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                                प्रश्न :प्रश्न. भारत में खनिज तथा ऊर्जा संसाधनों के असमान वितरण के लिये उत्तरदायी भौगोलिक कारकों पर चर्चा कीजिये। यह क्षेत्रीय विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है, समझाइये। (250 शब्द) 06 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :हल करने का दृष्टिकोण:- भारत में खनिज और ऊर्जा संसाधनों के वितरण के बारे में संक्षेप में बताते हुए उत्तर लिखना आरंभ कीजिये।
- भौगोलिक कारकों के कारण संसाधनों के असमान वितरण का गहन अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।
- क्षेत्रीय विकास पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
 परिचय:भारत के खनिज एवं ऊर्जा संसाधन अपनी प्राचीन तथा विविध भू-वैज्ञानिक संरचना के कारण अत्यंत असमान रूप से वितरित हैं। इन संसाधनों का अधिकतर संकेंद्रण प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेशों में पाया जाता है। यह असमान वितरण विभिन्न भू-आकृतिक संरचनाओं, विवर्तनिक घटनाओं तथा सहस्राब्दियों से चली आ रही पर्यावरणीय प्रक्रियाओं का परिणाम है। मुख्य भाग:असमान वितरण के लिये उत्तरदायी भौगोलिक कारक - भूवैज्ञानिक युग और संरचना (धात्विक एवं अधात्विक खनिज)
- अधिकांश धात्विक और उच्च-मूल्य वाले अधात्विक खनिज का निर्माण पूर्व-पुराजीवी युग (Pre-Palaeozoic age) में हुआ था।
- ये प्रायद्वीपीय पठार की प्राचीन क्रिस्टलीय, आग्नेय और कायांतरित चट्टानों से संबद्ध हैं।
 
- उदाहरण के लिये छोटा नागपुर पठार (उत्तर-पूर्वी बेल्ट) लौह अयस्क, मैंगनीज और बॉक्साइट से समृद्ध है।
- इसके विपरीत, हिमालय के नवोदित वलित पर्वतों में आर्थिक रूप से व्यवहार्य निक्षेप बहुत कम हैं।
 
 
- अधिकांश धात्विक और उच्च-मूल्य वाले अधात्विक खनिज का निर्माण पूर्व-पुराजीवी युग (Pre-Palaeozoic age) में हुआ था।
- अवसादन और बेसिन निर्माण (कोयला)
- भारत के 97% से अधिक कोयला भंडार गोंडवाना शैल तंत्र में संकेंद्रित हैं, जो प्राचीन वनस्पतियों के संचय और संपीडन से अवतलित नदी घाटियों में निर्मित हुए हैं।
- अधिकांश कोयला भंडार दामोदर, सोन, महानदी और गोदावरी नदियों की घाटियों में पाए जाते हैं, जिसके कारण झारखंड, ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ में इनका संकेंद्रण अधिक है।
 
- विवर्तनिक गतिविधि और भू-अभिनति (पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस)
- ये जीवाश्म ईंधन तृतीयक काल की अवसादी चट्टानों में पाए जाते हैं, विशेष रूप से महाद्वीपीय सीमांतों, अपतटीय क्षेत्रों एवं अग्रभूमि घाटियों में भ्रंश जालों, अपनति व अभिनति में।
- प्रमुख भंडार अपतटीय मुंबई हाई, असम के मैदान (डिगबोई) और गुजरात तथा कृष्णा-गोदावरी बेसिन की अवसादी घाटियों में केंद्रित हैं, जिससे मुख्य भूमि का अधिकांश भाग निज विहीन है।
 
- उत्तरी मैदानों (जलोढ़ आवरण) का अपवर्जन
- जलोढ़ निक्षेपों से निर्मित विशाल सिंधु-गंगा मैदान में खनिज निर्माण के लिये आवश्यक विशिष्ट भूवैज्ञानिक परिस्थितियाँ (उच्च दाब, उच्च तापमान, विवर्तनिक तनाव) का अभाव है।
- संपूर्ण उत्तरी मैदान महत्वपूर्ण आर्थिक खनिज और ऊर्जा संसाधनों से लगभग रहित है, जिससे एक विशाल गैर-संसाधन क्षेत्र का निर्माण होता है।
 
- लैटेराइट अपक्षय (बॉक्साइट)
- बॉक्साइट (एल्यूमीनियम अयस्क) का निर्माण पठार और पहाड़ी सतहों पर तीव्र उष्णकटिबंधीय रासायनिक अपक्षय से जुड़ा है।
- उच्च गुणवत्ता वाले बॉक्साइट निक्षेप ओडिशा के पूर्वी घाटों और मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं, जिससे इसका वितरण विशिष्ट जलवायु एवं स्थलाकृतिक परिस्थितियों वाले क्षेत्रों तक सीमित है।
 
 क्षेत्रीय विकास पर प्रभाव- बढ़ती क्षेत्रीय आर्थिक असमानताएँ: खनिज-विहीन राज्य (जैसे: पंजाब, केरल) कच्चे माल और ऊर्जा के लिये संसाधन-समृद्ध राज्यों से आयात पर निर्भर हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है और उनकी औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होती है, जिससे प्रायः राज्यों के बीच व्यापार असंतुलन उत्पन्न होता है।
- असमान सामाजिक और मानव विकास
- ‘संसाधन शाप’ की स्थिति: विडंबना यह है कि कई खनिज-समृद्ध क्षेत्र, विशेष रूप से छोटा नागपुर पठार में, प्रायः जनजातीय समुदाय (आदिवासी) निवास करती है, जिन्हें तीव्र खनन के कारण विस्थापन, भूमि अलगाव एवं गंभीर पर्यावरणीय क्षरण (जैसे, जल प्रदूषण, वनों की कटाई) का सामना करना पड़ता है।
- सामाजिक असमानताएँ: खनिजों से उत्पन्न समृद्धि प्रायः स्थानीय समुदायों तक पहुँचने में असफल रहती है, जिसके परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ, अपर्याप्त सामाजिक अवसंरचना (शिक्षा, स्वास्थ्य) और सामाजिक असंतोष उत्पन्न होता है।
 
 निष्कर्ष:भारत में खनिज और ऊर्जा संसाधनों का असमान वितरण एक स्थायी भौगोलिक बाधा है, जो क्षेत्रीय विकास में असमानताओं को गहराई से प्रभावित करता है। सतत् और समावेशी क्षेत्रीय विकास के लिये यह आवश्यक है कि नीतिगत दृष्टिकोण केवल संसाधनों के उत्खनन तक सीमित न रहे, बल्कि उनकी मूल्य संवर्धन पर केंद्रित हो, साथ ही संसाधन से प्राप्त आय का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित किया जाए (जैसे: ‘डिस्ट्रिक्ट माइनरल फाउंडेशन’)। इसके अतिरिक्त, वितरित नवीकरणीय ऊर्जा के व्यापक प्रचार-प्रसार और संसाधन-हीन क्षेत्रों में मानव संसाधन एवं आधारभूत संरचना में लक्षित निवेश भी अपरिहार्य हैं। To get PDF version, Please click on "Print PDF" button. Print
 
             
     
                  
                 
  