आंतरिक सुरक्षा
भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाएँ
- 05 Jun 2025
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:सैन्य नर्सिंग सेवा, इंडियन आर्मी मेडिकल कोर, भारतीय वायु सेना, अग्निपथ योजना मेन्स के लिये:भारत के रक्षा बलों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण, लड़ाकू भूमिकाओं में महिलाओं को शामिल करने की चुनौतियाँ |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
भारतीय सैन्य इतिहास में पहली बार 17 महिला कैडेट्स ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जो लैंगिक समावेशी सैन्य नेतृत्व की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है और भविष्य में महिला सेवा प्रमुखों के लिये मार्ग प्रशस्त करता है।
भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं का प्रवेश कैसे शुरू हुआ?
- प्रारंभिक सैन्य भूमिका: महिलाओं ने पहली बार सैन्य सेवा में वर्ष 1888 में स्थापित सैन्य नर्सिंग सेवा के माध्यम से प्रवेश किया। इसके बाद वर्ष 1958 में इंडियन आर्मी मेडिकल कोर में शामिल हुईं, जहाँ महिला डॉक्टरों को नियमित कमीशन प्राप्त हुआ।
- गैर-चिकित्सीय प्रवेश: महिलाओं के लिये गैर-चिकित्सीय भूमिकाओं की शुरुआत वर्ष 1992 में महिला विशेष प्रवेश योजना (WSES) के तहत हुई, जिसके अंतर्गत महिलाओं को शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारी के रूप में सेना की चयनित गैर-लड़ाकू शाखाओं जैसे- आर्मी एजुकेशन कोर, सिग्नल कोर, इंटेलिजेंस कोर और इंजीनियर्स कोर में शामिल किया गया।
- कानूनी ढाँचा: भारतीय सेना में महिलाओं के प्रवेश को प्रारंभ में सेना अधिनियम, 1950 की धारा 12 के तहत नियंत्रित किया गया, जो सरकार द्वारा अधिसूचित विशिष्ट कोर/शाखाओं में ही महिलाओं को सेवा की अनुमति देता था।
- सरकार ने समय-समय पर अधिसूचनाएँ जारी कर महिलाओं को आर्मी पोस्टल सर्विस, जज एडवोकेट जनरल (JAG) विभाग, आर्मी एजुकेशन कोर (AEC), ऑर्डनेंस कोर एवं सर्विस कोर जैसी शाखाओं में शामिल किया, पहले पाँच वर्षों के लिये और बाद में इसे इंजीनियर्स कोर तथा रिजीमेंट ऑफ आर्टिलरी तक विस्तारित किया गया।
- WSES से SSC में परिवर्तन: प्रारंभ में महिलाएँ WSES के अंतर्गत शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में शामिल हुईं।
- वर्ष 2005 में SSC प्रणाली को औपचारिक रूप से लागू किया गया, जिसमें महिला अधिकारियों को 14 वर्षों की सेवा अवधि प्रदान की गई, जिससे उनके सैन्य कॅरियर की संरचना अधिक व्यवस्थित हुई।
- स्थायी कमीशन (पीसी) और न्यायिक हस्तक्षेप: वर्ष 2008 में महिलाओं को सबसे पहले JAG और AEC जैसी सीमित शाखाओं में स्थायी कमीशन (PC) प्रदान किया गया था।
- बबीता पुनिया बनाम भारत सरकार (2020) के ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने उन सभी शाखाओं में PC अनिवार्य कर दिया जहाँ SSC की अनुमति है, जिससे महिलाएँ कमांड पदों तक पहुँच सकें।
- न्यायालय ने कहा कि महिलाओं को PC न देना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और लिंग-आधारित भेदभाव को असंवैधानिक घोषित किया।
- वर्ष 2015 में भारतीय वायुसेना ने महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में प्रायोगिक रूप से शामिल किया, जिसे वर्ष 2022 में स्थायी योजना के रूप में लागू कर दिया गया।
