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डेली न्यूज़

  • 07 Jun, 2025
  • 57 min read
भारतीय राजव्यवस्था

नीति आयोग द्वारा सहकारी संघवाद का आह्वान

प्रिलिम्स के लिये:

नीति आयोग, प्रधानमंत्री (पीएम), GST परिषद, समग्र शिक्षा निधि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, अंतर्राज्यीय परिषद, पंजाब का सतलुज-यमुना लिंक, राष्ट्रीय जल नीति  

मेन्स के लिये:

केंद्र-राज्य संबंध, भारत में संघवाद, विकसित भारत के निर्माण में राज्यों की भूमिका।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग शासी परिषद ने मई 2025 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ‘विकसित भारत@2047 के लिये विकसित राज्य’ थीम पर अपनी 10वीं बैठक आयोजित की। इस बैठक में राष्ट्रीय विकास उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।

नीति आयोग शासी परिषद की 10वीं बैठक के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • राज्य-विशिष्ट मांगें: तमिलनाडु ने केंद्रीय करों में 50% हिस्सा (वर्तमान 33% के मुकाबले) और एक स्वच्छ कावेरी मिशन की मांग की।
    • पंजाब ने यमुना जल अधिकारों में न्यायसंगत हिस्सा तथा सीमा सुरक्षा और नशा नियंत्रण के लिये वित्तीय सहायता की मांग की।
  • व्यापार और निवेश पर बल: राज्यों से नीति संबंधी अड़चनों को दूर करने, अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त करने और निवेश के अनुकूल वातावरण तैयार करने को कहा गया।
    • वैश्विक निवेश आकर्षित करने के लिये नीति आयोग को एक ‘निवेश-अनुकूल घोषणा-पत्र’ तैयार करने का निर्देश दिया गया।
  • सुरक्षा तैयारी: प्रधानमंत्री ने दीर्घकालिक सुरक्षा तैयारियों और आधुनिक नागरिक सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया।
    • ऑपरेशन सिंदूर (जिसने पाकिस्तान में आतंकी ढाँचों को निशाना बनाया) को उपस्थित सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का सर्वसम्मत समर्थन प्राप्त हुआ।
  • आर्थिक एवं औद्योगिक विकास: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने 5 वर्षों में अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) को दोगुना और प्रति व्यक्ति आय को 10 गुना बढ़ाने के लिये 3T मॉडल (प्रौद्योगिकी, पारदर्शिता, परिवर्तन) प्रस्तुत किया।
    • आंध्र प्रदेश ने GDP वृद्धि, जनसंख्या प्रबंधन और AI-संचालित शासन पर उप-समूहों का सुझाव दिया।
  • सतत् विकास और सामाजिक सुधार: प्रधानमंत्री ने वैश्विक मानक वाले पर्यटन स्थलों (प्रत्येक राज्य में एक) और हरित ऊर्जा/हाइड्रोजन निवेश पर ज़ोर दिया।
    • टियर 2/3 शहरों में शहरी नियोजन पर ध्यान केंद्रित करना, साइबर सुरक्षा में युवाओं को कुशल बनाना और महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को बढ़ावा देना।

सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में नीति आयोग की क्या भूमिका है?

  • मज़बूत प्रतिस्पर्द्धा संघवाद: यह डेटा-संचालित सूचकांक और राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP), समग्र जल प्रबंधन सूचकांक तथा राज्य ऊर्जा और जलवायु सूचकांक जैसे पारदर्शी रैंकिंग के माध्यम से राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है, जिससे क्षेत्रीय सुधार होता है।
  • उन्नत सहकारी संघवाद: यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है तथा क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है। 
    • उदाहरणों में सामूहिक विकास के लिये टीम इंडिया हब तथा मंत्रालय और साझेदारों के घनिष्ठ सहयोग के माध्यम से 112 अविकसित ज़िलों पर ध्यान केंद्रित करने वाला आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP) शामिल है।
  • शासन एवं नीति परामर्श: इसने विकेंद्रीकृत शासन दृष्टिकोण के साथ वित्तीय आवंटन से हटकर नीति परामर्श पर ध्यान केंद्रित किया।
    • यह बेहतर प्रशासन और नीति क्रियान्वयन के लिये राज्य परिवर्तन संस्थान (SIT) की स्थापना में राज्यों को सहायता प्रदान करता है।
  • क्षेत्रीय और अंतर-क्षेत्रीय सामाजिक हस्तक्षेप: यह उत्तर पूर्व के लिये नीति फोरम, एसएटीएच-ई, पोषण अभियान, राज्य स्वास्थ्य सूचकांक एवं शिक्षा सुधार जैसे असमानताओं को दूर करने वाली पहलों का नेतृत्व करता है।
    • नीति आयोग गुजरात के औद्योगिक गलियारों और तमिलनाडु के कौशल विकास कार्यक्रमों जैसे सफल मॉडलों को साझा करने की सुविधा प्रदान करके तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को बढ़ावा देकर विकसित और विकासशील राज्यों के बीच की खाई को पाटने में सहायता करता है।
  • डिजिटल परिवर्तन: यह अटल इनोवेशन मिशन (अटल टिंकरिंग लैब्स और इनक्यूबेशन सेंटर सहित), नॉलेज एंड इनोवेशन हब तथा नेशनल डेटा एंड एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म (NDAP) के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देता है, साथ ही डिजिटल भुगतान रोडमैप भी तैयार करता है।
  • नीति आयोग अनुसंधान एवं विकास केंद्रों को टियर-2 और टियर-3 शहरों तक विस्तारित कर सकता है (उदाहरण के लिये, पुणे के टेक पार्कों को नागपुर तक विस्तारित करना) तथा उभरते राज्यों में स्टार्टअप्स को मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।

सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करने में मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?

