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प्रश्न :
प्रश्न. मानवजनित और जलवायु संबंधी कारकों के संयोजन से विश्व महासागरों में मृत क्षेत्रों (Dead Zones) का तीव्र गति से विस्तार हो रहा है। इनके कारणों का विश्लेषण कीजिये तथा समुद्री पारिस्थितिकी एवं तटीय अर्थव्यवस्थाओं पर इनके प्रभावों का मूल्यांकन कर नीतिगत स्तर पर व्यवहार्य समाधान प्रस्तुत कीजिये। (250 शब्द)
24 Nov, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मृत क्षेत्रों (हाइपोक्सिक ज़ोन) की स्पष्ट परिभाषा देते हुए उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- मृत क्षेत्र के विस्तार के कारणों का परीक्षण कीजिये तथा समुद्री पारिस्थितिकी एवं तटीय अर्थव्यवस्थाओं पर उनके प्रभाव का आकलन कीजिये।
- नीतिगत स्तर के समाधान प्रस्तावित कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
हाल के दशकों में डेड ज़ोन अर्थात मृत क्षेत्रों (हाइपोक्सिक ज़ोन– महासागरों या बड़े जल निकायों के ऐसे क्षेत्र जहाँ घुलित ऑक्सीजन का स्तर अधिकांश समुद्री जीवन को बनाए रखने के लिये आवश्यक सीमा से नीचे गिर जाता है) का तेज़ी से विस्तार हुआ है।
- विश्व स्तर पर 415 से अधिक डेड ज़ोन चिह्नित किये जा चुके हैं, जिनमें मैक्सिको की खाड़ी, बाल्टिक सागर तथा बंगाल की खाड़ी जैसे क्षेत्र सम्मिलित हैं।
- इनका विस्तार मानवजनित दबावों और जलवायु-प्रेरित महासागरीय परिवर्तनों के खतरनाक अंतःसंयोजन को दर्शाता है, जो समुद्री पारिस्थितिकी, तटीय आजीविकाओं तथा वैश्विक पर्यावरणीय संधारणीयता के लिये एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है।
मुख्य भाग:
डेड ज़ोन के विस्तार के कारण
- मानवजनित कारण:
- पोषक तत्त्वों का अपवाह (यूट्रोफिकेशन): नाइट्रोजन और फॉस्फोरस उर्वरकों का अत्यधिक कृषि उपयोग, साथ ही सीवेज का निर्वहन एवं पशुधन अपशिष्ट, शैवाल प्रस्फुटन का कारण बनता है। जब शैवाल मरते और विघटित होते हैं, तो ऑक्सीजन का स्तर तेज़ी से गिर जाता है।
- उदाहरण: मिसिसिपी नदी से पोषक तत्त्वों का बहाव मैक्सिको की खाड़ी के मौसमी डेड ज़ोन का कारण बनता है।
- अशोधित अपशिष्ट जल और औद्योगिक प्रदूषण: बढ़ते तटीय शहरों में अपर्याप्त सीवेज शोधन और उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ कार्बनिक अपशिष्ट, भारी धातुएँ और जहरीले रसायन उत्पन्न करते हैं, जो ऑक्सीजन क्षय की प्रक्रिया को तीव्र करते हैं।
- तटीय शहरीकरण और पर्यावास का नुकसान: भूमि पुनर्भरण, निर्माण गतिविधियाँ और ड्रेजिंग के कारण जल निकायों में अवसादन बढ़ता है तथा ज्वारीय प्रवाह बाधित होता है, परिणामस्वरूप प्रदूषक तत्त्व तटीय जल में फँस जाते हैं।
- अत्यधिक मत्स्यन: परभक्षी प्रजातियों की संख्या में गिरावट समुद्री खाद्य जाल और पोषक तत्त्वों के चक्रण को प्रभावित करती है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र ऑक्सीजन की कमी (हाइपॉक्सिया) के प्रति अधिक सुभेद्य हो जाते हैं।
- पोषक तत्त्वों का अपवाह (यूट्रोफिकेशन): नाइट्रोजन और फॉस्फोरस उर्वरकों का अत्यधिक कृषि उपयोग, साथ ही सीवेज का निर्वहन एवं पशुधन अपशिष्ट, शैवाल प्रस्फुटन का कारण बनता है। जब शैवाल मरते और विघटित होते हैं, तो ऑक्सीजन का स्तर तेज़ी से गिर जाता है।
- जलवायु संबंधी कारण:
- महासागरीय तापवृद्धि: भू-मंडलीय तापवृद्धि से महासागरों में ऑक्सीजन के क्षय की प्रक्रिया और भी तीव्र हो जाती है, विशेषकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में।
- जल स्तंभ स्तरीकरण: सतही जल के गर्म होने से ऑक्सीजन-समृद्ध ऊपरी परतों और गहन जल के बीच मिश्रण घट जाता है, जिससे हाइपॉक्सिक क्षेत्रों का विस्तार होता है।
