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संसद टीवी संवाद


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

DTH v/s OTT

  • 05 Nov 2019
  • 15 min read

संदर्भ

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India-TRAI) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, DTH सेवाओं के औसत सक्रिय ग्राहक आधार (Subscriber Base) में इस तिमाही (अप्रैल-जून) में जनवरी-मार्च तिमाही के 72.44 मिलियन की तुलना में 25 प्रतिशत की तीव्र गिरावट आई है और यह 54.26 मिलियन रह गया है।

DTH ग्राहकों की संख्या में गिरावट का कारण

  • यह गिरावट तब आई है जब 1 अप्रैल से नई DTH टैरिफ व्यवस्था लागू हुई है। ग्राहक आधार में गिरावट उन चुनौतियों को उजागर करती है जिनका सामना DTH ऑपरेटरों को नई टैरिफ व्यवस्था लागू करने के क्रम में करना पड़ता है।
  • इस बीच OTT सेवाओं के प्रसार का असर भी DTH सदस्यता संख्या पर पड़ा है। इस क्षेत्र में उच्च प्रतिस्पर्द्धा के बीच OTT सेवा प्रदाता उपभोक्ताओं को आकर्षक कंटेंट और सदस्यता पैकेज, दोनों की पेशकश एक साथ कर रहे हैं। हालाँकि OTT प्लेटफॉर्मों का विनियमन अभी भी एक विवादित मुद्दा है जिस पर सरकार विचार कर रही है।
  • हाल के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि लगभग 55% भारतीय DTH सेवाओं के स्थान पर OTT सेवाओं को वरीयता देते हैं और लगभग 87% भारतीय इन दिनों वीडियो देखने के लिये मोबाइल का उपयोग करते हैं।

DTH और OTT में समानता एवं असमानता

  • DTH ‘डायरेक्ट टू होम’ (Direct To Home) सेवा का संक्षिप्त नाम है। यह एक डिज़िटल उपग्रह सेवा है जो देश में कहीं भी उपग्रह द्वारा प्रसारण के माध्यम से प्रत्यक्षतः ग्राहकों को टेलीविज़न पर कार्यक्रमों को देखने की सुविधा प्रदान करती है।
  • इसके सिग्नल डिज़िटल प्रकृति के होते हैं और सीधे उपग्रह से प्राप्त होते हैं।
  • 'ओवर द टॉप' (Over The Top- OTT) एक ऐसा ऑनलाइन कंटेंट प्रदाता मीडिया सेवा है जो एक स्टैंडअलोन उत्पाद के रूप में स्ट्रीमिंग मीडिया की पेशकश करती है। इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर वीडियो-ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म के संबंध में किया जाता है, लेकिन ऑडियो स्ट्रीमिंग, मैसेज सर्विस या इंटरनेट-आधारित वॉयस कॉलिंग सोल्यूशन के संदर्भ में भी इसका प्रयोग होता है।
  • इसे इंटरनेट और स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप/कंप्यूटर तक अभिगम्यता/पहुँच की आवश्यकता होती है।
  • DTH और OTT की सामग्री (Content) और संदर्भ पूरी तरह से अलग हैं। OTT प्लेटफॉर्म अत्यंत व्यक्तिगत प्रकृति के हैं, जबकि DTH कनेक्शन अपनी प्रकृति में अधिक सामाजिक होते हैं।
  • ये एक-दूसरे के पूरक भी हैं, जैसे OTT प्लेटफॉर्म विज्ञापनों द्वारा DTH पर उपलब्ध सामग्री के बारे में सूचना देते हैं।

क्या DTH सेवा प्रदाता वास्तव में घट रहे हैं?