  • संघीय संवाद का अभाव: नीति आयोग की संचालन परिषद की सीमित बैठकें (वर्ष में केवल एक बार) और GST परिषद की बैठकों में देरी के कारण सामूहिक समाधान के बजाय व्यक्तिगत शिकायतों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप GST सुधार और मुआवज़ा विवाद जैसे प्रमुख क्षेत्रों में नीतिगत गतिरोध उत्पन्न हो रहा है।
  • संघवाद को दुर्बल करना: केंद्र ने अनुपालन को लागू करने के लिये वित्तीय उत्तोलन का उपयोग किया है, जैसे कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 का विरोध करने के लिये तमिलनाडु के समग्र शिक्षा अभियान निधि के केंद्रीय हिस्से को रोकना। यह कार्रवाई सहकारी संघवाद की भावना को दुर्बल करती है, इसे केवल भाषण तक सीमित कर देती है। 
    • राज्यों की राष्ट्रीय योजनाओं जैसे- पीएम-किसान और स्मार्ट सिटीज़ में सीमित भागीदारी है, जिससे कार्यान्वयन में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • अनुचित कर हस्तांतरण: राज्य वित्त आयोग के हस्तांतरण में 50% कर हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं (जो वर्तमान में 41% है) और इसका कारण GST के कारण राजकोषीय स्वायत्तता का ह्रास तथा राजस्व वृद्धि की धीमी गति है।
    • समृद्ध राज्य जैसे- तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र केंद्र सरकार के कर पूल में अधिक योगदान देते हैं, लेकिन उन्हें करों के वितरण में अपेक्षाकृत कम हिस्सा मिलता है, जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश तथा झारखंड जैसे गरीब राज्य केंद्रीय अनुदानों पर निर्भर रहते हैं, जिससे राजकोषीय असमानता बढ़ती है। 
  • अंतर-राज्यीय असमानताएँ: महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु जैसे विकसित राज्य मज़बूत बुनियादी ढाँचे के कारण तेज़ी से विकास करते हैं, जबकि कमज़ोर राज्य नीतिगत बाधाओं के कारण पिछड़ जाते हैं।   
    • राज्यों के बीच अपर्याप्त वित्तीय हस्तांतरण के कारण गरीब क्षेत्रों से मुंबई और दिल्ली जैसे समृद्ध क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोग प्रवास करते हैं।
    • छत्तीसगढ़ तथा ओडिशा जैसे राज्य खनिजों और वनों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से बड़े पैमाने पर योगदान करते हैं, लेकिन विकास के लिये अपेक्षाकृत कम वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं, जिससे उनकी विकास क्षमता सीमित रह जाती है।
  • जल एवं सीमा विवाद: कावेरी (तमिलनाडु-कर्नाटक) और यमुना (हरियाणा-दिल्ली) जैसे राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे नदी जल विवाद अब तक सुलझ नहीं पाए हैं।
    • इससे किसानों को जल की भारी कमी का सामना करना पड़ता है (जैसे- तमिलनाडु का डेल्टा क्षेत्र) और राजनीतिक तनाव बढ़ता है (जैसे- पंजाब में सतलुज-यमुना लिंक नहर का विरोध)।

    सहकारी संघवाद को सुदृढ़ करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

    • संस्थागत तंत्र को सशक्त बनाना: नीति आयोग एवं GST परिषद की नियमित बैठकें सुनिश्चित करना तथा अंतर-राज्यीय परिषद को पुनः सक्रिय करना आवश्यक है, जिससे राज्यों के बीच सतत् संवाद बना रहे और समय पर विवादों का समाधान हो सके।
      • इससे GST सुधार जैसे मुद्दों पर नीतिगत निष्क्रियता कम होगी और जल, सीमा व राजकोषीय मामलों में संघर्षों का बेहतर प्रबंधन संभव हो सकेगा।
    • संसाधनों का न्यायसंगत वितरण: राज्यों को करों में अधिक हिस्सा देना और प्रदर्शन-आधारित अनुदान प्रणाली की शुरुआत करना। इससे पिछड़े राज्यों (जैसे- बिहार, यूपी) में सुधारों के लिये प्रोत्साहन मिलेगा और शर्तों के आधार पर वित्तीय सहायता दी जा सकेगी।
    • राज्य-दर-राज्य साझेदारी: विकसित राज्यों को क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और प्रमुख शहरों पर प्रवासन दबाव को कम करने हेतु औद्योगिक गलियारों, कौशल विकास तथा PPP निवेश के माध्यम से पिछड़े राज्यों का मार्गदर्शन करना चाहिये।
    • अंतर-राज्यीय जल समन्वय को बढ़ावा देना: बाध्यकारी नदी-साझाकरण समझौतों, संयुक्त कार्य बलों और अंतर-राज्यीय परियोजनाओं के लिये केंद्रीय वित्त पोषण के साथ एक राष्ट्रीय जल नीति 2.0 जल प्रबंधन एवं बुनियादी ढाँचे में सुधार करेगी।
      • इससे जल विवाद (जैसे कावेरी ) कम होंगे और क्षेत्रीय संपर्क बढ़ेगा, जिससे व्यापार एवं पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
    • दीर्घकालिक रणनीतिक योजना: राज्य और केंद्र की योजनाओं को विकसित भारत@2047 के लिये विकसित राज्य के साझा दृष्टिकोण के साथ संरेखित करना, मापने योग्य लक्ष्यों तथा  आवधिक समीक्षाओं का उपयोग करना, नीति आयोग द्वारा राज्य की प्राथमिकताओं का सम्मान करते हुए प्रगति को सुविधाजनक बनाना।

    निष्कर्ष

    नीति आयोग की 10वीं बैठक में भारत के संघवाद में प्रगति और निरंतर चुनौतियों दोनों पर प्रकाश डाला गया। जबकि राज्य भागीदारी और निवेश सुधार जैसी पहल आशाजनक हैं, वास्तविक "टीम इंडिया" सहयोग के लिये अधिक निष्पक्ष राजकोषीय हस्तांतरण, नियमित संवाद तथा गैर-राजनीतिक शासन की आवश्यकता है। वर्ष 2047 तक विकसित भारत को प्राप्त करने के लिये इन अंतरालों को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है।

