भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के खनन क्षेत्र में सुधार
- 25 Jun 2025
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प्रिलिम्स के लिये:खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम 2015, ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF), राष्ट्रीय खनिज नीति (NMP) 2019, PARIVESH पोर्टल, खनन प्रहरी ऐप, राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET), नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (NCMM), M-सैंड (निर्मित रेत), वन अधिकार अधिनियम, 2006, दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE) मेन्स के लिये:भारत के खनन क्षेत्र में किये गए सुधार, भारत के खनन क्षेत्र का महत्त्व, दायरा और चुनौतियाँ। भारत के खनन क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिये आवश्यक कदम। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
मई 2025 में, भारत ने अपनी पहली पोटाश खदान (ब्लॉक) की नीलामी की, जो खनन क्षेत्र संबंधी सुधारों की दिशा में एक मील का पत्थर है और जिसका उद्देश्य भारत के खनन क्षेत्र में बदलाव लाना और आर्थिक विकास को गति प्रदान करना है।
भारत के खनन क्षेत्र में बदलाव लाने के लिये क्या सुधार किये गए हैं?
- कानूनी सुधार: खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2015 ने विवेकाधीन प्रणाली को बदलने के लिये नीलामी आधारित आवंटन की शुरुआत की, कैप्टिव खदानों के लिये स्वचालित विस्तार सुनिश्चित किया और स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिये ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) का निर्माण किया गया।
- 2021 के संशोधन ने वाणिज्यिक कोयला खनन को सक्षम करने के लिये अंतिम उपयोग प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया, पट्टे की शर्तों को बढ़ाकर 50 वर्ष कर दिया और निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये अन्वेषण-सह-खनन (CEMP) के लिये एक समग्र लाइसेंस पेश किया।
- राष्ट्रीय खनिज नीति (NMP) 2019: राष्ट्रीय खनिज नीति (NMP) 2019 सतत् खनन, निजी क्षेत्र की भागीदारी, व्यापार करने में सुगमता, AI को अपनाने, ड्रोन, पारदर्शिता के लिये ब्लॉकचेन और मूल्य संवर्धन के लिये डाउनस्ट्रीम उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान करने पर केंद्रित है।
- कोयला क्षेत्र में सुधारों के तहत निजी कंपनियों को वाणिज्यिक कोयला खनन (2020) की अनुमति दी गई। स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिये कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण को प्रोत्साहित किया गया। साथ ही, पर्यावरणीय अनुमोदनों की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिये एकल-खिड़की प्रणाली (PARIVESH पोर्टल) शुरू की गई।
- तकनीकी प्रगति: उपग्रह इमेज़री अवैध खनन पर नज़र रखती है और अनुपालन सुनिश्चित करती है, जबकि खनन प्रहरी ऐप नागरिकों को ऐसी गतिविधियों की रिपोर्ट करने की सुविधा प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक डेटा भंडार (NGDR) सार्वजनिक पहुँच के लिये 12,000 से अधिक भूवैज्ञानिक रिपोर्ट निःशुल्क प्रदान करता है, जबकि ड्रोन सर्वेक्षण, माइनिंग टेनेमेंट सिस्टम (MTS) और फेसलेस फाइलिंग जैसी पहलें प्रभावशीलता और पारदर्शिता को बढ़ावा देती हैं।
- अन्वेषण सुधार: राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET) अन्वेषण परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है। इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है, जबकि एक्सप्लोरेशन लाइसेंस (EL) प्रणाली ने सूक्ष्म, MSME और स्टार्टअप्स के लिये नए अवसर उत्पन्न किये जाते हैं।
- नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (NCMM) की शुरुआत ऊर्जा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण खनिजों लिथियम, कोबाल्ट, निकल तथा दुर्लभ मृदा तत्त्वों की सुरक्षा और सुनिश्चित आपूर्ति को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई है।
- अपतटीय खनिज खनन की शुरुआत की गई है, जिससे वैश्विक संसाधन आपूर्ति शृंखला में भारत की भूमिका का विस्तार हुआ है।
- सतत् खनन पहल: स्टार रेटिंग प्रणाली के माध्यम से खानों को सतत् खनन प्रथाओं के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। पर्यावरणीय पुनर्वास के लिये माइन क्लोजर प्लान को अनिवार्य किया गया है। इसके अतिरिक्त, नदी बालू खनन को कम करने के उद्देश्य से M-सैंड (विनिर्मित रेत) के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत के खनन क्षेत्र का क्या महत्त्व है?
