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प्रश्न :
रवि, एक IAS अधिकारी, एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील ज़िले में ज़िला मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत हैं। शासक दल द्वारा अपनी ताकत दिखाने के लिये एक विशाल राजनीतिक रैली आयोजित की गई थी, जिसमें लगभग दो लाख लोग शामिल होने की संभावना थी। वरिष्ठ नेता इसमें शामिल होने वाले थे तथा इस कार्यक्रम का व्यापक स्तर पर प्रचार किया गया था। हालाँकि रवि के कार्यालय ने पहले ही बैरिकेडिंग, निकासी मार्ग, पुलिस तैनाती और चिकित्सा तैयारियों के संबंध में सलाहें जारी की थीं, आयोजकों ने कई निर्देशों की अनदेखी की, यह कहकर कि बजट की सीमाएँ और तात्कालिकता की वजह से ऐसा करना संभव नहीं है।
रैली के दिन स्थिति अराजक हो गई। प्रवेश एवं निकास द्वार अत्यधिक भीड़ से भर गए, भीड़ प्रबंधन ठीक से नहीं किया गया तथा चिकित्सा सुविधाएँ अपर्याप्त थीं। रैली के दौरान, मंच के पास जाने के लिये लोगों द्वारा अचानक धक्का-मुक्की ने दहशत उत्पन्न कर दी, जिससे भगदड़ मची। इस घटना में कई लोगों की जान चली गई, कई घायल हुए तथा यह घटना व्यापक गुस्से और आक्रोश को जन्म देने वाली सिद्ध हुई।
विभिन्न हितधारकों की प्रतिक्रियाएँ तीव्र रही। मृतकों के परिवारों ने न्याय, जवाबदेही और त्वरित मुआवज़े की मांग की। नागरिक समाज के समूहों व मीडिया ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया। विपक्षी दलों का दावा था कि सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिये लोगों की जान को खतरे में डाला। वहीं, शासक दल ने रवि पर दबाव डाला कि वह इस घटना को कम महत्त्व दें एवं इसे एक “अपरिहार्य त्रासदी” के रूप में प्रस्तुत करें। कुछ अधिकारियों ने यह भी सुझाव दिया कि गलतियों को उजागर करने से अशांति उत्पन्न सकती है तथा यह रवि के कॅरियर के लिये जोखिम भी बन सकता है।
अब रवि एक द्वंद का सामना कर रहे हैं। ज़िले के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में, वे जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा कानून के शासन को बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार हैं। वहीं, उन्हें राजनीतिक दबाव, ट्रांसफर का खतरा एवं व्यक्तिगत धमकियों का भी सामना करना पड़ रहा है। उनके विकल्पों के परिणाम न केवल उनके कॅरियर पर, बल्कि शासन की विश्वसनीयता व जनता के विश्वास पर भी प्रभाव डालेंगे।
प्रश्न
1. रवि इस स्थिति में किन नैतिक द्वंद्वों का सामना कर रहे हैं?
2. रवि के पास उपलब्ध विकल्पों का मूल्यांकन कीजिये और प्रत्येक के संभावित परिणाम बताइए।
3. संवैधानिक मूल्यों और अच्छे शासन के सिद्धांतों के संदर्भ में रवि के लिये सबसे उपयुक्त कार्यवाही क्या हो सकती है, सुझाव दीजिये।
4. भीड़ प्रबंधन में सुधार करने और बड़े राजनीतिक एवं सार्वजनिक आयोजनों में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये दीर्घकालीन सुधार क्या लागू किये जा सकते हैं? (250 शब्द)
03 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संदर्भ स्थापित करने के लिये स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- इस मामले में रवि के समक्ष आने वाली नैतिक दुविधाओं का अभिनिर्धारण कीजिये और उन पर चर्चा कीजिये।
- उसके लिये उपलब्ध विकल्पों और प्रत्येक विकल्प के संभावित परिणामों का मूल्यांकन कीजिये।
- रवि के लिये सर्वोत्तम कार्यवाही का सुझाव दीजिये।
- भीड़ प्रबंधन में सुधार और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिये प्रणालीगत सुधारों की सिफारिश कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
एक IAS अधिकारी और ज़िला मजिस्ट्रेट, रवि को एक विकट स्थिति का सामना करना पड़ता है जब लगभग दो लाख लोगों की एक विशाल राजनीतिक रैली अराजक हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप परिणामस्वरूप भगदड़ मच जाती है। भीड़ प्रबंधन, बैरिकेडिंग, चिकित्सा तैयारियों एवं निकासी मार्गों पर पूर्व में दी गई सलाह के बावजूद, आयोजकों ने तात्कालिकता एवं बजट की कमी का हवाला देते हुए निर्देशों की अनदेखी की। इस त्रासदी के परिणामस्वरूप जान-माल का भारी नुकसान हुआ और जन आक्रोश फैला, जिससे रवि एक नैतिक एवं प्रशासनिक द्वंद्व में पड़ गए, जहाँ उन्हें कर्त्तव्य, उत्तरदायित्व एवं राजनीतिक दबाव के बीच संतुलन स्थापित करना था।
