हरियाणा Switch to English
हरियाणा ने अरावली परिभाषा में संशोधन किया
चर्चा में क्यों?
हरियाणा सरकार ने न्यूनतम भूगर्भीय आयु (Geological Age) और ऊँचाई के मानदंडों जोड़कर ‘अरावली पर्वत शृंखला’ को पुनः परिभाषित किया है, जिसके कारण संरक्षण में कमी तथा पर्यावरणीय संरक्षण पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- अरावली की परिभाषा तय करने की प्रक्रिया वर्ष 2024 में आरंभ हुई थी, जब सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय तथा प्रभावित चार राज्यों (दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात) को एक एकीकृत परिभाषा निर्धारित करने का निर्देश दिया था।
- हरियाणा की परिभाषा:
- 4 अक्तूबर 2025 को हरियाणा के भूविज्ञान एवं खनन विभाग ने अरावली की नई परिभाषा को अंतिम रूप दिया। इस परिभाषा के अनुसार केवल वे पहाड़ियाँ ‘अरावली’ मानी जाएंगी, जो आसपास की भूमि से 100 मीटर से अधिक ऊँची है और एक अरब वर्ष से अधिक पुरानी चट्टानों से निर्मित हैं।
- 100 मीटर की ऊँचाई का मानक राजस्थान के मानक के अनुरूप है, किंतु जहाँ राजस्थान का वर्गीकरण खनन पर केंद्रित है, वहीं हरियाणा का वर्गीकरण संरक्षण पर केंद्रित है।
- हरियाणा के नए मापदंडों को राजस्थान और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के मानकों के अनुरूप "वैज्ञानिक रूप से मापने योग्य" और "क्षेत्र-सत्यापन योग्य" बताया गया है, जिसे विशेषज्ञ तकनीकी सुधार के बजाए नीतिगत परिवर्तन के रूप में देखते हैं।
- विशेषज्ञों की चिंताएँ:
- विशेषज्ञ और पर्यावरणविदों का मत है कि नई परिभाषा से संरक्षण का दायरा सिमट सकता है, विशेषकर गुरुग्राम, फरीदाबाद और नूह जैसे क्षेत्रों में, जहाँ भू-आकृति 100 मीटर ऊँचाई के मानक को पूरा नहीं करती। इससे वनाच्छादित अरावली क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियाँ बढ़ने की संभावना है।
- विशेषज्ञों का तर्क है कि संरक्षण को केवल चट्टानों की आयु के आधार पर नहीं, बल्कि झाड़ीदार वनों, जैवविविधता और भूजल पुनर्भरण सहित जीवित परिदृश्यों (living landscape) के आधार पर परिभाषित किया जाना चाहिये।
- GSI का दृष्टिकोण:
- GSI ने हरियाणा के पूर्व मसौदे पर आपत्ति जताई थी कि उसमें अत्यधिक प्राचीन आर्कियन संरचनाओं को शामिल किया गया है, जो वैज्ञानिक दृष्टि से सटीक नहीं हैं।
- नई परिभाषा अरावली को अरावली तथा दिल्ली सुपरग्रुप (पैलियोप्रोटेरोज़ोइक और मेसोप्रोटेरोज़ोइक) की चट्टानों तक सीमित करती है तथा एरिनपुरा ग्रेनाइट एवं मालानी रायोलाइट जैसी नव नियोप्रोटेरोज़ोइक अंतःप्रवेशी चट्टानों को बाहर करती है।
- भूविज्ञान विभाग के अनुसार, हरियाणा की अरावली भू-आकृति में अंतःप्रवेशी ग्रेनाइट का अंश 3% से भी कम है, जबकि क्षेत्र में अज़बगढ़ और अलवर समूहों की चट्टानें प्रमुख हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका:
- सर्वोच्च न्यायालय ने पहले दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में अरावली की एक समान परिभाषा तय करने का निर्देश दिया था, ताकि इन राज्यों में पर्यावरणीय नियमों को मानकीकृत किया जा सके।
- प्रस्तावित नई परिभाषा पूर्व न्यायिक निर्णयों, विशेषकर राजस्थान द्वारा वर्ष 2011-12 में ऊँचाई आधारित मानदंड अस्वीकार करने वाले निर्णय, से विरोधाभासी हो सकती है
- इससे “अरावली पर्वत शृंखला” की परिभाषा सीमित हो सकती है, जिससे संरक्षित क्षेत्र घटने और विकास हेतु पुनःवर्गीकरण की संभावना बढ़ सकती है।