  • 25% गिरावट की बात पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि TRAI ने गणना की पद्धति में परिवर्तन किया है, संख्याओं को एक नए और अधिक सटीक तरीके से प्रस्तुत किया है। इस प्रकार ग्राहकों की संख्या में गिरावट के बजाय ग्राहकों का अधिक सटीक आँकड़ा उपलब्ध हुआ है जो संख्या में कमी आने का भ्रम पैदा करता है।
  • OTT प्लेटफॉर्मों के मूल्य घटक (Price Factor) और टैरिफ वस्तुतः इतने कम नहीं किये गए हैं कि वे DTH को बाज़ार से हटा दें या उसके ग्राहकों की संख्या में उल्लेखनीय कमी ला दें।
  • नई टैरिफ व्यवस्था ने शुल्क/बिल प्रारूप में परिवर्तन किया है जहाँ उपभोक्ताओं के पास केवल उन चैनलों के लिये भुगतान का विकल्प मौजूद है जो कि वे देखना चाहते हैं। उपयोगकर्त्ताओं के व्यक्तिगत उपयोग के आधार पर किन्हीं दो ग्राहकों का बिल कम या अधिक अथवा एक-दूसरे से अलग होगा। इसलिये यह कहना उचित नहीं है कि सभी के शुल्क बढ़ गए हैं।
  • चैनलों की बंडलिंग या पैकेज उपभोक्ता के लिये चयन विकल्प को आसान बनाता है क्योंकि न्यूनतम टैरिफ के साथ पसंद के कंटेंट का चयन एक अत्यंत कठिन अभ्यास है। यह पूरी तरह से विकसित योजना नहीं है लेकिन क्षेत्र इस पर अभी काम कर रहा है।
  • यह ग्राहकों की पसंद को भी अवसर देता है कि वे कैसे और किस प्लेटफॉर्म पर क्या देखना चाहते हैं। पारंपरिक प्रसारण का अपना स्थान है और OTT प्लेटफॉर्म जैसे नए विकल्पों के लिये अवसर उपलब्ध होंगे।
  • जैसे DTH ने अपने आगमन के साथ केबल कनेक्शन को पछाड़ दिया, वैसे ही OTT अब DTH को पीछे छोड़ रहा है। यही कारण है कि बहुत सारे DTH सेवा प्रदाता स्वयं को बाज़ार में बनाए रखने के लिये OTT प्लेटफार्मों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
  • उपभोक्ताओं के लिये चैनल पैकेज का विकल्प पेश करने और उनके बिलों को कम करने में सहायता हेतु TRAI एक ‘एप’ विकसित कर रहा है। जिससे ग्राहकों की अधिकतम सहायता के साथ-साथ इस क्षेत्र में आगे और काम किया जा सके क्योंकि ग्राहकों के असंतुष्ट होने और उनकी इच्छाओं की उपेक्षा करने पर कोई भी व्यवसाय सफल नहीं हो सकता।
  • OTT प्लेटफॉर्म DTH सेवा प्रदाताओं से आगे क्यों निकल रहे हैं?
  • जिस सुविधा और आसानी से OTT प्लेटफार्मों को देखा जा सकता है, वे इसे अधिक आकर्षक बनाते हैं। मोबाइल फोन कहीं भी ले जाए जा सकते हैं और यदि डेटा की उपलब्धता हो तो कहीं भी अपने पसंद के कार्यक्रम देख सकते हैं।
  • पिछले कुछ वर्षों में डेटा सेवाओं की लागत में भारी गिरावट आई है जिसने ग्रामीण क्षेत्रों सहित औसत उपयोगकर्त्ताओं की संख्या में वृद्धि की है।
  • DTH में चैनल संयोजन को चुनने की थका देने वाली प्रक्रिया और उच्च टैरिफ की तुलना में OTT प्लेटफॉर्म एक बेहतर विकल्प के रूप में प्रस्तुत होते हैं।
  • इंटरनेट की उपलब्धता और स्मार्टफोन, टैबलेट या लैपटॉप के वहन में आसानी के कारण नेटफ्लिक्स और अमेज़ॅन प्राइम जैसे OTT प्लेटफॉर्म (उनके अपेक्षाकृत महँगे होने के बावजूद) लोगों की माँग व रुचि को प्रदर्शित करते हैं।

क्या OTT प्लेटफॉर्म DTH सेवा प्रदाताओं को पूरी तरह से पीछे छोड़ सकते हैं?

  • जहाँ तक DTH और OTT के बीच संघर्ष या प्रतिस्पर्द्धा का प्रश्न है, हमें याद रखना चाहिये कि ये वे प्रौद्योगिकियाँ हैं जो समान उत्पादों को विभिन्न तरीकों से उपभोग करने की अनुमति देती हैं। यह उचित ही है कि उपभोक्ता के पास यह चुनने का विकल्प हो कि इनमें से कौन से प्लेटफॉर्म उनके लिये अधिक उपयुक्त हैं।
  • OTT द्वारा बाज़ार में DTH को पीछे छोड़ देना विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। उनमें से एक महत्त्वपूर्ण कारक है OTT प्लेटफॉर्मों की इंटरनेट कनेक्शन पर निर्भरता, जो अभी भी समान रूप से वितरित नहीं हैं और भारत के आधे से अधिक लोगों के लिये सुलभ नहीं हैं।
  • मोटे तौर पर भारतीय आबादी का दो-तिहाई हिस्सा सक्रिय रूप से इंटरनेट का उपयोग नहीं करता है जिससे OTT का विकल्प बहुत सीमित हो जाता है। इसलिये OTT द्वारा DTH या केबल कनेक्शन को पीछे छोड़ देने का विचार अभी असामयिक कल्पना भर ही है।
  • यहाँ तक ​​कि DTH ने ही केबल कनेक्शन को पूरी तरह से बाज़ार से बाहर नहीं किया है क्योंकि बाज़ार में अभी भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण सक्रिय खिलाड़ी मौजूद हैं जिन्होंने देश भर में अपने केबल फैला रखे हैं। इसलिये उन्हें निष्क्रीय नहीं माना जा सकता बल्कि वे तो बाज़ार में पुनः अपनी पकड़ बना रहे हैं। उदाहरण के लिये- JIO फाइबर।
  • ऐसे उपकरणों की विविधता को पहचानना आवश्यक है जो उपभोक्ता के लिये अनुकूल हैं।

