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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    मौद्रिक नीति संचरण क्या है? मौद्रिक नीति के प्रमुख घटकों को स्पष्ट करते हुए इसके उद्देश्यों की चर्चा करें।

    01 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में मौद्रिक संचरण को बताएँ।
    • तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में मौद्रिक नीति के प्रमुख घटकों को स्पष्ट करते हुए इसके उद्देश्यों की चर्चा करें। 
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    मौद्रिक नीति संचरण से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा लिये गए मौद्रिक नीतिगत निर्णयों का संपूर्ण वित्तीय व्यवस्था में संचार होता है। इसके प्रभाव अर्थव्यवस्था में ब्याज दर, मुद्रास्फीति जैसे कारकों के माध्यम से परिलक्षित होते हैं।

    भारत में रिज़र्व बैंक द्वारा इसके लिये कई नीतिगत संकेतों का प्रयोग किया जाता है, जिनमे रेपो रेट (जिसे नीतिगत दर भी कहा जाता है) सर्वप्रमुख संकेत है। रेपो रेट में परिवर्तन अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों में परिवर्तन के माध्यम से निवेश, बचत आदि की दरों को प्रभावित करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक के विकास अनुसंधान समूह के एक अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, वित्तीय प्रणाली में घर्षण (Friction) कम होने पर मौद्रिक नीति संचरण में सुधार होता है।

    मौद्रिक नीति के प्रमुख घटक-

    1. रेपो दर : वह ब्याज दर जिस पर रिज़र्व बैंक एक दिन-एक रात की तात्कालिक आवश्यकता के लिये बैंकों को नकदी उपलब्ध कराता है। कई बार अपने रोज़मर्रा के कामकाज के लिये बैंकों को भी बड़ी रक़म की ज़रूरत पड़ जाती है और ऐसी स्थिति में वे देश के केंद्रीय बैंक से ऋण लेते हैं। इस तरह के ओवरनाइट ऋण पर रिज़र्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है उसे रेपो रेट कहते हैं।

    2. रिवर्स रेपो दर : यह रेपो रेट से उलट होता है अर्थात् जब कभी बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बड़ी धनराशि बची रह जाती है, तो वे उसे रिज़र्व बैंक में जमा कर देते हैं, जिस पर उन्हें ब्याज दिया जाता है। रिज़र्व बैंक इस ओवरनाइट रकम पर जिस दर से ब्याज अदा करता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

    3. नकद आरक्षित अनुपात : प्रत्येक बैंक को अपने कुल कैश रिज़र्व का एक निश्चित हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है, जिसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है। ऐसा इसलिये किया जाता है, ताकि किसी भी समय किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्त्ताओं को यदि रकम निकालने की ज़रूरत महसूस हो, तो बैंक को पैसा चुकाने में दिक्कत न आए। यह ऐसा साधन है, जिसकी सहायता से रिज़र्व बैंक बिना रिवर्स रेपो रेट में बदलाव किये बाज़ार से नकदी की तरलता को कम कर सकता है, क्योंकि CRR बढ़ाए जाने की स्थिति में बैंकों को अपनी नकदी का ज़्यादा बड़ा हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास रखना होगा और उनके पास ऋण के रूप में देने के लिये कम रकम रह जाएगी।

    4. सांविधिक चलनिधि अनुपात : वाणिज्यिक बैंकों के लिये अपने प्रतिदिन के कारोबार के बाद नकद, सोना और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में एक निश्चित धनराशि रिज़र्व बैंक के पास रखनी ज़रूरी होती है। इसका इस्तेमाल किसी भी आपात देनदारी को पूरा करने में किया जा सकता है। वह रेट जिस पर बैंक यह पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे SLR कहते हैं। इसके तहत अपनी कुल देनदारी के अनुपात में सोना, सरकारी अनुमोदित बांड्स के रूप में रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है।

    5. सीमांत स्थायी सुविधा : यह वह दर है जिससे रिज़र्व बैंक से एक रात के लिये कर्ज़ लिया जा सकता है। यह 2011-2012 में आरबीआई की मौद्रिक नीति के बाद अस्तित्व में आया।

    6. बैंक दर : जिस सामान्य ब्याज दर पर रिज़र्व बैंक द्वारा अन्य बैंकों को पैसा उधार दिया जाता है उसे बैंक दर कहते हैं। इसके द्वारा रिज़र्व बैंक साख नियंत्रण (Credit Control) का काम करता है।

    मौद्रिक नीति के उद्देश्य 

    • मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य आर्थिक वृद्धि को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है, क्योंकि मूल्य स्थिरता संधारणीय विकास की अनिवार्य शर्त है।
    • किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के अधिक होने का अर्थ है आवश्यक चीज़ों के दामों में बढ़ोतरी। यह इस बात का संकेतक होता है कि महँगाई तेज़ी से बढ़ रही है। 
    • मुद्रास्फीति में कमी लाने के लिये मौद्रिक नीति में सबसे महत्त्वपूर्ण है रेपो रेट । यदि रिज़र्व बैंक चाहता है कि बाज़ार में पैसे की आपूर्ति और तरलता बढ़े तो वह बैंक रेट को कम कर देता है।
    • यदि बाज़ार में पैसे की आपूर्ति और तरलता कम करनी है तो वह रेपो रेट को बढ़ा देता है। मुद्रास्फीति बढ़ने पर केंद्रीय बैंक सामान्यतः रेपो रेट बढ़ा देता है और मुद्रास्फीति घटने पर कम कर देता है।

    कह सकते हैं कि मौद्रिक नीति एक प्रकार का अस्त्र है, जिसके आधार पर बाज़ार में मुद्रा की आपूर्ति को नियंत्रित किया जाता है। मौद्रिक नीति ही यह तय करती है कि रिज़र्व बैंक किस दर पर बैंकों को क़र्ज़ देगा और किस दर पर उन बैंकों से पैसा वापस लेगा।

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