    दृष्टि मेन्स प्रश्न:

    प्रश्न: भारत को विकसित देश बनाने में राज्यों की भूमिका का परीक्षण कीजिये। विकसित भारत@2047 के लिये अंतर-राज्यीय सहयोग को बढ़ावा देने के उपाय सुझाइये।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)   

    मेन्स  

    1. आपके विचार में सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा और टकराव ने भारत में संघ की प्रकृति को किस हद तक आकार दिया है? अपने उत्तर को पुष्ट करने के लिये कुछ हालिया उदाहरण प्रस्तुत कीजिये। (2020) 
    2. न्यायालयों द्वारा विधायी शक्तियों के वितरण के बारे में विवादास्पद मुद्दों के समाधान से, 'संघीय सर्वोच्चता का सिद्धांत' और 'सामंजस्यपूर्ण निर्माण' उभर कर सामने आए हैं। व्याख्या कीजिये। (2019)

    भारतीय अर्थव्यवस्था

    भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

    प्रिलिम्स के लिये:

    भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), ASEAN, गैर-टैरिफ बाधाएँ, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999, स्टार्टअप, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI), नियमगिरि हिल्स, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) 

    मेन्स के लिये:

    भारत में FDI अंतर्वाह और बहिर्वाह की स्थिति, भारत से जुड़ी महत्ता और चुनौतियाँ तथा आगे की राह।

    स्रोत: द हिंदू

    चर्चा में क्यों?

    भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, भारत का निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वर्ष 2023-24 में 10.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2024-25 में मात्र 0.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।

    • निवल FDI में तीव्र गिरावट मुख्य रूप से विदेशी फर्मों द्वारा प्रत्यावर्तन और विनिवेश में वृद्धि के कारण है, जो वर्ष 2024-25 में कुल 51.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, साथ ही भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य FDI (OFDI) में वृद्धि भी शामिल है।

    प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्या है?

    • परिचय: FDI का अर्थ है कि भारत के बाहर रहने वाला कोई व्यक्ति पूंजी उपकरणों के माध्यम से भारत की किसी असूचीबद्ध कंपनी में या किसी सूचीबद्ध कंपनी के इश्यू के बाद की चुकता इक्विटी पूंजी (पूर्ण रूप से तनुकृत आधार) में कम-से-कम 10% निवेश करता है।
      • यह सामान्यतः दीर्घकालिक निवेश होता है और मुख्यतः गैर-ऋण पूंजी प्रवाह को दर्शाता है।
    • FDI रूट: FDI योजना के तहत विदेशी निवेशक भारतीय कंपनियों के शेयर, पूर्णतः परिवर्तनीय डिबेंचर और वरीयता शेयर में दो रूट्स से निवेश कर सकते हैं:
      • स्वचालित रूट: विदेशी निवेशक को केवल निवेश के बाद RBI को सूचित करना होता है।
        • उदाहरण: कृषि और पशुपालन, हवाई परिवहन सेवाएँ, ऑटो घटक, ऑटोमोबाइल, जैव प्रौद्योगिकी (ग्रीनफील्ड) आदि।
      • सरकारी अनुमोदन रूट: किसी विदेशी निवेशक को आगे बढ़ने से पहले संबंधित मंत्रालय या विभाग से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
        • उदाहरण: बैंकिंग एवं सार्वजनिक क्षेत्र, प्रसारण सामग्री सेवाएँ, खाद्य उत्पादों की खुदरा बिक्री, डिजिटल मीडिया के माध्यम से समाचार और समसामयिक विषयों की स्ट्रीमिंग आदि।
    • FDI विनियमन: वर्तमान में भारत में FDI का नियमन FDI नीति 2020 और FEMA (गैर-ऋण उपकरण) नियम, 2019 के अंतर्गत होता है, जो कि विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA), 1999 के तहत आते हैं।
      • FDI का मुख्य नियामक उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) है, जो वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
      • RBI भी FDI नियमों को लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
    • भारत में FDI पर प्रतिबंध: परमाणु ऊर्जा उत्पादन, जुआ और सट्टेबाज़ी, लॉटरी, चिट फंड, रियल एस्टेट तथा तंबाकू उद्योग जैसे क्षेत्रों में FDI सख्त वर्जित है।
    • भारत में FDI की वर्तमान स्थिति:
      • सुदृढ़ सकल FDI प्रवाह: सकल FDI वर्ष 2024-25 में बढ़कर 81 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2023-24 में 71.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2022-23 में 71.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
        • FDI आकर्षित करने वाले प्रमुख क्षेत्र विनिर्माण, वित्तीय सेवाएँ, ऊर्जा और संचार सेवाएँ थे, जिनका कुल प्रवाह में 60% से अधिक योगदान था।
        • शीर्ष निवेशक देशों सिंगापुर, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका ने सकल FDI में 75% से अधिक का योगदान दिया।
      • भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश वर्ष 2024-25 में बढ़कर 29.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2023-24 से 75% की वृद्धि है।
        • भारतीय OFDI के लिये शीर्ष गंतव्य देश सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका , संयुक्त अरब अमीरात, मॉरीशस और नीदरलैंड थे।
        • OFDI वृद्धि को 90% से अधिक बढ़ाने वाले क्षेत्रों में वित्तीय, बैंकिंग एवं बीमा सेवाएँ, विनिर्माण और थोक एवं खुदरा व्यापार, रेस्तराँ एवं होटल शामिल थे।
    • मैच्योर इन्वेस्टमेंट ईकोसिस्टम: भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा प्रत्यावर्तन और विनिवेश की राशि वर्ष 2024–25 में बढ़कर 51.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई, जो यह दर्शाता है कि भारत एक परिपक्व बाज़ार बन चुका है जहाँ निवेशकों के लिये आसानी से प्रवेश तथा निकास की सुविधा उपलब्ध है।

