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डेली न्यूज़

  • 02 Jan, 2021
  • 32 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल भुगतान सूचकांक: RBI

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा देश में डिजिटल/कैशलेस भुगतान की स्थिति के अध्ययन के लिये एक समग्र डिजिटल भुगतान सूचकांक (Digital Payments Index-DPI) जारी किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

सूचकांक के बारे में:

  • RBI द्वारा DPI के मापन में 5 व्यापक पैरामीटर्स को शामिल किया गया है जो देश में विभिन्न समयावधि में हुए डिजिटल भुगतान का गहन अध्ययन करने में सक्षम हैं।
  •  5 व्यापक पैरामीटर्स:
    • भुगतान एनेबलर्स (वज़न 25%)
    • भुगतान अवसंरचना - मांग पक्ष कारक (10%)
    • भुगतान अवसंरचना - आपूर्ति पक्ष कारक (15%)
    • भुगतान प्रदर्शन (45%) 
    • उपभोक्ता केंद्रित (5%)।
  • इसका निर्माण मार्च 2018 में आधार अवधि के रूप में किया गया है, अर्थात मार्च 2018 के लिये DPI स्कोर 100 निर्धारित किया गया है।
  • इसे मार्च 2021 से 4 माह के अंतराल के साथ आरबीआई की वेबसाइट पर अर्द्ध-वार्षिक आधार पर प्रकाशित किया जाएगा।

Payment-Index

वर्ष 2019 तथा वर्ष 2020 के लिये सूचकांक मूल्य:

  • मार्च 2019 और मार्च 2020 के लिये DPI क्रमशः 153.47 और 207.84 रहा जो प्रशंसनीय वृद्धि का संकेत देता है।

डिजिटल भुगतान परिदृश्य:

  • डेटा विश्लेषण:
    • विश्वव्यापी भारत डिजिटल पेमेंट्स रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (Q2) के दौरान यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (Unified Payments Interface- UPI) भुगतानों की मात्रा में 82% की वृद्धि तथा कुल कीमतों (Value) में 99% की वृद्धि दर्ज की गई जो पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में अधिक है।
    • दूसरी तिमाही में 19 बैंक UPI प्रणाली में शामिल हो गए, जिससे सितंबर 2020 तक UPI सेवा प्रदान करने वाले बैंकों की कुल संख्या 174 हो गई,जबकि BHIM एप द्वारा 146 बैंकों के ग्राहकों को सेवा उपलब्ध कराई जा रही थी।
    • वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में मर्चेंट एक्वाइरिंग बैंकों द्वारा तैनात किये गए पॉइंट ऑफ सेल (PoS) टर्मिनल की संख्या 51.8 लाख से अधिक थी, जो कि पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है।
      • मर्चेंट एक्वाइरिंग बैंक वे बैंक होते हैं, जो एक व्यापारी/मर्चेंट की ओर से भुगतान को संसाधित करते हैं।
    • वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS) द्वारा भारत को उन 24 देशों में सातवाँ स्थान दिया गया था, जहाँ संस्थान द्वारा डिजिटल भुगतान को ट्रैक किया जाता है।
  • हाल की पहलें
    • भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) ने हाल ही में व्हाट्सएप को क्रमबद्ध तरीके से अधिकतम 20 मिलियन पंजीकृत उपयोगकर्त्ताओं के साथ ऑनलाइन भुगतान सेवा प्रदान करने को मंज़ूरी प्रदान की थी।
    • साथ ही NPCI ने ‘थर्ड पार्टी एप प्रोवाइडर’ (TPA) द्वारा संसाधित एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) लेन-देन की कुल मात्रा पर 30 प्रतिशत कैप लगाई है, जिसे जनवरी 2021 से लागू किया गया है। 
    • टियर-III से टियर-VI शहरों तथा पूर्वोत्तर राज्यों में अधिग्राहकों को पॉइंट ऑफ सेल (Point of Sale-PoS) से संबंधित अवसंरचना स्थापित करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये रिज़र्व बैंक ने भुगतान अवसंरचना विकास कोष (PIDF) का गठन किया है।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रकाशित अन्य सर्वेक्षण/रिपोर्ट्स

  • उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण (CCC- त्रैमासिक)
  • परिवार संबंधी मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण (IES- त्रैमासिक)
  • वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (अर्द्ध-वार्षिक)
  • मौद्रिक नीति रिपोर्ट (अर्द्ध-वार्षिक)
  • विदेशी मुद्रा भंडार की प्रबंधन रिपोर्ट (अर्द्ध-वार्षिक)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

