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डेली न्यूज़

  • 02 Dec, 2021
  • 45 min read
शासन व्यवस्था

उज्ज्वला योजना

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना

मेन्स के लिये: 

उज्ज्वला योजना का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

सूचना का अधिकार’ के तहत प्राप्त सूचना के मुताबिक, वर्ष 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ के अंतर्गत नए वितरण में तेज़ी देखी गई।

  • योजना के तहत वर्ष 2020 तक वंचित परिवारों को 8 करोड़ एलपीजी कनेक्शन जारी करने का लक्ष्य था। यह लक्ष्य मार्च 2020 की समय-सीमा से सात महीने पूर्व ही अगस्त 2019 में हासिल कर लिया गया था।
  • अगस्त 2021 में प्रधानमंत्री ने ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ (PMUY) के दूसरे चरण या ‘उज्ज्वला 2.0 योजना’ का शुभारंभ किया था।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • PMUY-I:
      • इसे गरीब परिवारों को ‘तरलीकृत पेट्रोलियम गैस’ (LPG) कनेक्शन प्रदान करने के लिये मई 2016 में शुरू किया गया।
    • PMUY-II:
      • इसका उद्देश्य उन प्रवासियों को अधिकतम लाभ प्रदान करना है जो दूसरे राज्यों में रहते हैं और अपने पते का प्रमाण प्रस्तुत करने में कठिनाई होती है।
      • अब उन्हें इसका लाभ उठाने के लिये केवल "सेल्फ डिक्लेरेशन" देना होगा।
  • उद्देश्य:
    • महिलाओं को सशक्त बनाना और उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना।
    • भारत में अशुद्ध खाना पकाने के ईंधन के कारण होने वाली मौतों की संख्या को कम करना।
    • घर के अंदर जीवाश्म ईंधन जलाने से वायु प्रदूषण के कारण छोटे बच्चों को होने वाली श्वास संबंधी गंभीर बीमारियों से बचाना।
  • विशेषताएँ:
    • इस योजना में बीपीएल परिवारों को प्रत्येक एलपीजी कनेक्शन के लिये 1600 रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • एक जमा-मुक्त एलपीजी कनेक्शन के साथ उज्ज्वला 2.0 के लाभार्थियों को पहली रिफिल और एक हॉटप्लेट निःशुल्क प्रदान किया जाएगा।
  • लक्ष्य:
    • उज्ज्वला 1.0 के तहत मार्च 2020 तक गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों की 50 मिलियन महिलाओं को एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने का लक्ष्य था। हालाँकि अगस्त 2018 में सात अन्य श्रेणियों की महिलाओं को योजना के दायरे में लाया गया था, इनमें शामिल हैं:
    • उज्जवला 2.0 के तहत लाभार्थियों को अतिरिक्त 10 मिलियन एलपीजी कनेक्शन प्रदान किये जाएंगे।
      • सरकार ने 50 ज़िलों के 21 लाख घरों में पाइप से गैस पहुँचाने का भी लक्ष्य रखा है।
  • नोडल मंत्रालय:
    •  पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG)।
  • उपलब्धियाँ:
    • PMUY के पहले चरण में दलित और आदिवासी समुदायों सहित 8 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन दिये गए।
    •  देश में रसोई गैस के बुनियादी ढाँचे का कई गुना विस्तार हुआ है। पिछले छह वर्षों में देश भर में 11,000 से अधिक नए एलपीजी वितरण केंद्र खोले गए हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • रिफिल की कम खपत:
      • एलपीजी के निरंतर उपयोग को प्रोत्साहित करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है और रिफिल की कम खपत ने योजना के तहत वितरित बकाया ऋण की वसूली में बाधा उत्पन्न की।
      • 31 दिसंबर, 2018 को वार्षिक औसत प्रति उपभोक्ता सिर्फ 3.21 रिफिल था।
    • प्रणाली से संबंधित विसंगतियाँ:
      • अनपेक्षित लाभार्थियों को कनेक्शन जारी करने जैसी कमियाँ तथा राज्य संचालित तेल विपणन कंपनियों के सॉफ्टवेयर के साथ समस्याएँ देखी गई हैं, जो कि लाभार्थियों की पहचान करने के लिये डिडुप्लीकेशन प्रक्रिया में अपर्याप्तता को दर्शाता है।

