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मध्य प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 19 Dec 2025
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खिवनी वन्यजीव अभ्यारण्य में दुर्लभ ढोल

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश के देवास ज़िले में स्थित खिवनी वन्यजीव अभ्यारण्य में पहली बार दुर्लभ ढोल (जंगली कुत्ता) की उपस्थिति दर्ज की गई है।

मुख्य बिंदु

  • मुद्दे के बारे में: देवास वन विभाग द्वारा आधिकारिक तौर पर खिवनी वन्यजीव अभ्यारण्य में दो दुर्लभ ढोलों को देखा गया।
  • IUCN स्थिति: ढोल (Cuon alpinus), जिसे एशियाई जंगली कुत्ता भी कहा जाता है, को IUCN की लाल सूची में लुप्तप्राय (Endangered) श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
  • कानूनी संरक्षण: यह प्रजाति वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WPA) की अनुसूची II के अंतर्गत सूचीबद्ध है।
  •  प्राकृतिक आवास: ढोल सामान्यतः घने एवं पर्णपाती वन, सदाबहार वन, घासभूमि, वन मिश्रित क्षेत्र तथा उच्च पर्वतीय स्टेपी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • वितरण: भारत में इनका वितरण मुख्यतः पश्चिमी घाट, मध्य भारतीय वन क्षेत्र, पूर्वी घाट तथा हिमालय की तलहटी के कुछ भागों तक सीमित है।
  • महत्त्व: खिवनी वन्यजीव अभ्यारण्य में ढोल की यह प्रथम प्रलेखित उपस्थिति है, जो क्षेत्र की पारिस्थितिकी क्षमता और आवासीय गुणवत्ता की ओर संकेत करती है।
  • वन्यजीव सूचक: ढोल प्रभावी झुंड में शिकार करने वाले जानवर हैं जो बड़े शिकारियों को भी चुनौती दे सकते हैं, उनकी उपस्थिति स्वस्थ और संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत मानी जाती है।
  • आगे की कार्यवाही: वन विभाग कैमरा ट्रैप, नियमित गश्त और सर्वेक्षण के माध्यम से यह आकलन करेगा कि देखे गए ढोल स्थायी झुंड का हिस्सा हैं या अस्थायी आगंतुक
  • क्षेत्रीय संदर्भ: मध्य प्रदेश के अन्य अभ्यारण्यों जैसे पेंच, बांधवगढ़ और कान्हा में ढोल पाए जाते हैं, लेकिन इंदौर-उज्जैन क्षेत्र के पास इनकी उपस्थिति बहुत दुर्लभ है।

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मध्य प्रदेश द्वारा टीबी मुक्त भारत प्रयासों को प्रोत्साहन

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने मध्य प्रदेश के सांसदों के साथ टीबी मुक्त भारत अभियान को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से एक विशेष बैठक आयोजित की, जिसमें स्थानीय स्तर पर टीबी उन्मूलन प्रयासों को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने में सांसदों की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया गया।

मुख्य बिंदु

  • उद्देश्य: निर्वाचित प्रतिनिधियों और स्थानीय हितधारकों को सक्रिय रूप से शामिल करके सामुदायिक कार्रवाई को संगठित करना, जागरूकता बढ़ाना और भारत के टीबी उन्मूलन मिशन को गति प्रदान करना।
  • टीबी का परिचय: तपेदिक (टीबी) माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु से होने वाला संक्रामक रोग है। भारत का लक्ष्य टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत वर्ष 2025 तक टीबी का पूर्ण उन्मूलन करना है।
  • राष्ट्रीय प्रगति: भारत ने टीबी नियंत्रण में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है, जिसमें वर्ष 2015 और 2024 के बीच टीबी मामलों में 21% की कमी और 90% उपचार सफलता दर शामिल है, जो वैश्विक औसत से अधिक है।
  • सहायता उपकरण: टीबी रोगियों के लिये निक्षय पोषण योजना के तहत उन्नत निदान तकनीकें (जैसे AI-सक्षम चेस्ट एक्स-रे) और पोषण संबंधी सहायता पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • सांसदों की प्रतिबद्धताएँ: सांसदों ने निक्षय शिविरों को बढ़ावा देने, निक्षय मित्रों और स्वयंसेवकों को शामिल करने तथा ज़िला स्तर पर टीबी सेवाओं को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया।
  • जन आंदोलन: देश में 2 लाख से अधिक माय भारत स्वयंसेवक, 6.7 लाख निक्षय मित्र और 30,000 से अधिक निर्वाचित प्रतिनिधि मिशन-मोड में टीबी मुक्त भारत अभियान का समर्थन कर रहे हैं।

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