वैश्विक आवासीय प्रौद्योगिकी चुनौती- इंडिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से देश के छह राज्‍यों में ‘वैश्विक आवासीय प्रौद्योगिकी चुनौती- इंडिया’ (GHTC-India) के तहत लाइट हाउस परियोजनाओं (LHPs) की आधारशिला रखी है।

प्रमुख बिंदु

वैश्विक आवासीय प्रौद्योगिकी चुनौती- इंडिया (GHTC-India)

  • आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा संकल्पित ‘वैश्विक आवासीय प्रौद्योगिकी चुनौती- इंडिया’ का उद्देश्य भारत के आवास निर्माण क्षेत्र के लिये विश्व भर की सतत् और पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों की पहचान करना तथा उन्हें मुख्यधारा में लाना है।
  • प्रधानमंत्री ने मार्च 2019 में जीएचटीसी-इंडिया (GHTC-India) का उद्घाटन करते हुए वर्ष 2019-20 को 'निर्माण प्रौद्योगिकी वर्ष' घोषित किया था।
  • जीएचटीसी-इंडिया के मुख्यतः 3 घटक हैं:
    • विशाल प्रदर्शनी और सम्मेलन: ज्ञान और व्यापार के आदान-प्रदान हेतु आवास निर्माण से जुड़े सभी हितधारकों को एक मंच प्रदान करने के लिये द्विवार्षिक आधार पर विशाल प्रदर्शनी और सम्मेलन का आयोजन किया जाता है।
    • प्रमाणित और प्रदर्शन योग्‍य प्रौद्योगिकियों की पहचान: इसका दूसरा घटक लाइट हाउस परियोजनाओं के निर्माण के लिये प्रमाणित और प्रदर्शन योग्‍य प्रौद्योगिकियों की पहचान करना है। ये परियोजनाएँ चयनित तकनीकों के गुणों को प्रदर्शित करती हैं और देश में अनुसंधान, परीक्षण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आदि के लिये लाइव प्रयोगशालाओं के रूप में काम करती हैं।
      • LHPs के लिये फंडिंग PMAY-U के दिशा-निर्देशों के अनुरूप की जाती है।
    • भविष्य की संभावित प्रौद्योगिकी की पहचान: इसका अंतिम घटक ‘अफोर्डेबल सस्टेनेबल हाउसिंग एक्सेलेरेटर्स- इंडिया’ (आशा- इंडिया) के अंतर्गत भविष्य की संभावित प्रौद्योगिकियों की पहचान करना है। इसके तहत भारत की संभावित भावी प्रौद्योगिकियों को ‘आशा- इंडिया’ कार्यक्रम के माध्यम से समर्थन और प्रोत्साहन दिया जाएगा।

छह राज्‍यों में लाइट हाउस परियोजनाएँ

  • जीएचटीसी-इंडिया के हिस्से के रूप में इंदौर (मध्य प्रदेश), राजकोट (गुजरात), चेन्नई (तमिलनाडु), राँची (झारखंड), अगरतला (त्रिपुरा) एवं लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में सभी भौतिक और सामाजिक सुविधाओं के साथ 1000 घरों वाली छह लाइट हाउस परियोजनाओं को शुरू किया गया है।
  • इन घरों का निर्माण जीएचटीसी--इंडिया 2019 के तहत चुनी गई 54 प्रौद्योगिकियों में से छह अलग-अलग प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर किया जा रहा है।
  • लाइट हाउस परियोजनाओं (LHPs) के तहत पारंपरिक निर्माण तकनीक की तुलना में त्वरित गति से रहने योग्य घरों का निर्माण किया जाएगा, जो कि अधिक किफायती, टिकाऊ और गुणवत्तापूर्ण होंगे।

‘अफोर्डेबल सस्टेनेबल हाउसिंग एक्सेलेरेटर्स- इंडिया’ (आशा- इंडिया) 

