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डेली न्यूज़

  • 01 Dec, 2021
  • 44 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बारबाडोस: दुनिया का सबसे नया गणराज्य

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रमंडल देश, कैरिबियन समुदाय, बारबाडोस, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन

मेन्स के लिये :

बारबाडोस: दुनिया का सबसे नया गणराज्य, भारत और बारबाडोस संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बारबाडोस (Barbados) ने आधिकारिक तौर पर महारानी एलिजाबेथ द्वितीय (Queen Elizabeth II) को अपने राष्ट्र के प्रमुख पद से हटा दिया है और देश के ब्रिटिश उपनिवेश बनने के लगभग 400 वर्षों बाद दुनिया का सबसे नया गणराज्य बन गया है।

Caribbean-Sea

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: 
    • बारबाडोस (Barbados): 
      • अवस्थिति: यह दक्षिण-पूर्वी कैरेबियन सागर में एक छोटा सा द्वीप देश है। 
      • पड़ोसी देश: इसके पड़ोसी देशों में उत्तर में सेंट लूसिया, पश्चिम में सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस तथा दक्षिण में त्रिनिदाद एवं टोबैगो शामिल हैं।
      • राजधानी: ब्रिज़टाउन (Bridgetown) 
      • स्वतंत्रता: 30 नवंबर, 1966 को बारबाडोस ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
      • नेतृत्व:
        • डेम सैंड्रा प्रुनेला मेसन (Dame Sandra Prunella Mason) बारबाडोस की वर्तमान राष्ट्रपति हैं।
        • मिया अमोर मोटली (Mia Amor Mottley) बारबाडोस की वर्तमान प्रधानमंत्री हैं।
      • कैरेबियन समुदाय (Caribbean Community- CARICOM) का हिस्सा: बारबाडोस कैरिबियन समुदाय (CARICOM) का हिस्सा है, जिसका गठन 1973 में किया गया था।
    • बारबाडोस का इतिहास: 
      • बारबाडोस पहली बार 1625 में एक ब्रिटिश उपनिवेश बना। यह 400 से अधिक वर्षों तक ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा रहा, व्यापार, वाणिज्य और शोषण जैसी गतिविधियों को ब्रिटिश वाणिज्यवाद और उपनिवेशवाद ने सदियों से बढ़ावा दिया।
    • कैरेबियन इतिहास कुछ सबसे संस्थागत और अदृश्य भयावहता (दासता, गिरमिटिया मज़दूर, लोकतंत्र की कमी) का गढ़ था।
  • भारत और बारबाडोस संबंध:
    • साझा मंच: भारत और बारबाडोस घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण संबंध साझा करते हैं और संयुक्त राष्ट्र (UN), राष्ट्रमंडल व गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों में सक्रिय रूप से वार्ताओं में हिस्सा लेते हैं।
    • वायुसेवा समझौता: भारत और बारबाडोस ने वर्ष 2015 में नागरिकों हेतु यात्रा व्यवस्था और दोनों देशों के बीच सीधे हवाई संपर्क एवं चार्टर्ड उड़ानों के संचालन के लिये वायुसेवा समझौते पर हस्ताक्षर किये
      • भारत और बारबाडोस के बीच पहली बार विदेश कार्यालय परामर्श (Foreign Office Consultations- FOC) का आयोजन वर्ष 2015 में ब्रिजटाउन, बारबाडोस में किया गया था।
    • UNSC रिफॉर्म्स: वर्ष 2007 में बारबाडोस द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार पर G-4 प्रस्ताव का समर्थन किया।
      • बारबाडोस द्वारा वर्ष 2011-12 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थायी सीट के लिये भारत की उम्मीदवारी के पक्ष में मतदान किया गया तथा सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट हेतु भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया।
    • द्विपक्षीय व्यापार:
      • निर्यात (12.76 मिलियन अमेरिकी डाॅलर, वर्ष 2019-20): भारतीय निर्यात में वाहन, फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, लोहा और इस्पात, जैविक रसायन आदि शामिल हैं।
      • आयात (1.48 मिलियन अमेरिकी डाॅलर, वर्ष 2019-20): भारतीय आयात में विद्युत मशीनरी, ऑप्टिकल फोटोग्राफी, सिनेमैटोग्राफिक उपकरण शामिल हैं।
    • खेल और संस्कृति:
      • दोनों देशों के मध्य क्रिकेट के ज़रिये मज़बूत संबंध होने के कारण पूर्व और वर्तमान समय के कई बारबेडियन क्रिकेटर भारतीय खेल प्रशंसकों में काफी प्रसिद्ध हैं।
      • कई बारबेडियन क्रिकेटर इंडियन प्रीमियर लीग टीमों के सदस्य हैं।
    • भारतीय समुदाय:
      • भारतीय मूल के लगभग 2500 लोग बारबाडोस में निवास करते हैं और उनमें से अधिकांश ने वहाँ की राष्ट्रीयता प्राप्त कर ली है।

