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भारत-विश्व

इनसाइट/द बिग पिक्चर/देश-देशांतर: राष्ट्रमंडल में भारत का बढ़ता रुतबा

  • 26 Apr 2018
  • 22 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 से 20 अप्रैल तक ब्रिटेन की यात्रा पर गए थे जहाँ उन्होंने राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों के 25वें शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस शिखर सम्मेलन का आधिकारिक विषय था 'एक साझा भविष्य की ओर (Towards a Common Future)'। इससे पहले अपने इसी विदेश दौरे में वह 16-17 अप्रैल को दो दिन की स्वीडन यात्रा पर थे, जहाँ स्टॉकहोम में भारत-नॉर्डिक सम्मेलन के अलावा प्रधानमंत्री ने डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड और नॉर्वे के प्रधानमंत्रियों के साथ द्विपक्षीय बैठकों में भाग लिया। 

  • 2009 के बाद यह पहली बार था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया।
  • राष्ट्रमंडल शिखर बैठक में भाग लेने के अलावा भारतीय प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल, सेशेल्स के राष्ट्रपति डैनी फॉरे, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सायरिल रमफोसा, त्रिनिडाड और टोबैगो के प्रधानमंत्री कीथ रौली, साइप्रस के राष्ट्रपति नोकिस अनस्तासियादेस, जमैका के प्रधानमंत्री एंड्रू माइकल होलनेस और मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ के साथ द्विपक्षीय वार्ता की।
  • प्रधानमंत्री की लंदन यात्रा के दौरान भारतीय समुदाय के लोगों के साथ संवाद का भी एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसका नाम था 'भारत की बात, सबके साथ'।

राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन-2018

  • इस शिखर बैठक के एजेंडे में जलवायु परिवर्तन, छोटे द्वीपीय देशों पर मंडराते खतरे प्रमुख थे। इसके अलावा वैश्विक शांति स्थापना और बेहद गरीब देशों को मदद भी एजेंडे में रहे।
  • इसके अलावा बैठक में लोकतंत्र को और मज़बूत करने, अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली, सतत विकास लक्ष्य, पर्यावरण के लिये कार्रवाई और राष्ट्रमंडल देशों की सुरक्षा के मुद्दों पर मुख्य रूप से बातचीत हुई।
  • इस सम्मेलन में ब्रिटेन ने माल्टा से 2020 तक राष्ट्रमंडल की अध्यक्षता स्वीकार की, जिसमें 46 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया।
  • ब्रिटेन ने 21 वर्ष के अंतराल के बाद राष्ट्रमंडल देशों के शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। इससे पहले ब्रिटेन ने 1997 में इस सम्मेलन का आयोजन किया था।
  • राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन का आयोजन प्रत्येक दूसरे वर्ष होता है। लंदन में हुए इस सम्मेलन में पहली बार बकिंघम पैलेस और विंडसर कैसल को आयोजन स्थलों में शामिल किया गया।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रमंडल की सभी बैठकों का संचालन आम सहमति के आधार पर होता है। राष्ट्रमंडल सम्मेलन इसके अच्छे उदाहरण हैं कि किस तरह से आम सहमति और प्रतिबद्धता भविष्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है, जो अधिक सुरक्षित, अधिक समृद्ध और टिकाऊ हो। 

राष्ट्रमंडल का इतिहास 

  • राष्ट्रमंडल की नींव 19वीं शताब्दी के उपनिवेशवादी सिद्धांत पर आधारित है। 
  • ब्रिटिश तथा उपनिवेशी प्रधानमंत्रियों का पहला सम्मेलन 1887 में हुआ था तथा इसके बाद समय-समय पर इसका आयोजन होता रहा। 
  • आगे चलकर 1911 में इंपीरियल सम्मेलन की स्थापना हुई तथा इस संघ का नाम 1920 के दशक में ब्रिटिश कॉमनवेल्थ रखा गया। 
  • उस समय यह ब्रिटिश साम्राज्य--यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और आयरलैंड सहित  छह ‘गोरे’ स्वशासी आयामों का एक परामर्श समूह था। 
  • ब्रिटिश क्राउन के साथ गठबंधन होना सदस्यता की पूर्वापेक्षा थी। 
  • 1971 में राष्ट्रमंडल प्रक्रिया स्थापित की गई तथा राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक की प्रक्रिया निर्धारित की गई। इसकी पहली बैठक का आयोजन 1971 में सिंगापुर में हुआ था।
  • इस समूह में ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सिंगापुर जैसे विकसित देश और मालदीव, टोंगा तथा नौरू जैसे छोटे द्वीपीय देश शामिल हैं।

