव-नागझिरा टाइगर रिज़र्व, CITES  

मेन्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत भारत में जीव जंतुओं का संरक्षण  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में महाराष्ट्र के नवेगांँव-नागझिरा टाइगर रिज़र्व (Navegaon-Nagzira Tiger Reserve- NNTR) में एक दुर्लभ मेलानिस्टिक तेंदुआ देखा गया है। आमतौर पर सामान्य भाषा में इसे ब्लैक पैंथर (Black Panther) के रूप में जाना जाता है। 

प्रमुख बिंदु: 

मेलानिस्टिक तेंदुआ/ब्लैक पैंथर के बारे में:

Black-Panther

  • तेंदुआ (Panthera Pardus) या तो हल्के रंग का होता है (हल्के पीले से गहरे सुनहरे या पीले रंग के) या इसके शरीर पर काले रंग के गुच्छे में फर/बाल पाए जाते हैं।
  • मेलानिस्टिक तेंदुआ का रंग या तो पूरी तरह से काला होता है या फिर यह बहुत गहरे रंग का होता है जो ब्लैक पैंथर के रूप में जाने जाता है। यह धब्बेदार भारतीय तेंदुओं का रंग रूप है, जो दक्षिण भारत के घने जंगलों में पाया जाता है।
  • तेंदुओं के काले रंग के आवरण का कारण अप्रभावी एलील ( Recessive Alleles) और जगुआर के एक प्रभावी एलील की उपस्थिति का होना है। प्रत्येक प्रजाति में एलील्स का एक निश्चित संयोजन जानवर के फर और त्वचा में बड़ी मात्रा में काले वर्णक मेलेनिन (मेलानिज्म) के उत्पादन को उत्तेजित करता है।
    • काले आवरण की उपस्थिति अन्य कारकों से प्रभावित हो सकती है, जैसे कि आपतित प्रकाश का कोण और जानवर का जीवन का स्तर।
    • यह एक सामान्य तेंदुए की तरह शर्मीला होता है और इसको खोजना भी मुश्किल होता है।
  • आवास:
    • वे मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिमी चीन, बर्मा, नेपाल, दक्षिणी भारत, इंडोनेशिया और मलेशिया के दक्षिणी भाग में पाए जाते हैं।
    • भारत में यह कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र आदि राज्यों में पाया जाता है।
  • खतरा:
    • प्राकृतिक वास का नुकसान।
    • वाहनों से टक्कर।
    • रोग।
    • मानव अतिक्रमण।
    • अवैध शिकार।
  • संरक्षण स्थिति :

नवेगाँव-नागझिरा टाइगर रिज़र्व:

Mumbai

  • नवेगाँव-नागझिरा टाइगर रिज़र्व के विषय में:
    • यह महाराष्ट्र के गोंदिया और भंडारा ज़िलों में स्थित है।
    • रणनीतिक रूप से यह टाइगर रिज़र्व, केंद्रीय भारतीय बाघ परिदृश्य के केंद्र में स्थित है जहाँ देश की कुल बाघ आबादी का लगभग 1/6 भाग पाया जाता है।
  • गठन:
    • इसे दिसंबर, 2013 में भारत के 46वें टाइगर रिज़र्व के रूप में अधिसूचित किया गया था।
    • इसमें नवेगाँव राष्ट्रीय उद्यान, नवेगांव वन्यजीव अभयारण्य, नागझिरा वन्यजीव अभयारण्य,नवीन नागझिरा वन्यजीव अभयारण्य और कोका वन्यजीव अभयारण्य के अधिसूचित क्षेत्र शामिल हैं।
  • जुड़ाव:
    • NNTR मध्य भारत में प्रमुख बाघ अभयारण्यों के साथ सीमा साझा करता है जैसे-
    • यह उमरेद-करहंदला अभयारण्य और ब्रह्मपुरी डिवीज़न (महाराष्ट्र) जैसे महत्त्वपूर्ण बाघ क्षेत्रों से भी जुड़ा हुआ है।
  • वनस्पति:
    • यहाँ प्रमुख रूप से ‘दक्षिणी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन’ (Southern Tropical Dry Deciduous Forest) पाए जाते हैं।
    • इस रिज़र्व में कुछ काँटेदार पौधे भी पाए जाते हैं और यहाँ बाँस बहुतायत में होता है।
  • जीव-जंतु:
    • यहाँ तेंदुए जैसे बड़े मांसाहारी और जंगली कुत्ते, भेड़िया, गीदड़, जंगल बिल्ली तथा ‘स्लॉथ बीयर’ जैसे छोटे माँसाहारी जानवर पाए जाते हैं।
    • महत्त्वपूर्ण शाकाहारी जंतुओ में चीतल, सांभर, नीलगाय, चौसिंगा, कांकड़/बार्किंग डियर, जंगली सुअर और भारतीय गौर शामिल हैं। यहाँ माउस डीयर को भी देखा गया है।
    • यहाँ पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • महाराष्ट्र में अन्य संरक्षित क्षेत्र:
    • सह्याद्री टाइगर रिज़र्व।
    • मेलघाट टाइगर रिज़र्व
    • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड अभयारण्य।
    • कर्नाला पक्षी अभयारण्य।
    • संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान।
    • पेंच राष्ट्रीय उद्यान।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स

प्रिलिम्स के लिये:

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स, ई-कॉमर्स

मेन्स के लिये:

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स का अर्थ और महत्त्व, भारत में ई-कॉमर्स संबंधी पहलें

चर्चा में क्यों?

