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राष्ट्रीय जल नीति

  • 01 Nov 2019
  • 11 min read

नीति आयोग के अनुसार, भारत पहली बार जल संकट का सामना कर रहा है, यदि उपचारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2030 तक देश में पीने योग्य जल की कमी हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार नई राष्ट्रीय जल नीति (New Water Policy- NWP) के साथ ही जल से जुड़ी शासन की संरचना और नियामक ढाँचे में महत्त्वपूर्ण बदलाव करने की योजना बना रही है। किंतु इन परिवर्तनों के लिये राज्यों के बीच आम सहमति बनाना बेहद जरूरी है। ज्ञातव्य है कि भारत की पहली जल नीति वर्ष 1987 में आई थी, जिसे वर्ष 2002 एवं 2012 में संशोधित किया गया था।

नई जल नीति क्यों आवश्यक है?

राष्ट्रीय जल नीति में अंतिम संशोधन सात वर्ष पहले हो चुका है एवं इन सात वर्षों के दौरान जल संसाधन से जुड़े कई सारे बदलाव देखे गए हैं जिन्हें पहचानने के साथ जल के उपयोग की प्राथमिकता को परिभाषित करने की पुनः आवश्यकता है।

नीति आयोग ने अपने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक 2.0- 2018 में यह माना है कि वर्तमान समय में जल का उपयोग बहुत अधिक एवं अनुचित रूप से किया जा रहा है। सिंचाई क्षेत्र में प्रयुक्त जल की दक्षता 30-38% है। जहाँ शहरी क्षेत्र में पीने योग्य जल एवं स्वच्छता के लिये जल की आपूर्ति का लगभग 40-45% तक बर्बाद होता है, वहीं दूसरी ओर गाँवों को बहुत कम मात्रा में पानी मिलता है इसलिये जल की आपूर्ति को संतुलित करने की आवश्यकता है। नीति आयोग के अनुसार, जल प्रबंधन समस्या के कारण हिमालय में स्प्रिंग सेट कम हो रहे हैं। ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष सितंबर में नीति आयोग ने हिमालय स्प्रिंग्स को पुनर्जीवित करने के लिये समर्पित मिशन हेतु विशेषज्ञों के समूह का गठन किया था।

जल के प्रवाह को नियंत्रित करने एवं ट्रैक करने के लिये सेंसर, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और उपग्रह इमेज़री जैसे तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।

साथ ही बजट को इस तरह से बनाने की आवश्यकता है कि यह बेसिन से उप बेसिन तक जल के सभी स्तरों को कवर करे।

जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने, अत्यधिक वर्षा, ग्रीष्मकाल के दौरान पानी की कमी , नदियों का सूख जाना, पानी की गुणवत्ता और नदी प्रदूषण जैसी समस्याओं से निपटने हेतु भी नई जल नीति की आवश्यकता है।

जल प्रबंधन के साथ कृषि को जोड़ना

क्षेत्र आधारित जल की उपलब्धता: कृषि क्षेत्र की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिये, साथ ही विशेष जलवायु क्षेत्र के लिये उपयुक्त फसल पद्धति का चुनाव भी करना चाहिये। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में गन्ना और पंजाब में धान वहाँ की जलवायु के लिये उपयुक्त फसल नहीं हैं क्योंकि इन फसलों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है जिससे दूसरी फसलों को कम पानी मिलता है और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है। कृषि क्षेत्र की ज़रूरतों के अनुसार ही पानी उपलब्ध करवाया जाना चाहिये जिससे पानी की बर्बादी न हो।

सब्सिडी को पुनः परिभाषित करना: भारतीय कृषि को मुफ्त लाभ प्राप्त करने के स्थान पर संसाधनों एवं सेवाओं का भुगतान कर लाभ लेने की प्रक्रिया अपनानी चाहिये। किसानों को उपलब्ध कराए जाने वाले संसाधन, जैसे- पानी या बिजली का मूल्य निर्धारण दो प्रकार से किया जा सकता है। एक जो संसाधनों की कीमत है, दूसरा संसाधनों की पहुँच सुनिश्चित करने की लागत।

बेहतर फंडिंग: केंद्र या राज्य सरकार के वितरण केंद्रों द्वारा सीधे तौर पर वित्त एवं अन्य संसाधनों का वितरण, करना चाहिये ताकि वे बेहतर तरीके से मौद्रिक एवं अन्य सहायता प्रदान कर सकें। इससे कृषि कार्यों में दक्षता आएगी।