आगे की राह 

  • इस योजना को शहरी और अर्द्ध-शहरी स्लम क्षेत्रों के गरीब परिवारों तक विस्तारित किया जाना चाहिये।
  • जिन घरों में एलपीजी नहीं है, उन्हें कनेक्शन प्रदान करके अधिक जनसंख्या तक उच्च एलपीजी कवरेज की आवश्यकता है।
  • अपात्र लाभार्थियों को कनेक्शन देने से प्रतिबंधित करने के लिये वितरकों के सॉफ्टवेयर में डिडुप्लीकेशन (Deduplication) के प्रभावी और उचित उपाय करने हेतु मौजूदा एवं नए लाभार्थियों के परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के आधार नंबर दर्ज करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

नेचुरल फार्मिंग

प्रिलिम्स के लिये:

नेचुरल फार्मिंग, जैविक खेती, नीति आयोग, परंपरागत कृषि विकास योजना

मेन्स के लिये:

प्राकृतिक खेती का उद्देश्य एवं महत्त्व, प्राकृतिक खेती और जैविक खेती के बीच अंतर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग द्वारा प्राकृतिक खेती (Natural Farming) पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

  • संपूर्ण विश्व में प्राकृतिक खेती के कई मॉडल परिचालित हैं, इनमें से ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF) भारत में सबसे लोकप्रिय मॉडल है। यह पद्म श्री सुभाष पालेकर द्वारा विकसित व्यापक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक कृषि प्रणाली है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: 
    • इसे "रसायन मुक्त कृषि (Chemical-Free Farming) और पशुधन आधारित (livestock based)" के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। कृषि-पारिस्थितिकी के मानकों पर आधारित, यह एक विविध कृषि प्रणाली है जो फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है, जिससे कार्यात्मक जैव विविधता के इष्टतम उपयोग की अनुमति मिलती है।
    • यह मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बढ़ाने तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या न्यून करने जैसे कई अन्य लाभ प्रदान करते हुए किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है।
      • कृषि के इस दृष्टिकोण को एक जापानी किसान और दार्शनिक मासानोबू फुकुओका (Masanobu Fukuoka) ने 1975 में अपनी पुस्तक द वन-स्ट्रॉ रेवोल्यूशन में पेश किया था।
    • यह खेतों में या उसके आसपास के क्षेत्रों में मौज़ूद प्राकृतिक या पारिस्थितिक तंत्र पर आधारित होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक खेती को पुनर्योजी कृषि का एक रूप माना जाता है, जो ग्रह को बचाने के लिये एक प्रमुख रणनीति है।
    • इसमें भूमि प्रथाओं का प्रबंधन और मिट्टी एवं पौधों में वातावरण से कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता होती है, जिससे यह हानिकारक के बजाय वास्तव में उपयोगी है।
    • भारत में परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत प्राकृतिक खेती को भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (BPKP) के रूप में बढ़ावा दिया जाता है।
      • BPKP योजना का उद्देश्य बाहर से खरीदे जाने वाले आदानों को कम कर पारंपरिक स्वदेशी प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
    • प्राकृतिक खेती का आशय पद्धति, प्रथाओं और उपज में वृद्धि  संबंधी  प्राकृतिक विज्ञान से है ताकि कम साधनों में अधिक उत्पादन किया जा सके।