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने ‘ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स’ (ONDC) परियोजना के लिये एक सलाहकार समिति नियुक्त करने के आदेश जारी किये हैं, जिसका उद्देश्य "डिज़िटल एकाधिकार" को रोकना है।

  • यह ई-कॉमर्स प्रक्रियाओं को ओपन सोर्स बनाने की दिशा में एक कदम है, इस प्रकार एक ऐसा मंच तैयार किया जा रहा है जिसका उपयोग सभी ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं द्वारा किया जा सकता है।
  • इससे पहले, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने उपभोक्ता संरक्षण के लिये ई-कॉमर्स नियमों का मसौदा जारी किया था, जिसमें ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस जैसे- अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट छोटे व्यवसायों द्वारा शिकायत (कि ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस बाज़ार के प्रभुत्व का दुरुपयोग करते हैं तथा एक अनुचित लाभ हासिल करने के लिये गहरी छूट देते हैं।) किये जाने के बाद कैसे काम करते हैं, में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं।

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • ONDC का उद्देश्य किसी विशिष्ट प्लेटफॉर्म पर स्वतंत्र, खुले विनिर्देशों और ओपन नेटवर्क प्रोटोकॉल का उपयोग करते हुए ओपन-सोर्स पद्धति पर विकसित ओपन नेटवर्क को बढ़ावा देना है।
  • ओपन-सोर्स तकनीक पर आधारित नेटवर्क के माध्यम से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को एकीकृत करने की परियोजना को भारतीय गुणवत्ता परिषद (Quality Council of India) को सौंपा गया है।
  • ONDC जिसका कार्यान्वयन एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) की तर्ज पर होने की उम्मीद है, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म द्वारा किये गए विभिन्न परिचालन पहलुओं को समान स्तर पर ला सकता है।
    • विभिन्न परिचालन पहलुओं में विक्रेताओं की ऑनबोर्डिंग, विक्रेता की खोज, मूल्य की खोज और उत्पाद सूचीकरण आदि शामिल हैं।
  • ONDC पर खरीदार और विक्रेता इस तथ्य के बावजूद लेन-देन कर सकते हैं कि वे एक विशिष्ट ई-कॉमर्स पोर्टल से जुड़े हुए हैं।

महत्त्व:

  • यदि ‘ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स’ (ONDC) को अनिवार्य रूप से लागू किया जाता है, तो इसका अर्थ यह होगा कि सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को समान प्रक्रियाओं (जैसे एंड्रॉइड आधारित मोबाइल डिवाइस आदि) का उपयोग करना होगा।
  • यह छोटे ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं और नए प्रवेशकों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
    • हालाँकि यदि इसे अनिवार्य किया जाता है तो यह बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये समस्यायुक्त हो सकता है, जिनके पास ई-कॉमर्स क्षेत्र में संचालन के लिये पहले से ही प्रक्रियाएँ और तकनीक मौजूद हैं।
  • ‘ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स’ के माध्यम से संपूर्ण मूल्य शृंखला को डिजिटाइज़ करने, संचालन का मानकीकरण करने, आपूर्तिकर्त्ताओं के समावेश को बढ़ावा देने, रसद में दक्षता प्राप्त करने और उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ प्रदान करने में मदद मिलेगी।

ओपन-सोर्स का अर्थ

  • एक सॉफ्टवेयर या एक प्रक्रिया के ओपन-सोर्स होने का अर्थ है कि उसके कोड या उस प्रक्रिया के चरणों को दूसरों के उपयोग, पुनर्वितरण और संशोधन के लिये स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया जाता है।
    • उदाहरण के लिये ‘एप्पल’ कंपनी के ‘iPhones’ (iOS) का ऑपरेटिंग सिस्टम ‘क्लोज़्ड सोर्स’ है, जिसका अर्थ है कि इसे कानूनी रूप से संशोधित या परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
    • वहीं दूसरी ओर गूगल का एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम ‘ओपन-सोर्स’ है और इसलिये सैमसंग, श्याओमी, वनप्लस जैसे स्मार्टफोन निर्माताओं द्वारा इसे कुछ विशिष्ट संशोधनों के साथ प्रयोग किया जाता है।

भारत में ई-कॉमर्स संबंधी सरकारी पहल:

ई-कॉमर्स

  • इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स या ई-कॉमर्स एक व्यवसाय मॉडल है जो फर्मों और व्यक्तियों को इंटरनेट के माध्यम से चीजें खरीदने एवं बेचने की सुविधा देता है।
  • स्मार्टफोन की बढ़ती पहुँच 4जी नेटवर्क के लॉन्च और बढ़ती उपभोक्ता संपत्ति से प्रेरित भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार के वर्ष 2026 तक 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है जो कि वर्ष 2017 में 38.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
  • भारतीय ई-कॉमर्स उद्योग तेज़ी से विकास के पथ पर अग्रसर है और यह आशा व्यक्त की जा रही है वर्ष 2034 तक भारत, अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ई-कॉमर्स बाज़ार बन जाएगा।

E-Commerce

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

टेली-लॉ

प्रिलिम्स के लिये: 

टेली-लॉ कार्यक्रम, कॉमन सर्विस सेंटर, SDG-16

मेन्स के लिये: 

टेली-लॉ कार्यक्रम और मौजूदा समय में इसकी प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों 

हाल ही में न्याय विभाग (Justice Department) ने कॉमन सर्विस सेंटर्स (Common Service Centre- CSC) के माध्यम से अपने टेली-लॉ (Tele-Law) कार्यक्रम के अंतर्गत 9 लाख से अधिक लाभार्थियों तक पहुँचने का नया कीर्तिमान बनने के अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित किया।

  • कॉमन सर्विस सेंटर कार्यक्रम, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) की एक पहल है, यह गाँवों में विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक सेवाओं का वितरण सुनिश्चित करने वाले केंद्र अथवा एक्सेस पॉइंट (Access Point) के रूप में कार्य करता है, इस प्रकार यह डिजिटल तथा वित्तीय रूप से समावेशी समाज में योगदान करता है।

प्रमुख बिंदु 

टेली-लॉ के विषय में: 

  • इसे कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के सहयोग से वर्ष 2017 में नागरिकों के लिये कानूनी सहायता को सुलभ बनाने हेतु लॉन्च किया गया था।
  • यह वर्तमान में 50,000 CSC नेटवर्क के माध्यम से 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 633 ज़िलों (115 आकांक्षी ज़िलों सहित) में काम कर रहा है।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत पंचायत स्तर पर CSC के विशाल नेटवर्क पर उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, टेलीफोन/तत्काल कॉलिंग सुविधाओं से वकीलों और नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से जोड़ा जा रहा है।
  • भले ही टेली-लॉ कार्यक्रम प्रौद्योगिकी संचालित है परंतु इसकी सफलता ग्रामीण स्तर के उद्यमियों (Village Level Entrepreneur), पैरा लीगल वालंटियर्स (Para Legal Volunteer), राज्य समन्वयकों और पैनल वकीलों सहित क्षेत्रीय कार्यकर्त्ताओं के कामकाज पर निर्भर है।

Tele-Law

लाभ: 

  • यह किसी भी व्यक्ति को कीमती समय और धन बर्बाद किये बिना कानूनी सलाह लेने में सक्षम बनाती है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 12 के तहत उल्लिखित मुफ्त कानूनी सहायता के लिये पात्र लोगों हेतु यह सेवा मुफ्त है। अन्य सभी के लिये मामूली शुल्क लिया जाता है।
  • हाल ही में कानूनी प्रतिनिधित्व की गुणवत्ता : भारत में मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं का एक अनुभवजन्य विश्लेषण' (Quality of Legal Representation: An Empirical Analysis of Free Legal Aid Services in India) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई है जिसके अनुसार  लोग  मुफ्त विधिक सहायता प्रणाली के हकदार हैं, वे इस सेवा को एक विकल्प के रूप में तब देखते हैं, जब वे निजी वकील का खर्च वहन नहीं कर पाते। 

SDG का समर्थन : 

  • यह पहल सतत् विकास लक्ष्य-16 पर केंद्रित है, जो "स्थायी विकास के लिये शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों को बढ़ावा देगा तथा सभी के लिये' न्याय तक पहुँच  स्थापित करेगा एवं सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह व समावेशी संस्थानों का निर्माण करेगा।

विधिक सेवा प्राधिकरण (LSA) अधिनियम:

  • वर्ष 1987 में गरीबों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएंँ प्रदान करने हेतु विधिक सेवा प्राधिकरण (LSA) अधिनियम को अधिनियमित किया गया था जिसने राज्य, ज़िला और तालुका स्तर पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Service Authority-NALSA) और अन्य कानूनी सेवा संस्थानों के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
    • नालसा अन्य कानूनी सेवा संस्थानों के साथ लोक अदालतों का आयोजन करता है। लोक अदालत वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्रों में से एक है, यह एक ऐसा मंच है जहांँ कानून की अदालत में या पूर्व मुकदमेबाजी के स्तर पर लंबित विवादों/मामलों को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाया/समझौता किया जाता है।
  • LSA अधिनियम के तहत मुफ्त कानूनी सेवाएंँ अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) और अनुसूचित जाति (Schedule Caste) से संबंधित व्यक्ति, महिला, बच्चे, मानव तस्करी के शिकार, दिव्यांगजन, औद्योगिक कामगार और गरीबों हेतु उपलब्ध हैं।

संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  •  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (क) में सभी के लिये न्याय सुनिश्चित किया गया है और गरीबों तथा समाज के कमज़ोर वर्गों के लिये राज्य द्वारा निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करने को कहा गया है। 
  • अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 22 (1), विधि के समक्ष समानता सुनिश्चित करने के लिये राज्य को बाध्य करता है।

स्रोत पी.आई.बी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

GERD पर गतिरोध

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रैंड रेनेसां डैम, नील नदी

मेन्स के लिये:

ग्रैंड रेनेसां डैम विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इथियोपिया ने ऊपरी ब्लू नील नदी पर एक ग्रैंड इथियोपियाई रेनेसां डैम (Grand Ethiopian Renaissance Dam’s - GERD) जलाशय को भरने (Filling) का दूसरा चरण शुरू किया है, जिसके कारण इस पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आगामी बैठक से पूर्व सूडान और मिस्र से तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

  • इससे पूर्व इथियोपिया ने यह घोषणा की थी कि वह जुलाई में किसी समझौते या बिना किसी समझौते के साथ जलाशय के फिलिंग/भरने के दूसरे चरण में आगे बढ़ेगा।

