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मध्य प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 12 Dec 2025
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नक्सलवाद मुक्त मध्यप्रदेश

चर्चा में क्यों?

बालाघाट ज़िले में दो नक्सलियों के आत्मसमर्पण के बाद, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने दावा किया है कि राज्य माओवादी खतरों से मुक्त हो गया है।

प्रमुख बिंदु

  • अभियान: यह आत्मसमर्पण 'पुनर्वास से कायाकल्प' अभियान के दौरान हुआ, जिसका उद्देश्य पूर्व नक्सलियों को मुख्यधारा के समाज में पुनः एकीकृत करना है।
  • रणनीति: CRPF और स्थानीय पुलिस के संयुक्त अभियानों के कारण यह सफलता मिली, जिसने क्षेत्र में नक्सली नेटवर्क पर लगातार दबाव बनाए रखा।
  • नेतृत्व: इस सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री के दृढ़ संकल्प और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन को जाता है, जिन्होंने वर्ष 2026 तक नक्सलवाद को समाप्त करने का लक्ष्य रखा था।
  • विकास: नक्सलवाद के अंत के साथ, मुख्यमंत्री ने क्षेत्र के विकास पर ज़ोर दिया, विशेष रूप से मंडला, डिंडोरी और बालाघाट जैसे क्षेत्रों में, साथ ही माओवाद के पुनरुत्थान को रोकने का संकल्प लिया।

Left Wing Extremism


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मध्यप्रदेश के राजमार्गों पर वन्यजीवों का संरक्षण

चर्चा में क्यों?

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने सड़क सुरक्षा में सुधार और वन्यजीवों के संरक्षण के लिये भोपाल-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग के 2 किलोमीटर के भाग पर 5 मिमी मोटी "टेबल-टॉप रेड मार्किंग" शुरू की है।

प्रमुख बिंदु

  • उद्देश्य: दो लेन से चार लेन में राजमार्ग के विस्तार की एक बड़ी परियोजना का हिस्सा यह पहल विशेष रूप से वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिज़र्व के पास वाले क्षेत्रों में वन्यजीव संबंधी दुर्घटनाओं को कम करने के लिये की गई है।
  • डिज़ाइन: “टेबल-टॉप” रेड मार्किंग भारत में अपनी तरह की पहली तकनीक है, जिसमें चमकीला लाल टेक्सचर उपयोग किया जाता है, जो चालकों के वन्यजीव-संवेदनशील क्षेत्रों में प्रवेश करते ही वाहन की गति को कम कर देता है।
  • अतिरिक्त विशेषताएँ: सड़क के किनारों पर व्हाईट शोल्डर लाइन भी पेंट की गई हैं, जिससे चालक सही दिशा में रहें और पक्की सड़क से बाहर न जाएँ, जिससे वाहनों और जानवरों दोनों की सुरक्षा बढ़ती है।
  • अंडरपास: NHAI ने 11.9 किमी राजमार्ग पर लगभग 25 अंडरपास बनाए हैं, ताकि जानवर सुरक्षित रूप से सड़क पार कर सकें और उनके आवासों में होने वाली बाधाओं को कम किया जा सके।
  • लागत और कवरेज़: 122.25 करोड़ रुपए की लागत वाली यह परियोजना 11.9 किमी लंबे राजमार्ग को कवर करती है, जिसमें से दो किलोमीटर विशेष रूप से लाल टेबल-टॉप तकनीक से चिह्नित किये गए हैं।
  • दुर्घटनाएँ और मौतें: विगत दो वर्षों में मध्य प्रदेश में ऐसे 237 जानवर और वाहन के बीच टकराव के मामले दर्ज किये गए, जिनमें 94 मौतें भी शामिल हैं।
  • वैश्विक उदाहरण: यह पहल अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों जैसे कनाडा के बैन्फ़ नेशनल पार्क और नीदरलैंड के “इकोडक्ट्स” से प्रेरित है, जहाँ वन्यजीव मार्ग एवं सड़क सुरक्षा उपाय अपनाए जाते हैं।
  • वन्यजीवों की चिंता: भोपाल–जबलपुर मार्ग नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य जैसे वन्यजीव-समृद्ध क्षेत्रों से होकर गुजरता है, जहाँ हिरण, सियार और बाघ जैसे जानवर प्रायः सड़क पार करते हैं।
  • अपेक्षित परिणाम: उन्नत राजमार्ग, रेड मार्किंग और अंडरपास के साथ, दुर्घटनाओं को कम करने, वन्यजीवों की रक्षा करने और कनेक्टिविटी में सुधार करके पर्यटन और राजस्व को बढ़ावा देने की उम्मीद है

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प्राडा द्वारा कोल्हापुरी डील साइन

चर्चा में क्यों?

इतालवी लग्जरी ब्रांड प्राडा ने लगभग 2,000 जोड़ी कोल्हापुरी चप्पलों का एक सीमित संस्करण संग्रह लॉन्च करने के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में निर्मित: ये सैंडल महाराष्ट्र और कर्नाटक में बनाए जाएँगे, जिनमें पारंपरिक भारतीय शिल्प कौशल को प्राडा के समकालीन डिज़ाइन के साथ जोड़ा जाएगा।
  • कीमत और उपलब्धता: कोल्हापुरी सैंडल की कीमत लगभग 800 यूरो (930 डॉलर) होगी और ये फरवरी से विश्व भर के चुनिंदा प्राडा स्टोर्स के साथ-साथ इसकी वेबसाइट पर भी उपलब्ध होंगे।
  • उत्पत्ति एवं भूगोल: यह कोल्हापुर (महाराष्ट्र) और आसपास के ज़िलों जैसे सांगली, सतारा और सोलापुर में हस्तनिर्मित है, जो 12वीं -13वीं शताब्दी से संबंधित है और मूल रूप से शाही परिवार के लिये तैयार की गई थी।
  • कारीगरी: इसे गाय, भैंस या बकरी द्वारा वनस्पति-टैन (vegetable-tanned) चमड़े से निर्मित किया गया है, पूरी तरह से हाथ से निर्मित है, इसमें कील या कृत्रिम घटकों का उपयोग नहीं किया गया है।
  • डिज़ाइन की विशेषताएँ: यह अपने टी-स्ट्रैप आकार, बारीक बुनाई और खुले पंजे वाले डिज़ाइन के लिये जाना जाता है, जो ज्यादातर टैन या गहरे भूरे रंग में उपलब्ध होता है।
  • भौगोलिक संकेत (GI) का दर्जा: इसे वर्ष 2019 में भौगोलिक संकेत (GI) का दर्जा दिया गया था, जिसमें महाराष्ट्र और कर्नाटक के आठ ज़िले शामिल हैं।
    • GI टैग विशिष्ट भौगोलिक मूल वाले उत्पादों की पहचान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उस क्षेत्र के  केवल अधिकृत उपयोगकर्त्ता ही उस नाम का उपयोग कर सकें।

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