Natural-Farming

  • उद्देश्य:
    • लागत में कमी, कम जोखिम, समान उपज, इंटर-क्रॉपिंग से अर्जित आय द्वारा किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि करके खेती को व्यवहार्य और अनुकूल बनाना।
    • किसानों को खेत, प्राकृतिक और घरेलू संसाधनों का उपयोग कर आवश्यक जैविक आदानों को तैयार करने के लिये प्रोत्साहित करना तथा उत्पादन लागत में भारी कटौती करना।
  • महत्त्व:
    • उत्पादन की न्यूनतम लागत:
      • इसे रोज़गार बढ़ाने और ग्रामीण विकास की गुंजाइश के साथ एक लागत-प्रभावी कृषि पद्धति/प्रथा माना जाता है।
    • बेहतर स्वास्थ्य की सुनिश्चित करना:
      • चूँकि प्राकृतिक खेती में किसी भी सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिये स्वास्थ्य जोखिम और खतरे समाप्त हो जाते हैं। साथ ही भोजन में उच्च पोषक तत्त्व होने से यह बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
    • रोज़गार सृजन:
      • प्राकृतिक खेती नए उद्यमों, मूल्यवर्द्धन, स्थानीय क्षेत्रों में विपणन आदि में रोज़गार के  सृजन में सहायक है। प्राकृतिक खेती से प्राप्त अधिशेष का निवेश गाँव में ही किया जा सकता है।
      • चूँकि इसमें रोज़गार सृजन की क्षमता है, जिससे ग्रामीण युवाओं का पलायन रुकेगा।
    • पर्यावरण संरक्षण:
      • यह बेहतर मृदा जीव विज्ञान, बेहतर कृषि जैव विविधता और बहुत छोटे कार्बन एवं नाइट्रोजन पदचिह्नों के साथ जल का अधिक न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करती है।
    • जल की कम खपत:
      • विभिन्न फसलों के साथ प्रतिकिया करके यह एक-दूसरे की मदद करते हैं और वाष्पीकरण के माध्यम से अनावश्यक जल के नुकसान को रोकने के लिये मिट्टी को कवर करते हैं, प्राकृतिक खेती 'प्रति बूँद फसल' की मात्रा को अनुकूलित करती है।
    • मृदा स्वास्थ्य को पुनर्जीवित करना:
      • प्राकृतिक खेती का सबसे तात्कालिक प्रभाव मिट्टी के जीव विज्ञान- रोगाणुओं और अन्य जीवित जीवों जैसे केंचुओं पर पड़ता है। मृदा स्वास्थ्य पूरी तरह से उसमें रहने वाले जीवों पर निर्भर करता है।
    • पशुधन स्थिरता:
      • कृषि प्रणाली में पशुधन का एकीकरण प्राकृतिक खेती में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्चक्रण में मदद करता है। जीवामृत और बीजामृत जैसे इको-फ्रेंडली बायो-इनपुट गाय के गोबर और मूत्र तथा अन्य प्राकृतिक उत्पादों से तैयार किये जाते हैं।
    • लचीलापन:
      • जैविक कार्बन, कम/न्यून जुताई और पौधों की विविधता की मदद से मिट्टी की संरचना में परिवर्तन गंभीर सूखे जैसी चरम स्थितियों में भी पौधों की वृद्धि में सहायक हो सकता है एवं चक्रवात के दौरान गंभीर बाढ़  तथा वायु द्वारा होने वाली क्षति को कम किया जा सकता हैं।
      • मौसम की चरम सीमाओं के खिलाफ फसलों को लचीलापन प्रदान कर प्राकृतिक खेती किसानों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।
  • संबंधित पहल:
    • बारानी क्षेत्र विकास (RAD): यह उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तनशीलता से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) पर केंद्रित है।
    • कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF): इसका उद्देश्य किसानों को जलवायु सुगमता और आय के अतिरिक्त स्रोतों के लिये कृषि फसलों के साथ-साथ बहुउद्देश्यीय पेड़ लगाने हेतु प्रोत्साहित करना है, साथ ही लकड़ी आधारित फीडस्टॉक और हर्बल उद्योग को बढ़ावा देना है। 
    • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने हेतु कृषि को लचीला बनाने के लिये तकनीकों का विकास, प्रदर्शन और प्रसार करने के लिये सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (NMSA) प्रारंभ किया गया।
    • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCDNER): यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, यह NMSA के तहत एक उप-मिशन है, जिसका उद्देश्य प्रमाणित जैविक उत्पादन को वैल्यू चेन मोड में विकसित करना है।
    • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इसे वर्ष 2015 में जल संसाधनों के मुद्दों को संबोधित करने और एक स्थायी समाधान प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था जो ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ की परिकल्पना करती है।
    • हरित भारत मिशन: इसे वर्ष 2014 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) के तहत लॉन्च किया गया था, जिसका प्राथमिक उद्देश्य भारत के घटते वन आवरण की रक्षा, पुनर्स्थापना और उसमें वृद्धि करना था।

प्राकृतिक खेती और जैविक खेती के बीच अंतर

              जैविक खेती

            प्राकृतिक खेती

जैविक खेती में जैविक उर्वरक और खाद जैसे- कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, गाय के गोबर की खाद आदि का उपयोग किया जाता है और बाहरी उर्वरक  का खेतो में प्रयोग किया जाता है।

प्राकृतिक खेती में मिट्टी में न तो रासायनिक और न ही जैविक खाद डाली जाती है। वास्तव में बाहरी उर्वरक का प्रयोग न तो मिट्टी में और न ही पौधों में किया जाता है।

जैविक खेती के लिये अभी भी बुनियादी कृषि पद्धतियों जैसे- जुताई, गुड़ाई, खाद का मिश्रण, निराई आदि की आवश्यकता होती है।

