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डेली न्यूज़

  • 05 Jun, 2025
  • 55 min read
आंतरिक सुरक्षा

भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

सैन्य नर्सिंग सेवा, इंडियन आर्मी मेडिकल कोर, भारतीय वायु सेना, अग्निपथ योजना

मेन्स के लिये:

भारत के रक्षा बलों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण, लड़ाकू भूमिकाओं में महिलाओं को शामिल करने की चुनौतियाँ

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

भारतीय सैन्य इतिहास में पहली बार 17 महिला कैडेट्स ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जो लैंगिक समावेशी सैन्य नेतृत्व की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है और भविष्य में महिला सेवा प्रमुखों के लिये मार्ग प्रशस्त करता है।

भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं का प्रवेश कैसे शुरू हुआ?

  • प्रारंभिक सैन्य भूमिका: महिलाओं ने पहली बार सैन्य सेवा में वर्ष 1888 में स्थापित सैन्य नर्सिंग सेवा के माध्यम से प्रवेश किया। इसके बाद वर्ष 1958 में इंडियन आर्मी मेडिकल कोर में शामिल हुईं, जहाँ महिला डॉक्टरों को नियमित कमीशन प्राप्त हुआ।
  • गैर-चिकित्सीय प्रवेश: महिलाओं के लिये गैर-चिकित्सीय भूमिकाओं की शुरुआत वर्ष 1992 में महिला विशेष प्रवेश योजना (WSES) के तहत हुई, जिसके अंतर्गत महिलाओं को शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारी के रूप में सेना की चयनित गैर-लड़ाकू शाखाओं जैसे- आर्मी एजुकेशन कोर, सिग्नल कोर, इंटेलिजेंस कोर और इंजीनियर्स कोर में शामिल किया गया।
  • कानूनी ढाँचा: भारतीय सेना में महिलाओं के प्रवेश को प्रारंभ में सेना अधिनियम, 1950 की धारा 12 के तहत नियंत्रित किया गया, जो सरकार द्वारा अधिसूचित विशिष्ट कोर/शाखाओं में ही महिलाओं को सेवा की अनुमति देता था।
    • सरकार ने समय-समय पर अधिसूचनाएँ जारी कर महिलाओं को आर्मी पोस्टल सर्विस, जज एडवोकेट जनरल (JAG) विभाग, आर्मी एजुकेशन कोर (AEC), ऑर्डनेंस कोर एवं सर्विस कोर जैसी शाखाओं में शामिल किया, पहले पाँच वर्षों के लिये और बाद में इसे इंजीनियर्स कोर तथा रिजीमेंट ऑफ आर्टिलरी तक विस्तारित किया गया।
  • WSES से SSC में परिवर्तन: प्रारंभ में महिलाएँ WSES के अंतर्गत शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में शामिल हुईं।
    • वर्ष 2005 में SSC प्रणाली को औपचारिक रूप से लागू किया गया, जिसमें महिला अधिकारियों को 14 वर्षों की सेवा अवधि प्रदान की गई, जिससे उनके सैन्य कॅरियर की संरचना अधिक व्यवस्थित हुई।
  • स्थायी कमीशन (पीसी) और न्यायिक हस्तक्षेप: वर्ष 2008 में महिलाओं को सबसे पहले JAG और AEC जैसी सीमित शाखाओं में स्थायी कमीशन (PC) प्रदान किया गया था।
    • बबीता पुनिया बनाम भारत सरकार (2020) के ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने उन सभी शाखाओं में PC अनिवार्य कर दिया जहाँ SSC की अनुमति है, जिससे महिलाएँ कमांड पदों तक पहुँच सकें।
    • न्यायालय ने कहा कि महिलाओं को PC न देना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और लिंग-आधारित भेदभाव को असंवैधानिक घोषित किया।
    • वर्ष 2015 में भारतीय वायुसेना ने महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में प्रायोगिक रूप से शामिल किया, जिसे वर्ष 2022 में स्थायी योजना के रूप में लागू कर दिया गया।
    • वर्ष 2022 से राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में महिला कैडेट्स का प्रवेश भी शुरू हुआ, जो सैन्य भूमिका में महिलाओं की कानूनी और प्रगतिशील भागीदारी का प्रतीक है।
  • महिला अग्निवीर: वर्ष 2022 में शुरू की गई अग्निपथ योजना के तहत महिलाओं को तीन सेवाओं (सेना, नौसेना और वायु सेना) में शामिल किया गया, जो भर्ती मानदंडों में एक आदर्श बदलाव का संकेत है।
  • सशस्त्र बलों में महिलाओं की वर्तमान स्थिति: भारत की दस लाख से अधिक सैनिकों वाली सेना में महिलाएँ लगभग 4% हैं, जबकि अमेरिका में यह आँकड़ा 16% है।
    • महिलाओं को सैनिक स्तर पर कॉर्प्स ऑफ मिलिट्री पुलिस में शामिल किया गया है, और वर्तमान में लगभग 1,700 महिला अधिकारी विभिन्न शाखाओं एवं सेवाओं में कार्यरत हैं। 
  • भारतीय वायु सेना ने वर्ष 2016 में महिलाओं को लड़ाकू पायलट के रूप में शामिल करना शुरू किया और अब महिलाओं को सभी लड़ाकू भूमिकाओं में अनुमति दी गई है।
  • वर्ष 2022 से नौसेना ने पनडुब्बी और विमानन सहित सभी शाखाओं को महिला अधिकारियों के लिये खोल दिया है तथा कई महिलाएँ पहले से ही जहाज़ों और युद्ध विमानन भूमिकाओं में सेवा दे रही हैं।
  • कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह सहित महिला अधिकारियों ने ऑपरेशन सिंदूर में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो सैन्य रणनीति में उनकी नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।
  • लेफ्टिनेंट कमांडर दिलना के. और रूपा ए. ने 25,600 नॉटिकल मील का अभियान, नाविका सागर परिक्रमा II पूरा किया, जिससे महिलाओं की समुद्री रक्षा में सहनशीलता साबित हुई।