- वर्ष 2022 से राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में महिला कैडेट्स का प्रवेश भी शुरू हुआ, जो सैन्य भूमिका में महिलाओं की कानूनी और प्रगतिशील भागीदारी का प्रतीक है।
- महिला अग्निवीर: वर्ष 2022 में शुरू की गई अग्निपथ योजना के तहत महिलाओं को तीन सेवाओं (सेना, नौसेना और वायु सेना) में शामिल किया गया, जो भर्ती मानदंडों में एक आदर्श बदलाव का संकेत है।
- सशस्त्र बलों में महिलाओं की वर्तमान स्थिति: भारत की दस लाख से अधिक सैनिकों वाली सेना में महिलाएँ लगभग 4% हैं, जबकि अमेरिका में यह आँकड़ा 16% है।
- महिलाओं को सैनिक स्तर पर कॉर्प्स ऑफ मिलिट्री पुलिस में शामिल किया गया है, और वर्तमान में लगभग 1,700 महिला अधिकारी विभिन्न शाखाओं एवं सेवाओं में कार्यरत हैं।
- भारतीय वायु सेना ने वर्ष 2016 में महिलाओं को लड़ाकू पायलट के रूप में शामिल करना शुरू किया और अब महिलाओं को सभी लड़ाकू भूमिकाओं में अनुमति दी गई है।
- वर्ष 2022 से नौसेना ने पनडुब्बी और विमानन सहित सभी शाखाओं को महिला अधिकारियों के लिये खोल दिया है तथा कई महिलाएँ पहले से ही जहाज़ों और युद्ध विमानन भूमिकाओं में सेवा दे रही हैं।
- कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह सहित महिला अधिकारियों ने ऑपरेशन सिंदूर में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो सैन्य रणनीति में उनकी नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।
- लेफ्टिनेंट कमांडर दिलना के. और रूपा ए. ने 25,600 नॉटिकल मील का अभियान, नाविका सागर परिक्रमा II पूरा किया, जिससे महिलाओं की समुद्री रक्षा में सहनशीलता साबित हुई।
नोट: भारतीय सशस्त्र बलों में अधिकारियों के लिये दो मुख्य मार्ग उपलब्ध हैं। SSC सीमित अवधि की सेवा प्रदान करता है, जो सामान्यतः 10 वर्षों की होती है और आवश्यकता पड़ने पर 4 वर्षों तक बढ़ाई जा सकती है, जबकि PC आजीवन सैन्य सेवा की प्रतिबद्धता प्रदान करता है, जो सेवानिवृत्ति तक जारी रहती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि महिला अधिकारी, चाहे उनकी सेवा के कितने भी वर्ष हों, PC के लिये पात्र होनी चाहिये।
सशस्त्र बलों में महिलाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
- शारीरिक मांग और प्रशिक्षण मानक: युद्ध भूमिकाओं में अक्सर उच्च शारीरिक सहनशक्ति और ताकत की आवश्यकता होती है, जो जैविक अंतर तथा वर्तमान प्रशिक्षण व्यवस्थाओं को देखते हुए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
- कभी-कभी पुरुषों और महिलाओं के लिये प्रशिक्षण मानक भिन्न होते हैं, जिससे समानता बनाम संचालनात्मक प्रभावशीलता को लेकर बहस होती है।
- सांस्कृतिक और सामाजिक पूर्वाग्रह: सशस्त्र बलों के एक बड़े हिस्से के कर्मी रूढ़िवादी ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं, जहाँ पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ गहराई से समाई हुई होती हैं।
- ऐसी मानसिकताएँ, विशेषकर नेतृत्व भूमिकाओं में महिला अधिकारियों के प्रति पूर्वाग्रह और विरोध का कारण बन सकती हैं। इससे उनकी अधिकारिता, मनोबल और कॅरियर विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो अंततः यूनिट की एकता एवं अनुशासन को प्रभावित करता है।
- सीमित युद्ध भूमिका के अवसर: वर्ष 2020 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद, जिसमें महिलाओं को स्थायी कमीशन (PC) प्रदान किया गया था, उन्हें अब भी सेना में पैदल सेना, बख्तरबंद कोर और विशेष बलों जैसे कुछ अग्रिम मोर्चों की युद्ध शाखाओं में शामिल होने की अनुमति नहीं है।
