मध्य प्रदेश Switch to English
बुंदेलखंड के लिये औद्योगिक पैकेज की स्वीकृति
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल ने बुंदेलखंड क्षेत्र के आर्थिक परिदृश्य को परिवर्तित करने के उद्देश्य से एक विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज को स्वीकृति दी है।
- खजुराहो में मंत्रिमंडल बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने औद्योगिक विकास, रोज़गार विस्तार और बेहतर अवसंरचना पर विशेष ज़ोर दिया।
मुख्य बिंदु
- निवेश: इस पैकेज का उद्देश्य पिछड़े क्षेत्र में 24,240 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित करना और लगभग 29,000 प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित करना है।
- लक्ष्य: यह पहल सागर संभाग के मसवासी ग्रांट औद्योगिक क्षेत्र पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय औद्योगिकीकरण में तीव्रता लाना है।
- प्रोत्साहन: भूमि आवंटन और पट्टा दरें 1 रुपये प्रति वर्ग मीटर निर्धारित की गई हैं, जिसमें 20 वार्षिक किस्तों में देय विकास शुल्क और न्यूनतम रखरखाव शुल्क शामिल हैं।
- छूट: इस पैकेज में स्टांप शुल्क और पंजीकरण शुल्क की 100% प्रतिपूर्ति के साथ-साथ नई औद्योगिक इकाइयों के लिये पाँच वर्ष की विद्युत् शुल्क छूट का प्रावधान है।
- नीतियाँ: बड़े उद्योग औद्योगिक संवर्द्धन नीति 2025 के तहत काम करेंगे, जबकि लघु एवं मध्यम उद्यम MSME विकास नीति और प्रोत्साहन योजना 2025 का पालन करेंगे।
- अपवाद: सीमेंट निर्माण इकाइयों को इस विशेष प्रोत्साहन पैकेज के लाभ से विशेष रूप से वंचित रखा गया है।
- अवसंरचना: अतिरिक्त निर्णयों में सिंचाई प्रणालियों में सुधार और बुंदेलखंड में सड़क संपर्क को बढ़ाने के लिये निधि की स्वीकृति शामिल है।
बुंदेलखंड
- बुंदेलखंड एक भौगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्र में विस्तृत है।
- उत्तर प्रदेश के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में इसमें झाँसी, जालौन, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर, बाँदा और चित्रकूट ज़िले शामिल हैं, जबकि मध्य प्रदेश के क्षेत्र में सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना, दतिया और निवाड़ी जैसे ज़िले शामिल हैं।
- यह एक पठारी क्षेत्र है जिसमें अनेक छोटी पहाड़ियाँ स्थित हैं। झाँसी बुंदेलखंड का सबसे बड़ा शहर है।
- चंदेल काल के दौरान ऐतिहासिक रूप से जेजाभुक्ति या जेजाकभुक्ति के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र, 13वीं-14वीं शताब्दी में बुंदेला राजवंश के उदय के बाद बुंदेलखंड के नाम से प्रख्यात हुआ।
मध्य प्रदेश Switch to English
भरेवा शिल्प के लिये राष्ट्रीय सम्मान
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मध्य प्रदेश के बेतुल के शिल्पकार बालदेव वाघमारे को राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार से सम्मानित किया, जिससे भरेवा जनजातीय धातु शिल्प को राष्ट्रीय पहचान मिली।
मुख्य बिंदु
- उत्पत्ति: यह शिल्प गोंड जनजाति की एक उप-समुदाय से संबंधित है, जहाँ धातु ढलाई कौशल पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं।
- परंपरा: भरेवा कला गोंड अनुष्ठानों से गहरे जुड़ी हुई है, जो परंपरा को शिल्प कौशल के साथ जोड़ती है।
- निर्माण: शिल्पकार प्रतीकात्मक देवी-देवता की मूर्तियाँ, परंपरागत आभूषण और गोंड अनुष्ठानों में प्रयुक्त धार्मिक सामान बनाते हैं।
- शिल्पकार्य: मोर लैंप, बैलगाड़ी, घंटियाँ, पायल और दर्पण के फ्रेम जैसी सजावटी वस्तुएँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो चुकी हैं।