नोट: भारतीय सशस्त्र बलों में अधिकारियों के लिये दो मुख्य मार्ग उपलब्ध हैं। SSC सीमित अवधि की सेवा प्रदान करता है, जो सामान्यतः 10 वर्षों की होती है और आवश्यकता पड़ने पर 4 वर्षों तक बढ़ाई जा सकती है, जबकि PC आजीवन सैन्य सेवा की प्रतिबद्धता प्रदान करता है, जो सेवानिवृत्ति तक जारी रहती है।

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि महिला अधिकारी, चाहे उनकी सेवा के कितने भी वर्ष हों, PC के लिये पात्र होनी चाहिये।

सशस्त्र बलों में महिलाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

  • शारीरिक मांग और प्रशिक्षण मानक: युद्ध भूमिकाओं में अक्सर उच्च शारीरिक सहनशक्ति और ताकत की आवश्यकता होती है, जो जैविक अंतर तथा वर्तमान प्रशिक्षण व्यवस्थाओं को देखते हुए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
    • कभी-कभी पुरुषों और महिलाओं के लिये प्रशिक्षण मानक भिन्न होते हैं, जिससे समानता बनाम संचालनात्मक प्रभावशीलता को लेकर बहस होती है।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक पूर्वाग्रह: सशस्त्र बलों के एक बड़े हिस्से के कर्मी रूढ़िवादी ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं, जहाँ पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ गहराई से समाई हुई होती हैं।
    • ऐसी मानसिकताएँ, विशेषकर नेतृत्व भूमिकाओं में महिला अधिकारियों के प्रति पूर्वाग्रह और विरोध का कारण बन सकती हैं। इससे उनकी अधिकारिता, मनोबल और कॅरियर विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो अंततः यूनिट की एकता एवं अनुशासन को प्रभावित करता है।
  • सीमित युद्ध भूमिका के अवसर: वर्ष 2020 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद, जिसमें महिलाओं को स्थायी कमीशन (PC) प्रदान किया गया था, उन्हें अब भी सेना में पैदल सेना, बख्तरबंद कोर और विशेष बलों जैसे कुछ अग्रिम मोर्चों की युद्ध शाखाओं में शामिल होने की अनुमति नहीं है।
    • यह बहिष्कार प्रमुख युद्ध अनुभव तक पहुँच को सीमित करता है, जो उच्चतर कमान और रणनीतिक नेतृत्व भूमिकाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण मापदंड है।
    • परिणामस्वरूप, यह अदृश्य बाधाएँ महिलाओं के कॅरियर में प्रगति को सीमित करती हैं, जिससे उच्च पदों और निर्णय-निर्माण की भूमिकाओं में उनकी भागीदारी कम हो जाती है।
  • कार्य-जीवन संतुलन और पारिवारिक प्रतिबंध: विवाह, गर्भावस्था और बाल देखभाल से जुड़ी समस्याएँ महिलाओं के कॅरियर की निरंतरता तथा तैनाती के विकल्पों को प्रभावित कर सकती हैं।
    • मातृत्व अवकाश, बाल देखभाल सुविधाओं और जीवनसाथी समर्थन के लिये पर्याप्त नीतियों का अभाव चिंता का विषय बना हुआ है।
    • भारत के केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों में महिलाओं की भागीदारी 2% से भी कम है, फिर भी आत्महत्या के मामलों में उनका योगदान 40% से अधिक है। यद्यपि उन्हें युद्धभूमि की भूमिकाओं में तैनात नहीं किया जाता, फिर भी महिलाएँ अत्यधिक तनाव का सामना करती हैं, जो अक्सर वैवाहिक कलह और परिवार एवं कर्त्तव्य के बीच संतुलन बनाए रखने से संबंधित होता है।
  • मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक दबाव: मुख्यतः पुरुषप्रधान कार्यस्थल में काम करने से महिलाओं को अकेलेपन और बढ़े हुए तनाव का अनुभव हो सकता है। उनके निर्णयों और व्यवहार पर सख्त निगरानी रखी जा सकती है, जिससे वे मानसिक थकान एवं भावनात्मक दबाव की स्थिति में आ जाती हैं।
  • बुनियादी ढाँचा और सुविधाएँ: लैंगिक-संवेदनशील स्वास्थ्य सेवाओं और परामर्श तक सीमित पहुँच के साथ-साथ कुछ यूनिटों में, विशेषकर क्षेत्रीय या दूर-दराज़ तैनाती वाले क्षेत्रों में, पृथक आवास, स्वच्छता और सफाई सुविधाओं की अनुपलब्धता भी एक प्रमुख चुनौती है।

सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता और परिचालन प्रभावशीलता को कैसे संतुलित किया जा सकता है?

