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मध्य प्रदेश

भरेवा शिल्प के लिये राष्ट्रीय सम्मान

  • 10 Dec 2025
  • 16 min read

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मध्य प्रदेश के बेतुल के शिल्पकार बालदेव वाघमारे को राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार से सम्मानित किया, जिससे भरेवा जनजातीय धातु शिल्प को राष्ट्रीय पहचान मिली।

मुख्य बिंदु

  • उत्पत्ति: यह शिल्प गोंड जनजाति की एक उप-समुदाय से संबंधित है, जहाँ धातु ढलाई कौशल पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं।
  • परंपरा: भरेवा कला गोंड अनुष्ठानों से गहरे जुड़ी हुई है, जो परंपरा को शिल्प कौशल के साथ जोड़ती है।
  • निर्माण: शिल्पकार प्रतीकात्मक देवी-देवता की मूर्तियाँ, परंपरागत आभूषण और गोंड अनुष्ठानों में प्रयुक्त धार्मिक सामान बनाते हैं।
  • शिल्पकार्य: मोर लैंप, बैलगाड़ी, घंटियाँ, पायल और दर्पण के फ्रेम जैसी सजावटी वस्तुएँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो चुकी हैं।
  • समुदाय: भरेवा मुख्य रूप से भोपाल से लगभग 180 किमी. दूर बेतूल ज़िले में स्थित हैं।
  • भौगोलिक संकेत (GI) स्थिति: भरेवा धातु शिल्प को हाल ही में भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला, जिससे इसका सांस्कृतिक महत्त्व और भी बढ़ गया है।
  • संपदा: पुरस्कार विजेता बालदेव वाघमारे ने टिगरिया को शिल्प केंद्र में परिवर्तित कर कम हुए शिल्पकार समुदाय को पुनर्जीवित किया, पिता से विरासत में मिली भरेवा कला को संरक्षित किया और अपने परिवार की आजीविका सुनिश्चित की।

गोंड जनजाति

  • विशाल जनजातीय समूह: गोंड विश्व के सबसे बड़े जनजातीय समुदायों में से एक हैं और भारत में सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति हैं।
  • भौगोलिक प्रसार: ये मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में रहते हैं, जबकि अन्य कई राज्यों में इनकी छोटी आबादी पाई जाती है।
  • उपसमूह: गोंड के प्रमुख उपसमूहों में राज गोंड, मड़िया गोंड, धुर्वे गोंड और खातुलवार गोंड शामिल हैं।
  • संस्कृति और मान्यताएँ: उनके भोजन का मुख्य आधार कोदो और कुटकी बाजरा है; चावल केवल त्योहारों के लिये आरक्षित है और उनकी आस्था प्रणाली पृथ्वी, जल और वायु को नियंत्रित करने वाले प्रकृति देवताओं पर केंद्रित है।
  • भाषा: वे मुख्य रूप से गोंडी भाषा बोलते हैं, जो एक द्रविड़ीय भाषा है और पारंपरिक रूप से अलिखित है, हालाँकि अब इसके लिये उभरती हुई लिपियाँ मान्यता प्राप्त हैं।
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