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डेली न्यूज़

  • 06 Jul, 2020
  • 58 min read
भूगोल

चंद्रमा पर विशाल मात्रा में धातु की उपस्थिति

प्रीलिम्स के लिये:

चंद्रमा के निर्माण की परिकल्पना, चंद्रमा पर धातु, लूनर रिकॉनेनेस ऑर्बिटर

मेन्स के लिये:

चंद्रमा के निर्माण की परिकल्पना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन' (National Aeronautics and Space Administration- NASA) के ‘लूनर रिकॉनेनेस ऑर्बिटर’ (Lunar Reconnaissance Orbiter- LRO) अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की उप-सतह में विशाल मात्रा में लोहे एवं टाइटेनियम जैसी धातुओं के उपस्थित होने अनुमान लगाया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह शोध कार्य 1 जुलाई, 2020 को 'पृथ्वी और ग्रह विज्ञान पत्र' (Earth and Planetary Science Letters- EPSL) पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
  • EPSL पृथ्वी और ग्रहों विज्ञान के शोधकर्त्ताओं के लिये एक प्रमुख पत्रिका है।  

मिशन LRO:

  • LRO नासा का रोबोटिक अंतरिक्ष यान है जो वर्तमान में चंद्रमा के ध्रुवों का मानचित्रण कर रहा है।
  • इसे चंद्रमा के ध्रुवीय क्रेटरों में हिम की उपस्थिति का पता लगाने के लिये वर्ष 2009 में भेजा गया था।

LRO मिशन का उद्देश्य:

  • चंद्रमा की उत्पत्ति को समझने के लिये वैज्ञानिक लगातार पृथ्वी की तुलना में चंद्रमा पर उपस्थित धातु का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं। 
  • शोधकर्त्ताओं ने समय के साथ उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर अपनी परिकल्पना को और अधिक परिष्कृत करने का प्रयास किया है।

‘द  बिग स्प्लैट’ संकल्पना

('The Big Splat' Hypothesis):

  • चंद्रमा के निर्माण के बारे में सबसे लोकप्रिय संकल्पना यह है कि लगभग 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व मंगल ग्रह के आकार का पिंड पृथ्वी से टकराया, जिससे पृथ्वी के एक हिस्से के टूटने से चंद्रमा का निर्माण हुआ।
  • इस संकल्पना के पक्ष में पर्याप्त प्रमाण भी मौज़ूद हैं, जैसे कि पृथ्वी तथा चंद्रमा की  रासायनिक संरचना में व्यापक समानता।

LRO द्वारा हाल ही में की गई खोज:

  • ‘लूनर रिकॉनेनेस ऑर्बिटर’ (LRO) के एक 'मिनी-आरएफ उपकरण' (Mini-RF Instrument) ने चंद्रमा के उत्तरी गोलार्द्ध के क्रेटरों की मिट्टी में विद्युत गुणों का मापन किया है।
  •  इन विद्युत गुणों को संपत्ति ‘विसंवाहक स्थिरांक’ (Dielectric Constant) के रूप में जाना जाता है। 
    • यह किसी पदार्थ की विद्युत पारगम्यता तथा निर्वात में विद्युत पारगम्यता के अनुपात को दर्शाता है।
  • शोध के अनुसार, जैसे-जैसे चंद्रमा के बड़े क्रेटरों में इस गुण का अवलोकन किया गया तो यह पाया गया कि क्रेटरों के आकार में वृद्धि होने के साथ मृदा में उपस्थित विद्युत गुणों में वृद्धि हुई।

खोज के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष:

  •  क्रेटरों के आकार में वृद्धि के साथ बढ़ता ‘विसंवाहक स्थिरांक’ यह बताता है कि  चंद्रमा का निर्माण जिन उल्काओं के टकराव के कारण हुआ होगा, उनके कारण चंद्रमा की सतह के नीचे मौज़ूद लोहे और टाइटेनियम ऑक्साइड युक्त धूल भी बाहर निकले हैं ।
  • अध्ययन के निष्कर्ष इस सामान्य अनुमान के विपरीत है कि चंद्रमा की उप-सतह में अपेक्षाकृत कम धातु के भंडार हैं। अध्ययन चंद्रमा की उप-सतह में बड़ी मात्रा में लोहे और टाइटेनियम ऑक्साइड की उपस्थिति को बताता है।
  • पूर्व में लगाए गए अनुमान; जो चंद्रमा की सतह से 0.5 से 2 किमी. की गहराई में अधिकतम लोहे और टाइटेनियम ऑक्साइड की उपस्थिति मानता है, के विपरीत धातुओं की अधिकतम मात्रा 0.2 से 0.5 किमी. की गहराई में उपस्थित होती है।

अध्ययन का महत्त्व:

  • यह खोज पृथ्वी और चंद्रमा के निर्माण के बीच एक स्पष्ट संबंध स्थापित करने में सहायता करेगा।
  • पृथ्वी की भू-पर्पटी में चंद्रमा की तुलना में कम लौह ऑक्साइड की मात्रा उपस्थित है। चंद्रमा की सतह पर धातु की अधिक मात्रा की नई खोज उनके समक्ष नवीन चुनौतियाँ उत्पन्न करती है। 

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नैटान्ज़: ईरान की भूमिगत परमाणु सुविधा

प्रीलिम्स के लिये:

नैटान्ज़,  ट्राईनाईट्रोटॉलूइन, स्टक्सनेट कंप्यूटर वायरस 

मेन्स के लिये:

संयुक्त व्यापक क्रियान्वयन योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी सैटेलाइट तस्वीरों के अनुसार, ईरान की एक भूमिगत परमाणु सुविधा; जो यूरेनियम को समृद्ध करने के लिये कार्य करती है, में आग लगने की दुर्घटना हुई है। 

प्रमुख बिंदु:

  • समृद्ध यूरेनियम, यूरेनियम का एक विशेष प्रकार है, जिसमें यूरेनियम-235 की प्रतिशत मात्रा बढ़ाई जाती है। 