GERD

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • अफ्रीका की सबसे लंबी नदी नील एक दशक से चल रहे जटिल विवाद के केंद्र में है, इस विवाद में कई देश शामिल हैं, जो नदी के जल पर निर्भर हैं।
  • इथियोपिया द्वारा वर्ष 2011 में ब्लू नील नदी पर GERD के निर्माण का कार्य शुरू किया गया था।
    • यह 145 मीटर लंबी पनबिजली प्रोजेक्ट है जो अफ्रीका की सबसे बड़ी बांध परियोजना है जिसका नील नदी पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा।
    • ब्लू नील, नील नदी की एक सहायक नदी है और यह इसके पानी की मात्रा का दो-तिहाई भाग तथा अधिकांश गाद का वहन करती है।
  • मिस्र नील नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र में स्थित है इसलिये इसने बांध के निर्माण पर आपत्ति जताई है तथा इस परियोजना के लिये एक लंबी समयावधि प्रस्तावित की है।
    • मिस्र का मानना है कि जलाशय प्रारंभिक अवस्था में जल से भरा होता है लेकिन नदी पर इथियोपिया का नियंत्रण होने से उसकी सीमाओं के भीतर जल स्तर कम हो सकता है।
  • सूडान भी इस विवाद में बांध के निर्माण स्थान के कारण शामिल रहा है।
  • जल स्रोत के रूप में अफ्रीका में नील नदी का बहुत अधिक महत्त्व है, अत: चिंता का मुख्यतया विषय यह है कि वर्तमान नदी विवाद दोनों राष्ट्रों (इथियोपिया और मिस्र) के बीच पूर्ण संघर्ष में भी बदल सकता है। 
  • हाल ही में अमेरिका ने इस नदी विवाद में मध्यस्थता करने के लिये कदम बढ़ाया है।

इथियोपिया के लिये बाँध का महत्त्व:

  • इथियोपिया का मानना है कि इस बाँध से लगभग 6,000 मेगावाट बिजली पैदा होगी जो इसके औद्योगिक विकास को बढ़ावा देगी।
  • यह पड़ोसी क्षेत्रों में अधिशेष बिजली का निर्यात करके राजस्व भी अर्जित कर सकता है।
    • केन्या, सूडान, इरिट्रिया और दक्षिण सूडान जैसे पड़ोसी देश भी बिजली की कमी से ग्रस्त हैं और अगर इथियोपिया इन्हें बिजली बेचने का फैसला करता है तो वे जलविद्युत परियोजना से भी लाभान्वित हो सकते हैं।

मिस्र की चिंता:

  • मिस्र इस बात से चिंतित है कि पानी पर इथियोपिया के नियंत्रण से उसके देश का भू-जल स्तर कम हो सकता है।
  • मिस्र अपने पीने के पानी और सिंचाई आपूर्ति के लगभग 97% के लिये नील नदी पर निर्भर है।
  • यह बाँध मिस्र के आम नागरिकों के भोजन और पानी की सुरक्षा तथा आजीविका को खतरे में डाल देगा।

सूडान का पक्ष:

  • सूडान भी इस बात से चिंतित है कि अगर इथियोपिया नदी के जल पर नियंत्रण करता है तो उसका भी भू-जल स्तर प्रभावित हो सकता है।
  • हालाँकि इस बाँध से पैदा होने वाली बिजली से सूडान को फायदा होने की संभावना है।

नील नदी

  • नील नदी अफ्रीका में स्थित है। यह भूमध्यरेखा के दक्षिण में बुरुंडी से निकलकर उत्तर-पूर्वी अफ्रीका से होकर भूमध्य सागर में गिरती है। 
  • कभी-कभी विक्टोरिया झील को नील नदी का स्रोत माना जाता है, जबकि कागेरा नदी (Kagera River) जैसी विविध आकारों की नदियाँ स्वयं इस झील के लिये फीडर रूप में कार्य करती हैं।
  • नील नदी को दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक माना जाता है।
    • नील नदी की तीन प्रमुख सहायक नदियाँ- ब्लू नील, अटबारा और व्हाइट नील हैं।
  • नील नदी का बेसिन काफी विशाल है और इसमें तंजानिया, बुरुंडी, रवांडा, कांगो और केन्या आदि देश शामिल हैं।
  • नील नदी एक चापाकार डेल्टा का निर्माण करती है। त्रिकोणीय अथवा धनुषाकार आकार वाले डेल्टा को चापाकार डेल्टा कहा जाता है।

आगे की राह

  • संघर्ष को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिये पड़ोसी देशों तथा अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा मध्यस्थता और सुविधा आवश्यक है।
  • यदि संघर्ष को सुलझाने का प्रयास संघर्षरत पक्षों के बीच बातचीत को सुविधाजनक बनाने से नहीं होता है तो एक क्षतिपूर्ति पद्धति अपनाई जा सकती है जिसके लिये देशों को एक-दूसरे के नुकसान की भरपाई करने की आवश्यकता होगी।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

मलेरिया मुक्त चीन

प्रिलिम्स के लिये:  

आर्टीमिसिनिन, Malaria, मलेरिया, विश्व मलेरिया रिपोर्ट, 2020

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य और गैर-संचारी रोग मलेरिया के उन्मूलन की चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने चीन को "मलेरिया मुक्त" घोषित किया।

  • यह सात दशक लंबी बहु-आयामी स्वास्थ्य रणनीति का परिणाम है जो लगातार चार वर्षों तक मलेरिया के घरेलू मामलों को पूरी तरह से समाप्त करने में सक्षम थी।

प्रमुख बिंदु:

मलेरिया मुक्त स्थिति के विषय में:

  • प्रमाणन प्रक्रिया: मलेरिया उन्मूलन का प्रमाण पत्र डब्ल्यूएचओ द्वारा किसी देश की मलेरिया मुक्त स्थिति की आधिकारिक मान्यता है।
    • डब्ल्यूएचओ किसी देश को मलेरिया मुक्त प्रमाण पत्र तब प्रदान करता है जब वह अपने ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य के आधार पर यह बता पाता है कि उसके देश में पिछले तीन वर्षों से एनाफिलीज़ (Anopheles) मच्छरों द्वारा मलेरिया का प्रसार बाधित हुआ है।
    • संबंधित देश को मलेरिया प्रसार को पुन: रोकने की क्षमता भी प्रदर्शित करनी चाहिये।
    • मलेरिया मुक्त प्रमाण पत्र देने का अंतिम निर्णय मलेरिया उन्मूलन प्रमाणन पैनल (Malaria Elimination Certification Panel) की सिफारिश के आधार पर डब्ल्यूएचओ महानिदेशक के पास होता है।
  • पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र: पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में चीन पहला देश है जिसे डब्ल्यूएचओ ने 3 दशक में ही मलेरिया मुक्त प्रमाण पत्र दिया है।
    • अन्य देश: पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में जिन देशों ने यह प्रमाण पत्र हासिल किया है उनमें ऑस्ट्रेलिया (1981) सिंगापुर (1982) और ब्रुनेई दारुस्सलाम (1987) शामिल हैं।
  • वैश्विक स्थिति: विश्व स्तर पर 40 देशों और क्षेत्रों को डब्ल्यूएचओ से मलेरिया-मुक्त प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें अल सल्वाडोर (2021), अल्जीरिया (2019), अर्जेंटीना (2019), पराग्वे (2018) और उज़्बेकिस्तान (2018) शामिल हैं। 

रोग भार (वैश्विक):

  • विश्व मलेरिया रिपोर्ट, 2020 (World Malaria Report, 2020) के अनुसार, वर्ष 2019 में वैश्विक स्तर पर मलेरिया के मामलों की संख्या लगभग 229 मिलियन थी, जिसमें मच्छरजनित बीमारी से 4,09,000 लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी।
  • अधिकांश मामले अफ्रीका में दर्ज किये गए, जबकि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में महत्त्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई।
    • भारत में मामलों की संख्या लगभग 20 मिलियन से गिरकर 6 मिलियन हो गई।
    • भारत एकमात्र उच्च स्थानिक देश है जिसने वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 17.6% की गिरावट दर्ज की गई है।

मलेरिया को लेकर चीन की रणनीति:

  • 1950 के दशक में शरुआत: चीन द्वारा 1950 के दशक से मलेरिया को लेकर रणनीतिक स्तर पर प्रयास शुरु किये गए। एक समय था जब चीन में वार्षिक रूप से मलेरिया के लाखों मामले दर्ज किये जाते थे, जिसमें मैदानों में मच्छरों के प्रजनन क्षेत्रों को लक्षित करते हुए और कीटनाशक छिड़काव का उपयोग करते हुए मलेरिया-रोधी दवाएंँ उपलब्ध कराने का बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया गया।
  • 523 प्रोजेक्ट: इसके तहत 1970 के दशक में आर्टीमिसिनिन (Artemisinin) की खोज की गई ।
    • यह ‘आर्टीमिसिनिन-आधारित संयोजन उपचारों’ (Artemisinin-Based Combination Therapies) का मुख्य यौगिक है, जो आज उपलब्ध सबसे प्रभावी मलेरिया-रोधी दवाओं में से एक है।
  • कीटनाशक-उपचारित जाल: 1980 के दशक में चीन ने व्यापक रूप से कीटनाशक-उपचारित जालों (Insecticide-treated Nets) का उपयोग करना शुरू किया। वर्ष 1988 तक 2.4 मिलियन जाल वितरित किये गए।
  • 1-3-7 रणनीति: इस रणनीति का अर्थ है:
    • मलेरिया निदान की रिपोर्ट करने हेतु एक दिन की समय सीमा
    • किसी मामले की पुष्टि करना और तीसरे दिन तक प्रसार का निर्धारण करना
    • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में निरंतर निगरानी के साथ-साथ सातवें दिन तक प्रसार रोकने के उपाय करना।
  • ग्लोबल फंड: वर्ष 2003 में शुरू होने वाले एड्स, तपेदिक और मलेरिया से लड़ने हेतु ग्लोबल फंड की सहायता से चीन ने "प्रशिक्षण, स्टाफिंग, प्रयोगशाला उपकरण, दवाएंँ और मच्छर नियंत्रण उपायों में वृद्धि की।