  • प्रशिक्षण और संवेदनशीलता: शारीरिक अंतर को स्वीकार करते हुए भी प्रशिक्षण समान होना चाहिये, जिसमें परिचालन संबंधी आवश्यकताओं को सामान्य मापदंडों के बजाय भूमिका-विशिष्ट मानकों के माध्यम से पूरा किया जाए।
    • सभी रैंकों को अचेतन पूर्वाग्रह (अनकॉन्शियस बायस) को दूर करने और आपसी सम्मान व टीमवर्क की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
    • कमांड भूमिकाओं के लिये शारीरिक, मानसिक और नेतृत्व क्षमता पर आधारित स्पष्ट, लिंग-तटस्थ मानदंड स्थापित करना, साथ ही कठोर तथा मानकीकृत प्रशिक्षण सुनिश्चित करना चाहिये।
  • निगरानी और मूल्यांकन: सैन्य सेवाओं में भागीदारी, प्रतिधारण, पदोन्नति और कमांड नियुक्तियों की निगरानी के लिये एक जेंडर इक्वैलिटी इंडेक्स (लैंगिक समानता सूचकांक) स्थापित किया जाना चाहिये।
  • रोल मॉडल और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना: कैप्टन शिवा चौहान (सियाचिन में तैनात होने वाली पहली महिला अधिकारी) या फ्लाइट लेफ्टिनेंट अवनी चतुर्वेदी (भारतीय वायुसेना की फाइटर पायलट) जैसी अधिकारियों की उपलब्धियों का सम्मान करने से परिवर्तन को प्रेरणा मिलती है तथा वर्दीधारी सेवाओं में महिलाओं के नेतृत्व को सामान्य बनाने में मदद मिलती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का लाभ उठाना: इज़रायल रक्षा बल (IDF) मिक्स्ड-जेंडर बटालियन मॉडल का उपयोग करता है, जिसमें व्यक्तिगत क्षमता के आधार पर भूमिकाएँ निर्धारित की जाती हैं। अमेरिकी सेना भूमिका-विशिष्ट शारीरिक परीक्षणों का उपयोग करती है तथा वर्ष 2015 से महिलाओं को लगभग सभी लड़ाकू भूमिकाओं में शामिल किया गया। 
  • भारत को अपने विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक और रणनीतिक संदर्भ पर विचार करते हुए इन मॉडलों को अपनाना चाहिये।
    • सैन्य अभ्यास अन्य देशों से अनुभव प्राप्त करने के लिये एक मूल्यवान मंच प्रदान करते हैं। शांति अभियानों में महिलाओं को तैनात करके, सशस्त्र बल अपने कौशल तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा दे सकते हैं। 
      • भारत पहला देश है जिसने वर्ष 2007 से 2016 तक शांति मिशन (लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNMIL)) में पूर्णतः महिला पुलिस इकाई तैनात की है।
  • सांस्कृतिक संवेदनशीलता: महिला नेताओं की स्वीकार्यता को बढ़ावा देने के लिये लिंग संवेदनशीलता शिविर, अंतर-इकाई प्रतियोगिताएँ और मार्गदर्शन पहल जैसे कार्यक्रमों को लागू करना।
    • ये प्रयास पेशेवर, सम्मानजनक माहौल को बढ़ावा देते हैं तथा रूढ़िवादिता का खंडन करने में मदद करते हैं। इस तरह के उपाय सशस्त्र बलों में टीमवर्क और परिचालन प्रभावशीलता को बढ़ाते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के तहत लैंगिक समानता और सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका के विषयों को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये, ताकि कम उम्र से ही बच्चों को शिक्षित किया जा सके तथा युवा लड़कियों को सेना में कॅरियर बनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सके।
  • सुरक्षा और समानता में संतुलन: राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए परिचालन दक्षता के आधार पर निर्णय लेना, साथ ही लैंगिक समानता को धीरे-धीरे आगे बढ़ाना चाहिये।
  • व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान: महिलाओं के लिये बायोडिग्रेडेबल विकल्पों वाले शौचालय और सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन उपलब्ध कराना चाहिये।
  • क्रेच (शिशु देखभाल) सुविधाएँ और नियमित काउंसलिंग सत्र महिला कर्मियों की भलाई तथा कार्य-जीवन संतुलन को सहारा दे सकते हैं। ये उपाय एक सुरक्षित, अधिक समावेशी वातावरण बनाते हैं, जो लैंगिक समानता के लिये आवश्यक है।

निष्कर्ष

समावेशी सशस्त्र बलों की ओर भारत की यात्रा बढ़ती राष्ट्रीय शक्ति और सार्वजनिक सेवा के प्रत्येक क्षेत्र में नारी शक्ति को सशक्त बनाने के संकल्प का प्रतिबिंब है। आने वाले वर्षों में आत्मनिर्भर भारत के लिये एक आत्मविश्वासी, सक्षम और समावेशी सैन्य नेतृत्व आवश्यक होगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं तथा परिचालन प्रभावशीलता बनाए रखते हुए इनका समाधान कैसे किया जा सकता है? 

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:  

प्रश्न. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019)


प्रश्न. विविधता, समानता और समावेश सुनिश्चित करने के लिये उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021)


जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व पर्यावरण दिवस 2025

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व पर्यावरण दिवस, एक पेड़ माँ के नाम, अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट, संयुक्त राष्ट्र महासभा ,स्टॉकहोम कन्वेंशन, माइक्रोप्लास्टिक, अरावली पर्वत शृंखला,  मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024, विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR), सिंगल यूज़ प्लास्टिक (SUP), पायरोलिसिस।        

मेन्स के लिये:

विश्व पर्यावरण दिवस, प्लास्टिक प्रदूषण और पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव, प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिये आवश्यक उपाय।

स्रोत: इंडियन एक्प्रेस

चर्चा में क्यों?

विश्व पर्यावरण दिवस (WED) 5 जून, 2025 को मनाया गया, जिसकी वैश्विक मेज़बानी दक्षिण कोरिया (कोरिया गणराज्य) द्वारा की गई।

विश्व पर्यावरण दिवस 2025 क्या है?