नैटान्ज़ (Natanz):

यूरेनियम संवर्द्धन (Uranium Enrichment): 

  • यूरेनियम संवर्द्धन एक संवेदनशील प्रक्रिया है जो परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिये ईंधन का उत्पादन करती है। सामान्यतः इसमें यूरेनियम-235 और यूरेनियम-238 के आइसोटोप का प्रयोग किया जाता है। 
  • यूरेनियम संवर्द्धन के लिये सेंट्रीफ्यूज (Centrifuges) में गैसीय यूरेनियम को शामिल किया जाता है।

नैटान्ज़ विवाद:

  • IAEA का निरीक्षण: 
    • नैटान्ज़ तब चर्चा में आया जब IAEA ने यहाँ विस्फोटक नाइट्रेट्स के सफल परीक्षण की आशंका के बाद अक्तूबर, 2019 में निरीक्षण का निर्णय किया परंतु ईरान ने IAEA इंस्पेक्टर को सुविधा के निरीक्षण की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
      • नाइट्रेट एक सामान्य उर्वरक हैं, हालाँकि जब इसे उचित मात्रा में ईंधन के साथ मिलाया जाता है, तो सामग्री ट्राईनाईट्रोटॉलूइन (Trinitrotoluene- TNT) के रूप में शक्तिशाली विस्फोटक बन सकती है।
  • स्टक्सनेट कंप्यूटर वायरस (Stuxnet Computer Virus):
    • इसे वर्ष 2010 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के दौरान पश्चिमी देशों अमेरिका तथा इज़राइल द्वारा निर्मित वायरस माना जाता है, जिसका उद्देश्य ईरान के नैटान्ज़ परमाणु कार्यक्रम को बाधित और नष्ट करना था।

ईरान की प्रतिक्रिया:

  • ईरान ने इसे गैस रिसाव विस्फोट की सामान्य 'घटना' (Incident) माना है जिससे केवल एक निर्माणाधीन 'औद्योगिक शेड' प्रभावित हुई है।
  • हालाँकि कुछ पत्रकारों ने फोटो के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की है कि यह सामान्य घटना नहीं है तथा इससे व्यापक निर्माण सामग्री प्रभावित हुई है।  

संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिक्रिया: 

  • अमेरिका ने मई 2018 में परमाणु समझौते से खुद को एकतरफा वापस ले लिया है क्योंकि उसका मानना था कि ईरान लगातार JCPOA द्वारा निर्धारित सभी उत्पादन सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

फ्रेंड्स ऑफ पुलिस: अवधारणा और महत्त्व

प्रीलिम्स के लिये

फ्रेंड्स ऑफ पुलिस

मेन्स के लिये

सामुदायिक पुलिस व्यवस्था का महत्त्व और इसकी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

तमिलनाडु में ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (Friends of Police-FoP) की सेवाओं को अगली सूचना तक निलंबित कर दिया गया है। राज्य सरकार ने यह निर्णय पुलिस द्वारा हिरासत में लिये गए दो व्यापारियों की मृत्यु (Custodial Death) और यातना की घटना के बाद लिया है, क्योंकि जाँच के दौरान इस घटना में कुछ फ्रेंड्स ऑफ पुलिस (FoP) स्वयंसेवकों की भूमिका भी पाई गई है।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल तमिलनाडु पुलिस ने दोनों लोगों को 19 जून की रात कथित तौर पर COVID-19 लॉकडाउन के दौरान अपनी दुकानों को अनुमति की अवधि से अधिक समय के लिये खोलने हेतु गिरफ्तार किया था।
  • गिरफ्तारी के पश्चात् पुलिस ने दोनों लोगों को बेरहमी से पीटा और हिरासत में रहते हुए पुलिसकर्मियों द्वारा उन्हें अत्यधिक यातनाएँ दी गईं, इसके बाद दोनों लोगों को पास के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई।
  • तमिलनाडु की अपराध जाँच शाखा द्वारा दोनों लोगों की पुलिस यातना के कारण हुई मृत्यु की जाँच करने पर कुछ FoP स्वयंसेवकों की भूमिका भी सामने आई है, जो दैनिक कार्यों में पुलिस अधिकारियों की सहायता कर रहे थे।

‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ की अवधारणा

  • फ्रेंड्स ऑफ पुलिस (FoP) एक सामुदायिक पुलिसिंग पहल और एक संयुक्त सरकारी संगठन (JGO) है जिसका उद्देश्य पुलिस और जनता को करीब लाना है।
  • एक स्वयंसेवा प्रणाली के रूप में फ्रेंड्स ऑफ पुलिस (FoP) की शुरुआत वर्ष 1993 में तमिलनाडु के रामनाथपुरम ज़िले से हुई थी।
  • एक अनुमान के अनुसार, पूरे तमिलनाडु के सभी पुलिस थानों में लगभग 4000 सक्रिय FoP स्वयंसेवी सदस्य हैं।
  • FoP स्वयंसेवी राज्य के आम लोगों में अपराध जागरूकता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं और राज्य पुलिस प्रशासन को अपराधों की रोकथाम में सक्षम बनाते हैं। 
  • इसके साथ ही यह पुलिस के काम में निष्पक्षता, पारदर्शिता और तटस्थता लाने का भी प्रयास करते हैं।

‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP) का उद्देश्य

  • पुलिस सेवाओं को समुदाय में रहने वाले आम लोगों तक पहुँचाना।
  • आम लोगों को सामुदायिक पुलिसिंग में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • पुलिस और समुदाय को एक साथ एक मंच पर लाना।
  • राज्य की पुलिस सेवा को और अधिक पेशेवर तथा समुदाय उन्मुख बनाना।
  • पुलिस अधिकारियों को राज्य के साथ-साथ समुदाय के प्रति भी जवाबदेह बनाना।
  • पुलिस में जनता के खोए हुए विश्वास को बहाल करने में सहायता करना।

‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ अवधारणा का महत्त्व

  • विशेषज्ञ मानते हैं कि सामुदायिक पुलिसिंग के रूप में ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP) की अवधारणा एक समग्र रूप से उपयोगी अवधारणा है।
  • साथ ही आम जनता के बीच पुलिस की छवि को बदलने तथा राज्य के पुलिस बल को मज़बूत करने हेतु यह अवधारणा काफी उपयोगी साबित हो रही है।
  • इस अवधारणा को राज्य के पुलिस बल और आम जनता के बीच एक सेतु के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ की आलोचना

  • राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि राज्य के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP) स्वयंसेवकों की कार्यक्षमता का दुरुपयोग किया जा रहा है, जहाँ पुलिस अधिकारी FOP स्वयंसेवकों को एक सहायक के रूप में देखते हैं।
    • इन क्षेत्रों में FOP स्वयंसेवकों का प्रयोग केवल चाय या भोजन खरीदने, वाहन की जाँच में मदद करने, ज़ब्त वाहनों को थाने तक ले जाने और स्थानीय लोगों को अवैध रूप से हिरासत में लेने के लिये ही किया जाता है, जहाँ वे अधिकारियों के आदेश मानने हेतु बाध्य होते हैं।

सामुदायिक पुलिस व्यवस्था और इसका महत्त्व

  • सामुदायिक पुलिस व्यवस्था, पुलिस के कार्यों में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने का एक तरीका है। इसके तहत एक ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाता है, जिसमें आम नागरिक समुदाय की सुरक्षा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।
  • सामुदायिक पुलिसिंग से अपराधों की सुभेद्यता की पहचान करना संभव हो जाता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग, मानव तस्करी और अन्य संदिग्ध गतिविधियों की पहचान कर उनके विरुद्ध कार्यवाही करना भी अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
  • गौरतलब है कि भारत के कई राज्यों ने सामुदायिक पुलिस व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया है, जिसमें तमिलनाडु के ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP), असम में ‘प्रहरी’ (Prahari) और बंगलुरु सिटी पुलिस की ‘स्पंदन’ (Spandana) नामक पहल शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भूटान के क्षेत्र पर चीन का दावा

प्रीलिम्स के लिये

सकतेंग वन्यजीव अभ्यारण्य, वैश्विक पर्यावरण सुविधा

मेन्स के लिये

चीन की विस्तारवादी नीति. भारत पर इसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाते हुए, चीन ने भारत के पारंपरिक सहयोगी भूटान के साथ एक नया सीमा विवाद पैदा कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि बीते माह आयोजित ‘वैश्विक पर्यावरण सुविधा’ (Global Environment Facility- GEF) की एक ऑनलाइन बैठक में पूर्वी भूटान स्थित ‘सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य’ (Sakteng Wildlife Sanctuary) के विकास से संबंधित एक परियोजना पर आपत्ति जताते हुए चीन ने कहा था कि यह चीन और भूटान के बीच एक विवादित क्षेत्र है।
  • हालाँकि भूटान ने चीन के दावे पर आपत्ति जताई और वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) ने भूटान की परियोजना के वित्तपोषण के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी।

वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) 

  • वर्ष 1992 में स्थापित वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) पर्यावरण क्षेत्र में परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने के लिये एक US-आधारित वैश्विक निकाय है।
  • अपने रणनीतिक निवेश के माध्यम से GEF प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने के लिये भागीदारों के साथ कार्य करता है।

चीन का दावा

  • ‘सकतेंग वन्यजीव अभ्यारण्य’ चीन और भूटान के बीच विवादित क्षेत्र में स्थित है, जो कि चीन और भूटान सीमा वार्ता के एजेंडे में शामिल है।
  • चीन के अनुसार, चीन और भूटान के बीच सीमा को कभी भी सीमांकित नहीं किया गया है। दोनों देशों के बीच पूर्वी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में लंबे समय से विवाद चल रहे हैं।
  • चीन ने स्पष्ट किया है कि चीन सदैव दोनों देशों के बीच सीमा विवाद मुद्दों को लेकर बातचीत का पक्षधर रहा है और इस कार्य हेतु हमेशा तत्पर है।

भूटान का पक्ष

  • वहीं परिषद में चीन के दावे को खारिज करते हुए कहा कि सकतेंग वन्यजीव अभ्यारण्य भूटान का एक अभिन्न और संप्रभु क्षेत्र है और भूटान तथा चीन के बीच सीमा पर चर्चा के दौरान यह कभी भी एक विवाद का विषय नहीं रहा है।
  • ध्यातव्य है कि चीन और भूटान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध न होने के कारण भूटान ने नई दिल्ली स्थित अपने दूतावास के माध्यम से चीन को अपनी स्थिति से अवगत कराया।

चीन के दावे का निहितार्थ

  • विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन द्वारा किया गया यह दावा दोनों द्वारा सीमा विवाद को लेकर सुलझाने को लेकर चल रहे राजनयिक प्रयासों को कमज़ोर करता है।
  • चीन द्वारा भूटान के पूर्वी हिस्से पर दावा करने का एक कारण भारत पर दबाव बनाना भी हो सकता है, गौरतलब है कि भूटान का यह पूर्वी हिस्सा भारत के अरुणाचल प्रदेश के पास स्थित है, जिस पर चीन ‘दक्षिणी तिब्बत’ के एक हिस्से के रूप में अपनी संपूर्णता का दावा करता है।
  • भले ही चीन का दावा नया न हो, किंतु इसे मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियों के दृष्टिकोण से भारत और भूटान पर दबाव बनाने के एक रणनीतिक प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।