प्राकृतिक खेती में मिट्टी की सतह पर ही रोगाणुओं और केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को प्रोत्साहित किया जाता है, इससे धीरे-धीरे मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि होती है।

व्यापक स्तर पर खाद की आवश्यकता के कारण जैविक खेती अभी भी महँगी है और इस पर  आसपास के वातावरण व पारिस्थितिक का प्रभाव पड़ता है; जबकि प्राकृतिक कृषि एक अत्यंत कम लागत वाली कृषि पद्धति है, जो स्थानीय जैव विविधता के साथ पूरी तरह से अनुकूलित हो जाती है।

प्राकृतिक खेती में न जुताई होती है, न मिट्टी को पलटा जाता है और न ही उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है तथा किसी भी पद्धति का ठीक उसी तरह नहीं अपनाया जाता है जैसे प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में होता है।

आगे की राह

  • विश्व की जनसंख्या वर्ष 2050 तक लगभग 10 बिलियन तक बढ़ने का अनुमान है। संभावना है कि वर्ष 2013 की तुलना में कृषि मांग 50% तक बढ़ जाएगी, ऐसी स्थिति में कृषि-पारिस्थितिकी जैसे 'समग्र' दृष्टिकोण की ओर एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया, कृषि वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि की आवश्यकता है।
  • कृषि बाज़ार के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने और सभी राज्यों में खाद्यान्न और गैर-खाद्यान्न फसलों के लिये खरीद तंत्र का विस्तार करने की आवश्यकता है।
  • चयनित फसलों के लिये प्राइस डेफिसिएंसी पेमेंट सिस्टम का कार्यान्वयन करना। 'एमएसपी पर बेचने का अधिकार' पर कानून बनाने या तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) को खेती की लागत को कम करने के लिये कृषि कार्य से भी जोड़ा जाना चाहिये, जो पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ी है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

लॉकडाउन (वर्ष 2020) के दौरान रोज़गार का नुकसान

प्रिलिम्स के लिये:

ऑल-इंडिया क्वार्टरली इस्टैब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे

मेन्स के लिये: 

श्रम बाज़ार पर रोज़गार का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय’ ने कोविड महामारी के कारण वर्ष 2020 में लागू लॉकडाउन के दौरान नौकरी छूटने के आँकड़े प्रस्तुत किये हैं।

  • डेटा ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली इस्टैब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ (AQEES) पर आधारित है।

