दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. 1920 का दशक एकात्मक राष्ट्रवादी संघर्ष से बहु-वैचारिक आंदोलन की ओर परिवर्तन का प्रतीक था। इस दशक के दौरान विविध वैचारिक धाराओं ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के चरित्र को किस प्रकार प्रभावित किया, इसका परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

    24 Nov, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • 1920 के दशक को भारतीय राष्ट्रवाद के लिये एक परिवर्तनकारी दशक के रूप में प्रस्तुत कीजिये। 
    • इस दशक के दौरान भारत के स्वतंत्रता संग्राम के स्वरूप को आकार देने वाली विविध वैचारिक धाराओं पर चर्चा कीजिये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    1920 का दशक भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक परिवर्तनकारी दौर था। जो आंदोलन मुख्य रूप से काॅन्ग्रेस के नेतृत्व में गांधीवादी जन आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, वह धीरे-धीरे एक व्यापक, बहु-वैचारिक राष्ट्रवादी आंदोलन में परिवर्तित हो गया। असहयोग आंदोलन की वापसी (वर्ष 1922) में वैश्विक वैचारिक प्रवृत्तियाँ ब्रिटिश दमनकारी नीतियाँ तथा बढ़ती सामाजिक–आर्थिक असंतुष्टि ने विविध राजनीतिक दृष्टियों के उदय को गति प्रदान की। इन प्रवृत्तियों ने स्वतंत्रता संघर्ष की प्रकृति दिशा तथा गहराई को मूलतः पुनर्रचित किया।

    मुख्य भाग:

    गांधीवादी जन राजनीति: राष्ट्रवाद के आधार का विस्तार

    • गांधी के नेतृत्व ने इस संघर्ष को जन-आधारित, सहभागी आंदोलन में बदल दिया।
    • सत्याग्रह, अहिंसा, स्वदेशी, खादी और रचनात्मक कार्यक्रमों पर ज़ोर ने किसानों, श्रमिकों, महिलाओं एवं मध्यम वर्ग को व्यापक रूप से संगठित किया।
    • उदाहरण:
      • असहयोग आंदोलन (1920-22) ने जाति और क्षेत्र के भेदभाव से परे भारतीयों को एकजुट किया।
      • बारदोली सत्याग्रह (1928) ने अनुशासित अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति को प्रदर्शित किया।
    • गांधीवादी विचारधारा राष्ट्रीय संघर्ष की प्रमुख धुरी बनी रही, लेकिन अब यह एकमात्र धुरी नहीं रही।

    क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का उदय: युवा उग्रता

    • असहयोग आंदोलन की अचानक वापसी के बाद उत्पन्न मोहभंग ने युवाओं को उग्र राष्ट्रवादी मार्ग की ओर प्रेरित किया।
    • हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) तथा बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) ने आयरिश और रूसी अनुभवों से प्रेरणा लेकर सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाया।
    • उदाहरण:
      • काकोरी ट्रेन एक्शन (1925)
      • भगत सिंह के नेतृत्व में HSRA का समाजवादी स्वरूप परिवर्तन (वर्ष 1928 का घोषणापत्र)
    • क्रांतिकारी राष्ट्रवाद ने औपनिवेशिक शासन के साथ-साथ सामाजिक असमानताओं को भी चुनौती देते हुए वैचारिक उग्रता का संचार किया।

    समाजवादी और वामपंथी धाराओं का विकास

    • वर्ष 1917 की रूसी क्रांति और आर्थिक संकटों से प्रेरित होकर समाजवादी विचारों का प्रसार हुआ।
    • छात्रों श्रमिक संगठनों तथा बुद्धिजीवियों के बीच मार्क्सवादी विचारधाराएँ सशक्त हुईं।
    • उदाहरण:
      • अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन काॅन्ग्रेस (AITUC) वर्ष 1920 ने बंबई और बंगाल में श्रमिक आंदोलनों का नेतृत्व किया।
    • जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने काॅन्ग्रेस के भीतर समाजवादी दृष्टि को सुदृढ़ किया जिससे साम्राज्यवाद-विरोधी विमर्श को बल मिला।

     संवैधानिकवाद और उदारवादी राजनीति

    • सी.आर. दास और मोतीलाल नेहरू द्वारा स्वराज पार्टी का गठन (1923) संवैधानिक विचारधारा के उदय का प्रतीक था।
    • इस धारा ने विधान परिषदों में प्रवेश के माध्यम से औपनिवेशिक नीतियों को भीतर से उजागर करने की रणनीति अपनाई।
    • नकी बहसें, बजटीय अवरोध और प्रशासनिक आलोचनाओं ने राजनीतिक चेतना को समृद्ध किया तथा ब्रिटिश शासन की वैधता को चुनौती दी।

    सांप्रदायिक और पहचान-आधारित विचारधाराएँ

    • इस दशक में हिंदू महासभा, मुस्लिम लीग और सांप्रदायिक आंदोलनों का उदय हुआ।
    • पृथक निर्वाचिका एवं फूट डालो और राज करो की विभाजनकारी नीतियों जैसी ब्रिटिश रणनीतियों ने धार्मिक राजनीति को और गहरा किया।
    • इन घटनाक्रमों ने राष्ट्रवादियों को अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व और राष्ट्रीय एकता के मुद्दों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये विवश कर दिया।

    दलित अस्मिता और सामाजिक न्याय आंदोलन

    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने ने जातिगत भेदभाव, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक सुधार के प्रश्नों को केंद्र में रखा।
    • बहिष्कृत हितकारिणी सभा (वर्ष 1924) और मंदिर-प्रवेश आंदोलनों ने राष्ट्रवाद की परिभाषा में सामाजिक समानता को सम्मिलित किया।

    किसान और श्रमिक आंदोलनों का प्रसार

    • उत्तर प्रदेश, गुजरात, बंगाल और आंध्र जैसे क्षेत्रों में क्षेत्र-विशिष्ट आंदोलनों ने राष्ट्रवाद को दैनिक सामाजिक–आर्थिक संघर्षों से जोड़ा।
    • इन आंदोलनों ने वर्गीय चेतना को सुदृढ़ किया और ज़मीनी स्तर पर जनभागीदारी को गहराई प्रदान की।

    निष्कर्ष:

    इस प्रकार 1920 का दशक भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वैचारिक विविधता का काल सिद्ध हुआ। गाँधीवादी जन-राजनीति क्रांतिकारी उग्रवादी विचारधारा, समाजवादी उन्मुखता, संवैधानिक प्रयास, सांप्रदायिक प्रवृत्तियाँ और सामाजिक न्याय आंदोलनों ने मिलकर राष्ट्रवाद को अधिक व्यापक सामाजिक रूप से निहित एवं वैचारिक रूप से जीवंत बनाया। इसी बहुआयामी विरासत ने वर्ष 1930 के दशक और उसके बाद के निर्णायक जनांदोलनों की आधारशिला रखी।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
Share Page
images-2
images-2