- यह बहिष्कार प्रमुख युद्ध अनुभव तक पहुँच को सीमित करता है, जो उच्चतर कमान और रणनीतिक नेतृत्व भूमिकाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण मापदंड है।
- परिणामस्वरूप, यह अदृश्य बाधाएँ महिलाओं के कॅरियर में प्रगति को सीमित करती हैं, जिससे उच्च पदों और निर्णय-निर्माण की भूमिकाओं में उनकी भागीदारी कम हो जाती है।
- कार्य-जीवन संतुलन और पारिवारिक प्रतिबंध: विवाह, गर्भावस्था और बाल देखभाल से जुड़ी समस्याएँ महिलाओं के कॅरियर की निरंतरता तथा तैनाती के विकल्पों को प्रभावित कर सकती हैं।
- मातृत्व अवकाश, बाल देखभाल सुविधाओं और जीवनसाथी समर्थन के लिये पर्याप्त नीतियों का अभाव चिंता का विषय बना हुआ है।
- भारत के केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों में महिलाओं की भागीदारी 2% से भी कम है, फिर भी आत्महत्या के मामलों में उनका योगदान 40% से अधिक है। यद्यपि उन्हें युद्धभूमि की भूमिकाओं में तैनात नहीं किया जाता, फिर भी महिलाएँ अत्यधिक तनाव का सामना करती हैं, जो अक्सर वैवाहिक कलह और परिवार एवं कर्त्तव्य के बीच संतुलन बनाए रखने से संबंधित होता है।
- मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक दबाव: मुख्यतः पुरुषप्रधान कार्यस्थल में काम करने से महिलाओं को अकेलेपन और बढ़े हुए तनाव का अनुभव हो सकता है। उनके निर्णयों और व्यवहार पर सख्त निगरानी रखी जा सकती है, जिससे वे मानसिक थकान एवं भावनात्मक दबाव की स्थिति में आ जाती हैं।
- बुनियादी ढाँचा और सुविधाएँ: लैंगिक-संवेदनशील स्वास्थ्य सेवाओं और परामर्श तक सीमित पहुँच के साथ-साथ कुछ यूनिटों में, विशेषकर क्षेत्रीय या दूर-दराज़ तैनाती वाले क्षेत्रों में, पृथक आवास, स्वच्छता और सफाई सुविधाओं की अनुपलब्धता भी एक प्रमुख चुनौती है।
सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता और परिचालन प्रभावशीलता को कैसे संतुलित किया जा सकता है?
- प्रशिक्षण और संवेदनशीलता: शारीरिक अंतर को स्वीकार करते हुए भी प्रशिक्षण समान होना चाहिये, जिसमें परिचालन संबंधी आवश्यकताओं को सामान्य मापदंडों के बजाय भूमिका-विशिष्ट मानकों के माध्यम से पूरा किया जाए।
- सभी रैंकों को अचेतन पूर्वाग्रह (अनकॉन्शियस बायस) को दूर करने और आपसी सम्मान व टीमवर्क की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
- कमांड भूमिकाओं के लिये शारीरिक, मानसिक और नेतृत्व क्षमता पर आधारित स्पष्ट, लिंग-तटस्थ मानदंड स्थापित करना, साथ ही कठोर तथा मानकीकृत प्रशिक्षण सुनिश्चित करना चाहिये।
- निगरानी और मूल्यांकन: सैन्य सेवाओं में भागीदारी, प्रतिधारण, पदोन्नति और कमांड नियुक्तियों की निगरानी के लिये एक जेंडर इक्वैलिटी इंडेक्स (लैंगिक समानता सूचकांक) स्थापित किया जाना चाहिये।
- रोल मॉडल और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना: कैप्टन शिवा चौहान (सियाचिन में तैनात होने वाली पहली महिला अधिकारी) या फ्लाइट लेफ्टिनेंट अवनी चतुर्वेदी (भारतीय वायुसेना की फाइटर पायलट) जैसी अधिकारियों की उपलब्धियों का सम्मान करने से परिवर्तन को प्रेरणा मिलती है तथा वर्दीधारी सेवाओं में महिलाओं के नेतृत्व को सामान्य बनाने में मदद मिलती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का लाभ उठाना: इज़रायल रक्षा बल (IDF) मिक्स्ड-जेंडर बटालियन मॉडल का उपयोग करता है, जिसमें व्यक्तिगत क्षमता के आधार पर भूमिकाएँ निर्धारित की जाती हैं। अमेरिकी सेना भूमिका-विशिष्ट शारीरिक परीक्षणों का उपयोग करती है तथा वर्ष 2015 से महिलाओं को लगभग सभी लड़ाकू भूमिकाओं में शामिल किया गया।