Job-Losses

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • श्रम ब्यूरो द्वारा ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली इस्टैब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ को नौ चयनित क्षेत्रों के संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में रोज़गार एवं प्रतिष्ठानों के संबंध में तिमाही आधार पर अद्यतन करने के लिये आयोजित किया जाता है।
      • 9 क्षेत्र विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और रेस्तराँ, आईटी/बीपीओ, वित्तीय सेवा गतिविधियाँ हैं।
    • घटक:
      • त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES): यह 10 या उससे अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों का सर्वेक्षण करता है।
        • संशोधित QES का आयोजन पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2021) के दौरान किया गया था।
        • पेरोल डेटा के साथ संख्या में अंतर का हवाला देते हुए वर्ष 2018 में QES के पुराने संस्करण को निलंबित कर दिया गया था।
      • ‘एरिया फ्रेम इस्टैब्लिश्मेंट सर्वे’ (AFES): यह नमूना सर्वेक्षण के माध्यम से असंगठित क्षेत्र (10 से कम श्रमिकों के साथ) को कवर करता है।
  • प्रमुख निष्कर्ष:
    • विनिर्माण क्षेत्र: इसने प्री-लॉकडाउन (मार्च 2020) और पोस्ट-लॉकडाउन (जुलाई 2020) की अवधि के बीच 14.2 लाख नौकरियों का नुकसान दर्ज किया।
      • वर्ष 2020 में लागू लॉकडाउन के दौरान लगभग 7.5% नौकरियों का नुकसान हुआ।
    • वित्तीय सेवा क्षेत्र: सर्वेक्षण में इसी अवधि के दौरान आईटी/बीपीओ क्षेत्र में 0.4-1 लाख की नौकरी का नुकसान दर्ज किया गया।
    • अन्य क्षेत्र: निर्माण क्षेत्र में 1 लाख नौकरियों का नुकसान दर्ज किया गया, जबकि व्यापार और शिक्षा क्षेत्रों में क्रमशः 1.8 लाख और 2.8 लाख नौकरियों का नुकसान दर्ज किया गया।
    • महिला कामगार: नौ प्रमुख क्षेत्रों में महिलाओं ने 7.44% नौकरियाँ गँवाई हैं।
      • विनिर्माण क्षेत्र में महिला रोज़गार 26.7 लाख (मार्च 2020 तक) से घटकर 23.3 लाख (जुलाई 2020 तक) हो गया।
      • निर्माण क्षेत्र में महिला श्रमिकों की संख्या 1.8 लाख से घटाकर 1.5 लाख हो गई।
      • व्यापार क्षेत्र में महिला रोज़गार 4.5 लाख (मार्च 2020 तक) से घटकर 4 लाख (1 जुलाई, 2020 तक) हो गया।
    • पुरुष श्रमिक: प्री-लॉकडाउन और पोस्ट-लॉकडाउन अवधि के मध्य पुरुषों की 7.48% नौकरियों का नुकसान दर्ज किया गया।
      • इसी अवधि के दौरान विनिर्माण क्षेत्र में पुरुष कामगार 98.7 लाख से घटकर 87.9 लाख हो गए।
      • निर्माण क्षेत्र में लॉकडाउन के दौरान पुरुष श्रमिकों की संख्या 5.8 लाख से घटाकर 5.1 लाख हो गई।
      • व्यापार क्षेत्र में पुरुष रोज़गार 16.1 लाख (मार्च 2020 तक) से घटकर 14.8 लाख (जुलाई 2020 तक) हो गया।
  • नवीनतम निष्कर्ष:
    • सितंबर में जारी नए तिमाही रोज़गार सर्वेक्षण में प्रमुख नौ क्षेत्रों में रोज़गार बढ़कर अप्रैल-जून 2021 में 3.08 करोड़ हो गया, जो वर्ष 2013-14 में 2.37 करोड़ था।
      • इसके लिये आधार वर्ष छठी आर्थिक जनगणना के आधार पर चुना गया था।
    • महामारी के कारण 27% प्रतिष्ठानों में संगठित गैर-कृषि क्षेत्र में रोज़गार में कमी आई है।
      • लॉकडाउन अवधि (मार्च 2020-जून 2020) के दौरान 81% श्रमिकों को पूरा वेतन मिला, 16% को कम मज़दूरी मिली और केवल 3% श्रमिकों को कोई वेतन नहीं मिला।
  • महत्त्व:
    • इन सर्वेक्षणों के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी सरकार को महत्त्वपूर्ण मुद्दों को समझने और साक्ष्य-आधारित राष्ट्रीय रोज़गार नीति तैयार करने में मदद करेगी।
      • इसके अलावा मंत्रालय ने ‘प्रवासी कामगारों का अखिल भारतीय सर्वेक्षण’ और ‘घरेलू कामगारों पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण’ नाम से दो और सर्वेक्षण शुरू किये हैं।
  • संबंधित पहलें:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

CBI जाँच के लिये राज्यों की सहमति

प्रिलिम्स के लिये:

CBI, केंद्रीय जाँच ब्यूरो, संथानम समिति, केंद्रीय सतर्कता आयोग, लोकपाल

मेन्स के लिये:

CBI जाँच के लिये राज्यों की सहमति से संबंधित विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने एक मामले को संदर्भित किया है, जिसमें केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) ने कई राज्यों द्वारा CBI को दी जाने वाली 'सामान्य सहमति' वापस लेने पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के विचारार्थ एक हलफनामा दायर किया।

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI)