    नोट: कोविड-19 महामारी के बीच भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिये, सरकार ने FDI नीति 2017 में संशोधन किया ।

    • इसमें यह प्रावधान किया गया है कि भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों की संस्थाएँ या जिनके लाभार्थी मालिक ऐसे देशों से हैं, वे भारत में केवल पूर्व सरकारी अनुमोदन से ही निवेश कर सकती हैं।
    • उपर्युक्त प्रयोजनों के लिये, भारत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन (हॉन्गकॉन्ग सहित), बांग्लादेश और म्याँमार को भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों (सीमावर्ती देशों) के रूप में चिह्नित करता है।

    भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे मुख्य चालक क्या हैं?

    • बाज़ार विविधीकरण के लिये वैश्विक विस्तार: भारतीय कंपनियाँ अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में नए बाज़ारों तक पहुँचने के लिये विदेशों में निवेश कर रही हैं, टाटा, रिलायंस जैसी कंपनियाँ भारतीय बाज़ार पर निर्भरता कम करने के लिये वैश्विक स्तर पर विस्तार कर रही हैं।
      • अप्रैल 2025 में, भारत की बाह्य FDI 90% वार्षिक वृद्धि के साथ 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई, जिसका नेतृत्व टाटा कम्युनिकेशंस, LIC और JSW नियो एनर्जी ने किया।
    • महत्त्वपूर्ण संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करना: संसाधन अधिग्रहण भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य FDI के लिये एक प्रमुख चालक है, क्योंकि वे दीर्घकालिक आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने के लिये तेल, गैस, खनिज और कृषि उत्पादों जैसे आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित करना चाहते हैं।
      • ONGC विदेश और अडानी समूह जैसी कंपनियों ने घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों मांगों को पूरा करने के लिये विशेष रूप से तेल, गैस क्षेत्रों तथा खनन कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय संसाधनों में सक्रिय रूप से निवेश किया है।
    • लागत दक्षता के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त हासिल करना: इंफोसिस, TCS और सन फार्मा जैसी कंपनियाँ कम लागत वाले देशों (जैसे- पूर्वी यूरोप, मैक्सिको) में विस्तार कर रही हैं, जबकि भारतीय ऑटो कंपनियाँ विकसित देशों की सख्त गैर-टैरिफ बाधाओं को दरकिनार करने के लिये आसियान में निवेश कर रही हैं।
      • इसके अलावा, हैवेल्स तथा डिक्सन टेक्नोलॉजीज जैसी कंपनियों ने उत्तरी अमेरिकी बाज़ार में प्रवेश करने के उद्देश्य से अपनी विनिर्माण इकाइयों और निर्यात परिचालनों का विस्तार अमेरिका तक कर दिया है।
    • व्यापार समझौतों का लाभ उठाना: चूँकि भारत तेज़ी से देशों और क्षेत्रीय ब्लॉकों जैसे भारत-UAE FTA एवं ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ECTA) के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर हस्ताक्षर कर रहा है, इसलिये भारतीय कंपनियाँ कम टैरिफ, आसान बाज़ार पहुँच तथा व्यापारिक साझेदारों के साथ बेहतर व्यापारिक संबंधों से लाभ उठाने के लिये खुद को तैयार कर रही हैं।
    • सेवा क्षेत्र का वैश्वीकरण: भारतीय सेवा क्षेत्र की फर्मों का वैश्वीकरण - विशेष रूप से आईटी, फिनटेक और बैंकिंग में - बाहरी FDI को बढ़ावा देता है क्योंकि कंपनियाँ ग्राहक संबंधों को मज़बूत करने, नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने, सेवा वितरण में सुधार करने तथा  दीर्घकालिक विकास के लिये नए ग्राहक आधार तक पहुँचने के लिये विकसित बाज़ारों में विस्तार करती हैं।

    भारत के सतत् आर्थिक परिवर्तन के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्यों महत्त्वपूर्ण है?

    • व्यापक आर्थिक विकास: FDI पूंजी निर्माण, बुनियादी ढाँचे के विकास और औद्योगिक विस्तार में योगदान देता है। 
      • वर्ष 2020 में, फेसबुक ने जियो प्लेटफॉर्म्स में 5.7 बिलियन डाॅलर का निवेश किया, जो भारत के तकनीकी क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेश समझौता था और डिजिटल अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है।
    • रोज़गार के अवसर: विदेशी निवेश विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। स्टार्टअप को वित्तपोषित करके, कारखाने, कार्यालय और अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करके, विदेशी कंपनियाँ लाखों रोज़गार के अवसर प्रदान करती हैं।
      • उदाहरण के लिये, FDI द्वारा अत्यधिक समर्थन प्राप्त भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम ने देश भर में 1.6 मिलियन से अधिक रोज़गार सृजित किये हैं।
    • उन्नत प्रौद्योगिकी एवं नवाचार: FDI भारत में उन्नत प्रौद्योगिकी, स्वचालन और अनुसंधान एवं विकास लाता है तथा बहुराष्ट्रीय निगमों से  प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है।
      • उदाहरण के लिये, भारत में टेस्ला का प्रस्तावित EV और बैटरी प्लांट पावरवॉल जैसी उन्नत बैटरी तकनीक पेश कर सकता है, जो भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का समर्थन करेगा
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: FDI बड़े पैमाने की परियोजनाओं के वित्तपोषण में सहायक रहा है जो देश की बुनियादी ढाँचा क्षमता जैसे- सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे और स्मार्ट शहरों को बढ़ाते हैं। 
    • निर्यात में वृद्धि:  FDI भारत को एक प्रमुख निर्यात केंद्र में बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे विदेशी मुद्रा आय को बढ़ाकर व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलती है। विदेशी कंपनियाँ भारत में उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करती हैं जो घरेलू और वैश्विक दोनों बाज़ारों की ज़रूरतों को पूरा करती हैं, जिससे भारत की निर्यात क्षमता बढ़ती है। 
      • उदाहरण के लिये, भारत से आईफोन का निर्यात वर्ष 2023-24 में बढ़कर 12.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि टोयोटा और हुंडई भारत से अफ्रीका एवं यूरोप को कारें निर्यात करती हैं।
    • प्रतिस्पर्द्धा और दक्षता को बढ़ावा: FDI का प्रवाह घरेलू कंपनियों को गुणवत्ता, दक्षता और ग्राहक सेवा के अंतर्राष्ट्रीय मानकों को अपनाकर अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करता है। 
    • उदाहरण के लिये, अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट ने भारतीय खुदरा विक्रेताओं को डिजिटल होने के लिये प्रोत्साहित किया, जबकि स्टारबक्स एवं मैकडॉनल्ड्स ने भारत में खाद्य सेवा मानकों को बढ़ाया ।

