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श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
मुख्य बिंदु
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी:
- प्रारंभिक जीवन और उपलब्धियाँ:
- श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कलकत्ता में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- 33 वर्ष की आयु में, श्यामा प्रसाद मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के कुलपति बने।
- उन्होंने प्रगतिशील सुधार लागू किये और एशियाटिक सोसाइटी ऑफ कलकत्ता, भारतीय विज्ञान संस्थान (बंगलूरू) और अंतर-विश्वविद्यालय बोर्ड जैसी शैक्षिक संस्थाओं में सक्रिय योगदान दिया।
- उन्होंने वर्ष 1922 में बंगाली पत्रिका "बंग वाणी" और 1940 के दशकों में द नेशनलिस्ट की शुरुआत की।
- राजनीतिक करियर:
- वह कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए कॉन्ग्रेस उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान परिषद के लिये चुने गए।
- जब कॉन्ग्रेस पार्टी ने विधानमंडल का बहिष्कार करने का निर्णय लिया, तो उन्होंने विधान परिषद से इस्तीफा दे दिया और बाद में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पुनः सीट जीत ली।
- कृषक प्रजा पार्टी-मुस्लिम लीग गठबंधन सरकार (1937-1941) के दौरान, उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया और मज़बूत राष्ट्रवादी चिंताओं को आवाज़ दी।
स्वतंत्रता के बाद:
- मंत्री की भूमिका:
- वह फज़लुल हक के नेतृत्व वाली प्रगतिशील गठबंधन सरकार में वित्त मंत्री के रूप में शामिल हुए, लेकिन वैचारिक और राजनीतिक मतभेदों के कारण उन्होंने एक वर्ष के भीतर ही इस्तीफा दे दिया।
- बाद में वे बंगाल की राजनीति में एक प्रमुख हिंदू आवाज़ के रूप में उभरे, हिंदू महासभा में शामिल हुए और वर्ष 1944 में इसके अध्यक्ष चुने गए, जो उनकी राजनीतिक यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव था।
- महात्मा गांधी की हत्या के बाद, डॉ. मुखर्जी ने हिंदू महासभा को धार्मिक सीमाओं से परे अपनी भूमिका का विस्तार करने और व्यापक राष्ट्रीय सेवा में संलग्न होने की वकालत की।
- उन्होंने संगठन के अराजनीतिक बने रहने के निर्णय का विरोध किया और परिणामस्वरूप 23 नवंबर, 1948 को हिंदू महासभा से इस्तीफा दे दिया।
- बंगाल विभाजन पर रुख:
- उन्होंने वर्ष 1946 में बंगाल विभाजन का समर्थन किया और बंगाली हिंदुओं की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करते हुए भारत के भीतर एक अलग हिंदू बहुल राज्य, पश्चिम बंगाल बनाने की वकालत की।
- केंद्रीय शासन में भूमिका:
- वे पंडित नेहरू की अंतरिम कैबिनेट में उद्योग और आपूर्ति मंत्री के रूप में शामिल हुए और स्वतंत्रता के बाद की प्रारंभिक औद्योगिक नीति में योगदान दिया।
- उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे व्यवहार पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए, लियाकत अली खान के साथ दिल्ली समझौते के विरोध में 6 अप्रैल 1950 को मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
- भारतीय जनसंघ की स्थापना:
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख गुरु गोलवलकर से परामर्श करने के बाद, उन्होंने 21 अक्तूबर 1951 को दिल्ली में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो आज के समय में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नाम से जानी जाती है।
- वे इसके पहले अध्यक्ष बने। वर्ष 1952 में पार्टी ने तीन लोकसभा सीटें जीतीं, जिनमें उनकी अपनी सीट भी शामिल थी।
- संसद में नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया, हालाँकि इसे आधिकारिक मान्यता नहीं मिली।
- कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर रुख:
- उन्होंने अनुच्छेद 370 का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह एक ऐसा कदम है जो भारत के विखंडन का कारण बन सकता है और राष्ट्रीय एकता के लिये खतरा बन सकता है।
- उन्होंने शेख अब्दुल्ला के तीन-राष्ट्र सिद्धांत की आलोचना की और अनुच्छेद 370 को हटाने की मांग के लिये हिंदू महासभा और राम राज्य परिषद के साथ मिलकर सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया।
- 11 मई, 1953 को, बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने का प्रयास करते समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 23 जून, 1953 को विवादास्पद परिस्थितियों में हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई।