इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    फ्राँसीसी क्रांति रूपी पौधे को माण्टेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो जैसे विचारकों के लेखन के खाद्य-पानी से पर्याप्त पुष्टि तथा समृद्धि प्राप्त हुई। चर्चा करें।

    25 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    18वीं सदी में निरंकुश राजतंत्र और सामन्ती व्यवस्था लगभग समस्त यूरोप में विद्यमान थी, किंतु इन व्यवस्थाओं के विरूद्ध क्रांति का आविर्भाव सर्वप्रथम फ्राँस में हुआ। फ्राँस की क्रांति के लिये जिम्मेदार विभिन्न कारकों में अनेक विचारकों के लेखन की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। क्रांति की अग्नि को तीव्र रूप प्रदान करने का श्रेय इन विचारकों को भी दिया जाता है। माण्टेस्क्यू, वाल्टेयर, रूसो, दिदरो, क्वसने आदि उस समय के प्रसिद्ध विचारक थे। इन विचारकों के आलोचनात्मक लेखन में कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा था। इन्होंने कानून व समाज में असमानता, चर्च के दोष, राजा की स्वेच्छाचारिता तथा दैवीय अधिकारों की भावना आदि सभी पर अपने विचार व्यक्त किये। इन्होंने नई विचारधाराओं को जन्म दिया तथा तर्क की कसौटी पर परम्परागत संस्थाओं का अनौचित्य सिद्ध किया। इनकी लेखनी की बदौलत स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का नारा समस्त फ्राँस में फैल गया।

    इनमें माण्टेस्क्यू ने राजा के ‘दैवी सिद्धांत’ को गलत बताया तथा उसकी निरंकुशता का विरोध किया। उसने फ्राँसीसियों के समक्ष एक ‘सांविधानिक राजतंत्र’ रूपी शासन प्रणाली की स्थापना का सुझाव दिया। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द स्प्रिट ऑफ ला’ में उसने बताया कि राज्य की तीनों शक्तियों कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका का एक व्यक्ति में केन्द्रित न होकर पृथक्-पृथक् होना बहुत आवश्यक है। वाल्टेयर ने तकालीन धार्मिक व्यवस्था एवं चर्च को अपनी रचनाओं में निशाना बनाया। उन्होंने अपने व्यंग्यात्मक लेखों द्वारा पादरियों के भ्रष्टाचार और दुष्चरित्रता का भंडाफोड़ किया। वाल्टेयर ने जनता को संदेश दिया कि किसी संस्था की वहीं बातें ठीक माननी चाहियें जो विचार और विवेचना की कसौटी पर खरी उतरें। उन्होंने फ्राँस की जनता को सोचने के लिये विवश किया।

    रूसो ने अपनी पुस्तक ‘सोशल कान्ट्रैक्ट’ के माध्यम से कहा कि राजा का पद कोई दैवी वस्तु नहीं है। जनता ने ही एक समय राजा को अधिकार दिये थे जिससे वह उनको शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने में सहायता कर सके। किंतु, यदि राजा अपने अधिकारों का दुरूपयोग करता है तो जनता को अधिकार है कि वह ऐसे निरंकुश राजा के विरूद्ध विद्रोह कर दे। रूसो ने मानव के अधिकारों की घोषणा की और स्वतंत्रता व समानता को मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार बताया, जिनकी प्राप्ति एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ही संभव हो सकती है।

    इनके अतिरिक्त दिदरो, क्वेसने जैसे विचारकों के लेखन ने फ्राँस में एक अपूर्व बौद्धिक जागरण पैदा कर दिया और जनता अपनी हीन अवस्था का अंत करने के लिये व्यग्र हो उठी। इन विचारकों के विचारों से लोगों का दृष्टिकोण बदला और वे एक नयी व्यवस्था लाने के लिये प्रेरित हुए। क्रांति पर विचारकों के प्रभाव का अंदाजा नेपोलियन बोनापार्ट के एक कथन से भी हो जाता है- ‘यदि रूसो न हुआ होता, तो फ्राँस की क्रांति भी नहीं हुई होती। लुई सोलहवाँ खुद को बचा सकता था यदि उसने लेखन को नियंत्रित किया होता।’

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2