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श्री राम की अयोध्या वापसी

आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को लंकापति रावण का वध करने के बाद श्रीराम कार्तिक अमावस्या के दिन अपने राज्य कौशल वापिस लौट रहे थे। लंका से कौशल आने की अवधि में वे विभिन्न स्थानों पर रूकते हुए आते है। तुलसीदास कृत रामचरितमानस के अनुसार, रावण वध के पश्चात जब श्रीराम की अयोध्या वापसी की बेला आई तो धर्म-अधर्म के इस युद्ध मे उनके साथी रहे नील, जामवंत, हनुमान, सुग्रीव आदि दुःखी हो गए। अपने साथियों की मन:स्थिति को भांपते हुए श्रीराम ने उन्हें भी अपने साथ चलने के लिये कहा।

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श्रीराम और उनके साथियों की इस यात्रा में पुष्पक विमान उनका वाहन बना। कुबेर का पुष्पक विमान उन्हें वायु मार्ग से अयोध्या ले जा रहा था। किंतु श्रीराम मार्ग में कई स्थानों पर रूके। सबसे पहले विमान अगस्त्य ऋषि के आश्रम में पहुँचा। मुनि अगस्त्य का आश्रम दंडकवन में था। इस आश्रम में उनके साथ कई अन्य मुनि भी रहते थे। तुलसीदास जी इस संदर्भ में लंकाकाण्ड में लिखते है-

"तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा।।
कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना।।"

दंडकवन पर पड़ाव डालने के बाद श्रीराम का पुष्पक विमान चित्रकूट में उतरा। अपना इंतज़ार कर रहे मुनियों को संतोष दिलाते हुए श्रीराम ने वायुमार्ग से यमुना नदी के ऊपर से उड़ान भरी।

"सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा।।
तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा।।"

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

अब वो प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम के समीप पहुँच जाते है। यहाँ से वो गंगा माँ को प्रणाम करते है और सीता जी को संगम का महात्म्य समझाते है। इस बीच उन्हें अपनी राजधानी अयोध्या के दर्शन भी होते है-

"पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि।"

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

अब उनका पुष्पक विमान प्रयागराज में पड़ाव डालता है। यहाँ पर त्रिवेणी में स्नान करने के उपरांत वो बंदरों और ब्राह्मणों को भोज भी कराते है-

"पुनि प्रभु आइ त्रिबेनीं हरषित मज्जनु कीन्ह।
कपिन्ह सहित बिप्रन्ह कहुँ दान बिबिध बिधि दीन्ह।"

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

यहाँ से भगवान श्रीराम ने अपने आगमन की प्रथम सूचना अयोध्या संप्रेषित की-
"जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥
रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥"

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

इसी दौरान श्रीराम ने भरत को अपने आगमन की सूचना हेतु हनुमान को आदेश दिया कि ब्राह्मण का रूप धारण कर के नंदीग्राम जाओ-

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥
सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा॥

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

इसके उपरांत श्रीराम भरद्वाज मुनि के आश्रम पहुँचते है। यहाँ से पुष्पक विमान गंगा के दूसरे छोर पे पड़ाव डालने हेतु उड़ान भरता है। यहाँ पर श्रीराम अपने प्रिय मित्र निषाद राज से मिलते है। सीता, गंगा की पूजा-अर्चना करती है और आशीर्वाद ग्रहण करती है। अब विमान अयोध्या के लिये उड़ान भरता है।

श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी में समस्त अयोध्या की स्त्रियाँ दही, दूब, गोरोचन, फल, फूल और मंगल के मूल नवीन तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने की थालों में भर-भरकर मंगल गीत गाते हुए अयोध्या भर में घूम रही है। श्रीराम को आते देखकर समस्त अयोध्या नगरी सौंदर्य की खान हो गई है। सरयू जल अति निर्मल हो गया है।

अयोध्या का प्रत्येक नागरिक श्रीराम की एक झलक पाने को व्याकुल है। जो जिस दशा में है, वो उसी दशा में बाहर दौड़ा चला आ रहा है। कहीं श्रीराम की पहली छवि निहारने से कोई वंचित न रह जाए, इस भय से कोई बच्चे और बूढ़े को नही लाना चाहता। अयोध्यावासियों से अब और अधिक विलंब सहा न जा रहा है। सभी एक-दूसरे से पूछ रहे है कि आपने श्रीराम को कही देखा है क्या? इनके साथ ही स्तुति-पुराण के जानकार सूत, समस्त वैतालिक(भाँट) लोग भी श्रीराम के दर्शन के लिये अयोध्या से बाहर आते है। वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड सर्ग 127 में लिखा है-