- समुद्री धाराओं में परिवर्तन और मौसम की चरम स्थितियाँ: मंद समुद्री परिसंचरण और बढ़ती बाढ़ तटीय जल में अधिक पोषक तत्त्वों का प्रवाह बढ़ाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सुपोषीकरण (यूट्रोफिकेशन) की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है।
समुद्री पारिस्थितिकी पर प्रभाव
- समुद्री जैव-विविधता की क्षति: कम ऑक्सीजन वाले पानी में मछलियाँ, क्रस्टेशियन और बेंथिक जीव दम घुटकर मर जाते हैं। मछलियाँ, क्रस्टेशियन और बेंथिक जीव ऑक्सीजन की कमी के कारण दम घुटने से मर जाते हैं।
- उदाहरण: बाल्टिक सागर में मौजूद मृत क्षेत्र के कारण कॉड मछली की संख्या में भारी गिरावट आई है।
- खाद्य शृंखलाओं का विघटन: तल में रहने वाले जीवों की मृत्यु से पोषण शृंखलाएँ बाधित हो जाती हैं, जिससे हाइपॉक्सिया-सहिष्णु (ऑक्सीजन की कमी को सहन करने वाले) आक्रामक प्रजातियों का प्रभुत्व बढ़ने लगता है।
- प्रवाल भित्ति और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का पतन: भू-मंडलीय तापवृद्धि एवं हाइपॉक्सिया (ऑक्सीजन की कमी) का संयुक्त दबाव प्रवाल विरंजन और सी-ग्रास क्षरण को बढ़ाता है, जिससे आवश्यक प्रजनन आवास नष्ट हो जाते हैं।
तटीय अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव
- मत्स्यन और आजीविका में गिरावट: पारंपरिक मछुआरों की आय में कमी आई है, जबकि वाणिज्यिक मात्स्यिकी दीर्घकालिक अस्थिरता का सामना कर रहा है।
- पर्यटन पर प्रभाव: प्रवालों की मृत्यु, दुर्गंधयुक्त जल और मछलियों की सामूहिक मृत्यु दक्षिण-पूर्व एशिया, कैरेबियन तथा भारत के कुछ भागों में पर्यटन-आधारित अर्थव्यवस्थाओं को क्षति पहुँचाती है।
- आर्थिक नुकसान और खाद्य सुरक्षा जोखिम: समुद्री प्रोटीन पर निर्भर तटवर्ती देशों को बढ़ती खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। सरकारों को पुनर्स्थापन और स्वास्थ्य संबंधी उपायों के लिये अधिक लागत का वहन करना पड़ रहा है।
नीतिगत स्तर के समाधान
- राष्ट्रीय नीतियाँ:पोषक तत्त्व प्रबंधन: परिशुद्ध कृषि, उर्वरक सीमा निर्धारण, आर्द्रभूमि बफर और सीवेज व औद्योगिक अपशिष्ट पर सख्त नियंत्रण।
- एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM): मैंग्रोव पुनर्स्थापन, तटीय भूमि-उपयोग नियोजन और प्रदूषण क्षेत्र निर्धारण।
- अपशिष्ट जल शोधन को सुदृढ़ बनाना: तटीय शहरों में तृतीयक स्तर पर शोधन अनिवार्य।
- अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नीतियाँ:
- भू-मंडलीय तापवृद्धि को सीमित करने के लिये सुदृढ़ जलवायु प्रतिबद्धताएँ (NDC)।
- बंगाल की खाड़ी कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग।
- UNCLOS के अंतर्गत समुद्री स्थानिक योजना और ब्लू इकॉनमी फ्रेमवर्क।
- UNEP और IOC-UNESCO के माध्यम से ग्लोबल हाइपोक्सिया मॉनिटरिंग।
- वैज्ञानिक और तकनीकी उपाय:
- उपग्रह आधारित शैवाल प्रस्फुटन का पता लगाना।
- स्वायत्त महासागरीय ऑक्सीजन सेंसर।
- आर्द्रभूमियों और सूक्ष्मजीवी संघों के माध्यम से जैव-उपचार।
निष्कर्ष:
मृत क्षेत्र (डेड ज़ोन) का विस्तार महासागरीय स्वास्थ्य, जलवायु अस्थिरता और अस्थिर तटीय विकास के गंभीर संकट को उजागर करता है। इस चुनौती से निपटने के लिये प्रदूषण नियंत्रण, जलवायु कार्रवाई, सतत मत्स्य प्रबंधन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को समेकित करने वाली बहु-स्तरीय रणनीति आवश्यक है। महासागरों में ऑक्सीजन स्तर की रक्षा जैव-विविधता, तटीय अर्थव्यवस्थाओं तथा SDG 14 (जलीय जीवों की सुरक्षा) के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये अनिवार्य है।
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