  • विषय: विश्व पर्यावरण दिवस WED की स्थापना वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा द्वारा की गई थी, जिसकी पहली बार चर्चा मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन द्वारा आयोजित पर्यावरणीय मुद्दों पर केंद्रित पहले प्रमुख वैश्विक शिखर सम्मेलन में की गई थी। 
    • वर्ष 1973 में अपनी स्थापना दिवस के बाद से इस आयोजन का नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा किया जाता है।
    • यह ऐतिहासिक सम्मेलन वैश्विक रूप से पर्यावरण संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • थीम: "प्लास्टिक प्रदूषण को हराना (Beat Plastic Pollution)" थीम का उद्देश्य प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और निपटान के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा प्लास्टिक के उपयोग को मना करना (Refuse), कम करना (Reduce), पुनः उपयोग करना (Reuse) और रीसायकल (Recycle) करने जैसे समाधानों को बढ़ावा देना है।
  • महत्त्व: प्लास्टिक प्रदूषण, प्रदूषण को बढ़ाता है, जैवविविधता की हानि और जलवायु परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रत्येक वर्ष 11 मिलियन टन प्लास्टिक जल निकायों में प्रवेश करता है, जबकि लैंडफिल और सीवेज़ से निकलने वाले माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी को प्रदूषित करते हैं।
    • प्लास्टिक प्रदूषण की वैश्विक लागत प्रतिवर्ष 300-600 बिलियन अमेरिकी डॉलर आँकी गई है। भारत प्रत्येक वर्ष लगभग 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जो वैश्विक कुल कचरा अपशिष्ट का लगभग 20% है।
    • ईंधन जलाने से प्रतिवर्ष 5.8 मिलियन टन से अधिक विषैले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं।

'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान

  • परिचय: इस पहल का उद्देश्य माताओं के नाम पर पेड़ लगाकर उन्हें सम्मानित करना है, जो पर्यावरण संरक्षण और मातृत्व के प्रति श्रद्धांजलि को एक साथ जोड़ती है। यह इस बात का प्रतीक है कि जिस तरह पेड़ जीवन को पोषित और पालते हैं, ठीक वैसे ही माताएँ भी करती हैं।
    • इस पहल की शुरुआत विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून, 2024 को प्रधानमंत्री द्वारा की गई थी।
  • उद्देश्य: पर्यावरण संरक्षण और वन क्षेत्र को बढ़ाना तथा माताओं को सम्मान देते हुए सतत् विकास का समर्थन करना है।
  • विश्व रिकॉर्ड उपलब्धि: 22 सितंबर, 2024 को, प्रादेशिक सेना की 128 इन्फैंट्री बटालियन और पारिस्थितिक कार्य बल ने जैसलमेर में एक घंटे में 5 लाख से अधिक पौधे लगाए।

अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट 

  • परिचय: इसका उद्देश्य हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली राज्यों में फैली अरावली पर्वत शृंखला के चारों ओर 1,400 किलोमीटर लंबी तथा  5 किलोमीटर चौड़ी एक हरित पट्टी (ग्रीन बेल्ट) बफर क्षेत्र की स्थापना करना है।
    • यह अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित है जो पश्चिम में सेनेगल से पूर्व में जिबूती तक फैली हुई है और वर्ष 2007 में शुरू की गई थी।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य भूमि क्षरण और थार रेगिस्तान के पूर्व की ओर विस्तार को रोकना है। इसके लिये अरावली पर्वतमाला के साथ पोरबंदर से पानीपत तक एक हरित पट्टी (ग्रीन बेल्ट) का निर्माण किया जाएगा।
    • यह वनीकरण प्रयास क्षतिग्रस्त भूमि को पुनःस्थापित करेगा, पश्चिमी भारत और पाकिस्तान से आने वाली रेतीली धूल को रोकने में सहायता करेगा, जैवविविधता को बढ़ाएगा तथा कार्बन अवशोषण, वन्यजीव आवास एवं जल गुणवत्ता जैसी पारिस्थितिकीय सेवाओं को बेहतर बनाएगा।
  • आवश्यकता: ISRO द्वारा प्रकाशित डेजर्टिफिकेशन एंड लैंड डिग्रेडेशन एटलस के अनुसार, वर्ष 2018-19 में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र (328.72 मिलियन हेक्टेयर) का लगभग 97.85 मिलियन हेक्टेयर (29.7%) क्षेत्र भूमि क्षरण से प्रभावित था।
    • अरावली एक प्रमुख क्षीण क्षेत्र है, जिसे भारत द्वारा 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि पुनर्स्थापन लक्ष्य के अंतर्गत हरा-भरा बनाने के लिये लक्षित किया गया है।

भारत में उच्च प्लास्टिक प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं?

  • उच्च प्लास्टिक खपत: भारत प्रतिवर्ष लगभग 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जिसमें प्रति व्यक्ति खपत लगभग 11 किलोग्राम है। यह औद्योगिकीकरण और उपभोक्तावाद के बढ़ने के कारण है।
    • परिणामस्वरूप, भारत विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण फैलाने वाले शीर्ष 10 देशों में शामिल है।
  • कुप्रबंधित अपशिष्ट प्रबंधन: भारत में केवल 15-20% प्लास्टिक अपशिष्ट का ही पुनर्चक्रण किया जाता है, जबकि शेष अपशिष्ट लैंडफिल, जल निकायों में डाल दिया जाता है या जला दिया जाता है
    • अधिकांश पुनर्चक्रण अनौपचारिक है, जिसमें 90% अपशिष्ट बीनने वालों द्वारा किया जाता है, जो असुरक्षित परिस्थितियों में कार्य करते हैं।
  • सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का प्रभुत्व: वर्ष 2023 में भारत के कुल प्लास्टिक अपशिष्ट का लगभग 43% (लगभग 4.07 मिलियन टन) सिंगल-यूज़ प्लास्टिक था। हालाँकि कुछ राज्यों में इन पर प्रतिबंध है, लेकिन प्रवर्तन कमज़ोर है और विकल्प या तो महँगे हैं या उपलब्ध नहीं है।
  • नदियों और महासागरों में प्लास्टिक कचरा: नदियों और महासागरों में प्लास्टिक अपशिष्ट: विश्व की शीर्ष दस नदियों में से तीन, गंगा, सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र, जो 90% प्लास्टिक अपशिष्ट लाती हैं, भारत में हैं। देश प्रतिवर्ष महासागरों में 0.6 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट छोड़ता है।
  • तीव्र शहरीकरण: टियर 1 शहरों से निकलने वाला अपशिष्ट भारत के दैनिक अपशिष्ट का 72.5% है। बंगलूरू और मुंबई जैसे शहरों में, जहाँ दैनिक अपशिष्ट 9,000 टन से अधिक है, प्लास्टिक प्रदूषण नियोजन, डिज़ाइन और शासन में संरचनात्मक विफलता को दर्शाता है। 
    • कई उपभोक्ता और छोटे व्यवसाय सतत् विकल्पों तथा उचित निपटान विधियों के प्रति जागरूक नहीं हैं।