- अरावली का महत्त्व:
- विश्व की सबसे पुरानी पर्वत शृंखलाओं में से एक अरावली, दिल्ली-NCR क्षेत्र में मरुस्थलीकरण को रोकने और पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- अरावली-दिल्ली वलित पट्टी (Aravali-Delhi Fold Belt) गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है, जो मुख्यतः क्वार्टजाइट, शिस्ट, फिलाइट, डोलोमाइट और संगमरमर जैसी शैलों से निर्मित है
- यह शृंखला थार रेगिस्तान के प्रसार को नियंत्रित करने में निर्णायक भूमिका निभाती है।
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
विश्व कपास दिवस 2025
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और पबित्रा मार्गेरिटा ने 7 अक्तूबर को नई दिल्ली में विश्व कपास दिवस 2025 समारोह में भाग लिया।
- यह कार्यक्रम वस्त्र मंत्रालय तथा भारतीय वस्त्र उद्योग परिसंघ (CITI) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था, जिसका विषय था "कपास 2040: प्रौद्योगिकी, जलवायु और प्रतिस्पर्द्धात्मकता।"
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- विश्व कपास दिवस की स्थापना वर्ष 2019 में की गयी थी, जब उप-सहारा अफ्रीका के चार कपास उत्पादक देशों (बेनीन, बुर्किना फासो, चाड और माली), जिन्हें सामूहिक रूप से “कॉटन फोर (Cotton Four)” कहा जाता है, ने 7 अक्टूबर को विश्व व्यापार संगठन (WTO) को यह दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया था।
- उद्देश्य:
- इस दिवस का उद्देश्य अल्प विकसित देशों के कपास और कपास से संबंधित उत्पादों के लिये वैश्विक बाज़ार तक पहुँच प्रदान करने की आवश्यकता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना है।
- साथ ही यह सतत व्यापार नीतियों को बढ़ावा देने और विकासशील देशों को कपास मूल्य शृंखला के प्रत्येक चरण से अधिक लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाना है।
- कपास से संबंधित तथ्य:
- शीर्ष पाँच कपास उत्पादक देश चीन, भारत, ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान हैं, जिनकी कुल मिलाकर वैश्विक उत्पादन में तीन-चौथाई से अधिक हिस्सेदारी है।
- भारत विश्व में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो कुल वैश्विक कपास उत्पादन का 23% है।
- कपास से विश्व में लगभग 2.4 करोड़ उत्पादकों को आजीविका मिलती है तथा 10 करोड़ से अधिक परिवारों को लाभ मिलता है।
- कपास विश्व में पॉलिएस्टर के बाद दूसरा सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला रेशा है, जो कुल रेशा मांग का लगभग 20% है।
- लगभग 80% कपास का उपयोग परिधानों में किया जाता है, शेष कपास का उपयोग घरेलू वस्त्रों और औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है।
- शीर्ष पाँच कपास उत्पादक देश चीन, भारत, ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान हैं, जिनकी कुल मिलाकर वैश्विक उत्पादन में तीन-चौथाई से अधिक हिस्सेदारी है।
- भारत में नियंत्रण प्रणाली:
- भारतीय कपास निगम की स्थापना जुलाई 1970 में वस्त्र मंत्रालय के अधीन की गई थी।
- इसका उद्देश्य मूल्य समर्थन उपायों के माध्यम से कपास के मूल्य स्थिरीकरण को सुनिश्चित करना है।
- इसके अतिरिक्त, यह निगम घरेलू वस्त्र उद्योग का व्यावसायिक खरीद परिचालन के माध्यम से समर्थन करता है, विशेष रूप से कम उत्पादन वाले मौसम के दौरान।