मुख्य भाग:
1. नैतिक दुविधाएँ
- कर्त्तव्य बनाम राजनीतिक दबाव: रवि को जीवन की रक्षा करने तथा विधि का पालन करने की आवश्यकता है, जबकि उस पर इस घटना को सत्तारूढ़ दल द्वारा एक ‘अपरिहार्य त्रासदी’ के रूप में प्रस्तुत करने का दबाव डाला जा रहा है।
- उत्तरदायित्व बनाम कॅरियर जोखिम: चूक की सूचना देने से उसका कॅरियर और व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ सकते हैं; तथ्यों को छिपाने से सत्यनिष्ठा से समझौता होता है।
- पीड़ितों के लिये न्याय बनाम सार्वजनिक व्यवस्था: परिवार उत्तरदायित्व की मांग करते हैं; खामियों को उजागर करने से अशांति या राजनीतिक प्रतिक्रिया हो सकती है।
- अल्पकालिक व्यावहारिकता बनाम दीर्घकालिक शासन नैतिकता: जानकारी को दबाने से अस्थायी राहत मिलती है, लेकिन जनता का विश्वास और जवाबदेही कम होती है।
2. विकल्प और परिणाम
विकल्प
कार्रवाई
परिणाम
ईमानदारी से रिपोर्ट करना
चूक और विफलताओं पर पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत करना
लाभ: सत्यनिष्ठा, जनता का विश्वास और न्याय कायम रहता है।
नुकसान: राजनीतिक प्रतिक्रिया, कॅरियर जोखिम, धमकियाँ।
घटना का कम आकलन करना
तथ्यों को छिपाना या गलत तरीके से प्रस्तुत करना
लाभ: अस्थायी कॅरियर सुरक्षा।
विपक्ष: नैतिकता का उल्लंघन, न्याय से इनकार, विश्वसनीयता और कानूनी निहितार्थों का ह्रास।
संतुलित दृष्टिकोण
तथ्यात्मक आंतरिक रिपोर्ट दाखिल करना, पीड़ितों को राहत सुनिश्चित करना और जनसंचार का प्रबंधन करना।
पक्ष: पेशेवर सत्यनिष्ठा बनाए रखना, तत्काल राजनीतिक प्रतिक्रिया को कम करना और सुधारों को संभव बनाना।
विपक्ष: आंशिक आलोचना, निरंतर दबाव।
3. अनुशंसित कार्यवाही- तत्काल प्रशासनिक उपाय:
- चूक और अनदेखी की गई सलाह का दस्तावेज़ीकरण करते हुए एक व्यापक रिपोर्ट दाखिल करना चाहिये।
- पीड़ितों के परिवारों के लिये मुआवज़ा, चिकित्सा देखभाल और राहत सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- घटना के बाद की जाँच के लिये पुलिस और आपातकालीन सेवाओं के साथ समन्वय किया जाना चाहिये।
- जनसंचार:
- सहानुभूति व्यक्त करना चाहिये, त्रासदी को स्वीकार करना चाहिये और सनसनीखेज बनाए बिना निवारक उपायों के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये।
- नैतिक औचित्य:
- अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), अनुच्छेद 14 (समानता) और मौलिक कर्त्तव्यों (अनुच्छेद 51A) का समर्थन करता है।
- सुशासन- जवाबदेही, पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और विधि का शासन, के सिद्धांतों को सुदृढ़ करता है।
4. दीर्घकालिक सुधार के लिये प्रणालीगत सुधार
- कार्यक्रम-पूर्व अनुमोदन: अनिवार्य सुरक्षा ऑडिट और भीड़ प्रबंधन योजनाएँ; सलाह की अनदेखी करने वाले आयोजकों पर दंड।
- मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOP): बैरिकेडिंग, निकासी, चिकित्सा सुविधाओं और पुलिस तैनाती के लिये दिशा-निर्देश; अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण: ड्रोन, CCTV और भीड़-निगरानी उपकरणों का उपयोग।
- विधिक और संस्थागत ढाँचा: आपदा प्रबंधन कानूनों को मज़बूत करना; सार्वजनिक आयोजनों के लिये स्वतंत्र निगरानी समितियाँ।
- जन-जागरूकता: नागरिकों को बड़े समारोहों में सुरक्षित व्यवहार के बारे में शिक्षित करना।
निष्कर्ष:
रवि की ज़िम्मेदारी प्रशासनिक कर्त्तव्य, नैतिक निष्ठा और जन सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने में निहित है। पारदर्शिता बनाए रखना, पीड़ितों के लिये न्याय सुनिश्चित करना और प्रणालीगत सुधारों के लिये प्रतिबद्ध होना जनता का विश्वास तथा शासन की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये आवश्यक है। राजनीतिक दबाव में भी, नैतिक साहस और संवैधानिक मूल्यों के पालन को निर्णय लेने में मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिये।
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