भारत में कुप्रबंधित प्लास्टिक अपशिष्ट से जुड़े मुद्दे क्या हैं?

  • पर्यावरणीय क्षरण: लैंडफिल में डाला गया प्लास्टिक अपशिष्ट फ्थालेट्स और बिस्फेनॉल-A (BPA) जैसे विषैले रसायन उत्सर्जित करता है, जो कृषि को प्रभावित करते हैं।
    • प्लास्टिक को जलाने पर डाइऑक्सिन और हैवी मेटल्स निकलते हैं, जो कृषि भूमि को प्रदूषित करते हैं।
    • नदियों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक जलीय जीवों को नुकसान पहुँचाते हैं, जबकि आवारा पशु तथा समुद्री जीव प्लास्टिक खा लेते हैं, जिससे उनकी आँतों में रुकावट आती है और मृत्यु हो सकती है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट खुले में जलाया जाता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों तथा शहरी झुग्गियों में, जिससे डाइऑक्सिन और फ्यूरांस जैसे कैंसरकारी पदार्थ निकलते हैं।
    • भारतीय नमक, समुद्री भोजन और पेयजल में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं।
    • इसके अतिरिक्त, प्लास्टिक अपशिष्ट से नालियाँ जाम हो जाती हैं, जिससे रुका हुआ पानी मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के प्रकोप को बढ़ाता है।
  • आर्थिक लागत: FICCI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक प्लास्टिक पैकेजिंग से 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की भौतिक कीमत की हानि हो सकती है, जिसमें से 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि एकत्रित न किये गए प्लास्टिक अपशिष्ट के कारण होगी। 
    • प्लास्टिक से प्रदूषित समुद्र तट पर्यटकों को हतोत्साहित करते हैं, जिससे तटीय अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होता है। नगर निगम प्रतिवर्ष नालों की सफाई पर ₹1,500–2,000 करोड़ खर्च करते हैं। 

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नियम क्या हैं?

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को मज़बूत करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • नीति और प्रवर्तन को सशक्त करना: एकल-प्रयोग प्लास्टिक वस्तुओं पर वर्ष 2022 में लगाए गए प्रतिबंध को सख्ती से लागू किया जाए तथा उल्लंघनकर्त्ताओं पर कठोर दंड लगाए जाने चाहिये।
    • वर्ष 2022 के विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) नियमों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए, जिनके तहत FMCG और ई-कॉमर्स ब्रांडों को अपने प्लास्टिक अपशिष्ट को एकत्रित कर पुनः चक्रित करना अनिवार्य है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना में सुधार करना: भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट के पुनर्चक्रण की दर 60% से घटकर केवल 15–20% तक आ गई है, जो यह दर्शाता है कि अधिक मटेरियल रिकवरी फैसिलिटीज़ (MRF) की आवश्यकता है। 
    • कचरा बीनने वालों को उचित पारिश्रमिक और सुरक्षा उपकरणों के साथ औपचारिक प्रणाली में शामिल करना—जैसा कि पुणे की SWaCH सहकारी संस्था में देखा गया है—प्रभावशीलता को बेहतर बना सकता है।
  • प्लास्टिक उपयोग में कमी और विकल्पों को बढ़ावा देना: एकल-प्रयोग प्लास्टिक (SUP) पर अधिक कर लगाए जाने चाहिये और सतत् विकल्पों को प्रोत्साहित करना चाहिये। बाँस/कपड़े के थैलों, खाने योग्य कटलरी (जैसे मिलेट से बने चम्मच) और बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग (जैसे इकोवेयर के पौधों पर आधारित कंटेनर) के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
  • सार्वजनिक जागरूकता और व्यवहार में बदलाव: स्वच्छ भारत मिशन को सामुदायिक और विद्यालय स्तर के कार्यक्रमों के माध्यम से प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रति जागरूकता को सम्मिलित करना चाहिये।
    • दिल्ली में "प्लास्टिक लाओ, थैला पाओ" जैसे अभियान प्लास्टिक अपशिष्ट के बदले राशन सामग्री प्रदान करते हैं।
    • विद्यालयों में 3R (रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकिल) की शिक्षा दी जानी चाहिये, जैसा कि गुजरात के "प्लास्टिक वेस्ट फ्री स्कूल्स" पहल में किया जाता है।
  • प्रौद्योगिकी एवं नवाचारात्मक समाधान: पुणे की रुद्र एनवायर्नमेंटल सॉल्यूशंस जैसी पायरोलिसिस संयंत्र गैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक को डीज़ल में परिवर्तित करती हैं, जो एक सतत् निपटान विधि प्रदान करती है।
    • इसके अतिरिक्त, भारत ने कम-से-कम 11 राज्यों में प्लास्टिक अपशिष्ट का उपयोग करके एक लाख किलोमीटर से अधिक सड़कें बनाई हैं, जो नवाचारपूर्ण पुन: उपयोग का एक दृष्टांत प्रस्तुत करती है।

