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बिहार में 32% उम्मीदवारों पर आपराधिक आरोप
चर्चा में क्यों?
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) एवं बिहार इलेक्शन वॉच (BEW) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण में आपराधिक एवं वित्तीय प्रभाव वाले उम्मीदवारों की संख्या बहुत अधिक है।
- यह रिपोर्ट राजनीति के अपराधिकरण की निरंतर समस्या तथा भारतीय चुनावों में धन-बल की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करती है।
मुख्य बिंदु
- मुद्दे के बारे में:
- ADR और BEW द्वारा किया गया विश्लेषण 6 नवंबर 2025 को प्रस्तावित बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर चुनाव लड़ रहे 1,314 में से 1,303 उम्मीदवारों द्वारा दिये गइ स्व-घोषित पत्रों पर आधारित है।
- रिपोर्ट में उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों और वित्तीय पृष्ठभूमि दोनों पर प्रकाश डाला गया है।
- आपराधिक पृष्ठभूमि:
- 423 उम्मीदवारों (32%) ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामले घोषित किये हैं।
- 354 उम्मीदवार (27%) पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं, जिनमें हत्या और महिलाओं के विरुद्ध अपराध शामिल हैं।
- 33 उम्मीदवारों पर हत्या के आरोप हैं, जबकि 86 उम्मीदवारों पर हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं।
- 42 उम्मीदवारों पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामले दर्ज हैं, जिनमें 2 बलात्कार के मामले शामिल हैं।
- वित्तीय पृष्ठभूमि:
- 519 उम्मीदवार (40%) करोड़पति हैं (जिन्होंने 1 करोड़ रुपए या उससे अधिक की संपत्ति घोषित की है)।
आपराधिक उम्मीदवारों के अयोग्यता के कानूनी पहलू
- परिचय:
- हालाँकि, कानून उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता जिनके विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं, अतः आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता इन मामलों में उनकी दोषसिद्धि पर निर्भर करती है।
- भारतीय संविधान में यह स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि कौन-सी बात किसी व्यक्ति को संसद, विधानसभा या किसी अन्य विधानमंडल के लिये चुनाव लड़ने से अयोग्य बनाती है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में किसी व्यक्ति को विधानमंडल का चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने के मानदंडों का उल्लेख है।
- अधिनियम की धारा 8 में कुछ अपराधों के लिये दोषसिद्धि पर अयोग्यता का प्रावधान है, जिसके अनुसार दो वर्ष से अधिक की जेल की सज़ा पाने वाला व्यक्ति, जेल की अवधि समाप्त होने के बाद छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता।
- अनुशंसाएँ:
- वर्ष 1983 में राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा समिति का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ की सीमा की पहचान करना तथा राजनीति के अपराधीकरण से प्रभावी रूप से निपटने के उपाय सुझाना था।
- विधि आयोग ने वर्ष 2014 में अपनी 244वीं रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें लोकतंत्र एवं धर्मनिरपेक्षता के लिये गंभीर परिणाम उत्पन्न करने वाले आपराधिक राजनेताओं की विधायिका में बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
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DFC पर यात्री ट्रेनों का परिचालन
चर्चा में क्यों?
भारतीय रेलवे के इतिहास में पहली बार, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) नेटवर्क पर यात्री ट्रेनों का परिचालन शुरू किया गया है।
मुख्य बिंदु
- पारंपरिक रूप से, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFCs) विशेष रूप से माल परिवहन के लिये विकसित किये गए थे, जिनका उद्देश्य लॉजिस्टिक्स की दक्षता बढ़ाना को बढ़ाना और मौजूदा रेलवे लाइनों पर भीड़ को कम करना था।
- हालाँकि, छठ पूजा (25-28 अक्तूबर 2025) के दौरान भारी भीड़ के कारण, रेलवे ने पहली बार खाली पैसेंजर कोचिंग रैक और विशेष ट्रेनों को DFC पर चलाने की अनुमति दी।
- इस कदम से त्योहार के समय अधिक संख्या में पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेनें संचालित करना संभव हुआ।
DFC का स्वरूप:
- ईस्टर्न DFC (EDFC): ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर लुधियाना (पंजाब) से शुरू होकर उत्तर प्रदेश और बिहार होते हुए दनकुनी (पश्चिम बंगाल) तक लगभग 1,839 किमी की लंबाई में विस्तृत है। EDFC का अधिकांश वित्तपोषण विश्व बैंक द्वारा किया जा रहा है।
- वेस्टर्न DFC (WDFC): यह जवाहरलाल नेहरू पोर्ट टर्मिनल (JNPT), मुंबई से दादरी तक लगभग 1,506 किमी लंबा है।। WDFC का वित्तपोषण जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) द्वारा किया जा रहा है।
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8वें वेतन आयोग की संदर्भ शर्तें स्वीकृत
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) के लिये संदर्भ की शर्तों (ToR) को स्वीकृति दे दी है।
- यह आयोग केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के वेतन संरचना और सेवानिवृत्ति लाभों की समीक्षा और सिफारिश करने के लिये उत्तरदायी है।
मुख्य बिंदु
- 8वीं केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) के गठन की घोषणा जनवरी 2025 में की गई थी और इसके संदर्भ की शर्तों (ToR) को 28 अक्तूबर 2025 को मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- आयोग अपने गठन के 18 महीने के भीतर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगा, जिससे लगभग 50 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारी (रक्षा कार्मिकों सहित) एवं 69 लाख पेंशनभोगी प्रभावित होंगे।
- आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद संशोधित वेतन एवं पेंशन संरचना जनवरी 2026 से लागू होने की संभावना है।
- 8 वें केन्द्रीय वेतन आयोग की संरचना:
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पद |
नाम / पदनाम |
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अध्यक्ष |
न्यायमूर्ति रंजन प्रकाश देसाई (पूर्व सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश) |
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अंशकालिक सदस्य |
प्रो० पुलक घोष (भारतीय प्रबंधन संस्थान, बंगलूरू) |
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सदस्य सचिव |
पंकज जैन (पेट्रोलियम सचिव) |
- संदर्भ की शर्तें (ToR):
- 8वें केंद्रीय वेतन आयोग को निम्नलिखित विषयों पर विचार करने के बाद सिफारिशें करने का कार्य सौंपा गया है:
- देश की आर्थिक स्थिति एवं राजकोषीय सतर्कता की आवश्यकता।
- विकासात्मक व्यय एवं कल्याणकारी उपायों के लिये संसाधनों की उपलब्धता।
- गैर-अंशदायी पेंशन योजनाओं की अवित्तपोषित लागत (विशेषकर 2004 से पूर्व की पेंशन देयताएँ)।
- राज्य के वित्त पर प्रभाव, क्योंकि राज्य सरकारें अक्सर अपने वेतनमान को केंद्र के अनुरूप करती हैं।
- केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (CPSU) एवं निजी क्षेत्र में कर्मचारियों की वर्तमान पारिश्रमिक संरचना, लाभ एवं कार्य स्थितियाँ।
- पृष्ठभूमि:
- वेतन आयोग का गठन आमतौर पर प्रत्येक 10 वर्ष में एक बार किया जाता है ताकि सरकारी कर्मचारियों के भत्ते, वेतन संरचना एवं पेंशन में बदलाव की समीक्षा एवं सिफारिश की जा सके।
- 7वें केंद्रीय वेतन आयोग का गठन वर्ष 2014 में किया गया था और इसकी सिफारिशें 1 जनवरी 2016 से लागू की गईं।
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