  • CBI की स्थापना वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी।
    • अब CBI कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training-DoPT) के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है।
  • भ्रष्टाचार की रोकथाम पर संथानम समिति (1962-1964) द्वारा CBI की स्थापना की सिफारिश की गई थी।
  • CBI एक वैधानिक निकाय नहीं है। यह दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से अपनी शक्तियाँ प्राप्त करता है।
  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) केंद्र सरकार की एक प्रमुख अन्वेषण एजेंसी है।
    • यह केंद्रीय सतर्कता आयोग और लोकपाल को भी सहायता प्रदान करता है।
    • यह भारत में नोडल पुलिस एजेंसी भी है जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • सहमति वापस लेना: आठ राज्यों ने अपने क्षेत्र में जाँच शुरू करने के लिये CBI से सहमति वापस ले ली है।
      • आठ राज्य- पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम ने अपने क्षेत्र में जाँच शुरू करने के लिये CBI की सहमति वापस ले ली है।
    • CBI का तर्क: CBI के अनुसार, सहमति की इतनी व्यापक वापसी विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में काम करने वाले केंद्रीय कर्मचारियों और उपक्रमों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के संबंध में इसे बेमानी बना रही है।
      • जबकि राज्यों की प्रतिक्रियाएँ मुख्य रूप से केंद्र सरकार की अपनी एजेंसियों को नियोजित करने की राजनीति के खिलाफ राजनीतिक-कानूनी रिंग-फेंसिंग का एक कार्य था, कई राज्यों द्वारा सामान्य सहमति को वापस लेने से CBI विकृत हो गई है।
  • राज्य सरकार द्वारा दी गई सहमति के बारे में:
    • कानूनी और संवैधानिक आधार: दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 6 के अनुसार, जिसके तहत CBI कार्य करती है, केंद्रशासित प्रदेशों से परे CBI जाँच का विस्तार करने के लिये राज्य की सहमति की आवश्यकता होती है।
      • CBI की कानूनी नींव को संघ सूची की प्रविष्टि 80 पर आधारित माना गया है जो एक राज्य से संबंधित पुलिस बल की शक्तियों को दूसरे राज्य के किसी भी क्षेत्र में विस्तारित करने का प्रावधान करती है, लेकिन इसकी अनुमति के बिना नहीं।
      • "पुलिस" संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची में प्रविष्टि 2 है।
    • सहमति के प्रकार:
      • CBI द्वारा जांँच के लिये दो प्रकार की सहमति लेनी होती है।
        • सामान्य सहमति: जब कोई राज्य किसी मामले की जांँच के लिये  CBI को एक सामान्य सहमति (दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6) देता है, तो एजेंसी को जांँच के संबंध में या उस राज्य में प्रवेश करने पर हर बार केस के लिये नई अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
          • भ्रष्टाचार या हिंसा के मामले में उस निर्बाध जांँच को सुगम बनाने के लिये एक सामान्य सहमति दी जाती है।
        • विशिष्ट सहमति: जब एक सामान्य सहमति वापस ले ली जाती है, तो CBI को संबंधित राज्य सरकार से जांँच हेतु हर केस के लिये सहमति लेने की आवश्यकता होती है।
          • यदि विशिष्ट सहमति नहीं दी जाती है, तो CBI अधिकारियों के पास उस राज्य में प्रवेश करने पर पुलिस की शक्ति नहीं होगी।
          • यह CBI द्वारा निर्बाध जांँच में बाधा डालती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय: 
      • एडवांस इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामला, 1970 (Advance Insurance Co. Ltd case, 1970) में एक संविधान पीठ ने कहा कि ‘राज्य’ की परिभाषा में केंद्रशासित प्रदेश भी शामिल हैं।
      • इसलिये CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत मान्यता प्राप्त केंद्रशासित प्रदेशों के लिये गठित एक बल होने के नाते केवल उनकी सहमति से राज्यों क्षेत्रों में जांँच कर सकती है।
    • लंबित जांँच पर प्रभाव:
      • सामान्य सहमति को वापस लेने से लंबित जांँच (काजी लेंधुप दोरजी बनाम CBI, 1994) या किसी अन्य राज्य में दर्ज मामले प्रभावित नहीं होते हैं, इस संबंध में जाँच उसके राज्य क्षेत्र में होती है, जिसने सामान्य सहमति वापस ले ली है तथा न ही यह CBI जाँच का आदेश देने के क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय की शक्ति को सीमित करती है।

आगे की राह: 

  • मौलिक बाधा कानून में निहित है जो CBI को एक संघीय पुलिस बल के रूप में स्पष्ट रूप से परिकल्पित नहीं करता है।
  • भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन जिसमें भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, को सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिये कड़े निष्पक्ष कदम उठाने की आवश्यकता है। 
  • कई राज्यों द्वारा सहमति वापस लेने की स्थिति में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री द्वारा गठित समिति CBI प्रमुख की नियुक्ति की प्रक्रिया को जारी रखते हुए प्रकट शक्तियों और स्वायत्तता के साथ एक संघीय एजेंसी बनाने के विधायी कदम का कारण बन सकती है।
    • ऐसे कानून के मामले में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6 एक स्पष्ट कानूनी प्रावधान का मार्ग प्रशस्त कर सकती है जो निष्पक्ष जांँच और अभियोजन की गारंटी देता है।

स्रोत: द हिंदू 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ग्लोबल गेटवे प्लान: ईयू

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल गेटवे प्लान, ग्रुप ऑफ सेवन

मेन्स के लिये:

चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के बारे में

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में यूरोपीय आयोग ने ग्लोबल गेटवे (Global Gateway) नामक एक योजना की घोषणा की है, जो  वर्ष 2027 तक दुनिया भर में सार्वजनिक और निजी बुनियादी ढांँचे में निवेश हेतु  300 अरब यूरो (EURO 300 billion) जुटाने से संबंधित है। 

  • हालांँकि योजना में चीन का जिक्र नहीं है, लेकिन इसे चीन की बेल्ट एंड रोड रणनीति (China’s Belt and Road strategy) की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।

प्रमुख बिंदु 

  • ग्लोबल गेटवे प्लान के बारे में:
    • विकासात्मक आयाम: ग्लोबल गेटवे, यूरोपीय संघ, यूरोप देशों के दृष्टिकोण के साथ तत्काल ज़रूरतों के लिये प्रतिक्रिया की पेशकश करेगा जिसमें शामिल है:
      • टिकाऊ और उच्च गुणवत्ता वाले डिजिटल, जलवायु, ऊर्जा और परिवहन बुनियादी ढांँचे का विकास करना।
      • दुनिया भर में स्वास्थ्य, शिक्षा और अनुसंधान प्रणालियों को मज़बूत करना।
    • अनुदान: परियोजना के वित्तपोषण के लिये यूरोपीय संघ अपने यूरोपीय कोष का उपयोग सतत् विकास प्लस हेतु करेगा।
      • इसके तहत 40 अरब यूरो उपलब्ध कराए जाते हैं और बाहरी सहायता कार्यक्रमों से 18 अरब यूरो तक के अनुदान की पेशकश की जाएगी।
      • लक्ष्य को  प्राप्त करने के लिये योजना को अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और निजी क्षेत्र से वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।
      • ऋण संकट के जोखिम को सीमित करने हेतु उचित और अनुकूल शर्तों के तहत वित्तपोषण किया जाएगा।
    • B3W प्रोजेक्ट की शाखा: EU रणनीति बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (Build Back Better World- B3W) पहल की एक शाखा है।
      • B3W जून 2021 में सबसे अमीर ग्रुप ऑफ सेवन (G-7) लोकतंत्रों द्वारा घोषित एक अंतर्राष्ट्रीय  बुनियादी ढांँचा निवेश पहल है।
      •  G7 (Group of Seven) देशों ने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road initiative- BRI) परियोजना का मुकाबला करने के लिये 47वें के G7 शिखर सम्मेलन में 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ (Build Back Better World- B3W) पहल का प्रस्ताव रखा।
  • चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के बारे में:
    • परिचय: इस परियोजना की परिकल्पना वर्ष 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने की थी। BRI पहल चीन द्वारा प्रस्तावित एक महत्त्वाकांक्षी आधारभूत ढाँचा विकास एवं संपर्क परियोजना है जिसका लक्ष्य चीन को सड़क, रेल एवं जलमार्गों के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका और एशिया से जोड़ना है।
      • यह कनेक्टिविटी पर केंद्रित चीन की एक रणनीति है, जिसके माध्यम से सड़कों, रेल, बंदरगाह, पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं को ज़मीन एवं समुद्र के माध्यम से एशिया, यूरोप  एवं अफ्रीका से जोड़ने की परिकल्पना की गई है।
      • वर्ष 2013 से 2020 के मध्य तक चीन का कुल निवेश लगभग 750 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
      • चीन का तर्क है कि वह संयुक्त परियोजनाओं को लाभ पहुँचाने वाले ऋण प्रदान करते हुए अपने भागीदारों की संप्रभुता का सम्मान करता है, जबकि आलोचकों का कहना है कि बीजिंग की संविदात्मक शर्तें मानव, श्रम और पर्यावरण अधिकारों का हनन करती हैं।
    • BRI की आलोचना: निम्नलिखित कारणों से पश्चिमी दुनिया द्वारा BRI परियोजना की काफी आलोचना की गई है:
      • चीन की ऋण जाल नीति: बीआरआई को चीन की ऋण जाल नीति के एक भाग के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें चीन जान-बूझकर किसी अन्य देश को कर्जदार बनाने तथा  आर्थिक या राजनीतिक रियायतें प्राप्त करने के इरादे से अत्यधिक ऋण देता है।
        • पश्चिमी देश इसे चीन के लिये गरीब देशों को प्रभावित करने के एक उपकरण के रूप में देखते हैं।
        • वे उभरती अर्थव्यवस्थाओं को बहुत अधिक कर्ज लेने के लिये उकसाने हेतु चीन की आलोचना करते हैं और आरोप लगाते हैं कि चीन की निविदा प्रक्रिया भ्रष्टाचार से ग्रस्त है।
      • नया उपनिवेशवाद: उन्होंने इस पहल को नए उपनिवेशवाद या 21वीं सदी की ‘मार्शल योजना’ के रूप में नामित किया है।
      • उत्पाद की दोहरी प्रकृति: साथ ही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना का निर्माण जैसी परियोजनाएँ न केवल प्रकृति में वाणिज्यिक हैं बल्कि रणनीतिक प्रभाव वाली भी हैं।
    • भारत का पक्ष