निष्कर्ष

विश्व पर्यावरण दिवस 2025 में प्लास्टिक अपशिष्ट के खिलाफ वैश्विक और स्थानीय स्तर पर त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता को प्रमुखता दी गई है। भारत का ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान और अरावली ग्रीन वॉल परियोजना स्थिरता के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है, लेकिन प्लास्टिक प्रदूषण तथा पर्यावरणीय क्षरण से प्रभावी रूप से मुकाबला करने के लिये मज़बूत नीतियाँ, जनता की भागीदारी एवं नवाचार अत्यंत आवश्यक हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: समाज में प्लास्टिक अपशिष्ट के कुप्रबंधन का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या है? इस समस्या के समाधान के लिये कौन-से नीतिगत उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्व' आरंभ किया गया था?

(a)जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998

(b)पुनर्चक्रित प्लास्टिक (निर्माण और उपयोग) नियम, 1999

(c) ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 2011

(d)खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011

उत्तर: (c) 


मेन्स

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)


शासन व्यवस्था

DPDP अधिनियम, 2023 और DPDP नियम, 2025

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियम, 2025 का प्रारूप, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023, निजता का अधिकार, अनुच्छेद 21, के.एस. पुट्टस्वामी निर्णय, सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR), भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड (DPBI), दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण, डेटा फिड्यूशरी, MSME।   

मेन्स के लिये:

भारत में डेटा गोपनीयता और डेटा संरक्षण कानून, डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 के प्रमुख प्रावधान तथा डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियम, 2025 का प्रारूप।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 को लागू करने के लिये डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियम, 2025 के प्रारूप पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया आमंत्रित की है।

  • वर्तमान में हितधारकों से प्राप्त सुझावों की समीक्षा की जा रही है और अंतिम नियमों को शीघ्र ही लागू किये जाने की संभावना है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 क्या है?

  • परिचय: यह भारत का पहला व्यापक डेटा संरक्षण कानून है, जो डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के प्रबंधन के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत निजता की रक्षा करते हुए वैध डेटा प्रसंस्करण की अनुमति देना है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2017 के के.एस. पुट्टस्वामी निर्णय के लगभग 6 वर्ष बाद अधिनियमित, जिसमें अनुच्छेद 21 के तहत निजता को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी, यह अधिनियम गोपनीयता और डेटा संरक्षण दायित्वों को रेखांकित करने के लिये यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) जैसे वैश्विक ढाँचे से प्रेरित है।
  • प्रयोज्यता: यह अधिनियम भारत के भीतर संसाधित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा पर लागू होता है, चाहे वह डिजिटल रूप से एकत्र किया गया हो या बाद में डिजिटाइज़ किया गया हो। इसके अतिरिक्त, यदि भारत में वस्तुएँ या सेवाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से भारत के बाहर डेटा का संसाधन किया जाता है, तो वह भी इस अधिनियम के अंतर्गत आता है।
    • यह अधिनियम उन व्यक्तिगत डेटा पर लागू नहीं होता जो व्यक्तिगत कार्यों के लिये उपयोग किये जा रहे हों या जो डेटा प्रिंसिपल द्वारा सार्वजनिक किये गए हों अथवा किसी विधिक दायित्व के अंतर्गत सार्वजनिक किये गए हों।
  • सहमति: व्यक्तिगत डेटा को केवल किसी वैध उद्देश्य के लिये डेटा प्रिंसिपल की सहमति से ही संसाधित किया जा सकता है, जिसे वह किसी भी समय वापस ले सकता है। बच्चों या दिव्यांग व्यक्तियों के मामले में, यह सहमति उनके माता-पिता या विधिक अभिभावक द्वारा दी जानी चाहिये।
    • DPDP अधिनियम, 2023 की धारा 9 के तहत, बच्चों के डेटा को संसाधित करने से पहले सत्यापित अभिभावकीय सहमति अनिवार्य है तथा यह 18 वर्ष से कम आयु के अवयस्कों के विरुद्ध हानिकारक प्रोसेसिंग और लक्षित विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है।
    • किसी भी उपयोगकर्त्ता जिसकी आयु 18 वर्ष से कम हो, उसे इस अधिनियम के तहत बालक माना गया है।
    • वैध उपयोग जैसे सरकारी सेवाओं या चिकित्सा आपात स्थितियों के लिये सहमति आवश्यक नहीं होती।
  • डेटा प्रिंसिपल के अधिकार और कर्त्तव्य: डेटा प्रिंसिपल (वे व्यक्ति जिनके व्यक्तिगत डेटा का प्रसंस्करण किया जा रहा है) को जानकारी प्राप्त करने, सुधार या हटाने का अनुरोध करने, शिकायत निवारण मांगने और मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में प्रतिनिधि नामित करने का अधिकार होता है।
    • उन्हें झूठी शिकायतें या गलत जानकारी देने से बचना चाहिये और उल्लंघन करने पर ₹10,000 तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।
  • डेटा फिड्युशरीज़ के दायित्व: डेटा फिड्युशरीज़ (वे संस्थाएँ या संगठन जो किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा को एकत्रित, संग्रहित, संसाधित या उपयोग करते हैं) को डेटा की सटीकता सुनिश्चित करनी चाहिये, सुरक्षा उपाय लागू करने चाहिये ताकि डेटा उल्लंघनों को रोका जा सके और यदि कोई उल्लंघन होता है तो डेटा प्रिंसिपल, DPBI और प्रभावित व्यक्तियों को सूचित करना अनिवार्य है।
  • जब उद्देश्य पूरा हो जाए और उसे बनाए रखना कानूनी रूप से आवश्यक न रह जाए, तो व्यक्तिगत डेटा को समाप्त करना भी आवश्यक है।
  • डेटा फिड्युशरीज़ (SDF): केंद्र सरकार डेटा की मात्रा, संवेदनशीलता, व्यक्तिगत अधिकारों के लिये जोखिम और राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता, लोकतंत्र तथा सार्वजनिक व्यवस्था के लिये खतरों जैसे कारकों के आधार पर कुछ डेटा फिड्युशरीज़ को SDF के रूप में नामित कर सकती है।
    • SDF के अतिरिक्त दायित्व है- एक डेटा संरक्षण अधिकारी नियुक्त करना, स्वतंत्र ऑडिटर की नियुक्ति करना, डेटा प्रभाव आकलन (डेटा प्रोटेक्शन इम्पैक्ट असेसमेंट) करना आदि।
  • छूट: डेटा प्रिंसिपल के अधिकार और डेटा फिड्युशरीज़ के दायित्व (डेटा सुरक्षा को छोड़कर) निर्दिष्ट मामलों में लागू नहीं होंगे, जिनमें शामिल हैं:
    • अधिसूचित एजेंसियों के लिये, सुरक्षा, संप्रभुता, सार्वजनिक व्यवस्था आदि के हित में।
    • अनुसंधान, संग्रहण या सांख्यिकीय प्रयोजनों के लिये।
    • स्टार्ट-अप्स या अन्य अधिसूचित श्रेणियों के लिये।
    • कानूनी अधिकारों या दावों को लागू करने या अपराधों की रोकथाम/जाँच के लिये।
    • न्यायिक या नियामक कार्यों के निष्पादन के लिये।
    • भारत में गैर-निवासियों के डेटा का विदेशी अनुबंध के तहत प्रसंस्करण।
  • भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड (DPBI): अधिनियम में केंद्र सरकार द्वारा DPBI की स्थापना का प्रावधान है, जिसके सदस्यों की नियुक्ति दो वर्ष के लिये की जाती है तथा वे पुनर्नियुक्ति के पात्र होते हैं।
  • इसके कार्यों में अनुपालन की निगरानी, ज़ुर्माना लगाना, डेटा उल्लंघन प्रतिक्रियाओं को संभालना, शिकायतों की सुनवाई करना शामिल है तथा इसकी दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण में अपील की जा सकती है।