वर्तमान राष्ट्रमंडल का स्वरूप 

  • राष्ट्रमंडल 6 महाद्वीपों में फैले 53 सदस्यों का एक अंतर-सरकारी संगठन है। ये ऐसे देश हैं जो पूर्व में ब्रिटेन के उपनिवेश रह चुके हैं। 
  • इन सभी देशों ने लोकतंत्र, लैंगिक समानता, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • इसके सदस्यों में अफ्रीका के 19, एशिया के 8, अमेरिका के 3, कैरेबियन के 10, यूरोप के 3 तथा दक्षिण प्रशांत के 11 देश शामिल हैं।
  • इसके अंतर्गत दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी और विभिन्न जाति, धर्म, भाषा और आय से संबंधित लोग शामिल हैं। इनमें से लगभग 60% की आयु 30 साल से कम है। 
  • इसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड जैसी स्थापित अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत, मलेशिया तथा दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरते बाज़ार भी शामिल हैं।
  • 2020 तक राष्ट्रमंडल देशों के बीच 10 खरब डॉलर का व्यापार होने का अनुमान है।
  • यह संगठन सदस्य देशों की आम सहमति से संचालित होता है तथा राष्ट्रमंडल सचिवालय और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से संगठित है। 
  • भारत राष्ट्रमंडल का सबसे बड़ा सदस्य देश है और इसके बजट में चौथा सबसे अधिक योगदान करने वाला देश है। 

राष्ट्रमंडल के सदस्य देश

  • अफ्रीका: बोत्सवाना, कैमरून, घाना, कीनिया, लेसोथो, मलावी, मॉरीशस, मोज़ाम्बिक, नामीबिया, नाइजीरिया, रवांडा, सेशेल्स, सियरा लियोन, दक्षिण अफ्रीका, स्वाज़ीलैंड, तंज़ानिया, गांबिया, युगांडा और ज़ाम्बिया
  • अमेरिकी देश: बेलिज़, बरमूडा, कनाडा, फॉकलैंड द्वीप समूह, गयाना और सेंट हेलेना
  • एशिया: भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ब्रुनेई, मलेशिया, मालदीव, सिंगापुर और श्रीलंका
  • कैरेबियाई देश: एंगुइला, एंटीगुआ और बरबुडा, बहामा, बारबाडोस, ब्रितानी वर्जिन द्वीप समूह, केमेन द्वीप समूह, डोमिनिका, ग्रेनेडा, जमैका, मोंसेरात, सेंट किट्स एंड नेविस, सेंट लुसिया, सेंट विंसेट, त्रिनिदाद एंड टोबैगो और टर्क्स एंड कैकॉस द्वीप
  • यूरोप: इंग्लैंड, साइप्रस, जिब्राल्टर, गुएर्नसे, आइल ऑफ मैन, जर्सी, माल्टा, उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स
  • ओशियाना: ऑस्ट्रेलिया, कुक द्वीप समूह, किरिबाती, नौरू, न्यूज़ीलैंड, नियू, नॉरफॉक आइलैंड, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन द्वीप समूह, टोंगा, टुवालू और वानुआतु 

(टीम दृष्टि इनपुट)

ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन के लिये राष्ट्रमंडल का महत्त्व

हाल ही में ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से अलग होने का निर्णय लिया है। इस संदर्भ में ब्रिटेन के निहितार्थ को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-

