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ज्ञानेश कुमार ने IDEA परिषद की अध्यक्षता ग्रहण की
चर्चा में क्यों?
भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने स्टॉकहोम, स्वीडन में वर्ष 2026 के लिये अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र और निर्वाचन सहायता संस्थान (International IDEA) की सदस्य-राष्ट्र परिषद की अध्यक्षता औपचारिक रूप से ग्रहण की।
मुख्य बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1995 में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय IDEA के वर्तमान में 35 सदस्य देश हैं; संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जापान इसके पर्यवेक्षक राष्ट्र हैं।
- वर्ष 2003 से इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
- साझेदारी:
- भारत के नेतृत्व में मॉरीशस और मैक्सिको वर्ष 2026 के लिये उपाध्यक्ष की भूमिका निभाएँगे।
- वैश्विक मान्यता:
- यह अध्यक्षता भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धि है, जो भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) को विश्व के सबसे विश्वसनीय, पारदर्शी और नवोन्मेषी चुनाव प्रबंधन निकायों में स्थापित करती है।
- भारत, एक संस्थापक सदस्य होने के नाते, IDEA के शासन और लोकतांत्रिक पहलों में निरंतर योगदान देता रहा है।
- विज़न:
- CEC ज्ञानेश कुमार ने आश्वासन दिया कि भारत की अध्यक्षता निर्णायक, महत्त्वाकांक्षी और कार्यान्वयन-उन्मुख होगी।
- यह “समावेशी, शांतिपूर्ण, लचीले और स्थायी विश्व के लिये लोकतंत्र” थीम से निर्देशित रहेगी तथा दो मुख्य स्तंभों पर केंद्रित होगी:
- भविष्य के लिये लोकतंत्र की पुनर्कल्पना,
- स्थायी लोकतंत्र हेतु स्वतंत्र एवं पेशेवर चुनाव प्रबंधन निकायों का सुदृढ़ीकरण।
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भारत की प्रथम पूर्णतः विद्युत चालित टग परियोजना
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भारत के प्रथम पूर्ण-इलेक्ट्रिक ग्रीन टग को वर्चुअली प्रस्थान-संकेत दिया, जो ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (GTTP) के तहत सतत् तथा ऊर्जा-कुशल समुद्री परिचालन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय उपलब्धि है।
टग (या टगबोट) एक शक्तिशाली तथा अत्यधिक नियंत्रित रूप से संचालित होने वाला पोत है, जिसका उपयोग बड़े जहाज़ों को बंदरगाह क्षेत्रों में मार्गदर्शन, टोइंग, बर्थिंग, एस्कॉर्टिंग तथा आपात प्रतिक्रिया जैसे परिचालनों में किया जाता है, विशेषकर उन सीमित जलक्षेत्रों में जहाँ अत्यधिक परिशुद्धता की आवश्यकता होती है।
मुख्य बिंदु
- उद्देश्य तथा डिज़ाइन:
- दीनदयाल पोर्ट अथॉरिटी (DPA), कांडला के लिये निर्मित यह टगबोट भारत के समुद्री डी-कार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को आगे बढ़ाने हेतु विकसित किया जा रहा है।
- यह शांत संचालन, शून्य कार्बन उत्सर्जन, अनुकूलित ऊर्जा दक्षता तथा 60-टन बोलार्ड-पुल क्षमता सुनिश्चित करेगा।
- GTTP रोडमैप:
- ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 50 ग्रीन टग शामिल करना है। चरण-I (2024–2027) में 16 टग निर्धारित हैं।
- DPA, पारादीप पोर्ट अथॉरिटी, जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अथॉरिटी तथा VO चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी में दो-दो टग स्थापित किये जाएंगे, जिनमें DPA निर्माण प्रारंभ करने वाला पहला बंदरगाह होगा।
- भविष्य का एकीकरण:
- तैनाती के उपरांत यह टग शून्य उत्सर्जन के साथ बंदरगाह संचालन, अनुरक्षण तथा आपातकालीन प्रतिक्रियाओं में सहयोग करेगा। यह भविष्य के GTTP चरणों के लिये महत्त्वपूर्ण परिचालन डेटा भी उत्पन्न करेगा।
- यह पहल मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030, अमृतकाल प्रतिबद्धताओं और अंतर्राष्ट्रीय डी-कार्बोनाइजेशन ढाँचों के अनुरूप है।
- रणनीतिक प्रभाव:
- DPA की यह पहल भारत के स्वच्छ-ऊर्जा बंदरगाहों की ओर संक्रमण को रेखांकित करती है, अत्रेय शिपयार्ड के माध्यम से मेक इन इंडिया जहाज-निर्माण को सुदृढ़ बनाती है और देश को हरित समुद्री नवाचार के एक उभरते वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करती है।
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खुदीराम बोस जयंती
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें वीरता, साहस और बलिदान का शाश्वत प्रतीक बताया।
मुख्य बिंदु
- जन्म और प्रारंभिक जीवन:
- खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को हबीबपुर गाँव, मिदनापुर ज़िले, पश्चिम बंगाल में हुआ था।
- वे अपने परिवार में इकलौते पुत्र थे, माता-पिता के निधन के कारण उन्हें बचपन में ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- प्रारंभिक प्रभाव:
- अरबिंदो घोष और सिस्टर निवेदिता के सार्वजनिक भाषणों से प्रेरित होकर, वे 1900 के दशक के प्रारंभ में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
- विभाजन आंदोलन में भूमिका:
- वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान, वे एक सक्रिय स्वयंसेवक बन गए और मात्र 15 वर्ष की आयु में ब्रिटिश-विरोधी पर्चे बाँटने के कारण उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया।
- अनुशीलन समिति में शामिल होना:
- वर्ष 1908 में, खुदीराम अरबिंदो और बारींद्र घोष के नेतृत्व वाले क्रांतिकारी समूह अनुशीलन समिति में शामिल हो गए, जहाँ उन्होंने बम बनाना सीखा तथा ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया।
- क्रांतिकारियों ने कलकत्ता के मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस एच. किंग्सफोर्ड को, जो राष्ट्रवादियों के साथ क्रूर व्यवहार के लिये जाने जाते थे, अपना प्राथमिक लक्ष्य बनाया और खुदीराम तथा प्रफुल्ल चाकी को उनकी हत्या करने के लिये भेजा।
- बम हमले का प्रयास:
- 30 अप्रैल, 1908 को खुदीराम ने क्लब के बाहर किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका, लेकिन इससे बैरिस्टर की पत्नी और बेटी श्रीमती तथा मिस कैनेडी की दुखद मौत हो गई, जबकि किंग्सफोर्ड बच निकला।
- गिरफ्तारी और परिणाम:
- प्रफुल्ल चाकी ने गिरफ्तारी से पूर्व ही आत्महत्या कर ली, जबकि खुदीराम को 25 किमी पैदल चलने के बाद वैनी स्टेशन पर पकड़ लिया; उनकी गिरफ्तारी के समय स्थानीय जनता ने उनकी निर्भीकता और राष्ट्रनिष्ठा की सराहना की।
- फाँसी और शहादत
- मुकदमे के बाद, खुदीराम बोस को 11 अगस्त, 1908 को 18 वर्ष की आयु में फाँसी दे दी गई, जो भारत के सबसे कम उम्र के शहीदों में से एक थे।
- समाचार-पत्रों ने उनकी बहादुरी को उजागर किया गया, उनकी अंतिम यात्रा के दौरान भीड़ ने फूल बरसाए और कवि पीतांबर दास ने प्रसिद्ध बंगाली गीत "एक बार बिदाये दे मा" में उन्हें अमर कर दिया, जिससे बंगाल की लोककथाओं में उनकी विरासत संरक्षित हो गई।
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अंटार्कटिका दिवस
चर्चा में क्यों?
भारत ने 1 दिसंबर, 2025 को अंटार्कटिका दिवस मनाया और साथ ही राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), गोवा की 25वीं वर्षगाँठ का उत्सव भी मनाया, जिसने ध्रुवीय तथा महासागरीय अन्वेषण में देश के अग्रणी संस्थान के रूप में इसकी भूमिका की पुष्टि की।
मुख्य बिंदु
अंटार्कटिका दिवस
- संधि पर हस्ताक्षर (1959): अंटार्कटिका संधि पर 1 दिसंबर, 1959 को 12 देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे, जिसके तहत पृथ्वी के लगभग 10% क्षेत्र का उपयोग पूरी मानवता के लाभ के लिये विशेष रूप से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाना था।
- ऐतिहासिक पहल: यह संधि पहला परमाणु-हथियार नियंत्रण समझौता बन गई तथा पहली ऐसी संस्थान बन गई है, जो राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में मानव गतिविधियों का नियंत्रण करती है।
- अंटार्कटिक संधि शिखर सम्मेलन (2009): वर्ष 2009 में 50वीं वर्षगाँठ शिखर सम्मेलन में अंटार्कटिक संधि के तहत शांतिपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के पाँच दशकों का उत्सव मनाया गया।
- अंटार्कटिका दिवस का निर्माण (2010): 50 वर्ष के समारोहों से प्रेरित होकर, फाउंडेशन फॉर द गुड गवर्नेंस ऑफ इंटरनेशनल स्पेसेस (आवर स्पेसेस) ने वर्ष 2010 में अंटार्कटिका दिवस की शुरुआत की।
- उद्देश्य: अंटार्कटिका दिवस का उद्देश्य संधि के बारे में वैश्विक जागरूकता प्रचारित करना तथा इसे मानव सभ्यता में शांति और सहयोग के एक उपलब्धि के रूप में मनाना है।
- भारत की भूमिका: भारत वर्ष 1983 से एक परामर्शदात्री पक्ष रहा है, जिससे उसे मतदान का अधिकार मिला है और अनुसंधान केंद्रों को संचालित करने तथा अंटार्कटिका के वैज्ञानिक तथा पर्यावरणीय शासन में योगदान करने की क्षमता मिली है।
राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागरीय अनुसंधान केंद्र (NCPOR)
- स्थापना:
- इसकी स्थापना वर्ष 1998 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत की गई थी। यह भारत के अंटार्कटिक कार्यक्रम के समन्वय और अनुसंधान स्टेशनों- मैत्री (1989) तथा भारती (2011) के रखरखाव के लिये नोडल एजेंसी है।
- भूमिका:
- गोवा में स्थित यह केंद्र बहु-विषयक ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर अनुसंधान का नेतृत्व करता है तथा इसमें पीएच.डी. अध्ययन हेतु मान्यता प्राप्त अनुसंधान सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह भारत के डीप ओशन मिशन में भी मुख्य भूमिका निभाता है, जिससे ध्रुवीय विज्ञान को रणनीतिक राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ जोड़ा जाता है।
- अनुसंधान केंद्र: NCPOR ने भारत के स्थायी अनुसंधान केंद्रों की स्थापना की है: दक्षिण गंगोत्री, मैत्री, भारती (अंटार्कटिका) और हिमाद्री (आर्कटिक), साथ ही हिमालयी अनुसंधान केंद्र हिमांश भी संचालित करता है।
- भविष्य की पहल: वित्त मंत्रालय ने मैत्री-II, एक नया पूर्वी अंटार्कटिका अनुसंधान केंद्र, जो NCPOR द्वारा संचालित होगा, को अनुमोदित किया है।
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