नोट: DPBI अधिनियम की धारा 44(3) के द्वारा RTI अधिनियम की धारा 8(1)(Z) में संशोधन कर "व्यापक सार्वजनिक हित" परीक्षण को हटा दिया गया है। सरकारी संस्थाएँ व्यक्तिगत डेटा को सिर्फ "निजी जानकारी" बताकर RTI आवेदन में छुपा सकती हैं, भले ही उसका खुलासा जनहित में क्यों न हो।

मसौदा DPDP नियम, 2025 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • डेटा स्थानांतरण: सरकार द्वारा अनुमोदित नियम कुछ व्यक्तिगत डेटा को भारत के बाहर स्थानांतरित करने की अनुमति देते हैं।
  • डेटा विलोपन: डेटा को डेटा प्रिंसिपल के साथ अंतिम संवाद या नियमों की प्रभावी तिथि, जो भी बाद में हो, से तीन वर्ष तक बनाए रखने की अनुमति है।
    • डेटा फिड्युशरीज़ को डेटा समाप्त से कम-से-कम 48 घंटे पहले डेटा प्रिंसिपल (उपयोगकर्त्ता) को सूचित करना होगा।
  • डिजिटल-फर्स्ट दृष्टिकोण: नियमों में ऑनलाइन शिकायतों और शिकायतों के तीव्र समाधान के लिये सहमति तंत्र तथा शिकायत निवारण हेतु "डिजिटल डिज़ाइन" वाले भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड (DPBI) की भी स्थापना की गई है।
  • श्रेणीबद्ध ज़िम्मेदारियाँ: श्रेणीबद्ध ज़िम्मेदारियाँ स्टार्टअप्स और MSME को कम अनुपालन बोझ के साथ प्रदान की जाती हैं, जबकि महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्युशरीज़ के दायित्व अधिक होते हैं।
    • फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, अमेज़ॉन, फ्लिपकार्ट, नेटफ्लिक्स जैसे बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म्स महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्यूशियरी माने जाएंगे।
  • सहमति प्रबंधक: डिजिटल प्लेटफॉर्म सहमति प्रबंधकों के माध्यम से भी सहमति एकत्र कर सकता है।
  • सहमति प्रबंधक एक भारतीय कंपनी होनी चाहिये जिसकी न्यूनतम निवल संपत्ति 2 करोड़ रुपए हो, जो डेटा गोपनीयता और डिजिटल इंटरैक्शन में उपयोगकर्त्ता की सहमति के संग्रह, भंडारण एवं उपयोग के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार हो।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • राज्य को अत्यधिक छूट: यह अधिनियम राज्य को अनेक छूट प्रदान करता है, जिससे वह आवश्यकता से अधिक डेटा का संग्रहण, प्रसंस्करण और संरक्षण कर सकता है, जो गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
  • महत्त्वपूर्ण डेटा अधिकारों का अभाव: अधिनियम में डेटा पोर्टेबिलिटी (किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत डेटा प्राप्त करने और स्थानांतरित करने का अधिकार) जैसे आवश्यक अधिकारों का अभाव है।
  • अप्रतिबंधित सीमा पार डेटा प्रवाह: यह अधिकांश देशों में व्यक्तिगत डेटा के मुक्त हस्तांतरण की अनुमति प्रदान करता है, जिसमें केवल सरकार के विवेक पर प्रतिबंध होता है- जिससे डेटा सुरक्षा और संप्रभुता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • हानि निवारण उपायों का अभाव: इस कानून में आइडेंटिटी थेफ्ट, वित्तीय धोखाधड़ी या डिस्क्रिमिनेट्री प्रोफाइलिंग जैसी संभावित हानियों को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया है, जिससे डेटा प्रिंसिपल (उपयोगकर्त्ता) जोखिम में रहते हैं।