  • ब्रिटेन का व्यापार राष्ट्रमंडल के सदस्य राष्ट्रों के साथ पिछले दशकों में काफी स्थिर रहा है जो लगभग ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद का 10% था। 
  • इनमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका का योगदान काफी अधिक था।
  • राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिटेन का भारत को अतिरिक्त महत्त्व देने से स्पष्ट है कि ब्रेक्सिट के बाद के दौर में ब्रिटेन को विदेशी निवेश की बेहद ज़रूरत है और यह स्थिति ऐसी है जिसमें दोनों देशों का फायदा है।
  • ब्रिटेन ने राष्ट्रमंडल का नेतृत्व करने के बारे में सावधानी बरती है क्योंकि एक राजशाही शासन का आरोप लगने का खतरा है।
  • कुछ राजनेताओं की उम्मीदों के बावज़ूद राष्ट्रमंडल ब्रिटेन के राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि इसके सदस्यों में अधिकांश छोटे-छोटे द्वीपीय देश हैं जो वर्तमान समय में दुनिया में ब्रिटेन की मौजूदगी में महत्त्वपूर्ण अंतर ला सकते हैं।

अतः स्पष्ट है कि अंतर-राष्ट्रमंडल संबंधों के लिये यह एक अनिश्चितता का दौर है। यह संभव है कि ब्रेक्जिट से यूरोपीय संघ का संकुचन होगा, जो ब्रिटेन के भविष्य के लिये हानिकारक हो सकता है। साथ ही यह ब्रिटेन में सामाजिक-आर्थिक विकास और राजनीतिक अस्थिरता के लिये भी संकट उत्पन्न कर सकता है।

राष्ट्रमंडल की भारत से अपेक्षाएँ

  • प्रधानमंत्री के लंदन दौरे का दूसरा भाग राष्ट्रमंडल सम्मेलन में बहुपक्षीय सहयोग से जुड़ा था। राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों ने एक ताकत के रूप में भारत को मान्यता दी है। 
  • अफ्रीकी, कैरेबियन और दक्षिण प्रशांत के लगभग सभी राष्ट्रमंडल देशों ने भारत के साथ जिस प्रकार सहयोग बढ़ाया है, उससे अब बेहतर रूप से मान्यता मिली है।
  • राष्ट्रमंडल देशों की कुल आबादी में लगभग 50% और कुल जीडीपी में लगभग 30% हिस्सेदारी भारत की है। यह भी एक कारण है कि सदस्य देश भारत से सक्रिय भूमिका निभाने की अपेक्षा करने लगे हैं। 
  • राष्ट्रमंडल समूह भारत को बेहतर नज़रिये से देखता है। जहाँ ब्रिटिश शक्ति का पराभव हो रहा है, वहीं भारत के उदय को देखते हुए उसकी सक्रिय भागीदारी राष्ट्रमंडल को और ताकत देगी। 
  • यह राष्ट्रमंडल को फ्रैंकोफिन मॉडल के बजाय लूजोफोन मॉडल की ओर अग्रसर करेगा, जिसमें पुर्तगाल की भूमिका कम हो रही है तो ब्राज़ील का दबदबा बढ़ रहा है। 
  • भारत के लिये राष्ट्रमंडल देशों का समूह एक ऐसा मंच है जिसमें वह इस समूह के 53 देशों के साथ रणनीतिक रूप से अपने संबंधों को मज़बूत कर सकता है।
  • यह एक ऐसा मंच है जहाँ चीन की मौज़ूदगी नहीं है, जिससे भारत के लिये विश्व मंच पर अपने बड़े प्रतिद्वंद्वी से आमना-सामना होने का जोखिम भी नहीं है।
  • भारत इस मंच से मुक्त व्यापार, सुरक्षा, शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्रों पर अपना रुख स्पष्ट कर सकता है और इन मुद्दों पर अन्य देशों का समर्थन जुटाकर विश्व व्यापार संगठन में अपनी बात प्रभावशाली रूप से रख सकता है।
  • इससे आर्थिक खुलेपन को लेकर समर्थन और संरक्षणवाद के खिलाफ माहौल बनेगा जिससे भारत की व्यापारिक क्षमता पर असर पड़ेगा।
  • राष्ट्रमंडल समूह के देशों के बीच व्यापारिक खर्चा उन देशों की तुलना में 19% कम है जो इसके सदस्य नहीं हैं। 
  • भारत यह भी मानता है कि राष्ट्रमंडल एक बहुआयामी समूह है जो छोटे देशों तथा छोटे द्वीप देशों सहित विकासशील सदस्य देशों को उपयोगी सहायता प्रदान करता है। 