- समुदाय: भरेवा मुख्य रूप से भोपाल से लगभग 180 किमी. दूर बेतूल ज़िले में स्थित हैं।
- भौगोलिक संकेत (GI) स्थिति: भरेवा धातु शिल्प को हाल ही में भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला, जिससे इसका सांस्कृतिक महत्त्व और भी बढ़ गया है।
- संपदा: पुरस्कार विजेता बालदेव वाघमारे ने टिगरिया को शिल्प केंद्र में परिवर्तित कर कम हुए शिल्पकार समुदाय को पुनर्जीवित किया, पिता से विरासत में मिली भरेवा कला को संरक्षित किया और अपने परिवार की आजीविका सुनिश्चित की।
गोंड जनजाति
- विशाल जनजातीय समूह: गोंड विश्व के सबसे बड़े जनजातीय समुदायों में से एक हैं और भारत में सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति हैं।
- भौगोलिक प्रसार: ये मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में रहते हैं, जबकि अन्य कई राज्यों में इनकी छोटी आबादी पाई जाती है।
- उपसमूह: गोंड के प्रमुख उपसमूहों में राज गोंड, मड़िया गोंड, धुर्वे गोंड और खातुलवार गोंड शामिल हैं।
- संस्कृति और मान्यताएँ: उनके भोजन का मुख्य आधार कोदो और कुटकी बाजरा है; चावल केवल त्योहारों के लिये आरक्षित है और उनकी आस्था प्रणाली पृथ्वी, जल और वायु को नियंत्रित करने वाले प्रकृति देवताओं पर केंद्रित है।
- भाषा: वे मुख्य रूप से गोंडी भाषा बोलते हैं, जो एक द्रविड़ीय भाषा है और पारंपरिक रूप से अलिखित है, हालाँकि अब इसके लिये उभरती हुई लिपियाँ मान्यता प्राप्त हैं।
उत्तर प्रदेश Switch to English
CDS बिपिन रावत ऑडिटोरियम
चर्चा में क्यों?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारत के प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत की चौथी पुण्यतिथि पर उनकी प्रतिमा का अनावरण किया।
मुख्य बिंदु
- स्थान: प्रतिमा का अनावरण सैनिक स्कूल, गोरखपुर में किया गया, जहाँ जनरल रावत के नाम पर बनाए गए देश के पहले ऑडिटोरियम का भी उद्घाटन किया गया।
- आयोजक: प्रतिमा की स्थापना GBR मेमोरियल फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा की गई।
- पुस्तिका विमोचन: मुख्यमंत्री ने जनरल रावत के जीवन, सेवा और योगदान पर आधारित एक स्मरण-पुस्तिका जारी की।
- उद्देश्य: यह कार्यक्रम जनरल रावत के सैन्य नेतृत्व, राष्ट्रीय सेवा तथा भारत की रक्षा-तैयारी को सुदृढ़ करने में उनके योगदान का सम्मान करने हेतु आयोजित किया गया।
- सार्वजनिक संदेश: मुख्यमंत्री ने रावत को अनुशासन, कर्त्तव्य और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया तथा विद्यार्थियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
- राष्ट्रीय दृष्टि: मुख्यमंत्री ने रावत की विरासत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “पंच प्रण” दृष्टि से जोड़ते हुए उन्हें राष्ट्रीय लक्ष्यों के प्रति समर्पित योद्धा के रूप में वर्णित किया।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ
- CDS भारत में सर्वोच्च रैंक का सैन्य अधिकारी होता है, जो तीनों सेनाओं से संबंधित सभी मामलों पर रक्षा मंत्री के प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करता है और सैन्य मामलों के विभाग (DMA) का नेतृत्व करता है।
- इस पद का सृजन तीनों सेवाओं (सेना, नौसेना तथा वायु सेना) के बीच समन्वय और संगठनात्मक एकजुटता को बढ़ाने के लिये किया गया था।
- CDS चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी का स्थायी अध्यक्ष और रक्षा अधिग्रहण परिषद का सदस्य होता है।
राजस्थान Switch to English
राजस्थान में पेयजल परियोजनाओं को स्वीकृति
चर्चा में क्यों?