चीन-भूटान संबंध और सीमा विवाद

  • भूटान और चीन के बीच संबंधों में एक स्पष्ट विरोधाभास है। भूटान की भौगोलिक स्थिति इसे हिमालयी क्षेत्र में राजनीतिक और रणनीतिक दोनों ही दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण बना देती है।
  • भूटान और तिब्बत के बीच पारस्परिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंधों की एक लंबी परंपरा रही है, इसके बावजूद भूटान चीन का एकमात्र पड़ोसी देश है, जिसके पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (People’s  Republic  of  China- PRC) के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं।
    • यहाँ तक कि दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक संपर्क भी काफी कम हैं।
  • लगभग 500 किमी. क्षेत्र में फैली भूटान और चीन के बीच की सीमा के क्षेत्रीय विवाद का एक लंबा इतिहास रहा है।
  • हालाँकि दोनों देशों के बीच अब तक केवल मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों पर ही सीमा विवाद, किंतु चीन के नए दावे के साथ ही यह विवाद पूर्वी क्षेत्र तक विस्तारित हो गया है।
  • चीन और भूटान ने वर्ष 1984 से वर्ष 2016 के बीच सीमा वार्ता के कुल 24 दौर आयोजित किये हैं। वर्ष 2017 में डोकलाम सीमा विवाद के बाद से दोनों देशों के बीच इस संबंध में कोई भी बैठक आयोजित नहीं की गई है।

सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य 

  • उल्लेखनीय है कि सकतेंग वन्यजीव अभ्यारण्य (Sakteng Wildlife Sanctuary) भूटान के पूर्वी भाग में स्थित अभयारण्य है और यह लगभग 650 वर्ग किमी. का क्षेत्र कवर करता है।
    • इससे पूर्व यह क्षेत्र कभी भी चीन और भूटान के बीच विवादित क्षेत्र नहीं रहा है।
  • भूटान के पूर्वी क्षेत्र में काफी बड़ी संख्या में भूटानी लोग रहते हैं।
  • यह अभयारण्य बांग्लादेश के अधिकांश पृथक खानाबदोश जनजाति के लोगों का निवास स्थान है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

आपराधिक कानून सुधार पर समिति

प्रीलिम्स के लिये

गवाह संरक्षण योजना, विधि आयोग

मेन्स के लिये

भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने आपराधिक कानून में सुधार के लिये एक राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन किया है।

प्रमुख बिंदु: 

  • आपराधिक कानून में सुधार के लिये गठित की गई राष्ट्रीय स्तर की समिति में दिल्ली की ‘नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी’ के कुलपति रणबीर सिंह सहित न्यायिक क्षेत्र  के विशेषज्ञों को शामिल किया गया है।
  • यह समिति विशेषज्ञों के साथ परामर्श करके अपनी रिपोर्ट के लिये ऑनलाइन राय एकत्रित करेगी।
  • रिपोर्ट की यह प्रक्रिया 4 जुलाई, 2020 से शुरू होगी और अगले तीन महीने तक चलेगी। 

आपराधिक न्याय प्रणाली की पृष्ठभूमि: 

  • भारत में आपराधिक कानूनों का संहिताकरण (Codification) ब्रिटिश शासन के दौरान किया गया था जो कमोबेश 21वीं सदी में भी उसी तरह ही है।
  • लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले (Lord Thomas Babington Macaulay) को भारत में आपराधिक कानूनों के संहिताकरण का मुख्य वास्तुकार कहा जाता है।
    • वर्ष 1834 में स्थापित भारत के पहले विधि आयोग की सिफारिशों पर चार्टर एक्ट-1833 के तहत वर्ष 1860 में आपराधिक कानूनों के संहिताकरण के लिये मसौदा तैयार किया गया था। और इसे वर्ष 1862 के शुरुआती ब्रिटिश काल के दौरान ब्रिटिश भारत में लागू किया गया।
  • भारत में आपराधिक कानून भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) आदि के तहत संचालित होते हैं।

सुधार की आवश्यकता:

  • औपनिवेशिक काल के आपराधिक कानून: आपराधिक न्याय प्रणाली ब्रिटिश औपनिवेशिक न्यायशास्त्र की प्रतिकृति है जिसे राष्ट्र पर शासन करने के उद्देश्य से बनाया गया था न कि नागरिकों की सेवा करने के लिये।
  • प्रभाव-शून्‍यता: आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य निर्दोषों के अधिकारों की रक्षा करना और दोषियों को दंडित करना था किंतु आजकल यह प्रणाली आम लोगों के उत्पीड़न का एक उपकरण बन गई है।
  • विचाराधीन आपराधिक मामलों का बढ़ता बोझ: आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, न्यायिक प्रणाली में (विशेष रूप से ज़िला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में) लगभग 3.5 करोड़ मामले लंबित हैं। 
  • अंडरट्रायल मामलों की बढ़ती संख्या: भारत, दुनिया के सबसे अधिक अंडरट्रायल कैदियों की संख्या वाला देश है। 
    • वर्ष 2015 की एनसीआरबी-प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया (NCRB-Prison Statistics India) के अनुसार, जेल में बंद कुल जनसंख्या का 67.2% अंडरट्रायल कैदी हैं।
  • जाँच पड़ताल में देरी: भ्रष्टाचार, काम का बोझ और पुलिस की जवाबदेही न्याय की तेज़ और पारदर्शी न्याय देने में एक बड़ी बाधा है।
  • माधव मेनन समिति: इस समिति ने वर्ष 2007 में भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System of India- CJSI) में सुधारों पर विभिन्न सिफारिशों का सुझाव देते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • मालीमठ समिति की रिपोर्ट: इस समिति ने वर्ष 2003 में भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली (CJSI) पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

    • इस समिति ने कहा था कि मौजूदा प्रणाली ‘अभियुक्तों के पक्ष में अधिक झुकी हुई है और इसमें अपराध पीड़ितों के लिये न्याय पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।

    • इस समिति ने भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली (CJSI) में सुधार हेतु विभिन्न सिफारिशें प्रदान की हैं किंतु इन्हें लागू नहीं किया गया था।

सुधार के सुझाव: 