राष्ट्रमंडल के भविष्य की दशा और दिशा 
हाल ही में लंदन में संपन्न राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों की बैठक में राष्ट्रमंडल देशों पर नए सिरे से ध्यान देने पर ज़ोर दिया गया। फिलहाल माना जाता है कि यह समूह एक चौराहे पर है, जहाँ इसे लेकर दो तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं--1. क्या इसका वजूद खत्म हो जाएगा? या 2. क्या यह एक ऐसा उद्यम बनेगा जो दुनिया के एजेंडे को आकार देगा? अर्थात् इस फोरम के भविष्य की प्रासंगिकता सवालों के घेरे में है और यह इसके सदस्य देशों के हितों को बनाए रखने एवं उनकी ज़रूरतों की पूर्ति करने की इसकी क्षमता पर निर्भर करेगा। 

  • राष्ट्रमंडल को प्रासंगिक बनाने के लिये सबसे पहले इसके नेतृत्व को विकेंद्रीकृत करने की तत्काल आवश्यकता है। 
  • इसकी लंदन आधारित प्रशासनिक संरचना में महत्त्वाकांक्षी भविष्य की संभावनाएँ लगभग नहीं के बराबर हैं। 
  • इसका विकेंद्रीकृत मॉडल सदस्यों को वैसे क्षेत्रों में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाने को प्रेरित करेगा, जिनमें उनका सबसे अधिक निवेश या दिलचस्पी है।
  • नेतृत्व के प्रति एक सामूहिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये जो विभिन्न हितों वाले सदस्य देशों के समूह को सामूहिक रूप से फोरम के विभिन्न तत्त्वों एवं पहलुओं का स्वामित्व ग्रहण करने का अवसर प्रदान करेगा।
  • राष्ट्रमंडल देशों को अनिवार्य रूप से अपनी समान भाषा, अपने सांस्कृतिक रिश्तों एवं अपने युवाओं की ऊर्जा का लाभ उठाने का रास्ता ढूंढने का प्रयास करना चाहिये। 
  • एक महत्त्वपूर्ण व्यापार समूह, सुरक्षा या राजनीतिक गठबंधन बनने की संभावनाएँ राष्ट्रमंडल में बहुत कम दिखाई देती हैं। लेकिन यह प्रमुख वैश्विक मुद्दों के समाधान प्रस्तुत करने वाला एक फोरम बन सकता है।
  • इसके लिये इसे पारंपरिक रीति-रिवाजों तथा प्रमुख नियामकीय प्रश्नों एवं मुद्दों पर सदस्य देशों के बीच आपसी संपर्क के निर्धारित क्षेत्रों से आगे बढ़ने की ज़रूरत होगी। 
  • विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजर रहे देशों के एक समूह के रूप में, सामूहिक विज़न की अभिव्यक्ति वैश्विक एजेंडा को आकार देने में एक प्रमुख माध्यम बन सकती है।

राष्ट्रमंडल के लिये भविष्य के दो संभावित रास्ते हैं-

  1. इस समूह का महत्त्व और भी कम हो जाए और इसका अस्तित्व नाममात्र का ही रह जाए। 
  2. एक अधिक बाध्यकारी संभावना यह हो सकती है कि अपने सदस्य देशों के नेतृत्व में राष्ट्रमंडल एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक उद्यम बन जाए। लेकिन इस बाध्यकारी अवसर को साकार बनाने के लिये, सत्ता का विकेंद्रीकरण, इसके प्रमुख हितधारकों का पुन: मूल्यांकन और प्रमुख नियामकीय मुद्दों का समाधान निर्धारित करने के महत्त्वाकांक्षी प्रयास करना बेहद ज़रूरी है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