मलेरिया

  • मलेरिया एक मच्छर जनित रक्त रोग है जो प्लास्मोडियम (Plasmodium) नामक परजीवी के कारण होता है। 
  • यह मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • इस परजीवी का प्रसार संक्रमित मादा एनाफिलीज़ मच्छरों (Female Anopheles Mosquitoes) के काटने से होता है।
  • मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद परजीवी शुरू में यकृत कोशिकाओं के भीतर वृद्धि करते हैं उसके बाद लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells- RBC) को नष्ट करते हैं जिसके परिणामस्वरूप RBCs की क्षति होती है।
  • ऐसी 5 परजीवी प्रजातियांँ हैं जो मनुष्यों में मलेरिया संक्रमण का कारण होती हैं, इनमें से 2 प्रजातियाँ- प्लाज़्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) और प्लाज़्मोडियम वाइवैक्स (Plasmodium vivax) है, जिनसे मलेरिया संक्रमण का सर्वाधिक खतरा विद्यमान होता है।
  • मलेरिया के लक्षणों में बुखार और फ्लू जैसे लक्षण शामिल होते हैं, जिसमें ठंड लगना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान महसूस होती है।
  • इस रोग की रोकथाम एवं इलाज़ दोनों ही संभव है।
  • RTSS वैक्सीन मलेरिया परजीवी, प्लाज़्मोडियम पी. फाल्सीपेरम (Plasmodium (P.) falciparum) जो कि मलेरिया परजीवी की सबसे घातक प्रजाति है, के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित करती है।

WHO की हालिया पहल:

  • WHO द्वारा अपनी ‘ई-2025 पहल’ (E-2025 Initiative) के तहत ऐसे 25 देशों की पहचान की गई है जिन्हें वर्ष 2025 तक मलेरिया मुक्त देश बनाना है।

भारत में मलेरिया पर अंकुश लगाने की पहल:          

  • भारत में मलेरिया उन्मूलन प्रयास वर्ष 2015 में शुरू हुए थे और वर्ष 2016 में स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन (NFME) की शुरुआत के बाद इनमें और अधिक तेज़ी आई। 
    • NFME मलेरिया के लिये WHO की मलेरिया के लिये वैश्विक तकनीकी रणनीति 2016–2030 (GTS) के अनुरूप है। ज्ञात हो कि वैश्विक तकनीकी रणनीति WHO के वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम (GMP) का मार्गदर्शन करता है, जो मलेरिया को नियंत्रित करने और समाप्त करने के लिये WHO के वैश्विक प्रयासों के समन्वय हेतु उत्तरदायी है। 
  • जुलाई 2017 में मलेरिया उन्‍मूलन के लिये एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (वर्ष 2017 से वर्ष 2022) की शुरुआत की, जिसमें आगामी पाँच वर्ष के लिये रणनीति तैयार की गई।
    • इसके तहत मलेरिया के प्रसार के आधार पर देश के विभिन्न हिस्सों में वर्षवार उन्मूलन लक्ष्य प्रदान किया जाता है।
  • जुलाई 2019 में भारत के चार राज्यों (पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में ‘हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट’ (HBHI) पहल का कार्यान्वयन शुरू किया गया था।
  • काफी लंबे समय तक टिकी रहने वाली कीटनाशक युक्त मच्‍छरदानियों (Long Lasting Insecticidal Nets- LLINs) के वितरण के कारण मलेरिया से बहुत अधिक प्रभावित राज्‍यों में इस बीमारी के प्रसार में पर्याप्‍त कमी लाई जा सकी है।
  •  इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मलेरिया एलिमिनेशन रिसर्च अलायंस-इंडिया (MERA-India) की स्थापना की है जो मलेरिया नियंत्रण पर काम करने वाले भागीदारों का एक समूह है।

स्रोत : द हिंदू


शासन व्यवस्था

नए सहकारिता मंत्रालय का गठन

प्रिलिम्स के लिये:

सहकारिता,  भारत शासन अधिनियम 1935, मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार  

मेन्स के लिये:

भारत में सहकारिता से संबंधित प्रावधान और इसकी आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा 'सहकार से समृद्धि' (सहकारिता के माध्यम से समृद्धि) के दृष्टिकोण को साकार करने और सहकारिता आंदोलन को एक नई दिशा देने के लिये एक अलग 'सहकारिता मंत्रालय' बनाया है।

  • इस कदम से सरकार ने समुदाय आधारित विकासात्मक भागीदारी के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता का संकेत दिया है। यह वित्त मंत्री द्वारा वर्ष 2021 में की गई बजट घोषणा को भी पूरा करता है।

प्रमुख बिंदु:

सहकारिता मंत्रालय का महत्त्व:

  • यह देश में सहकारिता आंदोलन को मज़बूत करने के लिये एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढाँचा प्रदान करेगा।
  • यह सहकारी समितियों को जमीनी स्तर तक पहुँचाने वाले एक जन आधारित आंदोलन के रूप में मज़बूत करने में मदद करेगा।
  • यह सहकारी समितियों के लिये  'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' के लिये प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और बहु-राज्य सहकारी समितियों (MSCS) के विकास को सक्षम करने के लिये काम करेगा।

‘सहकारिता' के विषय में:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO) के अनुसार, सहकारिता सहकारी व्यक्तियों का एक स्वायत्त संघ है जो संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी सामान्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये स्वेच्छा से एकजुट होते हैं।
  • सहकारी समितियाँ कई प्रकार की होती हैं जैसे उपभोक्ता सहकारी समिति (Consumer Cooperative Society), उत्पादक सहकारी समिति (Producer Cooperative Society), ऋण सहकारी समिति (Credit Cooperative Society), आवास सहकारी समिति (Housing Cooperative Society) और विपणन सहकारी समिति (Marketing Cooperative Society)।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने वर्ष 2012 को सहकारिता का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया था।
  • भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसने विश्व के सबसे बड़े सहकारी आंदोलन की नींव रखी।
  • भारत में एक सहकारिता आधारित आर्थिक विकास मॉडल बहुत प्रासंगिक है जहाँ प्रत्येक सदस्य ज़िम्मेदारी की भावना के साथ काम करता है।