- भारत को अपने विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक और रणनीतिक संदर्भ पर विचार करते हुए इन मॉडलों को अपनाना चाहिये।
- सैन्य अभ्यास अन्य देशों से अनुभव प्राप्त करने के लिये एक मूल्यवान मंच प्रदान करते हैं। शांति अभियानों में महिलाओं को तैनात करके, सशस्त्र बल अपने कौशल तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा दे सकते हैं।
- भारत पहला देश है जिसने वर्ष 2007 से 2016 तक शांति मिशन (लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNMIL)) में पूर्णतः महिला पुलिस इकाई तैनात की है।
- सैन्य अभ्यास अन्य देशों से अनुभव प्राप्त करने के लिये एक मूल्यवान मंच प्रदान करते हैं। शांति अभियानों में महिलाओं को तैनात करके, सशस्त्र बल अपने कौशल तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा दे सकते हैं।
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता: महिला नेताओं की स्वीकार्यता को बढ़ावा देने के लिये लिंग संवेदनशीलता शिविर, अंतर-इकाई प्रतियोगिताएँ और मार्गदर्शन पहल जैसे कार्यक्रमों को लागू करना।
- ये प्रयास पेशेवर, सम्मानजनक माहौल को बढ़ावा देते हैं तथा रूढ़िवादिता का खंडन करने में मदद करते हैं। इस तरह के उपाय सशस्त्र बलों में टीमवर्क और परिचालन प्रभावशीलता को बढ़ाते हैं।
- इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के तहत लैंगिक समानता और सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका के विषयों को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये, ताकि कम उम्र से ही बच्चों को शिक्षित किया जा सके तथा युवा लड़कियों को सेना में कॅरियर बनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सके।
- सुरक्षा और समानता में संतुलन: राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए परिचालन दक्षता के आधार पर निर्णय लेना, साथ ही लैंगिक समानता को धीरे-धीरे आगे बढ़ाना चाहिये।
- व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान: महिलाओं के लिये बायोडिग्रेडेबल विकल्पों वाले शौचालय और सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन उपलब्ध कराना चाहिये।
- क्रेच (शिशु देखभाल) सुविधाएँ और नियमित काउंसलिंग सत्र महिला कर्मियों की भलाई तथा कार्य-जीवन संतुलन को सहारा दे सकते हैं। ये उपाय एक सुरक्षित, अधिक समावेशी वातावरण बनाते हैं, जो लैंगिक समानता के लिये आवश्यक है।
निष्कर्ष
समावेशी सशस्त्र बलों की ओर भारत की यात्रा बढ़ती राष्ट्रीय शक्ति और सार्वजनिक सेवा के प्रत्येक क्षेत्र में नारी शक्ति को सशक्त बनाने के संकल्प का प्रतिबिंब है। आने वाले वर्षों में आत्मनिर्भर भारत के लिये एक आत्मविश्वासी, सक्षम और समावेशी सैन्य नेतृत्व आवश्यक होगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:
प्रश्न: भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं तथा परिचालन प्रभावशीलता बनाए रखते हुए इनका समाधान कैसे किया जा सकता है?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019)
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