  • आशा- इंडिया का उद्देश्य भारत के नवोन्मेषकों की जीवंतता और गतिशीलता को बढ़ावा देने और उन्हें एक उपयुक्त मंच प्रदान करते हुए आवास निर्माण क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना है।
  • यह इन्क्यूबेशन और एक्सेलेरेशन के माध्यम से भारत में विकसित होने वाली संभावित भावी प्रौद्योगिकी का समर्थन करता है।
    • इसके तहत जो प्रौद्योगिकियाँ अभी तक बाज़ार के दृष्टिकोण से तैयार नहीं हैं (प्री-प्रोटोटाइप एप्लीकेशन) उन्हें इन्क्यूबेशन सहायता दी जाती है और जो प्रौद्योगिकियाँ बाज़ार की दृष्टि से तैयार हैं (पोस्ट-प्रोटोटाइप एप्लीकेशन) उन्हें एक्सेलेरेशन सहायता प्रदान की जाती है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय समाज

सत्यमेव जयते: डिजिटल मीडिया साक्षरता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फेक न्यूज़ के खतरे से निपटने के लिये केरल सरकार ने 'सत्यमेव जयते’ नामक एक डिजिटल मीडिया साक्षरता कार्यक्रम की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस कार्यक्रम के संबंध में स्कूलों और कॉलेजों में अवगत कराया जाएगा, ताकि डिजिटल मीडिया साक्षरता पर पाठ्यक्रम विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
  • कार्यक्रम में पाँच बिंदु शामिल होंगे:
    • गलत जानकारी क्या है?
    • वे क्यों तेजी से फैल रही हैं?
    • सोशल मीडिया की सामग्री का उपयोग करते समय किन सावधानियों को अपनाना होगा?
    • फेक न्यूज़ फैलाने वाले कैसे लाभ कमाते हैं?
    • नागरिकों द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

सत्यमेव जयते:

सत्यमेव जयते (सत्य की सदैव विजय होती है) हिंदू धर्मग्रंथ मुंडका उपनिषद के एक मंत्र का हिस्सा है।

स्वतंत्रता के बाद इसे 26 जनवरी, 1950 को भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में अपनाया गया था। 

यह भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए सिंह स्तम्भ पर देवनागरी में अंकित है और भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक का एक अभिन्न अंग है।

प्रतीक और शब्द "सत्यमेव जयते" सभी भारतीय मुद्रा और राष्ट्रीय दस्तावेज़ों के एक तरफ अंकित है।

फेक न्यूज़ के खतरे:

  • फेक न्यूज़ एक प्रकार की असत्य सूचना होती है जिसे समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। अक्सर इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना या विज्ञापन राजस्व के माध्यम से पैसा कमाना होता है।
  • बार प्रिंट और डिजिटल मीडिया में फैलने के बाद से, सोशल मीडिया तथा वाहकों के कारण फेक न्यूज़ का प्रसार बढ़ गया है।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण, पोस्ट-ट्रुथ पॉलिटिक्स, पुष्टि पूर्वाग्रह और सोशल मीडिया को फेक न्यूज़ के प्रसार में फँसाया गया है।

संबंधित खतरे:

  • फेक न्यूज़ वास्तविक समाचार के प्रभाव को कम करके उसका स्थान प्राप्त कर सकती है।
  • भारत में फेक न्यूज़ का प्रसार अधिकतर राजनीतिक और धार्मिक मामलों में हुआ है।
    • हालांकि COVID-19 महामारी से संबंधित गलत सूचना भी व्यापक रूप से प्रसारित की गई थी।
  • देश में सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने वाली फेक न्यूज़ एक गंभीर समस्या बन गई है, इसके कारण भीड़ द्वारा हिंसा किये जाने की घटनाएँ भी देखी गई हैं।

नियंत्रण हेतु उपाय:

  • प्रायः सरकार सोशल मीडिया पर प्रसारित अफवाहों को फैलने से रोकने के लिये ‘इंटरनेट शटडाउन’ को एक उपाय के रूप में प्रयोग करती है।
  • ‘फेक न्यूज़’ की समस्या का मुकाबला करने के लिये कई विशेषज्ञों ने आधार को सोशल मीडिया अकाउंट से जोड़ने जैसे विचार भी सुझाए हैं।
  • भारत के कुछ हिस्सों, जैसे- केरल के कन्नूर में सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में ‘फेक न्यूज़’ के प्रति जागरूकता हेतु कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है।
  • सरकार द्वारा आम लोगों को झूठे समाचारों के बारे में अधिक जागरूक बनाने के लिये कई अन्य सार्वजनिक-शिक्षा पहलें शुरू करने की योजना बनाई जा रही है।
  • ‘फेक न्यूज़’ की सत्यता की जाँच करने के लिये भारत में कई फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट आ गई हैं, जिनके माध्यम से आसानी से किसी भी खबर की सत्यता जानी जा सकती है।
  • हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों पर दिखाए जा रहे कंटेंट के विरुद्ध शिकायतों और फेक न्यूज़ की गंभीर समस्या से निपटने के लिये मौजूदा कानूनी तंत्र के बारे में केंद्र सरकार से सूचना मांगी थी और साथ ही यह निर्देश भी दिया था कि ऐसा कोई तंत्र नहीं है तो जल्द-से-जल्द इसे विकसित किया जाए।