  • ‘आपराधिक कानून’ को एक राज्य एवं उसके नागरिकों के बीच संबंधों की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति माना जाता है इसलिये भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में किसी भी संशोधन को कई सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिये।
    • अपराध पीड़ितों के अधिकारों की पहचान करने के लिये कानूनों में सुधार हेतु ‘पीड़ित होने का कारण’ पर खास तौर पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। उदाहरण: पीड़ित एवं गवाह संरक्षण योजनाओं का शुभारंभ, अपराध पीड़ित बयानों का उपयोग, आपराधिक परीक्षणों में पीड़ितों की भागीदारी में वृद्धि, मुआवजे एवं पुनर्स्थापन हेतु पीड़ितों की पहुँच में वृद्धि।
  • नए अपराधों के निर्माण और अपराधों के मौजूदा वर्गीकरण के पुनर्मूल्यांकन को आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये जो पिछले चार दशकों में काफी बदल गए हैं। 
    • उदाहरण: ‘दंड की डिग्री’ (Degree of Punishments) देने के लिये आपराधिक दायित्व को बेहतर तरीके से वर्गीकृत किया जा सकता है। नए प्रकार के दंड जैसे- सामुदायिक सेवा आदेश, पुनर्स्थापन आदेश तथा पुनर्स्थापना एवं सुधारवादी न्याय के अन्य पहलू भी इसकी तह में लाए जा सकते हैं।
  • अपराधों का वर्गीकरण भविष्य में होने वाले अपराधों के प्रबंधन के लिये अनुकूल तरीके से किया जाना चाहिये।
    • IPC के कई अध्यायों में दुहराव की स्थिति हैं। लोक सेवकों के खिलाफ अपराध, अधिकारियों की अवमानना, सार्वजनिक शांति और अतिचार पर अध्यायों को फिर से परिभाषित एवं संकुचित किया जा सकता है।
  • किसी कार्य को एक अपराध के रूप में सूचीबद्ध करने से पहले पर्याप्त बहस के बाद ही मार्गदर्शक सिद्धांतों को विकसित किया जाना चाहिये।
    • असैद्धांतिक अपराधीकरण न केवल अवैज्ञानिक आधार पर नए अपराधों के निर्माण की ओर जाता है बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली में मनमानी भी करता है।
  • एक ही तरह के अपराधों के लिये अलग-अलग तरीके से सजा का प्रावधान और सजा की प्रकृति को तय करने में न्यायाधीशों का विवेक ‘न्यायिक पूर्वदाहरण’ या ‘न्यायिक मिसाल’ (Judicial Precedent) के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिये।

आगे की राह:

  • भारत को एक स्पष्ट नीति मसौदा तैयार करना होगा जो मौजूदा आपराधिक कानूनों में परिकल्पित किये जाने वाले परिवर्तनों की सूचना दे। इसके लिये पुलिस, अभियोजन, न्यायपालिका एवं जेल सुधार को एक साथ करने की आवश्यकता होगी।
  • आपराधिक कानूनों में सुधार, मुख्य रूप से समाज में शांति लाने के लिये ‘सुधारवादी न्याय’ पर आधारित होना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय भू-अनुसंधान विद्वान बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय भू-अनुसंधान विद्वान बैठक,  वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग।

मेन्स  के लिये:

अनुसंधान के क्षेत्र में युवा शोधार्थियों और छात्रों की रूचि को प्रगाढ़ करने में NGRSM की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भू-अनुसंधान विद्वानों द्वारा चौथे राष्ट्रीय भू-अनुसंधान विद्वान बैठक (National Geo-research Scholars Meet-NGRSM) का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी

Wadia Institute of Himalayan Geology

  • वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।

उद्देश्य:

  • हिमालय के भू-विज्ञान में अनुसंधानों को शुरू करना, सहायता एवं बढ़ावा देना, मार्गदर्शन और समन्वय करना तथा छात्रवृत्ति की परंपरा को बढ़ावा देना।
  • हिमालयी भू-विज्ञान और संबंधित क्षेत्रों में काम करने वाले देश के विभिन्न संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों के बीच अनुसंधान गतिविधियों का समन्वय करना।
  • हिमालय के भू-विज्ञान के लिये नेशनल रेफेरंस सेंटर के रूप में सेवा प्रदान करना और विभिन्न संस्थानों, सार्वजनिक एजेंसियों और उद्योगों को उच्च स्तरीय परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  • नए उपकरणों, कार्य प्रणालियों और विश्लेषणात्मक तकनीकों के आवेदन पर विशेष बल देने के साथ-साथ संस्थान के उद्देश्यों के लिये प्रासंगिक क्षेत्रों में विदेशी अनुसंधान संगठनों और विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग करना।
  • हिमालय में मोनोग्राफ, शोध-पत्र, मानचित्र, वैज्ञानिक रिपोर्ट आदि के प्रकाशन के माध्यम से भू-वैज्ञानिक और संबद्ध अनुसंधानों से संबंधित ज्ञान और सूचना का प्रसार करना।
  • हिमालयी भू-विज्ञान को बढ़ावा देने के लिये मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा केंद्रों के साथ मिलकर कार्य करना।
  • हिमालय के भू-विज्ञान के अध्ययन में युवा भू-वैज्ञानिकों को प्रेरित और प्रोत्साहित करना।
  • संस्थान में शोध कार्य करने के लिये हिमालयन भू-विज्ञान में एक वाडिया राष्ट्रीय फेलोशिप संस्थान स्थापित करना।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST)

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की स्थापना 3 मई, 1971 को हुई थी।
  • DST विभिन्न गतिविधियों जैसे- व्याख्यान श्रृंखला, प्रकाशनों, वृत्तचित्रों को जारी करना, DST के तहत भारतीय सर्वेक्षण के विकिपीडिया पृष्ठ को अपडेट करना आदि के साथ 3 मई, 2020 से 2 मई, 2021 की अवधि के दौरान स्वर्ण जयंती स्मरणोत्सव वर्ष की समीक्षा कर रहा है।
  • DST भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के तहत कार्य करता है।

