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विश्व ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी दिवस

  • 09 Sep 2025
  • 14 min read

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग (DEPwD) प्रत्येक वर्ष 7 सितंबर को विश्व ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी दिवस मनाता है।

मुख्य बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2024 से प्रत्येक 7 सितंबर को विश्व ड्युशेन जागरूकता दिवस के रूप में नामित किया।
  • इस दिवस का उद्देश्य प्रभावित व्यक्तियों एवं परिवारों के प्रति वैश्विक एकजुटता, सहानुभूति और जागरूकता को बढ़ावा देना है।
  • थीम: वर्ष 2025 की थीम "परिवार: देखभाल का केंद्र" है
    • यह थीम DMD प्रभावित व्यक्तियों के लिये परिवारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देती है।
    • यह प्रेम, सहयोग और धैर्य के साथ-साथ समावेशन, जागरूकता एवं सामुदायिक सहयोग को भी रेखांकित करती है।

ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD)

  • DMD एक दुर्लभ और प्रगतिशील आनुवंशिक विकार है, जो एक्स गुणसूत्र में उत्परिवर्तन के कारण होता है। इसके चलते मांसपेशियों की रक्षा करने वाले प्रोटीन डिस्ट्रोफिन का उत्पादन नहीं हो पाता।
  • इस रोग का नाम डॉ. ड्यूशेन डी बोलोग्ने के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1860 के दशक में इसका विस्तार से वर्णन किया था।
  • यह मुख्यतः पुरुषों को प्रभावित करता है क्योंकि उनके पास केवल एक X गुणसूत्र होता है।
  • लक्षण:
    • प्रारंभिक अवस्था में चलने-फिरने में कठिनाई।
    • धीरे-धीरे गतिशील क्रियाओं की शक्ति क्षीण होती जाती है।
    • समय के साथ श्वसन क्षमता प्रभावित होती है और हृदय (जो स्वयं एक मांसपेशी है) पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • मस्तिष्क पर प्रभाव: डिस्ट्रोफिन मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में भी भूमिका निभाता है, जिसके कारण प्रभावित बच्चों में सीखने और व्यवहार संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • निदान: विश्व स्तर पर DMD का निदान प्रायः 4 वर्ष की आयु के बाद होता है। हालाँकि, माता-पिता लक्षण पहले ही पहचान लेते हैं, लेकिन औसतन 2.5 वर्ष की देरी से निदान होता है। कुछ लक्षण अत्यंत छोटे बच्चों में भी दिखाई देने लगते हैं।

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