राष्ट्रमंडल में छोटे द्वीपीय देश और भारत

  • राष्ट्रमंडल के 53 सदस्यों में से 32 सदस्य छोटे देश हैं और प्रशांत तथा कैरेबियन समूह के इन छोटे देशों को भारत तकनीकी सहायता एवं सहयोग देता है।
  • हालिया राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन में भारत ने छोटे द्वीपीय देशों के विकास में मदद करने की अपनी प्रतिबद्धता एक बार फिर दोहराई।
  • राष्ट्रमंडल बैठकों में भारत ज़ोर देता रहा है कि धनी देशों द्वारा की जाने वाली छोटे द्वीपों और गरीब देशों के प्रति प्रतिबद्धता मौजूदा स्तर से आगे जानी चाहिये।
  • राष्ट्रमंडल देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में भारत के प्रधानमंत्री ने राष्ट्रमंडल के छोटे द्वीपीय देशों को उनकी ज़रूरत के अनुरूप सहायता देने की घोषणा की। 
  • भारत इन छोटे द्वीपीय देशों और तटीय देशों को गोवा स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी में प्रशिक्षण कार्यक्रमों के ज़रिये क्षमतावान बनाएगा। 
  • भारत न्यूयार्क के स्थायी मिशन के तौर पर राष्ट्रमंडल देशों की मदद के लिये छोटी परियोजनाओं में भी हिस्सा लेगा। 
  • भारत ने राष्ट्रमंडल के कोष में अपना तकनीकी सहयोग दोगुना करने की घोषणा करते हुए इसे 20 लाख पौंड (18 करोड़ रुपए से अधिक) कर दिया है। 
  • भारत ने राष्ट्रमंडल देशों के 60 अंडर-16 क्रिकेटर्स को प्रशिक्षण देने की बात कही। इन 60 क्रिकेटर्स को बीसीसीआई की मदद से प्रशिक्षण दिया जाएगा।

महारानी के बाद राष्ट्रमंडल प्रमुख होंगे प्रिंस चार्ल्स 
राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों ने महारानी एलिजाबेथ के बाद उनके पुत्र प्रिंस चार्ल्स को अगले राष्ट्रमंडल प्रमुख बनाए जाने पर सहमति जताई है। राष्ट्रमंडल देशों के शासनाध्यक्षों की बैठक के अंत में महारानी एलिजाबेथ ने कहा कि यह वंशानुगत नहीं है, लेकिन उनकी इच्छा है कि प्रिंस चार्ल्स उनके उत्तराधिकारी बनें। इस पर राष्ट्रमंडल प्रमुखों ने उनकी बात पर सहमति जताई। सदस्य देशों के बाज़ार और उनके अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी आपस में जोड़ने में राष्ट्रमंडल प्रमुख महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। वह सभी सदस्य देशों का व्यक्तिगत दौरा करते हैं ताकि सभी देशों के बीच संबंध अच्छे और मजबूत बनें। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रमंडल से जुड़े तमाम तरह के फैसले लेने का अधिकार राष्ट्रमंडल प्रमुख के पास होता है।

निष्कर्ष: राष्ट्रमंडल मानवीय विविधताओं का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही वह स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकार जैसे साझा मूल्यों का भी पालन करता है। विचारों का आदान-प्रदान करके और अन्य दृष्टिकोणों से जीवन को देखते हुए इस समझ के साथ आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर है कि साझा भविष्य के लिये साथ मिलकर काम करना ज़रूरी है। ऐसे में राष्ट्रमंडल के माध्यम से हासिल हुए साझा उत्तराधिकार विविधता को विभाजन के बजाय जोड़ने का करक बनाने में सहायक होते हैं। दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में साझा मूल्यों, समान कानूनों और संस्थानों के आधार पर, अपनी रणनीतिक भागीदारी को मज़बूत करने की ब्रिटेन और भारत की एक स्वाभाविक महत्त्वाकांक्षा है। दोनों राष्ट्रमंडल के सदस्य हैं और वैश्विक दृष्टिकोण तथा  एक नियम-आधारित ऐसी अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के प्रति वचनबद्धता का हिस्सा हैं जो उन एकतरफा उठाए गए कदमों का ज़ोरदार विरोध करती है जो बल के माध्यम से इस प्रणाली को कमज़ोर करना चाहते हैं। 

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