लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



संसद टीवी संवाद

भारतीय अर्थव्यवस्था

सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश

  • 11 Aug 2020
  • 15 min read

संदर्भ:  

केंद्र सरकार द्वारा देश के 23 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (Public Sector Undertking- PSU) में अपनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी की जा रही है। गौरतलब है कि इन उपक्रमों में विनिवेश की अनुमति केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पहले ही दी जा चुकी है। केंद्रीय वित्त मंत्री के अनुसार, सरकार ऐसे समय में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में हिस्सेदारी बेचना चाहती है जब उसे इसका सही मूल्य प्राप्त हो। वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये केंद्र सरकार ने 2.10 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें से 1.20 लाख करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश से और अतिरिक्त 90,000 करोड़ रुपये वित्तीय संस्थानों में सरकार की हिस्सेदारी की बिक्री से प्राप्त होने का अनुमान है।   

 

प्रमुख बिंदु:

  • देश की स्वतंत्रता के पश्चात प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना बहुत ही आवश्यक थी।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना का उद्देश्य प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों में स्थानीय क्षमता का विकास कर अन्य देशों पर भारत की निर्भरता को कम करने के साथ ही क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना और रोज़गार अवसरों का सृजन करना था।
  • 1950 के दशक के बाद से भारतीय आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में बहुत से बड़े बदलाव हुए हैं। 
  • वर्तमान में क्षेत्रीय विकास और रोज़गार के सृजन का कार्य सीधे संबंधित राज्य सरकारों द्वारा या केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, ऐसे में इन क्षेत्रों में PSU के उद्देश्य सीमित हुए हैं। 

  • कई विशेषज्ञों के अनुसार, यदि सही समय पर पीछे रह रही PSUs में विनिवेश नहीं किया जाता है तो यह समस्या और अधिक गंभीर हो सकती है।

  • हाल में भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार गिरावट देखी जा रही ही ऐसे में अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये निजीकरण बहुत ही आवश्यक हो गया है।    
  • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट में भी केंद्रीय वित्तमंत्री ने गैर-वित्तीय सार्वजनिक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी को 51% से कम करने की बात कही थी।

विनिवेश (Disinvestment): 

  • सरकारी कंपनियों में विनिवेश से आशय सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उपक्रम में अपनी हिस्सेदारी की बिक्री से है।
  • सरकार राजकोषीय बोझ को कम करने या विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करने के लिये धन जुटाने हेतु विनिवेश का विकल्प अपनाती है।
  • कुछ मामलों में, सरकारी संपत्ति के निजीकरण के लिये विनिवेश किया जा सकता है। हालांकि, सभी विनिवेश निजीकरण नहीं है।

निजीकरण (Privatisation):  

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के निजीकरण के तहत सरकार उस उपक्रम से अपनी पूरी या अधिकांश हिस्सेदारी किसी निजी कंपनी को बेच देती है।
  • निजीकरण के पश्चात संबंधित संगठन/उपक्रम का स्वामित्व और नियंत्रण सरकार के पास नहीं रहता है।  

उद्देश्य: 

  • राजकोषीय बोझ को कम करना।
  • सार्वजनिक वित्त में सुधार।
  • निजी स्वामित्व को प्रोत्साहित करना।
  • विकास कार्यक्रमों हेतु वित्त का प्रबंध करना।
  • बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना।

निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM): 

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में केंद्र सरकार के विनिवेश संबंधी कार्यों के प्रबंधन हेतु 10 दिसंबर, 1999 को केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत विनिवेश विभाग की स्थापना की गई थी
  • 14 अप्रैल, 2016 को विनिवेश विभाग का नाम बदलकर ‘निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग’ (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM) कर दिया गया था।                  

विनिवेश का कारण:

प्रतिस्पर्द्धा: 

  • वर्तमान में अधिकांश PSUs ऐसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जहाँ निजी क्षेत्र की कंपनियाँ कम लागत में बेहतर कार्य कर रही हैं और PSUs निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धा में पीछे रह गई हैं।