सहकारिता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011 ने भारत में काम कर रही सहकारी समितियों के संबंध में भाग IXA (नगरपालिका) के ठीक बाद एक नया भाग IXB जोड़ा।
  • संविधान के भाग-III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(c) में "यूनियन (Union) और  एसोसिएशन (Association)" के बाद "सहकारिता" (Cooperative) शब्द जोड़ा गया था। यह सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार का दर्जा देकर सहकारी समितियाँ बनाने में सक्षम बनाता है।
  • राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (Directive Principles of State Policy-भाग IV) में "सहकारी समितियों के प्रचार" के संबंध में एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया था।

भारत में सहकारी आंदोलन

स्वतंत्रता पूर्व भारत में सहकारी आंदोलन:

  • सहकारिता की शुरुआत सबसे पहले यूरोप में हुई थी और ब्रिटिश सरकार में विशेष रूप से साहूकारों के उत्पीड़न से भारत में गरीब किसानों के दुखों को कम करने के उद्देश्य से इसे अपनाया गया। 
  • सहकारी समिति शब्द तब अस्तित्व में आया जब पुणे और अहमदनगर (महाराष्ट्र) के किसानों ने साहूकारों के खिलाफ एक आंदोलन चलाया, जो किसानों से अत्यधिक ब्याज दर वसूल रहे थे।
  • ब्रिटिश सरकार ने आगे चलकर तीन अधिनियम- दक्कन कृषि राहत अधिनियम (1879), भूमि सुधार ऋण अधिनियम (1883) और कृषक ऋण अधिनियम (1884) पारित किये।
    • वर्ष 1903 में बंगाल सरकार के सहयोग से बैंकिंग में पहली क्रेडिट सहकारी समिति का गठन किया गया था। इसे ब्रिटिश सरकार के फ्रेंडली सोसाइटीज़ एक्ट ( Friendly Societies Act) के तहत पंजीकृत किया गया था।
  • लेकिन सहकारी साख समिति अधिनियम, 1904 के अधिनियमन ने सहकारिता को एक निश्चित संरचना और आकार प्रदान किया ।
  • वर्ष 1919 में, सहकारिता एक प्रांतीय विषय बन गया और भारत शासन अधिनियम, 1935 (Government of India Act, 1935) में प्रांतों का वर्गीकरण किया गया जो मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (Montague-Chelmsford Reforms) के तहत अपने स्वयं के सहकारी कानून बनाने हेतु अधिकृत हैं। 
    • वर्ष 1942 में ब्रिटिश भारत सरकार ने एक से अधिक प्रांतों की सदस्यता वाली सहकारी समितियों को कवर करने हेतु बहु-इकाई सहकारी समिति अधिनियम बनाया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सहकारी आंदोलन:

  • स्वतंत्रता प्रति के बाद सहकारिता पंचवर्षीय योजनाओं का एक अभिन्न अंग बन गई।
  • वर्ष 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) ने सहकारी कर्मियों के प्रशिक्षण एवं सहकारी विपणन समितियों की स्थापना के लिये सहकारिता पर एक राष्ट्रीय नीति की सिफारिश की थी।
  • राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम अधिनियम, 1962 के तहत ‘राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम’ (NCDC) के रूप में एक सांविधिक निकाय की स्थापना की गई।
  • वर्ष 1984 में भारत की संसद द्वारा एक ही प्रकार के समाज को शासित करने वाले विभिन्न कानूनों को समाप्त करने हेतु बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम को लागू किया गया।
  • भारत सरकार द्वारा वर्ष 2002 में सहकारिता पर एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा की गई।

सहकारिता का महत्त्व:

  • यह उस क्षेत्र को कृषि ऋण और धन प्रदान करता है जहाँ राज्य तथा निजी क्षेत्र की पहुँच अप्रभावी है।
  • यह कृषि क्षेत्र के लिये रणनीतिक इनपुट प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता रियायती दरों पर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
  • यह उन गरीबों का एक संगठन है जो सामूहिक रूप से अपनी समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं।
  • यह वर्ग संघर्षों और सामाजिक दूरियों को कम करता है।
  • यह नौकरशाही की बुराइयों और राजनीतिक गुटबाज़ी को कम करता है;
  • यह कृषि विकास की बाधाओं को दूर करता है;
  • यह लघु और कुटीर उद्योगों के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करता है।

चुनौतियाँ: 

  • कुप्रबंधन एवं हेरफेर: 
    • व्यापक संख्या में सदस्यता कुप्रबंधन का एक कारण होती है जब तक कि ऐसी सहकारी समितियों के प्रबंधन हेतु कुछ सुरक्षित तरीकों का उपयोग नहीं किया जाता है। 
    • शासी निकायों के चुनावों में धन इतना शक्तिशाली उपकरण बन गया कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के शीर्ष पद सामान्यत: सबसे अमीर किसानों के पास जाते थे जिन्होंने अपने लाभ के लिये संगठन में हेरफेर किया था।
  • जागरुकता की कमी: 
    • लोगों को आंदोलन के उद्देश्यों, सहकारी संस्थाओं के नियमों और विनियमों के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है।
  • प्रतिबंधित क्षेत्रों तक पहुँच: 
    •  इनमें से अधिकांश समितियाँ कुछ सदस्यों तक ही सीमित हैं और उनका संचालन केवल एक या दो गाँवों तक ही सीमित है। 
  • कार्यात्मक क्षमता में कमी: 
    • सहकारी आंदोलन को प्रशिक्षित कर्मियों की अपर्याप्तता का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह 