राष्ट्रमंडल:

  • यह उन देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जो ज़्यादातर ब्रिटिश साम्राज्य और उस पर निर्भर क्षेत्र थे।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1949 में लंदन घोषणापत्र द्वारा की गई थी।
  • महारानी एलिजाबेथ द्वितीय राष्ट्रमंडल की प्रमुख हैं।
  • वर्तमान में 54 देश इसके सदस्य हैं। यह सदस्यता स्वतंत्र और समान स्वैच्छिक सहयोग पर आधारित है।
    • यह 2.5 अरब लोगों का आश्रय स्थल है, इसमें उन्नत अर्थव्यवस्थाएंँ और विकासशील देश दोनों शामिल हैं।
  • वर्ष 2009 में राष्ट्रमंडल में शामिल होने वाला अंतिम देश रवांडा था।
  • राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक को राष्ट्रमंडल देशों के शासनाध्यक्षों की द्विवार्षिक शिखर बैठक कहा जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सितारों में लिथियम की प्रचुरता

प्रिलिम्स के लिये:

लिथियम

मेन्स के लिये: 

सितारों में लिथियम की प्रचुरता: कारण और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने कुछ विकसित तारों में लिथियम की प्रचुरता के पीछे के रहस्य का पता लगाया है।

  • विकसित सितारों में लिथियम की उपस्थिति हमेशा वैज्ञानिकों के लिये एक रहस्य रही है, क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित मॉडल के मुताबिक, इस तत्त्व को तारे के गर्म प्लाज़्मा से नष्ट हो जाना चाहिये था।
  • लिथियम पृथ्वी पर मौजूद एक दुर्लभ तत्व है और रिचार्जेबल बैटरी का एक प्रमुख घटक है।

Lithium

प्रमुख बिंदु

  • शोध के लिये नमूने: इस शोध में ‘रेड जाइंट’ (अपने जीवनकाल की अंतिम अवस्था में मौजूद तारे) में लिथियम की उपस्थिति की जाँच करना शामिल था, इससे पता चला है कि सूर्य जैसे ‘रेड जाइंट’ तारों में से केवल 1% में लिथियम-समृद्ध सतह मौजूद थी।
  • अनुसंधान पद्धति: इस अनुसंधान (जिसे ‘GALAH’ कहा जाता है- एक आम ऑस्ट्रेलियाई पक्षी के नाम पर) के तहत लिथियम बहुतायत सहित विभिन्न भौतिक और रासायनिक गुणों से समृद्ध लगभग 500,000 सितारों के संग्रह का अध्ययन किया गया।
  • शोध के निष्कर्ष: लिथियम उत्पादन की मौजूदगी के संबंध में वैज्ञानिकों ने पहली बार पुष्टि की है कि सभी लिथियम युक्त सितारों के मूल में हीलियम जल रहा है।
    • उन्होंने अनुमान लगाया कि लिथियम उत्पादन हिंसक हीलियम-कोर फ्लैश से जुड़ा हुआ है।
    • शोध के अनुसार, यह दो स्थिर हीलियम समस्थानिकों के बीच टकराव से जुड़ी परमाणु प्रतिक्रियाओं का एक सरल और संक्षिप्त अनुक्रम है, जिसके कारण एक स्थिर लिथियम समस्थानिक बन गया।
    • सर्वेक्षण से पता चला कि सभी सूर्य जैसे कम द्रव्यमान वाले सितारों में लिथियम युक्त जाइंट की दुर्लभ उपस्थिति है।

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लिथियम:

  • लिथियम के गुण:
    • यह एक रासायनिक तत्त्व है जिसका प्रतीक Li है 
    • यह एक नरम तथा चांदी के समान सफेद धातु है।
    • मानक परिस्थितियों में यह सबसे हल्की धातु और सबसे हल्का ठोस तत्त्व है।
    • यह अत्यधिक प्रतिक्रियाशील और ज्वलनशील है, अत: इसे खनिज तेल के रूप में संगृहीत किया जाना चाहिये।
    • लिथियम नया 'सफेद सोना' (White Gold) बन गया है क्योंकि उच्च-क्षमता वाली रिचार्जेबल बैटरी में उपयोग के कारण इसकी मांग बढ़ रही है।
    • उभरती वैश्विक लिथियम मांग और बढ़ती कीमतों ने तथाकथित 'लिथियम ट्रायंगल' जिसमें अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली के कुछ हिस्से शामिल हैं, के प्रति रुचि बढ़ा दी है।

Chile

  • अनुप्रयोग:
    • थर्मोन्यूक्लियर अभिक्रियाओं में।
    • लिथियम धातु का अनुप्रयोग उपयोगी मिश्रित धातुओं को बनाने में किया जाता है। उदाहरण के लिये मोटर इंजनों में सफेद धातु की बियरिंग बनाने में, एल्युमीनियम के साथ विमान के पुर्जे बनाने तथा मैग्नीशियम के साथ आर्मपिट प्लेट बनाने में।
    • विद्युत-रासायनिक सेल के निर्माण में तथा इलेक्ट्रिक वाहनों, लैपटॉप आदि के निर्माण में लिथियम एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • सर्वाधिक लिथियम भंडार वाले देश:
    • चिली> ऑस्ट्रेलिया> अर्जेंटीना
  • भारत में लिथियम:
    • परमाणु खनिज निदेशालय (भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के तहत) के शोधकर्त्ताओं ने हालिया सर्वेक्षणों में दक्षिणी कर्नाटक के मांड्या ज़िले में भूमि के एक छोटे से हिस्से में 14,100 टन के लिथियम भंडार की उपस्थिति का अनुमान लगाया है।
      • साथ ही यह भारत की पहली लीथियम भंडार साइट भी है।
  • भारत में अन्य संभावित साइट:
    • राजस्थान, बिहार और आंध्र प्रदेश में मौजूद प्रमुख अभ्रक बेल्ट।
    • ओडिशा और छत्तीसगढ़ में मौजूद पैगमाटाइट (आग्नेय चट्टानें) बेल्ट।
    • राजस्थान में सांभर और पचपदरा तथा गुजरात के कच्छ के रण का खारा/लवणीय जलकुंड।
  • संबंधित सरकारी पहलें:
    • भारत ने सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी ‘खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड’ के माध्यम से अर्जेंटीना (जहाँ विश्व में धातु का तीसरा सबसे बड़ा भंडार मौजूद है) में संयुक्त रूप से लिथियम की खोज करने के लिये अर्जेंटीना की एक कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड का प्राथमिक कार्य विदेशों में विशिष्ट खनिज संपदा जैसे- लिथियम और कोबाल्ट आदि का अन्वेषण करना है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

कपास पर आयात शुल्क घटाने की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

कपास, आयात शुल्क, सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यम, भारत में शीर्ष कपास उत्पादक राज्य

मेन्स के लिये:

भारत में कपास उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ एवं समाधान 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने केंद्रीय कपड़ा मंत्री से कपास पर लगाए गए आयात शुल्क को हटाने हेतु संबंधित मंत्रालयों को निर्देश देने का अनुरोध किया है।

  • कपड़ा उद्योग राज्य में दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार प्रदाता है तथा देश के कपड़ा उद्योग में तमिलनाडु की 1/3 हिस्सेदारी है।

प्रमुख बिंदु 

  • प्रमुख मांगें:
    • कपास आयात पर लगने वाले 11% आयात शुल्क को हटाना। साथ ही कपास की खरीद में सूत निर्माताओं को व्यापारियों की तुलना में प्राथमिकता देने की मांग।
    • पीक सीज़न (दिसंबर-मार्च) के दौरान कपास खरीद के लिये कताई मिलों को 5% ब्याज सबवेंशन (Interest Subvention) का विस्तार। 
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों ( Micro, Small and Medium-sized Enterprises- MSMEs) के लिये टिकाऊ कपास की ई-नीलामी के न्यूनतम लॉट आकार को 500 गांँठ तक कम करने का भी आग्रह किया गया है।
  • मांग का कारण:
    • कपास और धागे की कीमतों में उतार-चढ़ाव की गंभीर स्थिति के कारण कपड़ों की कीमतों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव की वजह मांगहै।  
      • वर्तमान संकट ने निर्यात ऑर्डर्स को बड़े पैमाने पर रद्द कर दिया है जिससे  दीर्घकालिक निर्यात प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
    • कपास की कीमतों में उतार-चढ़ाव का एक प्रमुख कारण वर्ष 2021-22 के बजट में 5% मूल सीमा शुल्क (BCD), 5% कृषि अवसंरचना विकास उपकर (AIDC) और 10% समाज कल्याण उपकर लगाया जाना है जो समग्र आयात शुल्क का 11% है।
  • आयात शुल्क से संबंधित चिंताएंँ
    • कच्चे कपास पर आयात शुल्क मूल्यवर्द्धित क्षेत्रों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को नष्ट कर देगा, जिनका निर्यात में लगभग 50,000 करोड़ रुपए और घरेलू बाज़ार में 25,000 करोड़ रुपए का कारोबार है।
      • ये क्षेत्र लगभग 12 लाख लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं।

कपास

  • परिचय: 
    • यह खरीफ फसल है, जिसे तैयार होने में 6 से 8 महीने लगते हैं।
    • सूखा-प्रतिरोधी फसल के लिये शुष्क जलवायु आदर्श मानी जाती है।
    • इस फसल को विश्व की 2.1% कृषि योग्य भूमि पर उगाया जाता है तथा विश्व की 27% वस्त्र आवश्यकताओं को पूरा करती है।
    • तापमान: 21-30 डिग्री सेल्सियस के मध्य।
    • वर्षा: लगभग 50-100 सेमी.।
    • मिट्टी का प्रकार: बेहतर जल निकासी वाली काली कपासी मिट्टी (रेगुर मिट्टी) (जैसे दक्कन के पठार की मिट्टी) इसके लिये उपयुक्त मानी जाती है।
    • उत्पाद: फाइबर, तेल और पशु चारा।
    • शीर्ष कपास उत्पादक देश: चीन > भारत > यूएसए
    • भारत में शीर्ष कपास उत्पादक राज्य: गुजरात> महाराष्ट्र> तेलंगाना> आंध्र प्रदेश> राजस्थान।
    • कपास की चार कृषिगत प्रजातियाँ: गॉसिपियम अर्बोरियम (Gossypium arboreum), जी.हर्बेसम (G.herbaceum), जी.हिरसुटम (G.hirsutum) व जी.बारबडेंस (G.barbadense)।
      • गॉसिपियम आर्बोरियम और जी.हर्बेसम को प्राचीन विश्व का कपास या एशियाई कपास के रूप में जाना जाता है।
      • जी.हिरसुटम को अमेरिकी कपास या उच्च्भूमि कपास के रूप में भी जाना जाता है और जी.बारबडेंस को मिस्र के कपास के रूप में जाना जाता है। ये दोनों नए विश्व की कपास प्रजातियाँ हैं।
    • संकर/हाइब्रिड कपास: इस प्रकार की कपास विभिन्न आनुवंशिक लक्षणों वाले दो मूल उपभेदों को हाइब्रिड करके बनाई गई है। जब खुले-परागण वाले पौधे अन्य संबंधित किस्मों के साथ स्वाभाविक रूप से पार-परागण करते हैं तो हाइब्रिड अक्सर प्रकृति में अनायास और निरुद्देश्य ढंग से बनाए जाते हैं।
    • बीटी कपास: यह एक आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव या कपास की आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट प्रतिरोधी किस्म है।
  • भारत में कपास:
    • कपास एक महत्त्वपूर्ण फाइबर और नकदी फसल है जो भारत की औद्योगिक और कृषि अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाती है।
    • भारत विश्व में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक और तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। यह विश्व में कपास का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
    • कीट-प्रतिरोधी आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) बीटी कपास संकर फसलों ने वर्ष 2002 में अपनी शुरुआत के बाद से भारतीय बाज़ार (कपास के 95% से अधिक क्षेत्र को कवर) पर कब्जा कर लिया है।
    • भारत प्रत्येक वर्ष लगभग 6 मिलियन टन कपास का उत्पादन करता है जो विश्व के कपास उत्पादन का लगभग 23% है।
    • भारत विश्व के कुल जैविक कपास उत्पादन का लगभग 51% उत्पादन करता है।

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स्रोत्र: द हिंदू


शासन व्यवस्था

स्वास्थ्य व्यय पर NHA रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र, सकल घरेलू उत्पाद

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य व्यय पर NHA रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) ने बताया कि सरकार ने स्वास्थ्य पर खर्च में वृद्धि की है, जिससे आउट-ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर (OOPE) वर्ष 2017-18 में घटकर 48.8% हो गया, जो वर्ष 2013-14 में 64.2% था।

