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भारत का विधि आयोग

  • 12 Sep 2019
  • 12 min read

 Last Updated: July 2022 

परिचय

  • भारतीय विधि आयोग न तो एक संवैधानिक निकाय है और न ही वैधानिक निकाय। यह भारत सरकार के आदेश से गठित एक कार्यकारी निकाय है। इसका प्रमुख कार्य है, कानूनी सुधारों हेतु कार्य करना।
  • आयोग का गठन एक निर्धारित अवधि के लिये होता है और यह विधि और न्याय मंत्रालय के लिये परामर्शदाता निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • इसके सदस्य मुख्यतः कानून विशेषज्ञ होते हैं।

भारत में विधि आयोग का इतिहास

  • भारतीय इतिहास में, विशेषकर पिछले 300 या इससे अधिक वर्षों के दौरान कानूनी सुधार एक सतत प्रक्रिया रहा है। प्राचीन समय में जब धार्मिक और प्रथागत कानून का बोलबाला था तो सुधार प्रक्रिया तदर्थ थी और उन्हें यधोचित रूप से गठित विधि सुधार एजेंसियों द्वारा संस्थागत नहीं किया जाता था।
  • लेकिन, उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से समय-समय पर सरकार द्वारा विधि आयोग गठित किये गए और कानून की उन शाखाओं में जहाँ सरकार को आवश्यकता महसूस हुई, वहाँ स्पष्टीकरण, समेकन और संहिताकरण हेतु विधायी सुधारों की सिफारिश करने के लिये उन्हें सशक्त किया गया।
  • ऐसा प्रथम आयोग वर्ष 1834 में 1833 के चार्टर एक्ट के तहत लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में गठित किया गया था जिसने दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता को संहिताबद्ध करने की सिफ़ारिश की।
  • इसके बाद द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ विधि आयोग, जो क्रमशः वर्ष 1853, 1861 और 1879 में गठित किये गए थे, ने 50 वर्ष की अवधि में उस समय प्रचलित अंग्रेजी क़ानूनों के पैटर्न पर, जिन्हें कि भारतीय दशाओं के अनुकूल किया गया था, की व्यापक किस्मों से भारतीय विधि जगत को समृद्ध किया।
  • भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय संविदा अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम आदि प्रथम चार विधि आयोगों का परिणाम हैं।

स्वतंत्रता के बाद की गतिविधियाँ

  • स्वतंत्रता के बाद संविधान ने अनुच्छेद 372 के तहत संविधान पूर्व कानूनों को तब तक जारी रखना तय किया जब तक कि उनमें संशोधन न हो जाए या उन्हें रद्द न किया जाए ।
  • देश की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप सेवा करने हेतु विरासत में प्राप्त कानूनों में सुधार और उनको अद्यतन करने की सिफ़ारिश करने के लिये संसद के अंदर और बाहर एक केंद्रीय विधि आयोग गठित करने की मांग थी।
  • भारत सरकार ने स्वतंत्र भारत का प्रथम विधि आयोग वर्ष 1955 में भारत के तत्कालीन अटॉर्नी जनरल एम.सी. सीतलवाड की अध्यक्षता में गठित किया। तब से 21 से अधिक विधि आयोग गठित किये जा चुके हैं जिनमें से प्रत्येक का कार्यकाल 3 वर्ष था।
    • वर्ष 2020 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीन साल की अवधि के लिये भारत के 22वें विधि आयोग के गठन को मंज़ूरी दी।

विधि आयोग के कार्य

  • विधि आयोग केंद्र सरकार द्वारा इसे संदर्भित या स्वतः किसी मुद्दे पर कानून में शोध या भारत में विद्यमान कानूनों की समीक्षा तथा उनमें संशोधन करने और नया कानून बनाने हेतु सिफारिश करता है।
  • न्याय वितरण प्रणाली में सुधार लाने हेतु यह अध्ययन और शोध का कार्य भी करता है ताकि प्रक्रिया में देरी को समाप्त किया जा सके , मामलों का त्वरित निपटारा हो और मुकदमों के खर्च में कमी की जा सके।
  • अप्रचलित क़ानूनों की समीक्षा/निरसन: ऐसे क़ानूनों की पहचान करना जो अब प्रासंगिक न हों और अप्रचलित तथा अनावश्यक कानूनों के निरसन की सिफारिश करना।
  • कानून और गरीबी: गरीबों को प्रभावित करने वाले क़ानूनों का परीक्षण करता है और सामाजिक-आर्थिक विधानों के लिये पश्च लेखा-परीक्षा का कार्य करता है।
  • उन नए क़ानूनों के निर्माण का सुझाव देता है जो नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने और संविधान की प्रस्तावना में तय उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक हैं।
  • न्यायिक प्रशासन: कानून और न्यायिक प्रशासन से सम्बद्ध किसी विषय, जिसे कि सरकार ने विधि और न्याय मंत्रालय (विधि कार्य विभाग) के मार्फत विशेष रूप से विधि आयोग को संदर्भित किया हो, पर विचार करना और सरकार को इस पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करना।
  • शोध: किसी बाहरी देश को शोध उपलब्ध कराने हेतु निवेदन पर विचार करना जिसे कि सरकार ने विधि और न्याय मंत्रालय (विधि कार्य विभाग) के मार्फत इसे संदर्भित किया हो।
  • लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से मौजूदा कानूनों की जाँच करना और उनमें संशोधन सुझाना।
  • खाद्य सुरक्षा और बेरोज़गारी पर वैश्वीकरण के प्रभाव की जाँच करना और वंचित वर्ग के लोगों के हितों के लिये उपाय सुझाना।
  • समय-समय पर सभी मुद्दों, मामलों, अध्ययनों और अनुसंधानों, जो कि इसके द्वारा लिये गए थे, पर रिपोर्ट तैयार करना और केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करना तथा ऐसी रिपोर्टों में ऐसे प्रभावी उपायों की सिफारिश करना जिन्हें केंद्र और किसी राज्य द्वारा अपनाया जाना है।
  • ऐसे अन्य कार्यों का निष्पादन करना जिन्हें समय-समय पर केंद्र सरकार द्वारा इसे सौंपा जाए।
  • अपनी सिफ़ारिशों को ठोस रूप देने से पहले आयोग नोडल मंत्रालय/विभाग और ऐसे अन्य हितधारकों से परामर्श करता है जिसे कि आयोग इस उद्देश्य के लिये आवश्यक समझे।

विधि आयोग के प्रतिवेदन

भारत के विधि आयोग ने अभी तक विभिन्न मुद्दों पर 277 प्रतिवेदन (Reports) प्रस्तुत किये हैं, उनमें से कुछ अद्यतन प्रतिवेदन हैं: प्रतिवेदन संख्या 277 अनुचित तरीके से मुक़दमा चलाना (अदालत की गलती): कानूनी उपाय

  • प्रतिवेदन संख्या 276 – कानूनी संरचना: जुए और खेलों में दाँव जिसके तहत भारत में क्रिकेट में लगने वाले दाँव (Betting) भी शामिल है
  • प्रतिवेदन संख्या 275 – कानूनी संरचना: BCCI के रू-ब-रू सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
  • प्रतिवेदन संख्या 274 – न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की समीक्षा
  • प्रतिवेदन संख्या 273 – हिरासत में यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का कार्यान्वयन
  • प्रतिवेदन संख्या 272 – भारत में ट्रिब्यूनलों की वैधानिक संरचनाओं का आकलन
  • प्रतिवेदन संख्या 271 – ह्यूमन DNA प्रोफाइलिंग
  • प्रतिवेदन संख्या 270 – विवाहों का अनिवार्य पंजीकरण या अस्वीकार किया जा सकता है। इन सिफ़ारिशों पर कार्यवाही उन मंत्रालयों/विभागों पर निर्भर है जो सिफारिशों की विषय वस्तु से संबंधित हैं।

विधि आयोग में सुधारों की दरकार

20वें विधि आयोग के अध्यक्ष ए.पी. शाह ने विधि आयोग में कई सुधारों का समर्थन किया था, इनमें से प्रमुख हैं...

  • विधिक हैसियत: इस निकाय को स्वायत्त एवं सक्षम बनाने के लिये यह आवश्यक है कि इसे विधिक आयोग का दर्जा दिया जाए। अधिकांश देशों, विशेष रूप से पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों में विधि आयोग एक विधिक निकाय है। यदि इस आयोग को विधिक दर्जा दिया जाता है तो यह केवल संसद के प्रति जवाबदेह होगा, न कि कार्यपालिका के प्रति।
  • निरंतरता: किसी भी आयोग की कार्यक्षमता में सुधार हेतु निरंतरता बेहद आवश्यक होती है। विधि आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष का है, प्रत्येक कार्यकाल की समाप्ति और अगले आयोग की नियुक्ति के मध्य काफी अंतराल होता है। 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था, किंतु 22वें विधि आयोग का गठन अभी तक नहीं किया जा सका है।
  • नियुक्ति: विधि आयोग के सदस्यों की नियुक्ति केवल अध्यक्ष से परामर्श के पश्चात् ही की जानी चाहिये। वर्तमान व्यवस्था में सदस्यों की नियुक्ति को लेकर कई बार भेदभाव और पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं।
  • स्वायत्तता: वर्तमान व्यवस्था में विधि सचिव तथा विधायी विभाग के सचिव विधि आयोग के पदेन सदस्य होते हैं। इन आधिकारियों की आयोग में उपस्थिति इसकी स्वायत्तता को प्रभावित करती है। उपरोक्त आधिकारियों को इस आयोग का सदस्य नहीं होना चाहिये। हालाँकि यह भी ध्यान देने योग्य है कि ये विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिव होते हैं तथा विधि आयोग इस मंत्रालय के अधीन एवं सहयोग से कार्य करता है।

अब तक तीन-वर्षीय कार्यकाल वाले कुल 21 विधि आयोग गठित किये जा चुके हैं, जिनमें से 21वें विधि आयोग की कार्यावधि 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गई, लेकिन 22वें विधि आयोग का गठन अभी तक नहीं हो पाया है।

वैश्वीकरण और सतत विकसित हो रही सोसाइटियों के इस युग में, विधि आयोग उन क़ानूनों की पहचान करता है, जो कि वर्तमान वातावरण के अनुरूप नहीं हैं और जिनमें बदलाव की आवश्यकता है। यह नागरिकों की शिकायतों के तेज़ी से समाधान के लिये कानून के क्षेत्र में समुचित उपाय सुझाता है और कानूनी प्रक्रिया से गरीबों को लाभ देने के लिये सभी आवश्यक कदम उठाता है। वर्तमान समय में इसकी मौजूदगी और अधिक प्रासंगिक हो गई है।

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