DST का लक्ष्य:

  • भारत सरकार के इस विभाग का लक्ष्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के नए क्षेत्रों को बढ़ावा देना है। यह भारत में वैज्ञानिक एवं तकनीकी गतिविधियों को व्यवस्थित, समन्वित करने एवं बढ़ावा देने वाला नोडल विभाग है।
  • उल्लेखनीय है कि DST भारत में विभिन्न स्वीकृत वैज्ञानिक परियोजनाओं के लिये धन भी प्रदान करता है। यह विदेशों में होने वाले सम्मेलनों में भाग लेने तथा प्रायोगिक कार्यों के लिये भारत में शोधकर्त्ताओं का समर्थन करता है।

पृष्ठभूमि

  • WIHG के नियमित आयोजन के रूप में राष्ट्रीय भू-अनुसंधान विद्वान बैठक (NGRSM) की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई थी।
  • इसका उद्देश्य युवा शोधार्थियों और छात्रों को अपने अनुसंधान कार्यों को साझा करने, समकक्ष लोगों की उस पर राय जानने और इस आधार पर अपने कार्यों को पहले से और बेहतर बनाने के लिये एक उचित मंच प्रदान करते हुए अनुसंधान में उनकी रूचि को और प्रगाढ़ करने के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • यह कार्यक्रम उन्हें प्रख्यात भू-वैज्ञानिकों के साथ बातचीत कर उनका अनुभव हासिल करने और भू-विज्ञान अनुसंधान क्षेत्र के नवीनतम रुझानों को समझने का अवसर भी प्रदान करता है।

स्रोत: पी.आई.बी


आंतरिक सुरक्षा

द वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2020

प्रीलिम्स के लिये

संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय

मेन्स के लिये

भारत और अवैध दवा व्यापार

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime-UNODC) द्वारा जारी वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2020 में अवैध मादक द्रव्यों के उत्पादन, आपूर्ति तथा उसके उपभोग पर वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है 

प्रमुख बिंदु 

आर्थिक संकट 

  • रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक कठिनाइयों के कारण लोग अपनी आजीविका को बनाए रखने के लिये दवाओं से संबंधित अवैध गतिविधियों का सहारा ले सकते हैं ।
  • वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण सरकारें दवाओं से संबंधित चिकित्सीय परीक्षणों के लिये अपने बजट पूर्वानुमान में कटौती कर सकती हैं। जिससे सस्ती व हानिकारक दवाओं का उपयोग करने के चलन में वृद्धि हो सकती है।

रणनीति में परिवर्तन 

  • इटली, नाइजर और मध्य एशिया के देशों में ड्रग तस्करी में भारी गिरावट दर्ज की गई है। ऐसा इसलिये है क्योंकि मादक पदार्थों के तस्करों ने रणनीति में परिवर्तन करते हुए अपना ध्यान अन्य अवैध गतिविधियों जैसे साइबर अपराध और नकली दवाओं के निर्माण में लगाया है। 
  • हालाँकि मोरक्को और ईरान जैसे देशों में ड्रग तस्करी की घटनाओं में वृद्धि हुई है। 

आपूर्ति श्रृंखला पर COVID-19 का प्रभाव 

  • COVID-19 और इसके बाद लागू किया गया लॉकडाउन दुनिया में प्रमुख उत्पादकों के बीच उत्पादन और बिक्री में बाधा के रूप में उभरा है। लॉकडाउन के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट एसिटिक एनहाइड्राइड (Acetic Anhydride) की आपूर्ति में कमी का कारण बन सकती है, जो हेरोइन (Heroin) के निर्माण के लिये उपयोगी होती है।
  • लॉकडाउन के दौरान मादक पदार्थ भांग (Cannabis) की मांग में वृद्धि देखी गई है 
  • हवाई यात्रा पर प्रतिबंध से वायु मार्ग द्वारा मादक पदार्थों की तस्करी पूरी तरह से बाधित होने की संभावना है। मादक पदार्थों की तस्करी हेतु अब समुद्री मार्गों के बढ़ते उपयोग के संकेत हैं।

समुद्री मार्ग का उपयोग 

  • हाल ही में हिंद महासागर क्षेत्र से मादक पदार्थ हेरोइन ज़ब्त की गई है जो इंगित करता है कि यूरोप महाद्वीप के देशों में  मादक पदार्थ हेरोइन की तस्करी के लिये समुद्री मार्गों का उपयोग किया गया है।
  • हालाँकि सीमापारीय आवागमन बाधित होने से मादक पदार्थ अफीम (Opiam) की तस्करी में गिरावट हुई है परंतु मादक पदार्थ कोकीन की तस्करी समुद्री मार्गों के द्वारा की जा रही है।

भारत और अवैध ड्रग व्यापार

  • संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत अवैध ड्रग  व्यापार के प्रमुख केंद्रों में से एक है। यहाँ ट्रामाडोल (Tramadol) और मेथाफेटामाइन (Methamphetamine) जैसे आधुनिक और भांग जैसे पुराने मादक पदार्थ मिल जाते हैं। 
  • भारत दुनिया में दो प्रमुख अवैध अफीम उत्पादन क्षेत्रों के मध्य में स्थित है, पश्चिम में गोल्डन क्रीसेंट (ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान) और पूर्व में स्वर्णिम त्रिभुज (दक्षिण-पूर्व एशिया)।

स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र

  • स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र म्यांमार, लाओस और थाईलैंड के पहाड़ों का एक संयुक्त क्षेत्र है। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिका में मादक पदार्थों की आपूर्ति करने के लिये तस्करों द्वारा उपयोग किये जाने वाले सबसे पुराने मार्गों में से एक है। 
  • इसके अलावा, यह दक्षिण पूर्व एशिया का मुख्य अफीम उत्पादक क्षेत्र है। स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित है।

