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दुर्लभ मृदा तत्त्व

  • 17 Jan 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दुर्लभ मृदा तत्त्व और उनका महत्त्व

मेन्स के लिये:

दुर्लभ मृदा तत्त्व, भारत में अपने उत्पादन को बढ़ाने के लिये क्षमताओं को विकसित और कदम उठाए जाने की जरूरत है

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने  दुर्लभ मृदा तत्त्व आपूर्ति पर चीन के कथित "चोकहोल्ड” (Chokehold) को समाप्त करने के उद्देश्य से एक कानून का प्रस्ताव दिया है।

  • विधेयक का उद्देश्य "दुर्लभ मृदा तत्त्व आपूर्ति व्यवधानों के खतरे से अमेरिका की रक्षा करना और इन तत्त्वों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना तथा चीन पर इसकी निर्भरता को कम करना है।”
  • कानून के तहत वर्ष 2025 तक दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के "रणनीतिक रिज़र्व" के निर्माण की आवश्यकता होगी।
    • इस रिज़र्व को आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में एक वर्ष के लिये सेना की तकनीकी क्षेत्र और अन्य आवश्यक बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों का जवाब देने का काम सौंपा जाएगा।

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प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • यह 17 दुर्लभ धातु तत्त्वों का समूह है। इसमें आवर्त सारणी में मौजूद 15 लैंथेनाइड और इसके अलावा स्कैंडियम तथा अट्रियम शामिल हैं, जो लैंथेनाइड्स के समान ही भौतिक एवं रासायनिक गुण प्रदर्शित करते हैं।
    • 17 रेयर अर्थ मेटल्स में सीरियम (Ce), डिस्प्रोसियम (Dy), एर्बियम (Er), यूरोपियम (Eu), गैडोलिनियम (Gd), होल्मियम (Ho), लैंथेनम (La), ल्यूटेटियम (Lu), नियोडिमियम (Nd) प्रेजोडायमियम (Pr), प्रोमेथियम (Pm), समैरियम (Sm), स्कैंडियम (Sc), टेरबियम (Tb), थुलियम (Tm), येटरबियम (Yb) और इट्रियम (Y) शामिल हैं।
    • इन खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, ल्यूमिनसेंट व विद्युत रासायनिक गुण विद्यमान होते  हैं और इस प्रकार उपभोक्ता द्वारा इनका इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर एवं नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा, आदि सहित कई आधुनिक तकनीकों में उपयोग किया जाता है।
    • यहांँ तक ​​कि भविष्य की प्रौद्योगिकियों में भी इन REE की आवश्यकता होती है (उदाहरण के लिये  उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी, हाइड्रोकार्बन अर्थव्यवस्थाहेतु  हाइड्रोजन का सुरक्षित भंडारण और परिवहन, पर्यावरण ग्लोबल वार्मिंग एवं ऊर्जा दक्षता से संबंधित मुद्दों आदि में)।
    • उन्हें 'दुर्लभ मृदा' (Rare Earth) कहा जाता है क्योंकि पहले उन्हें तकनीकी रूप से उनके ऑक्साइड रूपों से निकालना मुश्किल था।
    • वे कई खनिजों में विद्यमान होते हैं लेकिन आमतौर पर कम सांद्रता में इन्हें किफायती तरीके से परिष्कृतकिया जाता है।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्वों के लिये भारत की वर्तमान नीति:
    • भारत में अन्वेषण का कार्य खान ब्यूरो और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाता है। खनन और प्रसंस्करण अतीत में कुछ छोटे निजी कम्पनियों द्वारा किया गया है, लेकिन वर्तमान में यह आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड (पूर्व में इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड), परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा किया जाता है।
    • भारत ने आईआरईएल जैसे सरकारी निगमों को प्राथमिक खनिजों पर एकाधिकार प्रदान किया है जिसमें शामिल REEs हैं: कई तटीय राज्यों में पाए जाने वाले मोनाजाइट समुद्र तटीय रेत।
    • इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) दुर्लभ पृथ्वी ऑक्साइड (कम लागत, कम-प्रतिफल वाली अपस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का उत्पादन करती है, इन्हें उन विदेशी फर्मों को बेचती है, जो धातुओं को निकालते हैं और अंतिम उत्पादों (उच्च लागत, उच्च-प्रतिफल वाली डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का निर्माण करते हैं।
    • IREL का फोकस मोनाजाइट से निकाले गए थोरियम को परमाणु ऊर्जा विभाग को उपलब्ध कराना है।
  • चीन का एकाधिकार:
    • चीन ने समय के साथ रेयर अर्थ धातुओं पर वैश्विक प्रभुत्व हासिल कर लिया है, यहाँ तक ​​कि एक बिंदु पर इसने दुनिया की 90% रेयर अर्थ धातुओं का उत्पादन किया था।
    • वर्तमान में हालाँकि यह 60% तक कम हो गया है और शेष अन्य देशों द्वारा उत्पादन किया जाता है, जिसमें क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) देश शामिल हैं।
    • वर्ष 2010 के बाद जब चीन ने जापान, अमेरिका और यूरोप की  रेयर अर्थ्स शिपमेंट पर रोक लगा दी, तो एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में छोटी इकाइयों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया एवं अमेरिका में उत्पादन इकाइयाँ शुरू की गई।
    • फिर भी संसाधित रेयर अर्थ धातुओं का प्रमुख हिस्सा चीन के पास है।
  • चीन पर भारी निर्भरता (भारत और विश्व):
    • भारत में रेयर अर्थ तत्त्वों का दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा भंडार है, जो ऑस्ट्रेलिया से लगभग दोगुना है, लेकिन यह चीन से अपनी अधिकांश रेयर अर्थ धातुओं की ज़रूरतों को तैयार रूप में आयात करता है।
    • वर्ष 2019 में अमेरिका ने अपने रेयर अर्थ खनिजों का 80% चीन से आयात किया, जबकि यूरोपीय संघ को इसकी आपूर्ति का 98% चीन से मिलता है।

आगे की राह

  • भारत को दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के लिये एक नया विभाग (Department for Rare Earths- DRE) बनाने की ज़रूरत है, जो इस क्षेत्र में व्यवसायों के लिये एक नियामक और प्रवर्तक की भूमिका निभाएगा।
    • वर्तमान में खनन और प्रसंस्करण बड़े पैमाने पर आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड के हाथों में केंद्रित है, जो परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत एक सार्वजनिक उपक्रम है।
  • भारतीय कंपनियों को भारतीय बाज़ार में आरईई और फीड वैल्यू एडेड उत्पादों की संभावना के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में ऐसे एक्सप्लोरेशन व्यवसाय बनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • इस क्षेत्र की अधिकांश सरकारों की खनन और अन्वेषण के अनुकूल नीतियाँ व निवेश का स्वागत है। इस क्षेत्र में भारत के मज़बूत ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक और प्रवासी संबंध हैं जो सदियों से चले आ रहे व्यापार एवं प्रवास के दौरान विकसित हुए हैं।
  • भारत वैश्विक आपूर्ति संकटों के खिलाफ बफर के रूप में रणनीतिक रिज़र्व का निर्माण करते हुए क्वाड जैसे समूहों के साथ सीधे साझेदारी करने के लिये अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय कर सकता है।

स्रोत- द हिंदू

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