बेहतर तकनीक: भारत आज भी बांध निर्माण की पुरानी प्रथा का पालन कर रहा है और फिर खुली नहरों के माध्यम से पानी पहुँचा रहा है जिससे जल-जमाव जैसी समस्याएँ पैदा होती हैं तथा पानी की वास्तविक मात्रा स्रोत तक स्थानांतरित नहीं हो पाती है। जबकि आज सूक्ष्म सिंचाई, स्प्रिंकल सिंचाई, जिसमें पानी की हर एक बूँद का उपयोग किया जाता है, जैसी वैश्विक रूप से उपलब्ध तकनीकों को लागू किया जाना चाहिये।

ज्ञातव्य है कि 24-28 सितंबर तक 6वें ‘भारत जल सप्ताह -2019’ में जल शक्ति मंत्री ने जल उपयोग दक्षता पर राष्ट्रीय ब्यूरो के गठन की बात की।

जल उपयोग दक्षता पर राष्ट्रीय ब्यूरो के कार्य

(National Bureau on Water Use Efficiency)

  • जल संसाधन के क्षेत्र में विशेष रूप से घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में दक्षता का पैमाना स्थापित करने हेतु।
  • प्रशासनिक और राजनीतिक सीमाओं के बजाय नदी बेसिन या उप बेसिन को हाइड्रोलॉजिकल इकाई के रूप में देखना एवं जल प्रबंधन में व्यापक बदलाव लाने हेतु ।
  • एक नदी बेसिन प्रबंधन विधेयक के प्रस्ताव करने हेतु। इस विधेयक में नदी बेसिन प्राधिकरणों की स्थापना की परिकल्पना की जाएगी। इसे द्वि-स्तरीय संरचना- एक संचालन परिषद और दूसरा कार्यकारी बोर्ड, द्वारा प्रबंधित किया जाएगा।
  • संचालन परिषद मुख्य रूप से एक नदी बेसिन प्रबंधन योजना को क्रियान्वित करेगी। यदि नदी बेसिन को एक हाइड्रोलॉजिकल इकाई के रूप में परिभाषित किया जाएगा, तो इसे संवैधानिक ढाँचे के अंतर्गत गठित करना होगा एवं इसमें शामिल राज्यों के बीच आम सहमति का होना आवश्यक है।
  • यह पहली बार होगा जब राजनीतिक स्तर पर सर्वसम्मति से नदी बेसिन से जुड़े मुद्दों और समस्याओं को केंद्र में लाने के बजाय बेसिन स्तर पर ही हल करना सुनिश्चित किया जाएगा। इससे न्यायाधिकरणों के समय और प्रयासों में बचत होगी।

जलशक्ति मंत्रालय

केंद्र सरकार ने दो मंत्रालयों का विलय कर एक नए मंत्रालय ‘जलशक्ति मंत्रालय’ (Jalshakti Ministry) का सृजन किया है। जिन दो मंत्रालयों का विलय किया गया है,वे हैं:

  • जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय (Ministry of Water Resources, River Development and Ganga Rejuvenation) तथा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय (Ministry of Drinking Water and Sanitation)
  • जल संबंधी सभी कार्य इस मंत्रालय में को सौपें गए हैं। इससे पहले कई केंद्रीय मंत्रालय थे जो जल संबंधी कार्यों का निर्वहन अलग-अलग करते थे, जैसे- ‘पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) को देश की अधिकांश नदियों के संरक्षण का काम सौंपा गया था।
  • इसी प्रकार शहरी जल आपूर्ति की देख-रेख आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) द्वारा की जाती थी, जबकि सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाएँ कृषि मंत्रालय’ (Ministry of Agriculture) के अंतर्गत आती थी।
  • अंतर्राष्ट्रीय तथा अंतर्राज्यीय जल-विवादों के साथ ही नमामि गंगे (Namami Gange) परियोजना (जिसकी शुरुआत गंगा तथा इसकी उप-सहायक नदियों को साफ करने और स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई थी) को भी इस मंत्रालय के दायरे में लाया जाएगा।

आगे की राह

  • भारत ने वर्ष 1987 में अपनी पहली जल नीति शुरू की और अब नई परिस्थितियों के अनुसार काम करने हेतु मज़बूत बिंदुओं और खामियों को ढूँढने के लिये पहले की नीतियों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
  • नई नीति की रूपरेखा नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक 2.0, 2018 की सिफारिशों पर आधारित होनी चाहिये ।
  • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन को पुनर्परिभाषित किया जाना चाहिये।
  • यथार्थवादी लक्ष्य स्थापित करने के लिये बेसिन और उप बेसिन योजना के पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • देश में जल की कमी नहीं है लेकिन जल के प्रबंधन की आवश्यकता है। इसलिये एजेंडे में जल का उचित प्रबंधन होना चाहिये।.
  • जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये न दी जोड़ो परियोजना एक कारगर कदम साबित हो सकता है।

अभ्यास प्रश्न: नई जल नीति की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।

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