    भारत में FDI को आकर्षित करने और बनाए रखने में प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?

    • असहज विनियामक परिवेश: कर कानून और अंतरण मूल्य निर्धारण जैसे जटिल विनियमों से विदेशी निवेशकों के लिये अनुपालन चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे विधिक विवाद, वित्तीय नुकसान तथा लूपहोल का दुरूपयोग किये जाने की संभावना बढ़ जाती है। 
      • उदाहरण के लिये, वोडाफोन को पूर्वव्यापी कराधान (Retrospective taxation) के कारण कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
    • अवसंरचना संबंधी अभाव: यद्यपि उल्लेखनीय प्रगति हुई है, फिर भी भारत को विशेष रूप से परिवहन, विद्युत आपूर्ति और रसद जैसे क्षेत्रों में (आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद का 14-18%) में अपर्याप्त अवसंरचना से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
      • अनुपयुक्त बुनियादी ढाँचे से व्यापार की लागत बढ़ सकती है, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रभावित हो सकता है। 
    • बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा में चुनौतियाँ: भारत के बाज़ार में विद्यमान संरचनात्मक चुनौतियाँ, जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों द्वारा अपहारक कीमत निर्धारण (Predatory Pricing), निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा में बाधा उत्पन्न करती हैं और इससे पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं पर प्रभाव पड़ता है। 
      • यद्यपि इससे संबंधित विनियमन मौजूद हैं, लेकिन भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) जैसी संस्थाएँ प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं पर प्रभावी अंकुश लगाने तथा समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये संघर्ष करती हैं।
    • FDI का असमान वितरण: FDI अंतर्वाह कुछ सीमित क्षेत्रों जैसे कि सेवा क्षेत्र तथा महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों के नगरीय क्षेत्रों में केंद्रित है, जिसके कारण विकास के अवसर असमान हैं। 
      • इसके अतिरिक्त, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा के कारण FDI अंतर्वाह प्रभावित होता है।
    • पर्यावरण और संधारणीयता संबंधी चिंताएँ: चूँकि वैश्विक निवेशक संधारणीयता और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को प्राथमिकता दे रहे हैं, इसलिये भारत के पर्यावरण संबंधी विनियमों तथा प्रवर्तन तंत्रों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। 
      • यद्यपि भारत ने अपने पर्यावरण अधिनियमों में सुधार किया है, लेकिन प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन और संसाधन संरक्षण पर नियमों का कार्यान्वयन असंगत बना हुआ है।
      • उदाहरण के लिये, नियमगिरि पहाड़ियों में खनन कार्य का पर्यावरण हितैषी कार्यकर्त्ताओं ने कड़ा विरोध किया।

    FDI अंतर्वाह बढ़ाने हेतु भारत क्या उपाय कर सकता है?

    • नीति एवं विनियामक सुधार: DPIIT, RBI और राज्य प्रक्रियाओं में विलय कर FDI अनुमोदन के लिये एकस्थलीय समाशोधन का प्रावधान किया जाना चहिये।
      • वोडाफोन कर मामले जैसे विलंब का समाधान करने हेतु समर्पित वाणिज्यिक अदालतों के माध्यम से विवादों का त्वरित समाधान किया जाना आवश्यक है।
      • विवादों का निपटारा करने हेतु स्पष्ट, समयबद्ध रूपरेखा स्थापित करने से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा और यह यह स्पष्ट होगा कि भारत व्यापार-अनुकूल परिवेश बनाए रखने के प्रति गंभीर है।
    • संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान: अविकसित क्षेत्रों में FDI को बढ़ावा देने के लिये, भारत को कृषि प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सेवा और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में कर छूट, अनुदान तथा कम लागत वाली पूंजी जैसे प्रोत्साहन प्रदान करने चाहिये। निम्न FDI अंतर्वाह वाले राज्यों के लिये विशेष निवेश पैकेज की सुविधा से क्षेत्रीय असमानताओं को कम किया जा सकता है और विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है। 
    • पुनर्निवेश और रिवर्स FDI को प्रोत्साहन: भारत को बाह्य FDI के प्रबंधन के लिये अधिक अनुकूल परिवेश निर्मित करना चाहिये। भारत में अपने लाभ का पुनर्निवेश करने वाली विदेशी फर्मों के लिये कर प्रोत्साहन की पेशकश से पुनर्निवेशित पूंजी के स्थिर प्रवाह को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है। 
      • इसके अतिरिक्त, नए निवेश से संबंधित लाभांश प्रत्यावर्तन पर प्रतिबंधों में छूट देने से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में पुनः निवेश करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा तथा सीमा पार  नकदी प्रवाह को सुप्रवाही बनाया जा सकेगा।
        • एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है टाटा मोटर्स द्वारा जैगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण, जिसके बाद भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र में व्यापक निवेश हुआ। 
    • बुनियादी ढाँचा और कौशल विकास: देश में संतुलित FDI अंतर्वाह सुनिश्चित करने के लिये भारत को विशेष रूप से टियर- II और टियर- III शहरों में बुनियादी ढाँचे में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये।
      • सड़क, रेलवे और वायु मार्ग सहित बहुमुखी कनेक्टिविटी में सुधार और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को मज़बूत करने से ये क्षेत्र निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक बनेंगे।
        • यह न केवल प्रमुख शहरी केंद्रों में भीड़-भाड़ को कम करेगा, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास का भी समर्थन करेगा।
      • विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिये कार्यबल को कौशल आधारित बनाना और उभरते क्षेत्रों में क्षेत्र-विशेष क्लस्टर एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) विकसित करने की भी आवश्यकता है।