  • प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ नए क्षेत्र उभर रहे हैं और सहकारी समितियाँ लोगों को उन क्षेत्रों तथा प्रौद्योगिकियों से परिचित कराने में एक बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।
  • सहकारिता आंदोलन का सिद्धांत गुमनाम रहते हुए भी सभी को एकजुट करना है। सहकारिता आंदोलन में लोगों की समस्याओं को हल करने की क्षमता है।
  • हालाँकि सहकारी समितियों में अनियमितताएँ हैं जिन्हें रोकने के लिये नियमों का और सख्त कार्यान्वयन होना चाहिये।
  • सहकारी समितियों को मज़बूत करने के लिये किसानों के साथ-साथ इनका भी बाज़ार से संपर्क होना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड-19 का लैम्ब्डा वेरिएंट

प्रिलिम्स के लिये: 

 लैम्ब्डा वेरियंट, डेल्टा वेरिएंट

मेन्स के लिये:

कोविड-19 वायरस के विभिन्न वेरियंट तथा उनसे संबंधित समस्याएँ एवं समाधान

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 के डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) के मामलों में बढ़ोतरी के पश्चात् लैम्ब्डा वेरिएंट (Lambda Variant) नामक एक नया वेरिएंट सामने आया है।

  • पेरू में लैम्ब्डा वेरिएंट काफी प्रभावशाली है, किंतु भारत में अभी तक इसका कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है।

Peru

प्रमुख बिंदु 

लैम्ब्डा वेरिएंट के विषय में:

  •  इसकी पहचान पहली बार दिसंबर 2020 में पेरू में की गई थी। लैम्ब्डा वेरिएंट, दक्षिण अमेरिकी देशों में कोविड-19 का प्रमुख प्रकार है, जिसमें 81% नमूने पाए गए हैं।
  • कुछ समय पूर्व तक यह केवल इक्वाडोर और अर्जेंटीना सहित कुछ चुनिंदा दक्षिण अमेरिकी देशों में केंद्रित था, लेकिन अप्रैल के बाद से इसके मामले को 25 से अधिक देशों में पाया गया है।
  • पूर्व में C.37 (वैज्ञानिक नाम) के रूप में प्रसिद्ध इस वेरिएंट को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सातवें और नवीनतम ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ (Variant of Interest) के रूप  में नामित किया है।
    • अन्य चार वेरिएंट्स को 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' (Variants of Concern) के रूप में नामित किया गया है।

वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट:

  • इस श्रेणी में उन वेरिएंट्स को शामिल किया जाता है जिनमें शामिल आनुवंशिक परिवर्तन पूर्णतः अनुमानित होते हैं और उन्हें संचारण क्षमता, रोग की गंभीरता या प्रतिरक्षा क्षमता  को प्रभावित करने के लिये जाना जाता है।
  • ये वेरिएंट्स कई देशों और जनसंख्या समूहों के बीच महत्त्वपूर्ण सामुदायिक प्रसारण का कारण भी बने हैं।

 वेरिएंट ऑफ कंसर्न:

  • वायरस के इस वेरिएंट के परिणामस्वरूप संक्रामकता में वृद्धि, अधिक गंभीर बीमारी (जैसे- अस्पताल में भर्ती या मृत्यु हो जाना), पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी में महत्त्वपूर्ण कमी, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या नैदानिक उपचार की विफलता देखने को मिलती है।
  • अब तक ऐसे चार वेरिएंट (अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा) हैं,  जिन्हें  ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ के रूप में नामित किया गया है और इन्हें बड़ा खतरा माना जाता है।
    • इन सभी का हाल ही में ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों के नाम पर नामकरण किया गया है,  ताकि किसी एक विशिष्ट देश के साथ जुड़ाव से बचा जा सके।

चिंताएँ:

  • लैम्ब्डा वेरिएंट’ के स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) में कम-से-कम सात महत्त्वपूर्ण उत्परिवर्तन होते हैं (जबकि डेल्टा संस्करण में तीन होते हैं) जिससे कई प्रकार के प्रभाव हो सकते हैं, जिसमें प्राकृतिक संक्रमण या टीकाकरण के माध्यम से बनाए गए एंटीबॉडी में स्थानांतरण क्षमता में वृद्धि की संभावना या एंटीबॉडी के प्रतिरोध में वृद्धि शामिल है।
    • कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन ही वह घटक है जो मानव प्रोटीन के साथ मिलकर संक्रमण की प्रक्रिया शुरू करता है।
  • ‘लैम्ब्डा वेरिएंट’, अल्फा और गामा वेरिएंट (क्रमशः यूके और ब्राज़ील में उत्पन्न वायरस) की तुलना में अधिक संक्रामक है।
  •  एक अध्ययन से यह पता चला है कि लैम्ब्डा संस्करण (Lambda Variant) के खिलाफ चीन की सिनोवैक वैक्सीन (कोरोनावैक) की प्रभावशीलता काफी कम है।

आगे की राह

  • भारत, जो अभी भी महामारी दूसरी लहर से उबर रहा है, को सक्रिय रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि किसी भी नए संस्करण (वेरिएंट) के प्रसार को रोका जा सके।
  • भारतीय विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों और जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों में व्यापक अनुसंधान आयोजित किये जाने तथा उन्हें वित्तपोषित, प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत किये जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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