आगे की राह:

  • सरकार को समाज के सभी वर्गों को ‘फेक न्यूज़’ के विरुद्ध चल रही लड़ाई की वास्तविकता के बारे में जागरूक करने का प्रयास करना चाहिये। ‘फेक न्यूज़’ फैलाने वाले लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिये।
  • सरकार को सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किये जा रहे डेटा को सत्यापित करने के लिये एक स्वतंत्र एजेंसी गठित करनी चाहिये। इस एजेंसी का प्राथमिक कार्य वास्तविक तथ्यों और आँकड़ों को आम जनता के समक्ष प्रस्तुत करना होगा चाहिये।
  • सोशल मीडिया वेबसाइटों को किसी भी प्रकार की ‘फेक न्यूज़’ के लिये जवाबदेह बनाया जाना चाहिये, ताकि वे ‘फेक न्यूज़’ के नियंत्रण को अपनी ज़िम्मेदारी के रूप में स्वीकार कर सकें।
  • ‘फेक न्यूज़’ की समस्या का मुकाबला करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक, विशेष तौर पर ‘मशीन लर्निंग’ और ‘नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग’ आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
  • केरल सरकार के 'सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम जैसे अन्य कार्यक्रम देश के दूसरे राज्यों में भी लागू किये जाने चाहिये, ताकि देश भर के छात्रों को ‘फेक न्यूज़’ की समस्या से अवगत करवाया जा सके, और वे स्वयं इस समस्या से निपट सकें तथा साथ ही अपने परिवारजनों को भी इस संबंध में जागरूक कर सकें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति-2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) द्वारा अपनी वेबसाइट पर 5वीं राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (National Science Technology and Innovation Policy- STIP) का मसौदा जारी किया है।

  • यह नीति 2013 की विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति का स्थान लेगी।

प्रमुख बिंदु:

उद्देश्य:

  • नई नीति में उन व्यक्तियों और संगठनों को शामिल किया गया है जो अनुसंधान और नवाचार क्षेत्र से संबंधित हैं तथा उस पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने में सक्षम हैं और जिनके  द्वारा लघु, मध्यम तथा दीर्घकालिक मिशन मोड परियोजनाओं के माध्यम से महत्त्वपूर्ण बदलाव लाए जा सकते हैं। 
  • देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को प्ररित करने हेतु भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की शक्तियों और कमज़ोरियों की पहचान करना एवं उनका पता लगाना, साथ ही भारतीय STI पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना।

महत्त्वपूर्ण प्रावधान:

न्याय और समावेशन से संबंधित :