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

G20 'ट्रोइका' में शामिल हुआ भारत

प्रिलिम्स के लिये: 

G20 'ट्रोइका'

मेन्स के लिये:

G20 और भारत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत G20 'ट्रोइका' में शामिल हो गया है और इसके साथ ही भारत ने अगले वर्ष के लिये ‘G20’ की प्रेसीडेंसी संभालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु

  • 'ट्रोइका' के विषय में:
    • यह G20 के भीतर एक शीर्ष समूह को संदर्भित करता है जिसमें वर्तमान, पिछला और आगामी अध्यक्ष देश यानी इंडोनेशिया, इटली और भारत शामिल हैं।
    • ट्रोइका सदस्य के रूप में भारत G20 के एजेंडे की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये इंडोनेशिया और इटली के साथ मिलकर काम करेगा।
      • भारत 1 दिसंबर, 2022 को इंडोनेशिया से G20 की अध्यक्षता ग्रहण करेगा और वर्ष 2023 में भारत में पहली बार G20 लीडर्स समिट का आयोजन किया जाएगा।
      • इटली ने 30-31 अक्तूबर, 2021 के दौरान G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की, जहाँ भारत ने तालिबान द्वारा अधिग्रहण के बाद अफगानिस्तान के भविष्य के मुद्दे को उठाया था।
      • इंडोनेशिया ने 1 दिसंबर, 2021 से G20 की अध्यक्षता संभाली और आने वाले महीनों में इंडोनेशिया 30-31 अक्तूबर, 2022 को निर्धारित G20 लीडर्स समिट से पहले G20 के सदस्यों के बीच विभिन्न स्तरों पर चर्चा हेतु सम्मेलन आयोजित करेगा। 
      • अगले वर्ष का शिखर सम्मेलन "रिकवर टुगेदर, रिकवर स्ट्रांगर" के समग्र विषय के साथ आयोजित किया जाएगा।

जी20:

  • परिचय:
    • G20 समूह विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रतिनिधि, यूरोपियन यूनियन एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है।
      • G20 समूह का स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं होता है। 
    • G20 समूह दुनिया की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को एक साथ लाता है। यह वैश्विक व्यापार का 75%, वैश्विक निवेश का 85%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% तथा विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
  • सदस्य:
    • G20 समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

G20

  • समूहीकरण का अधिदेश:
    • G20 अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है, जो इस मान्यता को दर्शाता है कि वैश्विक समृद्धि अन्योन्याश्रित है और आर्थिक अवसर एवं चुनौतियाँ आपस में जुड़ी हुई हैं।
    • भविष्य की बेहतर तैयारी के लिये G20 देश एक साथ आए हैं।
    • समूह का प्राथमिक जनादेश अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिये है, जिसमें दुनिया भर में भविष्य के वित्तीय संकटों को रोकने हेतु विशेष ज़ोर दिया गया है।
    • यह वैश्विक आर्थिक एजेंडा को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • वर्ष 1999-2008 से केंद्रीय बैंक के गवर्नरों और वित्त मंत्रियों के एक समूह से लेकर राज्यों के प्रमुखों तक के मंच का समर्थन किया गया।
  • भारत और G20:
    • भारत ने G20 के संस्थापक सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण मुद्दों और दुनिया भर में सबसे कमज़ोर लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उठाने के लिये इस मंच का उपयोग किया है।
    • वर्ष 2022 में वैश्विक आर्थिक एजेंडा मंच की अध्यक्षता भारत द्वारा की जानी है, यह भारत के लिये अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ावा देने हेतु एक चुनौती के साथ-साथ एक अवसर भी है।
    • लेकिन बेरोज़गारी दर में वृद्धि और अपने क्षेत्रों में गरीबी के कारण इसके लिये प्रभावी ढंग से नेतृत्व करना मुश्किल है।

स्रोत: द हिंदू 


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