- आर्थिक विकास चालक: भारत के खनन क्षेत्र ने वर्ष 2023–24 में सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 1.97% का योगदान दिया। इस क्षेत्र से नीलामी और रॉयल्टी के माध्यम से राज्यों को ₹4 लाख करोड़ की आय हुई, जिसका उपयोग अवसंरचना विकास और कल्याणकारी योजनाओं के लिये किया जाता है।
- ओडिशा ने 44.9% हिस्सेदारी के साथ अग्रणी स्थान प्राप्त किया, इसके बाद छत्तीसगढ़ (13.9%), झारखंड (4.1%) और महाराष्ट्र (3.9%) का स्थान रहा।
- औद्योगिक एवं अवसंरचना की आधारशिला: भारत ईंधन, धात्विक, अधात्विक, परमाणु, और अल्पखनिजों सहित कुल 95 खनिजों का उत्पादन करता है।
- धात्विक खनिज (90.3%) जैसे लौह अयस्क, बॉक्साइट और ताँबा इस्पात, एल्युमिनियम एवं इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों को समर्थन प्रदान करते हैं, जबकि अधात्विक खनिज (9.7%) जैसे चूना पत्थर और फॉस्फेट सीमेंट, उर्वरक एवं रासायनिक उद्योगों में सहायक होते हैं।
- रोजगार और ग्रामीण विकास: DMF ट्रस्ट खनन से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और खनन प्रभावित क्षेत्रों में आजीविका को समर्थन देने के लिये करते हैं। वहीं, MSME और स्टार्टअप्स को दिये गए एक्सप्लोरेशन लाइसेंस खनिज-समृद्ध राज्यों में रोज़गार सृजन को बढ़ावा देते हैं।
- ऊर्जा संक्रमण: लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे आवश्यक खनिजों की खोज से EV बैटरियों, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और रक्षा तकनीक के लिये आयात निर्भरता में कमी आती है।
- पोटाश खनन से उर्वरक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुदृढ़ होती है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: नीलामी सुधारों और अपतटीय खनन से निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे भारत को वैश्विक आवश्यक खनिज आपूर्ति शृंखला में एक सशक्त स्थान प्राप्त होता है।
- काबिल (KABIL) की विदेशी अधिग्रहण रणनीतियाँ (जैसे लिथियम के लिये अर्जेंटीना) भारत को रणनीतिक खनिज संसाधनों की आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं।
भारत के खनन क्षेत्र में क्या चुनौतियाँ हैं?
- विनियामक एवं प्रशासकीय बाधाएँ: पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव अनुमोदनों में देरी, साथ ही भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुद्दे विशेषकर वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आदिवासी अधिकारों तथा स्थानीय विरोध के कारण परियोजनाओं की गति को धीमा कर देते हैं।
- लौह अयस्क निर्यात पर प्रतिबंध और रॉयल्टी दरों में परिवर्तन जैसी लगातार होने वाले नीतिगत बदलावों से निवेशकों के लिये नियामकीय अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
- अवैध एवं असंवहनीय खनन: कमज़ोर प्रवर्तन के कारण बड़े पैमाने पर अवैध खनन, विशेष रूप से झारखंड, राजस्थान और गोवा में तथा साथ ही रैट-होल माइनिंग जैसे अनियमित खनन के कारण वनों की कटाई, जल प्रदूषण और मृदा क्षरण होता है।
- राजनेताओं, नौकरशाहों और खनन माफियाओं का गठजोड़ भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और कानूनी कार्यों को बाधित करता है।
- कम अन्वेषण: भारत की स्पष्ट भूवैज्ञानिक क्षमता (OGP) का केवल 10% ही अन्वेषण किया गया है, भारत में वैश्विक अन्वेषण बजट का 1% से भी कम खर्च किया गया है, जबकि स्वचालन, AI और ड्रोन सर्वेक्षणों की तुलना में अप्रचलित खनन तकनीकों पर निर्भरता दक्षता को कम करती है।
- रसद संबंधी बाधाएँ: खनन क्षेत्रों (जैसे, ओडिशा, छत्तीसगढ़) में खराब परिवहन संपर्क, बंदरगाह संबंधी बाधाएँ और विद्युत् की कमी के कारण लागत में वृद्धि होती है, जिससे खनन कार्यों में देरी और व्यवधान उत्पन्न होता है।
- महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये आयात पर निर्भरता: वर्ष 2020 में भारत ने अपने लिथियम, कोबाल्ट, निकल का 100% और ग्रेफाइट का 60% आयात किया, जो EV और नवीकरणीय ऊर्जा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, और चीनी प्रसंस्कृत खनिजों पर भारी निर्भरता है।
- वर्ष 2025 में दुर्लभ मृदा तत्त्वों (REE) और चुंबकों पर चीन के निर्यात नियंत्रण से इन आयातों पर निर्भर भारतीय उद्योगों को बाधा पहुँचेगी।
- सामाजिक एवं पर्यावरणीय संघर्ष: नियमगिरि पहाड़ियों जैसे वन क्षेत्रों में खनन के कारण जनजातीय विस्थापन विरोधों का सामना करना पड़ता है, जल की कमी होती है और किसानों के साथ संघर्ष होता है, तथा सामुदायिक पुनर्वास के लिये DMF निधि का खराब कार्यान्वयन भी होता है।
- लगातार दुर्घटनाओं (जैसे, मेघालय में रैट-होल माइनिंग में मौतें ) के साथ खराब कार्य स्थितियाँ और कुशल श्रमिकों की कमी आधुनिक खनन प्रौद्योगिकी को अपनाने में बाधा डालती है।
भारत के खनन क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?