    सकल FDI और शुद्ध FDI 

    • सकल FDI से तात्पर्य किसी विशिष्ट अवधि के दौरान निवेशकों द्वारा एक देश से दूसरे देश में किये गए विदेशी निवेश की कुल राशि से है, जिसमें किसी भी विनिवेश या निकासी को घटाया नहीं जाता है।
    • शुद्ध FDI भारत में आने वाला कुल विदेशी निवेश (सकल FDI) है, जिसमें से विदेशी कंपनियों द्वारा वापस लाया गया धन और भारतीय कंपनियों द्वारा किया गया बाह्य FDI घटाया जाता है।
      • इसलिये, सकल FDI = प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का कुल अंतर्वाह।
      • शुद्ध FDI = सकल FDI अंतर्वाह - FDI बहिर्वाह (विनिवेश)।

    निष्कर्ष

    मज़बूत सकल अंतर्वाह के बावजूद, भारत का शुद्ध FDI निवेश वापसी और बाह्य FDI में वृद्धि के कारण घट गया है। नियामक अड़चनों, बुनियादी ढाँचे की कमी और क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना आवश्यक है। एक संतुलित, निवेशक-अनुकूल वातावरण जिसमें न्यायसंगत क्षेत्रीय विकास, नीति निश्चितता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता हो, दीर्घकालिक रूप से FDI को बढ़ावा देकर भारत की आर्थिक मज़बूती को सुदृढ़ कर सकता है।

    दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

    प्रश्न: भारत के आर्थिक विकास में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। FDI को और अधिक समावेशी तथा स्थिर बनाने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

     

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

    प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)

    1. विदेशी मुद्रा संपरिवर्तनीय बॉण्ड 

    2.  कुछ शर्तों के साथ विदेशी संस्थागत निवेश 

    3.  वैश्विक निक्षेपागार (डिपॉजिटरी) प्राप्तियाँ 

    4.  अनिवासी विदेशी जमा

    उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं?

    (a) 1, 2 और 3
    (b) केवल 3
    (c) 2 और 4
    (d) 1 और 4

    उत्तर: (a) 

    प्रश्न: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020)

    (a) यह मूलतः किसी सूचीबद्ध कम्पनी में पूँजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है।
    (b) यह मुख्यतः ऋण सृजित न करने वाला पूँजी प्रवाह है।
    (c) यह ऐसा निवेश है जिससे ऋण-समाशोधन अपेक्षित होता है।
    (d) यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाने वाला निवेश है।

    उत्तर: (b)


    मेन्स

    प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ.डी.आई. की आवश्यकता की पुष्टि कीजिये। हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों तथा वास्तविक एफ.डी.आई. के बीच अंतर क्यों है? भारत में वास्तविक एफ.डी.आई. को बढ़ाने के लिये सुधारात्मक कदम सुझाइए। (2016)


    भारतीय राजव्यवस्था

    अनुच्छेद 240 के तहत विनियमन और लद्दाख द्वारा छठी अनुसूची की मांग

    प्रिलिम्स के लिये:

    अनुच्छेद 240, छठी अनुसूची, अनुच्छेद 370, अनुच्छेद 371, स्वायत्त ज़िला परिषदें, अनुच्छेद 244(2), राज्यपाल, उच्च न्यायालय 

    मेन्स के लिये:

    लद्दाख के लिये हाल ही में किये गए प्रशासनिक उपाय और उनके दोष, छठी अनुसूची की प्रमुख विशेषताओं तथा लद्दाख के शासन व्यस्था में सुधार के लिये आवश्यक, आगे की कार्रवाई की समीक्षा

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

    चर्चा में क्यों?

    रोज़गार आरक्षण, भाषाई मान्यता और लद्दाख वासियों की राजनीतिक प्रतिनिधित्व की लंबे समय से की जा रही मांगों को पूरा करने के लिये, केंद्र ने छठी अनुसूची का दर्जा न देकर अनुच्छेद 240 के तहत लद्दाख के लिये कुछ विनियम अधिसूचित किये हैं, जैसा कि व्यापक रूप से अनुरोध किया गया था।

    नोट:

    • अनुच्छेद 240 में  राष्ट्रपति को कुछ संघ राज्य क्षेत्रों की शांति और सुशासन के लिये विनियम बनाने की शक्ति प्रदान की गई है, इन नियमों में संसद के अधिनियमों के समान बल होगा तथा विद्यमान विधियों या अधिनियमों को संशोधित या निरसित करने की शक्ति होगी।

    लद्दाख के लोगों की मांगें क्या हैं और सरकार द्वारा क्या विनियम अधिसूचित किये गए हैं?