भारत में OTT प्लेटफॉर्मों का भविष्य

  • निश्चय ही OTT का प्रसार बढ़ेगा। इंटरनेट की पहुँच दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और डिज़िटल इंडिया एवं ब्रॉडबैंड कार्यक्रमों की मदद से वे दूरदराज़ के क्षेत्रों तक पहुँच रहे हैं।
  • सूचना संग्रह में आसानी और इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण कि फोन के प्रति विश्वास यह संकेत देता है कि OTT का आधार और अधिक बढ़ने वाला है।
  • यह सुविधा का प्रश्न है जहाँ OTT प्लेटफार्मों से अधिकाधिक युवाओं के जुड़ने के साथ गुणवत्ता में सुधार लाया जा रहा है। भारतीय युवा इसके सबसे बड़े उपभोक्ता हैं और भारत की ऑनलाइन वीडियो मांग यू.के. और अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए चीन के निकट पहुँच गई है। KPMG रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2023 तक सभी OTT प्लेटफॉर्मों पर 500 मिलियन से अधिक ग्राहक होंगे।
  • इंटरनेट प्रवाह गति (Streaming Speed) पहले की तुलना में बेहतर हुई है और भविष्य में डिज़िटल इंडिया जैसी योजनाओं के चलते इसमें और सुधार आएगा।

नियामक पहलू

  • OTT को विनियमित करने में चुनौती यह है कि यह इंटरनेट का एक हिस्सा है और इसे वृहत इंटरनेट से अलग करना अत्यंत कठिन है। नियामकों को इस चुनौती का सामना करना पड़ रहा है कि इसे कैसे अलग किया जाए और फिर इसे वृहत इंटरनेट से अलग विनियमित किया जाए, जो की असंभव है।
  • OTT प्रदाता सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79 द्वारा नियंत्रित हैं, जहाँ मध्यवर्ती उत्तरदायित्व निहित हैं। इसलिये OTT सेवा प्रदाताओं को उस सामग्री के प्रवेश, संचरण और ग्रहण (Inception, Transmission and Reception) में संलग्न होने की आवश्यकता नहीं है जो उन्हें सामग्री के लिये उत्तरदायी नहीं बनाते हैं।
  • नियामक अब छोटे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो केवल भारतीय संदर्भ में विशिष्ट हैं। हमारी लाइसेंस सेवाएँ अत्यधिक विनियमित हैं, इसलिये मुद्दा विनियमन का नहीं है बल्कि दूरसंचार सेवा के उच्च स्तर के विनियमनों में कमी लाने का है ताकि सभी अपने उपभोग के तरीकों का चयन करने में सशक्त हों।
  • OTT प्लेटफॉर्मों के लिये कंटेंट उपलब्ध होने के बाद उनके प्रबंधन के संबंध में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत स्पष्ट व्यवस्था की गई है।
  • OTT प्लेटफार्मों के लिये अभी कई व्यवस्थाओं के निर्माण की आवश्यकता है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000

  • यह अधिनियम कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम, कंप्यूटर नेटवर्क और इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में डेटा एवं सूचना के उपयोग को नियंत्रित करता है।
  • अधिनियम में अन्य बातों के अलावा निम्नलिखित विषयों को अपराध के रूप में सूचीबद्ध किया गया है:
    • कंप्यूटर-सोर्स दस्तावेज़ों के साथ छेड़छाड़।
    • कंप्यूटर सिस्टम की हैकिंग
    • साइबर आतंकवाद, अर्थात देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता या सुरक्षा को खतरे में डालने के इरादे से एक संरक्षित प्रणाली में घुसपैठ करना।
    • कंप्यूटर संसाधन आदि का उपयोग करके धोखाधड़ी।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79

  • यह कुछ मामलों में मध्यस्थों को उत्तरदायित्व से छूट देता है। इसमें कहा गया है कि मध्यस्थ उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए किसी भी तीसरे पक्ष की जानकारी, डेटा या संचार लिंक के लिये उत्तरदायी नहीं होंगे।

आगे का रास्ता

  • OTT प्लेटफार्मों पर पारदर्शिता का होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से एक ऐसे उद्योग के लिये जो इतने अधिक लोगों से संबंधित हो और सीमित विनियमन लागू हों, क्योंकि यह मुख्यतः एक मनोरंजन मंच है और यह आगे उपभोक्ताओं के लिये और विकल्प उपलब्ध कराएगा।
  • समय के साथ सभी पुराने, नए और उभरते मल्टी-मीडिया प्लेटफॉर्मों के बीच सामंजस्य के साथ बाज़ार गतिशीलता पर आधारित एकसमान अवसर का निर्माण होगा, बजाय इसके कि समर्थन, मूल्य निर्धारण और निर्देशों के लिये एक नियामक के माध्यम से इसे बलात लादा जाए।
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