"सूता: स्तुतिपुराणाज्ञा: सर्वे वैतालिकस्तथा।
सर्वे वादित्रकुशला गणिकाश्चैव सर्वश:।।"

गुरू वशिष्ठ, कुटुंबी, छोटे भाई शत्रुघ्न तथा ब्राह्मणों के समूह के साथ भरत अत्यंत हर्षित होकर कृपा निधान श्रीराम की अगवानी हेतु राज महल के बाहर आते है। अयोध्या की बहुत सी स्त्रियाँ अपनी अटारियों पर चढ़कर आकाश की ओर देख रही है। श्रीराम के पुष्पक विमान को देखकर मंगल गीत भी गा रही है-

"बहुतक चढ़ीं अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।
देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान॥"

(उत्तरकांड-रामचरितमानस)

श्रीराम का पुष्पक विमान अब अयोध्या में उतर चुका है। प्रभु श्रीराम पूर्णिमा के चंद्रमा हैं तथा अवधपुर समुद्र है, जो उस पूर्णचंद्र को देखकर हर्षित हो रहा है और कोलाहल करता हुआ बढ़ रहा है। इधर-उधर दौड़ती हुई स्त्रियाँ इस पयोनिधि की तरंगों के समान प्रतीत होती हैं। सब माताएँ श्रीराम का कमल-सा मुखड़ा देख रही हैं। उनके नेत्रों से प्रेम के आँसू उमड़े आते है परंतु मंगल का समय जानकर वे आँसुओं के जल को नेत्रों में ही रोके रखती हैं। सोने के थाल से आरती उतारती हैं और बार-बार प्रभु के अंगों की ओर देखती हैं। गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में लिखते है-

"सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं॥
कनक थार आरती उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं॥"

प्रभु श्रीराम को निहार कर माताएँ बात-बार निछावर करती है और ह्रदय में परमानंद तथा हर्ष से भर उठती है। माता कौशल्या बार-बार अपने पुत्र श्रीराम को निहारती है। सर्वप्रथम श्रीराम ने अयोध्या की पावन धरती व गुरू वशिष्ठ को प्रणाम किया। इसके उपरांत माँ कैकेई, माँ सुमित्रा व माँ कौशल्या से मिलकर वो महल की ओर चले-

"सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद।
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद॥

(उत्तरकांड-रामचरितमानस)

श्रीराम के आगमन के अवसर पर अनेक प्रकार के शुभ शकुन हो रहे हैं, आकाश में नगाड़े बज रहे हैं। अयोध्या के नगर के पुरुषों और स्त्रियों को सनाथ (दर्शन द्वारा कृतार्थ) करके भगवान राम महल को चले। इस पावन बेला पर अवधपुर की सारी गलियाँ सुगंधित द्रवों से सींची गईं हैं। गजमुक्ताओं से रचकर बहुत-सी चौकें पुराई गईं। अनेक प्रकार के सुंदर-मंगल साज सजाए गए है और हर्षपूर्वक नगर में बहुत-से डंके बज रहे है। नगर के लोगों ने सोने के कलशों को विचित्र रीति से (मणि-रत्नादि से) अलंकृत कर और सजाकर अपने-अपने दरवाजों पर रख लिया है। सब लोगों ने मंगल के लिये बंदनवार, ध्वजा और पताकाएँ भी लगाई है। इसके साथ ही समस्त अयोध्या नगरी को दीपों से सजा दिया गया है। दीपों से सजी अयोध्या नगरी दीपोत्सव अर्थात दीपावली मना रही है।

  संकर्षण शुक्ला  

संकर्षण शुक्ला उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले से हैं। इन्होने स्नातक की पढ़ाई अपने गृह जनपद से ही की है। इसके बाद बीबीएयू लखनऊ से जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक किया है। आजकल वे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिये ब्लॉग और पत्र-पत्रिकाओं में किताब की समीक्षा लिखते हैं।

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