  • लैंगिक समानता:
    • नीति में प्रस्तावित है कि सभी निर्णय लेने वाले निकायों में महिलाओं का कम-से-कम 30% प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए, साथ ही लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसज़ेंडर, क्यूर (LGBTQ+) समुदाय से जुड़े वैज्ञानिकों को "स्पाउसल बेनिफिट्स’ (Spousal Benefits) प्रदान किये जाएं।
    • LGBTQ + समुदाय को लैंगिक समानता से संबंधित सभी वार्तालापों में शामिल किया जाए और उनके अधिकारों की सुरक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उनके प्रतिनिधित्व व विचारों को शामिल करने हेतु प्रावधान किये जाएँ।
  • बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल:
    • नीति में बाल-देखभाल को बिना लैंगिक भेदभाव  के और काम के घंटों को लचीला बनाने का प्रस्ताव किया गया है।
    • इसके अलावा मातृत्व, प्रसव और सही से बच्चे की सही ढंग से देखभाल करने के लिये माता-पिता हेतु पर्याप्त छुट्टी का प्रस्ताव किया गया है।
    •  सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित सभी अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों को कर्मचारियों के बच्चों के लिये डे-केयर सेंटर स्थापित करने तथा बुजर्गों की देखभाल के लिये भी प्रावधान किया गया है।
  • विकलांगों के लिये:
    • यह नीति विकलांग लोगों की सहायता के लिये सभी वित्त पोषित  सार्वजनिक वैज्ञानिक संस्थानों में उनके समावेश न करने हेतु  "संरचनात्मक और सांस्कृतिक परिवर्तन" का पक्षधर है।
  • अन्य संबंधित प्रावधान:
    • चयन, पदोन्नति, पुरस्कार या अनुदान से संबंधित मामलों में आयु-संबंधी छूट के लिये  ‘शैक्षणिक स्तर पर आयु’ को आधार बनाया जाए, न कि लैंगिक आयु सीमा को।
    • एक ही विभाग या प्रयोगशाला में कर्मचारी के तौर पर नियुक्त होने वाले विवाहित युगल की एक साथ कार्य करने की सीमा को हटाना। 
      • अभी तक शादीशुदा युगल एक ही विभाग में कार्य नहीं कर सकते थे जिस कारण रोज़गार छोड़ने के मामले सामने आते हैं या जब कोई सहकर्मी शादी करने का फैसला करता हैं तो उसकी मर्ज़ी के बगैर उसका स्थानांतरण कर दिया जाता है।
  • ओपन साइंस पॉलिसी (वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन): सभी को वैज्ञानिक ज्ञान और डेटा उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया गया है जिससे:
    • वैश्विक स्तर पर सभी महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक पत्रिकाओं की थोक में खरीद संभव होगी, साथ ही भारत में भी सभी तक इनकी मुफ्त पहुंँच संभव होगी।
    • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार वेधशाला स्थापित करना जो देश में वैज्ञानिक अनुसंधान से संबंधित सभी प्रकार के डेटा के केंद्रीय भंडार के रूप में कार्य करेगा।

अनुसंधान और शिक्षा:

  • यह नीति निर्माताओं को अनुसंधान इनपुट प्रदान करने और हितधारकों को एक साथ लाने के लिये शिक्षा अनुसंधान केंद्र (Education Research Centre) और सहयोगी अनुसंधान केंद्र (Collaborative Research Centre) स्थापित करने का प्रस्ताव करती है।
  • अनुसंधान और नवप्रवर्तन उत्कृष्टता फ्रेमवर्क (Research and Innovation Excellence Framework) की प्रासंगिकता का उद्देश्य हितधारकों के साथ जुड़ाव को बढ़ावा देने के साथ-साथ अनुसंधान की गुणवत्ता बढ़ाना है।
  • एक समर्पित पोर्टल सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित अनुसंधान के आउटपुट तक पहुँच प्रदान करेगा जिसे  इंडियन साइंस एंड टेक्नोलॉजी आर्चिव ऑफ रिसर्च (Indian Science and Technology Archive of Research) के माध्यम से बनाया जाएगा।
  • स्थानीय अनुसंधान और विकास क्षमताओं को बढ़ावा देने तथा चुनिंदा क्षेत्रों जैसे- घरेलू उपकरणों, रेलवे, स्वच्छ तकनीक, रक्षा आदि में बड़े स्तर पर आयात को कम करने हेतु बुनियादी ढाँचा स्थापित करेगा।

भारत की सामरिक स्थिति को मज़बूत करने के लिये:

  • यह नीति  आने वाले दशक में भारत को शीर्ष तीन वैज्ञानिक महाशक्तियों के बीच तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर स्थिति  प्राप्त करने में सहायक होगी।
  • प्रत्येक 5 वर्षों में पूर्णकालिक समकक्ष (Full-Time Equivalent) शोधकर्त्ताओं की संख्या, R&D पर सकल घरेलू व्यय (Gross Domestic Expenditure) और GERD पर निजी क्षेत्र के योगदान को दोगुना करने में सहायक।
  • एक रणनीतिक प्रौद्योगिकी बोर्ड (Strategic Technology Board) की स्थापना करना जो सभी सामरिक सरकारी विभागों को जोड़ेगा और खरीदी जाने वाली या स्वदेश निर्मित प्रौद्योगिकियों की निगरानी तथा अनुशंसा करेगा।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centres Authority-IFSCA)  अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (IOSCO) का एक सहयोगी सदस्य बन गया है

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) IOSCO का एक साधारण सदस्य है।

मुख्य बिंदु:  

    अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA):