    • प्रमुख मांगें: अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरसित करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के कार्यान्वयन के बाद, लद्दाख को बिना विधानमंडल के केंद्रशासित प्रदेश के रूप में नामित किया गया था। 
    • इसके प्रत्युत्तर में लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) लद्दाख की भूमि, रोज़गार और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा के लिये उसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग करते आए हैं
    • प्रमुख मांगों में शामिल है:
      • संवैधानिक संरक्षण के लिये छठी अनुसूची के अंतर्गत शामिल किया जाना।
      • राज्य में बाहर के व्यक्तियों के आगमन को रोकने के लिये भूमि स्वामित्व पर प्रतिबंध।
      • प्रतिनिधि शासन के लिये विधानसभा।
    • इन मांगों के विकल्प के रूप में, केंद्र सरकार ने क्षेत्र को अनुच्छेद 371 जैसी सुरक्षा प्रदान करने का प्रस्ताव किया।
    • लद्दाख के लिये किये गए प्रमुख विनियम:
      • अधिवास आधारित संरक्षण: पहली बार लद्दाख में सभी सरकारी नौकरियों के लिये अधिवास आधारित नौकरी आरक्षण का प्रावधान किया गया है। 
        • अधिवास मानदंडों में लद्दाख में 15 वर्ष का निवास, 7 वर्ष की शिक्षा और कक्षा 10वीं या 12वीं उत्तीर्ण होना आदि शामिल हैं। 
      • आरक्षण का प्रावधान: लद्दाख में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये कुल आरक्षण 85% तक सीमित किया गया है, जबकि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये 10% आरक्षण अपरिवर्तित रखा गया है।
        • ये प्रावधान पेशेवर कॉलेजों तक भी विस्तृत किये गए हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर चिकित्सा और इंजीनियरिंग शिक्षा तक पहुँच बढ़ेगी।
      • स्थानीय भाषाओं का संरक्षण: कानून के तहत अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू, भोटी और पुर्गी को लद्दाख की आधिकारिक भाषाओं के रूप में नामित किया गया है, साथ ही शिना, ब्रोक्सकट, बाल्टी और लद्दाखी को क्षेत्र की भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण के लिये प्रोत्साहित किया गया है।
      • महिलाओं के लिये प्रतिनिधित्व: लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) अधिनियम, 1997 में संशोधन किया गया है, जिसके तहत लेह और कारगिल की LAHDC में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें चक्रानुक्रम के माध्यम से आरक्षित की जाएँगी।

    लद्दाख के लोग संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत विशेष दर्जे की मांग क्यों कर रहे हैं?

    • संवैधानिक सुरक्षा: छठी अनुसूची के दर्जे की मांग इसलिये की जा रही है क्योंकि अनुच्छेद 240 के तहत जारी नियमों को केंद्र एकतरफा रूप से रद्द या संशोधित कर सकता है, जबकि छठी अनुसूची संवैधानिक रूप से संरक्षित है, जो स्थानीय शासन के लिये अधिक स्वायत्तता और सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
    • भूमि अधिकारों के संरक्षण: छठी अनुसूची का दर्जा इसलिये आवश्यक है ताकि लद्दाख में गैर-स्थानीय लोगों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध लगाया जा सके, क्योंकि यहाँ का नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र अनियंत्रित पर्यटन और अवसंरचना विकास से खतरे में है।
      • 97% से अधिक जनजातीय जनसंख्या अपनी सांस्कृतिक और आर्थिक जीविका के लिये भूमि पर निर्भर है, इसलिये भूमि अधिकारों की सुरक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • विधायी स्वायत्तता: छठी अनुसूची दर्जा स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADC) के लिये प्रावधान करता है, जो भूमि, वन, जल संसाधन, परंपरागत कानूनों और शिक्षा पर कानून बना सकती हैं।
      • LAHDC प्रशासनिक संस्थान बने हुए हैं जो मुख्य निर्णयों के लिये केंद्र पर निर्भर हैं, जिससे वास्तविक स्वशासन सीमित होता है।
    • प्रतीकात्मक सांस्कृतिक मान्यता: छठी अनुसूची का दर्जा आदिवासी भाषाओं जैसे- भोटी, पुर्गी और अन्य स्वदेशी भाषाओं को संरक्षित करने के लिये आवश्यक है, क्योंकि यह स्थानीय भाषाओं में शिक्षा तथा आधिकारिक संचार में लद्दाखी बोलियों के उपयोग को सुनिश्चित करती है।
      • छठी अनुसूची के तहत ADC को प्राथमिक शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण पर संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।

    भारतीय संविधान की छठी अनुसूची क्या है?

    • परिचय: संविधान की छठी अनुसूची (धारा 244(2)) के तहत चार पूर्वोत्तर राज्योंअसम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम — के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की व्यवस्था की गई है, जहाँ जनजातियाँ अपने पारंपरिक रीति-रिवाज़ों को अधिकांशतः संरक्षित किये हुए हैं, जो भारत के अन्य जनजातीय क्षेत्रों से भिन्न है।
    • प्रमुख विशेषताएँ:
      • स्वायत्त ज़िले और क्षेत्र: जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया जाता है, जो संबंधित राज्य की कार्यपालिका के अधीन रहते हैं।
        • राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों के गठन, पुनर्गठन, सीमाओं के निर्धारण तथा यदि एक से अधिक जनजातियाँ निवास करती हैं, तो उन्हें स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित करने का अधिकार है।
      • स्वायत्त ज़िला और क्षेत्रीय परिषद: राज्यपाल इन चार राज्यों में स्वायत्त ज़िला परिषदें (ADC) और स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदें (ARC) गठित कर सकते हैं।
        • प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में 30 सदस्यों की ज़िला परिषद होती है जिनमें से 26 सदस्य वयस्क मताधिकार द्वारा चुने जाते हैं और 4 सदस्यों को राज्यपाल नामित करते हैं। वर्तमान में ऐसी 10 स्वायत्त ज़िला परिषदें हैं।
        • स्वायत्त क्षेत्रों की अपनी अलग क्षेत्रीय परिषद होती है।
        • इन परिषदों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, जब तक कि उन्हें पहले भंग न कर दिया जाए।
      • विधायी शक्तियाँ: ADC और ARC भूमि, वन, जल, झूम कृषि, ग्राम प्रशासन, विवाह, उत्तराधिकार तथा सामाजिक परंपराओं जैसे विषयों पर कानून बना सकते हैं, बशर्ते राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हो।
      • न्यायिक शक्तियाँ: परिषदें जनजातीय विवादों के निपटारे हेतु ग्राम परिषदों या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं और अपीलों की सुनवाई कर सकती हैं।
        • इन मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्धारित किया जाता है।
      • प्रशासनिक शक्तियाँ: परिषदें प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाज़ारों, सड़कों, नौका घाटों, मत्स्य पालन आदि का प्रबंधन कर सकती हैं। वे राज्यपाल की अनुमति से गैर-जनजातियों द्वारा ऋण देने और व्यापार करने को भी नियंत्रित कर सकती हैं।
        • वे भूमि राजस्व का आकलन और संग्रह कर सकती हैं तथा कर भी लगा सकती हैं।
      • राज्य और केंद्रीय कानूनों से स्वायत्तता: संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और क्षेत्रों पर लागू नहीं होते या केवल संशोधनों के साथ लागू होते हैं।
      • राज्यपाल का पर्यवेक्षण: राज्यपाल प्रशासन की समीक्षा के लिये आयोग नियुक्त कर सकते हैं और आवश्यकता होने पर परिषदों को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं।