- अन्वेषण एवं भूवैज्ञानिक डेटा को बढ़ावा देना: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (National Mineral Exploration Trust- NMET)) के लिये धन जुटाकर अन्वेषण हेतु बजट में वृद्धि करना तथा कर छूट एवं राजस्व-साझाकरण जैसे प्रोत्साहनों के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना।
- बुनियादी ढाँचा और रसद विकास: ओडिशा और झारखंड जैसे क्लस्टरों में बेहतर रेलवे, सड़क तथा पाइपलाइनों के साथ खदान से संयंत्र तक संपर्क को मज़बूत करना एवं खनिज निर्यात के लिये विजाग, पारादीप व मोरमुगाओ में बंदरगाह क्षमता का विस्तार करना।
- कोयला और लौह अयस्क के कुशल परिवहन के लिये समर्पित खनिज गलियारे तथा माल ढुलाई गलियारे विकसित करना।
- प्रौद्योगिकी और स्वचालन को अपनाना: बेहतर सर्वेक्षण के लिये AI, ड्रोन, उपग्रह इमेजिंग और भू-स्थानिक मानचित्रण को अपनाना तथा निवेशकों हेतु राष्ट्रीय खनिज डेटाबेस के साथ एक खुला डेटा पोर्टल बनाना।
- रिमोट-नियंत्रित ड्रिलिंग, शून्य-अपशिष्ट खनन को बढ़ावा देना तथा कोयला गैसीकरण, हाइड्रोजन-आधारित स्टील और नमकीन पानी से लिथियम निष्कर्षण जैसे स्वच्छ खनन के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
- सतत् एवं उत्तरदायी खनन: जल पुनर्चक्रण, कार्बन-तटस्थ खनन और जैव-पुनर्ग्रहण के साथ पर्यावरण, सामाजिक एवं शासन (ESG) मानदंडों को लागू करना, भूमि बहाली के लिये खदान बंद करने हेतु धन सुनिश्चित करना तथा स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं आजीविका पर प्रभावी DMF व्यय के माध्यम से समुदाय-केंद्रित खनन को बढ़ावा देना।
- अवैध खनन और भ्रष्टाचार से निपटना: विस्तारित उपग्रह निगरानी (खनन निगरानी प्रणाली) और खनन प्रहरी ऐप के साथ निगरानी को मज़बूत करना, अवैध खननकर्त्ताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों पर कठोर दंड लगाना तथा माफिया गतिविधियों को उजागर करने के लिये मुखबिरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों पर ध्यान केंद्रित करना: अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में लिथियम, कोबाल्ट एवं दुर्लभ मृदा परिसंपत्तियों के लिये वैश्विक साझेदारी सुनिश्चित करना, लिथियम व ग्रेफाइट के लिये घरेलू शोधन संयंत्र स्थापित करना तथा EV, सौर पैनलों एवं रक्षा तकनीक की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज नीति को लागू करना।
निष्कर्ष
नीलामी, तकनीक अपनाने और महत्त्वपूर्ण खनिज सुरक्षा जैसे सुधारों से पुनर्जीवित भारत का खनन क्षेत्र आर्थिक विकास तथा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। हालाँकि, अवैध खनन, आयात निर्भरता और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। अन्वेषण, बुनियादी ढाँचे और स्थिरता में रणनीतिक निवेश खनन को पारिस्थितिक तथा सामाजिक समानता को संतुलित करते हुए विकसित भारत के एक स्तंभ में बदल सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: राष्ट्रीय आर्थिक, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा हासिल करने में भारत के खनन क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा कीजिये। सुधार किस तरह इसके योगदान को मज़बूत कर सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. भारत में ज़िला खनिज फाउंडेशन का/के क्या उद्देश्य है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बहुत कम प्रतिशत योगदान है। चर्चा कीजिये। (2021) |