  • यह रिपोर्ट राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र द्वारा तैयार की गई थी, जिसे स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) तकनीकी सचिवालय के रूप में नामित किया गया था।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा उपलब्ध कराए गए स्वास्थ्य खातों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत प्रणाली 2011 के आधार पर एक लेखा ढाँचे का उपयोग कर NHA अनुमान तैयार किये जाते हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र:

  • यह 2006-07 में भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के तहत तकनीकी सहायता के लिये एक शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करने हेतु स्थापित किया गया था।
  • इसका अधिदेश स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के लिये राज्यों को तकनीकी सहायता के प्रावधान करने और क्षमता निर्माण हेतु नीति एवं रणनीति बनाने में सहायता करना है।

प्रमुख बिंदु

  • कुल सकल घरेलू उत्पाद में सरकारी हिस्सेदारी में वृद्धि:
    • 2017-18 के लिये देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद में सरकारी स्वास्थ्य व्यय के हिस्से में वृद्धि हुई थी।
    • यह वर्ष 2013-14 के 1.15% से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 1.35% हो गया है।
  • प्रति व्यक्ति बढ़ा हुआ सरकारी खर्च:
    • वर्ष 2013-14 से वर्ष 2017-18 के बीच प्रति व्यक्ति के हिसाब से सरकारी स्वास्थ्य खर्च 1,042 रुपए से बढ़कर 1,753 रुपए हो गया है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का हिस्सा:
    • वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का हिस्सा 2013-14 के 51.1% से बढ़कर 2017-18 में 54.7% हो गया है।
    • प्राथमिक और माध्यमिक देखभाल वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय के 80% से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है।
  • स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय:
    • स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय का हिस्सा, जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ और सरकारी कर्मचारियों को की गई चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल है, में वृद्धि हुई है।
  • जेब खर्च में कमी:
    • स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी खर्च में वृद्धि के कारण कुल स्वास्थ्य व्यय में सरकारी खर्च का हिस्सा बढ़कर 40.8 फीसदी हो गया और 2017-18 के लिये जेब खर्च में 48.8% की गिरावट आई।
      • OOPE में गिरावट सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ते उपयोग और इन सुविधाओं एवं सेवाओं की लागत में कमी के कारण है।

स्वास्थ्य क्षेत्र के मुद्दे:

  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का अभाव: देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल का दायरा सीमित है।
    • जहाँ तक ​​एक अच्छी तरह से काम करने वाले सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बात है तो वहाँ केवल गर्भावस्था देखभाल, सीमित चाइल्डकेयर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • आपूर्ति-पक्ष की कमियाँ: बदतर स्वास्थ्य प्रबंधन कौशल और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिये उचित प्रशिक्षण एवं सहायक पर्यवेक्षण की कमी स्वास्थ्य सेवाओं की वांछित गुणवत्ता के वितरण को अवरुद्ध करती है। 
    • वर्ष 2019 में जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रत्येक 100 में से लगभग एक बच्चे की मृत्यु दस्त या निमोनिया के कारण पाँच वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है।  
    • स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुँच का प्रत्यक्ष संबंध डायरिया, पोलियो और मलेरिया जैसी बीमारियों से है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य वित्तपोषण पर व्यय लगातार कम हो रहा है (जीडीपी का लगभग 1.3%)। भारत का कुल ‘आउट-ऑफ-पॉकेट’ व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.3% है। 
    • यह आवंटन ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (OECD) देशों के औसत (7.6%) और ब्रिक्स (BRICS) देशों द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र पर किये जाने वाले औसत खर्च (3.6%) की तुलना में काफी कम है।
  • अतिव्यापी क्षेत्राधिकार: सार्वजनिक स्वास्थ्य हेतु उत्तरदायी कोई एक विशिष्ट प्राधिकरण नहीं है, जो कानूनी रूप से दिशा-निर्देश जारी करने एवं स्वास्थ्य मानकों के अनुपालन को लागू करने हेतु अधिकृत है।
  • उप-इष्टतम सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली: इसके कारण उन ग़ैर-संचारी रोगों से निपटना चुनौतीपूर्ण है जहाँ रोकथाम और रोग की आरंभिक पहचान सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। 
    • यह कोविड-19 महामारी जैसे नए और उभरते खतरों के लिये पूर्व-तैयारी और प्रभावी प्रबंधन की क्षमता को सीमित करती है।  
  • आवश्यकता से कम डॉक्टर:
    • भारत में वर्तमान में WHO के 1:1000 के मानदंड के मुकाबले 1,445 की आबादी पर एक ही  डॉक्टर मौजूद है।