नवीनीकरण का आभाव: 

  • अधिकांश PSUs में समय के साथ तकनीक के नवीनीकरण के अभाव में इनका संचालन कभी खर्चीला हो गया है।    
  • सार्वजनिक क्षेत्र की कई अन्य कंपनियों के घाटे के कारण उनमें भूमि के अतिरिक्त बहुत ही कम संपत्ति बची है।    
  • सरकार द्वारा भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) को भी विनिवेश के लिये चिन्हित किया गया है, आर्थिक दृष्टिकोण से BPCL इस सूची की सबसे महत्त्वपूर्ण कंपनियों में से एक है।  
  • सरकार द्वारा इस समय BPCL में विनिवेश का निर्णय बहुत ही तार्किक होगा क्योंकि वर्तमान में इसी क्षेत्र में एक अन्य PSU ‘इंडियन ऑयल’ भी सक्रिय है, जो कि BPCL की तुलना में काफी बड़ी है।
  • साथ ही ‘हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (HPCL) का प्रबंधन ‘ऑयल एण्ड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (ONGC) को दे दिया गया है।
  • वर्तमान में BPCL की आर्थिक स्थिति बहुत ही अच्छी है परंतु देश में खनिज तेल के क्षेत्र में स्थानीय और विदेशी निजी कंपनियों की बढ़ती सक्रियता के कारण भविष्य में BPCL के शेयरों में गिरवाट आ सकती है। 

भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL):  

  • सरकार द्वारा भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) को भी विनिवेश के लिये चिन्हित किया गया है, आर्थिक दृष्टिकोण से BPCL इस सूची की सबसे महत्त्वपूर्ण कंपनियों में से एक है।  
  • सरकार द्वारा इस समय BPCL में विनिवेश का निर्णय बहुत ही तार्किक होगा क्योंकि वर्तमान में इसी क्षेत्र में एक अन्य PSU ‘इंडियन ऑयल’ भी सक्रिय है, जो कि BPCL की तुलना में काफी बड़ी है।
  • साथ ही ‘हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (HPCL) का प्रबंधन ‘ऑयल एण्ड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (ONGC) को दे दिया गया है।
  • वर्तमान में BPCL की आर्थिक स्थिति बहुत ही अच्छी है परंतु देश में खनिज तेल के क्षेत्र में स्थानीय और विदेशी निजी कंपनियों की बढ़ती सक्रियता के कारण भविष्य में BPCL के शेयरों में गिरवाट आ सकती है। 

विदेशी निवेश की संभावनाएँ और निजीकरण :

  • वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में कई बड़े बदलाव हुए हैं।
  • विशेषकर हाल में अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और COVID-19 की अनिश्चितता के बाद वैश्विक स्तर पर निवेशक ऐसे सहयोगियों के साथ निवेश के लिये इच्छुक है जहाँ प्रगति की संभावना बेहतर हो।
  • गौरतलब है कि देश की स्वतंत्रता के पश्चात 1950 और 1960 के दशक के दौरान भारतीय औद्योगिक क्षेत्र के अधिकांश भाग पर PSUs का एकाधिकार रहा। 
  • 1990 के दशक के ‘उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण’ (Liberalization, Privatization, and Globalization- LPG) मॉडल के तहत देश की अर्थव्यवस्था में उदारीकरण को बढ़ावा दिया गया और 2000 के दशक में भी देश में अर्थव्यवस्था के विश्वीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया।  
  • इस दौरान देश के व्यापार और जीडीपी अनुपात में वृद्धि देखी गई और पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत निवेश का एक बड़ा बाज़ार बन कर उभरा है।    

लाभ:   

  • विनिवेश PSU स्वामित्व का एक बड़े हिस्से को खुले बाज़ार के लिये उपलब्ध करता है, जो देश में एक मज़बूत पूँजी बाज़ार की स्थापना का अवसर प्रदान करता है। 
  • PSUs में विनिवेश के माध्यम से सरकार को देश की अर्थव्यवस्था पर पड़े COVID-19 के नकारात्मक प्रभावों से उबरने और राजकोषीय घाटे को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।

चुनौतियाँ:  

  • सरकार द्वारा विनिवेश के लिये सूचीबद्ध 23 PSUs में केवल 4 या 5 PSUs के लिये अच्छे ग्राहक और उपयुक्त मूल्य प्राप्त होने का अनुमान है।
  • COVID और विनिवेश: COVID-19 महामारी के कारण देश में औद्योगिक और अन्य क्षेत्रों में हुई आर्थिक गिरावट के कारण सरकार के लिये PSUs के विनिवेश से  2.10 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य प्राप्त करना आसान नहीं होगा। 
  • COVID-19 के कारण विनिवेश की प्रक्रिया को भी समय से शुरू नहीं किया जा सका है, ऐसे में मार्च 2021 तक सभी चिह्नित PSUs में विनिवेश की प्रक्रिया को पूरा करना एक बड़ी चुनौती होगी।   
  • एक अनुमान के अनुसार, अन्य देशों की तुलना भारत में ‘व्यापार करने की लागत’ (Cost of Doing Business) अर्थात व्यापार में शुरू करने या जारी रखने में भूमि, रसद, ऊर्जा आदि की लागत बहुत अधिक है।    
  • देश में निजी क्षेत्र के उद्यमों के व्यवसाय में आई गिरावट के कारण PSUs में हिस्सेदारी खरीदने में विदेशी कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा देखने को मिल सकती है।  

अन्य चुनौतियाँ:

  • साथ ही सरकार को विनिवेश के लिये चिन्हित PSUs में कार्य कर रहे कर्मचारियों के रोज़गार सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। 
  • वर्तमान में सरकार द्वारा रणनीतिक विनिवेश (Strategic Disinvestment) हेतु सूचीबद्ध कंपनियाँ काफी बड़ी हैं और विनिवेश के बाद भी भारतीय बाज़ार में इनका महत्त्व बना रहेगा, ऐसे में बोलीदाता संस्थाओं को इन कंपनियों के संचालन के संदर्भ में अपनी योग्यता सिद्ध करने होगी। 

समाधान: 

  • विनिवेश के लिये निर्धारित PSUs की सूची में ‘एयर इंडिया' को भी शामिल किया गया है, हालाँकि ‘एयर इंडिया' जैसी बड़ी कंपनी का एक ही बार में विनिवेश बहुत ही कठिन होगा ऐसे में इसके कुछ हिस्सों को अलग से विनिवेश के लिये चुना जा सकता है।
  • सरकार को विनिवेश के साथ देश में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये व्यवसाय करने की लागत में कमी लाने पर विशेष ध्यान देते हुए व्यवसाय अनुकूल नीतियों का निर्माण करना चाहिये।
  • साथ ही औद्योगिक क्षेत्र के सभी हितधारकों के सहयोग से निजी क्षेत्र की ज़रूरतों और सरकार की नीतियों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।

आगे की राह: 

  • वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ कंपनियाँ सरकार पर एक अनावश्यक भार बन कर रह गई हैं। अतः ऐसी कंपनियों में विनिवेश बहुत ही आवश्यक हो गया है।
  • सरकार को PSUs में विनिवेश के अपेक्षित धन प्राप्त करने हेतु अधिक-से-अधिक बोलीदाताओं को आकर्षित करने के लिये एक व्यापक नीति का निर्माण करना चाहिये।  
  • सरकार को बजट के लिये आवश्यक धन के दबाव में न रहकर विनिवेश की प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने पर विशेष ध्यान देना चाहिये, हालाँकि इस प्रक्रिया में निर्धारित अवधि से अधिक समय लग सकता है।   

अभ्यास प्रश्न: विनिवेश से आप क्या समझाते हैं? देश में आर्थिक क्षेत्र में आई गिरावट को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में विनिवेश के निर्णय की समीक्षा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2