DPDP अधिनियम, 2023 को सशक्त बनाने के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • छूट प्रावधानों को स्पष्ट करें: भारत की संप्रभुता और अखंडता जैसे शब्दों की स्पष्ट परिभाषाएँ प्रदान की जाएँ तथा DPDP अधिनियम, 2023 के तहत छूट देने की एक पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित की जाए।
  • द्विपक्षीय डेटा समझौतों को बढ़ावा देना: प्रतिबंधात्मक या अलगाववादी नीतियों को अपनाने के बजाय सुरक्षित डेटा विनिमय की सुविधा के लिये द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों का समर्थन करना चाहिये।
  • विनियामक लचीलापन सुनिश्चित करें: एक गतिशील और अनुकूली विनियामक ढाँचा विकसित करना जो उभरती प्रौद्योगिकियों तथा नई गोपनीयता चुनौतियों के साथ विकसित हो।
    • AI से जुड़े जोखिमों की सक्रिय रूप से पहचान करने और उत्तरदायी डेटा सुरक्षा रणनीतियों का सह-विकास करने के लिये एक विशेष कार्य बल का गठन करना।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: सुरक्षित और विश्वसनीय सीमा-पार डेटा स्थानांतरण को सक्षम करने के लिये यूरोपीय संघ-अमेरिका डेटा गोपनीयता ढाँचे जैसे अंतर्राष्ट्रीय मॉडलों से सीख को एकीकृत करना।

भारत में निजता के अधिकार का विकास

  • ए.के. गोपालन मामला, 1950: सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार से संबंधित तर्क को खारिज कर दिया।
  • खड़क सिंह मामला, 1962: यह पहला अवसर था जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार के आधार पर राहत प्रदान की, हालाँकि उस समय इसे मौलिक अधिकार के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी गई थी।
  • ए.पी. शाह समिति, 2011: इस समिति ने व्यापक निजता कानून की सिफारिश की, जिसमें निजता और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिये एक एकीकृत कानून बनाने का सुझाव दिया गया, जो सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्रों में लागू हो।
  • बी.एन. श्रीकृष्ण समिति, 2017: इसने भारत में मज़बूत निजता कानूनों की सिफारिश की, जिनमें डेटा प्रोसेसिंग पर प्रतिबंध, डेटा संरक्षण प्राधिकरण, विस्मृति (भूल जाने) का अधिकार और डेटा स्थानीयकरण शामिल हैं।
  • न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ मामला, 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया कि निजता का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है तथा यह अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।

डेटा गवर्नेंस पर वैश्विक प्रथाएँ

  • यूरोपीय संघ (EU): यूरोपीय संघ का जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) एक व्यापक कानून है जो व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा करता है। यह निजता को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है, जो व्यक्ति की गरिमा और उनकी व्यक्तिगत जानकारी पर नियंत्रण को सुरक्षित करता है।
  • चीन: डेटा सुरक्षा कानून (Data Security Law - DSL) व्यापार डेटा को उसकी महत्ता के आधार पर वर्गीकृत करना अनिवार्य करता है और सीमा पार डेटा ट्रांसफर पर नए प्रतिबंध लगाता है।
    • व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून (PIPL) चीन के नागरिकों को अपने व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग को रोकने के नए अधिकार प्रदान करता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका में EU के GDPR जैसा कोई समग्र निजता कानून नहीं है। इसके बजाय यह क्षेत्र-विशिष्ट विनियमों पर निर्भर करता है। सरकार द्वारा डेटा उपयोग को निजता अधिनियम जैसे व्यापक कानूनों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जबकि निजी क्षेत्र में सीमित और विशिष्ट उद्योगों के लिये बने नियम लागू होते हैं।

निष्कर्ष

DPDP अधिनियम, 2023 भारत का पहला व्यापक डेटा सुरक्षा ढाँचा स्थापित करता है जो निजता अधिकारों को वैध डेटा प्रोसेसिंग के साथ संतुलित करता है। वर्ष 2025 के मसौदा नियम अनुपालन को बढ़ाते हैं, डिजिटल शिकायत निवारण की शुरुआत करते हैं और स्थानीय आवश्यकताओं को संबोधित करते हुए यूरोपीय संघ के GDPR जैसे वैश्विक मानकों के साथ संरेखित करते हुए सीमा पार डेटा प्रवाह की अनुमति देते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: अनुच्छेद 21 के तहत निजता के मौलिक अधिकार की सुरक्षा में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है? (2021)

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)

प्रश्न. निजता के अधिकार को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित किया गया है। भारत के संविधान में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा उपर्युक्त वाक्य को सही एवं उचित रूप से लागू करता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रावधान।
(b) अनुच्छेद 17 और भाग IV में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत।
(c) अनुच्छेद 21 और भाग III में गारंटीकृत स्वतंत्रता।
(d) अनुच्छेद 24 और संविधान के 44वें संशोधन के तहत प्रावधान।

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जाँच कीजिये। (2017)

प्रश्न. डिजिटल व्यक्ति डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के संदर्भ तथा प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये। (2024)


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