राजस्थान सरकार ने जल जीवन मिशन के तहत नोनेरा तथा परवान-अकावड़ पेयजल परियोजनाओं के लिये कार्य आदेश जारी किये हैं, जिनकी कुल लागत 5,184 करोड़ रुपए निर्धारित की गई है।
मुख्य बिंदु
- लाभान्वित ज़िले: परियोजनाओं के पूर्ण होने पर कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बारां ज़िलों के घरों को नियमित पेयजल की आपूर्ति प्राप्त होगी।
- नोनेरा परियोजना कवरेज: नोनेरा परियोजना कोटा और बूंदी के 749 गाँव और 6 कस्बों को जलापूर्ति करेगी, जिससे 1,13,287 परिवार लाभान्वित होंगे।
- नोनेरा अवसंरचना: 1,661.14 करोड़ रुपए की स्वीकृत लागत वाली इस परियोजना में 1 इनटेक स्टेशन, 3 जल-शोधन संयंत्र, 14 भंडार, 137 ऊँची टंकियाँ तथा 4,560 किमी से अधिक पाइपलाइन नेटवर्क शामिल है।
- परवन-अकावड़ कवरेज: इस परियोजना से 1,402 गाँवों को लाभ होगा, जिनमें बारां के 907, कोटा (सांगोद) के 184, झालावाड़ के 311 तथा 276 छोटे गाँव सम्मिलित हैं, जिससे कुल 1,52,437 परिवारों को लाभ प्राप्त होगा।
- परवन-अकावड़ अवसंरचना: 3,523.16 करोड़ रुपए की स्वीकृति वाली इस परियोजना में 2 इनटेक स्टेशन, 2 शोधन संयंत्र, 41 भंडार, 276 ऊँची टंकियाँ तथा 10,000 किमी से अधिक पाइपलाइनें शामिल हैं।
- समय-सीमा: दोनों परियोजनाओं को अगस्त 2027 तक पूरा करने का लक्ष्य है, जिससे जल जीवन मिशन (JJM) के अंतर्गत हर घर तक नल कनेक्शन उपलब्ध कराने के राज्य लक्ष्य को समर्थन मिलेगा।
जल जीवन मिशन (JJM)
- परिचय:
- 15 अगस्त, 2019 को प्रारम्भ किया गया जल जीवन मिशन (JJM), प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल से जल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखता है। मिशन का लक्ष्य वर्ष 2024 से बढ़ाकर 2028 कर दिया गया है, जिसके तहत प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जल उपलब्ध कराना है।
- यह एक केंद्रीय प्रायोजित योजना है, जिसका क्रियान्वयन जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
- उद्देश्य: (स्मरण सूत्र: TAP)
- T – प्रत्येक ग्रामीण परिवार को लक्षित करना: सभी ग्रामीण परिवारों को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) उपलब्ध कराना।
- A – प्राथमिकता वाले क्षेत्र: गुणवत्ता-प्रभावित, अर्द्ध-शुष्क, सूखाग्रस्त, मरुस्थलीय क्षेत्रों तथा संसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY) के अंतर्गत आने वाले ग्रामों को प्राथमिकता देना।
- P – सार्वजनिक स्थान: विद्यालय, आंगनवाड़ी केंद्र, ग्राम पंचायत भवन तथा अन्य सामुदायिक स्थलों पर नलजल की व्यवस्था सुनिश्चित करना।
राजस्थान Switch to English
राजस्थान में उन्नत खनिज अन्वेषण हेतु AI का उपयोग
चर्चा में क्यों?
राजस्थान खनिज अन्वेषण में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तथा मशीन लर्निंग (ML) को लागू करने जा रहा है, जो राज्य के खनन क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण तकनीकी परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
मुख्य बिंदु
- समझौते: प्रवासी राजस्थान दिवस के दौरान दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे, एक IIT हैदराबाद के साथ और दूसरा IIT ISM धनबाद के साथ।
- राष्ट्रीय संरेखण: यह पहल महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों की खोज में सुधार करके आत्मनिर्भर भारत और डिजिटल इंडिया जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों का समर्थन करती है।
- डेटा सहयोग: RSMET और IIT हैदराबाद के बीच एक आशय पत्र के माध्यम से डेटा का आदान-प्रदान और सहयोगात्मक अनुसंधान संभव होगा।
- खनन अपशिष्ट अध्ययन: IIT ISM धनबाद के साथ साझेदारी का उद्देश्य राजस्थान में खनन अपशिष्टों और अवशेषों का वैज्ञानिक मूल्यांकन करना है।
- डेटासेट एकीकरण: खनिज-समृद्ध क्षेत्रों की पहचान करने के लिये 39 ज़िलों से प्राप्त भूवैज्ञानिक, भू-रासायनिक, भू-भौतिकीय, रिमोट सेंसिंग और उपग्रह डेटासेट को संयोजित किया जाएगा।
- लक्षित खनिज: अन्वेषण ताँबा, ग्रेफाइट, जस्ता, लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों पर केंद्रित होगा।
- परियोजना की समयसीमा: IIT हैदराबाद के साथ यह सहयोग 18 महीनों में चार चरणों में पूरा किया जाएगा, जिससे राज्य के लिये खनिज विकास का रोडमैप तैयार होगा।
- चिह्नित डंप: विभाग ने एक वर्षीय IIT ISM धनबाद परियोजना के तहत मूल्यांकन के लिये 80 खदान डंप का चयन किया है, जिसमें मानचित्रण, नमूनाकरण, निष्कर्षण अध्ययन और खनिज विश्लेषण शामिल हैं।
- राष्ट्रीय महत्त्व: रणनीतिक खनिजों की बढ़ती घरेलू और वैश्विक मांग के कारण, राजस्थान भारत के महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन में एक मुख्य भूमिका निभाता है।
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