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उत्तर प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 14 Jun 2025
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राष्ट्रीय आपातकाल के 50 वर्ष

चर्चा में क्यों?

50 वर्ष पूर्व 12 जून 1975 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा नेहरू गाँधी बनाम श्री राज नारायण केस, 1975 में इंदिरा गाँधी के 1971 के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप 25 जून 1975 को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी गई, जो मार्च 1977 तक जारी रहा।

मुख्य बिंदु

  • इंदिरा नेहरू गाँधी बनाम श्री राज नारायण केस, 1975
    • यह भारत के संवैधानिक और लोकतांत्रिक इतिहास में एक मील का पत्थर है, जिसकी पृष्ठभूमि 1971 के आम चुनावों से जुड़ी है, जिसमें प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने समाजवादी नेता राज नारायण को पराजित किया था। इस पराजय के बाद राज नारायण ने चुनावी कदाचार के आधार पर कानूनी चुनौती दी।
  • चुनावी संदर्भ और आरोप:
    • राज नारायण ने आरोप लगाया कि इंदिरा गाँधी ने चुनावी लाभ के लिये सरकारी मशीनरी और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का उल्लंघन है।
      • उन्होंने इन कथित कदाचारों के आधार पर उनके चुनाव को अमान्य घोषित करने हेतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय:
    • न्यायालय ने पाया कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव प्रचार के लिये सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया है। परिणामस्वरूप, उनका चुनाव अवैध घोषित कर दिया गया तथा उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिये अयोग्य ठहराया गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय में अपील:
    • इंदिरा गाँधी ने उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की तथा अंतरिम रोक और निष्कर्षों को चुनौती देने का अवसर मांगा।
  • आपातकाल की घोषणा:
    • राजनीतिक अस्थिरता के बीच 25 जून 1975 को इंदिरा गाँधी की सरकार ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी, जिसके परिणामस्वरूप नागरिक स्वतंत्रताएँ निलंबित, प्रेस पर सेंसरशिप लागू और चुनाव स्थगित कर दिये गए।
  • राष्ट्रीय आपातकाल से संबंधित मुख्य तथ्य:
    • राष्ट्रीय आपातकाल के बारे में:
      • जब भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध, बाह्य आक्रमण (बाह्य आपातकाल) या सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक आपातकाल) से खतरा होता है, तब राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।
    • 38वाँ संशोधन अधिनियम, 1975:
      • इस संशोधन ने राष्ट्रपति को युद्ध, बाह्य आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह अथवा इसके आसन्न खतरे के आधार पर आपातकालीन उद्घोषणा जारी करने की अनुमति दी।
    • 44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978:
      • इसने "आंतरिक अशांति" के स्थान पर "सशस्त्र विद्रोह" शब्द को प्रतिस्थापित किया, ताकि आपातकाल के प्रयोग को सीमित किया जा सके।
      • प्रादेशिक विस्तार:
      • आपातकाल की घोषणा संपूर्ण देश या किसी विशिष्ट भाग तक सीमित की जा सकती है। 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976 ने राष्ट्रपति को भारत के एक विशिष्ट हिस्से में आपातकाल लागू करने में सक्षम बनाया।
    • संसदीय अनुमोदन:
      • 44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978 के अनुसार, आपातकाल की घोषणा को एक माह के भीतर दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है (पूर्व में यह अवधि दो माह थी)।
      • यदि घोषणा के समय लोकसभा भंग हो, तो राज्यसभा का अनुमोदन वैध रहेगा, किंतु पुनर्गठित लोकसभा को अपनी पहली बैठक के 30 दिनों के भीतर इसे अनुमोदित करना होगा।
    • अवधि
      • आपातकाल 6 माह तक लागू रहता है और इसे प्रत्येक 6 माह में संसद की स्वीकृति से अनिश्चितकाल तक बढ़ाया जा सकता है (44वाँ संशोधन, 1978)।
    • निरसन:
    • लोकसभा द्वारा अस्वीकृति का प्रावधान:
      • यदि लोकसभा के कुल सदस्यों का दसवाँ हिस्सा अध्यक्ष (यदि सत्र चल रहा हो) या राष्ट्रपति (यदि सत्र स्थगित हो) को लिखित सूचना देता है, तो 14 दिनों के भीतर विशेष बैठक आहूत करनी होगी।
      • इस बैठक में साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित कर आपातकाल को अस्वीकृत किया जा सकता है।
    • न्यायिक समीक्षा:
      • 38वाँ संशोधन अधिनियम, 1975 ने आपातकालीन घोषणा को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दिया था।
      • बाद में 44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा इस प्रावधान को विलोपित कर दिया गया।
    • मिनर्वा मिल्स मामला, 1980:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि आपातकाल की घोषणा दुर्भावनापूर्ण, अप्रासंगिक तथ्यों या विकृत जानकारी पर आधारित हो, तो उसे चुनौती दी जा सकती है


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