उत्तर प्रदेश Switch to English
गंगा-यमुना दोआब में प्राचीन नदी के साक्ष्य प्राप्त
चर्चा में क्यों?
प्रयागराज में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (नमामि गंगे) के अंतर्गत संचालित एक प्रमुख जलभृत मानचित्रण परियोजना के तहत, प्रयागराज और कानपुर के मध्य विस्तृत गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में एक लुप्त प्राचीन नदी के अस्तित्व के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
मुख्य बिंदु
नदी के बारे में:
- पैलियो-चैनल मैपिंग से पता चला है कि यह नदी लगभग 200 किमी लंबी और 4 किमी चौड़ी तथा 15 से 25 मीटर गहरी है।
- नदी के प्राचीन मार्ग का पता लगाने और भूमिगत जलाशयों का मानचित्रण करने के लिये उपग्रह चित्रों तथा भू-स्थानिक आँकड़ों (Geospatial Data) का उपयोग किया गया।
- इस प्राचीन नदी में लगभग 3,500–4,000 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) तक जल भंडारण की क्षमता है।
जलभृत मानचित्रण परियोजना
- परिचय:
- स्मार्ट जल प्रबंधन प्रणाली, रिमोट सेंसिंग तथा ड्रोन आधारित निगरानी जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों द्वारा समर्थित यह जलभृत मानचित्रण परियोजना, गंगा के सतत् कायाकल्प में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
- कार्यान्वयन:
- यह परियोजना उत्तर प्रदेश राज्य भूजल एवं सिंचाई विभाग के सहयोग से संचालित की जा रही है।
- प्रबंधित जलभृत पुनर्भरण (MAR) स्थल:
- अब तक 150 से अधिक MAR स्थलों की पहचान की गई है, जहाँ भूजल स्तर को बढ़ाने और नदी के आधार प्रवाह को बनाए रखने हेतु पुनर्भरण संरचनाएँ स्थापित की जाएंगी।
- चरण:
- परियोजना के प्रथम चरण में 20–25 MAR स्थलों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
- इन पुनर्भरण संरचनाओं का मानक आकार 5 मीटर × 5 मीटर × 3 मीटर रखा गया है, जिन्हें भूजल स्तर में सुधार और नदी में सतत् जल प्रवाह बनाए रखने के उद्देश्य से विकसित किया गया है।
- प्रौद्योगिकी:
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (CSIR–NGRI) द्वारा स्वचालित जल-स्तर संकेतक स्थापित किये जा रहे हैं। इनके माध्यम से वास्तविक समय की वैज्ञानिक निगरानी संभव होगी, जिससे पुनर्भरण प्रयासों की सफलता सुनिश्चित की जा सकेगी।
- महत्त्व:
- इस परियोजना का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और जल की कमी जैसी चुनौतियों को कम करना है। साथ ही, यह पहल गंगा और अन्य नदियों को भावी पीढ़ियों के लिये संरक्षित करने तथा भूमिगत जलाशय प्रणालियों व उन्नत प्रौद्योगिकियों के माध्यम से दीर्घकालिक समाधान उपलब्ध कराने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
विश्व ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी दिवस
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग (DEPwD) प्रत्येक वर्ष 7 सितंबर को विश्व ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी दिवस मनाता है।
मुख्य बिंदु
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2024 से प्रत्येक 7 सितंबर को विश्व ड्युशेन जागरूकता दिवस के रूप में नामित किया।
- इस दिवस का उद्देश्य प्रभावित व्यक्तियों एवं परिवारों के प्रति वैश्विक एकजुटता, सहानुभूति और जागरूकता को बढ़ावा देना है।
- थीम: वर्ष 2025 की थीम "परिवार: देखभाल का केंद्र" है।
- यह थीम DMD प्रभावित व्यक्तियों के लिये परिवारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देती है।
- यह प्रेम, सहयोग और धैर्य के साथ-साथ समावेशन, जागरूकता एवं सामुदायिक सहयोग को भी रेखांकित करती है।
ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD)
- DMD एक दुर्लभ और प्रगतिशील आनुवंशिक विकार है, जो एक्स गुणसूत्र में उत्परिवर्तन के कारण होता है। इसके चलते मांसपेशियों की रक्षा करने वाले प्रोटीन डिस्ट्रोफिन का उत्पादन नहीं हो पाता।
- इस रोग का नाम डॉ. ड्यूशेन डी बोलोग्ने के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1860 के दशक में इसका विस्तार से वर्णन किया था।
- यह मुख्यतः पुरुषों को प्रभावित करता है क्योंकि उनके पास केवल एक X गुणसूत्र होता है।
- लक्षण:
- प्रारंभिक अवस्था में चलने-फिरने में कठिनाई।
- धीरे-धीरे गतिशील क्रियाओं की शक्ति क्षीण होती जाती है।
- समय के साथ श्वसन क्षमता प्रभावित होती है और हृदय (जो स्वयं एक मांसपेशी है) पर भी प्रभाव पड़ता है।
- मस्तिष्क पर प्रभाव: डिस्ट्रोफिन मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में भी भूमिका निभाता है, जिसके कारण प्रभावित बच्चों में सीखने और व्यवहार संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- निदान: विश्व स्तर पर DMD का निदान प्रायः 4 वर्ष की आयु के बाद होता है। हालाँकि, माता-पिता लक्षण पहले ही पहचान लेते हैं, लेकिन औसतन 2.5 वर्ष की देरी से निदान होता है। कुछ लक्षण अत्यंत छोटे बच्चों में भी दिखाई देने लगते हैं।