आगे की राह

  • लागत को कम करने और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु मेडिकल कॉलेजों में निवेश को  प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • अन्य नैदानिक प्रक्रियाओं और अस्पतालों में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) पर ज़ोर देना तथा लक्ष्य की त्वरित प्राप्ति के लिये टीकाकरण अभियान में निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाना।
  • नई दवाओं के विकास में अधिक निवेश का समर्थन करने और जीवन रक्षक व आवश्यक दवाओं पर ‘वस्तु एवं सेवा कर’ को कम करने के लिये अतिरिक्त कर कटौती द्वारा अनुसंधान तथा विकास को प्रोत्साहित करना।
  • लोगों को प्रस्तावित स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने हेतु मौजूदा स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों को तैयार करने के लिये उनके प्रशिक्षण, पुन: कौशल और ज्ञान उन्नयन पर ध्यान देना आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

स्ट्रीट वेंडर्स का कौशल संवर्द्धन

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि, PMKVY, मुद्रा योजना, विश्व युवा कौशल दिवस

मेन्स के लिये:

स्ट्रीट वेंडर्स की अपस्किलिंग : महत्त्व एवं उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) 3.0 के रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (RPL) घटक के तहत दिल्ली में 2,500 स्ट्रीट फूड वेंडर्स को प्रशिक्षित करने के लिये एक पायलट परियोजना की घोषणा की।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह परियोजना पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र कौशल परिषद (THSSC) तथा राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के प्रशिक्षण भागीदारों द्वारा कार्यान्वित की जाएगी
    • पंजीकृत स्ट्रीट फूड वेंडर्स चार-पाँच दिनों के परामर्श सत्रों से गुज़रेंगे, जहाँ वे अपनी दक्षता, योग्यता, रुचियों, अवसरों और यात्रा कार्यक्रम की संरचना के बारे में स्पष्टता प्राप्त करेंगे।
    • विक्रेताओं को स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों, कोविड -19 प्रोटोकॉल के तहत सुरक्षा प्रावधानों, कर्मचारियों और ग्राहकों के साथ प्रभावी संचार तकनीक, नए जमाने के कौशल जैसे डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता, डिजिटल भुगतान व ई-सेलिंग के क्षेत्र में शिक्षित किया जाएगा।
    • मुद्रा योजना के तहत वेंडरों को भी ऋण उपलब्ध कराया जाएगा।
    • यह विक्रेताओं को ई-कार्ट लाइसेंस के लिये योग्य बनाएगा, उन्हें भोजन तैयार करने और वेंडिंग के सौंदर्यशास्त्र में स्वच्छता की स्थिति में सुधार करना सिखाया जाएगा। साथ ही चार दिन के प्रशिक्षण के दौरान प्रतिदिन 500 रुपए दिये जाएंगे।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य स्ट्रीट फूड वेंडर्स को प्रासंगिक कौशल प्रदान करना है, जिससे उपभोक्ताओं के लिये बेहतर सेवाएँ, राजस्व सृजन के अधिक अवसर और नागरिक नियमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
  • महत्त्व:
    • भारत में लगभग 5.5 मिलियन स्ट्रीट फूड वेंडर्स हैं, जो अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में लगभग 14% का योगदान करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में उनका कौशल महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • यह निश्चित रूप से कार्यबल की कामकाजी और जीविका की स्थिति को ऊपर उठाने में मदद करेगा। 
    • यह पूर्वी दिल्ली में 4,000 विक्रेताओं और राष्ट्रीय स्तर पर 25 लाख स्ट्रीट वेंडरों को सामाजिक सुरक्षा और बचाव प्रदान करेगा।
  • खाद्य विक्रेताओं से संबंधित अन्य योजनाएँ:

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के बारे में:
    • PMKVY को 2015 में स्किल इंडिया मिशन (Skill India Mission) के तहत लॉन्च किया गया था।
    • इसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक भारत में 40 करोड़ से अधिक लोगों को विभिन्न कौशल में प्रशिक्षित करना है।
    • इसका उद्देश्य भारतीय युवाओं को समाज में बेहतर आजीविका और सम्मान के लिये  व्यावसायिक प्रशिक्षण व प्रमाणन प्रदान करना है।
  • PMKVY-1.0: 
    • प्रारंभ: भारत की सबसे बड़ी कौशल प्रमाणन योजना ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ 15 जुलाई, 2015 (विश्व युवा कौशल दिवस) को शुरू की गई थी।
    • उद्देश्य: युवाओं को मुफ्त लघु अवधि का कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना एवं मौद्रिक पुरस्कार के माध्यम से कौशल विकास को प्रोत्साहित करना।
    • कार्यान्वयन: कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा PMKVY का कार्यान्वयन किया गया है।
    • मुख्य घटक: लघु अवधि का प्रशिक्षण, विशेष परियोजनाएँ, पूर्व शिक्षण को मान्यता, कौशल और रोज़गार मेला आदि
  • PMKVY 2.0 (2016-20):
    • क्षेत्रक (Sector) और भूगोल (Geography) दोनों के संदर्भ में तथा भारत सरकार के अन्य मिशनों जैसे- मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत आदि के साथ अधिक संरेखण द्वारा शुरू किया गया।
    • PMKVY 1.0 और PMKVY 2.0 के तहत देश में एक बेहतर मानकीकृत कौशल पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से 1.2 करोड़ से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है।
  • PMKVY 3.0:
    • इसे  28 राज्यों/आठ केंद्रशासित प्रदेशों के 717 ज़िलों में लॉन्च किया गया, PMKVY 3.0 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • यह योजना 948.90 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2020-2021 की योजना अवधि में आठ लाख उम्मीदवारों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने की परिकल्पना करती है। 
    • वर्तमान युग और उद्योग 4.0 ने कौशल विकास को बढ़ावा देकर मांग-आपूर्ति के अंतर को पाटने पर ध्यान केंद्रित किया है।

RPL कार्यक्रम:

  • इसे राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • इसका उद्देश्य कौशल विकास कार्यक्रमों की बेहतर योजना और कार्यान्वयन हेतु विकेंद्रीकरण एवं स्थानीय शासन को बढ़ावा देना है।
  • यह एक औपचारिक व्यवस्था के बाहर रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग है और व्यक्ति को उसके  कौशल हेतु सरकारी प्रमाणपत्र प्रदान करता है।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

परमाणु ऊर्जा और जलवायु

चर्चा में क्यों?

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (GCP) द्वारा प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2021 में 4.9% के स्तर तक बढ़ सकता है। यह अध्ययन जलवायु संकट से निपटने के लिये दुनिया के प्रयासों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

  • 40% की हिस्सेदारी के साथ ऊर्जा क्षेत्र ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक बना हुआ है। इस संदर्भ में परमाणु ऊर्जा को एक गैर-प्रदूषणकारी विकल्प के रूप में देखा जाता है।
  • हालाँकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये परमाणु ऊर्जा को जीवाश्म ईंधन में बदलने की राय पर वैज्ञानिक समुदाय विभाजित है।