    • IFSCA की स्थापना अप्रैल 2020 में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण विधेयक, 2019 के तहत की गई थी।
    • एक IFSC घरेलू अर्थव्यवस्था के अधिकार क्षेत्र से बाहर के ग्राहकों को आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराता है।
    • इसका मुख्यालय गांधीनगर (गुजरात) की गिफ्ट सिटी (GIFT City) में स्थित है। 
    • यह भारत में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) में वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों के विकास तथा विनियमन के लिये एक एकीकृत प्राधिकरण है।
    • इसकी स्थापना IFSC में ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को बढ़ावा देने और एक विश्व स्तरीय नियामक वातावरण प्रदान करने के लिये की गई है।

    लक्ष्य:   

    • एक मज़बूत वैश्विक संपर्क सुनिश्चित करने और भारतीय अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ पूरे क्षेत्र तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मंच के रूप में सेवा प्रदान करना।

    अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (IOSCO):

    • स्थापना: अप्रैल 1983
    • मुख्यालय: मेड्रिड, स्पेन  
      • IOSCO का एशिया पैसिफिक हब (IOSCO Asia Pacific Hub) कुआलालंपुर, मलेशिया में स्थित है। 
    • यह अंतर्राष्ट्रीय संगठन विश्व के प्रतिभूति नियामकों को एक साथ लाता है। IOSCO विश्व के 95% से अधिक प्रतिभूति बाज़ारों को कवर करता है तथा प्रतिभूति क्षेत्र के लिये वैश्विक मानक निर्धारक का कार्य करता है।
    • यह प्रतिभूति बाज़ारों की मज़बूती हेतु मानक स्थापित करने के लिये G20 समूह  और वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) के साथ मिलकर काम करता है।
      • वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय है, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली के संदर्भ में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
    • IOSCO के प्रतिभूति विनियमन के सिद्धांतों और लक्ष्यों को FSB द्वारा तर्कसंगत वित्तीय प्रणालियों के लिये प्रमुख मानकों के रूप में समर्थन प्रदान किया गया है।
    • IOSCO की प्रवर्तन भूमिका का विस्तार ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानक’ (IFRS) की व्याख्या के मामलों तक है, जहाँ IOSCO सदस्य एजेंसियों द्वारा की गई प्रवर्तन कार्रवाइयों का एक (गोपनीय) डेटाबेस रखा जाता है।
      • IFRS एक लेखा मानक है जिसे अंतर्राष्ट्रीय लेखा मानक बोर्ड (IASB) द्वारा वित्तीय जानकारी के प्रस्तुतीकरण में पारदर्शिता बढ़ाने के लिये एक सामान्य लेखांकन भाषा प्रदान करने के उद्देश्य से जारी किया गया है।

    उद्देश्य:

    • निवेशकों की सुरक्षा, निष्पक्ष, कुशल और पारदर्शी बाज़ारों को बनाए रखने तथा प्रणालीगत जोखिमों को दूर करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एवं विनियमन, निरीक्षण व प्रवर्तन के मानकों का पालन सुनिश्चित करने, लागू करने और बढ़ावा देने में सहयोग करना।
    • प्रतिभूति बाज़ारों की अखंडता में सूचना के आदान-प्रदान और कदाचार के खिलाफ प्रवर्तन में सहयोग तथा बाज़ारों एवं बाज़ार के मध्यस्थों की निगरानी में सहयोग के माध्यम से निवेशकों की सुरक्षा व विश्वास को बढ़ावा देने के लिये।
    • बाज़ारों और बाज़ार के मध्यस्थों की निगरानी तथा कदाचार के खिलाफ प्रवर्तन में मज़बूत सूचना विनिमय एवं सहयोग के माध्यम से प्रतिभूति बाज़ारों की अखंडता के प्रति निवेशकों के विश्वास व उनकी सुरक्षा को बढ़ावा देना।
    • बाज़ारों के विकास में सहायता, बाज़ार के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने और उचित विनियमन को लागू करने के लिये अपने अनुभवों के आधार पर वैश्विक तथा क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिये।

    सदस्यता का महत्त्व: 

    • IOSCO की सदस्यता, IFSCA को सामान्य हितों को लेकर वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिये एक मंच प्रदान करेगी।
    • IOSCO प्लेटफॉर्म IFSCA को सुस्थापित अनुभवी वित्तीय केंद्रों के नियामकों के अनुभव और सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने का अवसर प्रदान करेगा।

    स्रोत: पी.आई.बी.


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