    लद्दाख की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

    • संवैधानिक सुरक्षा: यदि छठी अनुसूची में शामिल करना व्यावहारिक नहीं हो, तो लद्दाख की जनसांख्यिकीय पहचान की रक्षा करने और निर्वाचित निकायों को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा छठी अनुसूची के तहत एक अनुकूलित ढाँचा अधिनियमित किया जा सकता है।
      • वैकल्पिक रूप से, लद्दाख की भू-राजनीतिक और पारिस्थितिक संवेदनशीलता को देखते हुए छठी अनुसूची में संशोधन कर उसमें विशिष्ट प्रावधान शामिल किये जा सकते हैं।
    • भूमि संबंधी सुरक्षा: जम्मू-कश्मीर, सिक्किम या हिमाचल प्रदेश जैसे भूमि स्वामित्व प्रतिबंध बाह्य अधिग्रहण को रोकने, पारंपरिक आजीविका की रक्षा करने और लद्दाख के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने के लिये आवश्यक हैं।
    • स्थानीय निवासियों को भूमि हस्तांतरण को सीमित करने हेतु एक विशेष भूमि विनियमन कानून बनाया जाना चाहिये, जिसमें गैर-निवासियों द्वारा खरीद के लिये सरकार की स्वीकृति अनिवार्य होनी चाहिये।
    • LAHDC को सुदृढ़ करना: LAHDC को छठी अनुसूची के तहत ADC के समान विधायी शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिये, जिससे वे भूमि, जल, वन, शिक्षा और संस्कृति पर कानून बनाने में सक्षम हो सकें।
    • स्थानीय संसाधनों जैसे पर्यटन राजस्व और खनन रॉयल्टी के प्रबंधन, स्वशासन को सुदृढ़ करने एवं क्षेत्रीय विकास के लिये वित्तीय स्वायत्तता दी जानी चाहिये।
    • पर्यावरण और पर्यटन विनियमन: पारिस्थितिकी पर्यटन नीतियों, वहन क्षमता सीमाओं और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को लागू करना, साथ ही समुदाय-नेतृत्व वाले संरक्षण को बढ़ावा देना एवं पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में वाणिज्यिक निर्माण को प्रतिबंधित करना।

    निष्कर्ष

    अनुच्छेद 240 के तहत लद्दाख के नए नियम नौकरियों में आरक्षण और भाषा को मान्यता देते हैं, लेकिन छठी अनुसूची के संरक्षण से कम हैं। भूमि अधिकार और विधायी स्वायत्तता जैसे मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं। इस रणनीतिक क्षेत्र में विकास, जनजातीय अधिकारों और पारिस्थितिक स्थिरता के बीच संतुलन बनाने के लिये एक विशेष संवैधानिक सुरक्षा, भूमि स्वामित्व पर प्रतिबंध तथा सशक्त लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LAHDC) आवश्यक हैं।

    दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

    प्रश्न: भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के महत्त्व की जाँच कीजिये और हाल की मांगों तथा  नियमों के संदर्भ में लद्दाख में इसकी प्रयोज्यता का मूल्यांकन कीजिये।

      

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)    

    प्रिलिम्स

    प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

    1. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व
    2.  ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
    3.  पाँचवीं अनुसूची
    4.  छठी अनुसूची
    5.  सातवीं अनुसूची

    नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

    (a)केवल 1 और 2
    (b) केवल 3, 4 और 5
    (c) केवल 1, 2 और 5
    (d) 1, 2, 3, 4 और 5

    उत्तर: (d)

    प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019)

    (a) तीसरी अनुसूची
    (b) पाँचवीं अनुसूची
    (c) नौवीं अनुसूची
    (d) बारहवीं अनुसूची

    उत्तर: (b)

    प्रश्न. सरकार ने अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (PESA) अधिनियम को 1996 में अधिनियमित किया। निम्नलिखित में से कौन-सा एक उसके उद्देश्य के रूप में अभिज्ञात नहीं है? (2013)

    (a) स्वशासन प्रदान करना
    (b) पारंपरिक अधिकारों को मान्यता देना
    (c) जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त क्षेत्रों का निर्माण करना
    (d) जनजातीय लोगों को शोषण से मुक्त कराना

    उत्तर: (c)


    मेन्स:

    प्रश्न. भारत में आदिवासियों को 'अनुसूचित जनजाति' क्यों कहा जाता है? उनके उत्थान के लिये भारत के संविधान में निहित प्रमुख प्रावधानों को इंगित कीजिये। (2016)


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