स्वर्णिम अर्द्धचंद्र क्षेत्र 

  • स्वर्णिम अर्द्धचंद्र क्षेत्र में अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान शामिल हैं। यह अफीम के उत्पादन और उसके वितरण के लिये प्रमुख वैश्विक स्थलों में से एक है। 
  • स्वर्णिम अर्द्धचंद्र क्षेत्र भारत के पश्चिम में स्थित है। 

अन्य संबंधित चुनौतियाँ  

  • सीमा क्षेत्र : निचले मेकांग क्षेत्र की सीमाएँ अत्यधिक कमज़ोर हैं इसलिये इन्हें नियंत्रित करना कठिन कार्य  है। इस प्रकार COVID-19 महामारी के कारण लागू किये गए लॉकडाउन ने इस क्षेत्र में होने वाली तस्करी में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं की है। 
  • तस्करी के नए तरीके: तस्करों ने तस्करी के विभिन्न नए तरीकों का उपयोग करना शुरू कर दिया है। 
  • सीमित नियंत्रण: सरकार का स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र में सीमित नियंत्रण है जिससे इस मार्ग से तस्करी में वृद्धि हुई है।

आगे की राह

  • वैश्विक महामारी COVID-19 के परिणामस्वरूप मादक पदार्थों की तस्करी के संदर्भ में तस्कर संगठनों की रणनीति में बदलाव को समझने की आवश्यकता है। 
  • देश की सीमाओं से परे उन देशों में भी प्रयास किये जाने की ज़रूरत है जहाँ अवैध मादक पदार्थों का उत्पादन होता है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

विंटर डीज़ल

प्रीलिम्स के लिये:

विंटर डीज़ल, फ्यूल एडिटिव्स

मेन्स के लिये:

विंटर डीज़ल का सामरिक दृष्टि से महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने लद्दाख जैसे ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सशस्त्र बलों द्वारा विंटर डीज़ल के उपयोग हेतु ‘गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय(Directorate General of Quality Assurance- DGQA) से अनुमोदन मांगा है। 

प्रमुख बिंदु

  • IOC ने विंटर डीज़ल को वर्ष 2019 में लद्दाख, कारगिल, काज़ा और कीलोंग जैसे ऊँचाई वाले क्षेत्रों में एक तकनीकी समाधान के रूप में पेश किया गया था। उल्लेखनीय है कि इन क्षेत्रों में चरम मौसमी परिस्थितियों के दौरान वाहनों में डीजल के जमने जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है। 
  • विंटर डीज़ल इस समस्या से निपटने में कारगर साबित होता है क्योंकि -30 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान पर इसका उपयोग कर पाना संभव है। 

गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय

  • गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय (Directorate General of Quality Assurance- DGQA) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। 
  • यह महानिदेशालय सशस्त्र बलों को आपूर्ति किये जाने वाले हथियारों, गोला-बारूद, उपकरणों की पूरी श्रृंखला के लिये गुणवत्ता आश्वासन (Quality Assurance- QA) प्रदान करता है।

विंटर डीज़ल क्या है?

  • विंटर डीज़ल एक विशेष श्रेणी का ईंधन है जो ठंड के मौसम में जमता नहीं है। विंटर डीज़ल की चिपचिपाहट को कम करने के लिये इसमें ‘फ्यूल एडिटिव्स’ (Fuel Additives) का उपयोग किया जाता है। 
    • वाहनों के माइलेज की समस्या, डीज़ल या पेट्रोल इस्तेमाल करने से वाहनों के फ्यूल इंज़ेक्टर्स पर कार्बन का जम जाना इत्यादि के समाधान के तौर पर भी फ्यूल एडिटिव्स (Fuel Additives) का प्रयोग किया जाता है। 
  • इस डीज़ल में सल्फर की मात्रा भी कम रहती है जो इंजनों को बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करती है। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इस डीज़ल की सीटेन रेटिंग भी काफी उच्च है। सीटेन रेटिंग 'डीज़ल की दहन गति' और 'इग्निशन के लिये आवश्यक संपीडन' का सूचक होता है। 
  • कई बार डीज़ल को जमने से रोकने के लिये लोगों द्वारा इसमें केरोसिन मिलाकर इसका इस्तेमाल किया जाता है जो वायु प्रदूषण की समस्या को बढ़ावा देता है। 
  • वर्तमान समय में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) तथा दूसरी तेल विपणन कंपनियाँ जैसे- भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (Bharat Petroleum Corporation Limited-BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (Hindustan Petroleum Corporation Limited- HPCL) इन क्षेत्रों में सेना के लिये स्पेशल डीज़ल सप्लाई करती हैं।
  • इस डीज़ल में हाई सल्फर पौर पॉइंट (High sulphur Pour Point) होता है जिसके चलते इस डीज़ल का प्रयोग -30 डिग्री सेल्सियस तक किया जा सकता है।

महत्त्व 

  • वर्तमान समय में जब चीन- भारत के बीच लद्दाख क्षेत्र में तनाव का माहौल बना हुआ है ऐसी स्थिति में सेना को विंटर डीज़ल की आपूर्ति सामरिक मोर्चे पर भारतीय सेना की स्थिति को मज़बूती प्रदान करेगी। 
  • यह डीजल लद्दाख एवं अन्य दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में सेना के साथ-साथ आम लोगों के लिये भी उपयोगी साबित होगा। इससे सर्दियों के मौसम में भी पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 06 जुलाई, 2020