प्रमुख बिंदु

  • परमाणु ऊर्जा के लाभ:
    • गैर-बाधित बिजली आपूर्ति: पवन एवं सौर जैसी अक्षय ऊर्जा की एक समस्या यह है कि वे केवल तभी बिजली पैदा करते हैं जब हवा चल रही हो या सूरज चमक रहा हो।
      • जबकि परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा का एक नियमित स्रोत है, क्योंकि परमाणु ऊर्जा संयंत्र एक वर्ष या उससे अधिक समय तक बिना किसी रुकावट या रखरखाव के संचालित हो सकते हैं, जिससे यह ऊर्जा का अधिक विश्वसनीय स्रोत बन जाता है।
    • संचालन की कम लागत: परमाणु ऊर्जा संयंत्र, कोयले या गैस की तुलना में अधिक मितव्ययी होते हैं।
      • यह अनुमान लगाया गया है कि रेडियोधर्मी ईंधन के प्रबंधन और परमाणु संयंत्रों के निपटान जैसी लागतों में भी एक कोयला संयंत्र के 33% से 50% और गैस संयुक्त चक्र संयंत्र के 20% से 25% के बीच खर्च होता है।
    • पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना: वर्ष 2015 में पेरिस समझौते को अपनाने के साथ सभी देशों के लिये यह आवश्यक है कि वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करें और सदी के अंत तक वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक सीमित रखें।
      • जलवायु संबंधी वादों को पूरा करने में परमाणु ऊर्जा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • परमाणु ऊर्जा से संबंधित समस्याएँ:
    • परमाणु ऊर्जा उत्सर्जन-मुक्त नहीं है: बिजली उत्पादन की प्रक्रिया के आधार पर या परमाणु ऊर्जा संयंत्र के पूरे जीवन चक्र को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है परमाणु ऊर्जा भी CO2 उत्सर्जन करती है।
      • उदाहरण के लिये ‘संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (IPCC) द्वारा वर्ष 2014 में जारी एक रिपोर्ट में प्रति किलोवाट-घंटे (kWh) के बराबर CO2 के 3.7 से 110 ग्राम तक का अनुमान लगाया गया था।
      • इसके अलावा कड़े सुरक्षा नियमों के कारण नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्माण के दौरान पिछले दशकों में निर्मित संयंत्र की तुलना में अधिक CO2 उत्पन्न करते हैं।
    • अन्य नवीकरणीय विकल्पों की तुलना में खराब: यदि एक परमाणु संयंत्र के पूरे जीवन चक्र को गणना में शामिल किया जाता है, तो परमाणु ऊर्जा निश्चित रूप से कोयले या प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन से बेहतर है।
      • हालाँकि अक्षय ऊर्जा की तुलना में तस्वीर काफी अलग है।
      • कई आँकड़ों के अनुसार, परमाणु ऊर्जा फोटोवोल्टिक सौर पैनल सिस्टम, पवन और जल विद्युत की तुलना में कई गुना अधिक प्रति किलोवाट-घंटे CO2 छोड़ती है।
    • उच्च प्रारंभिक लागत: परमाणु ऊर्जा संयंत्र पवन या सौर ऊर्जा से लगभग चार गुना महँगे होते हैं और निर्माण में पाँच गुना अधिक समय लेते हैं।
      • इसके अलावा परमाणु ऊर्जा उपलब्ध होने में बहुत अधिक समय लगता है (पहुँचने में लगने वाला समय)।
      • इस प्रकार परमाणु ऊर्जा को जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देने योग्य प्रभाव डालने के लिये उच्च इनपुट की आवश्यकता होती है।
    • परमाणु ऊर्जा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: परमाणु ऊर्जा भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हुई है।
      • वैश्विक तापमान के बढ़ने के दौरान कई परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को पहले ही अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा है या ग्रिड को बंद करना पड़ा है।
      • इसके अलावा परमाणु ऊर्जा संयंत्र अपने रिएक्टरों को ठंडा करने के लिये आस-पास के जलस्रोतों पर निर्भर हैं और कई नदियों के सूखने के साथ पानी के स्रोत समाप्त हो गए हैं।
    • परमाणु दुर्घटना का खतरा: परमाणु विरोधी प्रचारक हाल के समय की तीन प्रमुख परमाणु मंदी, वर्ष 1979 में थ्री माइल आइलैंड, वर्ष 1986 में चर्नोबिल और हाल ही में 2011 में फुकुशिमा का प्रचार करेंगे।
      • इन परमाणु संयंत्रों के लिये सभी सुरक्षा उपायों के बावजूद विभिन्न कारकों के कारण वे ठंडे बस्ते में डाल दिये गए, जो कि पर्यावरण और स्थानीय निवासियों के लिये विनाशकारी थे तथा जिन्हें प्रभावित क्षेत्रों से पलायन करना पड़ा था।
    • न्यूक्लियर वेस्ट: न्यूक्लियर पावर का एक साइड इफेक्ट उसके द्वारा पैदा किये जाने वाले न्यूक्लियर वेस्ट की मात्रा है।
      • परमाणु अपशिष्ट का जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है, उदाहरण के लिए कैंसर के विकास का कारण बन सकता है, या जानवरों और पौधों की कई पीढ़ियों के लिये आनुवंशिक समस्याएँ पैदा कर सकता है।

भारत में परमाणु ऊर्जा की स्थिति:

  • भारत ने बिजली उत्पादन के उद्देश्य से परमाणु ऊर्जा के दोहन की संभावना का पता लगाने के लिये सक्रिय रूप से कदम बढ़ाया है।
  • इस दिशा में 1950 के दशक में होमी भाभा द्वारा त्रिस्तरीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम तैयार किया गया था।
  • परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 को भारतीय परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करने की अच्छी क्षमता वाले दो प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्त्वों यूरेनियम और थोरियम के उपयोग के निर्धारित उद्देश्यों के साथ तैयार और कार्यान्वित किया गया था।

Nuclear-Power-Index

आगे की राह

  • अत्यधिक लागत, पर्यावरणीय परिणाम और सार्वजनिक समर्थन की कमी आदि परमाणु ऊर्जा के खिलाफ तर्क प्रस्तुत किये गए। 
    • हालाँकि परमाणु ऊर्जा के अपने लाभ भी हैं।
    • इसलिये देशों को जहाँ भी संभव हो अक्षय ऊर्जा के मिश्रण के उपयोग पर विचार करना चाहिये।
  • थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा को यथाशीघ्र व्यवहार्य बनाया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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