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 06 जुलाई 2020 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 119वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने कहा कि वे एक सच्चे देशभक्त थे, जिन्होंने भारत के विकास में उत्कृष्ट एवं अनुकरणीय योगदान दिया और भारत की एकता को निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयास किया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 06 जुलाई, 1901 को तत्कालीन कलकत्ता के एक संभ्रांत (Elite) परिवार में हुआ था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी कार्य कर चुके थे। वर्ष 1921 में कलकत्ता से अंग्रेज़ी में स्नातक करने के पश्चात् उन्होंने वर्ष 1923 में कलकत्ता से ही बंगाली भाषा और साहित्य में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1934 में मात्र 33 वर्ष की आयु में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कलकत्ता विश्वविद्यालय का सबसे कम उम्र का कुलपति नियुक्त किया गया था। कुलपति के तौर पर डॉ. मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान ही वह स्वर्णिम अवसर आया, जब रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार बंगाली में कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया और उन्ही के कार्यकाल के दौरान कलकत्ता विश्वविद्यालय की उच्च परीक्षा में जनभाषा को एक विषय के रूप में प्रस्तुत किया गया। मई 1953 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट के प्रवेश करने को लेकर डॉ. मुखर्जी को हिरासत में ले लिया गया, जिसके पश्चात  23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।

आत्मनिर्भर भारत एप इनोवेशन चैलेंज 

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत एप इनोवेशन चैलेंज ’ (Aatmanirbhar Bharat App Innovation Challenge) का शुभारंभ किया है। इस चैलेंज का उद्देश्य ऐसे सर्वश्रेष्ठ भारतीय एप्स की पहचान करना है जो पहले से ही भारतीय नागरिकों द्वारा उपयोग में लाए जा रहे हैं और जिनमें अपनी श्रेणी विशेष में विश्व स्तर के एप्स बनने की क्षमता है। ‘आत्मनिर्भर भारत एप इनोवेशन चैलेंज’ के माध्यम से भारत सरकार एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) का निर्माण कर रही है, जहाँ भारतीय उद्यमियों और स्टार्टअप्स को तकनीक आधारित समाधान खोजने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा, जो न केवल भारत के बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिये मददगार साबित होंगे। ‘आत्मनिर्भर भारत एप इनोवेशन चैलेंज’ मुख्य रूप से 8 व्यापक श्रेणियों में शुरू किया गया है, जिसमें (1) कार्यालय उत्पादकता और ‘वर्क फ्रॉम होम’ (2) सोशल नेटवर्किंग (3) ई-लर्निंग (4) मनोरंजन (5) स्वास्थ्य और कल्याण (6) व्यवसाय (7) न्यूज़ (8) गेम्स। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में एक बहुत ही जीवंत तकनीक और स्टार्ट-अप इकोसिस्टम है, जिसका प्रयोग तकनीक के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया जा सकता है। गौरतलब है कि बीते दिनों भारत-चीन सीमा पर हुई हिंसक झड़प के बाद सरकार ने चीन समेत विश्व के कई अन्य देशों के कुल 59 एप्लीकेशन पर प्रतिबंध लगा दिया था।

‘संस्‍कृत साप्‍ताहिकी’ कार्यक्रम

भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से आकाशवाणी या ऑल इंडिया रेडियो (All India Radio) ने हाल ही में संस्‍कृत में पहले समाचार कार्यक्रम का प्रसारण किया। आकाशवाणी पर संस्‍कृत के इस पहले कार्यक्रम का नाम ‘संस्‍कृत साप्‍ताहिकी’ (Sanskrit Saptahiki) रखा गया है। तकरीबन 20 मिनट का समाचार पत्रिका कार्यक्रम प्रत्येक शनिवार को आकाशवाणी पर सुना जा सकता है। वहीं इस कार्यक्रम का पुन: प्रसारण रविवार को किया जाएगा। इस संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, कार्यक्रम में सप्‍ताह भर की प्रमुख गतिविधियाँ, संस्‍कृत साहित्‍य, दर्शन, इतिहास, कला और संस्‍कृति जैसे विषय शामिल होंगे। वहीं इस कार्यक्रम में सूक्ति, प्रसंग, संस्कृत दर्शन, ज्ञान विज्ञान, बाल-वल्लरी और एक भारत-श्रेष्ठ भारत जैसे कई खंड भी शामिल होंगे। सूक्ति खंड के तहत संस्कृत साहित्य के एक उद्धरण की व्याख्या की जाएगी। वहीं प्रसंग खंड के तहत कला, संस्कृति, परंपरा, इतिहास और महाकाव्यों जैसे रामायण, महाभारत, उपनिषदों, वेदों, आदि से एक साप्ताहिक कहानी सुनाई जाएगी। अन्य खंडों में भी इसी प्रकार संस्कृत साहित्य और दर्शन से संबंधित सूचना प्रदान की जाएगी। समग्र रूप से यह कहा जा सकता है कि यह कार्यक्रम संस्‍कृत प्रेमियों के लिये एक विशेष कार्यक्रम होगा।

महाराष्ट्र और यूके-इंडिया बिज़नेस काउंसिल के बीच समझौता ज्ञापन 

हाल ही में महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डवलपमेंट कॉरपोरेशन (The Maharashtra Industrial Development Corporation-MIDC) और यूके-इंडिया बिज़नेस काउंसिल (UK-India Business Council-UKIBC) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इस समझौता ज्ञापन के माध्यम से महाराष्ट्र में कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाएगा और ब्रिटेन स्थित व्यवसायों के साथ महाराष्ट्र सरकार के संबंधों को मज़बूत किया जाएगा। UKIBC व्यापार और बाज़ार तक पहुँच को आसान बनाने के लिये ब्रिटेन के व्यवसायों और राज्य सरकार के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करेगी। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में ब्रिटेन की लगभग 30 प्रतिशत कंपनियाँ भारत में परिचालन कर रही हैं। महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डवलपमेंट कॉरपोरेशन (MIDC) महाराष्ट्र सरकार की प्रमुख औद्योगिक अवसंरचना विकास एजेंसी है और राज्य के सभी व्यवसायों का प्रतिनिधित्त्व करती है। यूके-इंडिया बिज़नेस काउंसिल (UKIBC) भारत में व्यावसायिक सफलता प्राप्त करने के लिये आवश्यक अंतर्दृष्टि, नेटवर्क और सुविधाओं के संबंध में ब्रिटेन के व्यवसायों को सहायता प्रदान करती है।


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